अनुज नरवाल ‘रोहतकी’ का ग़ज़ल संग्रह : वो जैसा भी है मेरा है (समापन किश्त)

SHARE:

  ग़ज़ल संग्रह    : वो जैसा भी है मेरा है ग़ज़लकार        : अनुज नरवाल 'रोहतकी' (पिछले अंक से जारी) ---32. सिर्फ चाह...

 

ग़ज़ल संग्रह    : वो जैसा भी है मेरा है

anuj narwal ka vyangya sangraha vo jaisa bhi hai mera hai (WinCE)

ग़ज़लकार        : अनुज नरवाल 'रोहतकी'

(पिछले अंक से जारी)

---32.

सिर्फ चाहने से ही चाहत नहीं मिलती
जमाने में सबको मुहब्बत नहीं मिलती

हर चीज के दाम होते हैं लेकिन
मुझे अपनी वफा की कीमत नहीं मिलती

तूफां का रूख बदलने की ताकत है मुझमें
लेकिन आपके बिना हिम्मत नहीं मिलती

जमीं पर गम हैं, जाल हैं रिश्तों के
कज़ा आए बिन जन्नत नहीं मिलती

इश्क नहीं करता 'अनुज' तुमसे अगर
जिन्दगी में उसे यह क़िल्लत नहीं मिलती

---33.

लोग बताते हैं तेरा दीवाना मुझे
अफसोस तुमने ही नहीं पहचाना मुझे

ये बात बेशक दुनिया से पूछ लो
निभाना आता है खूब याराना मुझे

मेरी जिन्दगी में आ जाओ या फिर
छोड़ दो तुम ख्वाबों में सताना मुझे

यकीं कर न कर 'अनुज' सच है मगर
तुमने ही बनाया है दीवाना मुझे

---34.

तोहमत न लगा कि ओर को चाहने लगा हूँ
जरा दिल से पूछ, क्या मैं ऐसा लगता हूँ

माना आज भी तुमसे बिछुड़ा हुआ हूँ
लेकिन अब तलक मैं तुमको नहीं भूला हूँ

तुम भी मेरी यादों को रखते हो ताज़ा
अच्छी तरह से मैं तुमको समझता हूँ 

हर मंजर भूल गया मगर तुमको न भूला
सच है कि मैं तुमको दिल से चाहता हूँ

भूलकर शिकवे-गिले पास आ 'अनुज'
राहों में तेरी दिल बिछाए हुए बैठा हूँ

---35.

ये जो शराब है
चीज लाजवाब है

कहता है जो इसे बुरा
वो खुद खराब है

टूटे हुए दिलों के लिए
ये दवा लाजवाब है

पीने से ही ये अपना
जिन्दा शबाब है

---
36.

वो शख्स मेरे सोचने के जैसा नहीं था
था वो खफा मुझसे मगर बेवफा नहीं था

खरीद लेता मैं मुहब्बत सारे जहां की
था दिल तो मेरे पास मगर पैसा नहीं था

प्यास से मर गया था मैं जहाँ पर
था समन्दर वहाँ पर कोई सहरा नहीं था

क्यों किए वादे तूने क्यों खाई कसमें मेरी
परदेश जाकर तुमने अगर आना नहीं था

रौनक थी चेहरे पे 'अनुज' जब तक पास थे
जाने के बाद रौनक का पहरा नहीं था

---37.

इश्क का बहता दरिया हूँ मैं
शहरे-जिगर में बहता हूँ मैं

आशना हूँ मैं पाक दिलों का
दीद में चाहे जैसा हूँ मैं

मिलते रहे सब बिछुड़ते रहे
तनहा था और तनहा हूँ मैं

कोई मुझे चाहे न चाहे
सबको पसंद करता हूँ मैं

'अनुज' अपने शे'रों के कारण
आज जहां में जिन्दा हूँ मैं

---38.

जमीं नहीं थी रहने को मगर आसमां बहुत था
नहीं थी जिन्दगी मगर जीने का सामां बहुत था

जमाने में अक्सर झुकी है निगाहें उन्हीं की
खुद ही पर जिन्होंने किया गुमां बहुत था

नवाज़िश-ए-वक्त है ये हिज्र हमारी तो
पास रहने का तो हमारा अरमां बहुत था

माना तबस्सुम पे जज्ब-ए-इश्क था मगर
जिगर में उसके भी दर्दे-निहाँ बहुत था

अश्क निकले तो दर्द का गुबार निकला
बहुत बरसों से 'अनुज' परेशां बहुत था

---39.

मेरा दिल है कि यूँ ग़ाफ़िल हो गया
इसने जो चाहा वो हासिल हो गया

डूबने लगा तो मिल गया तिनका
अब तो भंवर भी, साहिल हो गया

तराश दिया उसको भी जुदाई ने
प्यार के तो वो भी क़ाबिल हो गया

तीर की तरह चली उसकी नज़र
और इधर मेरा दिल, बिस्मिल हो गया

दिल में जबसे वो रहने लगा है 'अनुज'
जीना-मरना अपना मुश्किल हो गया

---40.

किस्मत का तारा न मिला आसमां के तारों में
इक भी प्यारा न मिला लाखों में, हजारों में

एक गुल-ए-मुहब्बत की हसरत को लेकर
हमने गुजार दी ये तमाम जिन्दगी खारों में

वफा से मुलाकात होती भी तो कैसे होती
वफा जो ढूँढने गए थे हम, बेवफा यारों में

ज़ख्म खाने की आदत-सी हो गई है अब तो
दिल में आरजू नहीं अब, जीने की गुलजारों में

अब जो है 'अनुज' वो इन मायूसियों में है
मायूसियोें-सी बात कहाँ है दिलकश नजारों में

---41.

आँखों से तीर चलाते क्यों हो
दिल को जख्मी बनाते क्यों हो

कितनी है वफा, दिल में रहकर देखो
अंदाजा चेहरे से लगाते क्यों हो

इश्क नहीं अगर तुमको मुझसे
ख्वाबों में फिर आते क्यों हो

लबों की वो गुम खामोश कहानी
आँखों से ही सुनाते क्यों हो

आता है 'अनुज' जब सामने तेरे
पलकों की चिलमन गिराते क्यों हो

---42.

ख्वाब में आए खुदा ने पूछा- 'क्या चाहिए?'
हँसके बोला मैं- 'वफा के बदले वफा चाहिए'

जिन्दगी की राह में चौहराएं ही चौहराएं हैं
सही राह दिखाए जो, ऐसा रहनुमा चाहिए

जो मुझसे, सिर्फ मुझसे ही करे मुहब्बत
मुझे ऐसी, बिल्कुल ऐसी ही दिलरूबा चाहिए

हम दोनों हों और मुहब्बत हो सिर्फ जहाँ
दूर घने जंगल में इक ऐसा कमरा चाहिए

सहरा है और तेज धूप है गम की 'अनुज'
दोस्त ऐसे में तुमको साया-ए-दुआ चाहिए

---43.

आता नहीं अब सताने ख्याल उसका मुझको
ऐसे लगता हैं जैसे वो भूल गया मुझको

दुनियाँ की बातों में आकर बिछुड़ गया है वो
छोड़ा करता नहीं जो कभी तनहा मुझको

खुदा के बाद एतबार था तो उस पर था
उसने दिया है आज धोखे से धोखा मुझको

ऐसा क्या मिल गया तुमको जो इश्क में न था
मेरी मुहब्बत में थी क्या कमी बता मुझको

वादा करती हूँ, हो गई तेरी, सदा के लिए
अब भी याद है 'अनुज' ये कलाम उसका मुझको

---44.

न दिल होता, न फिर पैदा कोई हसरत होती
न हसरत होती न किसी बात की हुज्जत होती

तासीर-ए-आदमी में काश! अगर ताअत होती
ज़ीस्त के हर आलम में फ़रहत ही फ़रहत होती

निगारखाने की कुछ और ही सूरत होती
नफ़रत में अगर निहां थोड़ी-सी मुहब्बत होती

कसूर तो सारा इन आंखों का ही है 'अनुज'
न यें देखती उसको और न मुहब्बत होती

---45.

आजकल तो हर किसी दिल में दिल्लगी नज़र आती है
औरों को कहें क्या खुद में ही कमी नज़र आती है

मुहब्बत के बिना आलम है ये हर किसी का
चेहरा उतरा हुआ, आँखों में नमी नज़र आती है

प्यार का तो हर कोई करता है बस दिखावा
हाथों में फूल और बगल में छुरी नज़र आती है

पागल तो पहले ही था, कुछ जुदा होकर हो गया हूँ
देखिए अब तो हर नजारे में वही नज़र आती है

धन-दौलत शोहरत सब कुछ हैं खुदा का दिया
बिन उसके तो 'अनुज' हर चीज में कमी नज़र आती है

---46.

मेरा दिल हो गया तेरा, तेरे शहर में
तो हर शख्स जल-सा गया तेरे शहर में

मुझे इश्क करता देख सब कहने लगे
आ गया है कोई सरफिरा तेरे शहर में

इश्क की कदर है न कोई खुदा का डर
ये अजीब दस्तूर है कैसा तेरे शहर में

तरस भी नहीं आया मुझ अजनबी पर
मुझको हर किसी ने लूटा तेरे शहर में

इश्क की जब मैं तालीम देने लगा
मजाके-इश्क  उड़ाया गया तेरे शहर में

'अनुज' तो अजनबी है चला जायेगा
फिर हाल क्या होगा तेरा तेरे शहर में

---47.

यूँ तो आज फिर वो हमारे नगर आए
गैर संग देखा तो वो ज़हर नजर आए

मुहब्बत की दौलत है मेरे इस दिल में
मेरी नज़रों से देखो तो नज़र आए

जब भी ज़िक्र कहीं सुना मुहब्बत का
रोने लगा दिल मेरा, नैना भर आए

फिर भी इल्तज़ा है खुदा से बार-बार
हर नजारे में मुझे वो ही नज़र आए

अंधेरों में खो चुका था सब कुछ 'अनुज'
मेरे पास जब तक वो बनके सहर आए

---48.

दिल अपना कहीं लुटा दीजिए
हाथ दोस्ती का बढ़ा दीजिए

जो बात दिल को अच्छी न लगे
उस बात को ही भुला दीजिए

तोड़िए खामोशी इन लबों की
दिल में जो है सुना दीजिए

आतिशे-इश्क फैल जाए जहां में
दिल की लगी को हवा दीजिए

'अनुज' तुमसे और कुछ नहीं माँगता
जिन्दगी भर साथ निभा दीजिए

---49.

अश्क बनकर भी मैं बह नहीं सकता
बात कुछ ऐसी हुई कह नहीं सकता

इतनी अज़ीज़ है मेरे दिल को तू
इक पल की जुदाई सह नहीं सकता

इश्क तो करता है वो मुझसे ही
सरेआम मगर वो कह नहीं सकता

किसी ने ठीक ही कहा है- 'ये इश्क'
जमाने से छिपकर रह नहीं सकता

ऐसी क्या बात देख ली उसमें 'अनुज'
जो तू उस के बिना रह नहीं सकता

---50.

यूँ तो ख्वाहिश सरे-लब बहुत
सोचो तो दिल में तलब बहुत

तारे गिनने से बात न बनेगी
गुजारनी बाकी हैं शब बहुत

इश्क में फनाह फलाँ हो गया
रोने को हमें ये सबब बहुत

ख्याले-वरक़,दर्दे-कलम
दिले किताब में शे'रो अदब बहुत

जहां महकाने को 'अनुज' जी
मुहब्बत का इक हब बहुत

---51.

मुहब्बत में तुम कभी धोखा खाकर देखना
तन्हाई में खुद को कभी रूलाकर देखना

जुदाई की कैसी होती है जालिम जलन
किसी अपने से कभी जुदा होकर देखना

कोई अपना नहीं होता मुहब्बत के सिवा
जहां में, जी चाहे उसे आज़मा कर देखना

हर शै में सूरत मेरी आयेगी नज़र तुमको
कभी वक्त के आईने को उठाकर देखना

बातों में नहीं तो 'अनुज' यादों में रहेगा
कभी बीता हुआ जमाना उठाकर देखना

---52.

अपने दिल में कभी कोई बसाया होता
गम किसी का कभी अपना बनाया होता

जान जाता कि ये इश्क क्या है बला
ज़माने में किसी से दिल लगाया होता

नाम मेरा भी होता हर लब पे अगर
इश्क में हाथ हमने आज़माया होता

सर आँखों पे अपनी बिठाते उसको
गर किसी ने हमें अपनाया होता

लिखता ग़ज़ल जरूर उस पर तो
'अनुज' ख्वाबों में गर कोई आया होता

---53.

नहीं थी किसी चीज की परवा हमें
परवा तब हुई जब इश्क हुआ हमें

चांदनी की चादर ओढ़कर सोते थे
उठाने आती थी सुबह सबा हमें

दिल से बेफ़िक्र, बेपरवाह थे हम भी
इश्क ने तो बन्दी बना लिया हमें

याद है नज़र मिली थी इक हसीं से
पर याद नहीं इश्क कब हो गया हमें

इश्क के असर का क्या कहना 'अनुज'
कर दिया इसने दुनिया से जुदा हमें

---54.

प्यार में यार को रूलाया नहीं करते
वादा करके सनम भूलाया नहीं करते

पलकों पर किसी को बिठाओ अगर
फिर नज़र से उसको गिराया नहीं करते

मुहब्बत तो पाक होती है दोस्त इसमें
फ़कत सूखी हमदर्दी जताया नहीं करते

राहे-इश्क में कदम रखने वाले सुन जरा
कदम रखकर पीछे हटाया नहीं करते

तेरा था तेरा है तेरा ही रहेगा 'अनुज'
बारहा किसी को आज़माया नहीं करते

---55.

प्यार करके तो जख्म नया पाया है
आँखें हैं नम मेरी, दिल घबराया है

न हरे हो सके सूखे फूल मुहब्बत के
यूँ ही आँखों ने सावन बहाया है

न हो सकी रोशनी राहे-इश्क में
जलाने को तो हमने दिल जलाया है

गिला क्या करें आफताब से दोस्तों
हमको तो माहताब ने जलाया है

दिल यकीं 'अनुज' किस पर करे
इक सच्चे दोस्त से फरेब खाया है

---56.

प्यार के बदले हम तो प्यार दें
लेके गम सबसे, खुशी उधार दें

सूरत गर देखना चाहों इश्क की
रूह से बदन का पर्दा उतार दें

देख लो बेशक आज़मा के हमको
तुझ पर अपनी ये जान वार दें

दुश्मनी है तो बता दे हमें भी
हम नहीं है तेरी तरह की खार दें

---57.

जो आरसी-ए-आर पहने होते हैं
वो तो दिल के बहुत अच्छे होते हैं

पढ़ने वाले तो पढ़ लेते हैं चेहरा
सब हाल चेहरे पे लिक्खे होते हैं

मन सच्चा तन सादा है जिसका
इस जहां में चर्चे ही उसके होते हैं

मिलने से उन्हें कौन रोक सकता है
जो एक दूजे के लिए बने होते हैं

मुहब्बत में 'अनुज' दिखावा नहीं होता
दिलबर तो दिल में ही बसे होते हैं

---58.

खुद को खुद से छिपाता क्यों है
आईने के सामने घबराता क्यों है

बेवफाई बस गई है फितरत में तेरी
गीत वफा के गुनगुनाता क्यों है

आँखों की नमी का सबब है गम
इन्हें खुशी के आँसू बताता क्यों है

खुद नहीं देखा कभी आईना तुमने
औरों को फिर आईना दिखाता क्यों है

किस्सा आम हो गया है बेवफाई का
'अनुज' कहते हुए वो शर्माता क्यों है

---59.

जख्मी जिगर हर आशिकी का है
हाल ये आजकल आदमी का है

प्यार की बातें हैं सिर्फ किताबी
तज़रबा ये अपनी जिन्दगी का है

किसको क्या लेना किसी के गम से
सबको ख्याल अपनी खुशी का है

कौन चाहे 'अनुज' दिल को मेरे
दिल पे इख्तियार बस उसी का है

---60.

उसके नूर से इन्सां जुदा नहीं
कोई फिर भी क्यों लगता खुदा नहीं

करके देखा है हमने ये तजरबा भी
झूठ पर देर तक पर्दा रहता नहीं

हरकतें बता देती हैं दिल की बात
बेशक कोई किसी से कुछ कहता नहीं

कोशिशें ही होती हैं अक्सर कामयाब
क्या मीरा को श्याम मिला नहीं?

'अनुज' जिसको अपना दोस्त कहे
जमाने में वो अब तक मिला नहीं

---61.

---

आपकी जुदाई मैं सहूँ कैसे
आपके बिन अब मैं रहूँ कैसे

खफा है मुझसे आज जां मेरी
ये बात औरों से कहूँ कैसे

सूख गया है आँखों का दरिया
बनके आँसू अब बहूँ कैसे

आप कहते तो सह लेता पर
दुनिया के ताने सहूँ कैसे

बात मेरी आप सुनते नहीं फिर
'अनुज' दिल की बात कहूँ कैसे

---62.

देखकर भी नहीं देखा और निकल गए करीब से
दूर तलक देखते रहे हम बनकर बदनसीब से

मुहब्बत के लिए जरूरी है दौलत का होना भी
मिलती नहीं है मुहब्बत सिर्फ अच्छे नसीब से

दौलत, शोहरत है न शक्ल-ओ-सूरत अच्छी
ऐसे में करे कौन भला मुहब्बत मुझ गरीब से

वो क्या है क्या नहीं आज तलक हम समझे नहीं
लगते हैं वो कभी हबीब से, कभी रक़ीब से

तनहा हूँ इसमें मेरा कसूर है न 'अनुज' तेरा कसूर
जो भी हो रहा है, हो रहा है मेरे नसीब से

ÿ ÿ ÿ64.

इश्क वालों से जल रहा है सारा शहर
कैसी तासीर वाला है तुम्हारा शहर

नफरत से करता है यह मुहब्बत बहुत
अजीब मिज़ाज वाला है तुम्हारा शहर

कद्रे-इश्क है न मेहमानों की मेहमां-नवाजी
कुछ तुम्हारी तरह ही है तुम्हारा शहर

इश्क नफरत के इस खेल में जीतेगा कौन
इक तरफ इश्क है दूजी तरफ सारा शहर

तुमसे, तुम्हारे शहर से हो गया है वाफिक
'अनुज' अब आएगा न कभी दोबारा शहर

---65.

प्यार करो हमसे इतना कि चर्चा हो जमाने में
प्यार का असली मजा है तड़पने में तड़पाने में

मेरे दिल को तुम अपना ही घर समझ अ दोस्त
जी चाहे जब तक रहो मेरे दिल के घराने में

तुम मुझसे रूठ भी जाना जल्दी मन भी जाना
प्यार बढ़ता है अ दोस्त रूठने में मनाने में

दिल के हर कोने में रहकर देख लेना तुम
तेरे सिवा कुछ भी न मिलेगा इस दिल दीवाने में

कह दो 'अनुज' से प्यार है दिल से तुम्हें
तुम्हारा क्या जाता है कई बार दोहराने में

---66.

सिर्फ हमें ही नहीं मिले हैं गम कतारों में
फूलों को देखिए रहते हैं जो खारों में

संभलकर आइएगा जरा कि आईने लगे हैं
मेरे घर की छत, फर्श, दर-ओ-दीवारों में

सोने का भाव गिर गया है तब से जमीं पर
सुना है जब से उलफत बिकेगी बाजारों में

परदेश से लौट आईए अब तो 'अनुज' जी
पीपल उगने लगे हैं घर की दीवारों में

---67.

हमको आपकी ये आशिकी अच्छी लगी
और उस पर आपकी सादगी अच्छी लगी

दौरे-गम में आप मेरे साथ जो चल पड़े
आज हमें भी धूप गम की अच्छी लगी

आपके बिना हर खुशी थी गम के जैसी
आप मिले हमसे तो खुशी अच्छी लगी

आपकी नज़रों का वो हमें बारहा देखना
नज़रों की कटारी जो लगी अच्छी लगी

'अनुज' आँखें, चेहरा, दिल और हमको
आपके हसीं लबों की हँसी अच्छी लगी

---68.

मैंने पूछा- 'क्या हुआ, उसने कहा- 'आशिकी'
मैंने फिर पूछा उससे, है चीज क्या आशिकी

रोते हुए को हँसा दे जो हँसते हुए को रूला दे
मैंने सुना है, कुछ ऐसी ही, है बला आशिकी

मैं तनहा, मेरी जिन्दगी तनहा और यहाँ तक
मेरे तनहा दिल में रह गई तनहा आशिकी

दर्द, आँसू, बेकरारी, जुदाई और ये तन्हाई
इसके सिवा दिया है क्या तूने बता आशिकी

जिसको देखा वही मिला दीवाना बदन का
मिला 'अनुज'-सा न कोई जिससे करता आशिकी

---69.
मुझसे बिछड़ के खुश रहते हो
मेरी तरह तुम भी झूठे हो1.

आँखों में आँखें डालके कह दो
'प्यार मुझसे नहीं करते हो'

सखियों संग तुम बैठके अक्सर
क्यों मेरी बातें करते हो

खुदको कमरे में बंद करके
किसके लिए फिर तुम रोते हो

गैर के संग देखके मुझको
सूरज की तरह क्यों जलते हो

मालूम नहीं तुम्हें प्यार के मानी
क्यों इतने भोले बनते हो

सच कहता हूँ कि तुम मुझको
खुशी की तरह अच्छे लगते हो

दिल से तुम्हें चाहता हूँ फिर भी
एतबार क्यों नहीं करते हो

मैं नहीं हूँ तो कौन है फिर वो
जिसके लिए सजते संवरते हो
---
1. यह शे'र डॉ. बशीर बद्र जी का है और यह ग़ज़ल इसी जमीं पर लिखी गई है।

70.

आईने में देखकर शक्ल अपनी रोते हैं हम
तनहाई में इसकदर खौफज़दा होते हैं हम

तेरी चाहत हमारी जरूरत बन गई है शायद
है यही सबब कि तेरे हर नाज ढ़ोते हैं हम

दिन कामों में गुजर जाता है पर शाम होते ही
साक़ी, शराब, महखाने के साथ होते हैं हम

बेबात, बेसबब हमसे ओ नाराज़ होने वाले
जा तेरी इसी बात से नाराज होते है हम

सोचता हूँ रिश्तों को महफूज रखने के लिए
शर्त, समझौता ये सब वजन क्यों ढोते है हम

ज़िंदगी से दामन भी नहीं छुड़ाया जाता 'अनुज'
याद आते तुम, मरने को जब होते है हम

---71.

पतझड़ के बाद आना लाज़मी है जब बहार का
फिर कैसे न करूँ मैं इंतजार अपने यार का

माना रूठ जाने की आदत है उनकी पुरानी बहुत
होता है रूठने वाले को मनाना फर्ज यार का

वो होता भला क्यूँ न हमसे जुदा-ओ-खफा
ये तो दस्तूर पुराना है इस पागल संसार का

मुँह-दर-मुँह रहता था जो कभी मेरी नज़रों के
ईद का चाँद हो गया है आज दीदार यार का

इसी हसरत में जिंदा है ये गरीब 'अनुज'
कभी तो पूछने आएंगे वो हाल बीमार का

---72.

हिज्र में दरमियां दिलों के कभी फासिला नहीं होता
मजबूरी में हर कोई शख्स बेवफा नहीं होता

तेरे शहर में आना जाना है हर रोज का मगर
फिर भी तुमसे मिलने का क्यों हौसला नहीं होता

तरस गई हैं मेरी नज़र तेरे दीदार के लिए
अब क्यों पहली मुलाकात-सा हादिसा नहीं होता

मैं भी होता अगर संगदिल जगह पर आपकी
नाराज होता आपसे मगर आप-सा नहीं होता

कोशिश हजार की आपको भूल जाने की मगर
'अनुज' के दिल से दूर ख्याल आपका नहीं होता

--- 73
कौन देगा तुमको धोखा जिन्दगी
तुम तो हो खुद इक छलावा जिन्दगी

कहना है जो आज ही कह लूं मैं
कल न मिलेगा मौका जिन्दगी

वफा हमने की है कितनी तुमसे
बैठकर कभी क्या सोचा जिन्दगी

बहारों की कैसे उम्मीद लगा लूं
कज़ा का है तू इक झोंका जिन्दगी

इक पल में ही कह दूंगा सारी बातें
'अनुज' को कभी दे मौका जिन्दगी

74
जिस्म जुदा होने से दिल जुदा तो नहीं होते
जरा-जरा सी बातों पर दोस्त खफा तो नहीं होते

गम के तूफां भी होंगे आँसुओं की बारिश भी
खुशियों के मौसम दोस्त सदा तो नहीं होते

मरने के बाद होती है खुदा-सी परस्तिश
जीते जी सभी इन्सां खुदा तो नहीं होते

मजबूर करे बेशक कोई अज़ीज़ की कसम देके
आपकी तरह दोस्त बेवफा तो नहीं होते

लग जाती भनक हमें यदि दगा देंगे वह भी
इस तरह उन पर 'अनुज' फिदा तो नहीं होते

75
सिलसिला दर्द का चला है शायद
दिल का कोई जख्म हरा है शायद

हिचकियाँ मुझको जो आने लगी हैं
याद उसने मुझको किया है शायद

धड़कनों का नामो-निशां नहीं दिल में
अब तो बस वही रहता है शायद

देखकर मुझे कर लिया पर्दा उसने
'अनुज' अजनबी हो गया है शायद

76

मेरे इस जिगर में
फूलों के नगर में

कहीं भी रहो तुम
हो मेरी नज़र में

डूबने में मजा है
इश्क के सागर में

देर है अंधेर नहीं
उस खुदा के घर में

पा लिया 'अनुज' ने तो
खुदा को पत्थर में
77
जिस जिसको परखा हमने उस उसको बेगाना पाया
खुशियों की बस्ती में हमने गम का इक खजाना पाया

रिश्ते, नाते, इश्क, वफा सब बातें ही बातें तो हैं
इन सबमें बस गरज का हमने झूठा अफसाना पाया

प्यार से प्यार ही करने वाला कोई न मिला हमको
जिसको देखा हमने उसको ज़िस्म का दीवाना पाया

राँझे-हीर का किस्सा हो या लैला-मजनूँ का किस्सा
हर सूरत में उल्फ़त का दुश्मन ये जमाना पाया

'अनुज' लाख फरेबों के बावजूद यह दिल तेरा
दिल पसंद, दिल फ़रेब, दिलबर का दीवाना पाया

78
अपने दिल को इश्क का रोग न लगाना था
लगा के रोग, जान से ही तो जाना था

मैं ही तनहा नहीं था इक आशिक उसका
उसका आशिक तो ये सारा जमाना था

रूतबा-ए-मुहब्बत नहीं था उसमें दिखाने को
था तो बस ज़िस्म और कद दरमियाना था

कब तक रखता वो पर्दे में बुराई को
बुराई को इक दिन सामने आना था

'अनुज' ही नहीं जला और भी तो जले हैं
इतना समझ ले तू भी इक परवाना था

79
कभी खुशी में इजाफे के लिए पीजिए
और कभी गमों को छुपाने के लिए लीजिए

प्यार से पिलाए कोई शराब न मना कीजिए
मगर इल्तज़ा है मेरी न बेहिसाब पीजिए

बेहिसाब तो हर चीज बुरी होती है दोस्तों
इसलिए कहता हूँ जब भी लो जरा-सी लीजिए
'अनुज' दिल अब दर्द से तंग आ गया बहुत
अब तो हाथों में मेरे जाम ठहरा दीजिए
सब कुछ फैला-फैला है कमरे में
कुछ अच्छा-बुरा हुआ है कमरे में

जब से हुआ है वो जुदा यार से
खुदको बंद रखता है कमरे में

चश्मदीद दीवारें खामोश हैं
सन्नाटा पसरा हुआ है कमरे में

रहबर जग का खुदको बताने वाला
जाने क्या-क्या करता है कमरे में

मकीं शहर से लौटा ही नहीं शायद
परिंदा घोसला बना रहा है कमरे में

तस्वीरें और खामोश हो गई हैं
हर-सू जाला लगा है कमरे में

कुछ किताबे कागजो-कलम रक्खे हैं
जरूर कोई शायर रहता है कमरे में 

क्या हो रहा है भला कौन पूछै किसे
तमाशा सब देख रहे हैं खड़े-खड़े

दंगा करवाने वाला क्या मरा दंगों में
दर्ज़ा शहीद का दे रही है सरकार उसे

कुर्सी प्यारी है इनको देश प्यारा नहीं
चाहे कोई भूखा मरे या लड़ कर मरे

गरीब दिन-ब-दिन गरीब हो रहे हैं
गुंडे,नेता और बाबा , हैं सेठ बन रहे

न्याय की करें क्या दरकार मुनसीबों से
रिश्वत ले रहे है, रिश्वत लेकर लगे थे

------------------

(समाप्त)

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: अनुज नरवाल ‘रोहतकी’ का ग़ज़ल संग्रह : वो जैसा भी है मेरा है (समापन किश्त)
अनुज नरवाल ‘रोहतकी’ का ग़ज़ल संग्रह : वो जैसा भी है मेरा है (समापन किश्त)
http://lh3.ggpht.com/raviratlami/SNoBlN8Iu9I/AAAAAAAAFBg/rwUO43CgPMc/anuj%20narwal%20ka%20vyangya%20sangraha%20vo%20jaisa%20bhi%20hai%20mera%20hai%20%28WinCE%29_thumb.jpg?imgmax=800
http://lh3.ggpht.com/raviratlami/SNoBlN8Iu9I/AAAAAAAAFBg/rwUO43CgPMc/s72-c/anuj%20narwal%20ka%20vyangya%20sangraha%20vo%20jaisa%20bhi%20hai%20mera%20hai%20%28WinCE%29_thumb.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2008/09/blog-post_3128.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2008/09/blog-post_3128.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content