1-अधिकार उठो वंचित,शोषित मजदूरों, कब तक जीवन का सार गंवाओगे कब तक ढोआगे रिसते जख्म का बोझ कब तक व्यर्थ आंसू बहाओगे तुम तो अ...
1-अधिकार
उठो वंचित,शोषित मजदूरों,
कब तक जीवन का सार गंवाओगे
कब तक ढोआगे रिसते जख्म का बोझ
कब तक व्यर्थ आंसू बहाओगे
तुम तो अब जान गये हो
सपने मार दिये गये है तुम्हारे साजिश रचकर
तुम्हारे पसीने ने सम्भावनाओं को सींचे रखा है
ललचायी आंखों से राह ताकना छोड़ दो
अब तो तनकर अधिकार की मांग कर दो....
बन्द नही खुली आंखों से देखो सपने
कब तक बन्द किये रहोगे आंखे भय से
बन्द आँखों के टूट जाते है सपने,
तुम यह भी जानते हो
बन्द आंखों का टूट जाता है सपना
याद है आंधियों से टिकोरे का गिरना
शोषित हो अब सबल कर दो मांग प्रबल
सब खोया वापस तुम पा सकते हो
अब तो तनकर अधिकार की मांग कर दो....
बेदखल हुए तो क्या है तो अपना
मांग पर अटल हो जाओ
देखो रोकता है राह कौन ?
अधिकार की जंग में शहीद हुए तो
अमर हुए अपनों के काम आये
बहुत पिये गम,सम्मान का मौका मत गंवाओ
अब तो तनकर अधिकार की मांग कर दो....
गुजरे दुख के दिन पर शोक मनाने से क्या होगा ?
भय भूख में जीने वालो,
कर दो न्यौछावर जीवन को
वक्त आ गया हिसाब मांगने
सम्मान से जीने का अधिकार मत मरने दो
अब तो तनकर अधिकार की मांग कर दो....
गम के आंसू में जिये,
अनगिनत बार चूल्हे से नही रूठा धुआं
अत्याचार की उम्र बढ़ाने वालों
दर्द का जहर पीने वालों
हर पल चौखट पर तुम्हारी गरजता पतझड़
उत्पीड़न,जुल्म,शोषण के वीरान में तपने वालों
अब तो तनकर अधिकार की मांग कर दो....
लूटा गया हक तुम्हारा जानता जहान सारा
फिजां में हक की गंध अभी बाकी है
अत्याचार की तूफ़ानों ने किया तुम्हारा मर्दन
अत्याचार शोषण के दलदल से बाहर आओ
लूटा हुआ हक वापस लेने की हिम्मत कर लो
बदले वक्त में समानता का नारा बुलन्द कर दो
अब तो तनकर अधिकार की मांग कर दो....
नफरत का बीज बोने वालों ने,
दर्द के सिवाय और क्या दिया है ?
अंगूठा काटने,धूल झोंकने के सिवाय किया क्या है ?
चेतो खुली आंख से सपने देखो
बहुत ढोया अत्याचार का बोझ
संविधान की छांव उपर उठ जाओ
विषमता का कर बहिष्कार,मानवीय समानता का हक ले लो
अब तो तनकर अधिकार की मांग कर दो....
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2-दीवार को ढहा दो
सूना सूना अंगना उदास है खलिहान,
प्यासी प्यासी निगाहें,करे विषपान
राह में बिछे कांटे, उखड़ा उखड़ा स्वाभिमान
कल से उम्मीदें
आज हर दीवारें ढहा दो.............
तरक्की से पड़ा भी है आदमी, तुम भी हो
आदमी को मान दो
रिसते जख्म का भार उतार दो
उजड़े हुए कल को आज संवार दें.............
माटी की काया माटी में मिल जायेगी
आज आसमान पर कल जमीं पर आना है
होगे विदा हो ओगे जहां से बहुत याद आओगे
बन्द हाथ आये खुले हाथ जाना है
थम गया जो उसे गतिमान कर दो
आदमी हो दीन वंचित को उबार दो........
जिन्दगी बस पानी का है बुलबुला
पल में जीवन पल में मरन
कभी दिन तो कभी डरावनी रात है
तनिक छांव तो दूसरे पल चिलचिलाती धूप है
ढो रहा बोझ जो मुश्किलों का, बोझ उतार दो
आदमी को बराबरी का अधिकार दो............
बुराइयों के दलदल फंसे आदमी की सांस है उखड़ रही,
उखड़ती सांस को प्यार की बयार दो
जुड़ सके तरक्की की राह,अवसर की बहार दो
संवर जाये दीन वंचित का कल आज तो दुलार दो.............
बवण्डरों के चक्रव्यूह में हुआ कंगाल
सम्मान से हाथ धोया ,
जख्म पर लगा भेदभाव का मिर्च लाल
टूटे पतवार से जीवन नइया खे रहे ,
आदमी के हाथ मजबूत कटार दो
छोड़कर श्रेष्ठता का स्वांग आदमी को गले लगा लो
आदमी हो आदमियत की आरती उतार लो
नीर से भरे नेत्र की बाढ़ थम जायेगी
आदमी की घोर स्याह रात कट जायेगी
पियेगा आंसू,कब तक कायम रहेगा अंगने का सूनापन
मजदूर वंचित को संभलने का हर औजार दो
आदमियत की कसम उठो
पीड़ित वंचित को भरपूर प्यार दो
विहस उठेगा कोना कोना
विकास की बयार द्वार जब पहुंच जायेगी
धनधान्य हो उठेगा उसका अंगना
वंचित भूलकर सारे दुखड़े झूम उठेगा
आदमी की पीर को समझो प्यारे
ऊंच-नीच अमीर-गरीब की दीवार को ढहा दो
उठो आदमी हो,
आदमी की ओर हाथ बढ़ा दो..........
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3-नयन बरस पड़े......
नयनों की याचना से नयन बरस पड़े
बिगड़ी तकदीर देख भौंहें तन उठी
दर्दनाक पल हर माथे मुसीबतों का बोझ
वंचितों की बस्ती में जख्म की टोह
चहुंओर धुआंधुआं दीनता के पांव जमें
नयनों की याचना से नयन बरस पड़े...........
अपवित्र बस्ती के कुयें का पानी
जख्म रिस रही आज भी पुरानी
लकीरों का जाल वंचित जी रहा बेहाल
गुलामी के दलदल भूख दे रही ताल
आजाद देश में वंचित पुराने हाल पर खडे़
नयनों की याचना से नयन बरस पड़े...........
आजाद हवा वंचितों का नही हुआ उद्धार
रूढ़िवादी समाज ठुकराया जाना संसार
छिन गया मान किस्मत पर बैठा नाग
बेदखल जड़ से दोषी बना है भाग्य
आज भी अरमान के पर है उखड़े
नयनों की याचना से नयन बरस पड़े...........
भेद,भूख बीमारी से जा रहे नभ के पार
छोड़ वारिस के सिर कर्ज का भार
श्रेष्ठ बनाये दूरी वंचित के जनाजे से भरपूर
मानवता तड़पे देख आदमी की श्रेष्ठता का कसूर
वंचितों की बस्ती में दीनता और निम्नता के खूंट है गड़े
नयनों की याचना से नयन बरस पड़े...........
रूढ़िवादी समाज श्रेष्ठता की पीटे नगाड़ा
श्रेष्ठ छोटा मान वंचित को हरदम है दहाड़ा
अर्थ की तुला पर व्यर्थ शोषित समानता न पाया
कहने को आजादी आंसू पिया, गम है खाया
तरक्की और समानता के आंकड़े कागजों में भरे पड़े
नयनों की याचना से नयन बरस पड़े...........
बस्ती में कब आयेगी शोषित बाट जोह रहा
पेट की भूख खातिर हाड़ निचोड़ रहा
समाज और सत्ता के पहरेदारों सुन लो पुकार
वंचित करे सामाजिक समानता की गुहार
आक्रोश बने बवण्डर ,
उससे पहले समानता का थाम झण्डा निकल पड़े
नयनों की याचना से नयन बरस पड़े...........
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सम्पर्क:
नन्दलाल भारती
षिक्षा - एम.ए. । समाजशास्त्र । एल.एल.बी. । आनर्स ।
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट;
जन्म स्थान- - ग्र्राम चौकी। खैरा। तह.लालगंज जिला-आजमगढ ।उ.प्र।
स्थायी पता- आजाद दीप, 15-एम-वीणानगर ,इंदौर ।म.प्र.!452010
Email-nandlalram@yahoo.com/nl_bharti@bsnl.in / nlbharati_author@webdunia.com
Portal- http://nandlalbharati.mywebdunia.com
प्ा्रकाषित पुस्तकें उपन्यास-अमानत ,निमाड की माटी मालवा की छाव।प्रतिनिधि काव्य संग्रह।
प्रतिनिधि लघुकथा संग्रह- काली मांटी एवं अन्य कविता, लघु कथा एवं कहानी संग्रह ।
अप्रकाशित पुस्तके उपन्यास-दमन,चांदी की हंसुली एवं अभिशाप, कहानी संग्रह- 2
काव्य संग्रह-2 लघुकथा संग्रह- उखड़े पांव एवं अन्य
सम्मान भारती पुष्प मानद उपाधि,इलाहाबाद, भाषा रत्न, पानीपत ।
डां.अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान,दिल्ली,काव्य साधना,भुसावल, महाराष्ट्र,
ज्योतिबा फुले शिक्षाविद्,इंदौर ।म.प्र.।
डां.बाबा साहेब अम्बेडकर विशेष समाज सेवा,इंदौर
कलम कलाधर मानद उपाधि ,उदयपुर ।राज.।
साहित्यकला रत्न ।मानद उपाधि। कुशीनगर ।उ.प्र.।
साहित्य प्रतिभा,इंदौर।म.प्र.।सूफी सन्त महाकवि जायसी,रायबरेली ।उ.प्र.।
विद्यावाचस्पति,परियावां।उ.प्र.।एवं अन्य
आकाशवाणी से काव्यपाठ का प्रसारण ।कहानी, लघु कहानी,कविता
और आलेखों का देश के समाचार पत्रों/पत्रिकओं में एवं http://www.swargvibha.tk/ http://www.swatantraawaz.com
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॥ प्रकाशक पुस्तक प्रकाशनार्थ आमन्त्रित हैं ॥
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