हिमांशु कुमार पाण्डेय का आलेख – करूणोदात्तशील ‘निराला’

SHARE:

  (सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’) करुणोदात्तशील ’निराला‘ -हिमांशु कुमार पाण्डेय   करुणोदात्त शील एक ऐसी सुन्दर डायरी होता है जिसम...

 

(सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’)

करुणोदात्तशील ’निराला‘

clip_image002

-हिमांशु कुमार पाण्डेय

 

करुणोदात्त शील एक ऐसी सुन्दर डायरी होता है जिसमें तीन सौ पैंसठ दुःख होते हैं किन्तु उसके प्रारब्ध की कार्य-कारण व्याख्या उसके कर्मों से नहीं हो सकती । प्रारब्ध उसके कर्मों से अतिरिक्त पड़ता है । उसकी गाथा हमारे मन में वीर तथा करुण रस की प्रपानक अनुभूति कराती है । उसमें भाव-द्वैत नहीं भाव का गुण-कल्प होता है । करुणोदात्तशील की उदात्तता दूसरों के विध्वंस या पराजय करने की क्षमता में नहीं, अपितु सामरिक उत्साह तथा पीड़ा सह सकने की, स्वाभिमान को अक्षुण्ण बनाये रखने की निस्सीम शक्ति में, संकल्प की वज्र कठोरता में होती है ।

निराला जी हिन्दी साहित्याकाश के ऐसे कवि वीर जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं जो प्रारब्ध से पराजित होकर भी हार न माने, दस हजार तीर एक साथ झेलकर भी अपना तीर छोड़ता जाय, तन चला जाय, धन चला जाय, लेकिन मन न माने । निराला जिन शक्तियों से संघर्ष करते हैं वे अखिल मानवता से, शिव मूल्यों से या स्वभावधर्म से विरोध या उनपर व्यंग करती-सी प्रतीत होती हैं; किन्तु निराला का करुणोदात्त शील सबका बंधुत्व प्राप्त कर लेता है । इतनी दुर्धर्ष शक्तियों से संघर्ष करने वाले निराला संकल्प, साहस, शक्ति तथा मर्यादा की असाधारण विभूति हैं ।उनकी यह असाधारण विभूति हमें विस्मय से, गौरव से भर देती है । निराला हमें अद्भुत वीर-से लगते हैं । उनमें आत्मबल की, मनोबल की अतिशय पूंजी दीख पड़ती है । सबको हटा कर, अहं के कारण सबका निषेध कर, करुणोदात्तशील निराला अकेले हो जाते हैं । अपनी वर्द्धमान परिधि के वे स्वयं बन्दी हो जाते हैं । इसीलिये सूनेपन अथवा एकान्त की उदासी जितना उन्हें सताती है, उतना किसी को नहीं ।

सापेक्षताओं पर सर पटक-पटक कर मर जाना अच्छा, पर मुड़ना ठीक नहीं, यही निराला के करुणोदात्तशील की भोक्तृत्व पद्धति है ।

निराला में करुणोदात्त नायकत्व की पीड़ा प्रगाढ़ है । प्रगाढ़ इसलिये कि वे स्वाभिमानी हैं । चूंकि स्वाभिमानी हैं, इसलिये उनका विरोध रुकने का नाम नहीं लेता । विरोध बढ़ने से उनकी पीड़ा बढ़ती है, क्योंकि नियति उनके साथ परिहास करती है । वे कभीं उल्लास के उत्तरी ध्रुव को छूते हैं तो कभी नैराश्य के दक्षिणी ध्रुव को ।लेकिन चकि वे करुणोदात्त व्यक्तित्व के गगनचुम्बी हिमालय हैं इसलिये उनके बीज संकल्प का अध्यवसाय स्वाभिमान के बल पर अन्त तक चलता रहता है । अन्तस्थल की मर्यादा-भावना कठोर अनुशासन, साधना, एकान्त और गंभीरता की ओर उन्हें बलात् खींच ले जाती है । तमाम अंतर्जीवन मिल कर उनके भीतर एक भयानक अन्तर्विरोध पैदा करते हैं, और वही अंतर्विरोध उनकी कविताओं में जटिल संसार के रूप में व्यक्त होता है ।

करुणोदात्त शील की यह एक विरल विशेषता है कि वह अपने समस्त अंतर्विरोध को व्यक्त करना चाहता है -अपने टूट जाने की लगातार बढ़ती आशंका के बावजूद । अपनी कविताओं के भीतर के संसार को तय करने की प्रक्रिया में निराला ने भी अपने को नष्ट कर दिया पर अदम्य जिजीविषा से ललकारा कि समाज का वर्तमान ढाँचा टूटे, इतिहास बदले और यथास्थिति नष्ट हो ।

उन्होंने ’पीलिया साहित्य‘ नहीं रचा । निराला अपने आन्तरिक सत्य और उसकी अस्मिता (आइडेन्टिटी) के सक्रिय, क्रियाशील अन्वेषक हैं । दर्द का निर्वाह, कठिनतर ताप का विस्तार, दुःख, असफलता, निराशा सब उन्हीं में है । इसीलिये वे शक्ति, धृति या शांति को पहचानते हैं । निराला की कोटि के करुणोदात्त शील महापुरुष कभी व्यक्ति मात्र नहीं रहते, वे प्रतीक बन जाते हैं ।

गंगा प्रसाद पाण्डेय के संग गंगातट पर निराला के जन्मदिन वसंत पंचमी को भेट करने पहुंचे धर्मवीर भारती । उन्हें वसंत का गणित समझाते हुये निराला ने कहा था - ’’देखो, पहले तत्व लो, फिर उसमें गुण जोड़ दो । हो गया । अब ऋषियों को बुलाकर स्थापित कर दो और उनमें से सूर्यका्न्त त्रिपाठी को घटा दो - बस हो गयी पंचमी । फिर अपने गणित का अर्थ बताते हुये बोले - ’’देखो, तत्व होते हैं पाँच.....अब इसमें जोड़ो गुण । गुण कै होते ह ? तीन- सत्, रज और तम । तो पाँच और तीन हुये आठ ।ऋषि बुलाये तो सप्तऋषि आ गये ।यानी सात और आठ हुये पन्द्रह । अब इस पन्द्रह में से सूर्यकान्त त्रिपाठी को घटा दो । कितने बचे ? चौदह । चौदह में दो अंक हैं - एक और चार । दोनों को जोड़ दो तो सारतत्व बच गया पाँच । यानी पंचमी । समझे पंचमी का गणित ।‘‘ फिर उन्होंने समझाया - ’’सूर्यकान्त त्रिपाठी तो एक व्यक्ति है । उसमे राग है, द्वेष है, अहंकार है, लोभ है, मोह है, काम है, क्रोध है । वह सब उसका अपना व्यक्तिगत है । सरस्वती आयीं तो उन्होंने उसका ममत्व छुड़ा कर उसे सबका बना दिया । तब कवि पैदा हुआ, तब निराला पैदा हुआ ।‘‘ ऐसा बहुआयामी व्यक्तित्व, ऐसी विस्तार दृष्टि, ऐसी गहरी संवेदना निराला के उदात्तशील के अतिरिक्त दीपक लेकर खोजने पर भी क्या कहीं मिलेगी ?

’अज्ञेय‘ जी शिवमंगल सिंह ’सुमन‘ के साथ निराला से मिलने गये । सुमन जी के यह पूछने पर कि ’’निराला जी, आजकल आप क्या लिख रहे हैं ‘‘, निराला ने एकाएक कहा - ’’निराला, कौन निराला ?....नहीं, नहीं, निराला तो मर गया । There is no Nirala. Nirala is dead.क्क्‘‘ व्यक्तिगत कष्ट को मानव मात्र की पीड़ा में आत्मसात करने की, दलित, पतित, पीडत मानव के कष्टों को वाणी देने की ललक में प्राण-विसर्जन की संकल्पित अंजलि उठी तो निराला की ही । ऐसे उदात्त कवि शिरोमणि की थाती पुनः प्राप्त करने के लिये हिन्दी काव्य-धारा को अभी बहुत दिनों तक तपस्या करनी पड़ेगी । श्री श्रीनारायण चतुर्वेदी ने कहा - ’’उनके समान तेजस्वी मेधा और मौलिक और ऊंची उड़ान लेने वाला कवि तथा ’शब्दों का बादशाह‘ यदा-कदा ही जन्म लेता है ।‘‘

कवि रामेश्वर शुक्ल ’अंचल‘ की निम्न पंक्तियाँ जैसे निराला के विरल व्यक्तित्व को ही प्रतिबिम्बित करती प्रतीत होती हैं -

’’देख ही लोगे क्षितिज तट तक तरसते प्रश्न को

अश्रु ने थमकर घडी भर भी नहीं सोखा जिसे ।

थी अमिट विधि-अंक सी जिसकी अबूझी गूढ़ता

आंधियों ने, बिजलियों ने भी नहीं पोंछा जिसे ।‘‘

सन् १९५४ में कोलकाता में निराला का अभिनन्दन किया गया था । अचानक गले में पड़े पुष्पहार को उतार कर मंच से द्रुत गति से नीचे आये और जैसे अपने आप से ही बोले -

’’ Mr. One ! you cannot make us wooden headed, Mr. Second ! you cannot catch us with gold.‘‘ ’मिस्टर वन‘ से निराला की घृणा थी जो साहित्य, कला और संस्कृति से अनभिज्ञ साधारण जनता थी, और जो तब निराला को नहीं पढ़ती थी । ब्लेक सिरीज के हल्के जासूसी उपन्यासों और पारसी थियेटर की औरतों के ’खेमटा‘ नाच देखती थी । ’मिस्टर सेकन्ड‘ को भी निराला घृणा का उपादान मानते थे जो साहित्य और साहित्यकार की ईमानदारी को स्वर्ण-श्रृंखला में आबद्ध कर लेना चाहता है ताकि ’वह तोड़ती पत्थर, इलाहाबाद के पथ पर‘ और ’वह आता/ दो टूक कलेजे के करता/ पछताता पथ पर आता‘, और ’राम की शक्तिपूजा‘ और ’बादल राग‘ जैसी कवितायें न लिखी जाँय न गायी जाँय ; बल्कि ’गीत गोविन्द‘ ’भामिनी विलास‘, अमरू शतक‘ आदि के ढंग की कवितायें लिखी जाँय या आधुनिक युगीन रघुवंशगाथा लिखी जाय ।

किन्तु निराला का करुणोदात्त शील इस ’मिस्टर वन‘ और इस ’मिस्टर सेकण्ड‘ का मुखापेक्षी नहीं रहा । उन्हें इनकी श्रद्धा और श्रद्धांजलि की आवश्यकता नही थी । जिसकी उस महानायक को आवश्यकता थी, वह भी उसको कहाँ मिला । इसीलिये हमने निराला के शील को करुणोदात्त शील कहा । उनके विलक्षण व्यक्तित्व का अहं उन्हें दया, सहानुभूति और दान स्वीकारने से रोकता था । शायद वे शारीरिक आवश्यकताओं से ऊर्ध्वगामी हो चुके थे, और बीमारियों और अभावों की अनवरत आवृत्ति झेलते हुये भी यह कहने का साहस रखते थे -

’’मेरे जीवन का यह जब प्रथम चरण

इसमें कहाँ मृत्यु, है जीवन ही जीवन

अभी पड़ा है मेरे आगे सारा यौवन

स्वर्ण-किरण-कल्लोलों पर बहता रे यह बालक-मन ।‘‘

और यह साहस ही निराला क हर प्रकार की यातनाओं में जीवंत और आत्म-सम्पूर्ण रखता था । अविराम आत्म-सम्पूर्ण और आत्मतुष्ट और अपराजित उदात्तता का नाम ही निराला है ।

निराला की उदात्तता - करुणोदात्तता - तब और हमें मथती है जब उनके भाव और अभाव का द्वंद्व समास घटित होता है । निराला को मिली थी मनोरमा देवी के रूप में ऐसी जीवन संगिनी, जिसने उन्हें हिन्दी से परिचित कराया और प्राणप्रण से प्रेरित किया कि हिन्दी को एक नया तुलसीदास, हिन्दी को एक रवीन्द्रनाथ मिल जाय । चन्द्रज्योत्सना में पति-पत्नी गंगा-तट की विमल बालुका राशि में समीपस्थित होते थे और बिखरे पाषाण-खंडों को मृदुल अंगुलियों में उठा मनोहरा देवी सीधी-टेढी लकीरें खींच-खींच कर अपने कवि-स्वामी को देवनागरी के अक्षर और शब्द सिखातीं थीं । अभिराम बरसती चाँदनी --कलकल निनादिनी गंगा की शान्त एकान्त उर्मियाँ -- वेदकालीन आर्यब्राह्मण की तरह व्यक्तित्व वाला पति -- उपनिषदकालीन आर्यऋषि-पत्नी की सी दर्शिता मनोहरा देवी । ऐसे में निराला ने कितने गीत लिखे --

’’शब्द के कलिदल खुलें

गति-पवन-भर काँप थर-थर भीड़ भ्रमरावलि ढुलें

गीत-परिमल बहे निर्मल फिर बहार बहार हो

स्वप्न ज्यों सज जाय

यह तरी, यह सरित, यह तट, यह गगन समुदाय

कमल-वलयित सरल दृग-जल हार का उपहार हो ।‘‘

उस औपनिषदिक ऋषिकल्प कवि ने - ’आयत-दृग, पुष्ट-देह ,गतमय / अपने प्रकाश में निःसंशय / प्रतिभा का मंदस्मित परिचय, संस्मारक निराला ने कलियों के, पवन के, वसंत के स्वप्नों के, गगन के, नदी तट के अमोलक स्नेह गीत लिखे । पर समय और परिस्थिति सब कुछ सह सकती है, स्नेही मन के भावुक गीत नहीं । मनोहरा देवी चलीं गयीं । सन् १९१८ में इन्फलुएंजा के भयावह रोग से ग्रसित हुये । और निराला पागल हो गये । जिस गंगा तट पर स्वप्नों की भीड़ उमड़ आती थी, वह श्मशान बन गया, और निराला पागल हो गये । गंगा में बहती जाती लाशें खींचकर बाहर लाने लगे कि शायद यह लाश उनकी मनोहरा की हो, उस प्रियतमा की हो । अपनी खोयी हुयी पत्नी का नाम ले लेकर चीखते थे, प्रत्येक शवदाह की ज्वाला में खड़े होकर अपनी ज्वालामुखी को शान्त करना चाहते थे, किन्तु ’’अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा, श्यामतृण पर बैठने को निरुपमा ।‘‘

फिर, निराला के पूज्य पिता पं० रामसहाय त्रिपाठी का देहान्त हुआ । सद्यःविवाहिता दृगपुतरी सरोज क्षयरोग से चल बसी । सरोज की मृत्यु ने निराला को तोड़ दिया । साहित्य को ’सरोज-स्मृति‘ की महान कविता तो मिली, लेकिन निराला को क्या मिला ? विक्षिप्तता और आत्मदाह । विक्षिप्तता इसलिये कि समवर्ती समाज ने निराला को नहीं समझा; उसके काव्य को, और उसके अहं को, और उसके व्यक्तित्व को नहीं समझा । आत्मदाह इसलिये कि कवि के पास, स्रष्टा के पास आत्मदाह के सिवा होता ही क्या है ?

किन्तु अद्भुत थे निराला । उस करुणोदात्त नायक के शील को विधाता ने बड़े मन से गढा था । उनके पास अपरजिय अहं था जिसने उन्हें टूटने को मजबूर किया, लेकिन कभी किसी क्षण झुकने नहीं दिया । निराला ने पाठ्य-पुस्तकों के लिये कवितायें नहीं लिखीं, न तो साहित्य की अकादमियों और सरकार का सम्मान पाने के उद्देश्य से साहित्य रचा । निराला विक्षिप्त होकर सड़कों पर घूमते थे, पर रुपये-पैस की उन्होंने कभीं चिन्ता नहीं की । निराला अपनी विक्षिप्तता की स्थिति में बार-बार एक पंक्ति दुहराते थे “ I am not subject to the limitations of my audience….. I am making an example of playing the same card in life and literature.” और जीवन और साहित्य में ताश के एक ही पत्ते खेलने से पागलपन न मिले, पीड़ायें न मिलें तो और क्या मिलेगा ?

इस धीरोद्धत उदात्त नायक को मृत्यु मिल गयी, किन्तु सतत प्रयत्न करके भी क्या निराला के साहित्य को मृत्युमुख किया जा सकेगा ? क्या उग्र समय-धारा के चपेट में, रज-रज बिखेर देने वाली सांपातिक घूर्णिकाओं में बुदबुद की तरह वह विलीन हो जायेगा “Never ! Never ! Never !” निराला हमेशा गाते मिलेंगे -

’’पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लगा मैं

अपने नवजीवन का अमृत

सहर्ष सींच दगा मैं

द्वार दिखा दगा फिर उनको हैं मेरे वे जहाँ अनंत

अभी न होगा मेरा अंत ।‘‘

..................

संपर्क:

हिमांशु कुमार पाण्डेय

हिन्दी विभाग

सकलडीहा पी०जी०कालेज,

सकलडीहा-चन्दौली (उ०प्र०)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: हिमांशु कुमार पाण्डेय का आलेख – करूणोदात्तशील ‘निराला’
हिमांशु कुमार पाण्डेय का आलेख – करूणोदात्तशील ‘निराला’
http://tbn0.google.com/images?q=tbn:duFNBCfwga-cuM:https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgYzxJ_oD6Y1-eNr7fRzCAAaAGcSO4dGiLT4N79ZLh_dONcI6lj3jursu5WQcjgGaWn9b9kUY0SesKPTKIx25ErlbFup0L89nHg_4L111lY3mDNlK0xcsCUveLujmsEa8SQ1ztg/s320/nirala.jpg
http://lh5.ggpht.com/raviratlami/SQHlT_ZYWCI/AAAAAAAAFI0/X-DdMsvjbvk/s72-c/clip_image002_thumb%5B1%5D.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2008/10/blog-post_2339.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2008/10/blog-post_2339.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content