1. इतना भी ज़ब्त मत कर आँसू न सूख जाएँ दिल में छुपा न ग़म हर आँसू न सूख जाएँ कोई नहीं जो समझे दुनिया में तुमको अपना रब को बसा ले ...
1.
इतना भी ज़ब्त मत कर आँसू न सूख जाएँ
दिल में छुपा न ग़म हर आँसू न सूख जाएँ
कोई नहीं जो समझे दुनिया में तुमको अपना
रब को बसा ले अंदर आँसू न सूख जाएँ
अहसास मर न जाएँ, हैवान बन न जाऊँ
दो अश्क हैं समंदर आँसू न सूख जाएँ
मंजर है खूब भारी अपनों ने विष पिलाया
देवों से गुफ़्तगू कर आँसू न सूख जाएँ
कैसे जहाँ बचे यह आँसू की है न कीमत
दुनिया बचा ले रोकर आँसू न सूख जाएँ
2.
खेल कुर्सी का है यार यह,
शव पड़ा बीच बाज़ार यह ।
कैसे जीतेगी भुट्टो भला,
देते हैं पहले ही मार यह ।
नाम लेते हैं आतंक का,
रखते हैं खुद ही तलवार यह ।
रात दिन हैं सियासत करें,
करते बस वोट से प्यार यह ।
भूल कर भी न करना यकीं,
खुद के भी हैं नहीं यार यह ।
दल बदलना हो इनको कभी,
रहते हर पल हैं तैयार यह ।
देख लें घास चारा भी गर,
खूब टपकाते हैं लार यह ।
पेट इनका हो कितना भरा,
सेब खाने को बीमार यह ।
अब करें काम हम अपने सब,
छोड़ बातें हैं बेकार यह ।
3.
चुभा काँटा चमन का फूल माली ने जला डाला
बना हैवान पौधा खींच जड़ से ही सुखा डाला
चला मैं राह सच की हर बशर मेरा बना दुश्मन
जो रहता था सदा दिल में जहर उसने पिला डाला
बड़ी हसरत से उल्फ़त का दिया हमने जलाया था
उसे काफ़िर हवा ने एक झटके में बुझा डाला
सताया डर कि दौलत बँट न जाए पैसे वालों को
थे खुश हम खा के रूखी छीन उसको भी सता डाला
उजाड़े घर हैं कितने उसने पा ताकत को शैतां से
बसाने घर कुँवर का अपनी बेटी को गला डाला
4.
जब से गई है माँ मेरी रोया नहीं
बोझिल हैं पलकें फिर भी मैं सोया नहीं
ऐसा नहीं आँखे मेरी नम हुई न हों
आँचल नहीं था पास फिर रोया नहीं
साया उठा अपनों का मेरे सर से जब
सपनों की दुनिया में कभी खोया नहीं
चाहत है दुनिया में सभी कुछ पाने की
पायेगा तूँ वह कैसे जो बोया नहीं
इंसा है रखता साफ तन हर दिन नहा
बीतें हैं बरसों मन कभी धोया नहीं
5.
तप कर गमों की आग में कुंदन बने हैं हम
खुशबू उड़ा रहा दिल चंदन सने हैं हम
रब का पयाम ले कर अंबर पे छा गए
बिखरा रहे खुशी जग बादल घने हैं हम
सच की पकड़ के बाँह ही चलते रहे सदा
कितने बने रकीब हैं फ़िर भी तने हैं हम
छुप कर करो न घात रे बाली नहीं हूँ मैं
हमला करो कि अस्त्र बिना सामने हैं हम
खोये किसी की याद में मदहोश है किया
छेड़ो न साज़ दिल के हुए अनमने हैं हम
6.
दावत बुला के धोखे से है काट सर दिया
हैवां का जी भरा न तो फिर ढा क़हर दिया
दुनिया की कोई हस्ती शिकन इक न दे सकी
अपनों ने उसको घोंप छुरा टुकड़े कर दिया
कण-कण बिखर गया जो किया वार पीठ पर
खुद को रहा समेट कहाँ तोड़ धर दिया
अंडों को खाता साँप ये हैं उसकी आदतें
बच्चे को नर ने खा सच को मात कर दिया
इंसां गिरा है इतना रहा झूठ सच बना
पैसा बना ईमान वही घर में भर दिया
होली जला के रिश्तों की नंगा है नाचता
बन कंस खेल बदतर वह खेल फिर दिया
7.
शैदाई समझ कर जिसे था दिल में बसाया ।
कातिल था वही उसने मेरा कत्ल कराया ॥
दुनिया को दिखाने जो चला दर्द मैं अपने,
हर घर में दिखा मुझको तो दुख दर्द का साया ।
किसको मैं सुनाऊँ ये तो मुश्किल है फसाना
दुश्मन था वही मैने जिसे भाई बनाया ।
मैं कांप रहा हूँ कि वो किस फन से डसेगा,
फिर आज है उसने मुझसे प्यार जताया ।
आकाश में उड़ता था मैं परवाज़ थी ऊँची,
पर नोंच मुझे उसने जमीं पर है गिराया ।
गीतों में मेरे जिसने कभी खुद को था देखा,
आवाज मेरी सुन के भी अनजान बताया ।
कांधे पे चढ़ा के उसे मंजिल थी दिखाई,
मंजिल पे पहुँच उसने मुझे मार गिराया ।
शैदाई= चाहने वाला, पर = पंख, परवाज = उड़ान
कवि कुलवंत सिंह
8. गज़ल - बंदा था मैं
मैं खुदा का, आदिम मुझे बनाया ।
इंसानियत ने मेरी मुजरिम मुझे बनाया ।
माँगी सदा दुआ है, दुश्मन को भी खुशी दे,
हैवानियत दिखा के ज़ालिम मुझे बनाया ।
दिल में जिसे बसाया, की प्यार से ही सेवा,
झाँका जो उसके अंदर, खादिम मुझे बनाया ।
है शर्मनाक हरकत अपनों से की जो उसने,
कैसे बयां करूँ मैं, नादिम मुझे बनाया ।
रब ने मुझे सिखाया सबको गले लगाना,
सच को सदा जिताऊँ हातिम मुझे बनाया ।
9. गज़ल - दीन दुनिया
दीन दुनिया धर्म का अंतर मिटा दे ।
जोत इंसानी मोहब्बत की जला दे ।
ऐ खुदा बस इतना तूँ मुझ पर रहम कर,
दिल में लोगों के मुझे थोड़ा बसा दे ।
उर में छायी है उदासी आज गहरी,
मुझको इक कोरान की आयत सुना दे।
जब भी झाँकू अपने अंदर तुमको पाऊँ,
बाँट लूँ दुख दीन का जज़्बा जगा दे ।
रोशनी से तेरी दमके जग ये सारा,
नूर में इसके नहा खुद को भुला दे ।
10. गज़ल - भरम पाला था
भरम पाला था मैंने प्यार दो तो प्यार मिलता है ।
यहाँ मतलब के सब मारे न सच्चा यार मिलता है ।
लुटा दो जां भले अपनी न छोड़ें खून पी लेंगे,
जिसे देखो छुपा के हाथ में तलवार मिलता है ।
बहा लो देखकर आँसू न जग में पोंछता कोई,
दिखा दो अश्क दुनिया को तो बस धिक्कार मिलता है ।
नहीं मैं चाहता दुनिया मुझे अब थोड़ा जीने दो,
मिटाकर खुद को देखो तो भी बस अंगार मिलता है ।
मैं पागल हूँ जो दुनिया में सभी को अपना कहता हूँ,
खफ़ा यह मुझसे हैं उनका मुझे दीदार मिलता है ।
मुखौटा देख लो पहना यहाँ हर आदमी नकली
डराना दूसरे को हो सदा तैयार मिलता है ।
11
.
याद मौला को करें बात है बनती बिगरी
सेंकना रोटी नही देख दुखों की सिगरी
खूब था फक्र हमें अपनी तो खुद्दारी का
कौड़ियों में न बिका हाट किसी भी नगरी
मान कर खुद को खुदा चलता अनेकों चालें
रब का दर भूल के इंसां है चला किस डगरी
पाप से भर ही गया अब तो घड़ा शैतां का
हस्र क्या होगा रे जब पाप की फूटे गगरी
जो भी इज्जत थी कमाई घर के बूढ़ों ने
लाड़ला घर का सरे आम उछाले पगरी
12
. गज़ल
जब से तेरी रोशनी आ रूह से मेरी मिली है ।
अपने अंदर ही मुझे सौ सौ दफा जन्नत दिखी है ॥
आस क्या है, ख्वाब क्या है, हर तमन्ना छोड़ दी,
जब से नन्ही बूंद उस गहरे समंदर से मिली है ।
प्रात बचपन, दिन जवानी, शाम बूढ़ी सज रही,
खुशनुमा हो हर घड़ी अब शाम भी ढ़लने लगी है ।
गम जुदाई का न करना, चार दिन की जिंदगी,
ठान ली जब मौत ने किसके कहने से टली है ।
गीत गाओ अब मिलन के, है खुशी की यह घड़ी,
यार अपनी सज के डोली अब तो रब के घर चली है ।
9.
गज़ल - रात तन्हा थी
रात तन्हा थी न तुम दिन को सज़ा-ए-मौत दो
पास आ जाओ न तुम मुझको सज़ा-ए-मौत दो
इश्क में तेरी अदाओं ने मुझे कैदी किया
हुस्न-ए-जलवों से न तुम मुझको सज़ा-ए-मौत दो
हम तो तेरे थे सदा फिर चाल तूने क्या चली
दूर कर मुझसे न तुम सबको सज़ा-ए-मौत दो
रात काली छा गई हर ओर बरबादी हुई
है नहीं गलती न तुम उसको सज़ा-ए-मौत दो
दूरियां दिल में नहीं हैं, दूर हम क्यों फिर हुए
सुन मुझे रोता न तुम खुद को सज़ा-ए-मौत दो
कवि
कुलवंत सिंह
कवि कुलवंत सिंह की अन्य रचनाएँ पढ़ें उनके चिट्ठे गीत सुनहरे पर:
http://kavikulwant.blogspot.com/
Kavi Kulwant singh
participate in kavi sammelans
quiz master science quiz in Hindi
scientific Officer SES, MPD, BARC, Mumbai-400085
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(चित्र – रेखा की कलाकृति)
रात तन्हा थी न तुम दिन को सज़ा-ए-मौत दो
जवाब देंहटाएंपास आ जाओ न तुम मुझको सज़ा-ए-मौत दो
इश्क में तेरी अदाओं ने मुझे कैदी किया
हुस्न-ए-जलवों से न तुम मुझको सज़ा-ए-मौत दो
हम तो तेरे थे सदा फिर चाल तूने क्या चली
दूर कर मुझसे न तुम सबको सज़ा-ए-मौत दो
achchi rachnaaye padwaane ke liye shukriya
ravi ji,you are doing a wonderful job on the blogger... bohat mushkil se aise log milte hain jo sahitya ko samajhte bhi hain aur usko aage badhane ka prayas bhi karte hain.
जवाब देंहटाएंरवि जी अभिवादन आपका ब्लॉग हमेशा ही देखती रही हूँ ,लेकिन लगता है नये सिरे से समझना होगा
जवाब देंहटाएंकुछ भी तो आसान नही है...
ग़ज़लें बहर में मुकम्मल हैं, ख़यालात भी समझ में आते हैं, पर बात कहने का ढंग कमज़ोर लगा,व्याकरण की भी बहुतायत में त्रूटि है,उर्दू शब्दों को जोड़ने में बहुत ग़ल्तियां हैं जैसे (हुस्न-ए-जलवों)पूरी तरह ग़लत है, सबसे ज़ियादा कमज़ोरी बात को सही तरीके से रखने मे ही है। उम्मीद करता हूं भविश्य में ये सब आसानी से सुधर जायगे। दिल दुखाने के लिये मुआफ़ी का तलबगार हूं।
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