लघुकथाएँ -नन्दलाल भारती ।। कुत्ता।। लघु कथा आचार्य-लाल साहेब आपने खबर सुनी क्या। लाल साहेब-कौन सी खबर आचार्य जी। आचार्य-नेहरू ...
लघुकथाएँ
-नन्दलाल भारती
।। कुत्ता।। लघु कथा
आचार्य-लाल साहेब आपने खबर सुनी क्या।
लाल साहेब-कौन सी खबर आचार्य जी।
आचार्य-नेहरू नगर में एक कुत्ता पच्चास लोगों को काट लिया।
लाल साहेब-आचार्य जी बस पच्चास।
आचार्य जी-लाल साहेब कैसी बात कर रहे हो। एक कुत्ता पच्चास को काट लिया। आप खुशी मना रहे हो।
आचार्य जी-मैं बहुत दुखी हूं। मैं कोई हनुमान नहीं हूं कि छाती फाड़कर दिखा दूं। आपको मालूम है वह कुत्ता पागल था। एक बात और आपको बता दूं कुत्ता के काटने का इलाज है। आज का आदमी जो होशो हवास में हजारों आदमियों को काट रहा है उसका कोई इलाज है।
आचार्य जी-नहीं। सचमुच बहुत जहरीला हो गया है आदमी आज का।
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।। एडस।। लघु कथा
भ्रष्टाचारी, ठग बेइमान, दगाबाज किस्म के लोग कामयाबी पर जश्न मनाने में लगे रहते हैं। कर्मठ,परिश्रमी नेक लोग आंसू से रोटी गीली करते रहते हैं। जबकि जगजाहिर है कि दंगाबाजी से खडी की गयी दौलत की मीनार ज्वालामुखी हैं। मेहनत सच्चाई से कमाई गये चन्द सिक्के भी चांद की शीतलता देते हैं। सकून की नींद देते हैं। कहते हुए बाबा शनिदेव धम्म से टूटी काठ की कुर्सी में समा गये।
जगदेव-बाबा दगाबाज लोग पूरी कायनात के लिये अपशकुन हो गये हैं। बाबा ये दगाबाज बेईमान मुखौटाधारी आदमियत के विरोधी लोग समाज और देश की तरक्की की राह में एड्स हो गये हैं।
शनिदेव-बेटा वक्त गवाह है दगाबाज खुद की जिन्दा लाश ढो ढो कर थका है। खुद के आंसू की दरिया में डूब मरा है। जमाना दगाबाजों के मुंह पर थूका है ओर थूकेगा भी। ========
।। उपदेश।। लघु कथा
बकसर बाबू ठगी बेइमानी अमानुषता का पर्याय बन चुका है। उपदेश तो ऐसे देता है जैसे कोई सदाचारी। क्या लोग हो गये हैं। मन में राम बगल में छुरी कहते हुए कुमार बाबू माथा पकड़ कर बैठ गये।
अवतार बाबू-आजकल तो ऐसे लोगों का ही जमाना हैं। बकसर बाबू जब किसी बड़े आदमी की चौखट पर माथा टेक कर आता है तो और भी अधिक चटखारे लेकर उपदेश देता है जैसे सामने वाला नासमझ हो। सब जानते हैं बकसर बाबू की काली करतूत को। वह अमानुष नेक बनने का ढोंग करता है। जनता सब जानती है।
कुमार बाबू-काश बकसर बाबू जैसे ठग ढोंगी अमानुष किस्म के लोगों की शिनाख्त कर जनता बहिष्कार कर देती। इसी में समाज संस्था और देश का हित है। ========
।। गुमान।। लघु कथा
गुलामदीन बीड़ी का कश खींचते हुए केशव बाबू से बोला बाबू हम गरीब हाड़फोड़ कर मुशिकल से चूल्हा गरम कर पा रहे हैं। दूसरी ओर कुछ लोग धन के पहाड़ जोड़ते जा रहे हैं। क्या हम भय भूख और जाति धर्म की लकीरों पर तड़पते मरते रहेंगे। ये कैसी आजादी है।
केशव बाबू-हमारा देश अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हो गया है। तुम भी तरक्की करोगे।
गुलामदीन-कब केशव बाबू। भ्रष्टाचारियों की ना कभी भूख मिटेगी ना हमारी तरक्की होगी। काश हम भी सामाजिक और आर्थिक रूप से तरक्की कर पाते आजाद देश में।
केशव बाबू-गुलामदीन तुमको नहीं लगता कि तुम आजाद हो।
गुलामदीन-बाबू जिस दिन हम दीन दुखियों की गली से तरक्की होकर गुजरेगी तब हम असली आजादी महसूस करेंगे। बाबू देश की आजादी पर गुमान हैं। तभी तो भय भूख जातिधर्मवाद से पीड़ित तरक्की से दूर होकर भी आजाद देश की आजाद हवा पीकर अभिमान के साथ बसर कर रहा हूं।
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परदेसी@लघु कथा
सफेद की कालिख तो जगजाहिर हो चुकी है। अब ये कालिख रिश्तों की जडों तक पहुंचने लगी है। नतीजन परिवार टूटने लगे हैं। विश्वास कमजोर होने लगा है के मुददे पर चिन्ता जाहिर करते हुए कालीचरण बाबू जर्जर सोफे में धंस गये। कालीचरण बाबू की हां में हां मिलाते हुए ध्यानचरण बाबू बोले लाख टके की बात कह रहे हो बाबू। मुझे ही देखो उम्मीद के आक्सीजन पर ही तो जी रहा हूं। नन्हीं सी नौकरी घर परिवार की बड़ी बड़ी ख्वाहिशें, महंगाई की त्रासदी,बच्चों की पढाई खान खर्च का भारी भरकम बोझ इन सबके बावजूद पेट काटकर घर परिवार को देखने के बाद भी गांव घर परिवार को अविश्वास का भूत पकड़े ही रहता है। वे सोचते हैं शहर जाकर स्वार्थी हो गया हैं। बेचारा परदेसी शहर में अकेला मुश्किलों से जूझता है। बड़ी मेहनत के बाद तनख्वाह मिलती हैं और पन्द्रह दिन के बाद उधारी पर काम चलने लगता है। क्या बाल बच्चों को भूखे रखकर हर महीने मनीआर्डर करना ही अपनापन है।
कालीचरण बाबू-परदेसी की पीड़ा को गांव घर परिवार वाले कहां समझते हैं। उनकी रोज रोज की माँगों की पूर्ति करते रहो पेट में भूख लेकर तब श्रवणकुमार हो वरना नालायक।
ध्यानचरण-गांव घरपरिवार वालों को परदेसी के दर्द को समझना होगा। तभी रिश्ते का सोंधापन बरकरार रह पायेगा। गांव से हजारों किमी दूर परदेसी वनवासी का जीवन जीता है। इसके बाद भी परदेसी के दर्द को लोग नहीं समझते बस रूपया रूपया रूपया........।
कालीचरण-कुटुम्ब के लिये त्याग करना तपस्या है भइया।
ध्यानचरण- कुटुम्ब के लोग परदेसी के दर्द को समझे ,विश्वास करे तब ना।
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राखी@लघु कथा
मम्मी चाचा का गांव से फोन है कहते हुए रागिनी फोन अपनी मम्मी शोभा के हाथ में थमी दी।
शोभा-प्रेम बाबू रोशनी बिटिया की राखी नहीं भेजे क्या। उसके तीनों बड़े भाई जान खा रहे हैं। कह रहे हैं रोशनी की राखी नहीं आयी।
प्रेमबाबू-भेजी तो है पन्द्रह दिन पहले। भौजी रोशनी की मां से बात करो।
रोशनी की मां सुधा -दीदी क्यों नाराज हो रही हो। बड़ी दीदी तो बोल रही थी कि भाई साहेब का पता ठिकाना उनके पास नहीं है। कैसे राखी भेजती। रोशनी ने तो भेज दी है।
शोभा-क्या जब जरूरत पड़ती हैं तो पता मिल जाता है। राखी भेजने के लिये पता नहीं है। वाह रे ननद लोग। भाई बहन का तो यही एक उत्सव होता है जिससे भाई बहन के स्नेह की डोर और मजबूत होती है। इस पवित्र त्यौहार की याद ना आयी। जिन भाइयों की बहने नहीं वे रो रहे हैं। जिन बहनों के भाई है उन बहनों को याद ही नहीं।
सुधा-दीदी राखी का शौक तुमको भी चढ़ गया।
शोभा-होश में तो हैं सुधा। भाई बहन के इस पवित्र त्यौहार को शौक कह रही है। तुम अपने भाइयों को राखी नहीं बांधती क्या कहते हुए फोन रख दिया।
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।। रूपइया।। लघु कथा
सम्भवतःपुत्र मोह से बड़ा प्राण मोह हो गया है। बाप द्वारा बेटा के लिये प्राण आहुति इतिहास हो चुका है। इस वाकया को चरितार्थ किया दीदारचन्द्र ने। गांव के नीम हकीमों ना दीदारचन्द्र को डायबिटीज का पेशेण्ट बता दिया। वे घबराकर मरणासन्न स्थिति में आ गये। अब मरे या तब की स्थिति में उन्हे शहर लाया गया। शहर में कुशलचन्द्र ने उनका इलाज करवाया अच्छे डाक्टर से। इलाज के बाद वे बिल्कुल ठीक हो गये परन्तु उन्हे डायबिटीज थी ही नहीं। जबकि कुशलचन्द्र डायबिटीज की बीमारी का आतंक कई बरसो से झेल कर नन्ही सी तनख्वाह से ‘शहर से गांव तक देख रहा था। आर्थिक तंगी एवं ‘बीमारी से जूझते हुए बेटे की हाल पूछने की फुर्सत दीदारचन्द को कभी ना मिली। हां दीदारचन्द बेटे को तब जरूर कोसते जब उन्हें रूपये की जरूरत पड़ती। सच रूपइया हर रिश्ते का आका हो गया है बाजारवाद के युग में।
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।। घमण्ड।। लघु कथा
मैडम रोहिनी कुत्ते को सम्भालते हुए आदिवासी महिला से पूछ बैठी क्यों बाई आज छुटटी कर ली क्या।
बई-हां मैडम जी आज भगवान का जन्मदिन है। आज तो छुटटी कर ली पूजा पाठ के लिये। रोज रोज तो हाड़फोड़ती ही रहती हूं परिवार के साथ। मेहनत मजदूरी से रोटी तो मिल ही जाती है। रोज काम तो करना ही है आज के दिन भगवान के लिये छुटटी ले ली है।
मैडम रोहिनी-आज की मजदूरी तो गयी।
बाई- मैडमजी गयी तो जाने दो। मैं तो सन्तोष के धन में खुश रहती हूं। अधिक रूपया से घमण्ड आता है कहते हुए बाई अपनी झोपड़ी में चली गयी। मैडम रोहिनी माथे पर भारी शिकन लिये हुए कुत्ते के साथ आगे बढ़ गयी।
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ये इण्डिया है।। लघु कथा
जीवित बूढ़ी लाश परिजनों के लिये बेकार की चीज होने लगी है। वही परिजन जो कभी आश्रित थे मेहनत मजदूरी खून पसीने की कमाई का सुखभोग कर रहे थे कहते हुए महेश दादा रोने लगे।
सुबोध-क्यों आंसू बहा रहे हो दादा क्या हो गया।
महेश दादा-सुबोध की तरफ अखबार सरकाते हुए बोले ये खबर पढ़ो बेटा।
सुबोध-दादा सचमुच चिन्ता की बात है। बेचारे बूढे अमेरिका के राबिंसन माइकल फाब्र्स लेह में आकर मर गये। भला हो भारतीय सैनिकों का जिन्होने अमेरिकी दूतावास के जरिये मरने की खबर भिजवायी और लाश को सम्मान के साथ रखे। राबिंसन माइकल फाब्र्स के परिजनों ने लाश लेने को मना कर दिया यह कह कर कि लाश का हम क्या करेंगे।
महेश दादा-बेटा राबिंसन माइकल फाब्र्स के साथ जो हुआ हैं हम सरीखे बूढ़ों के साथ हो गया तो।
सुबोध-दादा बाजारवाद ने रिश्ते को तहस नहस करना तो शुरू कर दिया है। दादा भारतीय रिश्ते की डोर इतनी कमजोर नहीं है। यहां तो माता पिता धरती के भगवान सरीखे पूजे जाते हैं। वो अमेरिका है ये इण्डिया है। दादा इण्डिया की नींव सदभावना, आस्था एवं नैतिक मूल्यों पर टिकी है।
महेश दादा-अरे वाह बेटा तुमने तो मेरी चिन्ता का बोझ उतार दिया कहते हुए मंद मंद मुस्कराने लगे।
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।। मां का दूध।। लघु कथा
दिव्यानी-हे भगवान हिटलर के बम का जहर अभी तक नहीं पचा। धीरे धीरे यह जहर दुनिया में फैल रहा है। प्रकृति का विनाश हो रहा है। वन सम्पदा का नाश हो रहा है। ईंट पत्थरों के जंगल खड़े हो रहे हैं। हवा पानी में जहर रोज रोज घुल रहा है अब तो मां भी अछूता नहीं रहा।
लाजवन्ती- क्या कह रही हो दिव्यानी बहन।
दिव्यानी-मां के दूध में जहर मिलने लगा है।
लाजवन्ती-अरे बाप रे ये कैसे हो गया।
दिव्यानी-दुनिया के हर कोने में पवित्र माना जाने वाला मां का दूध प्रदूषण की भेंट चढ़ रहा है।
लाजवन्ती-प्रदूपण की वजह से अब दूध का धुला नहीं रहा मां का दूध दिव्यानी बहन।
दिव्यानी-दुनिया भर की औरतों को मां के दूध की रक्षा के लिये पर्यावरण विनाश रोकने के लिये संघर्प करना होगा तभी बचेगी मां कि अस्मिता और दूध की पवित्रता।
लाजवन्ती-सच कह रही हो दिव्यानी बहन यदि पर्यावरण विनाश नहीं रूका। मां के पवित्र दूध में जहर मिलता रहा तो कल का आदमी कैसा होगा घ्
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।। परिभाषा।। लघुकथा
दिनेश -अंकल बधाई हो। अंकल किसी को ढूंढ रहे हो ना।
मणि बाबू- नहीं बेटा।
दिनेश-अंकल ढूंढ तो रहे हो पर वे दोंनो ब्योम और तंगेश नहीं आये हैं इस जलसे में।
मणि बाबू-किसी जरूरी में फंस गये होंगे।
दिनेश-इस भव्य समारोह से बड़ा काम होगा उनके पास। नहीं अंकल रविवार हैं ना टीवी सेट से चिपके होगे। अंकल आप तो अपने किरायेदार के दूर दूर के रिश्तेदारों के जलसे में ‘शामिल होते हैं। पैसा और समय भी खर्च करते हैं बढ़ चढ़कर। देखो आपके जीवन के सुनहरे पल में वो हैवान हाजिर नहीं हुआ। तंगेश का देखो विगत महीने की ही तो बात है उसके बाप की मौत हुई थी हजारों की कालोनी का कोई भी आदमी नहीं झांका आपके सिवाय। इतना ही नहीं उसके बाप की मौत हुई है कानूनी तौर पर कोई गवाही तक नहीं दिया। आपने स्टाम्प पर लिखकर दिया कि उसके बाप की मौत हार्ट अटैक से हुई थी वह भी उन हैवानों के कहने पर। अंकल आप हर किसी के दुख में भागते रहते हो क्या मिलता है आपको?
मणिबाबू-सकून। बेटा नेकी करो बिसार दो। आदमी से उम्मीद ना रखो। प्रभु पर विश्वास रखो। यही जीवन का उद्देश्य होना चाहिये। कौन क्या कर रहा है नजर-अंदाज कर परमार्थ की राह बढते रहो। इससे बड़ा कोई सुख नहीं है। भले ही दीये की बाती की तरह तिल तिल जलना पड़े।
दिनेश-समय का पुत्र कहते हैं साहित्यकार को आज परिभाषा जान पाया हूं। बहुत बहुत बधाई हो अंकल.............
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।। झूठ।। लघु कथा
अपने साहेब तो कम्पनी के भले का बहुत सोचते हैं यार मैं बहुत देर में समझ पाया हूं। इसीलिये खूब तरक्की किये हैं रघुवीर अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया कि तपाक से सतवीर बोला सब झूठ है। साहेब को तो बस अपने भले का ख्याल रहता है बाकी किसी का नहीं चाहे कम्पनी हो या कर्मचारी। साहेब को तरक्की काम और पढ़ाई लिखाई को देखकर नहीं मिल रही है। साहेब से बहुत पढे लिखे और कम्पनी के हित में काम करने वाले लोग है। बेचारे सड़ रहे हैं। अपने साहेब को तो चमचागिरी में महारथ हासिल है। यही योग्यता तरक्की पर तरक्की दिलवाये जा रही है।
रघुवीर यार सतवीर क्यों साहेब पर झूठमूठ का बलेम लगा रहा है। मैंने कुछ सामान पार्सल करवाने के लिये साहेब को कार से भेजवाने का बोला तो साहेब बोले क्यों कार से भेज रहे हो जितने का सामान नहीं है उतने का पेट्रोल खर्च हो जायेगा। चपरासी से भेजवा दो आटो रिक्शे का किराया दे देना।
सतवीर-तुम नहीं समझे बाबू रघुवीर साहेब के बच्चे को टयूशन जाना था। मैडम को बाजार जाना था सब्जी भांजी खरीदने।। इतने जरूरी काम छोड़कर क्या साहेब दफ्तर के काम के लिये कार भेज सकते हैं। ये कार जो है साहेब के निजी काम के लिये हैं अरे बाबू रघुवीर साहेब के बारे में मैं जितना जानता हूं कोई नहीं जानता चालक और बाई ही साहेब लोगों के अन्दर तक की खबर रखते हैं। अपने साहेब जैसे लोग कम्पनी को खोखला करने के लिये होते हैं। तुम कह रहे हो साहेब कम्पनी के भले की सोचते हैं। साहेब अपने भले के बारे में सोचते हैं यही सच्चाई है बाकी सब झूठ। अगर साहेब लोग संस्था के बारे में सोचते तो कम्पनियां बन्द ना होतीं।
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।। सिपाही।। लघु कथा
चैपट साहेब की बदतमीजी से तिलमिलाकर राधेश्याम बाबू घनश्याम बाबू से बोले बाबू ये चैपट साहेब निम्नश्रेणी के कर्मचारी थे। आज बड़ा अफसर बन गये हैं सिर्फ चमचागीरी की उच्चयोग्यता के बलबूते। चैपट साहेब से ज्यादा पढे लिखे तो बेचारे चपरासीगीरी कर रहे हैं। घनश्याम बाबू ना जाने क्यों ये चैपट साहेब तुमसे खार खाये रहते हैं। तुमसे बहुत बदतमीजी करते हैं। तुम चैपट साहेब से ज्यादा पढ़े लिखे और ख्याति प्राप्त हो शायद इसीलिये।
घनश्याम बाबू--जलने दो। खुद जलकर राख हो जायेंगे।
राधेश्याम-दुर्जनता सज्जनता को लतिया रही है। तुम मौन हो।
घनश्याम बाबू-राधेश्याम कलम का सिपाही मौन नहीं रहता। जमाना जरूर थूकेगा चैपट साहेब के मुंह पर। हिटलर भी तो इसी धरती पर पैदा हुआ था। आत्महत्या कर गया।
राधेश्याम-कलम के सिपाही इतना सब्र कैसे रख लेते हैं।
घनश्याम बाबू-कलम की घाव हरी रहती है।
राधेश्याम- बाबू कुछ भी कहो पर चैपट साहब बांस कम डॉन ज्यादा लगते हैं।
घनश्याम बाबू-समय है बित जायेगा। सब्र सदा मुस्कराता रहा है और मुस्कराता रहेगा।
राधेश्याम-बाबू तुम तो वो हस्ती हो जिसे देखकर चैपट साहेब जैसे बदमिजाज भोंकने लगते हैं और तुम बेखबर सद्मार्ग पर बढते रहते हो। कलम के सिपाहियों को हर युग ने सलाम किया है। मैं भी तुम्हें सलाम करता हूं बाबू.... ========
।। फल।। लघु कथा
ज्वाला साहेब बधाई हो प्रमोशन पर प्रमोशन साल में दो दो भी। अब तो साठ साल के बाद भी आपकी बड़े पद की नौकरी पक्की रहेगी। संस्था का मालिक बने रहेंगे मायूस स्वर में हीराबाबू बोले।
ज्वाला साहेब-आप लोगों की शुभकामनाओं का फल है।
हीरा बाबू -नहीं साहेब वंचितो को लतियाने और अपने लोगों को खुश रखने की कला का फल है।
ज्वाला साहेब-हीरा क्यों मजाक कर रहा है।
हीरा बाबू-साहेब आपने प्रतिभा के दमन की प्रतिज्ञा को पूरी किया इसके लिये और बधाई कबूले।
ज्वाला साहेब-प्रतिभा विरोधी प्रतिज्ञा।
हीरा बाबू- हां साहेब। वंचित प्रतिभावान के भविष्य का आपने खून कर दिया। उसे आगे न बढ़ने देने की आपने कसम खा ली ।
ज्वाला साहेब-हीरा तू विद्याधर वंचित की बात कर रहा है। अरे छोटे लोगों को प्रमोट करना खतरे से खाली नहीं है। छोटे लोग बराबरी करने लगेंगे। ऐसे लोगों को दबा कर ही रखना चाहिये। आगे बढ़ने का मौका दिया तो सिर पर चढ़कर मूतने लगेंगे।
हीराबाबू -अरे वाह रे योग्यता और आदमियत के दुश्मन तुमने सत्ता स्थापित करने के लिये उच्च शिक्षित शोषित पीड़ित वंचित विद्याधर के भविष्य का खून कर दिया। उच्च श्रेणी के व्यक्ति को निम्न श्रेणी का बनाकर शोषण किया। अरे तुममें‘शर्म नहीं बची है तो क्या भगवान से डरते। गरीब की आंसू पर जाम टकराते रहे। तुम्हें कीड़े अवश्य पड़ेंगे वंचितों के विरोधी। ज्वाला साहेब भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती। तुम्हारे गुनाहों का फल तुम्हें मिल रहा है पर तुम्हारी आंख नहीं खुली। शोषित पीड़ित वंचित विद्याधर ने तो अपना ही नहीं अपने खानदान का नाम रोशन कर दिया है अपनी उच्च योग्यता के बल पर। ========
विश्वास। लघुकथा।
रघु-अरे भइया रंधवा क्यों उदास हो अब तो जेल से फुर्सत से छूट गये। कोर्ट कचहरी का झंझट भी नहीं रहेगा जो होना था हो गया। इस अनहोनी को किस्मत का लिखा मान कर सब्र करो भइया।
रंधवा-भइया किस्मत की वजह से नहीं पुलिस वाले की वजह से जेल गया था। सालों कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाया सिर्फ इसलिये की वो वर्दीवाला रोटी के लिये बिक गया था। नहीं तो होटल के बैरे से सिर्फ कहां सुनी ही तो हुई थी मियां भाई की। मियां भाई के साथ होने की वजह से मुझे भी जेल में ठुस दिया गया 307 और 302 का मुलजिम बनाकर। वो बड़े बड़े बाल बड़ी दाढ़ी बड़ी मूंछ वाला लम्बा तगड़ा रोबीला पड़ाव थाना प्रभारी चार हजार रूपये लेकर तो जमानत होने दिया था। इतने बरसों तक बिना अपराध के मानसिक,आत्मिक,शारीरिक और आर्थिक रूप से जो दुख पाया उसकी भरपाई कौन कर सकता है।
रघु-कोई नहीं भइया। ये वर्दी वाले अपने फायदे के लिये जिसे चाहे उसे जेल में ठुस सकते हैं जन सेवा राष्ट्र सेवा की कसम को भूलकर तभी तो पुलिस बदनाम है। अंधेरपुर नगरी कनवा राजा की कहावत चरितार्थ हो रही है।
रंधवा-ठीक कह रहे हो भइया मेरा भी विश्वास उठ गया है।
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डयूटी@लघु कथा
लो डाक साहब डाकिया पसीना पोंछते हुए बोला।
डाकिया को परेशान देखकर रघु बाबू बोल पोस्टमैन साहब बैठिये पानी पी कर जाइये।
साहब मरने को फुर्सत नहीं हैं। साधारण डाक रजिस्ट्री और मनीआर्डर सब हमें ही तो बांटना पड रहा है। नई भर्ती बन्द हैं कहने को। दैनिक वेतन और संविदा पर साहेब लोग रखते तो हैं वह भी अपने ही आदमी। वे काम करेंगे कि चमचागीरी। दफ्तर में आते हैं तो साहेब की रौब दिखाते हैं। डर के मारे कौन बोले। मुंह खोलो तो आचरणहीनता का केस बन जाता है। बहुत छिछालेदर हो जाती है साहेब।
रघु बाबू यहीं देखो बड़े साहब बाहर हैं तो दैनिक वेतनभोगी चपरासी भी नहीं आया है। जब जब बड़े साहब दफ्तर नहीं आते चपरासी भी नहीं आता। पूछताछ एकाध बार किया तो मालूम हैं बड़े साहेब क्या बोले।
यही ना तुम लोगों को बात करने नहीं आती है। अपनी ड्यूटी तो ठीक से करते नहीं दूसरों के मामलों टांग अड़ाते हो। अपनी ड्यूटी से मतलब रखो कौन क्या करता है यह देखना तुम्हारा काम नहीं है। आने जाने वालो से बुरा बर्ताव करते हो। तुम लोगों की शिकायत आने लगी है। अपने व्यवहार में सुधार करो। पोस्टमैन एक झटके में बोला। रघु बाबू के हाथ से गिलास का पानी लेकर पेट में जल्दी जल्दी उतारकर चल पड़ा अपनी ड्यूटी बजाने की हड़बड़ाहट में।
रघु-सच कह रहे हो,निजी स्वार्थ, भाई-भतीजवाद, जातिवाद ही तो इस देश की नींव खोद रहे हैं।
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दुर्व्यवहार@लघु कथा
धौंसचन्द साहेब अपने अधीनस्थ प्रतिष्ठित कमल बाबू को डपटते हुए बोले कमल तुम्हारा आचरण ठीक नहीं हैं दफ्तर में आने जाने वालों से दुर्व्यवहार करते हैं। कमल बाबू को काटो तो खून नहीं। कमल बाबू खुद की समीक्षा करने में जुट गये। आखिरकार कमल बाबू को वजह यह मिली की वे कल ठगेन्द्र, चपरासी को काम करने के लिये बोले थे यह जानकर भी कि चपरासी साहब का आदमी है यही कमल बाबू का दुर्व्यवहार साबित हो गया धौंसचन्द साहेब की निगाहों में।
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@@ हिटलर @@लघु कथा
अल्प शिक्षित,निम्न पद चमचागीरी के शिखर से उच्चपद हासिल करने वाला बढिया काम करने वाले कर्मचारियों को प्रताडित करें तो क्या इसे हिटलरगीरी नहीं कहेंगे राजू आंख मसलते हुए धीरज बाबू बोले।
राजू-बाबू यही लोग तो सत्ता का सुख भोग रहे हैं नीचे से उपर तक। गरीब कोल्हू के बैल सा खट रहा है। चाहे दफ्तर हो या जमींदारों का खेत। सच कहा है किसी ने कमायें धोती वाले बेचारे खायें टोपी वाले।
धीरज बाबू -राजू तुम्हारे साहेब भी तो ऐसे ही हिटलर है।
राजू-हां बाबू तभी तो आंसू पीकर काम करना पड रहा है पारिवारिक दायित्व निभाने के लिये। ऐसे हिटलर के साथ दिन दुखते सालों की तरह बीतता है।
धीरज बाबू-राजू ये ऊंची पहुंच वाले सबल लोग गरीबों की तकदीर पर कुण्डली मारे बैठे हैं सदियों से। इन हिटलरों के आतंक से निपटने के लिये हिटलर ही बनना होगा।
राजू-हां बाबू ठीक कह रहे हो तभी गरीबों का उद्धार होगा।
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@@भारत निर्माण @@लघु कथा
मां चामुण्डा की नगरी, पांच दिवसीय सरकारी भारत निर्माण अभियान के जलसे के भव्य समापन समारोह के मौके पर मोती बाबू आपकी आंखों में बाढ। वजह जान सकता हूं।
मोती - भूख .......... दर्शन बाबू।
दर्शन -क्या भूख। सुना है पहले शाइनिंग इंडिया और आकी -बाकी भारत निर्माण अभियान ने पछाड़ दिया है। देश में करोड़पतियों की संख्या दिन-रात बढ़ रही है। आप भूख की चिंता पर सुलग रहे हो।
मोती -दर्शनबाबू प्रदर्शन के अलावा ये सब कुछ नहीं हैं वो देखो भूख का नंगा खेल।
दर्शन - कहां।
मोती -कचरे के ढेर पर जहां खाकर फेंके हुए डिब्बे कुत्तों के साथ भूखे नंगे आदमी के बच्चे भी चाट रहे हैं।
दर्शन -सच कह रहे हो भूख और दरिद्रता के रहते शाइनिंग इंडिया हो चाहे भारत निर्माण अभियान दीन दुखियों के आंसू नहीं पोंछ सकते।
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@@ कल्याण@@लघु कथा
दशरथ-भइया धर्मानन्द गरीबों का कल्याण कभी होगा क्या।
धर्मानन्द-ऐसा तुमको क्यों लगता है।
दशरथ-सामाजिक आर्थिक विषमता ,स्वार्थ की अंधी दौड़, गरीबों का अवनति और बाहुबलियों की तरक्की देखकर।
धर्मानन्द-बात तो लाख टके सही कह रहे हो भइया दशरथ इनके रहते तो नहीं पर असम्भव भी नहीं है।
दशरथ-वो कैसे भइया।
धर्मानन्द-अपने अस्तित्व का जोरदार प्रर्दशन।
दशरथ-बहिष्कार और बुराइयों का विरोध।
धर्मानन्द-हां पर अहिंसात्मक ढंग से तभी गरीबों का कल्याण सम्भव है।
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अतिक्रमण
। लघुकथा।
अरे वाह तुम तो सूट पहनकर आये हो दफ्तर अधिकारी बेगानचन्द ने अपने से कई गुना अधिक पढ़े लिखे और छोटे पद पर काम करने वाले कर्मचारी दीवानचन्द पर व्यंगबाण का तरकस छोड़ा।
दीवानचन्द-सहज भाव से बोला ना जाने क्यों तथाकथित श्रेष्ठ लोग अपनी योग्यता को नहीं देखते। गिरगिट की खाल ओढ़ लेते हैं।
बेगानचन्द-खिसियाकर बोले काग हंस तो नहीं बन सकते।
दीवानचन्द-पद दौलत के नशे में चूर लोगों को अपने मद के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता सावन के भैंसे की तरह।
छोटे लोगों के मुंह मैं नहीं लगता कहते हुए बेगानचन्द अपनी कुर्सी की ओर बढ़ने लगे। दीवानचन्द ने भी नहले पर दहला मारा सुनो साहेब आप और आप जैस ना जाने कितने लोग हमारे जैसे लोगों की तकदीर नाग की तरह अतिक्रमण कर बैठे है।
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गिफ्ट
। लघुकथा।
दफ्तर में विज्ञापन कम्पनियों सहित कम्पनी के उत्पाद बेचने वालो का आना जाना लगा रहता था। ये सभी मानचन्द बाबू से अपने काम के बारे में चर्चा भी करते। मानचन्द बाबू इन लोगों का काम कर गर्व महसूस करते। दीवाली और नये साल के आते ही लोग मानचन्द बाबू को देखना भी पसन्द ना करते। नये साल अथवा दीवाली के महीना भर बाद ज्यों की त्यों स्थिति हो जाती। एक दिन कम्पनी के प्रतिनिधि आये मानचन्द से बड़े आत्मीय ढंग से बात करने लगे। मानचन्द ने भी उनसे ज्यादा आत्मीयता प्रगट किये और काम भी किये। इसके बाद प्रतिनिधि से कहे एक बात पूछूं महोदय।
प्रतिनिधि-हां क्यों नहीं साहब के पहले तो आप हमारे साहब है।
मानचन्द-मैं साहब तो नहीं हूं पर अपना फर्ज है अच्छी निभाना जानता हूं। मैं तोहफा के लिये काम नहीं करता। अपनी हालात पर खुश रहना भी जानता हूं लेकिन मुझे एक बात खटकती है।
प्रतिनिधि-वह क्या।
मानचन्द-दीवाली या नये साल के आते ही कम्पनी के मालिक अथवा प्रतिनिधि लोग अनजान क्यों बनने का नाटक करते हैं।
प्रतिनिधि-गिफ्ट बांटने की व्यस्तता रहती हैंसाहब। बाकी समय तो काम करवाने के लिये आते ही हैं।
मानचन्द-क्या आपको नहीं लगता कि गिफ्ट देना भ्रष्टाचार को न्यौता है?
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बिल। लघुकथा।
रामबाबू दुकानदार को आधा किलो नमकीन का आर्डर दिये। दुकानदार दामू नमकीन रामबाबू के सामने रखते हुए बोला और क्या सेवा करूं बाबू जी आपकी।
रामबाबू बोले और तो कुछ नहीं चाहिये बिल दे दो।
दामू-रामबाबू को बिल थमाते हुए बोला बाबू छोटे दुकानदारों से बिल लेना जागरूक लोग अपना चातुर्य समझते। क्या वही जागरूक लोग कचहरी से खरीदे गये स्टाम्प पेपर एवं दिये गये भारी भरकम शुल्क के भी बिल लेते हैं
दुकानदार का यह प्रश्न सुनकर रामबाबू के तालू चिपक गये।
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पुरस्कार
लघुकथा
काका ये तस्वीरें तुम्हारी दीवाल पर मैं तब से देख रहा हूं जबसे मेरी आंख खुली है। इस कलेक्शन में कोई तस्वीर नहीं जुड़ी क्यों ?
दीनानाथ -बेटा दयाल इन तस्वीरों के अलावा मेरे जीते जी शायद ही कोई तस्वीर टंगे।
दयाल-ऐसा क्यों काका घ् नेता तो अपने देश में बहुत हो गये हैं। देश समाज की सेवा के बदले बड़े से बड़ा पुरस्कार अपने नाम करना चाह रहे हैं।
दीनानाथ-पहले के नेता देश समाज की सेवा करते थे अब के नेता अपना खजाना भरते हैं। क्या ऐसे नेताओं की तस्वीरें लगाकर ईमानदारी और सेवाभाव को गाली देना है ? पुरस्कार को आपस में मिल बांट लेना सम्मान का अपमान है बेटा।
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डाका
। लघुकथा।
बिपिन-बिहारी बाबू मेरी कमीज बताओ कितनी की होगी।
बिहारी-सौ रूपये की होनी चाहिये।
बिपिन-अरे यार ब्राण्डेड है। 500 रू की है तुम सौ रूपये आंक रहे हो।
बिहारी-होगी पचास दिन चल जाये तो मान लेना। ब्राण्ड के नाम पर ठगी हो रही है आजकल।
बिपिन-क्या।
बिहारी-हां कल की ही तो बात हैं। मैं बेटे के लिये ब्राण्डेड कम्पनी का जूता रू0 499.90 बिल क्रमांक 8242 दिनांक 22 जनवरी 2008 को वेंचर शो रूम से लिया। घर आकर पता चला कि जूता पुराना है और एक जूते मे फीता भी नहीं है। दुकान शिकायत लेकर गया तो दुकानदार उल्टे मेरे उपर इल्जाम लगाने लगा कि जूता पहनकर लाये हैं। न जूते बदला ना ही पैसे वापस किये। मैं ठगा सा वापस आ गया।
बिपिन-यह तो धोखाधड़ी है। मुनाफाखोर दुकानदार ग्राहकों के पाकेट पर डाका डालने लगे है।
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उस्तरा
लघुकथा
न्यूनतम् योग्यता उच्च श्रेष्ठता की बदौलत परसाद बाबू ब्रांच हेड का पद हथिया बैठे। परसाद बाबू वैसे तो सभी को आतंकित करके रखते थे परन्तु छोटे और अपने से अधिक योग्य लोगों से तो छत्तीस का आंकड़ा रखते थे। गणतन्त्र दिवस के चौथे दिन परसाद बाबू दोपहर के एक बजे आये । आते ही काल बेल पर जैसे बैठ गये। कुछ ही देर मे अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए बड़े बाबू को बुलाने लगे अरे ओ दयावान इधर आ। साले दिन भर बैठकर चाय पीते है कोई काम नहीं करते। इसी बीच दयावान हाजिर हो गया।
ब्रांचहेड - आग बबुला होकर बोले हमारी टेबुल कुर्सी और आफिस की सफाई क्यों नहीं हो रही है।
दयावान-सर ओ चरेन्द्र आजकल नहीं आ रहा है ना। यह बात परसाद बाबू अच्छी तरह से जानते थे क्योंकि चरेन्द्र उनका चहेता था। आफिस का काम कम और उनका अधिक करता था।
इतना सुनना था कि ब्रांचहेड परसाद बाबू की आंखों में खून उतर आया। तमतमा कर बोले चरेन्द्र नहीं आ रहा है तो तुम करो।
दयावान-मैं क्यों ?
ब्रांचहेड परसाद बाबू-बदतमीजी से बोले तुमको करना पड़ेगा।
दफतर के सभी लोग खामोश थे अधिकतम योग्य दयावान के अपमान के गवाह भी। उनकी जबानें खामोश थी परन्तु जबान पर यह सवाल तैर रहा था कि संस्था ने बन्दर के हाथ में उस्तरा क्यों थमा दिया?
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घाव
लघुकथा
साहेब की कोठी का काम निपटा कर सावित्री बाई आंसू पोंछते जाते हुए देखकर ड्राइवर मोती चुपके से कोठी की आड में खड़ा हो गया और इशारे से बाई को अपनी ओर बुलाया।
सावित्री बाई-बाबूजी क्यों बुला रहे हो। मैं ऐसी वैसी नहीं हूं। ऊंची जाति की हूं। मजबूरी में झाडू पोंछा और कपड़े धोने का काम कर रही हूं। पति की कमाई से घर नहीं चल पाता है। बच्चों को अच्छा कल मिले इसी उम्मीद में तो गुलामी कर रही हूं साहब लोगों की।
मोती-बाई मुझे गलत ना समझो। तुम आंसू क्यों बहा रही हो।
सावित्री बाई-बाबूजी गरीबों का आंसू कौन पोंछता है। सब आंसू देते हैं।
मोती-बाई क्या कह रही हो। दुनिया में सभी एक जैसे नहीं होते। भलमानुस लोग भी है। दूसरों के दर्द को अपना समझते हैं।
सावित्री-बाबूजी सही कह रही हूं। ये आपके साहेब कोई भलामानुष है क्या ?
मोती-क्यों नहीं भलामानुष है बाई। इतने बड़े साहब हैं। हां कम पढ़े लिखे है पर श्रेष्ठ हैं।
सावित्री-साहब है। इसका मतलब ये तो नहीं कि देवता है। राक्षस है राक्षस ..............। ये आंसू उनके दिये हुए शोषण के घाव की वजह से बह रहे हैं। मोती-क्या हुआ बाई।
सावित्री-बेटवा को नौकरी पर लगा देंगे इसी उम्मीद में पांच साल से एकदम कम पैसे में कोठी का पूरा काम और खाना भी बना रही इतना ही नहीं टट्टी घर फोकट में साफ करवा रहे हैं। बेटवा गजेन्द्र से भी सुबह शाम गुलामी करवा रहे हैं। छुट्टियों के दिन तो सुबह साहब के बंगले आ जाता है और रात में घर वापस आता है भूखे प्यासे। ये लहूलुहान हाथ देखो बाबूजी तेजाब से फर्श साफ करने में हुआ है। यही हाल मेरे बेटे का भी है। क्या अमानुष लोग हैं।
मोती-बाई द्वारपाल साहेब तुम्हारे बेटवा को कभी भी नौकरी नहीं दे सकते। गलतफहमी मत पालो। ये गरीबों के खून चूसने वाले शोषण के घाव के अलावा और कुछ नहीं दे सकते।
सावित्रीबाई-धोखा कर रहे हैं क्या............................................. ?
मोती-हां। आसूं न बहाओ। बात रखने की हिम्मत जुटाओ।
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।। बीमारी।।
लघुकथा
साहब बड़े साहब को क्या हो गया है लल्लू दुखी मन से पूछा।
विजय-क्या हुआ लल्लू साहब को।
लल्लू-बाबू चर्चाओं का बाजार गरम है। आपको कुछ पता नहीं। अच्छा आप तो पी.ए.साहब है। जानकर भी अनजान रहेंगे ना।
विजय-सच लल्लू मुझे कुछ पता नहीं। बाजार गरम क्यों है तुम्हीं बता दो ।
लल्लू-घूंसखोरी और अत्याचार की वजह से। आजकल बात बात पर गाली देने लगते हैं। आपके साथ भी तो कल बहुत बदतमीजी कर रहे थे। सुना है कई एजेन्सियों से कई लाख डकार गये हैं। कईयों से ऐंठने का प्लान है। दुआल साहेब तो बड़े शातिर निकले। चेहरे से तो बहुत शरीफ लगते हैं। मन से बहुत काले है।
विजय-लल्लू दुआल साहेब अपने फर्ज को भूल गये हैं जानते हो क्यों।
लल्लू -क्यों साहेब।
विजय-साहेब साहब बनने लायक है।
लल्लू-नहीं।
विजय-बिल्कुल सही। पद और दौलत उम्मीद से बहुत ज्यादा मिल गया हैं। इसी अभिमान में दुआल साहेब मानसिक बीमारी के शिकार है।
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अस्पृश्यता। लघुकथा।
रघुवर-अरे भाई सेवक जलसे में नहीं गये थे क्या।
सेवक-किस जलसे की बात करे रहे हो।
रघुवर-अरे जिसे जिले की ये सुर्खियां है।
सेवक-कम्पनी के जलसे की। ये तुमको कहां मिल गया।
रघुवर-भाई तुम्हारे विभाग के जलसे की खबर है। इसलिये अखबार की कतरन साथ लेते आया ये देखो तुम्हारे दफ्तर के सभी लोग फोटो में हैं बस तुमको छोड़कर। अच्छा बताओ तुम ‘शामिल क्यों नहीं हुए।
सेवक-मै छोटा कर्मचारी अस्पृश्यता का शिकार हो गया हूं।
रघुवर-क्या कह रहे हो। तुम जैसे कद वाले सिर्फ पद के कारण अस्पृश्यता के शिकार........
सेवक-हां रघुवर।
रघुवर-धैर्य खोना नहीं। जमाना तुम्हारी जयजयकार करेगा एक दिन सेवक....। ========
।। प्रेसिडेण्ट।।। लघुकथा।
संस्था के उपकार्यालय के कर्मचारी यूनियन प्रेसिडेण्ट के आगमन की खबर से काफी उत्सुक थे। उधर दूसरा वर्ग कलह और झंझावतों से जूझ रहा था। प्रेसिडेण्ट दौर पर आये और सीधे कार्यालय प्रमुख के ए.सी.रूम में प्रविष्ट हुए फिर बाहर नहीं झांके। घण्टे दो घण्टे की गपशप और चाय नाश्ते के बाद वे ए.सी.रूम से झटके से निकले और ए.सी कार में बैठ गये। बेचारे कर्मचारी प्रसिडेण्ट की झलक तक नहीं पा सके। एक कर्मचारी दूसरे कर्मचारी से बोला यार अपना वोट तो व्यर्थ हो गया।
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चाय। लघुकथा।
अधिकारी-टीचू ये क्या है।
टीचू-सर चाय है।
अधिकारी- कैसी चाय है। वह भी सरकारी।
टीचू-दूध में तनिक पानी डाल दिया हूं।
अधिकारी-क्यूं। खालिस दूध की क्यों नहीं।
टीचू शिकायती लहजे में बोला-इंचार्ज बाबू मना करते हैं।
अधिकारी-बाबू की इतनी हिम्मत। हमें तो खालिस दूध की ही चलेगी।
टीचू-बावन बीघा की पुदीना की खेती वाले हैं, मन ही मन बुदबुदाया।
अधिकारी-कुछ बोले टीचू।
टीचू-नहीं सर।
अधिकारी-अब तो सरकारी चाय दे दे।
टीचू-सर दूध में चाय पत्ती और शकर डलेगी ।
अधिकारी- हां क्यों नहीं पर पानी नहीं। जा की बहस ही करता रहेगा। मूड खराब हो गया चाय देखकर।
टीचू-दूध में चाय पत्ती और शकर डालकर गरम करने में जुट गया।
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पासवर्ड। लघुकथा।
गोपाल प्रसाद अधिकारी के रूतबे में मदमस्त चरवाहे की भांति चिल्लाने लगे.....अरे वो दीपक तू जरा इधर आ.....
दीपक-क्या हो गया प्रसाद जी।
गोपाल प्रसाद- बैंक स्टेटमेण्ट की ई मेल आयी है ,प्रिण्ट लेने नहीं आ रहा है।
दीपक-ईमेल एड्रेस बताइये निकाल देता हूं। उधर का प्रिण्टर खराब है।
गोपालप्रसाद आशंकित मन से ईमेल एड्रेस बताये।
दीपक-की बोर्ड सरकाते हुए बोला लीजिये पासवर्ड डाल दीजिये।
गोपालप्रसाद बड़ी बारीकी से पासवर्ड डाले। दीपक उनकी तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखा पर गोपाल प्रसाद को पासवर्ड चोरी होने की शंका हो गयी।
दीपक-लो प्रसादजी प्रिण्ट आ गया।
गोपालप्रसाद बैक स्टेटमेण्ट लेकर दफ्तर के दूसरे कक्ष में गये। एक तरफ कोने में बैठकर बैक स्टेटमेण्ट का मुआयना किये। बीस मिनट के बाद आये और बोले दीपक तू बता पासवर्ड कैसे बदलते हैं।
दीपक-पासवर्ड चोरी हो गया क्या प्रसाद जी।
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कमरा।। लघुकथा।
आण्टी आपके यहां कमरा खाली है ना। गुप्ता आण्टी ने भेजा है ,कला मिसेज कण्ठवास से पूछी।
मिसेज कण्ठवास-हां है तो। तुमको चाहिये या किसी और को.....
कला-मेरे भइया को।
मिसेज कण्ठवास-देख लो।
कला-कमरा तो बहुत छोटा है। आण्टी किराया कितना मांग रही है।
मिसेज कण्ठवास-बारह सौ ........
कला-आण्टी गुप्ता आण्टी तो एक हजार बताई थी।
मिसेज कण्ठवास- एक हजार लगेगा अब तो ...
कला-ठीक है आण्टी चलेगा।
मिसेज कण्ठवास-उनसे बात कर लो।
तौली बनियाइन में मिस्टर कण्ठवाल कमरे में उपस्थित हुए और बोले कमरा ठीक है।
कला-कमरा तो छोटा है अंकल किराया भी ज्यादा है पर चलेगा हमारे घर के पास है। भइया अकेले रहकर पढ़ाई के साथ काम करेंगे। सोना खाना तो घर पर ही होगा।
मिस्टर कण्ठवास- भइया तुम्हारे सगे नहीं है।
कला- सगे से बड़े है राखी के भाई है।
मिस्टर कण्ठवास-तुम्हारा भाई करता क्या है।
कला-अंकल आर्टिस्ट है।
मिस्टर कण्ठवास-पेण्टर को नहीं देना है। बाहर जाओ कहते हुए दरवाजा भडाम से बन्द कर लिये।
कला-अंकल मैं बी.एफ.ए. फाइनल की परीक्षा दे चुकी हूं। मेरा राखी का भाई बी.एफ.ए.पास बड़ा चित्रकार है। अंकल आप जैसे मानसिक रोगी चित्रकार के वजूद को क्या जानेगें .... नहीं चाहिये आप जैसे पढ़े लिखे असभ्य गाड़ी बंगले के घमण्ड में डूबे हुए का कमरा कहते हुए कला बैरंग लौट गयी।
मिस्टर कण्ठवास के व्यवहार और कला के ‘शालीन तेवर को देखकर मिसेज कण्ठवास के तो होश ही उड़ गये।
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उपभोग। लघु कथा।
अधिकारी अधीनस्थ कर्मचारी जयेश को हिदायत देकर लोकल दौरे पर चले गये। रात के साढे आठ बजे जयेश ने अधिकारी महोदय को मोबाईल पर काल किया। काफी देर के बाद अधिकारी ने फोन अटैण्ड किया और छूटते ही बोले जयेश कहां से बोल रहे हो।
जयेश-सर आफिस से .........
अधिकारी-इतनी देर तक आफिस में क्या कर रहे हो।
जयेश- सर आपकी हिदायत थी ना बैग से भरे बोरे रखवाने की ....
अधिकारी-ओ आई सी......
जयेश-सर बैग की डिलीवरी अभी हुई है बार बार के फोन करने के बाद....
अधिकारी-बहुत अच्छा काम तुमने किया कल कम्पनी के प्रोग्राम में ये बैग बंटने है। सप्लायर ने इतना डिले कर दिया। अगर तुम ना रूकते तो कल बड़ी फजीहत हो जाती। सुनो मुझे अरली मार्निंग कल निकलना होगा। तुम दफ्तर सम्भाल लेना।
जयेश-ठीक है सर देख लूंगा।
अधिकारी-एक काम करो...
जयेश-क्या करूं सर...........
अधिकारी-एक बोरा खोलकर एक बैग ले लो .........
जयेश-सर बाद में आपके हाथों से ले लूंगा।
अधिकारी-ठीक है अब तुम घर जाओ बहुत लेट हो गये हो.............
प्रोग्राम निपटाकर साहब आये। चपरासी के बुलाये। कार से बोरे में भरा बैग निकलवाये। चपरासी से गिनवा कर बैग आलमारी में रखवाये। कुछ बैग कार में रखवाये। जयेश इन्तजार करता रहा कि साहब अब बैग देंगे तब देंगे पर साहब ने नहीं दिया। जयेश हिम्मत करके बोला सर आप बैग देने वाले थे मुझे। दे देते तो काम आ जाता। मेरी बेटी कल बाहर जा रही है।
अधिकारी-सब बैग तो बंट गये जबकि सुबह ही तो ढेर सारे बैग आलमारी में और कुछ कार मे रखे गये थे व्यक्तिगत उपभोग के लिये...................
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स्वर्ग का सुख
। लघुकथा।
हीराचन्द चश्मा साफ कर आंख पर रखते हुए उठे और कई दिनों से पड़े कपड़े प्रेस करने लगे। सुहानी से नहीं देखा गया बूढे ससुर को कपड़ा प्रेस करते हुए ,वह दर्द को भूलकर बिस्तर से उठी और बोली बाबूजी रहने दो मैं कर देती हूं। बुखार आज थोड़ा कम है। आपने जिन्दगी भर काम ही तो किया है,अब आराम करो। हम किस दिन रात के लिये हैं।
हीरसचन्द बोले तू बीमार है। आराम की तुमको अधिक जरूरत है न कि मुझको।
सुहानी-बाबूजी रहने भी दो ना कहते हुए हीराचन्द के हाथ से प्रेस लेकर खुद करने लगी।
बहू के सेवा से हीराचन्द को जैसे स्वर्ग का सुख नसीब हो गया।
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भगवान
। लघुकथा।
प्रातः दिव्यानी मुन्ना के रोने को अनसुना कर किचन में कुछ बनाने में व्यस्त थी,जिसकी सुगन्ध सेवकबाबू की नाक तक बेधड़क पहुंच रही थी। दिव्यानी किचन से ही मुन्ना चुप हो जा मैं आयी कहकर चुप कराने की कोशिश कर रही थी।
सेवकबाबू बहू मुन्ना को चुप कराओ कब से रो रहा है। भूख लगी होगी। अरे मेरा चश्मा किधर चला गया,मै ही चुप कराता तुमको फुर्सत नहीं है तो। बच्चे का ख्याल रख करो बहू।
दिव्यानी बाबूजी-ये रहा आपका चश्मा और ये आपका चाय नाश्ता।
सेवकबाबू-बेटी पहले मुन्ना को देखना जरूरी है न कि मुझको।
दिव्यानी-बाबूजी भगवान को भी तो नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
सेवकबाबू कभी नीले आकाश की ओर तो कभी देवी समान बहू दिव्यानी की ओर देख रहे थे।
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बेटी का सुख
। लघुकथा।
क्या औलाद हो गयी है आज के स्वार्थी जमाने की, बताओ तीन तीन हट्टे कट्टे बेटे, अच्छी खासी सरकारी नौकरी और बहुओं की भी सरकारी नौकरी पर तोता काका को समय पर पानी देने वाला नहीं। देखो बेचारे अस्सी साल की उम्र में घर छोड़कर जा रहे थे।
खेलावन काका की बात सुनकर देवकली काकी बोली देखो एक बेटी अपनी भी है चार चार बच्चों का पाल रही है। दफ्तर जाती है। बीटिया जरा भी तकलीफ नहीं पडने देती। सारी सुख सुविधा का ख्याल रखती है। एक वो है, तोताजी, बेटा बहू नाती पोता,भरा पूरा परिवार,अपार धन सम्पदा के बाद भी दाना- पानी को तरस रहे हैं। एक बेटी के मां बाप हम है।
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।। एहसान।। लघुकथा
ओमप्रकाश शर्मा एक कम्पनी में कार्यरत थे उनकी पत्नी किरन बिलकुल कम पढ़ी लिखी तो थी पर स्कूल की टीचर हो गयी थी। इनके दोनों बच्चे भोलू और गोलू बहुत छोटे छोटे थे। ये दोनों बच्चों हम पति-पत्नी की गोद में खाये पले बढ़े। मेरे बच्चों ने भी बहन भाई का प्यार दिया, ओमप्रकाश और किरन को बच्चों ने सगे चाचा चाची का।
आठ साल के बाद मेरा घर खाली कर रहे थे। हमारे घर का माहौल गमगीन हो गया था। बच्चे भी घर खाली करने में मदद कर रहे थे। घर खाली कर ओमप्रकाश शर्मा सपरिवार चले गये बिना बिजली का बिल पानी का बिल तो कभी लिये ही नहीं। नाममात्र का किराया ले रहे थे परिवार के सदस्य मानकर। दूसरे दो दो हजार देने को तैयार थे पर नहीं दिये।
ओमप्रकाश और उनके परिवार के जाने के दो दिन बाद घर का ताला खुला। घर अन्दर से दो समुदाय के दंगे में लहूलुहान आदमी की तरह अपना हाल बयां कर रहा था। रसोईघर के जल निकासी का पाईप, लैर्टिन की दीवार और फर्श पर लगी टाईलें कूंच दी गयी थी। बिजली सप्लाई लाईनें तोड़ दी गयी थीं। वाशबेसिन तहस नहस था। दस खर्चा का खर्चा खड़े खड़े मुंह चिढ़ा रहा था। मैं घर का हाल देखकर अवाक् था। श्रीमती पल्लू में आंख छिपाये हुए बोली क्या सिला दिया रे मतलबी मेरे एहसान का....................
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18.07.2008
।। दौलत।।
बाबूजी आप तो कहते हो कि आदमी बड़ा बनता है तो फलदार पेड़ की तरह झुक जाता है।
हां बेटा रामू मैंने तो गलत नहीं कहा है। बात तो सही है रघुदादा बेटे से बोले।
रामू-बाबूजी बात पुरानी हो गयी है।
रघुदादा-बेटा ये अमृत-वचन है कभी भी अपने महत्व को नहीं खोते।
रामू-बाबूजी मैं बांस से ज्यादा पढ़ा लिखा हूं। दफ्तर के बाहर मान सम्मान भी बहुत है। इसके बाद भी अपमान........ किसी से बात करते देखते या सुनते ही कालबेल पर बैठ जाते हैं।
रघुदादा-ये दुर्जनों के लक्षण है। इन्हें अधिकार जताने आते हैं। ये बबूल के पेड़ सरीखे होते हैं बेटा।
रामू-बाबूजी क्या करूं ?
रघुदादा-कुछ नहीं। अमानुषों के मुंह नहीं लगाना उत्तम होता है। कर्म पर विश्वास रखो बस...
रामू-बाबूजी रोज रोज अपमान का जहर............
रघुदादा-बेटा हर अच्छे काम में बाधायें आती है। घबराओ नहीं। नेककर्म की राह पर चलते रहो। भले ही ऊंचा पद और दौलत का पहाड़ तुम्हारे पास नहीं है परन्तु तुम्हारे पास कद की ईंची दौलत तो है। कद से आदमी महान बनता है। पद और दौलत से नहीं.........
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30.07.08
।। ट्रेनिंग।।
तुम्हारी तीन दिवसीय ट्रेनिंग होने जा रही है देवी प्रसाद कनक साहब पूछे।
देवी प्रसाद-हां साहब,कुछ देर पहले फैक्स से सूचना आयी है।
कनक साहब-बधाई हो भाई तुम्हारी ट्रेनिंग हमारी तो हुई नहीं तुम्हारी हो रहा है कहते हुए कनक साहब अपने माथे पर चिन्ता के काले बादल लिये अपनी केबिन में चले गये।
बब्बन-देवीप्रसाद कनकसाहब बधाई दे रहे थे कि विरोध कर रहे थे।
देवीप्रसाद-कनक साहब बड़े अफसर है। उनका अभिमान बोल रहा था। छोटे कर्मचारियों की ट्रेनिंग कनक साहब जैसे अफसर फिजूलखर्ची मानते हैं। कम्पनी के लिये घाटे का सौदा मानते हैं। हां खुद के फायदे के लिये जोड़ तोड़ करते नहीं थकते। छोटे कर्मचारी का तनिक सा फायदा छाती में शूल की तरह ग़डता है।
बब्बन-जैसे तुम्हारी ट्रेनिंग ..........
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।। जीवन परिचय ।।
नन्दलाल भारती
कवि/कहानीकार/उपन्यासकार
शिक्षा - एम.ए. । समाजशास्त्र । एल.एल.बी. । आनर्स ।
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट
जन्म तिथि - ०१.०१.१९६३
जन्म स्थान- - ग्र्राम चकी। खैरा। तह.लालगंज जिला-आजमगढ ।उ.प्र।
स्थायी पता- आजाद दीप, १५-एम-वीणानगर ,इंदौर ।म.प्र.!
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nandlalram@yahoo.com /nl_bharti@bsnl.in
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास-अमानत ,निमाड की माटी मालवा की छाव।प्रतिनिधि काव्य संग्रह।
प्रतिनिधि लघुकथा संग्रह- काली मांटी एवं अन्य कविता, लघु कथा एवं कहानी संग्रह ।
अप्रकाशित पुस्तके
उपन्यास-दमन,चांदी की हंसुली एवं अभिशाप, कहानी संग्रह- २
काव्य संग्रह-२ लघुकथा संग्रह-१ एवं अन्य
सम्मान
भारती पुष्प मानद उपाधि,इलाहाबाद,
भाषा रत्न, पानीपत ।
डां.अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान,दिल्ली
काव्य साधना,भुसावल, महाराष्ट्र,
ज्योतिबा फुले शिक्षाविद्,इंदौर ।म.प्र.।
डां.बाबा साहेब अम्बेडकर विशेष समाज सेवा,इंदौर
कलम कलाधर मानद उपाधि ,उदयपुर ।राज.।
साहित्यकला रत्न ।मानद उपाधि। कुशीनगर ।उ.प्र.।
साहित्य प्रतिभा,इंदौर।म.प्र.।
सूफी सन्त महाकवि जायसी,रायबरेली ।उ.प्र.।
विद्यावाचस्पति,परियावां।उ.प्र.। एवं अन्य
आकाशवाणी से काव्यपाठ का प्रसारण ।कहानी, लघु कहानी,कविता
और आलेखों का देश के समाचार पत्रो/पत्रिकओं में
एवं www.swargvibha.tk swatanraawaz.com एवं अन्य बेवसाइटस् पर प्रकाशन ।
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