रचना श्रीवास्तव की कहानी : मैंने उसे ईमेल क्यों लिखी?

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  मैंने उसे ई-मेल क्यों लिखी ? -रचना श्रीवास्तव धूप को मैं कोई चार साल से जानती हूँ जब से वो इस यूनिवर्सिटी में आया है मिलनसार सब क...

 

मैंने उसे ई-मेल क्यों लिखी ?

-रचना श्रीवास्तव

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धूप को मैं कोई चार साल से जानती हूँ जब से वो इस यूनिवर्सिटी में आया है मिलनसार सब की सहायता को हर समय तैयार सभी से उसकी अच्छी दोस्ती है मुझसे अक्सर ही बात होती रहती है .किसी को कोई काम हो तो वो धूप को ही खोजता है धूप के धर अक्सर ही बैठकी होती थी .उसका सब कुछ बहुत अच्छा था पर उसका व्यवहार उसकी बीवी के साथ मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता .बाहर इतना अच्छा इन्सान धूप पर घर में एकदम अलग क्या धूप भी आम मर्दों की तरह है तो दो चेहरे लिए फिरते हैं?

उसके घर जब भी गई एक बेचैनी सी रही सुनीता धूप की बीवी सब की कहीं करती रहती अपनी अभिलाषा तो उसने कभी कही ही नहीं यहाँ तक की वो किसी मेहमान के आने पर भी उन्हीं की कही करती रहती कभी-कभी तो ये सब देख के लगता की उसके घर जाना बंद कर दूँ. हम सभी तो बैठ के बातें करते ,हँसते और वो खाना बना रही होती बीच-बीच में यदि बच्चे को देखने को कहती तो अहसान सा जाता धूप बच्चे को लेता. फिर थोड़ी देर में कहता ले जाओ ये भूखा है या कभी कहता ले जाओ ये सोने वाला है. सुनीता बेचारी चुप से ले लेती .हम यदि कहते की लाओ हम कुछ करवा लेते हैं तो मना कर देती खाना भी सभी से पूछती रहती. फिर धीरे से धूप से पूछती सुनो ठीक है पर धूप हमेशा कुछ न कुछ कमी बता देता सुनीता दुखी हो जाती और सारे समय इस गिल्ट में रहती की खाना ठीक नहीं बन पाया. ये सब देख मन खेद और आक्रोश से भर जाता .एक जीवन मिलता है और वो भी सुनीता यूँ ही बिता दे रही थी जब भी कभी या कुछ कहती तो धूप उसको चुप कर देता तुम को मालूम नहीं तो क्यों बोलती हो .जाओ अपना काम करो और वो अपनी खिसियाहट को मिटने का भरसक प्रयास करती हुई मुस्कुराने की नाकाम कोशिश करती .फिर बच्चों के बहाने वहां से उठ जाती .फिर धूप कुछ फरमाइश करता और वो पूरा करती .

कभी कभी तो ये लगता की वो हम सभी के बीच होते हुए भी अलग है कहीं चुप चाप बैठी सभी को देखती रहती .कभी कोई बात उस से कहो तो कहती इन्हीं से पूछो .मुझे कहाँ पता है इस सब चीजों का .मुझे तो बहुत गुस्सा आती सुनीता पे भी कभी कभी . अमेरिका आए उसे ४ साल हो चुके हैं पर कार चलाना उसने अभी तक सीखा नहीं .अब यदि ये कहूँ की उस को सिखाया नहीं तो ग़लत न होगा .सभी उसको पूछते की तुम क्यों नहीं सीखती .तो कहती इनके पास टाइम नहीं है .और फिर मैं डरती भी हूँ .सब झूठ बकवास .मै जानती थी की वो धूप को कोई कुछ न कहे बस इसीलिए ये सब कह रही थी . एक दिन मेरे हाथ सुनीता की डायरी लग गई देख के मैं हैरान रह गई इतनी चुप रहने वाली सुनीता शब्दों की इतनी धनी थी. अपने भावों को शब्दों मे पिरो के कविता की माला बना दी थी कविता भी इतनी सुंदर की मन भावविभोर हो गया. मेरे पूछने पे बताया की मालूम नहीं कि मैं कविता के साथ बड़ी हुई य कविता मेरे साथ .जब से लिखना सीखा इतनी गुणवान लड़की और ये हाल घर में धूप ने जो कुछ कह दिया वही होगा सुनीता की मर्जी क्या है कभी?

धूप ने जानने कोशिश नहीं की .कभी पूछा भी तो घुमा फिर के अपनी ही बात हाँ करवा ली . मैं कभी कभी ये सोचती की कोई ऐसा जीवन कैसे जी सकता है जीवन उसका और अधिकार किसी और का .उसकी अपनी जिंदगी से उस का कुछ भी नहीं . उस को कंही जानना भी हो तो उस की मर्जी नहीं चलती धूप को ठीक लगेगा तो जायेगी .उफ़ ये क्या है सांसे किसी की और अधिकार किसी का .धड़कन किसी की और पहरा किसी का .मुझे लगा मुझे सुनीता से बात करनी चाहिए . मैंने उसको एक मेल लिख दी-

प्रिय सुनीता

Ø तुम सोचती होगी की मैं तुम को मेल क्यों कर रही हूँ .जानती हो मैं तुम से बात करना चाहती हूँ प्यार में डर नहीं होना चाहिए और प्यार में गुलामी नहीं होनी चाहिए ,तुम धूप से प्यार करो पर उसकी शर्त पे नहीं .समर्पण करो पर डर के नहीं .अपना दिमाग बंद मत करो उसका इस्तेमाल करो जीना सीखो . तुम विलक्षण प्रतिभा की मालकिन हो आपने आप को किसी से कम न समझो . पना सम्मान ख़ुद करो तभी सब तुम्हारा सम्मान करेंगे .तुम हमेशा धूप की बात को क्यों सच और सही मानती हो बहुत बार तुम सही होती हो .तुम जानती हो पर फिर भी .उफ़ सुनीता अपना दायरा तोड़ो बाहर निकलो .दुनिया में न सही पर आपने घर में अपनी जगह बनाओ .बच्चों के निगाह में ख़ुद को कमजोर माँ मत बनाओ .

Ø मेरी बात पे सोचना

प्यार

निशा

मेल लिखने के बाद मन कुछ हल्का लगा .मैं आराम से सो गई .लैब में धूप से मुलाकात हुई .पर उसने बात नहीं की .थोड़ी देर बाद वो आया तो मैंने पूछा क्या बात है बस फिर क्या था ज्वाला मुखी सा फूट पड़ा "तुम आपने आप को समझती क्या हो ख़ुद का घर तो तोड़ के बैठी हो अब मेरा घर है निशाने पे .तुम कौन होती हो ये सब कहने वाली मैं कसाई हूँ यही कहना चाहती हो .जीवन त्याग से चलता है पर तुम क्या जानो .आइंदा यदि तुम ने कुछ कहा तो ठीक नहीं होगा कह के धूप चला गया .

मैं ठगी सी सोचने लगी किस त्याग की बात कर रहा था ये जो सिर्फ़ औरत करती है .घर चलने के लिए क्या मात्र औरतों को सोचना चाहिए .मुझे जो बोला वो तो सुनने की आदत हो गई है .मेरा बस इतना कसूर है की मैंने अपना जीवन किसी को सौंपा तो था पर उस पे उसे अधिकार करने की इजाजत नहीं दी .उस की गलियां नहीं सुनी घुट के जिंदा रहना नहीं स्वीकार किया .तो सब को लगने लगा की मैं ग़लत हूँ . यदि एक लड़की आपने लिए जीना चाहती है तो क्या ग़लत है , क्यों उसे कुलटा ,बदमाश समझा जाता है , क्यों अकेली कड़की को सब अपनी जायदाद समझते है मैंने ऐसा क्या कह दिया था की धूप ने मुझे भला बुरा सुना दिया .जीवन की सच्चाई पे लंबा भाषण दे डाला .क्या इस लिए की मैंने बस उस को उसका आइना दिखा दिया था या जो कुछ आपने घर में करता था उस बात को उसकी बीवी को समझा दिया था .सुनीता उसकी बीवी को आपने लिए कुछ सोचने को कह दिया था . क्या ग़लत किया था यदि मैंने सुनीता को अपना आसमान ढूँढने को कहा था .अपनी लिए भी एक जमीं मांगने की ख्वाहिश जगाई थी .

मैं ये सब सोच ही रही थी कि सुनीता का फोन आया "निशा जी जानती है इन्होंने आप की मेल पढ़ ली थी ."

"मुझे मालूम है .तुम को कुछ कहा क्या ?"

"नहीं कुछ नहीं (पर उस के रोने की आवाज मुझे सुनाई दी )"

मैं सोचने लगी मेल तक पर पहरा .जब मुझे इतना कुछ कहा तो उसको तो ......................मुझे मालूम था की उस का कम से कम एक हफ्ता अब बहुत बुरा बीतने वाला है घर में रहेगा चुप्पी का माहौल और सुनीता की शामत कुछ दिनों तक सुनीता से कोई बात नहीं हुई .एक दिन पता चला की सुनीता को उस की माँ के पास भेज दिया धूप ने बच्चों को आपने ही पास रखा है .कहा गया सुनीता से की ये उस की सजा है .६ महीने बच्चों से दूर रहो जब दिमाग ठंडा हो जाए तो बताना .मैं सुन के हैरान रह गई क्या हमारा देश आजाद हो गया है .या ये आज़ादी मात्र कुछ लोगों के लिए ही है .सुनीता को उस गुनाह की सजा दी गई जो उस ने किया ही नहीं ..और ये सब हुआ मेरी एक मेल की वजह से .

मैं बहुत पछता रही थी कि मैंने उस को मेल क्यों लिखी.

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चित्र - अनु

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. sashakt katha......
    par ise katha kya kahen....aaj bhi asankhya dampatya ka sach hai yah.

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामी2:58 am

    me ranjna ji se sahmat hoon .rachna ji ki kahani jeevan se bahut karib hai .sunder kahani ke liye dhanyavad
    disha

    जवाब देंहटाएं
  3. बेनामी9:32 pm

    अनु जी ने जो चित्र बनाया है उस के लिए उनका धन्यवाद .रंजना जी और दिशा जी आप ने कहानी को पसंद किया और समय निकाल के लिखा भी आप दोनों का दिल से धन्यवाद
    रचना

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: रचना श्रीवास्तव की कहानी : मैंने उसे ईमेल क्यों लिखी?
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रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2008/11/blog-post_11.html
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