कविताएँ सिलवटों की सिहरन -विजय कुमार सप्पति अक्सर तेरा साया एक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है और मेरी मन की चादर म...
कविताएँ
सिलवटों की सिहरन
-विजय कुमार सप्पति
अक्सर तेरा साया
एक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है
और मेरी मन की चादर में सिलवटें बना जाता है …..
मेरे हाथ , मेरे दिल की तरह
कांपते है , जब मैं
उन सिलवटों को अपने भीतर समेटती हूँ …..
तेरा साया मुस्कराता है और मुझे उस जगह छु जाता है
जहाँ तुमने कई बरस पहले मुझे छुआ था ,
मैं सिहर-सिहर जाती हूँ ,कोई अजनबी बनकर तुम आते हो
और मेरी खामोशी को आग लगा जाते हो …
तेरे जिस्म का एहसास मेरे चादरों में धीमे-धीमे उतरता है
मैं चादरें तो धो लेती हूँ पर मन को कैसे धो लूँ
कई जनम जी लेती हूँ तुझे भुलाने में ,
पर तेरी मुस्कराहट ,
जाने कैसे बहती चली आती है ,
न जाने, मुझ पर कैसी बेहोशी सी बिछा जाती है …..
कोई पीर पैगम्बर मुझे तेरा पता बता दे ,
कोई माझी ,तेरे किनारे मुझे ले जाए ,
कोई देवता तुझे फिर मेरी मोहब्बत बना दे.......
या तो तू यहाँ आजा ,
या मुझे वहां बुला ले......
मैंने अपने घर के दरवाजे खुले रख छोड़े हैं ........
मौनता
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
जिसे सब समझ सके , ऐसी परिभाषा देना ;
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना.
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
ताकि ,मैं अपने शब्दों को एकत्रित कर सकूँ
अपने मौन आक्रोश को निशांत दे सकूँ,
मेरी कविता स्वीकार कर मुझमें प्राण फूँक देना
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
ताकि मैं अपनी अभिव्यक्ति को जता सकूँ
इस जग को अपनी उपस्थिति के बारे में बता सकूँ
मेरी इस अन्तिम उद्दंडता को क्षमा कर देना
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
ताकि ,मैं अपना प्रणय निवेदन कर सकूँ
अपनी प्रिये को समर्पित , अपना अंतर्मन कर सकूँ
मेरे नीरस जीवन में आशा का संचार कर देना
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
ताकि ,मैं मुझमें जीवन की अनुभूति कर सकूँ
स्वंय को अन्तिम दिशा में चलने पर बाध्य कर सकूँ
मेरे गूंगे स्वरों को एक मौन राग दे देना
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
ताकि मुझमें मौजूद हाहाकार को शान्ति दे सकूँ
मेरी नपुंसकता को पौरुषता का वर दे सकूँ
मेरी कायरता को स्वीकृति प्रदान कर देना
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
ताकि मैं अपने निकट के एकांत को दूर कर सकूँ
अपने खामोश अस्तित्व में कोलाहल भर सकूँ
बस, जीवन से मेरा परिचय करवा देना
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
ताकि , मैं स्वंय से चलते संघर्ष को विजय दे सकूँ
अपने करीब मौजूद अन्धकार को एकाधिकार दे सकूँ
मृत्यु से मेरा अन्तिम आलिंगन करवा देना
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना ,
जिसे सब समझ सके , ऐसी परिभाषा देना ;
मेरी मौनता को एक अनजानी भाषा देना….
परायों के घर
कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई ;
नींद की आंखों से देखा तो ,
तुम थी ,
मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी
, उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था , मैंने तुम्हारे लिए ,
एक उम्र भर के लिए ...
आज कही खो गई थी , वक्त के धूल भरे रास्तों में ......
शायद उन्ही रास्तों में ..
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो....
क्या किसी ने तुम्हें बताया नही कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नही जाते.....
आंसू
उस दिन जब मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ा ,
तो तुमने कहा..... नही..
और चंद आंसू जो तुम्हारी आँखों से गिरे..
उन्होंने भी कुछ नही कहा... न तो नही ... न तो हाँ ..
अगर आंसुओं कि जुबान होती तो ..
सच झूठ का पता चल जाता ..
जिंदगी बड़ी है .. या प्यार ..
इसका फैसला हो जाता...
दर्द
जो दर्द तुमने मुझे दिए ,
वो अब तक संभाले हुए है !!
कुछ तेरी खुशियाँ बन गई है
कुछ मेरे गम बन गए है
कुछ तेरी जिंदगी बन गई है
कुछ मेरी मौत बन गई है
जो दर्द तुमने मुझे दिए ,
वो अब तक संभाले हुए है !!
तू
मैं अक्सर सोचती हूँ
कि,
खुदा ने मेरे सपनों को छोटा क्यों बनाया
करवट बदलती हूँ तो
तेरी मुस्कारती हुई आँखें नज़र आती है
तेरी होठों की शरारत याद आती है
तेरे बाजुओं की पनाह पुकारती है
तेरी नाख़तम बातों की गूँज सुनाई देती है
तेरी क़समें ,तेरे वादे ,तेरे सपने ,तेरी हकीक़त ..
तेरे जिस्म की खुशबू ,तेरा आना , तेरा जाना ..
एक करवट बदली तो ,
तू यहाँ नही था..
तू कहाँ चला गया..
खुदाया !!!!
ये आज कौन पराया मेरे पास लेटा है...
तस्वीर
मैंने चाहा कि
तेरी तस्वीर बना लूँ इस दुनिया के लिए,
क्योंकि मुझमें तो है तू ,हमेशा के लिए....
पर तस्वीर बनाने का साजो समान नही था मेरे पास.
फिर मैं ढूंढ्ने निकला ; वह सारा समान , ज़िंदगी के बाज़ार में...
बहुत ढूंढा , पर कहीं नही मिला; फिर किसी मोड़ पर किसी दरवेश ने कहा,
आगे है कुछ मोड़ ,तुम्हारी उम्र के ,
उन्हें पार कर लो....
वहाँ एक अंधे फकीर कि मोहब्बत की दूकान है;
वहाँ ,मुझे प्यार कर हर समान मिल जायेगा..
मैंने वो मोड़ पार किए ,सिर्फ़ तेरी यादों के सहारे !!
वहाँ वो अँधा फकीर खड़ा था ,
मोहब्बत का समान बेच रहा था..
मुझ जैसे,
तुझ जैसे,
कई लोग थे वहाँ अपने-अपने यादों के सलीबों और सायों के साथ....
लोग हर तरह के मौसम को सहते वहाँ खड़े थे.
उस फकीर की मरजी का इंतज़ार कर रहे थे....
फकीर बड़ा अलमस्त था...
खुदा का नेक बन्दा था...
अँधा था......
मैंने पूछा तो पता चला कि
मोहब्बत ने उसे अँधा कर दिया है !!
या अल्लाह ! क्या मोहब्बत इतनी बुरी होती है..
मैं भी किस दुनिया में भटक रहा था..
खैर ; जब मेरी बारी आई
तो ,उस अंधे फकीर ने ,
तेरा नाम लिया ,और मुझे चौंका दिया ,
मुझसे कुछ नही लिया.. और
तस्वीर बनाने का साजो समान दिया...
सच... कैसे-कैसे जादू होते है जिंदगी के बाजारों में !!!!
मैं अपने सपनों के घर आया ..
तेरी तस्वीर बनाने की कोशिश की ,
पर खुदा जाने क्यों... तेरी तस्वीर न बन पाई.
कागज़ पर कागज़ ख़त्म होते गए ...
उम्र के साल दर साल गुजरते गये...
पूरी उम्र गुजर गई
पर
तेरी तस्वीर न बनी ,
उसे न बनना था ,इस दुनिया के लिए ....न बनी !!
जब मौत आई तो , मैंने कहा ,दो घड़ी रुक जा ;
वक्त का एक आखिरी कागज़ बचा है ..उस पर मैं "उसकी" तस्वीर बना लूँ !
मौत ने हँसते हुए उस कागज़ पर ,
तेरा और मेरा नाम लिख दिया ;
और मुझे अपने आगोश में ले लिया .
उसने उस कागज़ को मेरे जनाजे पर रख दिया ,
और मुझे दुनियावालों ने फूंक दिया.
और फिर..
इस दुनिया से एक और मोहब्बत की रूह फना हो गई..
बीती बातें
दिल बीती बातें याद करता रहा
यादों का चिराग रातभर जलता रहा
नज़म का एक-एक अल्फाज़ चुभता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
जाने किसके इन्तजार में
शब्बा ऐ सफर कटता रहा
जो गीत तुमने छेड़े थे
रात भर मैं वह गुनगुनाता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
शमा पिघलती ही रही थी
और दूर कोई आवाज दे रहा
जुंबा जो न कह पा रही थी
अश्क एक एक दास्तां कहता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
यादें पुरानी आती ही रही,
दिल धीमे-धीमे दस्तक देते रहा
चिंगारियां भड़कती ही रही
टूटे हुए सपनों से कोई पुकारता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
यादों का चिराग रातभर जलता रहा
नज़म का एक-एक अल्फाज़ चुभता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
कुछ याद दिला गया , कुछ भुला दिया ,
मुझको ; मेरे शहर ने रुला दिया.....
यहाँ की हवा की महक ने बीते बरस याद दिलाये
इसकी खुली ज़मीं ने कुछ गलियों की याद दिलायी....
यहीं पहली साँस लिया था मैंने ,
यहीं पर पहला कदम रखा था मैंने ...
इसी शहर ने जिन्दगी में दौड़ना सिखाया था.
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
दूर से आती हुई माँ की प्यारी सी आवाज ,
पिताजी की पुकार और भाई बहनो के अंदाज..
यहीं मैंने अपनों का प्यार देखा था मैंने...
यहीं मैंने परायों का दुलार देख था मैंने .....
कभी हँसना और कभी रोना भी आया था यहीं , मुझे
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
कभी किसी दोस्त की नाखतम बातें..
कभी पढ़ाई की दस्तक , कभी किताबों का बोझ
कभी घर के सवाल ,कभी दुनिया के जवाब ..
कुछ कहकहे ,कुछ मस्तियां , कुछ आंसू , कुछ अफ़साने .
थोड़े मन्दिर,मस्जिद और फिर बहुत से शराबखाने ..
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
पहले प्यार की खोई हुई महक ने कुछ सुकून दिया
किसी से कोई तकरार की बात ने दिल जला दिया ..
यहीं किसी से कोई बन्धन बांधे थे मैंने ...
किसी ने कोई वादा किया था मुझसे ..
पर जिंदगी के अलग मतलब होते है ,ये भी यहीं जाना था
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
एक अदद रोटी की भूख ने आंखों में पानी भर दिया
एक मंजिल की तलाश ने अनजाने सफर का राही बना दिया..
कौन अपना , कौन पराया , वक्त की कश्ती में, बैठकर;
बिना पतवार का मांझी बना दीया ;मुझको ;मैंने...
वही रोटी ,वही पानी ,वही कश्ती ,वही मांझी आज भी मैं हूँ..
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
लेकर कुछ छोटे-छोटे सपनों को आंखों में ,मैंने
जाने किस की तलाश में घर छोड़ दिया,
मुझे जमाने की ख़बर न थी.. आदमियों की पहचान न थी.
सफर की कड़वी दास्ताँ क्या कहूँ दोस्तों ....
बस दुनिया ने मुझे बंजारा बना दिया ..
आज मेरे शहर ने मुझे रुला दिया.....
आज इतने बरस बाद सब कुछ याद आया है ..
कब्र से कोई “विजय” निकल कर सामने आया है..
कोई भूख ,कोई प्यास ,कोई रास्ता ,कोई मंजिल ..
किस-किस की मैं बात करूं ,
मुझे तो सारा जनम याद आया है...
आज मेरे शहर ने मुझे बहुत रुलाया है..
रात भर यूं ही.........
कुछ भी कहो, पर....
रात भर यूं ही अलाव जलाते रहो.......
चाहता हूँ कि तुम प्यार ही जताते रहो,
अपनी आंखों से तुम मुझे पुकारते रहो,
कुछ भी कहो, पर....
रात भर यूं ही अलाव जलाते रहो.......
चुपके से हवा ने कुछ कहा शायद ..
या तुम्हारे आँचल ने कि कुछ आवाज़..
पता नही पर तुम गीत सुनाते रहो...
रात भर यूं ही अलाव जलाते रहो.......
ये क्या हुआ , यादों ने दी कुछ हवा ,
कि अलाव के शोले भड़कने लगे ,
पता नही , पर तुम दिल को सुलगाते रहो
रात भर यूं ही अलाव जलाते रहो.......
ये कैसी सनसनाहट है मेरे आसपास ,
या तुमने छेड़ा है मेरी जुल्फों को ,
पता नही पर तुम भभकते रहो..
रात भर यूं ही अलाव जलाते रहो.......
किसने की ये सरगोशी मेरे कानों में ,
या थी ये सरसराहट इन सूखे हुए पत्तों की,
पता नही ,पर तुम गुनगुनाते रहो ;
रात भर यूं ही अलाव जलाते रहो.......
ये कैसी चमक उभरी मेरे आसपास ,
या तुमने ली है ,एक खामोश अंगड़ाई
पता नही पर तुम मुस्कराते रहो;
रात भर यूं ही अलाव जलाते रहो.......
कुछ भी कहो, पर....
रात भर यूं ही अलाव जलाते रहो.......
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Vijay Kumar Sappatti is working as Sr.GM-Marketing in Hyderabad. His hobbies are poetry, painting, books, music, photography, spirituality etc. He is an engineer with a MBA in marketing. Presently he is living in Hyderabad [AP].
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