राष्ट्रीय स्तर का पशु ० शरद तैलंग जिस प्रकार उत्तर भारत के निवासी दक्षिण भारत के निवासियों को चाहे वो तमिलनाडु के हो या केर...
राष्ट्रीय स्तर का पशु
० शरद तैलंग
जिस प्रकार उत्तर भारत के निवासी दक्षिण भारत के निवासियों को चाहे वो तमिलनाडु के हो या केरल के कर्नाटक के हो या आन्ध्र प्रदेश के सभी को मद्रासी कहकर सम्बोधित करते हैं उसी प्रकार चाहे वह चीता हो तेन्दुआ हो बाध हो या शेर हो सभी शेर कहे जाते हैं. इनमें से ही कोई एक हमारा राष्ट्रीय पशु है. इस बात से चाहे शेर को एतराज हो सकता है लेकिन हम भारतवासियों को कोई आपत्ति नहीं है. अब वह यदि अपना यह सम्मान लौटाना भी चाहे तो भी उसे किसी न किसी के कहने स अपना लौटाया हुआ सम्मान वापस लेना ही पड़ेगा .हम भारतवासियों को आपत्ति इसलिए भी नहीं है क्योंकि उसके दर्शन ही दुर्लभ हैं. राष्ट्रीय ओहदा पाने वालों के दर्शन अक्सर दुर्लभ हो जाते है. उनके दर्शन पाने के लिए एक लम्बे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है . कभी कभी तो कई कई सालों तक. वैसे यदि राष्ट्रीय पशु के दर्शन न हों यही सबके लिए लाभदायक स्थिति है. उसके दर्शन होने के बाद फिर हम कुछ नहीं कर सकते जो करता है वो ही करता है. इसलिए हम लोग राष्ट्रीय पक्षी को देख कर ही काम चला लेते है. राष्ट्रीय पुष्प में तो आजकल कीचड़ की बदबू ज्यादा आने लगी है.
राष्ट्रीय पशु का दर्जा मिलने के साथ साथ शेर को पशुओं का राजा भी समझा जाता है . राजा होने के कारण अपनी प्रजा की भलाई उसका मुख्य ध्येय होना चाहिए किन्तु अनेक राजा महाराजों की तरह जो राष्ट्रीय दर्जा पा जाते है वह भी अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगता है . एक बार राजा घोषित हो जाने के बाद पुनः इस पद हेतु दोबारा राय शुमारी न करवाना भी राष्ट्रीय स्तर के ओहदे वालों के स्वभाव का एक अंग है. हर व्यक्ति यह जानता है कि शेर राष्ट्रीय पशु तथा जंगल का राजा है. संभवतः शेर तथा अन्य पशु ही शायद न जानते हों. एक व्यक्ति एक पद का नियम जंगल राज में कायम नहीं होता . सुना था कि उसको यह सम्मान प्रदान करने के लिए पूर्व में एक शिष्ट मंडल जंगल गया था और शेर के राज्य की शासन व्यवस्था से प्रभावित हो कर वह शिष्ट मंडल उस के राज्य में ही बस गया आज तक वापस नहीं लौटा.
हमारे देश का बच्चा बच्चा शेर के विषय में जानकारी रखता है क्योंकि बच्चों को बचपन में ही शेर और खरगोश की एक कथा सुना दी जाती है जिसके अनुसार जहाँ एक और खरगोश को कमजोर तथा छोटा होते हुए भी बुद्धिमान बताया गया है वहीं शेर को बलशाली होते हुए भी परले दर्जे का मूर्ख बताया गया है जो अपने प्रतिद्वन्दी को देखते ही दहाड़ने लगता है. इस हिसाब से खरगोश को राष्ट्रीय पशु का दर्जा मिलना चाहिए था न कि शेर को. हमारे देश में राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान की अपेक्षा बलशाली अथवा मूर्ख होने से भी काम चल जाता है जो अपने प्रतिद्वन्द्वी को देखते ही दहाड़ने लगे.
शेर के बारे में लोगों के मन में अनेकों भ्रांतियाँ है जैसे कि वह चारा नहीं खाता है. राष्ट्र स्तर के जन प्रतिनिधियों के वारे में ऐसा कहने में संशय है. इस बात का इतना बढ़ा चढ़ा कर प्रचार किया गया कि शेर यदि मुंह का जायका बदलने के लिए कभी शाकाहारी चीजें खाना भी चाहे तो इस डर से नहीं खा पाता है कि कहीं न कहीं कोई न कोई देशी या विदेशी अपना कैमरा फोकस किए इस ताक में जरूर बैठा होगा कि वह कुछ उल्टा सुल्टा खाए और उस दृश्य को झट कैमरे में कैद करके किसी न्यूज चैनल पर प्रसारित करवा दे. राष्ट्रीय स्तर के लोगों के मन में भी इसी बात का डर लगा रहता है.हॉ एक और बात दोनों में समान रूप से पाई जाती है. दोनों को फांसने के लिए बकरे का लालच दिया जाता है .सम्मानित प्राणियों के जीवन के सुचारूपूर्वक यापन के लिए किसी बकरे की या छोटे मोटे प्राणियों को अपने प्राणों की बलि देनी ही होती है.
राष्ट्रीय स्तर के लोगों को राष्ट्रीय पशु से बहुत प्यार होता है. इसका सबसे बड़ा प्रमाण यहीं है कि ऐसे अनेक लोगों के ड्राइंग रूम में राष्ट्रीय पशु का हडि्डयों तथा मांस हीन शरीर पूरे सम्मान के साथ विद्यमान रहता है. हडि्डयों की उपस्थिति व्यर्थ के विवाद का प्रश्न बन जाती है . हडि्डयों तथा मांस की अपेक्षा चमड़ी में आकर्षण अधिक होता है. अब शेर को उसकी जीवित अवस्था में ड्राइंग रूम में सजाना तथा प्यार करना तो जरा मुश्किल काम है न अतः उसे मार कर उसकी खाल से ही मुहब्बत कर लेते है.
राष्ट्रीय पशु को रहने के लिए दो स्थान नियत हैं. एक राष्ट्रीय अभ्यारण्य और एक जेल रूपी चिडयाघर. हमारे राष्ट्रीय पशु को पिंजरे में देखने का एक अलग ही आनन्द है .हम उसको बाहर खड़े होकर पत्थर मार सकते है. उस पर कीचड़ उछाल सकते हैं. शेर पिंजरे में भी नॉनवेज खाना ही पसन्द करता है.
शेर सर्कस भी बहुत अच्छा करते हैं. वे अपने रिंग मास्टर या रिंग मास्टरनी के आदेश पर कुर्सी पर बैठ जाते है या कुर्सी से उतर जाते हैं. उनको सलाम करते हैं. कभी कभी दिखाने के लिए उनसे गुस्सा भी हो जाते है फिर उनके सामने अपनी दुम भी हिलाने लग जाते हैं तथा उनके साथ साथ अनेक स्थानों की सैर भी करते हैं.
इस प्रकार शेर का राष्ट्रीय पशु होना हमारे लिए सौभाग्य है या दुर्भाग्य यह सोचना तभी संभव है जब मुझे भी कोई राष्ट्रीय ओहदा प्राप्त हो जायेगा. आप सब लोग दुआ करें कि मुझे यह अवसर शीघ्र प्राप्त हो जिससे राष्ट्रीय स्तर के लोगों के बारे में अपनी राय व्यक्त कर सकूं.
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संपर्क:
० शरद तैलंग
२४० माला रोड हाट स्थल
कोटा जं ३२४००२ राजस्थान
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चित्र : कृष्णकुमार अजनबी की कलाकृति
आलेख जायकेदार है।
जवाब देंहटाएंभूल सुधार -भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ है न कि शेर ,मद्रासी वाली भूल से लोगों को काफी भ्रम हो जायेगा !इसलिए यह धृष्ट ता !
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