श्रीमती रचना गौड़ 'भारती' की दो कहानियाँ

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कहानी मध्यान्तर -रचना गौड़ ‘भारती’   उमंगों से चांद ने आज जैसे उसकी झोली भर दी थी । ताउम्र देखे उन सुनहरे सपनों को वह तारों के समान...

कहानी

मध्यान्तर

-रचना गौड़ ‘भारती’

 rachana gaur bharati

उमंगों से चांद ने आज जैसे उसकी झोली भर दी थी । ताउम्र देखे उन सुनहरे सपनों को वह तारों के समान इस सन्नटे में गिन रही थी । कितने तारे सपनों के गिनने पड़ते हैं किसी लड़की को इस दिन के लिये , खुशी से दिल की धड़कने थमने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं ।आज कोई उसकी जिन्दगी में सरेआम इजाज़त पाकर बेधड़क प्रवेश करने वाला था । शायद उसका हमसफ़र , उसका नूर-ए -चश्म या जीवन भर का साथी । इस शब्द से ही लड़कियों का मन अपने हक़दार , अपने दावेदार अपने मालिक के लिये यूं आस का आसन बिछाये इंतज़ार करता है जैसे सदियों से उसका कर्ज़ा अपने कंधों पर उठाए बैठा हो । जिसका हक उसे दे देना ही अच्छा होगा । इधर मन महक रहा था उधर सौंदर्य प्रसाधनों से तन महक रहा था , इनके मिश्रण से ज्यादा कहीं ये फूलों से सज़ा कमरा महक रहा था । आज की रात दो दिल ऐसे कोरे काग़ज़ पर हस्ताक्षर करने वाले थे , जिसे प्यार की स्याही में डुबोकर लिखना था । अभिलाषा जो अबतलक इंतज़ार में थक चुकी थी , धीरे से सहमी हुई अंगड़ाई लेकर फिर आराम कुर्सी पर लेट गयी । आखिरकार इंतज़ार खत्म हुआ ,और राहुल आया । उसके आने पर अभिलाषा एकदम सकपका कर खड़ी हो गई , भारतीय हृदय से झुक कर पति के पैरों का स्पर्श करने ही लगी थी कि राहुल ने उसे ऊपर उठा लिया और आश्चर्य से कहा - 'मैंने तो सोचा था , तुम आधुनिक होगी ।'

अभिलाषा ने कहा - ' आधुनिक हूं , मगर कुछ - कुछ '

राहुल ने पूछा - 'कैसे ?'

उसने जवाब दिया - ' विचारों में ।'

राहुल ने अभिलाषा को अपना गुप्त उपहार , जो सबसे छुपाकर रखा था भेंट किया । अभिलाषा ने उसे लेकर प्रसन्नता दिखायी । अभिलाषा ने कहा - आज तक सारे प्रेमी - प्रेमिका यह कहते हैं , हमने तुम्हें इतना प्यार किया है जितना किसी ने किसी को नहीं किया होगा । मगर आज मैं आपको वह उपहार देने जा रही हूं , जो किसी पत्नी ने इस दिन अपने पति को नहीं दिया होगा । अभिलाषा के प्यार भरे इस प्रस्तुतिकरण पर राहुल रीझता गया और उसे अपने पर गर्व होने लगा । राहुल ने हाथ बढ़ाया और अीािलाषा से वो रंगीन काग़ज़ में लिपटा अनोखा उपहार ले लिया । उसे खोलने पर सचमुच एक रंगीन कवर पर सुनहरे व लाल रंग में लिखा शीर्षक 'दर्द का दरिया' था । राहुल ने पूछा - 'यह क्या है ?'

अभिलाषा ने कहा - 'यह वो गलीचा है जिसे मैंने रात - रात भर अपनी आंख के मोतियों को पिरोकर बुना है ।' राहुल उसके इस कार्य पर इतना मुग्ध हुआ कि उसकी गोद में सिर रखकर , उसे अपने समीप लाकर बोला - 'सच!आशू , आज के बाद तुम कभी अपने दिल का हाल काग़ज़ व स्याही पर नहीं उतारोगी । यह वादा करो कि तुम अब से हमेशा जरूरत पड़ने पर अपने आंसूओं को स्याही बना मेरे सीने पर इन अक्षरों की तरह सजाओगी । अभिलाषा भावविहल हो गयी और राहुल से लिपट गयी । राहुल ने थोड़ी देर बाद देखा तो अभिलाषा यूं ही किसी बच्चे के समान उससे दामन जोड़े सो गयी थी , मानो आज वह पहली बार अपनी नींद सोयी हो ।उसके चेहरे पर अटूट विश्वास झलक रहा था । अभिलाषा का चेहरा देखकर राहुल सोचने लगा कि यह कितनी अलग है सबसे , मगर ऐसी क्या चीज़ है जो इसे साधारण से अलग करती है । यकायक उसकी निगााह उस उपन्यास पर चली गयी ।हाथ बढ़ाकर यह सोचकर उसने उठा लिया कि चलो इसके अंर्तमन को पढ़कर देखूं । लेकिन यह क्या ! अभिलाषा के जीवन में एक कमी शायद सदा से ही रही , जिससे उसकी अतृप्त आत्मा की छटपटाहट पानी की लटकती बूंद के समान बन गयी थी । एक लम्बे सफ़र के बाद जैसे मुसाफ़िर नर्म व गुदगुदे बिस्तर की कल्पना करता है वैसे ही अभिलाषा के जीवन को भी चाहिये था । उसकी कहानी पहले पन्ने से ही शुरू होती है जो बचपन में ले जाती है ।

छोटी सी अभिलाषा फूलों से लदे बगीचे में नीचे छुपी हुई सी एक कली जिसपर किसी की क्या भंवरे व तितली की निगगह भी न पड़े । ऐसा दबा दबा सा व्यतित्व आंखें हर समय दुनियां के आश्चर्य से चकित सी मन में असमय ही एकांत पाने पर उठते बेलग़ाम सवाल , जैसे बच्चों के मन में उठा करते हैं । मां की उपेक्षा , अभिलाषा को मां के दूध के साथ ही मिली थी । काम या मनोरंजन में हमेशा व्यस्त मां जब उपेक्षा करती है तो हृदय की एक - एक झिल्ली कटकर रह जाती है । बाबूजी हमेशा से तटस्थ जरूरत पड़ने पर डांट इसके अलावा एक डेढ़ घण्टे का भाषण सुनने को जब मिलता तो उनकी उपस्थिती का भी कभी - कभी अहसास हो जाता था । वो घटना जिसका बयान अभिलाषा ने अपने शब्दों में कर रखा था हृदयविदीर्ण थी ।

उस घटना को मैं कभी नहीं भूल सकती जब मैं बुखार से तप रही थी , नन्हीं नाज़ुक काया मां का स्पर्श पाना चाहती थी । उसकी गोद में सिर रख कर अपनी तवन से मुकाबला करना चाहती थी , मां में छुपकर सुरक्षा पाना चाहती थी । एक बजे होगें रात के सन्नाटे में एक ऑटो रिक्शा आकर रूका और उसमें से दो औरतें उतरीं उन्हें मेरी मां को लेकर दिल्ली जाना था । मां ने बिना संकोच किये , अपना फ़र्ज निभाना है यह समझकर बिना मेरी तरफ़ देखे उनके साथ जाने को तैयार हो गयीं । मैं छअपटा रही थी , बार - बार रोकर कह रही थी - 'मां तुम मत जाओ , मैं कैसे रहूंगीं , मुझे बहुत बुखार है मां तुम मत जाना ।' आंसू मेरे लेटे होने की वज़ह से आंखों की किनार से लगातार गर्म धार के रूप में कनपटियों को जला रहे थे , मगर मां पर कोई असर नहीं हुआ और वह कुछ देर बाद चली गयीं । जाते - जाते कह गयीं - ' देखो तुम्हारे पापा, भाई व बहनें तुम्हारे पास हैं , तुम अकेली तो हो नहीं मुझे जाना तो पड़ेगा और वह चली गयीं । पीछे तमाम घटना ताउम्र के लिये यादगार बन मेरे सीने में दबती गयी ।यूं तो बचपना सब में होता है , मगर मुझ में चरम सीमा तक था । हर किसी के बचपने व जवानी के बीच एक मध्यान्तर जरूर होता है मगर मेरे जीवन में यह मध्यान्तर नहीं आया जिसका इंतज़ार मैं आज तक करती हूं । पढ़ते -पढ़ते राहुल भी भावुक हो गया लेकिन उसने भी गोताख़ोर की तरह एक ही डुबकी में उसके मन के सागर की गहरायी को नाप लिया था । इससे पहले कि उसके शब्दों का भंवर मुझे दुबारा फंसाता मैंने नॉवल बंद कर दिया और बीती रात को कुछ यादगार मोड़ दे डाला ।

अगली सुबह जो हर किसी नववधु की पहली व ख़ास होती है उसका चक्र शुरू हो गया । कच्ची व मीठी घूप की तरह गृहस्थाश्रम की पहली सुबह का पहला कदम हर नववधु में एक नयी स्फूर्ति डाल देता है । कर्तव्यनिष्ठा की अग्निपरीक्षा का सामना करना हर लड़की को पड़ता है । दिन पर दिन गुज़रते गये और गृहस्थी का सूरज चढ़ता गया , उसकी तपन राहुल के स्वभाव तक पहुंचने लगी । खट्टी , मीठी , तीखी हर प्रकार की घटना घटित हुई । समयानुसार अभिलाषा ने दो बच्चों को जन्म दिया और गाड़ी यूं ही चलती रही , जिम्मेदारी बढ़ती गई । आज दोनों बच्चे उसके प्ढ़ लिखकर काबिल बन गये । एक नेवी में है , दूसरा इंजीनियर बन अपनी - अपनी दुनियां में मस्त हैं ।

अभिलाषा की कनपटियां सफ़ेद बालों से ढकी , कहीं - कहीं अंधेरी रात में दूधिया चांदनी टपकाती उसके रूप को और निख़ार रहीं थीं । सौम्य चेहरे पर अतृप्त प्यास लिये बालकनी में बैठी क्षितिज़ में रंगबिरंगें गुब्बारों की तरह उड़ी जा रही थी । बचपन व बुढ़ापे में कहीं कोई अन्तर न था । वह पहले भी अंज़ान थी , और आज भी । पहले जाने कब जवानी आ गयी , अब बिना बताये बुढ़ापा । मध्यान्तर की कमी उसके अतृप्त मन में कल भी थी , और आज भी है ।

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लघुकथा

 

निरक्षर मानव

घने जंगल में एक पेड़ के ओखल में कठफोड़वे का घर था। जंगल घना था, अत: लकड़ी चुराने वाले दल ने पेड़ों पर टिड्डी दल के समान आक्रमण कर दिया। खुदगर्ज़ लकड़हारे हाथों में कुल्हाड़ियां लिए यमदूत के समान आगे बढ़ रहे थे। जिसपर प्रकार कठफोड़वा पेड़ पर आश्रित था उसी प्रकार स्वस्थ वायु, भोजन व औषधी के लिए इंसान भी इन्हीं पेड़ों पर आश्रित थे।

ये सोचकर कठफोड़वा बेचैन हो उठा। पेड़ पर कुल्हाड़ी का पहला प्रहार, पेड़ व कठफोड़वे दोनों को अन्दर तक हिला गया। भय व आतंक के मारे दोनों कांपने लगे। पेड़ तो स्थिर खड़ा था कहीं भाग नहीं सकता था बहरहाल कठफोड़वा चाहता तो उड़ जाता। मगर वह उड़ा नहीं। वह गैरतमंद था। तुरंत अपने व पेड़ दका रास्ता निकाल लिया उसकी निगाह अपनी चोंच पर पड़ी। अपनी सारी हिम्मत बटोर कर टां टां कर दुश्मन पर जा टूटा। चोंच सीधे दुश्मन की आंख पर लगी और एक-एक कर सब भाग गए। पेड़ चुपचाप सारी गतिविधी देख रहा था आनन्दित हो अपनी पत्तियां व शाखाएं आंदोलित करने लगा।

पेड़ से निकली ध्वनि कठफोड़वे को ऐसी लगी जैसे वह उसे धन्यवाद दे रहा है और कठफोड़वा गद्गद् हो उठा। उन अशिक्षित लोगों से जो पेड़ काट रहे थे तो वृक्ष ही शिक्षित निकला। दुख हमें इस बात का था कि परोपकारिता और शिष्टता का जो पाठ वृक्ष व कठफोड़वे ने पढ़ा इंसानियत का मानव आखिर उससे क्यों निरक्षर रहा।

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परिचय

श्रीमती रचना गौड़ 'भारती'

(कवियत्री एंव स्वतंत्र लेखिका)

कार्यकारी संपादक -जिन्दगी Live (त्रैमासिक पत्रिका कोटा)

जन्म : 16 मई 1968 राजस्थान की औद्यागिक व शैक्षणिक नगरी कोटा में ।

शिक्षा : एम. ए. (राज. शास्त्र), एम.जे.ऐ.सी

(मास्टर ऑफ जर्नलिस्म एण्ड मास कम्यूनिकेशन)

कृतित्व : विगत 20 वर्षों से देश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में गजल,

कविताएं, मुक्तक, कहानियां, हाइकू एवं लेखों का प्रकाशन ।

कई वर्षों तक आकाशवाणी कोटा में आकस्मिक कम्पीयर एवं उद्धोषक का कार्य टी.वी. सिटी चेनल कोटा में समाचार वाचन का कार्य किया।

विभिन्न सरकारी एंव गैर सरकारी कार्यक्रमों में मंच संचालन का कार्य

प्रकाशित पुस्तक: 'आपकी रसोई' ( निरोगी दुनिया पब्लिकेशन जयपुर के माध्यम से ) प्रकाशाधीन पुस्तक: 'मनस्वी' काव्य संग्रह (साहित्य प्रकाशन उदयपुर के माध्यम से)

अन्तरजाल पर : साहित्यकुन्ज,स्वर्गविभा एंव वांड्मय पर कहानी, लधुकथा,मुक्तक, हाइकू व कवितांए प्रकाशित

रचना गौड़ 'भारती'

(कवयित्री एवं स्वतंत्र लेखिका)

कार्यकारी सम्पादक''जिन्दगी Live”

त्रैमासिक पत्रिका कोटा (राज.)

ए -178 , रिध्दि सिध्दि नगर ,

कुन्हाड़ी , कोटा (राज.)324008

 

email-racchu68@yahoo.com

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. मध्यान्तर मुझे बहुत ही अच्छी लगी । रचना जी का अन्दाज़ बहुत ही अच्छा है ।

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रचनाकार: श्रीमती रचना गौड़ 'भारती' की दो कहानियाँ
श्रीमती रचना गौड़ 'भारती' की दो कहानियाँ
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