संसदीय साम्यवाद के इतिहास पुरूष : हरिकिशन सिंह सुरजीत *********** -वीरेन्द्र जैन किसी साम्यवादी दल द्वारा संसदीय लोकतंत्र में अपना प्रम...
संसदीय साम्यवाद के इतिहास पुरूष :
हरिकिशन सिंह सुरजीत
***********-वीरेन्द्र जैन
किसी साम्यवादी दल द्वारा संसदीय लोकतंत्र में अपना प्रमुख स्थान बना लेना और गुणवत्ता में सारी संसदीय पार्टियों को पीछे छोड़ देने के लिए वामपंथी मोर्चे को हमेशा याद किया जायेगा। इस वाम मोर्चे के प्रमुख दल मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी को सफल और निर्दोष नेतृत्व देने के लिए हरिकिशन सिंह सुरजीत हमेशा याद रखे जायेंगे।
गत तीस वर्षों से लगातार पश्चिम बंगाल में वाममोर्चे की सरकार ने वि’व में इतिहास रचा है जिसके नेता ज्योति बसु रहे हैं व जिन्होंने स्वतः ही अपना निर्विवाद नेतृत्व अपने सहयोगी को सोंप देने का उदाहरण प्रस्तुत करके भारतीय राजनीति के सारे नेताओं के समक्ष अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है। ऐसे श्री बसु के साथ हरकिशनसिंह सुरजीत सीपीएम के नौ संस्थापक नेताओं में से ऐसे नेता रहे हैं जो पार्टी की संस्थापना से अप्रैल 2008 में आयोजित सीपीएम की 18वीं कांग्रेस तक लगातार पोलित ब्यूरो के सदस्य चुने गये और स्वास्थ संबंधी कारणों से 19 वीं कांग्रेस में वि’ोष आमंत्रित सदस्य बनाये गये। संस्थापक नौ सदस्यों में से शेष सात सदस्य पी सुदरैय्या, एम बासवनुनैय्या, ईएम एस नम्बूदरीपाद, एके गोपालन, बीटी रणदिवे पी राममूर्ति, तथा प्रमोद दास गुप्त तो क्रमशः पीएस, एमबी, ईएमएस, एकेजी, बीटीआर, पीआर, और पीडीजी के संक्षिप्त नामों से जाने जाते रहे पर हरकिशन सिंह सुरजीत और ज्योतिबसु दो ऐसे नाम रहे हैं जिन्हें कोई संक्षिप्त नाम नहीं दिया गया।
सरदार भगतसिंह के अनुयायी रहे हरकिशनसिंह सुरजीत ने चैदह साल की उम्र में ही भगत सिंह द्वारा स्थापित नौजवान भारत सभा की सदस्यता ले ली थी और भगतसिंह की शहादत पर इस कच्ची उम्र में भी होशियारपुर की अदालत पर कड़ी सुरक्षा का घेरा तोड़ते हुये तिरंगा फहरा दिया था। उन्हें रोकने के लिए पुलिस ने दो बार गोली चलायी थी तथा बाद में उन्हें गिरफ्तार करके दंडित किया गया था। श्री सुरजीत ने अपने मुकदमे के दौरान अपना नाम लन्दन तोड़ सिंह बतलाया था और कच्ची उम्र के कारण सजा में मिल सकने वाली सहानुभूति की संभावनाएं भी खत्म कर दी थीं। संयोग से उनका जन्मदिन 23 मार्च के दिन पड़ता है जो भगतसिंह को फांसी देने की भी तारीख है। 1916 में जन्मे श्री सुरजीत का जन्म स्थान जलंधर का बडाला गांव है। बीस साल की उम्र में वे कम्युनिष्ट पार्टी के सदस्य बन गये थे जहां उन्हें किसान मोर्चे पर काम करने की जिम्मेवारी दी गयी। वे किसान सभा के संस्थापक सदस्यों में से एक थे तथा आजादी की लड़ाई लड़ते, भूमिगत रहते, सजायें भुगतते 1947 में आजादी के समय वे अविभाजित कम्युनिष्ट पार्टी की पंजाब इकाई के राज्य सचिव थे। आजादी के बाद जब सरकार ने उन्हें ‘प्रिवेटिव डिटेंशन’ के अर्न्तगत जेल में डालना चाहा तब एके गोपालन तो गिरफ्तार होकर जेल चले गये पर सुरजीत दो साल तक भूमिगत रह कर काम करते रहे। 1959 तक उन्होंने किसानों और कृषि श्रमिकों के बीच में संगठन का अथक काम किया जिसके फलस्वरूप वे आल इंडिया किसान सभा के महासचिव और बाद में अध्यक्ष चुने गये। वे अपने काम के आधार पर लगातार पार्टी में ज्यादा जिम्मेवार पदों के ओर अग्रसर होते गये व 1992 में सीपीएम के महासचिव चुने गये तथा 2005 तक बने रहे। देश के स्वतंत्रता संग्राम में पूरा जीवन अर्पित कर देने के बाद भी उन्होंने कभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पेंशन नहीं चाही। उनका कहना था कि यह तो हमारी पार्टी का काम था जिसे करने के लिए ही उन्होंने एक कम्युनिष्ट का जीवन जीना स्वीकारा है। उन्होंने श्री ईएमएस नम्बूदरीपाद, और ज्योतिबसु की तरह अपने हिस्से की सारी सम्पत्ति अपनी पार्टी को दे दी थी।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी हरकिशनसिंह सुरजीत लेखक और पत्रकार भी रहेे। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उन्होंने ‘दुखी दुनिया’ और ‘चिनगारी’ जैसे पत्र प्रकाशित किये जिसमें लिखे लेखों के लिए अंग्रेजों ने उन्हें जेल की सजा दी। मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी की स्थापना के बाद वे लगातार ‘पीपुल्स डेमोक्रेसी’ तथा ‘लोकलहर’ के सम्पादक रहे तथा निरंतर समकालीन राजनीति से संबंधित पुस्तिकाएं लिखते रहे जिसमें देश की राजनीतिक समस्याओं पर गंभीरता से विचार किया जाता रहा है। उनकी सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक ‘ लैन्ड रिफार्म इन इंडिया’ है जिसका हिंदी अनुवाद ‘भारत में भूमि सुधार’ के नाम से आया है। साम्प्रदायिकता के विरोध और धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में लिखने वालों को जब राष्ट्रपति पुरस्कार देने की घोषणा हुयी तो उस सूची में लोकलहर सम्पादक कामरेड सुरजीत, उदयन शर्मा, और बनवारी जैसे पत्रकार सम्मिलित थे। बाकी सारे लोगों ने तो पुरस्कार लेना स्वीकार कर लिया किंतु कामरेड सुरजीत का कहना था कि मैंने जो कुछ भी किया है वह हमारी पार्टी की सोच और विचारधारा का हिस्सा है इसलिए सरकार को अगर पुरस्कार देना है तो वो हमारी पार्टी को दे। स्मरणीय है कि उनकी पार्टी के सारे सांसद अपना पूरा वेतन पार्टी चलाने के लिए पार्टी को देते हैं तथा उसी वेतन में गुजारा करते हैं जो उन्हें पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में पार्टी से मिलता रहा है। उनकी पार्टी के‘शासन वाले बंगाल में पिछले पच्चीस सालों से विधायकों के वेतन में वृद्धि नहीं की गयी।
देश को साम्प्रदायिक ताकतों की गिरफ्त में जाने से रोकने में कामरेड सुरजीत के व्यक्तित्व और प्रयासों की भूमिका ऐतिहासिक रही। 1989 में उन्होंने विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को इसी शर्त पर वामपंथ का समर्थन देना मंजूर किया जब वे भाजपा को सरकार से बाहर रखने पर तैयार हुये। 1996-98 में भी देवगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल की सरकारों को बनवाने व उनके लिए कांग्रेस का समर्थन जुटाने में सुरजीत की भूमिका ‘किंगमेकर’ की रही। 2004 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए दूसरे दलों का समर्थन जुटाने में भी उनकी भूमिका प्रमुख रही। उनके अपने दल में इतना लोकतंत्र है कि ज्योतिबसु को प्रधानमंत्री पद देने के प्रस्ताव को सेन्ट्रल कमेटी से अनुमति न मिलने के कारण उनकी इच्छा भी असर नहीं डाल सकी। सत्ता में सम्मिलित न होकर भी उन्होंने समर्थन देने के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम को आधार बनाया तथा उसे लागू कराने के लिए सतत संघर्ष भी करते रहे।”
----
संपर्क
वीरेन्द्र जैन
2@1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल म.प्र. फोन 9425674629
----
tag : harkishan singh surjeet, marksvaad, marksism, marksist, communism, communists, virendra jain, biography, biography of communist leader harkishan singh surjeet
यद्यपि यह लेख मैं पहले पढ चुका हूं लेकिन इसे फिर पढना अच्छा लगा । अच्छी चीजें जितनी बार देखी जाएं, पढी जाएं प्रत्येक बार 'हर बार नया' का आनन्द देती हैं ।
जवाब देंहटाएंलेख उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद ।