बाल कविताएँ. नन्हीं कलियाँ -सीमा सचदेव 1.पक्षी होता मैं नीलगगन का पक्षी होता मैं नीलगगन का मीठा फल खाता मैं चमन का ...
बाल कविताएँ.
नन्हीं कलियाँ
-सीमा सचदेव
1.पक्षी होता मैं नीलगगन का
पक्षी होता मैं नीलगगन का
मीठा फल खाता मैं चमन का
इधर-उधर उड़-उड़ कर जाता
सुंदर सा इक घर मैं बनाता
मेरे सुंदर पंख भी होते
कोमल-कोमल छोटे-छोटे
अपने सुंदर पंख फैलाता
दूर गगन में उड़ कर जाता
उड़ते-उड़ते जब तक जाता
नीचे धरती पर आ जाता
फल वाले उपवन में जाता
मीठे-मीठे फल मैं खाता
जहाँ से चाहता प्यास बुझाता
जहाँ भी चाहता वहीं पे रहता
बच्चों को मैं दोस्त बनाता
मीठे फल उनको भी खिलाता
दुनिया का चक्कर मैं लगाता
उड़ता रहता कभी न रुकता
तरह-तरह का खाना खाता
जो भी मिलता, जहाँ मैं जाता
बनाता एक मित्रों की टोली
हम भी खूब खेलते होली
रंग-बिरंगे पंखों वाले
हम भी लगते कितने प्यारे
खाने का नहीं लालच करता
जाल में तो कभी न फँसता
उड़ कर किसी तरह बच जाता
मानव के कभी हाथ न आता
खुली हवा में खुले गगन में
रहते हम भी अपनी लगन में
पूरी दुनिया मेरा घर होती
क्या नदिया क्या पर्वत चोटी
पर मुझको कुछ दुख भी होता
बच्चों के संग पढ़ नहीं सकता
न मैं कभी स्कूल को जाता
न कॉपी पेन्सिल ही उठाता
मम्मी न मुझको सुबह जगाती
न वो सुबह-सुबह नहलाती
न तो खाना प्यार से मिलता
न इतना सुंदर घर होता
सर्दी-गर्मी से न बचता
मानव से डरता ही रहता
न मैं हँसता न मैं बोलता
अपना दुख फिर किससे कहता
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2..धरती माता ( कविता)
धरती हमारी माता है,
माता को प्रणाम करो
बनी रहे इसकी सुंदरता,
ऐसा भी कुछ काम करो
आओ हम सब मिलजुल कर,
इस धरती को ही स्वर्ग बना दें
देकर सुंदर रूप धरा को,
कुरूपता को दूर भगा दें
नैतिक ज़िम्मेदारी समझ कर,
नैतिकता से काम करें
गंदगी फैला भूमि पर
माँ को न बदनाम करें
माँ तो है हम सब की रक्षक
हम इसके क्यों बन रहे भक्षक
जन्म भूमि है पावन भूमि,
बन जाएँ इसके संरक्षक
कुदरत ने जो दिया धरा को
उसका सब सम्मान करो
न छेड़ो इन उपहारों को,
न कोई बुराई का काम करो
धरती हमारी माता है,
माता को प्रणाम करो
बनी रहे इसकी सुंदरता,
ऐसा भी कुछ काम करो
अपील:- विश्व धरा दिवस के अवसर पर आओ हम सब धरा को सुन्दर बनाने में सहयोग दें
हमारी धरती की सुन्दरता को बनाए रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है....... सीमा सचदेव
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3.बजरंग बली हनुमान
बच्चो आज मन्दिर में जाएँ
हनुमान जी की बाते बताएँ
श्रद्धा से अपने सर को झुकाएँ
जीवन अपना सफल बनाएँ
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चैत्र मास की आई पूनम
हुआ श्री हनुमान का जन्म
महाबलि श्री केसरी-नंदन
अंजनिसुत श्री मारुतिनंदन
जाने उनके कितने ही नाम
पर उनका प्रभु एक ही राम
राम-नाम ही उनका जीवन
कर दिया खुद को राम के अर्पण
...........................................
जब सीता को ले गया रावण
तो रोया हनुमान का यूँ मन
कूद के पहुँच गए थे लंका
बजाया राम-नाम का डंका
सोने की लंका को जलाया
सीता को सन्देश सुनाया
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जब करना था सागर पार
वानर सेना थी अपार
सोच रहे थे राम औ लक्ष्मण
सिन्धु पार जाएँ कैसे हम ?
तब पत्थरों पर लिख कर राम
कर दिया एक सेतु निर्माण
सारे सिन्धु को कर गए पार
पहुँच गए लंका के द्वार
.....................................
मूर्च्छित जब हो गए थे लक्ष्मण
तब हनु लेने गए सञ्जीवन
कौन सी बूटी पता न चला
तब पूरा पर्वत उठा लिया
आ कर लखन को दी सञ्जीवन
मिल गया फिर उनको नव-जीवन
.....................................
अजब हनुमान का बुद्धि बल
पर उनका मन हरदम निर्मल
वो तो है शिव का अवतार
राम-नाम जीवन का सार
सबके लिए ही संकट मोचन
तरसे उनको राम के लोचन
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बच्चों तुम भी रखना ध्यान
संकट मोचन श्री हनुमान
हर लेते है सारे ही दुख
उनसे मिलता है परम सुख
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4.महावीर स्वामी की शिक्षाएँ
आओ बच्चों मिलकर आओ
आज तुम्हें कुछ बातें बताऊँ
महावीर के जन्मदिवस पर
उनके कुछ उपदेश सुनाऊँ
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कभी किसी से झूठ न बोलो
सच्च के लिए अपना मुँह खोलो
जब भी कभी बोलना चाहो
तो पहले शब्दों को तोलो
रखो सदा ही सच्च को साथ
चाहे दिन हो चाहे रात
किसी की कभी न करो बुराई
मीठी वाणी मे सबकी भलाई
.....................................
कभी कोई गलती कर जाओ
तो माफी से मुक्ति पाओ
माफी माँगना या फिर करना
नहीं कभी कोई इससे डरना
रखो सबसे मैत्री भाव
छोड़ो सबपे यह प्रभाव
क्षमा से बड़ा न कोई उपहार
होते इससे उच्च विचार
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कभी न हिंसा किसी पे करना
सबसे ही मिलजुल कर रहना
सबमें एक ही जैसी जान
नहीं करना किसी का अपमान
छोड़ो सारे वैर-विरोध
कभी न मन में लाना क्रोध
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बच्चो यह सब बातें समझना
अच्छाई के मार्ग पर चलना
महावीर के शुभ वचनों का
जीवन में सब पालन करना
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5..
बैसाखी का मेला
बैसाखी का लगा है मेला
खुश सारे क्या गुरु क्या चेला
आओ सुनाऊँ पुरानी बात
बैसाखी का है इतिहास
सिख धर्म के दश गुरु थे
दशम गुरु श्री गोबिन्द सिंह थे
होता लोगों पे अत्याचार
आया उनको एक विचार
क्यो न ऐसा पंथ बनाएँ
और लोगो की रूह जगाएँ
जिससे समझे खुद को लोग
मिटाएँ अत्याचार का रोग
उसमें सबको शिक्षा देंगे
मानवता के लिए लड़ेंगे
ऐसा पंथ उन्होंने साजा
जिसमें ना परजा ना राजा
होंगे सारे गुरु के शिष्य
सँवारेगे देश का भविष्य
शिष्य चुने उन्होने पाँच
की पहले उन सबकी जाँच
क्या वो देश पे मर सकते है ?
सच्च के लिए क्या लड़ सकते है?
कराया सबको अमृतपान
कड़ा,केस,कञ्घा,किरपान
देकर उनको सिख नवाजा
ऐसे खालसा पंथ था साजा
बैसाखी का दिन था पावन
सन था सोलह सौ निन्यावन
सिख धर्म का यह उपहार
तब से ही मनता त्योहार
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.................
एक बात मैं और बताऊँ
एक और इतिहास सुनाऊँ
जब था अपना देश गुलाम
अंग्रेजों का था बस नाम
भारत माँ को बनाया दासी
दुखी थे इससे भारतवासी
किसी तरह भारत को बचाएँ
अंग्रेज़ों को दूर भगाएँ
सन था तब उन्नीस सौ उन्नीस
था बैसाखी का पावन दिन
लोगो ने मिलकर सभा बुलाई
होगी अंग्रेज़ों की विदाई
जगह थी जलियाँ वाला बाग
अमृतसर में है भी आज
अंग्रेजों को पता चला जब
हुए लाल-पीले सुन के तब
नहीं सभा वो होने देंगे
न ही भारत को छोड़ेंगे
आ गया वहाँ पे जनरल डायर
अचनचेत ही कर दिए फायर
लोगो की थी भीड़ अपार
जनरल खड़ा बाग के द्वार
सारा मार्ग बन्द कर दिया
और लाशों से बाग भर दिया
सैकड़ों लोग वहीं पर मर गए
बाकी सबको जागरूक कर गए
व्यर्थ न हुआ उनका खून
लोगों में भर गया जुनून
सबके खून का बदला लेंगे
अंग्रेजो को नहीं सहेंगे
सबने मिलकर लड़ी लड़ाई
अंग्रेज़ों से मुक्ति पाई
हो गया अपना देश आजाद
गए अंग्रेज़ देश से भाग
.................
...................
लगते हैं मेले हर साल
हो किसान जब मालामाल
फसलें जब सारी पक जाती
कट कर जब घर पर आ जाती
भर जाते हैं किसानों के घर
तब उनको नहीं होता कोई डर
वर्षा आए या तूफान
उनपे मेहरबान भगवान
सारे साल का मिल गया खाना
फिर क्यों न त्योहार मनाना
मिल कर सारे नाचे गाएँ
आओ हम बैसाखी मनाएँ
उन शहीदों को भी रखे याद
और ईश्वर से करे फरियाद
खुशियों के लगते रहे मेले
और सारे दुखों को हर ले
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6.
मेरी गुड़िया
मेरी गुड़िया प्यारी-प्यारी
बातें उसकी न्यारी-न्यारी
नन्हीं सी यह फूल सी बच्ची
छोटी सी पर दिल की सच्ची
कोमल-कोमल हाथों वाली
नीली-नीली आँखों वाली
गोरे-गोरे गाल हैं उसके
भूरे-भूरे बाल हैं उसके
नन्हे पैरों से जब चलती
गिर जाए तो ख़ुद ही संभलती
जाय वहीं मम्मी जहाँ जाय
ख़ाय वही मम्मी जो खिलाय
पापा की है राज दुलारी
मम्मी की है दुनिया सारी
पापा जब आफ़िस से आएँ
झट उनकी गोदि चढ़ जाए
परियों की सी मेरी रानी
बातों में तो सब की नानी
बोले जब वह तोतली बोली
भर जाए खुशियों से झोली
मम्मी पापा की जिंद-जान
करेगी जग में ऊँचा नाम
मीठी-मीठी शहद की पुड़िया
कितनी प्यारी है मेरी गुड़िया
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7.
परियों की शहजादी
मैं शहज़ादी परियों की हूँ
आसमान में मेरा घर
राहों में मेरी बिछे सितारे
मेरा पता है चाँद नगर
मैं कलियों सी सुन्दर कोमल
चाहूँ जहाँ पे जाती हूँ
हवा के संग में बातें करती
नीलगगन में उड़ती हूँ
हरी भरी धरती को देखूँ
आसमान में बादल को
देखूँ नदियाँ झरने पर्वत
और पेड़ों की हलचल को
कुदरत का संगीत मैं सुनती
देखूँ इसकी सुन्दरता
फूलों से खुशबू लेती हूँ
और भँवरों से चंचलता
नन्हे बच्चे मुझको भाते
और भाता है भोलापन
न दुनियादारी न झँझट
कितना प्यारा यह बचपन
मन में मैल नहीं बच्चों के
न ही कुछ खोने का डर
राहों में मेरी बिछे सितारे
मेरा पता है चाँद नगर
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8.चाँद पे होता घर जो मेरा
चाँद पे होता घर जो मेरा
रोज़ लगाती मैं दुनिया का फेरा
चंदा मामा के संग हँसती
आसमान में ख़ूब मचलती
ऊपर से धरती को देखती
तारों के संग रोज़ खेलती
देखती नभ में पक्षी उड़ते
सुंदर घन अंबर में उमड़ते
बादल से मैं पानी पीती
तारों के संग भोजन करती
टिमटिमाटे सुंदर तारे
लगते कितने प्यारे-प्यारे
कभी-कभी धरती पर आती
मीठे-मीठे फल ले जाती
चंदा मामा को भी खिलाती
अपने ऊपर मैं इतराती
जब अंबर में बादल छाते
उमड़-घुमड़ कर घिर-घिर आते
धरती पर जब वर्षा करते
उसे देखती हँसते-हँसते
मैं परियों सी सुंदर होती
हँसती रहती कभी न रोती
लाखों खिलौने मेरे सितारे
होते जो है नभ में सारे
धरती पर मैं जब भी आती
अपने खिलौने संग ले आती
नन्हे बच्चों को दे देती
कॉपी और पेन्सिल ले लेती
पढ़ती उनसे क ख ग
कर देती मामा को भी दंग
चंदा को भी मैं सिखलाती
आसमान में सबको पढ़ाती
बढ़ते कम होते मामा को
समझाती मैं रोज़ शाम को
बढ़ना कम होना नहीं अच्छा
रखो एक ही रूप हमेशा
धरती पर से लोग जो जाते
जो मुझसे वह मिलने आते
चाँद नगर की सैर कराती
उनको अपने घर ले जाती
ऊपर से दुनिया दिखला कर
चाँद नगर की सैर करा कर
पूछती दुनिया सुंदर क्यों है?
मेरा घर चंदा पर क्यों है?
धरती पर मैं क्यों नहीं रहती?
बच्चों के संग क्यों नहीं पढ़ती?
क्यों नहीं है इस पे बसेरा ?
चाँद पे होता घर जो मेरा?
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9.फोन की घण्टी
ट्रिन ट्रिन ट्रिन ट्रिन बज गई घण्टी
सुन कर दौड़ के आया बन्टी
फोन उठा कर बोला हैलो
आओ मेरे सन्ग मे खेलो
आगे था पापा का बॉस
करनी थी कुछ बातें खास
बॉस तो पूरे गुस्से मे था
उसने तो बस लड़ना ही था
पर जब सुना बन्टी को ऐसे
भाग गया सब गुस्सा जैसे
बोला बेटा तुम आ जाओ
पापा को भी साथ मे लाओ
हम तीनों मिलकर खेलेंगे
तुमको आईसक्रीम भी देंगे
खुश हो गए सारे ही सुनकर
बन्टी खुश अन्कल से मिलकर
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10.मेरी माँ
मुझे प्यारी मेरी माँ
दुनिया से है न्यारी माँ
प्यार से सुबह जगाती है
मीठा दूध पिलाती है
पहना के मुझे सुन्दर कपड़े
स्कूल छोड़ के आती है
अच्छे अच्छे खाने बनाती
अपने हाथ से मुझे खिलाती
रोज खेलती मेरे साथ
चलती मेरा पकड के हाथ
प्यार से मुझको गले लगाए
मीठी-मीठी लोरी सुनाए
पापा को जब गुस्सा आए
तो माँ आकर मुझे बचाए
कभी -कभी माँ जब छुप जाए
तो मुझे रोना आता है
माँ का इक पल भी न दिखना
मुझको जरा न भाता है
अच्छी टीचर मेरी माँ
मेरी दोस्त मेरी माँ
प्यारी प्यारी मेरी माँ
दुनिया से है न्यारी माँ
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संपर्क:
sachdeva.shubham [AT] yahoo.com
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Tag : bal kavita, seema sachdev, poems for kids in Hindi, children’s poems in Hindi
beautiful
जवाब देंहटाएंpoems baccho ke liye bahut sundar likhi gayi hain, baal man ko chune wala sangrah hai , shubhkamnaye
हटाएंBahut Achhi Kavitayen hain.
हटाएंexcellent.
जवाब देंहटाएंsend me your blog url.
Once I read that you have written panchtantra poetry. I require those one.
Please
excellent.
जवाब देंहटाएंsend me your poetry of panchtantra
बहुत ही खूब्सूरत कविताये कृपया लिखते रहिये
जवाब देंहटाएंaap sabakaa apni bahumulayaa tippani ke liye bahut-bahut dhanyavaad .....seema sachdeva
जवाब देंहटाएंrealy great ...impresive
जवाब देंहटाएंBahut sundar ...dil ko chu liya... aur bachpan yaad aa gayaa..
जवाब देंहटाएंrealy great ...impresive
जवाब देंहटाएंrealy great....impresive
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