शरद तैलंग का व्यंग्य : गई भैंस पानी में…

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व्यंग्य गुस्से में है भैंस   - शरद तैलंग   भैंस बहुत गुस्से में है। उसका गुस्सा अपनी जगह ठीक भी है़। उसकी नाराजगी गाय को मॉं का ...

व्यंग्य

गुस्से में है भैंस

 

- शरद तैलंग

 

भैंस बहुत गुस्से में है। उसका गुस्सा अपनी जगह ठीक भी है़। उसकी नाराजगी गाय को मॉं का दर्जा प्रदान किए जाने के कारण है। गाय को हम माता के समान मानते हैं यही बात प्रत्येक मां अपने बच्चों को भी बतलाती है । इसके पीछे संभवतः यही तर्क है कि जिस प्रकार अपनी मां के दूध को पीकर हर बच्चा ह्ष्ट पुष्ट तथा बड़ा होता है गाय का दूध भी यही कार्य करता है। दूध का रंग सफेद होता है तथा उसकी यह विशेषता होती है कि यदि उसमें पानी मिला दिया जाए तो वह भी दूध बन जाता है। कुछ फिल्म वाले भी अपने गीतों में दूध वितरकों को पानी के रंग के बारे में भी यही सलाह देते रहते हैं कि उसे जिस में मिला दो लगे उस जैसा।

गाय के दूध की विशेषता यह भी है कि उससे दही, पनीर, घी, छाछ, रबडी इत्यादि अनेक चीजों का निर्माण होता है साथ ही गौमूत्र को भी अनेक रोगों की चिकित्सा में लाभकारी बताया गया है जिसके उपयोग की सलाह सब दूसरों को तो देते रहते है पर स्वयं उपयोग नहीं करते है पर भैंस नाराज़ है उसका कहना है कि उसके दूध से भी वही सब बनता है जो गाय के दूध से बनता है फिर क्या बात है कि गाय को तो मां का सम्मान प्राप्त है और उसे कुछ भी नहीं ।

भैंस का कहना है कि अनेक घरों में आज भी खाना बनाते समय सबसे पहले सिर्फ गाय के लिए ही एक रोटी बनाने की परंपरा है जिसे वे लोग अपने घर में बची खुची जूठन तथा फलों और सब्जियों के छिलकों के साथ उसे परोस देते है पर भैंस के लिए कोई कुछ नहीं बनाता। इसी प्रकार धार्मिक कार्यों में भी सबसे पहले गऊ ग्रास को ही महत्व दिया जाता हैं भैंस ग्रास नाम की कोई भी चीज़ नहीं बनाई है। कुछ लोग गाय को एक दो रूपयों का चारा डाल कर अपना परलोक सुधारने में भी लगे रहते हैं इसलिए उनको पुण्य का भागीदार बनाने के लिए बहुत सी चारे वालियां सड़क के किनारे डेरा जमाए रहतीं हैं यह बात और है कि यदि कोई गाय माता उनके चारे के ढ़ेर में गलती से मुंह मार कर चारे वालियों को भी पुण्य कमाने का अवसर प्रदान कराना चाहे तो उसे स्वयं पाप का भागीदार बनना पड़ता है जिसकी परिणिति दो चार डण्डे खाने के बाद ही होती है पर भैंस को कोई चारा नहीं डालता इसलिए उसके पास गुस्सा करने के अलावा और कोई चारा भी नहीं है ।

शास्त्रों के अनुसार गाय की पूंछ पकड़ कर ही वैतरणी पार की जाती है तथा बैकुण्ठ प्राप्त होता है किन्तु सड़कों के किनारे पुण्य कमाने की दुकानों के कारण अनेक लोग भी सड़क पर ही साष्टांग प्रणाम करते हुए बैकुण्ठ पहुंच जाते है । संभवतः गाय को इसीलिए मां का दर्जा दिया गया है।

भैंस इस बात पर भी गुस्से का इज़हार करती है कि उसका उपयोग हिन्दी कहावतों तथा मुहावरों में करके उसे बदनाम करने की साजिश रची गई है जैसे “भैंस के आगे बीन बजाना' में उसे ऐसा माना गया है जैसे बह बहरी हो तथा संगीत से नफरत करती हो जबकि यदा कदा वह भी अपने मुख से अनेक कठिन ताने निकालती रहती है। यदि बीन बजानी ही हो तो सांप के आगे बजाओ भैंस के आगे बजाने की क्या आवश्यकता है। “काला अक्षर भैंस बराबर' में उसे अनपढ़ तथा मूर्ख समझा गया है जबकि सभी ग्रन्थ पुस्तकें समाचार पत्र काले अक्षरों में ही प्रकाशित होते है क्या वे सभी उसके बराबर हैं। इसी तरह “अक्ल बड़ी या भैंस' में अक्ल को सब उससे बड़ा समझते है । जरा सोचिए कि अक्ल भैंस से बड़ी कैसे हो सकती है । क्या अक्ल जो छोटे से दिमाग में रहती है के अन्दर भैंस समा सकती है परन्तु भैंस के अन्दर थोड़ी बहुत तो अक्ल होती ही है । इसी तरह “गई भैंस पानी में' यदि पानी में चली गई तो क्या जुल्म हो गया पानी में जाकर जब वह बाहर आएगी तो साफ सुथरी ही तो रहेगी गन्दी तो नहीं। 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' में उसे ताकतवर का पक्षधर तथा लड़ाई झगड़ों की जड़ समझा गया है और तो और स्कूलों में निबंध भी गाय पर लिखने के लिए दिए जाते है भैंस पर कोई लिखने के लिए नहीं कहता।

फिल्म निर्माताओं ने भी उसकी उपेक्षा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उन्होने भी गाय , हाथी , कुत्ते , बैलों , शेर , बन्दर , आदि जानवरों पर महत्वपूर्ण फिल्में बनाईं हैं पर उस पर ध्यान नहीं दिया गया । एक फिल्मी गीत में एक बात अवश्य उस के पक्ष में फिल्म के हीरो ने उठाई है कि उसकी भैंस को डण्डा क्यूं मारा जबकि उसका कुसूर सिर्फ इतना ही था कि वह खेत में चारा चर रही थी किसी के बाप का कुछ नहीं कर रही थी जबकि बहुत से लोग तो पूरे का पूरा खेत ही चर जाते हैं । उसे शिकायत है कि उसके प्रति रंगभेद नीति अपनाई जा रही है जो सरासर गलत है । जगह जगह गौ रक्षा समितियों का गठन हुआ है तथा समय समय पर गौ रक्षा आन्दोलन भी चलाए जाते रहे हैं परन्तु भैंस रक्षा समितियां या भैंस रक्षा आन्दोलन कहीं भी किसी ने भी नहीं चलाया ।

किसी सुन्दर तथा सुशील महिला के लिए भी उसकी प्रशंसा करने के लिए भी उसकी तुलना गाय से ही की जाती है जैसे द्यवह तो पूरी गऊ है' किन्तु किसी के दुर्गुणों या अपमान करने के लिए बस इतना ही कहना काफी होता है कि “वह तो पूरी भैंस है'।

उसे इस बात पर भी एतराज है कि देवताओं ने भी उसके साथ पक्षपात किया है। अधिकांश देवताओं ने दूसरे जानवरों को अपना वाहन बनाया है जिनमें गाय, बैल, गरूड़, तथा मोर और यहाँ तक कि चूहा और उल्लू तक शामिल हैं किन्तु भैंस के वंशजों को मृत्यु के देवता यमराज को सौंप दिया है।

अपनी मांग को मनवाने के लिए वह आज के चलन के अनुसार अपने परिवार के सदस्यों के साथ यदा कदा सड़कों के बीच में बैठकर तथा चक्का जाम करने का हथकण्डा भी अपनाती रहती है परन्तु प्रशासन उसे वहां से खदेड़ देता हैं । उसकी मांग है कि यदि उसे मां के समान न समझा जाए तो कम से कम यह तो कहा जाए कि गाय हमारी माता है और भैंस हमारी मौसी है।

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. भाई मौसी का दर्जा देने की बात चली थी पर यह बिल्ली ने छीना हुआ है।
    अच्छा हास्य और व्यंग्य भी।

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रचनाकार: शरद तैलंग का व्यंग्य : गई भैंस पानी में…
शरद तैलंग का व्यंग्य : गई भैंस पानी में…
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