मेरी आत्म कथा चार्ली चैप्लिन चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा -अनुवाद : सूरज प्रकाश ( पिछले अंक 15 से जारी …) पच्चीस फिज़...
मेरी आत्म कथा
चार्ली चैप्लिन
चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा
-अनुवाद : सूरज प्रकाश
(पिछले अंक 15 से जारी…)
पच्चीस
फिज़ां में एक बार फिर युद्ध के काले बादल मंडरा रहे थे। नाज़ी अपनी मुहिम पर निकल चुके थे। हम कितनी जल्दी पहले विश्व युद्ध की विभीषिका और चार वर्ष के मृत्यु के तांडव को भूल गये? कितनी जल्दी हम आदमियों के लाशों के ढेरों को, लाशों से भरी पेटियों को, हाथ कटे, पांव कटे, अंधे हो गये, टूटे जबड़ों वाले और अंग भंग हो गये विकृत लूले लंगड़े लोगों को भूल गये? और जो मारे नहीं गये थे या घायल नहीं हुए थे, वे भी कहां बच पाये थे? कितने ही लोगों के दिमाग चल गये थे। ग्रीक लोक कथाओं में आने वाले उस काल्पनिक मानव भक्षी मिनोटॉर की तरह युद्ध युवा पीड़ी को निगल गया था और बूढ़े, सनकी लोग जीवन जीने के लिए अभिशप्त बाकी रह गये थे। लेकिन हमारी स्मृति बहुत कमज़ोर होती है और हम युद्ध का गुणगान लोकप्रिय टिन पैन ऐले के गीतों के साथ करने लगते हैं
आप उन्हें कैसे उलझाये रखेंगे खेतों में
जब देख ली हों उन्होंने पारी
और इसी तरह की बातें। कुछ लोगों का यह कहना था कि युद्ध कई मायनों में अच्छा होता है। इससे उद्योग धंधे फैलते हैं, उन्नत तकनीकें सामने आती हैं और लोगों को रोज़गार मिलता है। जब हम स्टॉक एक्सचेंज में लाखों डॉलर कमाने की बात सोच रहे होंगे तो हम उन लाखों लोगों के बारे में कैसे सोचेंगे जो मारे जा रहे हैं। जब बाज़ार एक दम ऊपर जा रहा था तो हर्स्ट के एग्जामिनर अखबार के आर्थर ब्रिसबेन ने कहा था,'युनाइटेड स्टेटस् में स्टील के भाव में पांच सौ डॉलर प्रति शेयर का उछाल आयेगा।' जबकि हुआ ये कि सट्टेबाजों ने ही खिड़कियों से छलांगें लगायीं।
और अब एक और युद्ध की सुगबुगाहट हो रही थी और मैं पॉलेट के लिए एक कहानी लिखने की कोशिश कर रहा था; लेकिन मैं आगे नहीं बढ़ पा रहा था। ऐसे वक्त में मैं औरताना चोंचलेबाजियों में अपने आपको झोंक ही कैसे सकता था या रोमांस के बारे में सोच सकता था या प्रेम की समस्याओं के बारे में सोच ही कैसे सकता था जब सबसे खतरनाक विषम आदमी - एडोल्फ हिटलर द्वारा पूरे माहौल में पागलपन आतंक मचाये हुए हो?
1937 में एलेक्जेंडर कोर्डा ने सुझाव दिया था कि मैं गलत पहचान को ले कर हिटलर पर कोई कहानी बनाऊं। हिटलर की भी वैसी ही मूंछें हों जैसी कि ट्रैम्प की होती हैं: मैं ही दोनों भूमिकाएं करूं, उन्होंने कहा था। उस वक्त तो मैंने इस विचार के बारे में बहुत ज्यादा नहीं सोचा था, लेकिन अब ये मामला गरम था और मैं फिर से काम शुरू करने के लिए बहुत बेचैन था। तभी अचानक मुझे कुछ सूझा। बेशक!! हिटलर के रूप में मैं भीड़ के सामने कुछ भी बकवास करते हुए अपनी बात कह सकता हूं और ट्रैम्प के रूप में मैं खामोश ही बना रहूंगा या कम ही बोलूंगा। इस तरह से हिटलर की कहानी प्रहसन और मूक अभिनय के लिए एक मौका होती। इस विचार के साथ ही मैं लपक कर वापिस हॉलीवुड वापिस जाना चाहता था ताकि पटकथा पर काम शुरू कर सकूं। कहानी विकसित करने में मुझे दो बरस लग गये।
मैंने शुरुआती दृश्यों के बारे में सोचा। सबसे पहले दृश्य में पहले विश्व युद्ध की लड़ाई में बिग बार्था§ और उसकी पिचहत्तर मील तक की मार करने की क्षमता को दिखाया जाता कि किस तरह से जर्मन उसके बलबूते पर मित्र राष्ट्रों को नेस्तनाबूद करने का इरादा रखते हैं। इससे वे रीम्स कैथेडरल को नष्ट करने जा रहे हैं लेकिन निशाना चूक जाता है और इसके बजाये वे साथ ही बनी पानी की टंकी नष्ट कर बैठते हैं।
पॉलेट फिल्म में काम करने वाली थी और उसने पिछले दो बरसों में पैरामाउंट के साथ काम करते हुए खूब सफलता पायी थी। हालांकि हमारे संबंधों में दरार आ गयी थी, फिर भी हम दोस्त थे और अभी भी शादीशुदा चल रहे थे। लेकिन पॉलेट अपने आप में अजूबा थी। सनकों का पिटारा। सामने वाले को हैरानी ही होती अगर वह इससे ज्यादा गलत वक्त पर न आती। एक दिन वह स्टूडियो में मेरे ड्रेसिंग रूम में आयी। उसके साथ एक सींकिया सा, दर्जी के अच्छे सिले कपड़ों में एक शख्स था। लगता था, उसे बिजूके की तरह कपड़े पहना दिये गये हैं। मैं दिन भर अपनी पटकथा से जूझता रहा था और उनके इस तरह से व्यवधान डालने से थोड़ा हैरान हुआ था। लेकिन पॉलेट ने कहा कि बात बेहद ज़रूरी है; तब वह बैठ गयी और साथ आये आदमी को भी आमंत्रित किया कि वह भी कुर्सी खींच कर उसे पास बैठ जाये।
'ये मेरे एजेंट हैं।' पॉलेट ने कहा।
इसके बाद पॉलेट ने उस आदमी की तरफ इशारा किया कि वह आगे की बात करे। वह पढ़ाये हुए तोते की तरह तेजी से बोलने लगा, मानो अपने ही शब्दों को आनंद ले रहा हो,'आप जानते ही हैं मिस्टर चैप्लिन, आप माडर्न टाइम्स के बाद से पॉलेट को दो हज़ार पाँच सौ डॉलर प्रति सप्ताह दे रहे हैं लेकिन जो बात हमने आपसे अब तक तय नहीं की है, मिस्टर चैप्लिन, वो ये है कि उनके बिल तैयार करने में, ये सभी पोस्टरों पर पिचहत्तर प्रतिशत होनी चाहिये-' इससे आगे वह बात नहीं कर पाया।
'ये सब क्या बकवास है?' मैं चिल्लाया,'मुझे मत सिखाओ कि उसे कितनी राशि मिलनी चाहिये!! उसका हित तुम्हारी तुलना में मेरे दिल में कहीं ज्यादा है! दफा हो जाओ यहां से, तुम दोनों के दोनों।'
द ग्रेट डिक्टेटर बनाने के अधबीच में ही मुझे युनाइटेड आर्टिस्टस् से चेतावनी भरे संदेश आने शुरू हो गये। उन्हें ऐसे संकेत मिल रहे थे कि मैं सेंसरबोर्ड के झमेलों में फंस जाऊंगा।
इसके अलावा, इंगलिश ऑफिस भी हिटलर विरोधी पिक्चर के बारे में चिंतित था और उसे इस बात का शक था कि क्या इसे ब्रिटेन में दिखाया जा सकेगा। लेकिन मेरा पक्का फैसला था कि मुझे आगे काम पूरा करना है क्योंकि हिटलर पर हँसा ही जाना चाहिये। अगर मुझे जर्मन यातना शिविरों के वास्तविक आतंक के बारे में पता होता तो मैं द ग्रेट डिक्टेटर फिल्म बना ही न पाता। मैं नाज़ियों के अमानवीय पागलपन का मज़ाक उड़ा ही न पाता। अलबत्ता, ये मेरा पक्का फैसला था कि शुद्ध रक्त वाली जाति के बारे में उनकी रहस्यमयी सोच का मज़ाक उड़ाया ही जाना चाहिये। मानो इस तरह की कोई जाति कभी आस्ट्रेलियाई मूल जनजातियों से बाहर भी अस्तित्व में रही हो!
जिस वक्त मैं द ग्रेट डिक्टेटर बना रहा था, सर स्टैफोर्ड क्रिप्स रूस से होते हुए कैलिफोर्निया आये। वे ऑक्सफोर्ड से हाल ही में आये एक नौजवान के साथ डिनर पर आये थे। मैं उस नौजवान का नाम भूल रहा हूं लेकिन उसका वो जुमला मुझे अभी भी याद है जो उसने उस शाम कहा था। उसका कहना था,`जिस तरह से जर्मनी में और अन्यत्र चीज़ें घट रही हैं, मुझे नहीं लगता कि मैं पांच बरस से ज्यादा जी पाऊंगा।' सर स्टैफोर्ड क्रिप्स रूस में तथ्यों की जानकारी एकत्र करने के मिशन पर गये हुए थे और उन्होंने वहां पर जो कुछ देखा था, उससे खासे प्रभावित हुए थे। उन्होंने रूस में चल रही बड़ी बड़ी परियोजनाओं के बारे में बताया और साथ में वहां की समस्याओं के बारे में भी बताया। वे ये सोच कर चल रहे थे कि युद्ध से बचा नहीं जा सकेगा।
सबसे ज्यादा चिंताजनक पत्र न्यू यार्क ऑफिस से आये जिनमें मुझसे अनुरोध किया गया था कि मैं इस फिल्म को न ही बनाऊं। उन्होंने तो घोषणा तक कर डाली कि ये फिल्म अमेरिका और इंगलैंड में कभी भी नहीं दिखायी जायेगी। लेकिन मैं तो ठान ही चुका था कि फिल्म तो बन कर ही रहेगी भले ही मुझे खुद ही हॉल किराये पर ले कर इसका प्रदर्शन क्यों न करना पड़े।
इससे पहले कि मैं द ग्रेट डिक्टेटर फिल्म पूरी कर पाता, इंगलैंड ने नाज़ियों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। मैं कैटैलिना में नाव पर सवार अपना सप्ताहांत मना रहा था जिस वक्त मैंने रेडियो पर ये हताशाजनक खबर सुनी। शुरू शुरू में सभी मोर्चों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी। हमने कहा,`जर्मन कभी भी मैगिनोट लाइन§ को तोड़ नहीं पायेंगे।' और तभी अचानक महाआतंक शुरू हो गया। बेल्जियम में विजय, मैगिनोट लाइन का ढहना, डनकार्क± के नंगे और हौलनाक तथ्य - और फ्रांस पर कब्जा कर लिया गया। खबरें जो थीं, वे और ज्यादा दिल दहलाने वाली होती जा रही थीं। इंगलैंड लड़ तो रहा था लेकिन उसकी पीठ दीवार से सटी हुई थी। अब न्यू यार्क तार पर तार भेजे जा रहा था,'अपनी फिल्म जल्दी पूरी करो, हर आदमी उसकी राह देख रहा है।'
द ग्रेट डिक्टेटर फिल्म बनाना मुश्किल काम था; इसके लिए मिनिएचर मॉडलों की और प्रापर्टीज़ की ज़रूरत थी। इन्हें तैयार करने में ही एक बरस का वक्त लग गया। इन तरकीबों के बिना फिल्म की लागत पांच गुना बढ़ जाती। अलबत्ता, मैं कैमरा घुमाने से पहले ही 500,000 डॉलर खर्च कर चुका था।
तब श्रीमान हिटलर महाशय ने रूस पर हमला करने का फैसला किया! ये इस बात का सबूत था कि उसका अपरिहार्य पागलपन पैर फैला चुका है। अमेरिका अभी तक युद्ध में शामिल नहीं हुआ था, लेकिन अमेरिका और इंगलैंड, दोनों जगह बहुत राहत महसूस की जा रही थी।
द डिक्टेटर पूरी होने वाली थी कि तभी डगलस फेयरबैंक्स और उनकी पत्नी सिल्विया हमसे मिलने के लिए लोकेशन पर आये। डगलस ने पिछले पांच बरस से कोई काम नहीं किया था और मेरी उनसे बहुत कम ही मुलाकातें हुई थीं। कारण ये भी रहा कि वे इंगलैंड की और वहां से यात्राएं करते रहे। मुझे लगा कि उनकी उम्र थोड़ी बढ़ गयी है, वे थोड़े मोटे हो गये हैं और विचारों में खोये खोये लगते हैं। इसके बावजूद वे वही उत्साही डगलस थे। हम जब एक दृश्य की शूटिंग कर रहे थे तो उन्होंने छत फाड़ ठहाका लगाया। 'मैं इसे देखने के लिए इंतज़ार नहीं कर सकता,' वे कहने लगे।
डगलस लगभग एक घंटे तक रुके रहे। जब वे जा रहे थे तो मैं उन्हें जाते हुए देखता रहा। मैं देख रहा था कि वे चढ़ाई चढ़ते हुए अपनी पत्नी की मदद कर रहे थे। और जब वे फुटपाथ पर चले गये तो हमारे बीच दूरी बढ़ती गयी, मुझे अचानक उदासी ने घेर लिया। डगलस मुड़े तो मैंने हाथ हिलाया। जवाब में उन्होंने भी हाथ हिलाया। यही आखिरी बार थी जब मैंने उन्हें देखा था। एक महीने बाद डगलस जूनियर ने फोन करके बताया कि उसके पिता पिछली रात दिल का दौरा पड़ने के कारण गुज़र गये। ये मेरे लिए बहुत बड़ा धक्का था क्योंकि वे जीवन से बहुत नज़दीकी नाता रखते थे।
मैं डगलस की कमी महसूस करता हूं। मैं उनके उत्साह की ऊष्मा और आकर्षण की कमी महसूस करता हूं। मैं टेलीफोन पर उनकी दोस्ताना आवाज़ की कमी महसूस करता हूं। यह आवाज़ उदास और अकेले रविवारों की सुबह मुझे फोन किया करती थी: 'चार्ली, लंच के लिए आ रहे हो ना!! उसके बाद तैराकी, और उसके बाद डिनर, और फिर, पिक्चर देखेंगे?' हां, मैं उनकी जानदार दोस्ती की कमी महसूस करता हूं।
किन आदमियों के समाज से मैं अपने आपको जोड़ना चाहूंगा? मेरा ख्याल है, मेरा अपना व्यवसाय ही मेरी पसंद होनी चाहिये। इसके बावजूद डगलस ही एक मात्र ऐसे अभिनेता थे जिनसे मैंने दोस्ती की। विभिन्न हॉलीवुड पार्टियों में सितारों से मिलने के बाद मैं संदेह से भरा हुआ ही बाहर आया हूं। इसका कारण शायद ये हो सकता है कि हम जैसे बहुत सारे थे। वहां का माहौल दोस्ताना होने के बजाये चुनौतीपूर्ण होता था। और होता ये था कि अपनी ओर खास तौर पर ध्यान खींचने के लिए आदमी को बुफे के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता था। नहीं, सितारे आपस में बहुत कम ऊष्मा या रोशनी देते हैं।
लेखक बहुत अच्छे लोग होते हैं लेकिन वे देने में कंजूसी बरतते हैं; वे जो कुछ भी जानते हैं, वे शायद ही दूसरों के बीच बांटते हों। उनमें से ज्यादातर अपने ज्ञान को अपनी किताबों की जिल्दों के भीतर रखते हैं। हो सकता है कि वैज्ञानिक बहुत अच्छी कम्पनी देते हों, लेकिन उनकी मौजूदगी मात्र से ड्राइंगरूम में मौजूद हम अन्य सभी मानसिक रूप से विक्षिप्त महसूस करने लगते हैं। पेंटर अपने आप में इस मायने में बोर होते हैं कि वे आपको इस बात का विश्वास दिला कर ही छोड़ेंगे कि वे पेंटर की तुलना में बड़े दार्शनिक हैं। निश्चित रूप से कवि बेहतरीन श्रेणी में आते हैं क्योंके व्यक्ति के रूप में वे खुशमिजाज, सहनशक्ति से लैस और बहुत ही शानदार कम्पनी होते हैं। लेकिन मेरा ख्याल है कि कुल मिला कर संगीतकार किसी भी अन्य वर्ग की तुलना में अधिक सहयोगी होते हैं। किसी सिम्फनी आर्केस्ट्रा को देखने से ज्यादा ऊष्मा और गति देने वाली और कोई चीज़ नहीं है। उनके म्यूजिक स्टैंड की रूमानी लाइटें, ट्यून अप करना और जब कन्डक्टर प्रवेश करता है तो अचानक छा जाने वाला सन्नाटा, ये बातें सामाजिक, सहयोगी भावना को ही दर्शाती हैं। मुझे याद है, होरोविट्ज़, पिआनोवादक मेरे घर पर खाना खा रहे थे, और मेहमान दुनिया के हालात पर बातचीत कर रहे थे, और बता रहे थे कि ये मंदी और बेरोज़गारी दुनिया में एक तरह का आध्यात्मिक नवजागरण लायेंगे। अचानक ही वे उठे और बोले,'इस बातचीत को सुन कर मेरी इच्छा हो रही है कि मैं पिआनो बजाऊं।' बेशक किसी ने भी इस पर एतराज़ नहीं किया और उन्होंने शूमैन का सोनाटा नम्बर 2 बजाया। मुझे शक है कि कभी इसे इससे बेहतर तरीके से बजाया गया होगा।
युद्ध शुरू होने से बस, कुछ ही दिन पहले मैंने उनकी पत्नी, टोस्कानिनी की बेटी के साथ खाना खाया। रशमनीनोफ और बार्बीरोली भी वहीं पर थे। रशमनीनोफ थोड़े अजीब से दिखने वाले शख्स थे। उनमें सौन्दर्य और साधक तत्व था। ये डिनर बेहद आत्मीय माहौल में था और वहां पर सिर्फ हम पांच ही थे।
ऐसा लगता है कि जब भी कला की चर्चा होती है, मैं हर बार इसकी अलग ही व्याख्या करता हूं। ऐसा क्यों न हो? उस शाम मैंने कहा था कि कला कौशलपूर्ण तकनीक में इस्तेमाल की जाने वाली अतिरिक्त संवेदना है। किसी ने तब विषय को धर्म की तरफ मोड़ दिया। तब मैंने स्वीकार किया कि मैं विश्वास करने वालों में से नहीं हूं। रशमनीनोफ ने तुरंत टोका,'तो क्या आपके पास बिना धर्म के कला हो सकती है?'
मैं एक पल के लिए सिटपिटा गया। 'मुझे नहीं लगता कि हम एक ही विषय के बारे में बात कर रहे हैं,' मैंने कहा,'धर्म की मेरी संकल्पना किसी हठधर्मिता में विश्वास करना है और कला विश्वास से कहीं अधिक भावना होती है।'
'यही बात धर्म के साथ भी है,' उन्होंने जवाब दिया। इसके बाद तो मैं चुप ही हो गया।
मेरे घर पर खाना खाते हुए इगोर स्ट्राविन्सकी ने सुझाव दिया कि हम मिल कर एक फिल्म बनायें। मैंने कहानी बुनी। मैंने कहा कि ये अतियथार्थवादी होनी चाहिये - एक ढहता हुआ नाइट क्लब है और उसमें डांस फ्लोर के चारों तरफ मेजें लगी हुई हैं। और हरेक मेज पर समूह और जोड़े बैठे हैं जो सांसारिक विश्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक मेज पर लालच, दूसरी पर पाखंड, एक अन्य मेज पर बेरहमी हैं। जो फ्लोर शो है वह भावनाओं का खेल है और जबकि सबके त्राता को सूली पर चढ़ाया जा रहा है, सब के सब उदासीन हो कर देख रहे हैं। कोई खाने का आर्डर दे रहा है तो कोई धंधे की बात कर रहा है। बाकी लोग भी बहुत कम दिलचस्पी दिखा रहे हैं। भीड़, उच्च पादरी और पाखंडी सूली पर अपनी मुट्ठियां ताने चिल्ला रहे हैं,'अगर आप ईश्वर की संतान हैं तो नीचे आइये और अपने आप को बचाइये।' पास ही की एक मेज पर कारोबारी लोगों का एक समूह उत्तेजना में एक बड़े सौदे की बात कर रहा है। एक आदमी नर्वस हो कर अपनी सिगरेट पर झुका है और त्राता की तरफ देख रहा है और परमात्मा की दिशा में, ख्यालों में खोये हुए धूंआ छोड़ रहा है।
एक अन्य मेज पर एक व्यापारी अपनी पत्नी के साथ बैठा मीनू देख रहा है। वह ऊपर देखती है और फिर फ्लोर से अपनी कुर्सी पीछे सरका देती है,'मैं इस बात को समझ नहीं पाती कि लोग यहां आते ही क्यों हैं?' वह बेचैन हो कर कहती है,'यहां दम घुटता है।'
'ये अच्छा मनोरंजन है।' व्यापारी कहता है। यहां शो शुरू करने से पहले ये जगह दिवालिया थी। अब वे मुसीबत से बाहर निकल आये हैं।'
'मेरा ख्याल है ये धर्मविरोधी है।'
'इससे बहुत भला होता है,' व्यापारी ने कहा,'जो लोग कभी भी किसी गिरजा घर के अंदर नहीं गये, यहां आते हैं और उन्हें ईसाईयत की कहानी पता चलती है।'
जैसे जैसे शो आगे बढ़ता है, एक शराबी, शराब के नशे में एक अलग ही धरातल पर उड़ रहा है। वह अकेले बैठा हुआ है और पहले वह रोना और फिर शोर मचाना शुरू कर देता है,'देखो, वे लोग उन्हें सूली पर चढ़ा रहे हैं, और किसी को परवाह ही नहीं है।' वह अपने पैरों पर लड़खड़ाता है और अपील करने की मुद्रा में अपने हाथ सूली की तरफ बढ़ा देता है। पास ही बैठी एक मंत्री की बीवी वेटर से शिकायत करती है और शराबी को उस जगह से बाहर ले जाया जाता है। वह अभी भी रो रहा है और विरोध कर रहा है,'देखो, किसी को परवाह ही नहीं है, कितने शानदार ईसाई हैं आप लोग!!'
'आप देखिये,' मैंने स्ट्राविन्स्की से कहा,'वे उसे उठा कर बाहर फेंक देते हैं क्योंकि वह शो का मज़ा खराब कर रहा है।' मैंने उन्हें समझाया कि नाइट क्लब के डांस फ्लोर पर भावना के खेल को डालने का अर्थ ये दिखाना था कि ईसाईयत के प्रदर्शन में दुनिया कितनी पागल और दकियानूसी बन गयी है।
महाशय का चेहरा बहुत गम्भीर हो गया,'लेकिन ये तो बहुत भयानक है,' कहा उन्होंने।
मैं थोड़ा हैरान और कुछ हद तक परेशान भी हुआ।
'ऐसा है क्या?' पूछा मैंने,'मेरी मंशा ऐसा करने की कत्तई नहीं थी। मैं तो ये सोच रहा था कि ये ईसाईयत के प्रति दुनिया के नज़रिये की आलोचना है - शायद कहानी सुनाते समय मैं कहीं गलती कर गया और बात को साफ नहीं कर पाया।' और इस तरह से इस विषय को छोड़ ही दिया गया। लेकिन कई हफ्ते बाद स्ट्राविन्स्की ने यह जानने के लिए पत्र लिखा कि क्या मैं अभी भी उनके साथ मिल कर फिल्म बनाने का विचार रखता हूं। अलबत्ता, मेरा उत्साह ठंडा पड़ गया था और मैं अपनी खुद की फिल्म बनाने में ज्यादा रुचि लेने लगा।
हैन्स एस्लर शोनबर्ग को मेरे स्टूडियो में लाये। वे स्पष्टवादी और रूखे आदमी थे। मैं उनके संगीत का प्रशंसक था और उन्हें मैं लॉस एंजेल्स में टेनिस टूर्नामेंटों में सफेद कैप और टीशर्ट पहने खुली सीटों पर अकेले बैठे अक्सर देखा था। मेरी फिल्म माडर्न टाइम्स देखने के बाद उन्होंने मुझे बताया था कि उन्हें कॉमेडी तो अच्छी लगी थी लेकिन मेरा संगीत बहुत खराब था। मैं उनसे आंशिक रूप से सहमत था। संगीत के बारे में चर्चा करते समय उन्होंने एक जुमला कहा था जो शाश्वत था: 'मैं आवाज़ें पसंद करता हूं, खूबसूरत आवाज़ें।'
हैन्स एस्लर ने इस महान व्यक्ति के बारे में एक मज़ेदार किस्सा सुनाया था। हैन्स उनके पास हार्मोनी सीखने जाया करते थे। उन्हें कड़ाके की ठंड में, जब बर्फ पड़ रही होती थी, पांच मील चल कर जाना पड़ता था ताकि वे आठ बजे अपने गुरू से संगीत का पाठ पढ़ सकें। शोनबर्ग, जो गंजेपन की ओर बढ़ रहे थे, पिआनो पर बैठ जाते जबकि हैन्स उनके कंधे के पीछे खड़े हो जाते और संगीत का पाठ पढ़ते रहते और सीटी बजाते रहते। 'नौजवान' गुरूजी ने कहा,'सीटी मत बजाओ, तुम्हारी बर्फीली सांस मेरे सिर पर बहुत ठंडी लग रही है।'
द डिक्टेटर के निर्माण के दौरान मुझे सनक भरे पत्र मिलने शुरू हो गये थे और अब चूंकि फिल्म पूरी हो गयी थी, ऐसे पत्रों की संख्या बढ़ने लगी। कुछ पत्रों में धमकियां दी गयी थीं कि वे लोग थियेटर पर बदबूदार बम फेंकेंगे जबकि कुछ और धमकियां थीं कि जहां कहीं फिल्म दिखायी जा रही होगी, परदे फाड़ देंगे। कुछ अन्य पत्रों में दंगा फसाद करने की बात कही गयी थी। पहले तो मैंने सोचा कि पुलिस को बताया जाये लेकिन फिर सोचा कि इस तरह का प्रचार शायद दर्शकों को थियेटरों से दूर ही रखे। मेरे एक दोस्त ने सुझाव दिया कि जहाजी मज़दूरों की यूनियन के प्रमुख हैरी ब्रिजेस से बात करना ठीक रहेगा। इसलिए मैंने उन्हें घर पर खाने के लिए बुलाया।
मैंने उन्हें बुलाये जाने के कारण के बारे में साफ साफ बता दिया। मैं जानता था कि ब्रिजेस नाज़ी विरोधी हैं, इसलिए मैंने उन्हें समझाया कि मैं नाज़ी विरोधी फिल्म बना रहा हूं और मुझे धमकी भरे खत मिल रहे हैं। मैंने कहा,'अगर कहें तो मैं पहले शो में आपके बीस या तीस मज़दूरों को आमंत्रित कर सकता हूं जो दर्शकों में घुल मिल कर बैठ जायेंगे और अगर ये नाज़ी समर्थक कोई हंगामा शुरू करते हैं तो आपके आदमी कुछ भी गम्भीर बात होने से पहले उनकी ऐसी तैसी कर सकते हैं।'
ब्रिजेस हँसे,'मुझे नहीं लगता कि हालत यहां तक पहुंचेगी, चार्ली। ऐसे खुराफातियों का मुकाबला करने के लिए आपकी अपनी ही जनता में काफी रक्षक होंगे। और अगर ये पत्र नाज़ी समर्थकों की तरफ से हैं तो वैसे भी वे दिन दहाड़े वहां आने की हिम्मत नहीं जुटा पायेंगे।'
उस रात हैरी ने सैन फ्रांसिस्को की हड़ताल के बारे में एक बहुत ही रोचक बात बतायी। उस वक्त ये हालत थी कि पूरा का पूरा शहर ही उनके नियंत्रण में था। शहर की पूरी आपूर्ति उनके हाथ में थी। लेकिन उन्होंने अस्पतालों ओõर बच्चों के लिए आवश्यक आपूर्ति में कोई बाधा नहीं डाली। हड़ताल के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा,'जब कारण न्यायोचित हो तो आपको जनता को प्रेरित करने की ज़रूरत नहीं होती; आपको सिर्फ यही करना होता है कि उन्हें तथ्य बता दें। बाकी बातें वे अपने आप तय कर लेंगे। मैंने अपने आदमियों से कहा कि अगर आप हड़ताल पर जाते हैं तो बीसियों तरह की तकलीफ़ें होंगी: हो सकता है कि कुछ लोगों को नतीजे ही पता न चलें। लेकिन वे जो भी तय करेंगे, मैं उनके कंधे से कंधा मिला कर खड़ा रहूंगा। अगर हड़ताल करने का फैसला होता है तो मैं पहली पंक्ति में खड़ा रहूंगा। मैंने कहा और पांच हज़ार आदमियों ने एक मत से हड़ताल करने का फैसला किया।'
द' ग्रेट डिक्टेटर न्यू यार्क में दो थियेटरों, एस्टर तथा द कैपिटल में फिल्म दिखाये जाने के लिए बुक की गयी थी। एस्टर में हमने फिल्म प्रेस को दिखाने की व्यवस्था की। हैरी हॉपकिन्स, फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट के प्रमुख सलाहकार ने उस रात मेरे साथ खाना खाया। इसके बाद, हम प्रेस के लिए आयोजित फिल्म प्रदर्शन के लिए गये। जब हम पहुंचे तो फिल्म आधी चल चुकी थी।
कॉमेडी के प्रेस प्रदर्शन की एक खास विशेषता हुआ करती है। हँसी फिल्म में जिस तरह से होती है, उसी तरह से सुनायी देती है। रिव्यू में फिल्म में हँसी के पल, अपने सही अर्थों में सामने आते रहे।
'ये वाकई महान फिल्म है,' जब हम थियेटर से निकले तो हैरी ने कहा,'आपने बहुत ही महत्त्वपूर्ण काम किया है, लेकिन इसके चलने की बहुत कम उम्मीद है। आपको घाटा उठाना पड़ेगा।' चूंकि इस फिल्म में मेरे खुद के 2,000,000 डॉलर लगे हुए थे और दो वर्ष की मेहनत इससे जुड़ी हुई थी, मैं उनकी इस विपरीत राय से चिंतातुर होने की सीमा तक सहमत नहीं था। फिर भी, मैंने गम्भीरता से सिर हिलाया।
ईश्वर का धन्यवाद कि हॉपकिन्स गलत साबित हुए।
द' ग्रेट डिक्टेटर ने कैपिटल में खुशी से मस्त दर्शकों के सामने शानदार ढंग से खाता खोला। दर्शक दिल खोल कर हँस रहे थे और उनके उत्साह की सीमा नहीं थी। ये फिल्म न्यू यार्क में दो थियेटरों में पन्द्रह सप्ताह तक चलती रही और उस वक्त तक की मेरी सभी फिल्मों की तुलना में सबसे ज्यादा कमाई करके देने वाली फिल्म साबित हुई।
लेकिन समीक्षाएं जो थीं, वे मिली-जुली थीं। अधिकतर समीक्षकों को अंतिम भाषण पर एतराज़ था। द' न्यूयार्क डेली न्यूज ने लिखा कि मैंने दर्शकों की तरफ साम्यवाद की उंगली उठायी है। हालांकि अधिकांश समीक्षकों ने भाषण पर ही एतराज़ किया था और कहा कि ये चरित्र में नहीं था। आम तौर पर जनता ने इसे पसन्द किया, और मुझे उसकी तारीफ में कई खत मिले।
आर्ची एल. मेयो, हॉलीवुड के महत्त्वपूर्ण निर्देशकों में से एक ने मुझसे अनुमति मांगी कि वे इस भाषण को अपने क्रिसमस कार्ड पर छापना चाहते हैं। यहां मैं मूल भाषण और उससे पहले उनके द्वारा दिया गया परिचय दे रहा हूं:
अगर हम लिंकन के काल में रहे होते तो मेरा ख्याल है मैंने आपको उनका गैटिसबर्ग भाषण भेजा होता, क्योंकि ये अपने वक्त का सर्वाधिक प्रेरणास्पद संदेश था। आज हम नये संकटों से गुज़र रहे हैं और एक दूसरे व्यक्ति ने अपने दिल की गहराइयों से और पूरी ईमानदारी से अपनी बात कही है। हालांकि मैं उस व्यक्ति को इतनी अच्छी तरह से नहीं जानता लेकिन उसने जो कुछ कहा है, उसने मुझे गहराई से छुआ है। मैं इस बात के लिए प्रेरित हुआ हूं कि चार्ली चैप्लिन द्वारा लिखे गये इस भाषण का पूरा पाठ आपको भेजूं ताकि आप भी आशा की इस अभिव्यक्ति में हिस्सेदारी कर सकें।
द' डिक्टेटर
का समापन भाषण
'मुझे खेद है, लेकिन मैं शासक नहीं बनना चाहता। ये मेरा काम नहीं है। किसी पर भी राज करना या किसी को जीतना नहीं चाहता। मैं तो किसी की मदद करना चाहूंगा - अगर हो सके तो - यहूदियों की, गैर यहूदियों की - काले लोगों की - गोरे लोगों की।
हम सब एक दूसरे की मदद करना चाहते हैं। मानव होते ही ऐसे हैं। हम एक दूसरे की खुशी के साथ जीना चाहते हैं - एक दूसरे की तकलीफ़ों के साथ नहीं। हम एक दूसरे से नफ़रत और घृणा नहीं करना चाहते। इस संसार में सभी के लिए स्थान है और हमारी यह समृद्ध धरती सभी के लिए अन्न जल जुटा सकती है।
'जीवन का रास्ता मुक्त और सुन्दर हो सकता है, लेकिन हम रास्ता भटक गये हैं। लालच ने आदमी की आत्मा को विषाक्त कर दिया है - दुनिया में नफ़रत की दीवारें खड़ी कर दी हैं - लालच ने हमें ज़हालत में, खून खराबे के फंदे में फंसा दिया है। हमने गति का विकास कर लिया लेकिन अपने आपको गति में ही बंद कर दिया है। हमने मशीनें बनायीं, मशीनों ने हमें बहुत कुछ दिया लेकिन हमारी मांगें और बढ़ती चली गयीं। हमारे ज्ञान ने हमें सनकी बना छोड़ा है; हमारी चतुराई ने हमें कठोर और बेरहम बना दिया है। हम बहुत ज्यादा सोचते हैं और बहुत कम महसूस करते हैं। हमें बहुत अधिक मशीनरी की तुलना में मानवीयता की ज्यादा ज़रूरत है। चतुराई की तुलना में हमें दयालुता और विनम्रता की ज़रूरत है। इन गुणों के बिना, जीवन हिंसक हो जायेगा और सब कुछ समाप्त हो जायेगा।
'हवाई जहाज और रेडियो हमें आपस में एक दूसरे के निकट लाये हैं। इन्हीं चीज़ों की प्रकृति ही आज चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है - इन्सान में अच्छाई हो - चिल्ला चिल्ला कर कह रहे है - पूरी दुनिया में भाईचारा हो, हम सबमें एकता हो। यहां तक कि इस समय भी मेरी आवाज़ पूरी दुनिया में लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंच रही है - लाखों करोड़ों - हताश पुरुष, स्त्रियां, और छोटे छोटे बच्चे - उस तंत्र के शिकार लोग, जो आदमी को क्रूर और अत्याचारी बना देता है और निर्दोष इन्सानों को सींखचों के पीछे डाल देता है। जिन लोगों तक मेरी आवाज़ पहुंच रही है - मैं उनसे कहता हूं - `निराश न हों'। जो मुसीबत हम पर आ पड़ी है, वह कुछ नहीं, लालच का गुज़र जाने वाला दौर है। इन्सान की नफ़रत हमेशा नहीं रहेगी, तानाशाह मौत के हवाले होंगे और जो ताकत उन्होंने जनता से हथियायी है, जनता के पास वापिस पहुंच जायेगी और जब तक इन्सान मरते रहेंगे, स्वतंत्रता कभी खत्म नहीं होगी।
'सिपाहियो! अपने आपको इन वहशियों के हाथों में न पड़ने दो - ये आपसे घृणा करते हैं - आपको गुलाम बनाते हैं - जो आपकी ज़िंदगी के फैसले करते हैं - आपको बताते हैं कि आपको क्या करना चाहिए - क्या सोचना चाहिए और क्या महसूस करना चाहिए! जो आपसे मशक्कत करवाते हैं - आपको भूखा रखते हैं - आपके साथ मवेशियों का-सा बरताव करते हैं और आपको तोपों के चारे की तरह इस्तेमाल करते हैं - अपने आपको इन अप्राकृतिक मनुष्यों, मशीनी मानवों के हाथों गुलाम मत बनने दो, जिनके दिमाग मशीनी हैं और जिनके दिल मशीनी हैं! आप मशीनें नहीं हैं! आप इन्सान हैं! आपके दिल में मानवता के प्यार का सागर हिलोरें ले रहा है। घृणा मत करो! सिर्फ़ वही घृणा करते हैं जिन्हें प्यार नहीं मिलता - प्यार न पाने वाले और अप्राकृतिक!!
'सिपाहियो! गुलामी के लिए मत लड़ो! आज़ादी के लिए लड़ो! सेंट ल्यूक के सत्रहवें अध्याय में यह लिखा है कि ईश्वर का साम्राज्य मनुष्य के भीतर होता है - सिर्फ़ एक आदमी के भीतर नहीं, न ही आदमियों के किसी समूह में ही अपितु सभी मनुष्यों में ईश्वर वास करता है! आप में! आप में, आप सब व्यक्तियों के पास ताकत है - मशीनें बनाने की ताकत। खुशियां पैदा करने की ताकत! आप, आप लोगों में इस जीवन को शानदार रोमांचक गतिविधि में बदलने की ताकत है। तो - लोकतंत्र के नाम पर - आइए, हम ताकत का इस्तेमाल करें - आइए, हम सब एक हो जायें। आइए, हम सब एक नयी दुनिया के लिए संघर्ष करें। एक ऐसी बेहतरीन दुनिया, जहां सभी व्यक्तियों को काम करने का मौका मिलेगा। इस नयी दुनिया में युवा वर्ग को भविष्य और वृद्धों को सुरक्षा मिलेगी।
'इन्हीं चीज़ों का वायदा करके वहशियों ने ताकत हथिया ली है। लेकिन वे झूठ बोलते हैं! वे उस वायदे को पूरा नहीं करते। वे कभी करेंगे भी नहीं! तानाशाह अपने आपको आज़ाद कर लेते हैं लेकिन लोगों को गुलाम बना देते हैं। आइए, दुनिया को आज़ाद कराने के लिए लड़ें - राष्ट्रीय सीमाओं को तोड़ डालें - लालच को खत्म कर डालें, नफ़रत को दफ़न करें और असहनशक्ति को कुचल दें। आइये, हम तर्क की दुनिया के लिए संघर्ष करें - एक ऐसी दुनिया के लिए, जहां पर विज्ञान और प्रगति इन सबकों खुशियों की तरफ ले जायेगी, लोकतंत्र के नाम पर आइए, हम एक जुट हो जायें!
हान्नाह![1] क्या आप मुझे सुन रही हैं?
आप जहां कहीं भी हैं, मेरी तरफ देखें! देखें, हान्नाह! बादल बढ़ रहे हैं! उनमें सूर्य झाँक रहा है! हम इस अंधेरे में से निकल कर प्रकाश की ओर बढ़ रहे हैं! हम एक नयी दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं - अधिक दयालु दुनिया, जहाँ आदमी अपनी लालच से ऊपर उठ जायेगा, अपनी नफ़रत और अपनी पाशविकता को त्याग देगा। देखो हान्नाह! मनुष्य की आत्मा को पंख दे दिये गये हैं और अंतत: ऐसा समय आ ही गया है जब वह आकाश में उड़ना शुरू कर रहा है। वह इन्द्रधनुष में उड़ने जा रहा है। वह आशा के आलोक में उड़ रहा है। देखो हान्नाह! देखो!'
प्रीमियर के एक हफ्ते बाद मुझे आर्थर सुल्जबर्गर, न्यू यार्क टाइम्स के स्वामी द्वारा दिये गये लंच आयोजन में आमंत्रित किया गया। जब मैं वहां पहुंचा तो मुझे टाइम्स बिल्डिंग की सबसे ऊपर वाली मंजिल में ले जाया गया और एक घरेलू सुइट में मेरी अगवानी की गयी। ये पेंटिंगों, फोटोग्राफों और चमड़े के गÿाò वगैरह से सजा धजा एक ड्राइंग रूम था। फायर प्लेस के पास कई विभूतियां विराजमान थीं। इनमें युनाइटेड स्टेट्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति मिस्टर हरबर्ट हूवर, भी थे। साधुओं जैसी मुखाकृति और छोटी आंखें वाले कÿावर शख्स थे वे।
'ये, श्रीमान पेसिडेंट, चार्ली चैप्लिन हैं।' मिस्टर सुल्जबर्गर ने मुझे उस विभूति के पास ले जाते हुए कहा। कई सलवटों के बीच में से मिस्टर हूवर का चेहरा मुस्कुराया।
'ओह! हां,' वे उत्साह से बोले,'हम पहले भी मिल चुके हैं। कई बरस पहले।'
मैं ये देख कर हैरान हुआ कि मिस्टर हूवर को वह मुलाकात याद रही, क्योंकि उस वक्त वे व्हाइट हाउस के लिए खुद को ढालने की तैयारियों में लगे हुए थे। वे एस्टर होटल में एक प्रेस डिनर में शामिल हुए थे और मुझे वहां के एक सदस्य द्वारा मिस्टर हूवर के व्याख्यान से पहले भर्ती के रूप में शामिल कर लिया गया था। उस समय मैं तलाक दिये जाने की उलझनों में फंसा हुआ था और मुझे ऐसा लगता है कि मैंने इस आशय के कुछ शब्द बड़बड़ा दिये थे कि मैं राजनीति के बारे में बहुत कम जानता हूं बल्कि सच तो ये है कि मैं अपने खुद के मामलों को भी ढंग से कहां जानता हूं। दो मिनट तक इस तरह की कुछ बकवास करने के बाद मैं बैठ गया था। बाद में मिस्टर हूवर से मेरा परिचय कराया गया था। मेरा ख्याल है, मैंने वहां कहा था,'कैसे हैं आप!' और बस, बात वहीं खत्म हो गयी थी।
वे बेतरतीब सी पाण्डुलिपि देखकर बोल रहे थे। उनके सामने कागज़ों की चार इंच मोटी गड्डी थी और वे जैसे जैसे कागज़ पढ़ते जाते, उन्हें अपने सामने से हटाते जाते। डेढ़ घंटे बाद सब लोग उन कागज़ों को मज़े लेते हुए देखने लगे। दो घंटे बाद कागज़ों की बराबर-बराबर की दो गड्डियां हो गयी थी। कई बार वे बारह पन्द्रह कागज़ एक साथ उठा लेते और उन्हें एक तरफ रख देते। बेशक, वे पल बहुत सुखद होते। जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है और ये भाषण भी आखिर खत्म हुआ, जिस वक्त उन्होंने बिल्कुल कारोबारी तरीके से अपने कागज़ संभाले, मैं उनकी तरफ देखकर मुस्कुराया। मैं उन्हें उनके भाषण के लिए बधाई देना ही चाहता था कि वे मेरी तरफ ध्यान दिये कि मेरे पास से गुज़र गये थे।
और अब, कई बरसों के बाद, बीच का वह अरसा, जिसमें वे राष्ट्रपति रहे थे, वे असामान्य रूप से दोस्ताना दिखते हुए फायर प्लेस के सामने खड़े थे। हम एक बड़ी सी गोल मेज पर लंच के लिए बैठ गये। कुल मिला कर हम बारह लोग थे। मुझे बताया गया था कि इस तरह के लंच आयोजन एक खास भीतरी समूह के लिए ही होते थे।
अमेरिकी व्यवसायी प्रशासकों का एक वर्ग होता है जो मुझे हीनता की भावना से भर देता है। वे बहुत ऊंचे कद के होते हैं, दिखने में आकर्षक होते हैं, बेहद शानदार तरीके से उन्होंने कपड़े पहने होते हैं, सहज, आत्म नियंत्रण में रहने वाले और साफ सोचने वाले लोग, और उनके सामने तथ्य सफाई से रखे होते हैं। उनकी गूंजती सी भारी आवाज़ होती है और जब वे मानवीय मामलों की बात करते हैं तो ज्यामिती की भाषा के शब्दों में करते हैं। उदाहरण के लिए वे कहेंगे: 'वार्षिक बेरोज़गारी के नमूने से होनी वाली संगठनात्मक प्रक्रियाएं' आदि। और इसी तरह के लोग उस मेज पर चारों तरफ बैठे हुए थे। वे भयावह लग रहे थे और उनके कद आकाश को छूते लग रहे थे। उनमें अगर कोई मानवीय चेहरा था तो वह था ओ'हरे मैक्कार्मिक का। वे बहुत विदुषी और आकर्षक महिला थीं। वे न्यू यार्क टाइम्स की विख्यात राजनैतिक स्तम्भकार थीं।
लंच के वक्त माहौल औपचारिक था और बातचीत कर पाना मुश्किल था। हर कोई मिस्टर हूवर को 'मिस्टर प्रेसिडेंट' कह कर संबोधित कर रहा था। मुझे लगा, शायद इस सब की ज़रूरत नहीं थी। जैसे जैसे लंच आगे बढ़ा, मुझे यह महसूस होने लगा कि मुझे यूं ही बेकार में लंच के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है। एक पल बाद मिस्टर सुल्जबर्गर ने जो कुछ कहा, उससे मेरा रहा सहा शक भी जाता रहा। बीच में, मौन के अनुकूल पल पा कर उन्होंने कहा,'मिस्टर प्रेसिडेंट, मैं चाहता हूं कि आप यूरोप के लिए अपने प्रस्तावित मिशन के बारे में बतायें।'
मिस्टर हूवर ने अपने छुरी कांटे नीचे रख दिये, ध्यानपूर्वक कौर चबाते रहे, तब उसे गले से नीचे उतारा और अंतत: उन्होंने वह सब कुछ कहना शुरू किया जो पूरे लंच के दौरान उसके दिलो-दिमाग को घेरे हुए था। वे अपनी प्लेट में देखकर बात करने लगे और जब वे बोलते तो मिस्टर सुल्जबर्गर और मेरी तरफ भेदभरी निगाहों से देख लेते,'हम सब जानते हैं कि इस वक्त यूरोप किस दयनीय हालत से गुज़र रहा है, वहां पर युद्ध के बाद से गरीबी और भुखमरी के हालात अपने पैर पसार रहे हैं। वहां पर हालात इतने नाज़ुक हैं कि मैंने वाशिंगटन से अनुरोध किया है कि वे हालात पर काबू पाने के लिए जल्दी ही कुछ करें,' (मैंने यही माना कि वाशिंगटन का मतलब राष्ट्रपति रूज़वेट ही होगा) यहां पर उन्होंने पहले विश्व युद्ध के दौरान भेजे गये अपने पिछले मिशन के आंकड़े और नतीजे उगलने शुरू कर दिये, जब 'हमने पूरे यूरोप को खिलाया था।' 'इस तरह का मिशन,' उन्होंने कहना जारी रखा,'किसी पार्टी से जुड़ा नहीं होगा, और ये पूरी तरह से मानवीय प्रयोजनों के लिए होगा। आप इसमें कुछ दिलचस्पी रखते हैं?' उन्होंने मेरी तरफ कनखियों से देखते हुए कहा।
मैंने गंभीरता से सिर हिलाया।
'आप इस परियोजना को कब शुरू करना चाहते हैं, मिस्टर प्रेसिडेंट?' मिस्टर सुल्जबर्गर ने पूछा।
'जैसे ही हमें वाशिंगटन की तरफ से अनुमोदन मिलेगा,' मिस्टर हूवर ने कहा। 'वाशिंगटन को जनता की तरफ से अनुरोध किये जाने और गणमान्य सार्वजनिक विभूतियों की ओर से समर्थन की ज़रूरत है।' एक बार फिर उन्होंने मेरी तरफ कनखियों से देखा और मैंने एक बार फिर सिर हिलाया। 'कब्जे वाले फ्रांस में,' उन्होंने कहना जारी रखा, 'लाखों लोग ऐसे हैं जिन्हें मदद की ज़रूरत है। नार्वे, डेनमार्क, हॉलेण्ड, बेल्जियम, सब जगह, पूरा का पूरा यूरोप ही अकाल की चपेट में हैं।' वे साधिकार बोलते रहे, आंकड़े उगलते रहे और उन पर अपने विश्वास, आशा और सहृदयता का मुल्लमा चढ़ाते रहे।
इसके बाद मौन पसर गया। मैंने अपना गला खखारा,'बेशक, स्थितियां बिल्कुल वैसी ही नहीं हैं जैसी कि पहले विश्व युद्ध के समय थीं। फ्रांस और उसी की तरह दूसरे कई देश भी पूरी तरह से कब्जे में हैं। निश्चित रूप से हम नहीं चाहेंगे कि हम जो अन्न भेजें, वह नाज़ियों के हाथ लगे।'
मिस्टर हूवर थोड़ा सा नाराज़ दिखे, इसी तरह की मामूली सी सरसराहट उन सब लोगों में भी दिखी जो वहां पर जमा थे। वे सब के सब पहले मिस्टर हूवर की तरफ देखने लगे फिर मेरी तरफ।
मिस्टर हूवर ने फिर से अपनी प्लेट की तरफ देख कर कहा,'हम अमेरिकी रेड क्रॉस के सहयोग से, पार्टीबाजी से परे एक कमीशन बनायेंगे और हेग समझौते के पैरा सत्ताइस, खण्ड तितालिस के अधीन काम करेंगे। इसके अन्तर्गत मदद करने वाला मिशन (मर्सी कमीशन) दोनों ही तरफ के, वे आपस में संघर्षरत हों या नहीं, बीमारों और ज़रूरतमंदों की मदद करेगा। मेरा ख्याल है, मानवता की दृष्टि से आप सब के सब इस तरह के कमीशन का समर्थन करेंगे।' ये ठीक वही शब्द नहीं हैं जो उन्होंने कहे थे - इसी तरह के भावार्थ वाली बात कही थी उन्होंने।
मैं अपनी बात पर अड़ा रहा। 'मैं इस विचार से सच्चे दिल से पूरी तरह से सहमत हूं, लेकिन शर्त यही है कि ये अन्न नाज़ियों के हाथों में नहीं पड़ना चाहिए,' मैंने कहा।
इस जुमले से मेज पर एक बार फिर सनसनी फैल गयी।
मिस्टर हूवर ने सधी हुई विनम्रता के साथ कहा,'हम इस तरह के काम पहले भी कर चुके हैं।' वहां जो आकाश छूती युवा विभूतियां बैठी थीं, उन सबकी निगाह अब मेरी तरफ मुड़ी। उनमें से एक मुस्कुराया।
उसके बोल फूटे,'मेरा ख्याल है मिस्टर प्रेसिडेंट स्थिति को संभाल सकते हैं।'
'बहुत ही अच्छा विचार है,' मिस्टर सुल्जबर्गर ने अधिकारपूर्ण तरीके से कहा।
'मैं पूरी तरह से सहमत हूं,' मैंने दबी हुई आवाज़ में कहा,'और इसका सौ प्रतिशत समर्थन करूंगा, यदि भौतिक रूप से इसकी व्यवस्था यहूदी लोगों के हाथों में हो।'
'ओह,' मिस्टर हूवर ने बात काटते हुए कहा,'ये तो संभव नहीं होगा।'
फिफ्थ एवेन्यू के आस पास चुस्त युवा नाज़ियों को महोगनी के छोटे-छोटे मंचों पर खड़े होकर जनता के छोटे-छोटे समूहों के सामने भाषण देते सुनना बहुत अजीब लगता। एक भाषण यूं चल रहा था: 'हिटलर का दर्शन गहन हैं और इस औद्योगिक युग, जिसमें बिचौलिये या यहूदी के लिए बिल्कुल भी जगह नहीं है, की समस्याओं का सुविचारित अध्ययन है।'
एक महिला ने टोका,'ये किस किस्म की बात हो रही है?' वह हैरान हुई,'ये अमेरिका है। आप समझते क्या हैं कि आप कहां हैं?'
वह चमचे सरीखा नौजवान, जो सुदर्शन था, बेशरमी से मुस्कुराया। 'मैं युनाइटेड स्टेट्स में हूं और संयोग से मैं अमेरिकी नागरिक हूं।' उसने सहजता से कहा।
'ये बात है,' वह महिला बोली,'मैं एक अमेरिकी नागरिक हूं और यहूदी हूं और अगर मैं पुरुष होती तो तुम्हें धूल चटा देती।'
एक या दो लोगों ने महिला की धमकी का समर्थन किया लेकिन ज्यादातर लोग भावशून्य होकर मौन खड़े रहे। पास ही खड़े एक पुलिस वाले ने महिला को शांत किया। मैं हैरान होकर वहां से लौटा। मैं अपने कानों पर विश्वास ही नहीं कर पा रहा था।
एक या दो दिन के बाद की बात है, मैं देहात वाले घर में था और एक पीले, खून की कमी की वज़ह से कमज़ोर-से दिखने वाले फ्रांसीसी युवक काउंट चैम्बरुन, जो पियरे लावाल की पुत्री का पति था, ने लंच से पहले मुझे लगातार कोंचना शुरू किया। उसने न्यू यार्क में पहली ही रात द ग्रेट डिक्टेटर देखी थी। उसने उदारता से कहा, 'बेशक, आपके नज़रिये को गम्भीरता से नहीं लिया गया है।'
'कुछ भी कहो, ये कामेडी ही तो है।' मैंने कहा।
नाज़ी यातना शिविरों में जो जघन्य कत्ले आम हो रहे थे और जो अत्याचार ढाये जा रहे थे, अगर मुझे उनके बारे में पता होता तो मैं इतना विनम्र न होता। वहां पर पचास के करीब मेहमान जमा थे और हरेक मेज़ पर चार लोग बैठे थे। वह हमारी मेज़ पर चला आया और मुझे राजनैतिक बहस में घसीटने की कोशिश करने लगा। लेकिन मैंने उससे कह दिया कि मैं राजनीति की तुलना में अच्छा भोजन ज्यादा पसन्द करता हूं। उसकी बातचीत इस तरह की थी कि मैंने मज़बूरन अपना गिलास उठाया और कहा,'लगता है मैं बहुत अधिक मिनरल वाटर पीने लगा हूं।' अभी मैंने ये शब्द कहे ही थे कि किसी दूसरी मेज पर झड़प शुरू हो गयी और दो महिलाओं में तू तू मैं मैं शुरू हो गयी। ये झगड़ा इतना भीषण हो गया कि लगता था, एक-दूसरे के बाल खींचे जायेंगे। एक महिला दूसरी पर चिल्ला रही थी,'मैं इस तरह की बकवास सुनने की आदी नहीं हूं। तुम बेगैरत नाज़ी हो।'
न्यू यार्क के एक युवा राजकुमार ने मुझसे विनम्रता से पूछा कि मैं इतना अधिक नाज़ी विरोधी क्यों हूं? मैंने कहा, क्योंकि वे जनता के ही विरोधी हैं। 'बेशक' वह बोला, और उसे लगा कि उसने कोई नयी खोज कर ली है। पूछा मुझसे,'क्या आप यहूदी हैं? नहीं क्या?'
'नाज़ी विरोधी होने के लिए किसी का यहूदी होना ज़रूरी नहीं है।' मैंने जवाब दिया,'सबसे बड़ी और महत्त्वपूर्ण बात तो यही है कि आदमी सामान्य सभ्य आदमी बना रहे।' और ये विषय वहीं खत्म हो गया था।
एक या दो दिन के बाद की बात है, मुझे वाशिंगटन में हॉल आफ द डॉटर्स ऑफ द अमेरिकन रिवोल्यूशन में हाज़िर होना था और रेडियो पर द ग्रेट डिक्टेटर के अंतिम भाषण का पाठ करना था। इससे पहले, मुझे राष्ट्रपति रूज़वेल्ट से मिलने के लिए बुलाया गया था। उनके अनुरोध पर मैंने ये फिल्म व्हाइट हाउस भिजवा दी थी। जब मुझे उनके निजी अध्ययन कक्ष में ले जाया गया तो उन्होंने ये कहते हुए मेरा स्वागत किया,'बैठो, चार्ली, आपकी फिल्म की वज़ह से अर्जेन्टीना में बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी हो गयी है।' फिल्म के बारे में बस, उनकी यही टिप्पणी थी। बाद में मेरे एक मित्र ने पूरी बात का निचोड़ बताते हुए कहा था,'आपका व्हाइट हाउस में स्वागत तो किया गया लेकिन गले से नहीं लगाया गया।'
मैं राष्ट्रपति के साथ लगभग चालीस मिनट तक बैठा था। इस दौरान उन्होंने मुझे कई बार ड्राई मार्टिनी के जाम पेश किये जिन्हें मैं शर्म के मारे भीतर उतरता रहा। जब विदा होने का वक्त आया तो मैं एक तरह से व्हाइट हाउस से लुढ़कता हुआ बाहर आया - तब मुझे अचानक याद आया कि मुझे तो दस बजे रेडियो पर बोलना था। ये राष्ट्रीय प्रसारण था जिसका मतलब होता लगभग छ: करोड़ लोगों से बात करना। ठण्डे पानी के नीचे खड़े हो कर कई बार सिर धोने और तेज़ ब्लैक कॉफी पीने के बाद ही मैं कमोबेश होश में आ पाया था।
अमेरिका अभी तक युद्ध में नहीं कूदा था इसलिए उस रात हाल में बहुत सारे नाज़ी थे। अभी मैंने अपना भाषण शुरू ही किया था कि नाज़ियों ने खांसना खखारना शुरू कर दिया। ये आवाज़ें स्वाभाविक रूप से खांसने से बहुत ऊंची थीं। इस बात ने मुझे नर्वस कर दिया और नतीजा ये हुआ कि मेरा मुंह सूख गया। मेरी जीभ मेरे तालु से चिपकने लगी और मेरे लिए शब्द बोलना मुश्किल हो गया। भाषण छ: मिनट लम्बा था। भाषण बीच में रोक कर मैंने कहा कि जब तक मुझे एक गिलास पानी नहीं मिलेगा, मैं आगे नहीं बोल पाऊंगा। बेशक, हॉल में एक बूंद भी पानी नहीं था और यहां पर मैं छ: करोड़ लोगों को रोके हुए था। दो मिनट के अंतराल के बाद मुझे कागज़ के एक छोटे से लिफाफे में पानी दिया गया। तभी मैं अपना भाषण पूरा कर पाया था।
छब्बीस
अब यह अपरिहार्य हो गया था कि पॉलेट और मैं अलग हो जायें। हम दोनों ही इस बात को द ग्रेट डिक्टेटर के शुरू होने से बहुत पहले से जानते थे और अब फिल्म पूरी हो जाने के बाद हमारे सामने ये सवाल मुंह बाये खड़ा था कि कोई फैसला लें। पॉलेट यह संदेश छोड़ कर गयी कि वह पैरामाउंट में एक और फिल्म में काम करने के लिए कैलिफोर्निया वापिस जा रही है। इसलिए मैं कुछ अरसे तक रुका रहा और न्यू यार्क के आस-पास ही भटकता फिरा। फ्रैंक, मेरे बटलर ने फोन पर बताया कि जब वह बेवरली हिल्स वापिस आयी तो वह वहां पर ठहरी नहीं, अलबत्ता उसने अपना सामान समेटा और चली गयी। जब मैं बेवरली हिल्स अपने घर लौटा तो वह तलाक लेने के लिए मैक्सिको जा चुकी थी। घर अब बहुत उदास हो गया था। ज़िंदगी का ये मोड़ वाकई तकलीफ देने वाला था क्योंकि किसी की ज़िंदगी से आठ बरस के संग-साथ को काट कर अलग कर पाना मुश्किल काम था।
हालांकि द ग्रेट डिक्टेटर अमेरिकी जनता के बीच बेहद लोकप्रिय हो रही थी, इस बात में कोई शक नहीं था कि इसने भीतर ही भीतर विरोध के स्वर भी खड़े किये थे। इस तरह का पहला संकेत प्रेस से उस वक्त आया जब मैं बेवरली हिल्स वापिस आया। बीस से भी ज्यादा लोगों की धमकाती भीड़ हमारे कांच से घिरे पोर्च में आ जुटी और आ कर चुपचाप बैठ गयी। मैंने उन्हें शराब पिलानी चाही तो उन्होंने मना कर दिया - प्रेस के सदस्यों द्वारा इस तरह का व्यवहार करना असामान्य बात थी।
'आपके दिमाग में क्या है, चार्ली?' उनमें से एक ने पूछा। वह स्पष्टत: ही उन सबकी तरफ से बात कर रहा था।
'द डिक्टेटर के लिए थोड़ा-बहुत प्रचार!' मैंने मज़ाक में कहा।
मैंने उन्हें राष्ट्रपति के साथ अपने साक्षात्कार के बारे में बताया और इस बात का उल्लेख किया कि अमेरिकी दूतावास को अर्जेन्टीना में इस फिल्म की वज़ह से तकलीफ़ हो रही है। मुझे लगा कि मैंने उन्हें एक मज़ेदार किस्सा सुनाया है, लेकिन फिर भी वे मौन ही बने रहे। थोड़ी देर के अंतराल के बाद मैंने हँसी मज़ाक में कहा,'लगता है ये बात कुछ हजम नहीं हुई, क्या ख्याल है?'
'नहीं, बात तो नहीं जमी,' प्रवक्ता ने कहा। 'आपका जन सम्पर्क बहुत अच्छा नहीं है। आप प्रेस की परवाह न करते हुए चले गये थे और हमें ये बात अच्छी नहीं लगी।'
हालांकि मैं स्थानीय प्रेस के साथ कभी भी इतना लोकप्रिय नहीं था, उसकी बात से मुझे थोड़ा मज़ा आया। सच तो ये था कि मैं प्रेस से बिन मिले ही हॉलीवुड से चला गया था क्योंकि मैं यह मान कर चल रहा था कि जो मेरे बहुत अच्छे दोस्त नहीं हैं, हो सकता है वे लोग `द ग्रेट डिक्टेटर को न्यू यार्क में देखे जाने का मौका दिये जाने से पहले ही उसकी चिंदी-चिंदी कर डालें। फिल्म में मेरे 2,000,000 डॉलर दांव पर लगे हुए थे और मैं कोई भी जोखिम लेना गवारा नहीं कर सकता था। मैंने उन्हें बताया कि चूंकि ये नाज़ी विरोधी फिल्म है, इसलिए इसके दुश्मन भी शक्तिशाली हैं, यहां कि वे लोग अमेरिका में भी हैं और फिल्म को एक मौका दिये जाने के लिए मैंने अंतिम क्षणों में ही जनता के लिए इसे प्रस्तुत करने से पहले इसका रिव्यू करने का फैसला लिया था।
लेकिन मेरी कही कोई भी बात उनके अड़ियल रुख को डिगा नहीं सकी। माहौल बदला और प्रेस में कई खुराफाती चीज़ें नज़र आने लगीं। शुरू-शुरू में छोटे-छोटे हमले, मेरे कमीनेपन के किस्से, फिर पॉलेट और मेरे बारे में भद्दी अफवाहें। लेकिन उल्टे प्रचार के बावजूद द ग्रेट डिक्टेटर इंगलैंड और अमेरिका, दोनों ही जगह धूम मचाती रही, कीर्तिमान भंग करती रही।
हालांकि अमेरिका अभी तक युद्ध में नहीं उतरा था, रूज़वेल्ट ने हिल्टर के साथ शीत युद्ध छेड़ा हुआ था। इस बात ने राष्ट्रपति को अच्छी -खासी परेशानी में डाल रखा था क्योंकि नाज़ियों ने अमेरिकी संस्थाओं और संगठनों में भीतर तक पैठ बनायी हुई थी; चाहे ये संगठन इस बात को जानते थे या नहीं; उन्हें नाज़ियों के हथियारों की तरह इस्तेमाल में लाया जा रहा था।
तभी अचानक और ड्रामाई खबर आयी कि जापान ने पर्ल हार्बर पर हमला कर दिया है। इसकी भीषणता ने अमेरिका को सन्न कर दिया। लेकिन अमेरिका ने तत्काल ही युद्ध के लिए कमर कस ली और देखते ही देखते अमेरिकी सैनिकों की कई डिवीज़न समुद्र पर जा चुकी थीं। इसी वक्त में, रूसी सैनिक हिटलरी सेना को मास्को के बाहर रोके हुए थे और मांग कर रहे थे कि जल्दी ही दूसरा फ्रंट खोला जाये। रूज़वेल्ट ने इसकी सिफ़ारिश की थी; और हालांकि नाज़ियों के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोग अब भूमिगत हो चुके थे, उनका फैलता गया ज़हर अभी भी फिज़ां में घुला हुआ था। हमें अपने रूसी मित्रों से अलग करने की हर संभव कोशिश की जा रही थी। उस वक्त इस तरह का ज़हरीला प्रचार-प्रसार हो रहा था: 'पहले दोनों को आपस में लड़ मरने दो, फिर हम मौके के हिसाब से फैसला करेंगेl'
दूसरे फ्रंट को रोकने के लिए हर तरह की तरकीब इस्तेमाल की जा रही थी। आने वाले दिन चिंता से भरे थे। हर दिन हमें रूस में मरने वालों की दिल दहला देने वाली खबरें मिलतीं। दिन हफ्तों में बदलते गये और हफ्ते कई-कई महीनें में बदल गये, लेकिन हालात अभी भी वही थे। नाज़ी मास्को के बाहर डेरा डाले हुए थे।
मेरा ख्याल है, इसी वक्त के दौरान मेरी मुसीबतें शुरू हुईं। मुझे सैन फ्रांसिस्को में रूसी युद्ध राहत के लिए अमेरिकी समिति के प्रमुख की ओर से एक टेलीफोन संदेश मिला। उन्होंने पूछा कि क्या मैं रूस में भूतपर्व अमेरिकी राजदूत मिस्टर जोसेफ ई डेविस की जगह ले सकूंगा? वे बोलने वाले थे लेकिन अंतिम क्षणों में उन्हें गले की तकलीफ हो गयी है। हालांकि मेरे पास कुछ ही घंटे का समय था, मैंने न्यौता स्वीकार कर लिया। बैठक अगले दिन होने वाली थी, इसलिए मैंने शाम की गाड़ी पकड़ी जिसने मुझे अगले दिन सुबह आठ बजे सैन फ्रांसिस्को पहुंचा दिया।
समिति ने मेरे लिए `एक सामाजिक यात्रा दौरा' तैयार किया था। लंच फलां जगह लेना है और डिनर दूसरी जगह - इसकी वज़ह से मुझे भाषण के बारे में सोचने का बहुत थोड़ा-सा ही वक्त मिल पाया। अलबत्ता, मैंने डिनर के वक्त दो गिलास शैम्पेन के अपने हलक के नीचे उतारे तो कुछ बात बनी।
उस हॉल की दस हज़ार लोगों की क्षमता थी और वह खचाखच भरा हुआ था। मंच पर विराजमान थे अमेरिकी जल सेना अध्यक्ष और थल सेना अध्यक्ष, तथा सैन फ्रांसिस्को के मेयर रोस्सी। उनके भाषण बंधे-बंधे से तथा टाल मटोल वाली भाषा में थे। मेयर ने कहा,'इस तथ्य को स्वीकार करना ही होगा कि रूसी हमारे मित्र हैं।' वे इस बात के प्रति सतर्क थे कि कहीं वे रूसी एमर्जेंसी के कुछ ज्यादा ही बखान न कर दें, या उनकी बहादुरी की कुछ ज्यादा ही तारीफ़ न कर दें या इस तथ्य का उल्लेख न कर दें कि वे नाज़ियों की लगभग दो सौ डिवीज़नों को रोके रखने के लिए लड़ और मर रहे थे। उस शाम मैंने महसूस किया कि नज़रिया तो यही था कि हमारे मित्र राष्ट्र हमदम तो हैं लेकिन अजीब हैं।
समिति के प्रमुख ने मुझसे आग्रह किया था कि मैं, हो सके तो एक घंटे तक बोलूं। इस बात ने मुझे भयभीत कर दिया। अधिकतम चार मिनट तक बोलने की मेरी सीमा थी। लेकिन इस तरह की कमज़ोर दलीलें सुन कर मेरा गुस्सा भड़क उठा था। मैंने अपने डिनर के निमंत्रण पत्र के पीछे चार विषयों की टिप्पणियां लिखीं। मैं घबराहट और डर की हालत में मंच के पीछे वाले हिस्से में दायें बायें हो रहा था। मैं मित्रों के आगे बढ़ने का इंतज़ार कर रहा था। तभी मैंने सुना कि मेरा परिचय दिया जा रहा था।
मैं काली टाई और डिनर जैकेट पहने हुए था। थोड़ी सी तालियां बजीं जिससे मुझे अपने आपको संभालने के लिए थोड़ा-सा वक्त मिल गया। जब शोर थमा तो मैंने एक ही शब्द कहा,'कॉमेरड्स!' और पूरे हॉल में हँसी के जैसे फटाखे फूटे। जब हँसी थमी तो मैंने ज़ोर देकर कहा,'और मैं सचमुच कॉमरेड ही कहना चाहता हूं।' नये सिरे से हँसी की फुहारें, फिर तालियां। मैंने अपनी बात जारी रखी,'मैं ये मान कर चल रहा हूं कि आज रात यहां पर बहुत सारे रूसी हैं, और जिस तरह से आपके देशवासी ठीक इस पल में लड़ रहे हैं और मर रहे हैं, आपको कॉमरेड कह कर पुकारना अपने आप में आदर और विशेषाधिकार है।' तालियां बजाते हुए कई लोग खड़े हो गये।
'दोनों को खून बहाने दो' के बारे में सोचते हुए अब मेरे भीतर जोत जल चुकी थी। मैं इस जुमले के बारे में अपनी नाराज़गी दर्शाना चाहता था, लेकिन किसी भीतरी प्रेरणा ने मुझे ऐसा करने से रोका। इसके बजाये मैंने कहा,'मैं कम्यूनिस्ट नहीं हूं, मैं एक इन्सान हूं और मेरा ख्याल है, मैं मानवों की, इन्सानों की प्रतिक्रिया के बारे में जानता हूं। कम्यूनिस्ट किसी और व्यक्ति से ज़रा-सा भी अलग नहीं होते; चाहे वे अपना एक हाथ खो बैठें, या अपनी टांग खो बैठें; उन्हें भी उतनी ही तकलीफ़ भोगनी पड़ती है जितनी हमें भोगनी पड़ती है, वे भी वैसे ही मरते हैं जैसे हम मरते हैं और कम्यूनिस्ट मां भी किसी दूसरी मां की ही तरह होती है। जब उसे यह दु:खद समाचार मिलता है कि उसका बेटा अब कभी लौट कर नहीं आयेगा तो वह भी उसी तरह से रोती है जिस तरह से कोई और मां रोती है। मुझे ये सब जानने के लिए मेरा कम्यूनिस्ट होना ज़रूरी नहीं है। ये सब जानने के लिए मेरा इन्सान होना ही काफी है, और ठीक इन्हीं पलों में रूसी माताएं बहुत रो रही हैं और उनके बहुत से बेटे मर रहे हैं...।'
मैं चालीस मिनट तक बोलता रहा। मुझे नहीं मालूम था कि अगले शब्द कौन से होंगे। मैंने उन्हें हँसाया और रूज़वेल्ट के बारे में किस्से सुना कर खुश किया। मैंने उन्हें पहले विश्व युद्ध में युद्ध संबंधी अपने भाषण के बारे में बता कर हँसाया - मैं गलती पर नहीं था।
मैंने अपनी बात जारी रखी,'और अब ये युद्ध - 'मैं यहां पर रूसी युद्ध राहत की ओर से आया हूं।' मैं रुका और फिर मैंने अपने शब्द दोहराये,'रूसी युद्ध राहत।' धन से मदद हो सकती है लेकिन उन्हें धन से भी अधिक कुछ चाहिए। मुझे बताया गया है कि आयरलैण्ड के उत्तर में मित्र राष्ट्रों के बीस लाख सैनिक जान की बाजी लगाये बैठे हैं जबकि रूसी अकेले के दम पर नाज़ियों की दोनों डिवीज़नों को रोके हुए हैं।' मौन बहुत अधिक घना हो गया। 'रूसी,' मैंने ज़ोर देकर कहा,'हमारे मित्र हैं। वे केवल अपनी जीवन शैली के लिए ही नहीं लड़ रहे हैं, वे हमारी जीवन शैली के लिए भी लड़ रहे हैं और अगर मैं अमेरीकियों को जानता हूं तो वे अपनी खुद की लड़ाई लड़ना पसन्द करते हैं। स्तालिन चाहते हैं, रूज़वेल्ट ने इसका आह्वान किया है, इसलिए आइए, हम सब इसकी मांग करें - अब हम दूसरा मोर्चा खोलें।'
इसे सुन कर जो पागल कर देने वाला शोर-शराबा हुआ, पूरे सात मिनट तक चलता रहा। यह विचार श्रोताओं के दिल में और दिमाग में था। उन्होंने मुझे आगे बात ही नहीं करने दी। वे लगातार ज़मीन पर पैर पटकते और तालियां बजाते रहे। जिस वक्त वे ज़मीन पर पैर पटक रहे थे, चिल्ला रहे थे, और हवा में अपने हैट उछाल रहे थे, मैं ये सोच-सोच कर हैरान होने लगा कि मैंने कहीं कुछ ज्यादा तो नहीं कह दिया है या कहीं बहुत आगे तो नहीं बढ़ गया हूं। तब मैं अपने आपसे इस बात पर गुस्सा होने लगा कि मैंने उन हज़ारों लोगों के, जो लड़ रहे थे और मर रहे थे, के मुंह पर भयभीत कर देने वाले इतने घिनौने विचार प्रकट ही कैसे कर दिये, और आखिर में जब श्रोता शांत हुए तो मैंने कहा,'आप जिस तरह से इस चीज़ के बारे में सोचते हैं, क्या आप में से हरेक व्यक्ति राष्ट्रपति को इस आशय का एक तार भेजेगा? हम उम्मीद करें कि कल तक राष्ट्रपति तक दस हज़ार तार इस अनुरोध के साथ पहुंच जायेंगे कि दूसरा मोर्चा खोला जाये!'
बैठक के बाद मैंने महसूस किया कि माहौल में तनाव और बेचैनी घुल गये हैं। डुडले फील्ड मालोने, जॉन गारफील्ड और मैं किसी जगह पर खाना खाने के लिए गये। 'यार, आपमें तो गज़ब की हिम्मत है,' गारफील्ड ने मेरे भाषण का ज़िक्र करते हुए कहा। उनकी बात ने मुझे विचलित कर दिया, क्योंकि मैं शहीद नहीं होना चाहता था और न ही किसी राजनैतिक पचड़े में फंसना चाहता था। मैंने वही कहा था जो मैंने ईमानदारी से महसूस किया था और जिसे मैंने सही समझा था। इसके बावजूद, जॉन के जुमले के बाद मैं बाकी पूरी शाम हताशा महसूस करता रहा। लेकिन भाषण के नतीजे के रूप में मैंने जिन डरावने बादलों की उम्मीद की थी, वे सब हवा में उड़ चुके थे और बेवरली हिल्स वापिस आ कर जीवन एक बार उसी ढर्रे पर चलने लगा था।
कुछ ही हफ्तों बाद मुझे एक और अनुरोध मिला कि मैं मेडिसन स्क्वायर में होने वाली विशाल जनसभा को टेलीफोन पर ही संबोधित करूं। चूंकि ये सभा भी उसी मकसद के लिए थी, मैंने उसे स्वीकार कर लिया। और करता भी क्यों नहीं? इस सभा को सर्वाधिक सम्मानित व्यक्तियों के संगठनों द्वारा प्रायोजित किया गया था। मैं चौदह मिनट तक बोलता रहा। यह भाषण औद्योगिक संगठनों की कांग्रेस की परिषद को इतना अच्छा लगा कि उन्होंने इसे प्रकाशित करना उचित समझा। इस प्रयास में मैं अकेला ही नहीं था, ये बात सीआइओ द्वारा प्रकाशित पुस्तिका से स्पष्ट हो जायेगी:
भाषण
'रूस के लड़ाई के मैदानों पर
लोकतंत्र जियेगा या मरेगा'
विशाल भीड़, जिसे पहले से ही चेतावनी दे दी गयी थी कि वह न तो बीच में टोकेगी और न ही तालियां बजायेगी, प्रत्येक शब्द पर हिस हिस करती रही और तनाव में बैठी रही। इस तरह से वे अमेरिका की महान जनता के महान कलाकार चार्ल्स चैप्लिन को चौदह मिनट तक उस वक्त सुनते रहे जब वे हॉलीवुड से टेलीफोन पर उन्हें संबोधित कर रहे थे।
22 जुलाई 1942 की शाम होने से पहले न्यू यार्क में मेडिसन स्क्वायर पर ट्रेड यूनियनों के सदस्य, नागरिक, भाई बिरादर, बुजुर्ग सदस्य, समुदाय और गिरजा घर संगठनों और अन्यों के सत्रह हज़ार सदस्य जुटे ताकि वे हिटलर और उसकी चांडाल चौकड़ी पर अंतिम विजय के पलों को निकट लाने के लिए दूसरा मोर्चा तत्काल ही खोलने के लिए राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट के समर्थन में अपनी आवाज़ उठा सकें।
इस विशाल प्रदर्शन की प्रायोजक थीं ग्रेटर न्यू यार्क इंडस्ट्रियल यूनियन काउंसिल सीआइओ से जुड़ी 250 यूनियनें। वेंडल एल विल्की, फिलिप मुरे, सिडनी हिलमैन और कई अन्य प्रमुख अमेरिकियों ने इस रैली के समर्थन में अपने उत्साहवर्धक संदेश भेजे।
इस अवसर पर मौसम ने भी अपना समर्थन जतलाया। आसमान साफ रहा। वक्ताओं के मंच पर अमेरिकी राष्ट्र ध्वज के दोनों तरफ मित्र राष्ट्रों के झण्डे लहरा रहे थे और राष्ट्रपति के समर्थन में तथा दूसरा मोर्चा खोलने के लिए नारों की पट्टिकाओं से वह विशाल जन सागर अटा पड़ा था। पार्क के चारों तरफ की सड़कों पर जहां कहीं देखो, लोग नज़र आते थे।
बैठक की शुरुआत लूसी मोनरो ने द' स्टार स्पैंगल्ड बैनर गीत गा कर की तथा जेन फ्रोमैन, आरलेन फ्रांसिस और अमेरिकी थियेटर संघ के कई अन्य लोकप्रिय सितारों ने जन समुदाय का मनोरंजन किया। युनाइटेड स्टेट्स सीनेटर जेम्स एम. मीड, और क्लाउड पैपर, मेयर एफ एच ला गॉर्डिया, लेफ्टिनेंट गवर्नर चार्ल्स पोलेटी, प्रतिनिधि वीटो मर्केन्टोनियो, माइकल क्विल तथा जोसेफ कुर्रान, न्यू यार्क सीआइओ काउंसिल के अध्यक्ष आदि मुख्य वक्ता थे।
सीनेटर मीड ने कहा,'हम इस युद्ध को तभी जीत पायेंगे जब हम आज़ादी के संघर्ष के लिए एशिया में, जीते हुए यूरोप में, अफ्रीका में, पूरे दिल से और पूरे उत्साह से बड़ी संख्या में लोगों को भर्ती करेंगे।' और सीनेटर पैपर: 'वह जो हमारी कोशिशों में अड़ंगा लगाता है, जो रोकने के लिए गिड़गिड़ाता है, वह गणतंत्र का दुश्मन है।' और जोसेफ़ कुर्रान: 'हमारे पास मानव शक्ति है। हमारे पास सामग्री है। हम जीतने का एक ही रास्ता जानते हैं - और वह है कि दूसरा मोर्चा खोल दिया जाये!'
यहां पर जो आम जनता की भीड़ जमा थी, जब भी राष्ट्रपति का जिक्र होता, दूसरे मोर्चे का, और हमारे बहादुर मित्र राष्ट्रों का, बहादुर लड़ाकों का और सोवियत संघ का, ब्रिटेन और चीन का ज़िक्र होता तो सबके सब एक स्वर में खूब उत्साह बढ़ाते। इसके बाद लाँग डिस्टेंस टेलीफोन के ज़रिये चार्ल्स चैप्लिन का भाषण आया।
अब दूसरे मोर्चे के लिए
राष्ट्रपति की रैली का समर्थन करने के लिए!
मेडिसन स्क्वायर पार्क, जुलाई 22, 1942
'रूस के लड़ाई के मैदानों में लोकतंत्र जीवित रहेगा या खत्म हो जायेगा। मित्र राष्ट्रों की किस्मत कम्यूनिस्टों के हाथों में है। अगर रूस को हटा दिया जाता है तो एशियाई महाद्वीप - इस ग्लोब में सबसे बड़ा और सबसे समृद्ध महाद्वीप नाज़ियों के अधिकार में चला जायेगा। चूंकि लगभग पूरा का पूरा पूर्वी क्षेत्र जापानियों के हाथों में है, तब दुनिया की कमाबेश सभी महत्वपूर्ण युद्ध सामग्री नाज़ियों के हाथ लग जायेगी। तब हमारे पास हिटलर को हराने का कौन-सा मौका रह जायेगा?
परिवहन की दिक्कत, हमारी संचार की लाइनों के हज़ारों मील दूर होने की समस्या, इस्पात, तेल और रबड़ की समस्या - और हिटलर की ये रणनीति कि फूट डालो और जीतो - अगर रूस को हटा दिया जाता है तो हम तो कहीं के नहीं रहेंगे। बुरी हालत हो जायेगी हमारी।
'कुछ लोग कहते हैं कि इससे युद्ध दस या बीस बरस तक खिंच जायेगा। अगर मैं अपने अनुमान की बात करूं तो यह इस बात को आशावादी तरीके से सामने रखना है, ऐसे हालात में और इस तरह के खतरनाक शत्रु के सामने भविष्य बेहद अनिश्चित रहेगा।
हम किस बात का इंतज़ार कर रहे हैं?
'रूसियों को मदद की बहुत सख्त ज़रूरत है। वे दूसरे मोर्चे के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं। मित्र राष्ट्रों के बीच इस बात को लेकर मतभेद है कि क्या इस वक्त एक दूसरा मोर्चा संभव है। हमारे सुनने में ये बात आती है कि मित्र राष्ट्रों के पास इतनी आपूर्ति नहीं है कि वे दूसरे मोर्चे का बोझ उठा सकें। लेकिन फिर सुनायी देता है कि उनके पास पर्याप्त साज़ो-सामान है। हम ये भी सुनते हैं कि वे इस वक्त, संभावित हार को देखते हुए दूसरे मोर्चे का जोखिम नहीं लेना चाहते। कि वे तब तक कोई मौका नहीं लेना चाहते जब तक वे निश्चित या तैयार न हो जायें।
'लेकिन क्या हम तब तक इंतज़ार करना गवारा कर सकते हैं जब तक निश्चित और तैयार न हो जायें। क्या आप सुरक्षित खेलना गवारा कर सकते हैं? युद्ध में कोई भी रणनीति सुरक्षित नहीं हुआ करती। ठीक इसी वक्त जर्मन काकेशस से 35 मील दूर हैं। अगर काकेशस उनके हाथ में चला जाता है तो रूसी तेल का 95 प्रतिशत हाथ से चला जायेगा। जब हज़ारों लोग मर रहे हों और लाखों लोग मरने की कगार पर हों तो हमें ईमानदारी से वह सब कुछ कह ही डालना चाहिये जो हमारे दिमाग में है। लोग-बाग अपने आपसे सवाल पूछ रहे हैं। हम सुनते हैं कि आयरलैण्ड में महान अभियान दल उतर रहे हैं, हमारी कानबाइयों में से पिचानवे प्रतिशत सफलता से यूरोप में पहुंच रही हैं, बीस लाख अंग्रेजों के पास हर तरह का साज़ो-सामन है, और वे कूद पड़ने को तैयार हैं। तो ऐसे में जबकि रूस में हालात इतने हताशाजनक हैं, हम किस चीज़ का इंतज़ार कर रहे हैं?
हम चुनौती स्वीकार कर सकते हैं
'नोट करें वाशिंगटन के अधिकारीगण और लंदन के अधिकारीगण, ये प्रश्न असहमतियां पैदा करने के लिए नहीं। हम उनसे ये सवाल इसलिए पूछते हैं ताकि भ्रम को दूर कर सकें और आखिर में होने वाली विजय के लिए विकास और एकता की भावना कर सकें। और जो भी जवाब होगा, हम स्वीकार कर सकते हैं।
'इस समय रूस की जो हालत है, वह दीवार से पीट सटाये लड़ रहा है। ये दीवार है मित्र राष्ट्रों की सबसे मज़बूत प्रतिरक्षा। हमने लीबिया की प्रतिरक्षा की और उसे खो बैठे, हमने क्रेटे की प्रतिरक्षा की और उससे हाथ धो बैठे। हमने प्रशांत के इलाके में फिलिपीन्स की और दूसरे द्वीपों की रक्षा की और वे सब हमसे छिन गये। लेकिन हम रूस को हाथ से जाने देना गवारा नहीं कर सकते। जिस वक्त हमारी दुनिया - हमारा जीवन - हमारी सम्पति हमारे पैरों के पास गिरी पड़ी हो तो हमें मौके का फायदा उठाना ही होगा।
'अगर रूस काकेशस को हार बैठता है तो ये मित्र राष्ट्रों के उद्देश्यों के लिए सबसे बड़ी आपदा होगी। तब आप तुष्टि देने वालों का इंतज़ार करेंगे। वे छिपने की अपनी जगहों से बाहर आयेंगे। वे विजेता हिटलर के साथ शांति स्थापित करना चाहेंगे। वे कहेंगे: `और अधिक अमेरिकी जानें गंवाने में कोई समझदारी नहीं है - हम हिटलर के साथ 'एक अच्छा सौदा कर सकते हैं।`
नाज़ी फंदे से सावधान रहें
`इस नाज़ी फंदे से सावधान रहें। ये नाज़ी भेड़िये भेड़ों का भेस धारण कर लेंगे। वे हमारे लिए शांति को बहुत अधिक आकर्षक बना देंगे और इससे पहले कि हम उस शांति को जान ही पायें, हम नाज़ी विचारों के चंगुल में फंस चुके होंगे। तब हमें गुलाम बना लिया जायेगा। वे हमसे हमारी आज़ादी छीन लेंगे और हमारे दिमागों पर नियंत्रण कर लेंगे। इस दुनिया पर तब गेस्टापो कर राज होगा। वे हवा में से हम पर शासन करेंगे। हां, यही भविष्य की ताकत है।
'जब सारे आकाशों की ताकत नाज़ी हाथों में होगी तो वे नाज़ी आदेशों का विरोध करने वाली सारी ताकतों का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया जायेगा। मानव प्रगति का नामो-निशान नहीं रहेगा। दुनिया में अल्पसंख्यकों के कोई अधिकार नहीं रहेंगे, कामगारों के कोई अधिकार नहीं रहेंगे। नागरिक अपने लिए किसी अधिकार की मांग नहीं कर सकेंगे। सारी की सारी चीज़ें नेस्तनाबूद कर दी जायेंगी, हम अगर एक बार भी इन तुष्टिदाताओं की बात सुन लें और विजेता हिटलर के साथ शांति का समझौता कर लें तो उन्हीं का आतताई आदेश पूरी धरती को नियंत्रित करेगा।
हम एक मौका ले सकते हैं
'उन तुष्टिदाताओं पर निगाह रखो जो आपदा के बाद हमेशा सिर उठाते हैं।
'अगर हम अपनी निगाहें खुली रखते हैं और हम अपने मनोबल को ऊंचा बनाये रखते हैं तो हमें बिल्कुल भी डरने की ज़रूरत नहीं है। याद रखें, मनोबल था इसीलिए इंगलैंड बच पाया, और अगर हम अपना मनोबल बनाये रखेंगे, तो आश्वस्त रहें, जीत हमारी ही है।
'हिटलर ने कई मौकों का फायदा उठाया है। उसका सबसे बड़ा मौका रूसी मुहिम है। अगर वह इन गर्मियों तक काकेशस की घेराबंदी तोड़ने में सफल नहीं हो जाता तो ईश्वर ही मालिक है। अगर उसे मास्को के आस पास सर्दियों का एक और मौसम गुज़ारना पड़ता है तो ईश्वर ही मालिक है। उसके पास जो अवसर है, वह बहुत दुर्लभ है लेकिन फिर भी उसने मौका ले लिया है। और अगर हिटलर मौकों का फायदा उठा सकता है तो हम क्यों नहीं ले सकते मौका? हम एक्शन चाहते हैं। हमें बर्लिन पर गिराने के लिए और बम दो। हमें वे उन्नत ग्लेन मार्टिन सी प्लेन दो ताकि हम अपनी परिवहन की समस्या से निपट सकें। सबसे बड़ी बात, अब हमें दूसरा मोर्चा चाहिए ही चाहिए।
वसन्त ऋतु तक विजय
'आइए, हम लक्ष्य बना कर चलें कि वसन्त ऋतु तक विजय पा लेंगे। आप भले ही फैक्टरियों में हों, आप भले ही खेतों में हों, आप वर्दी में हों, दुनिया के सभी नागरिको, आइए, हम इस लक्ष्य को पाने के लिए मिल कर काम करें और इसके लिए संघर्ष करें। आप, वाशिंगटन के अधिकारीगण, और लंदन के अधिकारीगण, आइए, हम अपना लक्ष्य निश्चित कर लें - हमें वसंत ऋतु तक विजय हासिल करनी है।
'अगर हम इसी विचार को लेकर चलें, इसी विचार के साथ काम करें, इसी विचार के साथ जीयें, इससे एक ऐसी भावना पैदा होगी जिससे हमारी ऊर्जा बढ़ेगी और हम अपनी मुहिम में तेज़ी ला पायेंगे।
'आइए, इस असंभव को संभव कर दिखाने के लिए जुट जायें। इस बात को याद रखें कि पूरा इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि सबसे बड़ी उपलब्धियां वे ही जीतें रही हैं जिन्हें असंभव माना जा रहा था।'
फिलहाल मेरे दिन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे थे, लेकिन ये तूफान से पहले की शांति थी। जो परिस्थितियां इस अजीबो-गरीब किस्से तक ले गयीं वे बेहद मासूमियत से शुरू हुई थीं। रविवार का दिन था और टेनिस के एक खेल के बाद डूरैंट ने मुझे बताया कि उसने जॉन बैरी नाम की एक नवयुवती से मिलने की बात तय कर रखी है। वह पोला गेट्टी की मित्र है; वह उसके किसी मित्र ए.सी.ब्लूमेंटल के परिचय पत्र के साथ हाल ही में मैक्सिको शहर से आयी है। टिम ने बताया कि वह उस लड़की और उसकी एक सहेली के साथ खाना खाने जा रहा है। उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं भी साथ चलना चाहूंगा क्योंकि मैरी ने मुझसे मिलने की इच्छा व्यक्त की है, हम पेरिनो के रेस्तरां में मिले। जिस सहेली का उसने ज़िक्र किया था वह खुशमिजाज और देखने में भली लग रही थी। हम चारों ने वह सुकून भरी शाम एक साथ गुज़ारी और मैंने सोचा भी नहीं था कि उस लड़की से दोबारा मुलाकात होगी।
लेकिन अगले ही रविवार टिम उसे अपने साथ लेकर आया। ये टेनिस के लिए ओपन हाउस था। रविवारों की शाम को हमेशा यही होता था कि मैं अपने सारे स्टाफ को छुट्टी दे देता था और बाहर खाना खाया करता था इसलिए मैंने टिम और मिस बैरी को रोमानोफ रेस्तरां में खाने के लिए आमंत्रित किया और डिनर के बाद मैंने उन्हें अपनी गाड़ी में उनके घर पर छोड़ दिया। अलबत्ता, अगली सुबह मिस बैरी का फोन आया। वह जानना चाह रही थी कि क्या मैं उसे लंच के लिए ले जाऊंगा। मैंने उसे बताया कि मैं नब्बे मील दूर सांता बारबारा में एक नीलामी में हिस्सा लेने जा रहा हूं और अगर उसे करने के लिए और कोई काम नहीं है तो वह मेरे साथ चली चले। हम वहां पर लंच करेंगे और उसके बाद नीलामी में चले जायेंगे। एक दो चीज़ें खरीदने के बाद मैंने उसे गाड़ी में वापिस लॉस एंजेल्स छोड़ दिया।
मिस बैरी बाइस बरस की भरपूर सौन्दर्य वाली युवती थी। उसकी कद काठी अच्छी थी। ईश्वर उसके वक्षस्थल को लेकर उस पर कुछ अधिक ही मेहरबान हुआ था। उसके उरोज बेहद आकर्षक और विशाल थे और जब वह गर्मियों वाली काफी नीचे वाले गले की काट वाली पोशाक पहनती तो सामने वाले की नीयत डांवाडोल कर देती थी। मैं जब उसे वापिस उसके घर छोड़ रहा था तो उसने मेरी कामुक उत्सुकता को जगा दिया। तभी उसने बताया कि पॉल गेट्टी के साथ उसका झगड़ा हो गया है और वह अगली ही रात न्यू यार्क वापिस जा रही है। लेकिन अगर मैं चाहूं तो वह मेरे लिए सब कुछ छोड़-छाड़ कर रुक सकती है। मुझे थोड़ा-सा शक हुआ क्योंकि ये प्रस्ताव इतना अचानक, इतना अजीब लग रहा था, मैंने उसे साफ-साफ बता दिया कि वह मेरे भरोसे न रहे और ये कहते हुए मैंने उसे उसके अपार्टमेंट के बाहर छोड़ दिया और उसे विदा किया।
मेरी हैरानी की सीमा न रही जब उसने दो एक दिन बाद फोन किया और बताया कि वह कैसे भी करके रुक रही है और क्या मैं उससे उसी रात मिल सकूंगा। जहां चाह वहां राह! और इस तरह से वह अपने लक्ष्य को पाने में सफल रही और मैं उससे अक्सर मिलने लगा। इसके बाद जो दिन आये, हालांकि नाखुश करने वाले नहीं थे लेकिन उनमें कुछ न कुछ ऐसा था जो अजीब था और सब कुछ सामान्य नहीं था। कई बार बिना फोन किये वह देर रात को अचानक ही मेरे घर आ जाती। ये बात कुछ हद तक विचलित करने वाली थी। कभी ऐसा भी होता कि पूरे हफ्ते तक मुझे उसकी कोई खबर न मिलती। हालांकि मैं इस बात को स्वीकार नहीं करूंगा लेकिन मैंने बेचैनी महसूस करना शुरू कर दिया। हां, ये ज़रूर होता कि जब वह दोबारा अपना चेहरा दिखाती तो बेहद खुश नज़र आती और फिर मेरे शक और डर हवा में उड़ जाते।
एक दिन मैंने सर कैड्रिक हार्डविक और सिन्क्लेयर लेविस के साथ लंच लिया। लंच के दौरान उन्होंने शैडो एण्ड सब्सटेंस नाम के नाटक का ज़िक्र किया। इसमें खुद कैड्रिक ने भूमिका निभायी थी। लेविस ने ब्रिजेट की भूमिका की तुलना आधुनिक जॉन ऑफ आर्क से की। उसका सवाल था कि इस नाटक पर एक बेहतरीन फिल्म बनायी जा सकती है। इसमें मेरी दिलचस्पी जागी। मैंने कैड्रिक से कहा कि मैं नाटक पढ़ना चाहूंगा। उन्होंने मेरे पास प्रति भिजवा दी।
एक या दो रात बाद की बात है। जॉन बैरी डिनर के लिए आयी। मैंने उससे नाटक का ज़िक्र किया तो बैरी ने बताया कि उसने ये नाटक देख रखा है और वह लड़की की भूमिका करना चाहेगी। मैंने उसे गम्भीरता से नहीं लिया। लेकिन उस शाम उसने मुझे लड़की वाली भूमिका पढ़ कर सुनायी और मैं ये देखकर हैरान रह गया कि उसने बेहतरीन ढंग से पाठ किया था। वह आइरिश उच्चारण बनाये रख पायी थी। मैं इतना अधिक उत्साहित हो गया कि मैंने यह देखने के लिए उसका मौन परीक्षण भी किया कि वह कैमरे के सामने कैसी लगेगी। मैं सन्तुष्ट हुआ।
अब उसकी अजीबो-गरीब हरकतों के बारे में मेरे सारे शक दूर हो गये। मुझे तो यहां तक लगा कि मैंने एक खोज कर ली है। मैंने उसे मैक्स रेनहार्ड के अभिनय स्कूल में भेजा क्योंकि उसे तकनीकी प्रशिक्षण की ज़रूरत थी और अब चूंकि वह वहां पर व्यस्त थी, हमारी कम ही मुलाकातें हो पातीं। मैंने अभी तक नाटक के अधिकार नहीं खरीदे थे, इसलिए मैं कैड्रिक से मिला और उसकी मदद से मैं 25,000 डॉलर में फिल्म के लिए अधिकार हासिल कर पाया। तब मैंने बैरी को 250 डॉलर प्रति सप्ताह के करार पर रख लिया।
ऐसे रहस्यवादी लोग होते हैं जो ये मान कर चलते हैं कि हमारा अस्तित्व आधा स्वप्न होता है और कि ये जानना मुश्किल होता है कि वह सपना कहां खत्म होता है और कहां वास्तविकता शुरू होती है। मेरे साथ यही हो रहा था। महीनों तक मैं पटकथा लिखने में उलझा रहा। तभी अजीबो-गरीब और परेशान करने वाली बातें होने लगीं। बैरी अपनी कैडिलैक चलाते हुए आधी रात को आती। वह बहुत ज्यादा नशे में होती। तब मुझे अपने ड्राइवर को जगाना पड़ता ताकि वह उसे घर छोड़ आये। एक बार तो उसने अपनी कार रास्ते में भिड़ा दी और उसे कार को वहीं छोड़ घर आना पड़ा। अब चूंकि उसका नाम चैप्लिन स्टूडियो से जुड़ा हुआ था, मुझे इस बात की चिंता सताने लगी कि कहीं पुलिस उसे शराब पीकर गाड़ी चलाने के जुर्म में पकड़ कर ले गयी तो इससे अच्छा-खासा हंगामा खड़ा हो जायेगा। आखिर हालत ये हो गयी कि वह इतनी झगड़ालू हो गयी कि जब वह आधी रात को फोन करती तो मैं न तो फोन उठाता और न ही उसके लिए दरवाजा खोलता। उसने तब खिड़कियों के कांच तोड़ना शुरू कर दिया। रातों-रात मेरा अस्तित्व एक दु:स्वप्न में बदल गया।
तब मेरी जानकारी में ये बात आयी कि वह रेनहार्ड स्कूल से कई हफ्तों से गैर हाज़िर है। जब मैंने उससे आमने-सामने इस बारे में पूछा तो उसने अचानक घोषणा कर दी कि वह अभिनेत्री नहीं बनना चाहती और अगर मैं उसके लिए तथा उसकी मां के लिए न्यू यार्क वापिस जाने पर किराया और 5000 डॉलर दे दूं तो वह खुशी-खुशी करार फाड़ डालेगी। ऐसी हालत में मैंने बिना किसी हूल हिज्जत के उनकी बातें मान लीं, उनका किराया दिया, 5000 डॉलर दिये और मुझे इस बात की खुशी हुई कि मैं उससे जान छुड़वा पाया।
हालांकि, बैरी मैडम का मामला टांय टांय फिस्स हो गया था, मुझे शैडो एण्ड सब्सटेंस के अधिकार खरीदने का कोई अफसोस नहीं था। मैं पटकथा लगभग पूरी कर चुका था और मेरे ख्याल से ये बहुत अच्छी बन पड़ी थी।
सैन फ्रांसिस्को की बैठक को इस बीच महीनों बीत चुके थे, और रूसी अभी भी दूसरे मोर्चे की मांग कर रहे थे। अब न्यू यार्क से एक और अनुरोध आया। मुझसे अनुरोध किया गया कि मैं कार्नेजी हॉल में एक सभा को संबोधित करूं। मैं अपने आप से बहस करता रहा कि जाऊं या न जाऊं और इस नतीजे पर पहुंचा कि मैंने बिस्मिल्लाह कर दिया था, उतना ही काफी है। लेकिन एक दिन बाद जब जैक वार्नर मेरे टेनिस कोर्ट में खेल रहे थे, तो मैंने उनसे इसके बारे में बताया। उन्होंने रहस्यमय तरीके से सिर हिलाया।
'मत जाओ,' वे बोले।
'लेकिन क्यों नहीं?' पूछा मैंने।
उन्होंने कारण तो नहीं बताया लेकिन यही कहते रहे,'मैं आपको भीतर की बात बता रहा हूं, मत जाइए।'
इसका उलटा असर हुआ। मेरे लिए ये एक चुनौती हो गया। ये वह वक्त था जब दूसरे मोर्चे के लिए पूरे अमेरिका में सहानुभूति की चिंगारी लगाने के लिए बहुत ही कम शब्दों की ज़रूरत थी। रूस हाल ही में स्तालिनग्राद की लड़ाई जीत चुका था। इसलिए मैं गया, टिम डुरैंट को अपने साथ लेता गया।
कार्नेजी हॉल बैठक में पर्ल बक, रोकवैल कैंट, ओर्सोन वैलेस और कई ख्यातिनाम विभूतियां मौजूद थीं। ओर्सोन वैलेस को इस मौके पर बोलना था, लेकिन जब विरोधी पक्ष की आवाज़ बुलंद होने लगी, उन्होंने नपे तुले शब्दों में ही अपनी बात कहने में अपनी बेहतरी समझी। ऐसा मेरा ख्याल है। वे मुझसे पहले बोले और इस बात का उल्लेख किया कि उन्हें इस बात की कोई तुक नज़र नहीं आती कि वे क्यों न बोलें क्योंकि ये आयोजन रूसी युद्ध राहत के लिए है और रूसी हमारे मित्र हैं। उनका भाषण बिना नमक के भोजन की तरह बेस्वाद था। इससे मेरा फैसला और भी पक्का हो गया कि मुझे अपने मन की बात कहनी ही चाहिए। मैंने अपने शुरुआती शब्दों में एक स्तम्भ लेखक का उल्लेख किया जिसने मुझ पर आरोप लगाया था कि मैं चाहता हूं कि यह युद्ध चलता रहे और मैंने कहा,'जिस तरह की मुट्ठियां उस स्तम्भकार ने तानी हैं, मेरा तो यही कहना है कि वही ईष्यार्लु है और खुद ही लड़ाई का चलते रहना चाहता है। मुसीबत ये है कि हम रणनीति पर असहमत हो जाते हैं - वह खुद इस वक्त दूसरे मोर्चे पर भरोसा नहीं करता। मैं खुद करता हूं।'
'ये बैठक चार्ली और दर्शकों के बीच एक प्यार भरी दावत थी।' डेली वर्कर ने लिखा। लेकिन मेरी भावनाएं मिली-जुली थीं; हालांकि मैं सन्तुष्ट था लेकिन डरा हुआ था।
कार्नेजी हॉल से निकलने के बाद टिम और मैंने कांसटेंस कौलियर के साथ खाना खाया। वे भी बैठक में मौजूद थीं। मेरी बात सुन कर वे बहुत अभिभूत थीं। कांसटेंस कुछ भी हो सकती थीं, वामपंथी नहीं थीं। जब हम वाल्डोर्फ आस्टोरिया पहुंचे तो हमें जॉन बैरी की तरफ से कई टेलीफोन संदेश मिले। मेरी बायीं आंख फड़कने लगी। मैंने सारे संदेश तुरंत फाड़ डाले लेकिन फोन फिर बजा। मैं टेलीफोन ऑपरेटर से कहना चाहता था कि वह उसकी तरफ से मुझे कोई कॉल न लगाये लेकिन टिम ने कहा,'बेहतर होगा आप ऐसा न करें। या तो आप फोन पर बात करें या वह खुद ही यहां पहुंच जायेगी और हंगामा खड़ा करेगी।'
अगली बार जब फोन बजा तो मैंने बात की। वह काफी सामान्य और खुश लग रही थी। वह सिर्फ़ आ कर मिलना और हैलो कहना चाहती थी। मैंने सहमति दे दी और टिम से कहा कि वे मुझे बैरी के साथ अकेला न छोड़ें। उस शाम बैरी ने मुझे बताया कि न्यू यार्क आने के बाद में वह पियरे होटल में रह रही है। ये होटल पॉल गेट्टी का है। मैंने झूठ बोला कि हम सिर्फ़ एक या दो दिन के लिए ही रुक रहे हैं और मैं कोशिश करूंगा और एकाध लंच उसके साथ करने की गुंजाइश निकालूंगा। वह आधे घंटे तक रुकी और पूछा कि क्या मैं उसे पीयरे तक छोड़ने चलूंगा? जब उसने ज़िद की कि मैं उसे कम से कम लिफ्ट तक तो छोड़ दूं तो मुझे शक होने लगा। अलबत्ता, मैंने उसे प्रवेश द्वार पर छोड़ा और और ये पहली और आखिरी बार था जब मैंने उसे न्यू यार्क में देखा था।
दूसरे मोर्चे के लिए मेरे भाषणों का ये नतीजा हुआ कि न्यू यार्क में मेरी सामाजिक ज़िंदगी में उतार आने लगा। अब मुझे सप्ताहांत बिताने के लिए महलनुमा देहाती घरों में नहीं बुलाया जाता था। कार्नेजी हाल बैठक के बाद क्लिफटन फैडीमैन, लेखक और निबंधकार जो कि कोलम्बिया ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम के लिए काम कर रहे थे, होटल में मुझसे मिलने आये और पूछा कि क्या मैं अन्तर्राष्ट्रीय प्रसारण करना चाहूंगा। वे मुझे सात मिनट देंगे और मैं अपनी मर्जी से कुछ भी कह सकता हूं। मुझे ये प्रस्ताव स्वीकार करने का लालच हो रहा था लेकिन तभी उन्होंने ज़िक्र किया कि ये प्रसारण केट स्मिथ कार्यक्रम में होगा। तब मैंने इस आधार पर मना कर दिया कि युद्ध के प्रयासों के बारे में मेरी प्रतिबद्धताएं जेलो के लिए विज्ञापनबाजी बन कर रह जायेंगी। मैं फैडीमैन का दिल नहीं दुखाना चाहता था। वे बहुत प्यारे, ईश्वरीय दिल वाले और सुसंस्कृत व्यक्ति थे और जब वे जैलो का ज़िक्र कर रहे थे, उनका चेहरा लाल हो गया था। मुझे तत्काल अफसोस हुआ। काश, मैं अपने शब्द वापिस ले सकता।
उसके बाद, मेरे पास हर तरह के ढेरों खत आये - एक पत्र विख्यात अमेरीकी प्रथम नागरिक - गेराल्ड एल के स्मिथ की तरफ से था जो इस विषय पर मुझसे बहस करना चाहते थे। अन्य प्रस्ताव भाषणों के थे, दूसरे मोर्चे के पक्ष में बोलने के थे।
अब मुझे लगने लगा कि मैं राजनैतिक भंवर में फंस गया हूं। मैंने अपने लक्ष्यों के बारे में ही सवाल करने शुरू कर दिये। मेरे भीतर का अभिनेता मुझे कितना प्रेरित करता था और सामने वाली जनता की प्रतिक्रिया कितनी प्रेरित करती थी? अगर मैंने नाज़ी विरोधी फिल्म न बनायी होती तो क्या मैं इस शेखचिल्लीपने के रोमांचकारी हंगामे में उतरा होता? क्या ये मेरी सवाक फिल्मों के खिलाफ मेरी चिढ़ और प्रतिक्रिया का परम बिन्दु था? मेरा ख्याल है, ये सभी बातें कहीं न कहीं जुड़ी हुई थीं, लेकिन सबसे खास बात ये थी कि ये नाज़ी व्यवस्था के लिए मेरी नफ़रत और अवमानना थी।
§ जर्मनों द्वारा 1914 में विकसित चलने फिरने वाली होवित्जर तोपें। इनका नामकरण गुस्ताव क्रुप की पत्नी के नाम पर किया गया था। 43 टन की ये तोपें 2200 पौंड के गोले फेंक सकती थीं। अऩु
§ 1939-45 युद्ध से पहले फ्रांस जर्मन सीमा पर फ्रांस द्वारा घेरी गयी सीमा रेखा
± मई 1940 में फ्रांस के बंदरगाहों से हारी हुई ब्रिटिश सेनाओं को समुद्री रास्ते से निकालने के दृश्य
(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)
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