चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा (6)

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मेरी आत्मकथा चार्ली चैप्लिन   चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा -अनुवाद : सूरज प्रकाश ( पिछले अंक 5 से जारी …) दस उत्सुकता औ...

मेरी आत्मकथा

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चार्ली चैप्लिन

 

चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा

-अनुवाद : सूरज प्रकाश

suraj prakash

(पिछले अंक 5 से जारी…)

दस

उत्सुकता और चिंता से भरा मैं लॉस एंजेल्स पहुँचा और ग्रेट नार्दर्न में एक छोटे से होटल में कमरा ले कर टिक गया। पहली ही शाम को मैंने एक बसमैन होलिडे का टिकट लिया और एम्प्रेस में दूसरा शो देखा। यहीं पर कार्नो कम्पनी अपने प्रदर्शन कर चुकी थी। एटेडेंट ने मुझे पहचान लिया और बाद कुछ ही पल बाद मुझे यह बताने के लिए आया कि मिस्टर सेनेट और मिस मॉबेल नोर्माड मुझसे दो कतारें पीछे बैठे हुए हैं और पूछ रहे हैं कि क्या मैं उनके साथ बैठना पसंद करूंगा? मैं रोमांचित हो गया और जल्दबाजी में, फुसफुसा कर किये गये परिचय के बाद हमने मिल कर शो देखा। शो के खत्म हो जाने के बाद, हम मेन स्ट्रीट पर कुछ कदम चल कर गये और हल्के-फुलके खाने और ड्रिंक के लिए तहखाने में बने बीयर बार में चले गये। मिस्टर सेनेट को यह देख कर धक्का लगा कि मैं इतनी कम उम्र का हूँ।

"मेरा तो ख्याल था कि तुम काफी बूढ़े आदमी होवोगे," उन्होंने कहा। उनकी आवाज़ में परेशानी का तंज था। और इस बात ने मुझे भी परेशानी में डाल दिया क्योंकि सेनेट साहब के सभी कामेडियन बुढ़ऊ से दिखने वाले शख्स होते थे। फ्रेड मेस पचास से ऊपर की उम्र के थे जबकि फोर्ड स्टर्लिंग भी चालीस के पेटे में थे।

"मैं उतने बूढ़े जैसा मेक अप कर सकता हूँ जितना आप चाहें, मैंने जवाब दिया।" अलबत्ता, नोर्माड ज्यादा आश्वस्त करने वाली थी। मेरे बारे में उसके जो भी ख्यालात थे, उसने उन्हें जाहिर नहीं होने दिया। मिस्टर सेनेट ने कहा कि मेरा काम तत्काल ही शुरू नहीं होगा। लेकिन मैं एडेन्डेल में स्टूडियो में आ सकता हूँ और वहाँ लोगों से जान पहचान बढ़ा सकता हूं। जब हम कैफे से चले तो हम मिस्टर सेनेट की भव्य रेसिंग कार में ठुंस गये और उन्होंने मुझे मेरे होटल पर छोड़ दिया।

अगली सुबह, मैं एडेन्डेल के लिए एक स्ट्रीटकार में सवार हुआ। ये जगह लॉस एजेंल्स के एक उप नगर में थी। ये जगह बहुत बड़ी विचित्र सी दिखती थी और मैं तय नहीं कर पाया कि ये गुज़ारे लायक लोगों की रिहायशी बस्ती थी या फिर अर्ध-औद्योगिक बस्ती। इसमें छोटे-छोटे काठ कबाड़ और कबाड़ खाने थे और वहाँ उजाड़ से दिखने वाले छोटे-छोटे खेत थे जिन पर सड़क की तरफ एकाध लकड़ी के खोखे से बने हुए थे। कई जगह पूछताछ करने के बाद मैं कीस्टोन के सामने पहुँच पाया। यहाँ पर भी ढहते हुए खंडहरों वाला मामला था। उसके चारों तरफ हरी बाड़ लगी हुई थी। लगभग डेढ़ सौ वर्ग फुट की। इसका रास्ता एक बगीचे के गलियारे से हो कर जाता था और बीच में एक पुराना बंगला पड़ता था। पूरी जगह ही एडेन्डेल की ही तरह मनहूसियत भरी लग रही थी। मैं सड़क के दूसरी तरफ खड़ा हो कर उसे देखता रहा और मन ही मन उधेड़बुन में लगा रहा कि भीतर जाऊँ या नहीं।

लंच टाइम हो रहा था और मैं औरतों, मर्दों को अपने अपने मेक अप में बंगले के बाहर आते देखता रहा। इनमें कीस्टोन के सुरक्षाकर्मी भी थे। वे सड़क पार कर सामने बने एक छोटे से जनरल स्टोर में जाते और सैंडविच और हॉट डॉग खाते हुऐ बाहर आ जाते। उनमें से कुछ लोग एक दूसरे को ज़ोर ज़ोर से आवाज़ें देकर पुकार रहे थे,"...ओए हैंक, जल्दी करो, स्लिम से कहो, फटाफट आये।"

अचानक ही मैंने शर्मिंदगी महसूस की और तेजी से एक सुरक्षित दूरी पर जा कर एक कोने में खड़ा हो गया और देखने लगा कि शायद मिस्टर सेनेट या मिस नोर्माड बंगले से बाहर निकल कर आ जायें लेकिन वे नज़र नहीं आये। मैं आधे घंटे तक वहाँ खड़ा रहा और फिर मैंने फैसला कर लिया कि होटल में ही वापिस चला जाये। स्टूडियों में जाने और उन सब लोगों का सामना करने की समस्या मेरे लिए पहाड़ सी होती चली जा रही थी।

दो दिन तक मैं स्टूडियो के गेट तक आता रहा लेकिन मेरी इतनी हिम्मत नहीं थी कि भीतर तक जा सकूँ। तीसरे दिन मिस्टर सेनेट ने फोन किया और जानना चाहा कि मैंने अब तक अपनी शक्ल क्यों नहीं दिखायी है। मैंने कोई भी उलटा सीधा बहाना बना दिया। अभी ठीक इसी वक्त चले आओ। मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा। उन्होंने कहा। इसलिए मैं वहाँ जा पहुँचा और धड़ल्ले से बंगले के भीतर घुसता चला गया और मिस्टर सेनेट के लिए पूछा।

वे मुझे देख कर बहुत खुश हुए और मुझे सीधे ही स्टूडियों में ले गये। मेरी खुशी का पारावार न रहा। नरम, सम रौशनी पूरे सेट पर फैली हुई थी। ये रौशनी सफेद कपड़ों की बहुत बड़ी चादरों से आ रही थी जो सूर्य की रौशनी की चमक को छितरा रही थीं और इससे पूरे परिवेश को एक अलौकिक आभा सी मिल रही थी। रौशनी के इस फैलाव से दिन की सी रौशनी का आभास मिल रहा था।

एक या दो अभिनेताओं से मिलवाने के बाद मैं वहाँ चल रहे कारोबार में दिलचस्पी लेने लगा। एक दूसरे से सटे तीन-तीन सेट लगे हुए थे और उन पर तीन कॉमेडी कम्पनियाँ काम कर रही थीं। ये सब ऐसा लग रहा था मानो आप विश्व मेले में कुछ देख रहे हों। एक सेट पर माबेल नोर्माड एक दरवाजा पीट रही थीं और चिल्ला रही थी,"..मुझे भीतर आने दो।" तभी कैमरा रुक गया और सीन पूरा हो गया। तब मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था कि फिल्में इस तरह से टुकड़ों में बना करती हैं।

एक और सेट पर फोर्ड स्टर्लिंग काम कर रहे थे। मुझे उन्हीं की जगह लेनी थी। मिस्टर सेनेट ने उनसे मेरा परिचय कराया। फोर्ड साहब कीस्टोन कम्पनी छोड़ कर जा रहे थे क्योंकि वे युनिवर्सल के साथ मिल कर अपनी खुद की कम्पनी खड़ी करने वाले थे। वे जनता के बीच और स्टूडियो में सबके बीच बहुत अधिक लोकप्रिय थे। लोग बाग उनके सेट के आस-पास घेरा बनाये खड़े थे और उनके अभिनय पर खूब हँस रहे थे। सेनेट मुझे एक तरफ ले गये और अपने काम करने के तौर तरीके के बारे में बताया,"हमारे पास कोई सीनेरियो नहीं होता। हमें बस एक आइडिया आता है, और उसके बाद घटनाओं की स्वाभाविक शृंखला चलती है और चलती रहती है और आखिर में भागा-दौड़ी में खत्म होती है। यही हमारी कॉमेडी का निचोड़ होता है।"

ये तरीका अच्छा था लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मैं पीछा करने के नाटक से नफरत करता था। इससे आदमी का व्यक्तित्व ही गायब हो जाता है, नास पिट जाता है उसका। अब चूंकि मैं फिल्मों के बारे में वैसे ही कम जानता था, लेकिन इतना ज़रूर जानता था कि कोई भी चीज़ व्यक्तित्व पर हावी नहीं होती।

उस दिन मैं एक सेट से दूसरे सेट के बीच भटकता रहा और कम्पनियों को काम करते देखता रहा। ऐसा लग रहा था मानों वे सब के सब स्टर्लिंग की ही नकल कर रहे हों। मैं इससे चिंता में पड़ गया, क्योंकि उनकी स्टाइल मुझे माफिक नहीं आती थी। वे एक परेशान हाल डच मेन की भूमिका कर रहे थे, और डच उच्चारण में दृश्यों के ज़रिये होंठ हिलाने का अभिनय करते थे। हालांकि ये सब मज़ाक भरा होता था लेकिन मूक फिल्मों में खो जाता था। मैं इस बात को ले कर परेशान था कि मिस्टर सेनेट मुझसे क्या उम्मीद करते हैं। उन्होंने मेरा काम देखा हुआ था और जानते ही होंगे कि मैं फोर्ड टाइप की कॉमेडी के लायक नहीं था। लेकिन मेरी स्टाइल तो ठीक उसके विपरीत थी। इसके बावजूद स्टूडियो में सोची या विचारी गयी कोई भी कहानी या स्थिति सायास या अनायास ही फोर्ड साहेब को ही ध्यान में रख कर तय की जाती थी। यहाँ तक कि रोस्को ऑरबक्कल भी स्टर्लिंग की ही नकल कर रहे थे।

स्टूडियो निश्चित ही पहले कोई खेत रहा होगा। माबेल नोर्माड का ड्रेसिंग रूम दूर एक पुराने बंगले में था और इससे सटा हुआ एक दूसरा कमरा था जहाँ अभिनेत्रियों की मंडली की दूसरी महिलाओं के तैयार होने की जगह थी। बंगले के ठीक सामने ही कलाकारों की मंडली के जूनियर स्टाफ और कीस्टोन के सुरक्षा कर्मियों के लिए मुख्य ड्रेसिंग रूम था जो शायद कभी खलिहान रहा होगा। इनमें ज्यादातर लोग सर्कस के भूतपूर्व जोकर और ईनामी कुश्तीबाज रहे थे। मुझे स्टार ड्रेसिंग रूम दिया गया। इसे पहले मैक सेनेट, फोर्ड स्टर्लिंग और रोस्को ऑरबक्क्ल इस्तेमाल करते रहे थे। यह भी एक खलिहाननुमा ढांचा था जो शायद कभी अश्व सज्जा कक्ष होगा। माबेल नोर्माड के अलावा वहां दूसरी कई खूबसूरत लड़कियाँ भी थीं। ये सौन्दर्य और पाशविकता का अद्भुत और अनूठा संगम था।

कई दिन तक मैं स्टूडियो दर स्टूडियो भटकता रहा और हैरान परेशान होता रहा कि आखिर काम कब शुरू होगा। कई बार मैं स्टेज पर आते जाते सेनेट साहब से टकरा जाता, लेकिन वे मेरी तरफ सूनी निगाहों से देखते, और अपने ही ख्यालों में खोये रहते। मैं इस असुविधाजनक ख्याल से ही परेशान हो रहा था कि वे ये समझते होंगे कि उन्होंने मुझे रख कर गलती ही की है और वे मुझे इस हाल से निकालने के लिए कोई कोशिश भी तो नहीं कर रहे थे।

रोज़ दर रोज़ मेरी मानसिक शांति सेनेट साहब पर ही निर्भर करती थी। अगर हम कहीं एक दूसरे से रास्ते में टकरा भी गये तो वे मुस्कुरा देते और मेरी उम्मीदें बढ़ जातीं। बाकी कम्पनी का जो रुख था वह देखो और इंतज़ार करो वाला था लेकिन कुछ लोगों की निगाह में मैं फोर्ड के गलत विकल्प के रूप में ही चुन लिया गया था।

शनिवार आया तो सेनेट साहब बहुत ही उदारमना थे। उन्होंने कहा,"फ्रंट ऑफिस में जाओ और अपना चेक ले लो।" मैंने उनसे कहा कि मैं चेक के बजाये काम पाने के बारे में ज्यादा परेशान हूं। मैं फोर्ड स्टर्लिंग की नकल करने के बारे में भी बात करना चाहता था लेकिन उन्होंने मुझे ये कह कर दरकिनार कर दिया,"चिंता मत करो, हम जल्दी ही तुम्हें काम भी देंगे।"

निट्ठले बैठे हुए नौ दिन बीत चुके थे और मेरा तनाव मेरी शिराओं पर आ रहा था। अलबत्ता, फोर्ड साहब मुझे सांत्वना देते, और काम के बाद अक्सर वे मुझे शहर तक लिफ्ट भी दे देते। हम रास्ते में एलेक्ज़ैंड्रा बार में ड्रिंक के लिए रुकते, उनके कई मित्रों से मिलते। उनमें से एक थे मिस्टर एल्मर एल्सवर्थ जिन्हें मैं शुरू शुरू में तो नापसंद करता रहा और उन्हें कुछ हद तक फूहड़ समझता रहा, लेकिन वे मुझ पर मज़ाक करते हुए फब्तियाँ कसते,"मेरा ख्याल है आप फोर्ड की जगह ले रहे हैं। ठीक है, आप हंसोड़ हैं क्या?"

"विनम्रता इस बात की इजाज़त नहीं देती," मैंने चुटकी ली। इस तरह ही घिसाई बहुत तकलीफदेह थी, खासकर फोर्ड साहब मौजूदगी में।

लेकिन पूरी सौम्यता से उन्होंने मुझे इस हालत से यह कह कर बाहर निकाल दिया,"क्या आपने इन्हें एम्प्रेस में शराबी की भूमिका में नहीं देखा है? बहुत हंसाया इन्होंने उसमें।"

"वैसे तो इन्होंने मुझे अब तक नहीं हंसाया है।" एल्सवर्थ बोले।

वे मोटे, बेढंगे आदमी थे जो ग्लैंडर रोग से पीड़ित दिखते थे, जिसमें नीचे का जबड़ा घोड़े की तरह सूज जाता है और नाक से पानी आने लगता है। उनका चेहरा उदासी से भरा और मनहूसियत के भाव लिये होता था। उनके चेहरे पर कोई बाल नहीं थे, उदास आँखें, और लटका चेहरा, और ऐसी मुस्कुराहट जिससे लगे कि वे साहित्य, वित्त और राजनीति पर कोई तोप चीज़ हैं। देश में सबसे ज्यादा जानकार बस, वही हैं और उन्हें हास्य बोध की खूब परख है। अलबत्ता, मुझे ये सब नहीं जमा और मैं तय किया कि मैं उनसे बचने की कोशिश करूंगा। लेकिन एलेक्जेंड्रा बार में एक रात, वे बोले,"अब तक ये जहाज पानी में नहीं उतरा है?"

"अब तक तो नहीं," मैं बेचैन हंसी हंसा।

"ठीक है, आप हंसोड़ ही बने रहो।"

इन महाशय से काफी कुछ सुन चुका था मैं। अब तक तो मैंने भी तय किया कि इनकी कड़वी खुराक का एक घूंट भी आज पिला ही दिया जाये।

"अच्छी बात है, आप जितने हंसोड़ दिखते हैं, उसके आधे में से भी मेरा काम चल जायेगा।"

"हुंह, ताने मारने वाला मज़ाक? ठीक है, ठीक है, मैं इसके बाद उनके लिए एक ड्रिंक खरीद दूंगा।"

और आखिर वे पल आ ही गये। सेनेट साहब माबेल के साथ लोकेशन पर बाहर गये हुए थे और फोर्ड स्टर्लिंग कम्पनी भी वहाँ नहीं थी। और इस हिसाब से स्टूडियो में कोई भी नहीं था। कीस्टोन के सबसे वरिष्ठ निर्देशक हेनरी लेहरमैन सेनेट के बाद एक नयी फिल्म शुरू करने वाले थे और चाहते थे कि मैं उसमें अखबार के एक रिपोर्टर की भूमिका करूं। लेहरमैन बहुत ही घमंडी किस्म के आदमी थे और इस बात पर उन्हें बहुत गर्व था कि उन्होंने मशीनी तरीके की कुछ बहुत ही सफल कॉमेडी फिल्में बनायी हैं। वे कहा करते थे कि उन्हें व्यक्तित्वों की ज़रूरत नहीं होती और वे अपने लिए हंसी का सारा सामान मैकेनिकल प्रभावों से और संपादन से पैदा कर सकते हैं।

हमारे पास कोई कहानी नहीं थी। सारा किस्सा प्रिंटिंग प्रेस के आस-पास बुना जाना था जिसमें यहाँ वहाँ हंसी के कुछ पल जुटाये जाने थे। मैंने एक हल्का फ्रॉक कोट पहना, एक टॉप हैट लगाया, और नींबू अटकाने वाली मूंछें रखीं। जब हमने काम शुरू किया तो मैं देख पा रहा था कि लेहरमेन साहब के पास नये नये विचारों का अकाल था। और ये बात भी थी कि चूंकि मैं कीस्टोन में नया था तो सुझाव देने के लिए छटपटा रहा था, परेशान था कि सुझाव दूँ या नहीं। और यहीं पर आकर मेरी लेहरमैन साहब से टकराहट शुरू हुई। एक दृश्य था जिसमें मुझे अखबार के सम्पादक का साक्षात्कार लेना था और अपनी तरफ से जितना भी सोचा जा सकता था, मैंने हँसी के पल डालने की कोशिश की। और यहां तक किया कि बाकी कलाकारों को भी सुझाव देने की ज़हमत भी उठायी। हालांकि फिल्म तीन दिन में पूरी हो गयी थी, मुझे लगा कि हम कुछ बहुत ही हँसी-मज़ाक की चीजें डालने में सफल रहे थे। लेकिन जब मैंने तैयार फिल्म देखी तो मेरा दिल डूब गया। इसका कारण यह था कि सम्पादक महोदय ने उसमें इतनी बुरी तरह से काट-छाँट कर दी थी कि उसे पहचाना ही नहीं जा सकता था। मेरे हँसी मज़ाक वाले सभी दृश्यों के ठीक बीच में कैंची चलायी गयी थी। मेरा तो दिमाग ही खराब हो गया। और सोच-सोच कर परेशान होने लगा कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया था। लेहरमैन साहब ने कई बरस बाद इस बात को स्वयं स्वीकार किया था कि उन्होंने ये सब जानबूझ कर किया था क्योंकि, उनके विचार से मैं कुछ ज्यादा ही सयाना बन रहा था।

लेहरमैन साहब के साथ जिस दिन मैंने अपना काम खत्म किया, उसके एक दिन बाद सेनेट साहब लोकेशन से वापिस आये। फोर्ड साहब एक सेट पर थे और ऑरबक्कल दूसरे सेट पर। पूरा का पूरा सेट तीनों कम्पनियों के काम के कारण व्यस्त था और वहाँ तिल धरने की जगह नहीं थी। मैं सड़क छाप कपड़ों में था और मेरे पास कोई काम धाम नहीं था। इसलिए मैं एक ऐसी जगह पर जा कर खड़ा हो गया जहाँ से सेनेट साहब की मुझ पर निगाह पड़ सके। वे माबेल के साथ खड़े थे और एक होटल लॉबी का सेट देख रहे थे और अपने सिगार का सिरा कुतर रहे थे।

"हमें यहाँ कुछ हँसी चाहिये।" उन्होंने कहा और फिर मेरी तरफ मुड़े,"कॉमेडी वाला मेक अप कर लो। कुछ भी चलेगा।"

मुझे रत्ती भर भी ख्याल नहीं था कि किस तरह का बाना धारण किया जाये। मुझे प्रेस रिपोर्टर वाला अपना गेट अप अच्छा नहीं लगा था। अलबत्ता, ड्रेसिंग रूम की तरफ जाते समय मैंने सोचा कि मैं बैगी पैंट पहन लूँ, बड़े-बड़े जूते हों, हाथ में छड़ी हो, तंग कोट हो, हैट छोटा सा हो, और जूते बड़े। मैं अभी ये तय नहीं कर पाया था कि मुझे जवान दिखना चाहिये या बूढ़ा, लेकिन मुझे याद आया कि सेनेट साहब मुझसे उम्मीद कर रहे थे कि मैं काफी बूढ़ा लगूँ, मैंने छोटी छोटी मूंछें भी लगाने का फैसला किया जिससे, मेरे ख्याल से, बिना अपने हाव-भाव छुपाये मैं अपनी उम्र को ज्यादा दिखा सकता था।

मुझे चरित्र के बारे में कोई आइडिया नहीं था। लेकिन ज्यों ही मैं तैयार हुआ, कपड़ों से और मेक अप से मुझे पता चल गया कि इस बाने से किस किस्म का व्यक्ति बन चुका है। मैं उसे जानने लग गया और जब तक मैं स्टेज तक चल कर आता, उस व्यक्तित्व का पूरी तरह से जन्म हो चुका था। जब मैं सेनेट साहब के सामने आया तो मैंने चरित्र को ही जीना शुरू कर दिया और रौब से चलने लगा। अपनी छड़ी का हिलाते हुए और उनके आगे चहल कदमी करते हुए मेरे दिमाग से हँसी भरी स्थितियों और मज़ाकों का सोता सा फूटने लगा।

मैक सेनेट की सफलता का राज़ ये था कि उनमें गज़ब का उत्साह था। वे एक बहुत ही बेहतरीन श्रोता थे और जो बात भी उन्हें मज़ाकिया लगती, उस पर खुल कर हँसते थे। वे खड़े-खड़े तब तक खिलखिलाते रहे जब तक उनका पूरा शरीर हिलने डुलने नहीं लग गया। उन्होंने मेरा उत्साह बढ़ाया और मुझे चरित्र समझाया,"तुम जानते हो कि इस आदमी के व्यक्तित्व के कई पहलु हैं। वह घुमक्कड़, मस्त मौला है, भला आदमी है, कवि है, स्वप्नजीवी है, अकेला जीव है, हमेशा रोमांस और रोमांच की उम्मीदें लगाये रहता है। वह तुम्हें इस बात की यकीन दिला देगा कि वह वैज्ञानिक है, संगीतज्ञ है, ड्यूक है, पोलो खिलाड़ी है, अलबत्ता, वह सड़क पर से सिगरेटें उठा कर पीने वाले और किसी बच्चे से उसकी टॉफी छीन लेने वाले से ज्यादा कुछ नहीं। और हाँ, यदि मौका आये तो वह किसी भली औरत को उसके पिछवाड़े लात भी जमा सकता है, लेकिन बेइंतहा गुस्से में ही।

मैं दस मिनट या उससे भी ज्यादा देर तक यही करता रहा, और सेनेट साहब लगातार हँसते रहे, खिलखिलाते रहे,"ठीक है, उन्होंने कहा,"चले जाओ सेट पर और देखो कि तुम क्या कर सकते हो।"

लेहरमैन की फिल्म की ही तरह मैं इस फिल्म के बारे में भी कुछ भी नहीं जानता था सिवाय इसके कि माबेल नोर्माड अपने पति और अपने प्रेमी के बीच फंस जाती है।

किसी भी कॉमेडी में सबसे महत्त्वपूर्ण होता है नज़रिया। लेकिन हर बार नज़रिया ढूंढना आसान भी नहीं होता। अलबत्ता, होटल लॉबी में मैंने यह महसूस किया कि मैं छलिया हूँ जो कि किसी मेहमान की तरह पोज़ कर रहा है, लेकिन वास्तविकता में मैं एक ट्रैम्प था जो थोड़ा बहुत आश्रय चाहता है। मैं प्रवेश करता हूं और एक महिला के पैर से ठोकर खा जाता हूँ, मैं मुड़ता हूँ और जैसे माफी माँगते हुए अपना हैट उठाता हूँ और फिर मुड़ता हूं और इस बार एक पीकदान से टकरा जाता हूँ। और इस बार मैं पीकदान के आगे हैट उठाकर माफी मांगता हूँ। कैमरे के पीछे वे लोग हँसने लगे।

वहाँ पर काफी भीड़ जमा हो गयी थी। वहाँ न केवल उन दूसरी कम्पनियों के कलाकार अपना अपना काम छोड़ कर वहीं जुट आये थे बल्कि स्टेज पर काम करने वाले बढ़ई और वार्डरोब में काम करने वालों ने भी अच्छी खासी भीड़ जुटा ली थी। और ये सबसे बड़ा पुरस्कार था। और जब तक हमने रिहर्सल खत्म की, हमारे आस-पास बहुत बड़ी संख्या में दर्शक खड़े हुए हँस रहे थे। जल्दी ही मैंने फोर्ड साहब को दूसरे लोगों के कंधों के पीछे से उचक कर देखते हुए देखा। और जब ये सब खत्म हुआ तो मैं जानता था, मैं किला फतह कर चुका हूँ।

दिन के अंत में जब मैं अपने ड्रेसिंग रूम में गया तो फोर्ड स्टर्लिंग और ऑरबक्कल अपने-अपने मेकअप उतार रहे थे। बहुत कम बातें हुई लेकिन पूरे माहौल में एक लहर चल रही थी। फोर्ड तथा रोस्को, दोनों ने मुझे पसंद किया। लेकिन ईमानदारी से कहूँ तो वे दोनों ही किसी भीतरी संघर्ष से जुझ रहे थे।

ये एक लम्बा दृश्य था जो पूरे पिचहत्तर फुट तक चला। बाद में लेहरमैन और सेनेट साहब में बहस होती रही कि क्या इस पूरे दृश्य को ज्यों का त्यों जाने दिया जाये क्योंकि उस समय अमूमन हँसी मज़ाक के दृश्यों की लम्बाई मुश्किल से दस फुट हुआ करती थी।

"ये अच्छा मज़ाक भरा है," मैंने कहा,"क्या लम्बाई से वाकई फर्क पड़ता है?" तब उन्होंने तय किया कि इस पूरे दृश्य को जस का तस पिचहत्तर फुट की लम्बाई तक जाने दिया जाये। चूँकि मेरे कपड़े मेरे चरित्र से मेल खा रहे थे, मैंने तभी और उसी वक्त ही तय कर लिया कि भले ही कुछ भी हो जाये, मैं अपनी इसी ढब को बनाये रखूँगा।

उस रात मैं स्ट्रीटकार में अपने घर लौटा तो मेरे साथ हमारी कम्पनी में काम करने वाला एक जूनियर कलाकार था। उसने कहा,"दोस्त, आपने कुछ नयी शुरुआत कर दी है। अब तक ऐसा कभी भी नहीं हुआ था कि सेट पर इस तरह की हँसी के मौके आये हों। फोर्ड स्टर्लिंग साहब के लिए भी नहीं। आप ज़रा उनका चेहरा तो देखते, देखने लायक था।"

"अब हम यही उम्मीद करें कि लोग बाग थियेटर में भी इसी तरह से हँसते हैं?" मैंने अपनी खुशी को दबाते हुए कहा।

कुछ ही दिन बाद, एलेक्जेड्रा बार में मैंने अपने कॉमन दोस्त एल्मर एल्सवर्थ को मेरे चरित्र के बारे में फोर्ड साहब को कानाफूसी करते सुना,"जनाब ने बैगी पैंट पहनी थी, सपाट पैर, और उनकी हालत खस्ता थी, आप देखते तो बंदा अच्छा खासा हरामी, धूल-गंदगी में सना लग रहा था। इस तरह के खीझ भरे हाव भाव दिखाता है मानो इसकी बगल में चीटियाँ काट रही हों। अच्छा खासा कार्टून लगता है।"

मेरा चरित्र थोड़ा अलग था और अमेरिकी जनता के लिए अनजाना भी। यहाँ तक कि मैं भी उससे कहाँ परिचित था। लेकिन वे कपड़े पहन लेने के बाद मैं यही महसूस करता था कि मैं एक वास्तविकता हूँ, एक जीवित व्यक्ति हूँ। दरअसल, जब मैं वे कपड़े पहन लेता और ट्रैम्प का बाना धारण कर लेता तो मुझे तरह तरह के मज़ाकिया ख्याल आने लगते जिनके बारे में मैं कभी सोच भी नहीं सकता था।

मैं उस जूनियर कलाकार के बहुत करीब आ गया था और हर रात स्ट्रीटकार में घर वापिस आते समय वह मेरी कामेडी के बारे में दिन भर स्टूड़ियों में हुई प्रतिक्रियाओं के बारे में बताता और बातें करता," वो तो कमाल का ही आइडिया था, दोस्त, तुम्हारा वे फिंगर बॉल में उंगलियां डुबोना और उस बुढ़ऊ की मूंछों से पूछ लेना।...आज तक किसी ने इस तरह की बातों के बारे में सोचा भी नहीं होगा।" और इस तरह से वह ये सारी बातें बताता रहता और मुझे हवा भरे गुब्बारे में ऊपर चढ़ाता रहता।

सेनेट साहब के निर्देशन में मैं सहज महसूस करता था क्योंकि उनके साथ सेट पर सब कुछ सहज स्फूर्त तय होता चला जाता था। चूँकि कोई भी अपने खुद के बारे में पाज़िटिव या अंतिम रूप से पक्का नहीं होता था (यहाँ तक कि निर्देशक भी नहीं,) इसलिए मैं अपने बारे में यह मान कर चलता कि मैं दूसरों से ज्यादा जानता हूँ। मैंने सुझाव देने शुरू कर दिये जिन्हें सेनेट साहब सहर्ष स्वीकार कर लेते। इस तरह से मुझमें यह विश्वास पनपने लगा कि मैं सृजन भी कर सकता हूँ और अपनी खुद की कहानियाँ भी लिख सकता हूँ। सेनेट महोदय ने निश्चय ही इस विश्वास को प्रेरित किया। लेकिन हालांकि मैं सेनेट साहब को खुश कर चुका था, जनता के दरबार में जा कर उसे खुश करना अभी बाकी था।

अगली फिल्म में मुझे फिर से लेहरमैन के हवाले कर दिया गया। वे सेनेट साहब को छोड़ कर स्टर्लिंग के पास जा रहे थे हालांकि वे सेनेट के साथ अपने करार के खत्म होने की तारीख के बाद भी दो हफ़्ते तक रुकने के लिए तैयार हो गये थे। जब मैंने उनके साथ फिर से काम करना शुरू किया तो मैं एक से एक नायाब सुझावों से भरा हुआ था। वे मेरी बात सुनते और मुस्कुरा देते लेकिन उन्हें स्वीकार न करते। वे कहा करते,"हो सकता है इस तरह की बातें थियेटर में चल जाये लेकिन फिल्मों में हमारे पास इन सब बातें के लिए फुर्सत नहीं है। हमें हमेशा गतिशील रहना चाहता हूँ। कॉमेडी पीछा करने के लिए एक बहाना है।"

मैं उनकी इस सपाटबयानी से सहमत नहीं था,"हास्य तो हास्य है।" मैं तर्क देता,"चाहे वह फिल्मों में हो या थियेटर में।" लेकिन वे अपनी ही बातों पर अड़े रहे, वही करने पर तुले रहे जो कीस्टोन में होता आया था। सारे एक्शन तेज गति से होने चाहिये। इसका यही मतलब होता कि लगातार दौड़ते रहो, घरों की छतों पर, स्ट्रीटकारों में कूदो, दौड़ो, नदियों में छलांगें मारो, और खम्भों पर से कूदो। उनकी इस कॉमेडी की थ्योरी के बावजूद मैं किसी न किसी तरह से अकेले की कॉमेडी के लिए एकाध गुंजाइश निकाल ही लेता था, लेकिन हमेशा की तरह, वे उन्हें संपादन कक्ष में कटवा ही लेते।

मैं नहीं समझता कि लेहरमैन ने मेरे बारे में सेनेट साहब को कोई बहुत अच्छी रिपोर्ट दी होगी। लेहरमैन के बाद मुझे एक अन्य निर्देशक को सौंप दिया गया। मिस्टर निकोलस साठ के पेटे में एक अधेड़ आदमी थे जो मोशन फिल्मों की शुरुआत से ही उनसे जुड़े हुए थे। मेरे सामने उनके साथ भी वही दिक्कत थी। उनके पास कुल मिला कर हँसाने का एक ही तरीका होता था। इसमें वे कॉमेडियन को गर्दन से पकड़ते थे और एक सीन से दूसरे सीन तक उसे घूँसे ही मारते जाते थे। मैं इससे बारीक बातें उन्हें बताना चाहता था, लेकिन वे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। "हमारे पास टाइम नहीं है, टाइम नहीं है।" वे चिल्लाते। वे बस किसी तरह से फोर्ड स्टर्लिंग की नकल भर चाहते। हालांकि मैंने मामूली सा ही विरोध जतलाया था लेकिन लगता है, वे जाकर सेनेट साहब के कान भर आये कि मुझ जैसे सुअर के पिल्ले के साथ काम करना उनके बस की बात नहीं।

लगभग इसी समय वह फिल्म जो सेनेट साहब ने निर्देशित की थी, माबेल्स स्ट्रेंज प्रेडिक्टामेट, उप नगरों में दिखायी गयी। भय और घबड़ाहट के मिले जुले भाव के साथ मैंने इसे दर्शकों के बीच बैठ कर देखा। जब फोर्ड स्टर्लिंग पर्दे पर आते तो उनका स्वागत हमेशा उत्साह और हँसी के साथ होता था लेकिन मेरे हिस्से में ठंडा मौन ही आया। वह सब हँसी मज़ाक के सीन जो मैंने होटल लॉबी में किये थे, मुश्किल से एकाध मुस्कुराहट ही जुटा पाये। लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ी, दर्शक पहले दबी हंसी हँसे, फिर खुल कर हँसे, और फिल्म के खत्म होते न होते, एक दो ज़ोर के ठहाके लगे। उस प्रदर्शन में मैंने पाया कि दर्शक नये आगंतुक को एकदम नकार नहीं देते हैं।

मैं दुविधा में था कि ये पहला प्रयास सेनेट साहब की उम्मीदों पर खरा उतरा या नहीं। मेरा तो यही मानना है कि वे निराश ही हुए थे। वे एकाध दिन के बाद मेरे पास आये और बोले,"सुनो, सब लोगों का कहना है कि तुम्हारे साथ काम करना मुश्किल है।" मैं उन्हें ये समझाना चाहता था कि मैं सतर्क था और सिर्फ फिल्म की बेहतरी के लिए ही काम कर रहा था। "वो तो ठीक है, सेनेट बोले, "तुम सिर्फ वही करो जो तुम्हें करने के लिए कहा जाये। उसी में हमारी तसल्ली हो जायेगी।" लेकिन अगले ही दिन निकोलस के साथ मेरी एक और झड़प हो गयी और मैं फट पड़ा,"आप मुझसे जो कुछ करवाना चाहते हें, वह तीन डॉलर रोज़ कमाने वाला कोई भी एक्स्ट्रा कर सकता है।" मैंने घोषणा कर दी,"मैं कुछ ऐसा करना चाहता हूँ जिसमें कुछ अक्ल का काम हो, सिर्फ इधर उधर मारा-मारा गिरते पड़ते रहना और स्ट्रीटकार में से गिरना, ये सब मेरे बस का नहीं। मुझे हफ़्ते के एक सौ पचास डॉलर सिर्फ इसी के लिए नहीं मिलते।"

बेचारा "पॉप" निकोलस, जैसा कि हम उसे कहा करते थे, उसकी तो हालत खराब थी। "मैं पिछले दस बरस से इस धंधे में हूँ।" वे कहने लगे, "तुम इन सबके बारे में जानते ही क्या हो?" मैंने उसे प्यार से समझाने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मैंने कास्ट के बाकी कलाकारों को भी समझाने की कोशिश की लेकिन वे सब भी मेरे खिलाफ थे। "ओह, वह जानता है, वही जानता है, वह पिछले कई बरस से इसे लाइन में है," एक बूढ़े कलाकार ने मुझे समझाया।

मैंने कुल मिला कर पाँच फ़िल्में बनायीं और उन सबमें किसी तरह से जोड़-तोड़ करके अपना खुद का कुछ न कुछ कॉमेडी का मसाला डाल ही दिया। बेशक उसका संपादन कक्ष में बैठे कसाई जो भी करते रहे हों। अब चूँकि मैं संपादन कक्ष में उसकी संपादन कला से वाकिफ हो चुका था इसलिए मैं सीन के शुरू में और आखिर में ही अपना हास्य का मसाला डाल देता था ताकि उसे काटने में उन्हें अच्छी खासी तकलीफ हो। मैं सीखने के लिहाज से कोई भी मौका नहीं चूकता था। मैं डेवलपिंग कक्ष से और संपादन कक्ष के अंदर-बाहर होता रहा था और देखता था कि संपादन करने वाला किस तरह से कटे हुए टुकड़ों को आपस में जोड़ता है।

अब मैं इस चिंता में था कि अपनी खुद की फिल्में लिखूँ और उनका निर्देशन भी करूँ। इस लिहाज से मैंने सेनेट साहब से बात की। लेकिन वे तो इस बारे में कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थे। इसके बजाये उन्होंने मुझे माबेल नोर्माड के हवाले कर दिया। उन्होंने अभी अभी ही अपनी खुद की फिल्मों का निर्देशन शुरू किया था। इस बात ने मुझे चित्त कर दिया क्योंकि बेशक माबेल बला की खूबसूरत थीं, उनकी निर्देशन क्षमता पर मुझे शक था। इसलिए पहले ही दिन सिर मुंडाते ही ओले पड़े। होनी हो कर रही। हम लॉस एंजेल्स के एक उप नगर में लोकेशन पर थे। एक सीन में माबेल मुझसे चाहती थीं कि मैं सड़क पर एक हौज और पानी ले कर खड़ा होऊं ताकि विलेन की कार उस पर फिसल जाये। मैंने सुझाव दिया कि मैं हौज पाइप पर ही खड़ा हो जाता हूँ ताकि पानी बाहर नहीं आयेगा और जब मैं अनजाने में उसके नोज़ल को देखता हूँ और हौज पाइप के ऊपर से पैर हटाता हूँ तो पानी की बौछार अचानक मेरे चेहरे को भिगो देती है। लेकिन उसने ये कह कर मेरा मुँह बंद कर दिया,"हमारे पास वक्त नहीं है। हमारे पास वक्त नहीं है। वही करो जो आपसे करने को कहा गया है।"

ये बहुत बड़ी बात थी। मैं इसे सहन नहीं कर सकता था और वो भी ऐसी खूबसूरत लड़की से,"माफ करना, मिस नोर्माड, मैं वही नहीं करूंगा जो मुझे करने के लिए कहा गया है। मुझे नहीं लगता कि आप इतनी लियाकत रखती हैं कि मुझे बता सकें कि मुझे क्या करना चाहिये।"

ये दृश्य सड़क के बीचों-बीच फिल्माया जाना था और मैं इसे छोड़ कर चल दिया और एक पुलिया पर जा कर बैठ गया। प्यारी माबेल, उस वक्त बिचारी मात्र बीस बरस की थी, खूबसूरत और आकर्षक, हर दिल अजीज, हर कोई उसे चाहता था, अब वह कैमरे के पास हैरान परेशान बैठी हुई थी। आज तक उससे किसी ने सीधे बात तक नहीं की थी, मैं भी उसकी खूबसूरती, उसके सौन्दर्य और उसके आकर्षण का कायल था, और मेरे भी दिल के किसी कोने में उसके नाम के चिराग जलते थे, लेकिन ये तो मेरा काम था। तत्काल ही पूरा का पूरा स्टाफ माबेल के चारों तरफ झुंड बना कर खड़ा हो गया और सम्मेलन होने लगा। माबेल ने मुझे बाद में बताया था कि एक दो एक्स्ट्रा तो मुझे तभी के तभी रगेदना चाहते थे। लेकिन उसी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया। तब उसने अपने एक सहायक को मेरे पास यह पूछने के लिए भेजा कि क्या मैं काम जारी रखने के लिए इच्छुक हूँ। मैं सड़क पार कर उस तरफ गया जहाँ वह बैठी हुई थी।,"मैं शर्मिंदा हूँ," मैंने माफी सी मांगते हुए कहा, "मुझे नहीं लगता कि ये मज़ाकिया है या नहीं लेकिन अगर आप मुझे एकाध मजाकिया दृश्यों के बारे में सुझाव देने की अनुमति दें तो...।"

उसने कोई बहस नहीं की। "ठीक है," उसने कहा,"अगर आप वह नहीं करते जो आपको बताया गया है तो हम स्टूडियो वापिस चले चलते हैं।" हालांकि स्थिति खराब थी, मैंने हार मान ली और मैंने कंधे उचकाये। हमने दिन के काम का ज्यादा नुकसान नहीं किया, क्योंकि हम सुबह नौ बजे से शूटिंग कर रहे थे। अब शाम के पाँच बजने को आये थे, और सूर्य डूबने की तैयारी कर रहा था।

स्टूडियो में मैं अपना ग्रीज़ पेंट उतार रहा था कि सेनेट साहब ड्रेसिंग रूम में दनदनाते हुए आये और एकदम फट पड़े,"ये सब मैं क्या सुन रहा हूँ? क्या लफड़ा है ये सब?"

मैंने समझाने की कोशिश की,"कहानी में एकाध हल्के फुल्के हास्य की ज़रूरत है।" मैंने बताया, "लेकिन मिस नोर्माड तो कुछ सुनने के लिए तैयार ही नहीं है।"

"आप सिर्फ वही कीजिये जो आपको करने के लिए कहा जाता है, नहीं तो यहाँ से दफा हो जाइये, करार होता है या नहीं, भाड़ में जाये करार।" वे बोले।

मैं बहुत ही शांत बना हुआ था,"मिस्टर सेनेट, मैंने जवाब दिया,"मैं यहाँ आने से पहले भी अपनी रोज़ी रोटी कमा रहा था, और अगर मुझे निकाल भी दिया जाता है, तो ठीक है, मैं बाहर हो जाता हूँ। लेकिन मैं विवेकशील हूँ और मैं भी आप ही की तरह फिल्म को बेहतर बनाने की ही उतना ही उत्सुक हूँ।"

बिना एक शब्द और बोले उन्होंने ज़ोर से दरवाजा बंद कर दिया।

उस रात स्ट्रीटकार में घर जाते समय मैंने अपने दोस्त को बताया कि क्या हुआ था।

"बहुत बुरा हुआ। आप तो बहुत ही अच्छा करने जा रहे थे।" उसने कहा।

"क्या ख्याल है, वे मुझे निकाल बाहर करेंगे?" मैंने खुश होते हुए कहा ताकि अपनी चिंता पर परदा डाल सकूं।

"मुझे इस बात पर कोई हैरानी नहीं होगी। जब उन्हें आपके ड्रेसिंग रूम से जाते हुए देखा तो वे अच्छे खासे उखड़े हुए नज़र आ रहे थे।"

"मेरे साथ ये भी चलेगा। मेरे खीसे में पन्द्रह सौ डॉलर हैं और ये मेरे इंगलैंड वापिस जाने के किराये के लिए काफी हैं। अलबत्ता, मैं कल तो आऊंगा ही और अगर उन्हें मेरी ज़रूरत नहीं है तो यही सही .

अगले दिन सुबह मुझे आठ बजे काम पर हाज़िर होना था, लेकिन मैं तय नहीं कर पा रहा था कि जाऊं या नहीं, इसलिए मैं ड्रेसिंग रूम में बिना कोई मेक-अप किये बैठा रहा। आठ बजने में पाँच मिनट पर सेनेट साहब ने दरवाजे पर अपना चेहरा दिखाया। "चार्ली, मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ। चलो, माबेल के ड्रेसिंग रूम में चलें।" उनकी टोन आश्चर्यजनक रूप से दोस्ताना थी।

"कहिये मिस्टर सेनेट," मैंने उनके पीछे जाते हुए कहा।

माबेल वहाँ पर नहीं थी। उस वक्त वह प्रोजेक्शन रूम में रशेस देख रही थी।

"सुनो, मैक बोले,"माबेल तुम्हारी बहुत बड़ी प्रशंसक है। और हम सब भी तुम्हें बहुत चाहते हैं। हम जानते हैं कि तुम बेहतरीन कलाकार हो।"

मैं इस अचानक हुए परिर्वतन को देख कर हैरान था और मैं तत्काल पिघलने भी लगा,"मेरे मन में भी माबेल के लिए बहुत अधिक सम्मान और प्रशंसा के भाव हैं," मैंने कहा, "लेकिन मुझे नहीं लगता कि उसमें इतनी क्षमता है कि निर्देशन कर सके। आखिर वह एकदम युवा ही तो है।"

"तुम जो भी सोचो, लेकिन भगवान के लिए अपने अहं को पी जाओ और इस पचड़े में से निकलने में हमारी मदद करो।" सेनेट साहब मेरे कंधे पर धौल धप्पा करते हुए बोले।

"..और मैं भी तो यही करने की कोशिश कर रहा हूँ।"

"तो ठीक है। उसके साथ संबंध ठीक रखने के लिए अपनी ओर से पूरी कोशिश करो।"

"सुनिये, अगर मुझे ही निर्देशन करने का भार सौंप देंगे तो आपको किसी भी किस्म की तकलीफ नहीं होगी।" मैंने कह ही दिया।

मैक एक पल के लिए ठिठके,"और अगर हम फिल्म रिलीज़ न कर पाये तो उसका हरजाना कौन भरेगा?"

"मैं उठाऊंगा खर्चा।" मैंने जवाब दिया,"मैं किसी भी बैंक में पन्द्रह सौ डॉलर जमा करवा देता हूँ। और अगर आप फिल्म रिलीज़ न कर पाये तो आप ये पैसे रख सकते हैं।"

मैक एक पल के लिए सोचने लग,"कोई कहानी है तुम्हारे पास?"

"बेशक, आप जितनी मर्जी कहानियां चाहें।"

"तो ठीक है।" मैक बोले,"माबेल के साथ ये फिल्म पूरी कर लो फिर हम देखते हैं।"

हम दोनों ने निहायत ही दोस्ताना लहजे में हाथ मिलाये। बाद में मैं मोबेल के पास गया और उससे क्षमा याचना की। और उसी शाम मैक हम दोनों को डिनर पर बाहर ले गये। अगले दिन माबेल जितनी मधुरता बिखेर रही थी, उससे ज्यादा प्रिय नहीं हो सकती थी। यहाँ तक कि उसने मेरे सुझाव भी माँगे और विचार भी पूछे। इस तरह, पूरी कैमरा टीम और बाकी की कास्ट को हैरान छोड़ते हुए हमने खुशी-खुशी फिल्म पूरी की। सेनेट साहब के नज़रिये में अचानक आये इस परिवर्तन से मैं हैरान था। अलबत्ता, ये तो महीनों के बाद मुझे जा कर इसके पीछे का एक कारण पता चला। ऐसे लगता है कि हफ़्ते के आखिर में सेनेट मुझे नौकरी से निकालना चाहते थे, लेकिन जिस सुबह माबेल के साथ मेरी झड़प हुई थी, मैक को न्यू यार्क कार्यालय से एक तार मिला था कि वे फटाफट चैप्लिन की और फिल्में बनायें क्योंकि वहाँ उनकी बहुत अधिक माँग हो गयी थी।

कीस्टोन द्वारा रिलीज की जाने वाली कॉमेडी फिल्मों के आम तौर पर बीस प्रिंट बनाये जाते थे। तीस की संख्या काफी सफल मानी जाती थी। पिछली फ़िल्म, जो क्रम से चौथी थी, पैंतालिस प्रिंट की संख्या तक जा पहुँची थी तथा अतिरिक्त प्रतियों की माँग बढ़ती ही जा रही थी। मैक साब के दोस्ताना व्यवहार के पीछे ये तार ही काम कर रहा था।

उन दिनों निर्देशन का अंक गणित बहुत ही सीधा सादा हुआ करता था। मुझे सिर्फ यही देखना होता था कि आने और बाहर जाने के लिए दिशा दायीं तरफ थी या बायीं तरफ। यदि कोई कलाकार बाहर जाते समय कैमरे की तरफ पीठ करके गया तो वापसी में उसका चेहरा कैमरे की तरफ होगा। अलबत्ता, ये बेसिक नियम थे।

लेकिन और अधिक अनुभव के साथ मैंने पाया कि कैमरा के रखने की जगह का न केवल मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है बल्कि इससे सीन भी बनता बिगड़ता है। दरअसल, यही सिनेमाई शैली का आधार था। यदि कैमरा बहुत नज़दीक या बहुत दूर रख दिया जाये तो इससे पूरा का पूरा दृश्य बन भी सकता है और पूरा प्रभाव बिगड़ भी सकता है। अब चूँकि गति की किफायत आपके लिए महत्त्वपर्ण होती है, अत: आप नहीं चाहते कि अभिनेता बिना किसी वजह के कई कदम चले, हाँ, जब तक इसके लिए कोई खास कारण न हो। इसका कारण यह है कि चलने में कुछ भी ड्रामाई नहीं है। इसलिए कैमरे को रखने का मतलब कम्पोजिशन होना चाहिये और ये अभिनेता के लिए गरिमामय होना चाहिये। कैमरे को कहां रखना है, ये बात सिनेमाई अर्थ संयोजन की होती है। इस बात के कोई तय नियम नहीं है कि क्लोज़ अप से अधिक अच्छे परिणाम मिलते हैं या लांग शॉट से बेहतर प्रभाव पैदा किया जा सकता है। क्लोज अप महसूस करने की चीज़ है। कुछेक मामलों में लाँग शॉट से बहुत अच्छे प्रभाव पैदा किये जा सकते हैं।

इसका एक उदाहरण मेरी शुरुआती कॉमेडी फिल्म स्केटिंग में देखा जा सकता है। ट्रैम्प रिंग में प्रवेश करता है और एक पैर ऊपर करके स्केट करता है। वह गिरता है, लड़खड़ाता है और आस-पास के सब लोगों को गिराता, लुढ़काता जाता है और तरह तरह की शरारतें करता रहता है। आखिर, वह सबको धराशायी करके दूर वाले कोने की तरफ जा कर दर्शकों के बीच यह देखने के लिए भोला बन के बैठ जाता है कि उसने क्या हंगामा बरपा दिया है। यहाँ पर ट्रैम्प की ये छोटी सी आकृति ही बहुत कुछ कह जाती है जो शायद क्लोज अप में उतनी मजेदार न बन पाती।

जब मैंने अपनी पहली फिल्म का निर्देशन किया तो मुझमें इतना आत्म विश्वास नहीं था जितना होना चाहिये था। दरअसल, मुझे अफरा-तफ़री का दौरा सा पड़ गया था। लेकिन जब सेनेट साहब ने पहले दिन का काम देख लिया तो में आश्वस्त हो गया। फिल्म का नाम था "कॉट इन द रेन"। हालांकि ये विश्व स्तरीय फिल्म नहीं थी लेकिन ये मजेदार थी और काफी सफल भी रही। जब मैंने इस पूरा कर लिया तो सेनेट साहब की प्रतिक्रिया जानने को उत्सुक था। प्रोजेक्शन रूम से उनके बाहर आने तक मैं उनकी राह देखता रहा।

"तो, बंधुवर, एक और फिल्म शुरू करने के लिए तैयार हो?" पूछा उन्होंने। उसके बाद से तो मैंने अपनी सभी कॉमेडी फिल्में खुद ही लिखीं और निर्देशित भी कीं। एक प्रोत्साहन के रूप में सेनेट साहब ने प्रत्येक फिल्म के लिए पच्चीस डॉलर का बोनस दिया।

अब उन्होंने मुझे मानो गोद ही ले लिया था। वे रोज़ रात को मुझे खाने पर बाहर ले जाते। वे मेरे साथ दूसरी कम्पनियों के लिए कहानियाँ पर चर्चा करते। और मैं उनके साथ ऐसे-ऐसे पागलपन से भरे ख्यालात के बारे में बात करता जो कई बार इतने निजी होते कि जनता उन्हें समझ ही न पाती। लेकिन सेनेट उन्हें सुनते और उन्हें स्वीकार कर लेते।

अब जब मैंने आम जनता के बीच बैठ कर अपनी फिल्में देखीं तो उनकी प्रतिक्रिया अलग ही थी। कीस्टोन कॉमेडी की घोषणा होते ही हलचल और उत्तेजना, मेरे पहले-पहले आगमन के साथ ही, मेरे कुछ करने से पहले ही खुशी भरी चीखें मेरे लिए बेहद सुकून भरी होतीं। मैं दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय होता जा रहा था। अगर मैं अपने जीवन को इसी तरह से चलाता रह पाता तो मेरे लिए यही संतोष की बात थी। अपने बोनस के साथ मैं दो सौ डॉलर हर हफ्ते के कमा रहा था।

अब चूँकि मैं अपने काम में उलझा हुआ था अब मेरे पास एलैक्ज़ेंड्रिया बार या अपने ताना मारने वाले दोस्त एल्मर एल्सवर्थ के पास जाने का वक्त ही नहीं मिलता था। अलबत्ता, मैं उसे हफ्तों बाद एक दिन सड़क पर ही मिल गया। वह कहने लगा,"अरे भई, सुनो तो, मैं कुछ अरसे से तुम्हारी फिल्में देखता आ रहा हूँ। और भगवान की कसम, तुम काफी अच्छे हो। तुम्हारे पास जो क्वालिटी है, वह यहाँ औरों से बिलकुल ही अलग है। तुमने पहली ही बार में अपने बारे में ये सब क्यों नही बता दिया था।" हाँ, हम बाद में जा कर बहुत अच्छे दोस्त बन गये थे।

ऐसा बहुत कुछ था जो मैंने कीस्टोन से सीखा और बदले में बहुत कुछ कीस्टोन कम्पनी को सिखाया भी। उन दिनों वे लोग तकनीक, स्टेज क्राफ़्ट या मूवमेंट के बारे में बहुत कम जानते थे। मैं उनके लिए ये चीजें थियेटर से ले कर आया। वे प्राकृतिक मूक अभिनय पेंटोमाइम के बारे में भी बहुत कम जानते थे। किसी सीन को ब्लॉक करने के लिए निर्देशक तीन या चार अभिनेताओं को कैमरे की तरफ मुँह करके सपाट खड़ा करवा देता और उनमें से एक बहुत खुले हावभाव के साथ अपनी ओर इशारा करते हुए मूक अभिनय करता, तब वह अपनी अंगूठी वाली उंगली की तरफ इशारा करता, और फिर लड़की की तरफ इशारा करता," मैं तुम्हारी लड़की से शादी करना चाहता हूँ।" उनके मूक अभिनय से बारीकी या प्रभाव डालने की जरा भी गुंजाइश न बचती। इसलिए मैं उनकी तुलना में बीस ठहरता। उन शुरुआती फ़िल्मों में मुझे पता था कि मेरे पक्ष में कई बातें हैं। और एक भूगर्भशास्‍त्री की तरह मैं एक नये, समृद्ध और अब तक अछूते क्षेत्र में प्रवेश कर रहा हूँ। मेरा ख्याल है, वह मेरे कैरियर का सबसे अधिक रोमांचक काल था, क्योंकि मैं कुछ आश्चर्यजनक करने की दहलीज पर था।

सफलता आपको प्यारा बना देती है और मैं स्टूडियो में सबका परिचित दोस्त बन गया। मैं एक्स्ट्रा लोगों के लिए, स्टेज पर काम करने वालों के लिए और वार्डरोब विभाग के लिए और कैमरामेन के लिए चार्ली था। हालांकि मैं चने के झाड़ पर चढ़ने वालों में से नहीं हूँ, फिर भी सच में ये बातें मुझे खुश करती ही थीं क्योंकि मैं जानता था कि इस अंतरंगता का मतलब ही यही है कि मैं सफल हो रहा हूँ।

अब मुझे अपने विचारों में आत्मविश्वास नज़र आने लगा था। और मैं सोच सकता हूँ कि सेनेट बेशक मेरी तरह काला अक्षर भैंस बराबर ही थे, उन्हें अपनी पसंद पर भरोसा था और यही भरोसा उन्होंने मुझमें भी पैदा किया। उनके काम करने के तरीके ने मुझे आत्म विश्वास बढ़ाया। स्टूडियो में उनकी पहले दिन की टिप्पणी,"हमारे पास कोई सिनेरियो नहीं होता, हम एक आइडिया पकड़ लेते हैं। और फिर उसी की लीक पर स्वाभाविक परिणति पर चल देते हैं।" इससे मेरी कल्पना शक्ति को नये पंख लगे थे।

इस तरह से फिल्में बनाना बहुत उत्तेजनापूर्ण काम था। थियेटर में मैं रात दर रात वही बंधी बंधायी लीक पर वह सब कुछ जड़, बंधी-बंधायी दिनचर्या दोहराने को मजबूर था। एक बार स्टेज का कारोबार देख लिये जाने और तय कर लिये जाने के बाद उनमें कुछ नया डालने की कोई कभी सोचता भी नहीं था। थियेटर में काम करने की एक ही प्रेरित करने वाली वजह होती थी और वह यह थी कि अच्छा काम या बुरा काम। लेकिन फिल्मों में ज्यादा आज़ादी थी। उनमें मुझे रोमांच का अनुभव होता था।

"इस आइडिया के बारे में तुम क्या सोचते हो?" सेनेट कहते या फिर

"पता है शहर में मुख्य बाज़ार में बाढ़ आयी हुई है!" इस तरह की टिप्पणी से ही कीस्टोन की कामेडी की शुरुआत होती थी। ये एक बांध लेने वाली मोहक खुली हवा थी जो शानदार थी...व्यक्ति की सृजनात्मकता के लिए चुनौती।

ये सब इतना खुला-खुला और सहज रहा...कोई साहित्य नहीं, कोई लेखक नहीं, हम सब मिल कर एक विचार का ताना बाना बुनते, उसके आस-पास हँसी ठिठोली की बातें बांधते और जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाते, कहानी आकार लेने लगती।

उदाहरण के लिए, हिज प्रीहिस्टारिक पास्ट में मैंने हँसी की एक ही बात से शुरू किया और वह मेरी पहली एंट्री से थी। मैं खाल लपेट के एक प्रागैतिहासिक आदमी के रूप में एंट्री लेता हूँ और जैसे-जैसे मैं लैंडस्केप को देखता परखता हूँ, मैं अपना पाइप भरने के लिए ओढ़ी हुई भालू की खाल में से बाल नोचने लगता हूँ। ये आइडिया अपने आपमें काफी था प्रागैतिहासिक काल की कथा बुनने में। इसमें प्यार था, दुश्मनी थी, मारा मारी थी और पीछा करो के दृश्य थे। यही तरीका था जिसे कीस्टोन में हम सब अपनाया करते थे।

मैं अपनी फिल्मों में कॉमेडी के अलावा और नये आयाम जोड़ने की अपनी ललक के शुरुआती प्रेरक पलों को याद कर सकता हूँ। मैं द' न्यू जेनिटर नाम की एक फ़िल्म में काम कर रहा था। इसमें एक दृश्य था जिसमें कार्यालय का मैनेजर मुझे नौकरी से निकाल देता है। उसके सामने गिड़गिड़ाते हुए कि वह मुझ पर रहम खाये और मुझे नौकरी में रहने दे, मैंने इस बात का मूक अभिनय शुरू कर दिया कि मेरे ढेर सारे छोटे छोटे बच्चे हैं। तभी मैंने पाया कि डोरोथी डेवेनपोर्ट नाम की एक वृद्ध नायिका एक तरफ रिहर्सल देख रही थी। अचानक उस पर मेरी निगाह पड़ी तो मैं ये देख कर हैरान रह गया कि वह रो रही थी। उसने बताया,"मुझे पता है कि आप यहाँ हँसाना चाहते हैं। लेकिन आपने तो मुझे रुला ही दिया।" उसने एक ऐसी बात की पुष्टि की जिसे मैं पहले से ही महसूस कर रहा था। मुझमें यह काबलियत थी कि मैं हँसाने के साथ-साथ रुला भी सकूँ।

अगर सौंदर्य का असर नहीं होता तो स्टूडियो का मर्दाना माहौल सहन करना मुश्किल हो जाता। सचमुच माबेल नोमार्ड की मौजूदगी स्टूडियो को गरिमा प्रदान करती थी। वह बेहद खूबसूरत थी, उसकी भरी-भरी आँखें, भरे भरे होंठ जो उसके मुँह के कानों से मुलायम तरीके से मुड़ जाते थे जो हास्य को और हर तरह की भावना, अदा को अभिव्यक्त करते थे। वह दिल की बहुत अच्छी थी, हल्के फुल्के मूड में और खुश रहती थी, उसके दिल में दया थी और वह उदारमना थी; हर कोई उसे चाहता था।

वार्डरूम की महिला के बच्चे के प्रति माबेल की उदारता के किस्से सुनने में आते थे, कैमरामैन के साथ उसके मज़ाक की बातें सुनायी देतीं। माबेल मुझसे भाई बहन के जैसा प्यार करती थी, और इसकी एक वजह यह थी कि उस समय वह मैक के प्यार में बुरी तरह से पागल थी। मैक के कारण ही मुझे माबेल को इतना अधिक जानने का मौका मिला। हम तीनों अक्सर एक साथ बाहर खाना खाते, उसके बाद मैक होटल की लॉबी में सो जाता। हम ये एकाध घंटा फिल्म देख कर कैफे में ही गुज़ार देते। तब वापिस आकर हम मैक को जगाते, कोई सोच सकता है कि इस तरह की निकटता किसी तरह के रोमांस में बदल जाती, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। दुर्भाग्य से हम दोनों अच्छे मित्र बने रहे।

हाँ, एक बार ऐसा ज़रूर हुआ कि मैं, माबेल, रोस्को ऑरबक्कल सैन फ्रांस्सिको में एक थियेटर में एक चैरिटी के लिए एक साथ मंच पर आये तो मैं और माबेल एक दूसरे के काफी निकट आ गये और भावनात्मक रूप से जुड़ गये। ये एक बहुत ही शानदार शाम थी और हम तीनों ने मंच पर बहुत ही बेहतरीन प्रदर्शन किया था, माबेल अपना कोट ड्रेसिंग रूम में ही छोड़ आयी थी। उसने मुझसे कहा कि मैं उसे वहाँ ले जाऊं ताकि वह कोट ला सके। ऑरबक्कल और बाकी लोग नीचे कार में इंतज़ार कर रहे थे। एक पल के लिए हम दोनों अकेले थे। वह उस समय अलौकिक सौन्दर्य की देवी लग रही थी और जब मैंने उसका कोट उसके कंधे पर डाला तो मैंने उसे चूम लिया। बदले में उसने भी मुझे चूमा। हम और भी आगे बढ़ गये होते, लेकिन लोग नीचे इंतज़ार कर रहे थे। बाद में मैंने मामले को आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन कोई भी नतीजा सामने नहीं आया।

"नहीं चार्ली," उसने बहुत अच्छे मूड में हँसते हुए कहा,"मैं तुम्हारी तरह की नहीं हूँ और न ही तुम मेरी ही तरह के हो।"

लगभग उसी समय के दौरान डायमंड जिम ब्राडी लॉस एंजेल्स आये। उस समय हॉलीवुड का जन्म अभी होना था। वे डॉली बहनों और उसके पतियों के साथ पहुँचे और दिल खोल कर खर्च किया। उन्होंने एलेक्जेंड्रिया होटल में जो डिनर दिया उसमें डॉली बहनें, उनके पति, कारलोटा मोन्टेरी, लोउ टेलेगेन, साराह बर्नहार्ट के प्रमुख नायक, मैक सेनेट, माबेल नोर्माड, ब्लांशे स्वीट, नैट गुडविन और कई दूसरे लोग शामिल हुए। डॉली बहनें गज़ब की खूबसूरत लग रही थीं। दोनों बहनें और उन दोनों के पति और उनके साथ डायमंड जिम ब्रैडी, इन सबके बीच दांत काटी रोटी वाला मामला था। हमेशा इन सबका एक साथ रहना उलझन में डालता था।

डायमंड जिम ब्रैडी एक अद्भुत अमेरिकी चरित्र थे। वे विनम्र जॉन बुल सरीखे दिखते थे। पहली रात तो मैं अपनी आंखों पर ही विश्वास नहीं कर सका क्योंकि उन्होंने हीरे के कफ लिंक और शर्ट फ्रंट पर स्टड पहने हुए थे और हरेक हीरा शिलिंग के आकार से भी बड़ा था। कुछ ही रातों के बाद हमने तट पर नाट गुडविन कैफे में एक साथ खाना खाया तो इस बार डायमंड जिम ब्रैडी अपने पन्ने के सेट के साथ नज़र आये। इस बार तो हरेक पन्ना छोटी माचिस की डिबिया से भी बड़ा था। पहले तो मैंने यही समझा कि उन्होंने ये सब मज़ाक के तौर पर पहने हुए हैं और भोलेपन में उनसे पूछ भी लिया कि क्या ये असली हैं। उन्होंने बताया,"ये असली ही हैं।"

"लेकिन हैं ये शानदार," मैंने हैरान होते हुए कहा। "अगर तुम सचमुच खूबसूरत पन्ने देखना चाहते हो तो ये देखो," और उन्‍होंने अपना ड्रग्स वेस्टकोट ऊपर उठा दिया और मुझे अपनी बेल्ट दिखायी। ये क्वींसबेरी चैम्पियनशिप की बेल्ट जितनी बड़ी थी और पूरी की पूरी पन्नों से भरी हुई थी। मैंने आज तक इतने बड़े पन्ने नहीं देखे थे। वे मुझे बहुत गर्व से बता रहे थे कि उनके पास बेशकीमती हीरों वगैरह के पूरे दस सेट हैं और वे हर रात उन्हें बदल बदल कर पहनते हैं।

1914 चल रहा था और मैं पच्चीस बरस का होने को आया था। मुझमें जवानी पैठ रही थी और मैं अपने काम में मसरूफ था। मैं उससे काम की सफलता के लिए नहीं जुड़ा हुआ था बल्कि इसके मौज मजे के लिए ही नहीं बल्कि इससे मुझे हर तरह के फिल्मी अभिनेताओं से भी मिलने का मौका मिलता रहा था। कभी न कभी मैं उन सबका फैन रहा था। मैरी पिकफोर्ड, ब्लांशे स्वीट, मिरियम कूपर, क्लारा किमबैल यंग, गिश बहनें तथा दूसरे लोग, वे सब की सब खूबसूरत थीं और उनसे रू ब रू मिलना सुख देता था।

थॉमस इन्स अपने स्टूडियो में सींक कबाब की पार्टियों और नृत्य के कार्यक्रम रखते। ये स्टूडियो नार्दर्न सांता मोनिका के जंगलों में था और प्रशांत महासागर के सामने पड़ता था। क्या तो मदमस्त रात हुआ करती थी - जवानी और खूबसूरती; मुक्ताकाश मंच पर मादक संगीत पर झूम झूम कर थिरकना और पास ही समुद्र तट पर से टकराती लहरों की मंद मंद स्वर लहरियां बज रही होतीं।

पेगी पियर्स बेइंतहा खूबसूरत लड़की थी। उसका नरम जिस्म जैसे बारीकी से तराशा गया हो, खूबसूरत गोरी गर्दन, और सम्मोहक देहयष्टि। मेरे दिल में हलचल मचा देने वाली वह पहली औरत थी। कीस्टोन में मेरे आने के तीसरे हफ्ते तक उसके दर्शन नहीं हुए थे क्योंकि उन दिनों वह फ्लू से पीड़ित थी। लेकिन जिस पल हम मिले, उसी पल से एक दूजे के दिल मिल गये, चिंगारी भड़की और हम एक दूसरे के हो गये। मेरा दिल गा उठा। वे सुबहें कितनी रूमानी हुआ करती थीं। हर सुबह इस उम्मीद के साथ काम पर आना कि उस मोहतरमा के दीदार होंगे। रविवार के दिन मैं उसके माता पिता के अपार्टमेंट में उससे मिलने चला जाता। हर रात हमारा मिलन प्यार पर स्वीकृति की मुहर लगाता, हर रात संघर्ष में बीतती। हां, पेगी मुझसे प्यार करती थी, लेकिन ये एक खोये हुए प्यार का मामला था। वह बार बार अपने आपको रोकती। यहां तक कि मैंने निराश हो कर कोशिश ही छोड़ दी। उस वक्त मेरी यह हालत थी कि किसी से भी शादी करने में मेरी दिलचस्पी नहीं थी। मेरे लिए आज़ादी बहुत बड़ा रोमांच था। कोई भी औरत उस धुंधली छवि पर खरी नहीं उतरती थी जो मैंने अपने मन में बसा रखी थी।

हरेक स्टूडियो एक परिवार की तरह था। सप्ताह भर में फिल्म पूरी हो जाया करती थी और फीचर की लम्बाई वाली फिल्म को पूरा करने में दो या तीन सप्ताह से अधिक का समय नहीं लगता था। हम सूरज की रौशनी में काम करते थे इसीलिए हम कैलिफोर्निया में काम करते थे; यह कहा जाता था कि वहां पर हर बरस नौ महीने तक धूप चमकती रहती है। क्लीग लाइटों का आविष्कार 1915 के आस पास हुआ था; लेकिन कीस्टोन कम्पनी ने उन्हें कभी भी इस्तेमाल नहीं किया क्योंकि वे लहरदार होती थीं, सूर्य की रौशनी की तरह साफ नहीं होती थीं और लैम्पों को सेट करने में बहुत वक्त ज़ाया होता था। कीस्टोन की कॉमेडी को बनाने में मुश्किल से एक सप्ताह का समय लगता था। दरअसल, मैंने ट्वेंटी मिनटस् ऑफ लव नाम की एक फिल्म तो दोपहर में ही पूरी कर डाली थी और मज़े की बात यह कि इसमें शुरू से ले कर आखिर तक ठहाके ही ठहाके थे। डाव एंड डायनामिक नाम की एक बेहद सफल फिल्म को बनाने में नौ दिन लगे थे और इसकी लागत आयी थी अट्ठारह सौ डॉलर। अब चूंकि मैं एक हज़ार डॉलर के बजट को पार कर गया था, जो कि कीस्टोन कॉमेडी की अधिकतम सीमा हुआ करती थी, मुझे पच्चीस डॉलर के बोनस का नुक्सान उठाना पड़ा। सेनेट का कहना था कि फिल्में अपनी लागत निकाल सकें इसका एक ही तरीका है कि दो दो रील की फिल्में बनायी जायें और वे करते भी यही थे। इनसे पहले ही बरस में एक सौ तीस हजार डॉलर की कमाई हुई।

अब मैं इस बात का दावा कर सकता था कि मैं कई सफल फिल्में बना चुका हूं। इनमें ट्वेंटी मिनटस् ऑफ लव, डाव एंड डायनामिक, लाफिंग गैस तथा द स्टेज आदि शामिल थीं। इसी अरसे के दौरान मैं और माबेल नोर्माड मैरी ड्रेसलर नाम की एक फीचर फिल्म में एक साथ आये। मैरी के साथ काम करना सुखद अनुभव था। लेकिन मुझे नहीं लगता कि फिल्म कोई बहुत ऊंची चीज़ बन पायी थी। मैं एक बार फिर से फिल्मों का निर्देशन करने में जुट गया।

मैंने सेनेट साहब से सिडनी की सिफारिश की। अब चूंकि चैप्लिन नाम जा ही रहा था, हमारे ही परिवार के एक और सदस्य के नाम को शामिल करने में उन्हें खुशी ही होनी थी। सेनेट साहब ने उसे एक बरस के लिए दो सौ डॉलर प्रति सप्ताह के वेतन पर करार कर लिया। ये वेतन मेरे वेतन से पच्चीस डॉलर प्रति सप्ताह अधिक था। सिडनी और उसकी पत्नी ताज़े ताज़े इंगलैंड से आये हुए उस वक्त स्टूडियो पहुंचे जिस वक्त मैं लोकेशन के लिए निकलने वाला था। बाद में शाम के वक्त हमने एक साथ खाना खाया। मैंने पूछा कि इंगलैंड में मेरी फिल्मों का क्या हाल है।

उसने बताया कि मेरा नाम आने से पहले ही कई म्यूजिक हॉलों के कलाकारों ने उसे अमेरिकी सिनेमा के एक नये कामेडियन के बारे में उत्साह पूर्वक बताना शुरू कर दिया था जिसे उन्होंने अभी अभी देखा था।

सिडनी ने मुझे ये भी बताया कि उस वक्त जब उसने मेरी कोई भी कॉमेडी फिल्म देखी नहीं थी, वह फिल्म एक्सचेंज के दफ्तर में यह पूछने गया था कि ये फिल्में कब रिलीज होंगी और जब उसने बताया कि वह कौन है तो उन्होंने उसे तीनों फिल्में देखने के लिए आमंत्रित किया। उसने प्रोजेक्शन रूम में अकेले बैठ कर ये फिल्में देखीं और लगातार पागलों की तरह हंसता ही रहा।

"इन सब के बारे में तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया है?"

सिडनी ने जो कुछ कहा उसमें कुछ भी हैरान होने वाली बात नहीं थी, "ओह, मैं जानता था कि तुम बेहतरीन ही करोगे।" उसने विश्वासपूर्वक कहा।

मैक सेनेट लॉस एंजेल्स एथलेटिक क्लब के सदस्य होने के नाते इस बात के अधिकारी थे कि वे अपने किसी दोस्त को एक अस्थायी सदस्यता कार्ड दे सकें और इस तरह से उन्होंने मुझे एक कार्ड दे दिया। यह शहर में सभी छड़े लोगों और कारोबारियों का अड्डा हुआ करता था - एक बहुत बड़ा क्लब जिसमें पहली म़ंजिल पर एक बड़ा सा डाइनिंग रूम और एक लाउंज थे। ये शाम के वक्त महिलाओं के लिए भी खुल जाते थे और इनके अलावा एक कॉकटेल बार था।

मुझे सबसे ऊपरी मंज़िल पर एक कोने वाला कमरा मिला हुआ था जिसमें एक पियानो रखा हुआ था और थी छोटी सी लाइबेरी। ये कमरा मोज़ हैम्बर्गर के कमरे के बगल में था। वे मे डिपार्टमेंटल सेंटर के मालिक थे। ये स्टोर शहर का सबसे बड़ा स्टोर हुआ करता था। क्लब में रहने का खर्च उन दिनों बहुत ही मामूली हुआ करता करता था। मैं अपने कमरे के लिए प्रति सप्ताह बारह डॉलर अदा किया करता था और इसमें क्लब की सारी सुविधाएं मसलन, बड़ा सा जिम्नाशियम, तरण ताल, और बेहतरीन सेवाएं शामिल थीं। सारी बातें होने के बावजूद मैं पिचहत्तर डॉलर प्रति सप्ताह खर्च करते हुए आलीशान ढंग से रहा करता था। इन्हीं डॉलरों में से मैं ड्रिंक के एकाध राउंड और कभी कभार के डिनर के पैसे भी रखता।

क्लब के लोगों के बीच एक तरह का भाईचारा था जिसे पहले विश्व युद्ध की घोषणा भी भंग नहीं कर पायी थी। हर कोई यही सोच रहा था कि लड़ाई तो छ: महीने में निपट जायेगी या जैसा कि लॉर्ड किचनर ने अनुमान लगाया था कि ये चार बरस तक चलेगी, लोग बाग बेकार में सोचते थे। कई लोग तो इस बात से ही खुश थे कि युद्ध की घोषणा हो गयी है क्योंकि अब हम जर्मन लोगों को दिखा देंगे। नतीजे निकलने का कोई सवाल ही नहीं था, अंग्रेज और फ्रेंच उन्हें छ: महीने में ही धूल चटा देंगे। युद्ध अभी तक अपने चरम तक नहीं पहुंचा था और कैलिफोर्निया असली युद्ध की ज़मीन से खासा दूर था।

लगभग यही समय था जब सेनेट मेरा करार फिर ने नया करने की बात कर रहे थे और मेरी शर्तें जानना चाह रहे थे। मैं कुछ हद तक तो अपनी लोकप्रियता के बारे में जानता ही था, लेकिन मैं अपनी सफलता की क्षण भंगुरता के बारे में भी जानता था, और ये भी जानता था कि अगर मैं इसी गति से चलता रहा तो एक ही बरस में चुक जाऊंगा। इसलिए मुझे, जितना भी हो सके, बटोर लेना होगा। मत चूके चौहान वाली स्थिति थी।

"मैं एक हज़ार डॉलर प्रति सप्ताह चाहता हूं," मैंने जान बूझ कर कहा।

सेनेट बिगड़ उठे,"लेकिन इतना तो मैं भी नहीं कमाता।"

"मैं जानता हूं।" मैंने जवाब दिया, "लेकिन थियेटरों के बाहर जो लाइनें लगती हैं वे आपके नाम के लिए नहीं बल्कि मेरे नाम के लिए लगती हैं।"

"हो सकता है," सेनेट बोले,"लेकिन हमारी संस्था की मदद के बिना तुम खो जाओगे।" उन्होंने चेताया, "देखा नहीं, फोर्ड स्टर्लिंग का क्या हाल हो रहा है?"

ये सच था। फोर्ड स्टर्लिंग कीस्टोन कम्पनी छोड़ देने के बाद बहुत अच्छा नहीं कर पा रहे थे। लेकिन मैंने सेनेट साहब से कहा,"मुझे कॉमेडी बनाने के लिए सिर्फ एक पार्क, एक पुलिसवाले और एक खूबसूरत लड़की की ज़रूरत होती है।" और सच तो ये था कि मैंने सिर्फ इसी तामझाम के साथ कई अत्यंत सफल फिल्में बनाकर दिखा दी थीं।

इस बीच सेनेट ने अपने भागीदारों, कैसेल एंड बाउमैन को तार दे कर मेरे करार और मेरी मांग के बारे में उनकी सलाह मांगी थी। बाद में सेनेट मेरे पास एक प्रस्ताव ले कर आये,"सुनो, अभी तुम्हारे चार महीने बाकी हैं। हम तुम्हारा करार फाड़ देंगे और अभी से पांच सौ डालर हफ्ते के देंगे। अगले बरस सात सौ डॉलर और उसके बाद एक बरस में पन्द्रह सौ डॉलर देंगे। इस तरह से तुम्हें हजार डॉलर प्रति सप्ताह मिल जाया करेंगे।"

"मैक," मैंने जवाब दिया, "अगर आप इस शर्त को ठीक उलटा कर दें तो आप पहले बरस में मुझे पन्द्रह सौ डॉलर, दूसरे बरस में सात सौ डॉलर और तीसरे बरस में पांच सौ दें तो मैं ले लूंगा।"

"लेकिन ये तो पागलपन से भरा विचार है।"

इस तरह से इसके बाद करार को नया करने की कोई बात ही नहीं हुई।

अभी कीस्टोन में मेरा एक महीना बाकी था और अब तक किसी और कम्पनी ने मेरे सामने कोई प्रस्ताव नहीं रखा था। मैं नर्वस हो रहा था और मैं कल्पना कर रहा था कि सेनेट इस बात का जानते हैं और किसी तरह अपना समय पूरा करने के चक्कर में थे। आम तौर पर फिल्म खत्म होने पर वे मेरे पास आते थे और मुझे मज़ाक में जल्दी से दूसरी फिल्म शुरू करने के बारे में उकसाते थे। और अब हालांकि मैंने पिछले दो सप्ताह से कोई काम नहीं किया था, वे मुझसे दूर दूर ही रहे थे। वे विनम्र लेकिन अलग थलग बने रहे।

इस सबके बावजूद मेरे आत्म विश्वास ने कभी भी मेरा साथ नहीं छोड़ा। अगर किसी ने भी मेरे सामने प्रस्ताव न रखा तो मैं अपने आप ही धंधा शुरू कर दूंगा। क्यों नहीं। मैं आत्म विश्वास से भरा हुआ था और अपने आप में निर्भर भी था। मैं जानता था कि ठीक किस वक्त इस भावना ने जन्म लिया था। मैं स्टूडियो की दीवार का सहारा ले कर एक मांग पर्ची भर रहा था।

सिडनी ने कीस्टोन कम्पनी में आने के बाद कई सफल फिल्में बनायीं। एक फिल्म जिसने पूरी दुनिया में रिकार्ड ही तोड़ डाले वह थी - द सबमैरीन पाइलट। इसमें सिडनी ने हर तरह की कैमरा ट्रिक का सहारा लिया। चूंकि वह इतना अधिक सफल था, मैंने उससे सम्पर्क किया और उससे मेरे साथ मिल कर अपनी खुद की कम्पनी बनाने के बारे में राय मांगी।

"हमें सिर्फ एक कैमरा और एक ट्रैक लाइट चाहिये।" मैंने उसे बताया। लेकिन सिडनी दकियानूसी था। उसे लगा, ये सब कुछ ज्यादा ही जोखिम लेने वाला मामला होगा। इसके अलावा, उसने कहा, "मैं इतनी अच्छी पगार, जितनी मैंने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं कमायी है, कैसे छोड़ दूं।" इस तरह से वह एक और बरस के लिए कीस्टोन कम्पनी के साथ ही बना रहा।

एक दिन मुझे युनिवर्सल कम्पनी के कार्ल लईम्ले की तरफ से एक टेलिफोन संदेश मिला। वे मुझे एक फुट के बारह सेंट देने और मेरी फिल्मों के लिए वित्त जुटाने के लिए तैयार थे। लेकिन वे मुझे हफ्ते के एक हजार डॉलर का वेतन नहीं देंगे। इसे देखते हुए मामला आगे नहीं बढ़ा।

जेस्स रॉबिंस नाम के एक युवा, जो ऐसेने कम्पनी का प्रतिनिधि था, ने कहा कि उसने सुना है कि मैं कोई भी करार पर हस्ताक्षर करने से पहले दस हज़ार डालर का बोनस और साढ़े बारह सौ डॉलर प्रति सप्ताह का वेतन चाहता हूं। ये मेरे लिए खबर थी। जब तक उसने ज़िक्र नहीं किया था, मैंने दस हज़ार डालर के बोनस की कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन उस सुखद पल के बाद से ये विचार मेरे दिमाग में टंक गया।

उस रात मैंने रॉबिंस को डिनर पर आमंत्रित किया और उसे ही सारी बातें करने दीं। उसने बताया कि वह सीधे ही ऐसेने कम्पनी के जी एम एंडरसन के पास से चला आ रहा है। लोग उन्हें ब्रांको बिली के नाम से भी जानते हैं। एंडरसन मिस्टर जार्ज के स्पूअर के भागीदार हैं और उनका प्रस्ताव है कि वे बारह सौ पचास डॉलर प्रति सप्ताह देने के लिए तैयार हैं लेकिन वह बोनस के बारे में कुछ नहीं कह सकता। मैंने कंधे उचकाये,"यही अड़चन कई लोगों के साथ है।" मैंने बात आगे बढ़ायी,"उनके पास बड़े बड़े प्रस्ताव तो हैं लेकिन वे नकद नारायण की बात ही नहीं करना चाहते।" बाद में उसने सैन फ्रांसिस्को में एंडरसन को फोन किया और उसे बताया कि डील हो गयी है लेकिन मैं दस हजार नकद बोनस के रूप में तत्काल चाहता हूं। वह मेज पर चहकता हुआ वापिस आया, "डील पक्की समझें। और कल आपको दस हज़ार डॉलर नकद मिल जायेंगे।"

मैं सातवें आसमान पर था। प्रस्ताव इतना शानदार था कि सच नहीं लगता था। लेकिन ये सच था क्योंकि अगले ही दिन रॉबिन्सन ने मेरे हाथ में केवल छ: सौ डॉलर का चेक थमा दिया और बताया कि मिस्टर एंडरसन अगले दिन खुद ही लॉस एंजेल्स आ रहे हैं और बाकी सब वे खुद ही निपट लेंगे। एंडरसन उत्साह से भरे हुए आये और डील के बारे में आश्वस्त किया लेकिन दस हज़ार डॉलर का कोई जिक्र नहीं,"मेरे पार्टनर मिस्टर स्पूअर शिकागो पहुंच कर इस मामले को देख लेंगे।"

हालांकि मेरे शक ने सिर उठाना शुरू कर दिया था लेकिन मैंने आशावाद के चलते अपने शक को दफनाने का ही फैसला किया। अभी भी कीस्टान कम्पनी के साथ मेरे दो सप्ताह बाकी थे। अपनी अंतिम फिल्म हिज़ प्रिहिस्टारिक पास्ट का पूरा कर पाना मेरे लिए खासा तनावभरा काम था, क्योंकि इतने अधिक कारोबारी प्रस्तावों के साथ उस पर ध्यान केन्द्रित कर पाना मेरे लिए मुश्किल था, इसके बावजूद मैंने आखिर फिल्म पूरी कर ही दी।

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(क्रमशः अगले अंकों में)

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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रचनाकार: चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा (6)
चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा (6)
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