चार्ली चैप्लिन मेरी आत्म कथा -अनुवाद : सूरज प्रकाश ( पिछले अंक 3 से जारी …) मैं अकेला होता चला गया। रविवारों की रात को उत्...
चार्ली चैप्लिन
मेरी आत्म कथा
-अनुवाद : सूरज प्रकाश
(पिछले अंक 3 से जारी…)
मैं अकेला होता चला गया। रविवारों की रात को उत्तरी शहरों में पहुंचना, अंधियारी मुख्य गली में से गुजरते हुए गिरजा घर की घंटियों की उदास टुनटुनाहट सुनना। ये सारी बातें मेरे अकेलेपन में कुछ भी न जोड़ पाती। सप्ताह के अंत की छुट्टियों के दिनों में मैं स्थानीय बाजार खंगालता, और अपनी खरीदारी करता, राशन-पानी खरीदता, मांस खरीदता जिसे मकान मालकिन पका कर दे देती। कई बार मुझे खाने और रहने की सुविधा मिल जाती और मैं तब रसोई में बैठ कर परिवार के साथ ही खाता। मुझे वह व्यवस्था अच्छी लगती क्योंकि उत्तरी इंगलैंड के रसोईघर साफ-सुथरे और भरे पूरे होते, वहां पॉलिश किए हुए फायरग्रेट होते और नीली भट्टियाँ होतीं। मकान मालकिन का ब्रेड सेंकना, और ठंडे अंधियारे दिन में से निकल कर लंकाशायर रसोई की जलती आग की लाल लौ के दायरे में आना हमेशा अच्छा लगता। वहाँ बिना सिंकी डबलरोटियों के डिब्बे भट्टी के आस-पास पार बिखरे होते, तब परिवार के साथ चाय के लिए बैठना, भट्टी से अभी-अभी निकली गरमा-गरम डबलरोटी की सोंधी-सोंधी महक, उस पर लगाया गया ताज़ा मक्खन...मैं गंभीर महानता ओढ़े इनका आनंद उठाता।
मैं प्रदेशों में छह महीने तक रहा। इस बीच सिडनी को थियेटर में ही काम तलाशने में बहुत कम सफलता मिली थी इसलिए अब वह कलाकार बनने की अपनी महत्त्वाकांक्षा को त्याग कर स्ट्रैंड में कोल होल में एक बार में काम के लिए आवेदन करने पर मजबूर हो गया। एक सौ पचास आवेदकों में से यह नौकरी उसे मिली थी। लेकिन मानो एक तरह से यह उसका पहले की स्थिति से पतन था।
वह मुझे नियमित रूप से लिखा करता और मां के बारे में मुझे समाचार देता रहता। लेकिन मैं शायद ही उसके खतों के जवाब देता। इसका एक कारण था कि मुझसे वर्तनी की गलतियाँ बहुत होतीं। उसके एक खत ने तो मुझे इतनी गहराई से हुआ और इसकी वजह से मैं उसके और नजदीक आ गया। उसने मुझे उसके खतों का जवाब न देने के कारण फटकार लगायी और याद दिलाया था कि हम कैसे-कैसे दिन एक साथ देख कर यहाँ तक पहुँचे हैं और इस बात से हमें कम से कम एक दूसरों के और करीब होना चाहिए।
सिडनी ने लिखा,".. मां की बीमारी के बाद हम दोनों के पास एक दूसरे के अलावा और कौन बचे हैं। तुम नियमित रूप से लिखा करो और मुझे बताओ कि मेरा एक भाई भी है।"
उसका पत्र इतना अधिक भावपूर्ण था कि मैंने तुरंत ही उसका जवाब दे दिया। अब मैं सिडनी को दूसरे ही आलोक में देख रहा था। उसके पत्र ने भ्रातृत्व के प्यार का ऐसा अटूट बंधन बांधा जो मेरी पूरी ज़िंदगी मेरे साथ बना रहा।
मैं अकेले रहने का आदी हो चुका था। लेकिन मैं बातचीत करने से इतना विमुख होता चला गया कि जब कम्पनी का कोई साथी मुझसे मिलता तो मैं बहुत ज्यादा परेशानी में पड़ जाता। मैं अपने आपको फटाफट इस बात के लिए तैयार ही न कर पाता कि हाजिर जवाबी से, समझदारी से किसी बात का जवाब दे सकूं। लोग-बाग मुझे छोड़ कर चले जाते। मुझे पक्का यकीन है कि मेरी बुद्धि के प्रति घबड़ाकर चिंतातुर हो कर ही मुझसे विदा लेते।
अब उदाहरण के लिए, मिस ग्रेटा हॉन को ही लें। वे हमारी प्रमुख अभिनेत्री थीं। खूबसूरत, आकर्षक और दयालुता की साक्षात प्रतिमा, लेकिन जब मैंने उन्हें सड़क पार कर अपनी तरफ आते देखता तो मैं तेजी से मुड़ कर या तो एक दुकान की खिड़की में देखने लगता या उससे मिलने से बचने के लिए किसी दूसरी ही गली में सरक जाता।
मैंने अपने-आप की परवाह करनी छोड़ दी और अपनी आदतों में लापरवाह होता चला गया। जब मैं कम्पनी के साथ यात्रा कर रहा होता तो रेलवे स्टेशन पहुंचने में मुझे हमेशा देर हो जाती। आखिरी पलों में पहुँचता और मेरी हालत अस्त-व्यस्त होती, मैंने कॉलर भी न लगाया होता, और मुझे हमेशा इस बात के लिए फटकार सुननी पड़ती।
मैंने अपने साथ के लिए एक खरगोश खरीद लिया और मैं जहाँ भी रहता, उसे छुपा कर अपने कमरे में ले जाता और मकान मालकिन को इस बात की हवा भी न लग पाती। ये एक छोटा-सा प्यारा-सा जीव था जो बेशक इधर-उधर मुंह नहीं मारता था। इसकी फर इतनी सफेद और साफ थी कि यह बात किसी की ध्यान में भी नहीं आती थी कि इसकी गंध कितनी तीखी हो सकती है। मैं इसे अपने बिस्तर के नीचे एक लकड़ी के पिंजरे में छुपा कर रखता। मकान मालकिन खुशी-खुशी मेरे कमरे में मेरा नाश्ता ले कर आती, तभी उसे इस महक का पता चलता, तब वह कमरे से परेशान और भ्रमित हो कर चली जाती, उसके कमरे से बाहर जाते ही मैं अपने खरगोश को आज़ाद कर देता और वह सारे कमरे में फुदकता फिरता।
बहुत पहले ही मैंने अपने खरगोश को इस बात की ट्रेनिंग दे दी थी कि ज्यों ही वह दरवाजे पर खटखट सुने, पलट कर अपनी पेटी में चला जाये। अगर मकान मालकिन को मेरे इस रहस्य का पता चल भी जाये तो मैं अपने खरगोश को ट्रिक करके दिखाने को कह कर उसका दिल जीत लेता और वह फिर हमें पूरा हफ़्ता रहने के लिए इजाजत दे देती।
लेकिन टोनीपेंडी, वेल्स में, मैंने अपनी ट्रिक दिखायी तो मकान मालकिन रहस्यमय ढंग से मुस्कुरायी लेकिन उसने कोई राय जाहिर नहीं की, लेकिन उस रात जब मैं थियेटर से लौटा तो मेरा प्रिय पालतू खरगोश जा चुका था। जब मैंने उसके बारे में पूछताछ की तो मकान मालकिन ने सिर्फ अपना सिर हिला दिया,"कहीं भाग-वाग गया होगा या उसे ज़रूर किसी ने चुरा लिया होगा।" उसने बड़ी चतुराई से अपने-आप ही समस्या को सुलझा लिया था।
टोनीपेंडी से हम ऐब्बी वेल के खदानों वाले शहर में पहुँचे जहाँ हमें तीन रातों के लिए रुकना था। और मैं इस बात के लिए शुक्रगुजार था कि हमें सिर्फ तीन दिन ही रुकना था क्योंकि ऐब्बीवेल एक सीलन-भरी जगह थी जो उन दिनों गंदा-सा शहर हुआ करता था, भयानक, एक जैसे मकानों की एक के बाद एक कतार, हर घर में चार छोटे कमरे थे जिनमें तेल की कुप्पियाँ जलतीं। कंपनी के ज्यादातर लोग एक छोटे-से होटल में ठहरे। सौभाग्य से मुझे एक खदानकर्मी के घर में सामने की तरफ वाला कमरा मिल गया। कमरा बेशक छोटा था लेकिन ये साफ और आरामदायक था। रात को जब मैं नाटक से वापिस लौटता तो कमरे में आग के पास ही मेरा खाना रख दिया जाता जहाँ वह गरम रहता।
मकान मालकिन लम्बी, खूबसूरत-सी औरत थी जिसके आस-पास त्रासदी का एक आवरण लिपटा हुआ था। वह सुबह मेरे कमरे में नाश्ता ले कर आती और शायद ही कभी एक-आध शब्द बोलती। मै नोट किया कि उसकी रसोई का दरवाजा हमेशा ही बंद रहता। जब भी मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत होती, मुझे दरवाजा खटखटाना पड़ता और दरवाजा एकाध इंच ही खोला जाता।
दूसरी रात जब मैं रात का खाना खा रहा था तो उसका पति आया। वह लगभग अपनी पत्नी की उम्र का रहा होगा। उस शाम वह थियेटर गया हुआ था और उसे हमारा नाटक अच्छा लगा था। बातचीत करते समय वह खड़ा ही रहा। उसने हाथ में एक जलती मोमबत्ती पकड़ी हुई थी और वह सोने के लिए जाने की तैयारी में था। वह बात करते समय थोड़ा रुका मानो कुछ कहना चाह रहा हो."...सुनो, मेरे पास कुछ ऐसा है जो मुझे लगता है, तुम्हारे काम काज में कहीं फिट हो सकता है। कभी मानव मेंढक देखा है? लो इस मोमबत्ती को पकड़ो और मैं लैम्प पकड़ता हूँ।"
वह मुझे रसोई घर तक ले कर गया और लैम्प को ड्रेसर पर रख दिया। ड्रेसर पर ऊपर से नीचे तक अलमारी के दरवाजों के पल्लों की जगह पर परदा लगा हुआ था। "...ऐ गिल्बर्ट, जरा बाहर तो निकलो।" उसने परदे सरकाते हुए कहा।
एक आधा आदमी जिसके पैर नहीं थे, सामान्य आकार से बड़ा सिर, लाल बाल, चपटा-सा माथा, बीमार-सा सफेद चेहरा, धँसी हुई नाक, बड़ा-सा मुँह और मजबूत कंधे और बाहें, ड्रेसर के नीचे से निकल कर आया। उसने फलानेल का जांघिया पहना हुआ था। जांघिये के कपड़े को जाँघों तक काट दिया गया था। वहाँ उसके दस मोटे, ठूँठ जैसे पंजे नज़र आ रहे थे। इस डरावने प्राणी की उम्र बीस से चालीस के बीच कुछ भी हो सकती थी।
"ऐ, ... हे गिल्बर्ट, जरा कूद के दिखाओ।" पिता ने कहा और दीन-हीन आदमी ने अपने आपको थोड़ा नीचे किया और लगभग मेरे सिर की ऊँचाई तक अपनी बाहें ऊपर उछाल दीं।
"...क्या ख्याल है? सर्कस के लिए यह फिट रहेगा? मानव मेंढक?"
मैं इतना भयभीत हो गया था कि जवाब ही न दे सका। अलबत्ता, मैंने उन्हें कई सर्कसों के नाम पते बताये जहाँ वे इस बारे में लिख सकते थे।
वे इस बात पर अड़े रहे कि ये लिजलिजा प्राणी और भी उछल कूद, कलाबाजियाँ और कूद फाँद दिखाये। उसे आराम कुर्सी के हत्थे पर हाथों के बल खड़ा किया गया, कुदाया गया। जब उसने अपने ये सब करतब बंद किये तो मैंने यह जतलाया कि ये वाकई उत्साह जनक है और इन ट्रिक्स पर उसे बधाई दी।
कमरे से बाहर निकलने से पहले मैंने उससे कहा ..."गुड नाइट गिल्बर्ट," तो कूँए में से आती सी, जबान दबा कर उसे बेचारे ने जवाब दिया," ...गुड नाइट।"
उस रात कई बार मैं उठा और अपने बंद दरवाजे को अच्छी तरह देखा-भाला। अगली सुबह मकान मालकिन खुश मिजाज़ नजर आयी और उसके चेहरे पर संवाद करने जैसे भाव थे। "मेरा ख्याल है, तुमने कल रात गिल्बर्ट को देखा है," कहा उसने, "हां, ये ज़रूर है कि जब हम थिएटर के लोगों को घर में रखते हैं तो वह ड्रेसर के नीचे ही सोता है।"
तब यह वाहियात ख्याल मेरे मन में आया कि मैं गिल्बर्ट के बिस्तर में ही सोता रहा हूँ।... "हाँ," मैंने जवाब दिया और उसके सर्कस में जाने की संभावनाओं पर नपे-तुले शब्दों में ही बात करता रहा।
मकान मालकिन ने सिर हिलाया,"...हम अक्सर इस बारे में सोचते रहे हैं।"
मेरा उत्साह - या इसे जो भी नाम दे दें - मकान मालकिन को खुश करता जा रहा था। वहाँ से चलने से पहले मैं रसोई में गिल्बर्ट को बाय-बाय कहने गया। सहज रहने की कोशिश करते हुए मैंने उसका बड़ा-सा फैला हुआ हाथ अपने हाथ में लिया और उसने हौले से मेरा हाथ दबाया।
चालीस हफ्तों तक अलग-अलग प्रदेशों में प्रदर्शन करने के बाद हम लंदन लौटे। अब हमें आस-पास के उपनगरों में आठ हफ्ते तक प्रदर्शन करने थे। शरलॉक होम्स, जो सदाबहार सफलता के झँडे गाड़ता था, पहले टूर के होने के बाद तीन हफ्ते बाद दूसरे टूर से शुरू होने वाला था।
अब सिडनी और मैंने तय किया कि पाउनाल टेरेस वाला अपना कमरा छोड़ दें और केनिंगटन रोड पर किसी ज्यादा इज़्ज़तदार जगह में जा कर रहें। हम अब सांपों की तरह अपनी केंचुल को उतार फेंक देना चाहते थे। अपने अतीत को धो पोंछ देना चाहते थे।
मैंने होम्स के अगले दौरे के दौरान सिडनी को एक छोटी-सी भूमिका दिये जाने के बारे में मैनेजमेंट से बात की। और उसे काम मिल भी गया। एक हफ्ते के पैंतीस शिलिंग। अब हम अपने दौरे पर साथ एक साथ थे।
सिडनी हर हफ्ते मां को खत लिखता था और हमारे दूसरे दौरे के आखिरी दिनों में हमें केन हिल पागल खाने से एक पत्र मिला कि अब हमारी मां की सेहत बिलकुल ठीक है। यह निश्चित ही एक बेहतर खबर थी। हमने फटाफट अस्पताल से मां को डिस्चार्ज कराने के इंतज़ाम किये और इस बात की तैयारियाँ कीं कि वह हमारे पास ही रीडिंग शहर में पहुँच जाये। इस मौके का जश्न मनाने के लिए हमने एक स्पेशल डीलक्स अपार्टमेंट लिया जिसमें दो बेडरूम थे, एक ड्राइंगरूम था जिसमें पियानो रखा हुआ था। हमने मां का बेडरूम फूलों से सजा दिया और एक शानदार डिनर का इंतजाम किया।
सिडनी और मैं स्टेशन पर मां का इंतज़ार करते रहे। हम तनाव में भी थे और खुश भी। लेकिन मैं इस बात को सोच-सोच कर परेशान हुआ जा रहा था कि अब वह कैसे हमारी ज़िंदगी में फिर से फ़िट हो पायेगी, इस बात को जानते हुए कि उन दिनों की वह आत्मीय घड़ियां फिर से नहीं जी जा सकेंगी।
आखिरकार ट्रेन आ पहुँची। सवारियाँ जैसे-जैसे डिब्बों में से निकल कर आ रही थीं, हम उत्तेजना और अनिश्चितता से उनके चेहरे देख रहे थे। और आखिर में वह नज़र आयी। मुस्कुराती हुई और चुपचाप धीरे-धीरे हमारी तरफ बढ़ती हुई। जब हम उससे मिलने के लिए आगे बढ़े तो उसने ज्यादा भाव प्रदर्शित नहीं किये लेकिन वात्सल्य के साथ हमें प्यार किया। तय था वह अपने आपको एडजस्ट करने के भीषण दौर से गुज़र रही थी। टैक्सी से अपने कमरों तक की उस छोटी-सी यात्रा में हमने हज़ारों बातें की, मतलब की और बेमतलब की।
मां को अपार्टमेंट और उसके बेडरूम के फूल दिखा देने के तात्कालिक उत्साह के बाद हम अपने आपको ड्राइंगरूम में एक दूसरे के सामने खाली-खाली बैठा पा रहे थे। हमारी सांस फूल रही थी। धूप भरा दिन था और हमारा अपार्टमेंट एक शांत गली में था। लेकिन अब इसकी शांति बेचैन कर रही थी। हालांकि मैं खुश होना चाहता था लेकिन पता नहीं क्यों, मैं अपने-आपको एक तरह के दिल डूबने वाले के भाव से लड़ता हुआ पा रहा था। बेचारी मां, उसने खुश और संतुष्ट रहने के लिए ज़िंदगी से कितना कम चाहा था, मुझे अपने तकलीफ़ भरे अतीत की याद दिला रही थी ...वह दुनिया की आखिरी औरत थी जिसने मुझे इस तरह से प्रभावित किया होगा। लेकिन मैंने अपनी तरफ़ से इन भावनाओं को छुपाने की भरपूर कोशिश की। उसकी उम्र थोड़ी बढ़ गयी थी और वज़न भी बढ़ गया था। मैं हमेशा इस बात पर गर्व किया करता था कि हमारी मां कितनी शानदार दिखती है और ढंग से पहनी ओढ़ती है, और मैं चाहता था कि मैं अपनी कम्पनी को उसके बेहतरीन रूप में दिखाऊं। लेकिन अब वह अनाकर्षक दिख रही थी। मां ने ज़रूर मेरी शंका के ताड़ लिया होगा तभी तो उसने मेरी तरफ प्रश्न भरी निगाहों से देखा।
झिझकते हुए मैंने मां के बालों की लट का ठीक किया,"...मेरी कम्पनी से मिलने से पहले," मैं मुस्कुराया,"मैं चाहता हूँ कि तुम अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में होवो।"
हमें एक दूसरे से एडजस्ट हाने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। और मेरी हताशा उड़न छू हो गयी। अब हम उस आत्मीयता के दायरे से बाहर आ चुके थे जो वह तब जानती थी जब हम बच्चे थे और तब वह उस बात को हम बच्चों से बेहतर जानती थी। और यह बात हमें और भी प्यारी बना रही थी। हमारे टूर के दौरान वह खरीदारी करती, सौदा सुलुफ लाती, घर पर फल वगैरह ले आती, खाने-पीने के लिए कुछ न कुछ अच्छी चीज़ें ले आती और थोड़े से फल तो जरूर ही खरीद कर लाती। हम अतीत में कितने भी गरीब क्यों न रहे हों, शनिवारों की रात के वक्त खरीदारी करते समय हम हमेशा पेनी भर के फूल खरीदने का जुगाड़ तो कर ही लिया करते थे। अक्सर वह शांत और अपने आप में गुमसुम रहती और उसका ये अलगाव मुझे उदास कर जाता। वह हमारे साथ मां की तरह पेश आने के बजाये मेहमानों की तरह पेश आती।
एक महीने के बाद मां ने लंदन वापिस जाने की इच्छा प्रकट की। वह अब घर बसा लेना चाहती थी ताकि जब हम दौरे से वापिस आयें तो उसके पास हमारे लिए एक घर हो। इसके अलावा, जैसा कि उसने कहा, इस तरह सदा सैरों पर घूमते हुए एक अतिरिक्त किराया देने की तुलना में लंदन में घर ले कर रहना कहीं ज्यादा सस्ता पड़ेगा।
मां ने चेस्टर स्ट्रीट पर नाई की दुकान के ऊपर एक फ्लैट किराये पर ले लिया। यहाँ हम पहले भी रह चुके थे। मां किस्तों पर दस पाउंड का फर्नीचर ले आयी। कमरे हालांकि वर्सेलिस के कमरों जैसे बड़े और शानदार नहीं थे लेकिन मां ने तो कमाल कर दिया और कमरों का काया-कल्प कर दिया। उसने सोने के कमरों को संतरी रंग के क्रेटस् और क्रेटोन से रंग डाला। अब कमरे सजावटी अल्मारियों की तरह दिखने लगे थे। हम दोनों, सिडनी और मैं मिल कर हर हफ्ते चार पाउंड और पांच शिलिंग कमा रहे थे और उसमें से एक पाउंड और पांच शिलिंग मां को भेज देते।
अपने दूसरे दौरे के बाद मैं और सिडनी घर वापिस लौटे और एक हफ्ता मां के साथ रहे। हालांकि हम मां के पास आ कर खुश थे, फिर भी हम मन ही मन फिर से दौरे पर जाने की चाह रखने लगे थे क्योंकि चेस्टर स्ट्रीट के घर में वे सारी सुविधाएं उस तरह की नहीं थीं जिनके मैं अब और सिडनी आदी होने लगे थे। बिला शक मां ने इस बात को ताड़ लिया। जब हमें स्टेशन पर विदा करने के लिए आयी तो वह काफी खुश लग रही थी लेकिन हम दोनों ने सोचा, जब प्लेटफार्म पर खड़ी वह रुमाल हिलाती हमें विदा कर रही थी तो हमें वह चिंतित लगी।
हमारे तीसरे दौरे के दौरान मां ने हमें लिखा कि लुइस, जिसके साथ सिडनी और मैं केनिंगट रोड पर रहे थे, नहीं रही है। मज़ाक ही तो कहा जायेगा कि, उसकी मृत्यु भी लैम्बेथ यतीम घर में ही हुई जिस जगह पर कुछ अरसे तक हमें रखा गया था। वह पिता जी के बाद सिर्फ चार बरस ही जी पायी थी और अपने बच्चे को यतीम छोड़ गयी थी। उस बेचारे को भी उस अनाथालय में ही रखा गया और उसे भी उसी हॉनवेल स्कूल में ही भेजा गया था जहाँ सिडनी और मुझे भेजा गया था।
मां ने लिखा था कि वह बच्चे से मिलने के लिए गयी थी और उसे बताने की कोशिश की थी कि वह कौन है और कि सिडनी और मैं केनिंगटन रोड पर उसके और उसके पापा...मम्मी के साथ रहे थे लेकिन बच्चे को कुछ भी याद नहीं था क्योंकि वह उस समय मात्र चार बरस का ही था। उसे अपने पिता की भी कोई स्मृतियां नहीं थीं। अब वह दस बरस का होने को आया था। उसे लुइस के मायके वाले नाम के साथ रखा गया था और मां जहाँ तक पता लगा पायी थी, उसका कोई रिश्तेदार नहीं था। मां ने लिखा था कि वह खूबसूरत और शांत लड़का निकल आया था। वह शर्मीला और ख्यालों में खोया रहने वाला लड़का था। वह उसके लिए थैला भर मिठाइयां, संतरे और सेब लेकर गयी थी और उससे वायदा किया था कि वह उसके पास नियमित रूप से आती रहेगी और मेरा विश्वास है वह तब तक जाती भी रही होगी जब तक वह खुद बीमार हो कर फिर से केन हिल में वापिस न भेज दी गयी हो।
मां के एक बार फिर पागल हो जाने की खबर सीने में खंजर की तरह लगी। हमें पूरे ब्यौरे कभी नहीं मिल पाये। हमें सिर्फ एक शुष्क सरकारी पर्ची मिली कि वह बेमतलब और असंगत तरीके से गलियों में फिरती हुई पायी गयी थी। हम कुछ भी तो नहीं कर सकते थे सिवाय इसके कि बेचारी मां की किस्मत के लेखे को स्वीकार कर लें। उसके बाद उसका दिमाग फिर कभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ।
वह कई बरस तक केन हिल पागल खाने में ही तब तक एड़ियाँ रगड़ती रही जब तक हम इस लायक नहीं हो गये कि उसे एक प्राइवेट पागल खाने में भर्ती करवा सकें।
कई बार बदकिस्मती के देवता भी अपनी चलाते-चलाते थक जाते हैं और थोड़ी-सी दया माया दिखला देते हैं जैसा कि मां के मामले में हुआ। अपने जीवन के अंतिम सात बरस मां को आराम से, फूलों से घिरे हुए और धूप से घिरे हुए बिताने का मौका मिला। वह अपने बड़े हो गये सपूतों को यश और किस्मत के उस स्तर को भोगते देख सकी जिसकी उसने कभी कल्पना की थी।
शरलॉक होम्स के तीसरे टूर के कारण ही सिडनी और मुझे मां को देखने आने में अच्छा-खासा वक्त लग गया। फ्रॉहमैन कम्पनी के साथ टूर हमेशा के लिए खत्म हो गया। इसके बाद थियेटर रॉयल, ब्लैकबर्न के मालिक मिस्टर हैरी यॉर्क ने फ्रॉहमैन से छोटे शहरों में खेलने के लिए शरलॉक होम्स के अधिकार खरीद लिये। सिडनी और मुझे नयी कम्पनी में रख लिया गया लेकिन अब हमारा वेतन घटा कर पैंतीस शिलिंग प्रति सप्ताह कर दिया गया था।
उत्तरी इंगलैंड के छोटे शहरों में अपेक्षाकृत हल्के स्तर के कम्पनी के साथ नाटक खेलना घुटन पैदा करने वाला और स्तर से नीचे आने जैसा था। इसके बावजूद, इसने मेरे इस विवेक को समृद्ध किया कि जो कम्पनी हम छोड़ कर आये थे और जिसमें काम कर रहे थे उनमें क्या फर्क था। मैं इस तुलना को छुपाने की कोशिश करता लेकिन रिहर्सलों के समय, नये निर्देशक की मदद करने के उत्साह में मैं अक्सर उसे बताने लगता कि ये काम तो फ्रॉहमैन कम्पनी में इस तरह से होता था और फलां काम उस तरह से होता था। वह बेचारा तो मुझसे स्टेज डायरेक्शन, संवादों के संकेतों तथा स्टेज पर होने वाले कामों के बारे में पूछ लिया करता था। लेकिन सच तो यह था कि मैं अपनी इस हरकत से बाकी कलाकारों के साथ खास तौर पर लोकप्रिय नहीं हो पाया था और मुझे बड़बोले के रूप में देखा जाने लगा था। बाद में, नये स्टेज पर अपनी यूनिफार्म में से एक बटन खो देने के कारण मैनेजर ने मुझ पर दस शिलिंग का जुर्माना ठोंक दिया। इस बटन के बारे में वे मुझसे पहले भी कई बार कह चुके थे।
विलियम गिलेट, शरलॉक होम्स के लेखक, क्लारिसा नाम के नाटक में मारियो डोरो को ले कर आये। ये नाटक भी उन्होंने ही लिखा था। समीक्षक नाटक के प्रति और गिलेट की स्पीच के तरीके के प्रति बहुत बेरहम थे, जिसकी वजह से गिलेट साहब को एक पर्दा उठाऊ, कर्टेन रेजर नाटक द' पेनफुल प्रेडिक्टामेंट ऑफ शरलाक होम्स' लिखने पर मजबूर होना पड़ा। इसमें उन्होंने कभी एक शब्द भी नहीं बोला था। नाटक के पात्रों में सिर्फ तीन ही लोग थे, एक पगली, खुद होम्स और उनका पेज बॉय। जब मुझे मिस्टर पोस्टेंट, गिलेट के प्रबंधक से एक तार मिला तो मुझे लगा, मेरे लिए स्वर्ग से खास संदेश आ गया है। मुझसे पूछा गया था कि क्या मैं लंदन आ कर कर्टेन रेजर में विलियम गिलेट महोदय के साथ बिली की भूमिका अदा करना चाहूँगा?
मैं पेसोपेश के मारे कांपने लगा। मेरी चिंता ये थी कि क्या मेरी कम्पनी वाले इतने कम समय के नोटिस पर प्रदेशों में मेरी जगह कोई दूसरा बिली खोज लेंगे। मैं कई दिन तक उहापोह वाले रहस्य में डूबता-इतराता रहा। अलबत्ता, उन्हें दूसरा बिली मिल गया।
लंदन में वापिस लौट कर वेस्ट एंड में नाटक करने के अनुभव को मैं सिर्फ अपने पुनर्जागरण के रूप में ही बयान कर सकता हूँ। मेरा दिमाग प्रत्येक घटना के रोमांच के साथ चकर-घिन्नी सा घूम रहा था। शाम के वक्त डÎक्यू के यॉर्क थियेटर में पहुँचना और स्टेज मैनेजर मिस्टर पोस्टेंट से मिलना, जो मुझे मिस्टर गिलेट के ड्रेसिंग रूप में लिवा ले गये, और जब मेरा उनसे परिचय करवा दिया गया तो उन्होंने मुझसे पूछा,"...क्या तुम मेरे साथ शरलॉक होम्स में काम करना चाहोगे?"
और मेरा उत्साह के मारे नर्वस हो जाना, ..."ओह ज़रूर, मिस्टर गिलेट, ज़रूर ज़रूर...।" और अगली सुबह रिहर्सल के लिए स्टेज पर इंतज़ार करना और पहली बार मारियो डोरो को देखना। वे निहायत खूबसूरत सफेद रंग की गर्मी की पोशाक पहने हुए थीं। सुबह के वक्त इतनी खूबसूरत किसी महिला को देख लेने का अचानक झटका! वे दो पहिये की एक बग्घी में आयी थीं और उन्होंने पाया कि उनकी पोशाक पर कहीं स्याही का एक धब्बा लग गया है। वे नाटक की प्रापर्टी वाले से पूछना चाह रही थीं कि कहीं कुछ होगा इस दाग से छुटकारा पाने के लिए तो जब उस आदमी ने इस बारे में शक जाहिर किया तो उनके चेहरे पर खीझ के इतने शानदार भाव आये,"ओह, लेकिन क्या ये इतना वाहियात नहीं है?"
वे बला की सुंदर थीं। मैं उनसे खफ़ा हो गया। में उनके नाज़ुक, कलियों से खिलते होंठों से नाराज़ हो गया, उनके एक जैसे सफेद दांतों से नाराज़ हो गया, उनकी मदमस्त ठुड्डी ने मुझे खफ़ा कर दिया, उनके लहराते बाल, और उनकी गहरी भूरी आँखों ने मुझे नाराज़ कर दिया। मैं उनके नाराज़ हाने की अदा पर नाराज़ हुआ और उस आकर्षण पर खफ़ा हुआ जो उन्होंने इस बात को पूछते समय दिखाया था। इस पूछताछ के दौरान मैं उनके और प्रापर्टी वाले के बस एकदम पास ही खड़ा हुआ था, पर वे मेरी उपस्थिति से पूरी तरह अनजान थीं। हालांकि मैं उनके पास ही, उनकी खूबसूरती से ठगा और मंत्र बिद्ध सा खड़ा था। मैं हाल ही में सोलह बरस का हुआ था और इस अचानक चकाचौंध के सानिध्य ने मेरा यह पक्का इरादा सामने ला दिया कि मैं इससे अभिभूत नहीं होऊँगा। लेकिन हे भगवान! वे इतनी खूबसूरत थीं। ये पहली ही नज़र में प्यार था।
द' पेनफुल प्रेडिक्टामेंट ऑफ शरलॉक होम्स' में आइरीन वानब्रुग नाम की एक बहुत ही उत्कृष्ट अभिनेत्री ने पगली की भूमिका की थी और नाटक में बोलने का सारा काम वही करती थीं जबकि होम्स चुपचाप बैठे रहते और सुनते। ये समीक्षकों पर करारा तमाचा था। मेरी हिस्से में शुरुआती लाइनें थी, मैं होम्स के अपार्टमेंट मे जा घुसता हूँ और दरवाजा थामता हूँ जबकि बाहर से पगली दरवाजा लगातार पीट रही है और जब मैं उत्साह में भर कर होम्स को ये समझाना चाहता हूँ कि क्या हो रहा है, पगली धड़धड़ाती हुई अंदर आती है। लगातार बीस मिनट तक वह किसी ऐसे मामले के बारे में आँय बाँय बकती रहती है जिसके बारे में वह चाहती है कि होम्स हाथ में ले लें। चोरी छुपे होम्स एक पर्ची लिखते है और घंटी बजाते हैं और वह पर्ची मुझे थमा देते हैं। बाद में दो हट्टे कट्टे आदमी आ कर उस पगली को लिवा ले जाते हैं। मैं तथा होम्स अकेले रह जाते हैं। मैं कहता हूँ,"... आप ठीक कहते हैं सर, यह सही पागल खाना था।"
समीक्षकों को लतीफा अच्छा लगा लेकिन क्लारीसा नाटक जो गिलेट ने मैरी डोरो के लिए लिखा था, फ्लॉप गया। हालांकि उन्होंने मैरी की खूबसूरती के गुणगान किये थे लेकिन उन्होंने लिखा कि यही काफी नहीं मदोन्मत्त नाटक को बांधे रखने के लिए। इसलिए गिलेट ने उस सीजन का बाकी वक्त शरलॉक होम्स को फिर से नये सिरे से पेश करके गुज़ारा। मुझे इस नाटक में फिर से बिली की भूमिका के लिए रख लिया गया।
विख्यात विलियम्स गिलेट के साथ काम करने के अति उत्साह में मैं अपने काम की शर्तों वगैरह के बारे में बात करना ही भूल गया। सप्ताह खत्म होने पर मिस्टर पोस्टेंट मेरे पास आये और मुझे वेतन का लिफाफा देते हुए शर्मिंदा होते हुए कहने लगे,"...मैं तुम्हें ये राशि देते हुए वाकई शर्मिंदा हूँ लेकिन फ्रॉहमैन के दफ्तर में मुझे यही बताया गया था कि मुझे तुम्हें उतनी ही राशि देनी है जितनी पहले तुम हमसे लेते रहे थे।...दो पाउंड और दस शिलिंग।" मुझे ये राशि पा कर सुखद आश्चर्य हुआ।
होम्स की रिहर्सलों के दौरान, मैं मेरी डोरो से फिर मिला...वह पहले से भी ज्यादा खूबसूरत नजर आ रही थीं। मेरे इस संकल्प के बावजूद कि मैं उनकी खूबसूरती के जाल में नही फँसूंगा, मैं उनके मौन प्यार के निराशाजनक सागर में और गहरे धंसता चला गया। मैं इस कमज़ोरी से नफ़रत करता था और अपने चरित्र की कमज़ोरी के कारण खुद से खफ़ा था। ये एक तरफा प्यार का मामला था। मैं उनसे प्यार भी करता था और नफ़रत भी करता था। इतना ही नहीं, वह बला की खूबसूरत और भव्य थीं।
होम्स में वे एलिस फॉकनर की भूमिका निभाती थीं। लेकिन नाटक के दौरान हम कभी भी नहीं मिले। अलबत्ता, मैं सीढ़ियों पर उनका इंतज़ार करता और वे जब गुज़र कर जातीं तो गुड मार्निंग कह दिया करता। वे जवाब में खुश होकर गुड मार्निंग कहतीं और यही था जो हम दोनों के बीच हो पाया।
होम्स ने हाथों-हाथ सफलता के झंडे गाड़ दिये। नाटक जब चल रहा था तो रानी एलेक्जेंड्रा भी देखने आयीं। उनके साथ रॉयल बॉक्स में ग्रीस के राजा और प्रिंस क्रिश्चियन भी बैठे थे। प्रिंस राजा को जबरदस्ती नाटक समझाये जा रहे थे और ऐसे अत्यंत तनाव भरे और अशांत पलों में जब होम्स और मैं स्टेज पर अकेले होते हैं, पूरे थियेटर में गूँजती-सी एक आवाज़ सुनाई दी,"...मुझे मत बताओ, मुझे मत बताओ।"
डिऑन बाउसीकाल्ट का दफ्तर भी ड्यूक ऑफ यॉर्क थियेटर में ही था और आते-जाते वे मेरे सिर पर प्यार भरी चपत लगा दिया करते। हाल केन भी ऐसा ही करते। वे अक्सर गिलेट से मिलने बैक स्टेज में आ जाया करते। एक मौके पर तो मुझे लॉर्ड किचनर से मुस्कुराहट का भी सम्मान मिला।
जब शरलॉक होम्स चल रहा था, उन्हीं दिनों सर हेनरी इर्विंग का देहांत हो गया और मुझे वेस्टमिन्स्टर ऐब्बी में उनके अंतिम संस्कार में जाने का मौका मिला। मैं चूँकि वेस्ट एंड का एक्टर था इसलिए मुझे विशेष पास मिला और मैं इस बात से बेहद खुश हुआ। अंतिम संस्कार के वक्त मैं शांत लेविस वालर और डॉ. वाल्फोर्ड बोडी के बीच बैठा। लेविस उन दिनों लंदन के रोमांटिक अभिनेताओं के बेताज़ बादशाह थे और डॉक्टर बोडी की ख्याति रक्तरहित सर्जरी के कारण थी। उन पर मैंने बाद में एक रंगारंग कार्यक्रम में उनके पात्र का स्वांग किया था। वालर मौके की नज़ाकत के अनुरूप खूबसूरत तरीके से कपड़े पहने हुए थे और गर्दन अकड़ाये, सीधे बैठे वे न दायें देख रहे थे और न बायें। लेकिन डॉक्टर बोडी, बस इस कोशिश में कि वे हेनरी के ताबूत को नीचे अब उतारे जाते समय बेहतर तरीके से देख पायें, ड्यूक की छाती से उचक उचक कर देखते रहे। जबकि वालर साहब को अच्छी खासी कोफ्त हो रही थी। मैंने कुछ भी देखने की कोशिश ही छोड़ दी और मेरे आगे जो लोग बैठे हुए थे, सिर्फ उन्हीं की पीठ की तरफ देखता रहा।
शारलॉक होम्स के बंद होने से दो सप्ताह पहले मिस्टर बाउसीकॉल्ट ने विख्यात मिस्टर और मिसेज कैंडल के नाम मुझे इस बात की संभावना के साथ एक परिचय पत्र दिया कि शायद मुझे उनके नये नाटक में कोई भूमिका मिल जाये। वे सेंट जेम्स थियेटर में अपने सफल नाटक के शो खत्म कर रहे थे। मिलने के लिए सवेरे दस बजे का समय तय हुआ। मैडम कैंडल मुझे फोयर में मिलने वाली थीं। वे बीस मिनट देरी से आयीं। आखिरकार, गली में एक आकृति उभरी। ये मिसेज कैंडल थीं। लम्बी तगड़ी, अभिमानी मोहतरमा। उन्होंने यह कहते हुए मेरा अभिवादन किया,"ओह, तो तुम हो, छोकरे से!! हम जल्द ही प्रदेशों की तरफ एक नया नाटक ले कर जा रहे हैं। मैं चाहूंगी कि तुम हमें अपनी भूमिका पढ़ कर सुनाओ। लेकिन फिलहाल तो हम बहुत ही व्यस्त हैं। इसलिए तुम कल सुबह इसी वक्त यहां आ रहे हो!!"
"माफ करना मैडम," मैंने ठंडेपन के साथ जवाब दिया, "लेकिन मैं शहर से बाहर कोई भी काम स्वीकार नहीं कर सकता।" इसके साथ ही मैंने अपना हैट ऊपर किया, फोयर से बाहर आया, वहां से गुज़रती एक टैक्सी रुकवायी और - मैं दस महीने तक बेकार रहा था।
जिस रात ड्यूक ऑफ यार्क थियेटर में शारलॉक होम्स का अंतिम शो हुआ, और मैरी डोरो को अमेरिका वापिस लौटना था, मैं अकेला ही बाहर निकल गया और शराब पी कर बुरी तरह से धुत्त हो गया। दो या तीन बरस बाद फिलेडाल्फिया में मैंने उन्हें दोबारा देखा। उन्होंने उस नये थियेटर का समर्पण किया था जिसमें मैं कार्नो कॉमेडी कम्पनी में अभिनय कर रहा था। वे अभी भी पहले की ही तरह खूबसूरत थीं। मैं विंग्स में अपना कॉमेडी का मेक अप किये हुए उन्हें देखता रहा था। वे भाषण दे रही थीं। मैं इतना अधिक शरमा रहा था कि आगे बढ़ कर उन्हें अपने बारे में बता ही नहीं पाया था।
लंदन में होम्स के समापन पर प्रदेशों में काम करने वाली कम्पनी के नाटक भी समाप्त हो चले थे और इस तरह से सिडनी और मैं, दोनों ही बिना काम के थे। सिडनी ने अलबत्ता, नया काम तलाशने में कोई वक्त नहीं गंवाया। नाटकों से संबंधित एक अखबार ऐरा में एक विज्ञापन देख कर वह सड़क छाप कॉमेडी करने वाली चार्ली मैनान की कम्पनी में शामिल हो गया। उन दिनों इस तरह की बहुत सारी कम्पनियां हुआ करती थीं जो हॉलों के चक्कर लगाती फिरती थीं। चार्ली बाल्डविन की बैंक क्लर्कस, जो बोगानी की लुनैटिक बेकर्स और बोइसेटे ट्रुप, ये सब के सब मूक अभिनय करते थे। हालांकि ये लोग प्रहसन कॉमेडी करते थे, उनमें साथ साथ बजाया जाने वाला संगीत होता था और ये बहुत लोकप्रिय हुआ करते थे। सबसे उत्कृष्ट कम्पनी कार्नो साहब की थी जिनके पास कॉमेडियों का खजाना था। इन सबको बर्ड्स कहा जाता था। ये होते थे, जेल बर्ड, अर्ली बर्ड्स, ममिंग बर्ड्स। इन तीन स्केचों से कार्नो साहब ने तीस से भी ज्यादा कम्पनियों का थियेटर का ताम झाम खड़ा कर लिया था। इनमें क्रिसमस पेंटोमाइम और खूब ताम झाम वाले संगीत कार्यक्रम होते। कार्नो साहब के इन्हीं नाटकों की देन थी कि वहां से फ्रेड किचन, जॉर्ज ग्रेव्स, हैरी वैल्डन, बिल रीव्ज़, चार्ली बैल और दूसरे कई महान कलाकार और कॉमेडियन सामने आये।
ये उसी वक्त की बात है जब सिडनी मेनान ट्रुप के साथ काम कर रहा था और उसे फ्रेड कार्नो ने देखा और चार पाउंड प्रति सप्ताह के वेतन पर रख लिया। चूंकि मैं सिडनी से चार बरस छोटा था, इसलिए मैं किसी भी थियेटर के काम के लिए न तो बड़ों में गिना जाता और न ही छोटों में ही, लेकिन मैंने अपने लंदन के दिनों में किये गये काम से कुछ पैसे बचा कर रखे थे, और जिस वक्त सिडनी प्रदेशों में काम करता घूम रहा था, मैं लंदन में ही रहा और पूल के खेल खेलता रहा।
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छ:
मैं किशोरावस्था की मुश्किल और अनाकर्षक उम्र के दौर में आ पहुंचा था और उस उम्र के संवेदनशील उतार-चढ़ावों से जूझ रहा था। मैं बुद्धूपने और अतिनाटकीयता का पुजारी था, स्वप्नजीवी भी और उदास भी। मैं ज़िंदगी से खफ़ा भी रहता था और उसे प्यार भी करता था। मेरा दिमाग अविकसित कोष की तरह था फिर भी उसमें अचानक परिपक्वता के सोते से फूट रहे थे। चेहरे बिगाड़ते दर्पणों की इस भूल भुलइयां में मैं इधर उधर डोलता और मेरी महत्त्वाकांक्षाएं रह-रह कर फूट पड़ती थीं। कला शब्द कभी भी मेरे भेजे में या मेरी शब्द सम्पदा में नहीं घुसा। थियेटर मेरे लिए रोज़ी-रोटी का साधन था, इससे ज्यादा कुछ नहीं।
इस चक्कर और भ्रम के आलम में मैं अकेला ही रहता आया। इस अवधि के दौरान मेरी ज़िंदगी में रंडियों, बेशर्म औरतों और बीच-बीच में एकाध बार शराबखोरी के मौके आते और जाते रहे। लेकिन सुरा, सुंदरी और न ही गाना बजाना देर तक मेरे भीतर दिलचस्पी जगाये रख पाये। मैं सचमुच रोमांस और रोमांच चाहता था।
मैं एडवर्डकालीन कपड़ों में गदबदे बच्चे, टेडी बॉय के मनोवैज्ञानिक नज़रिये को अच्छी तरह से समझ सकता हूं। हम सब की तरह वह भी ध्यान चाहता है, अपनी ज़िंदगी में रोमांस और ड्रामा चाहता है। तब क्यों न प्रदर्शन की भावना के पल और खरमस्ती की कामना उसके मन में आये जिस तरह से पब्लिक स्कूल का लड़का अपनी आवारगर्दी और उदंडता के साथ इस कामना का प्रदर्शन करता है। क्या यह प्राकृतिक और स्वाभाविक नहीं है कि जब वह अपने वर्ग और तथाकथित बेहतर वर्गों को अपनी अकड़फूं दिखाते हुए देखता है तो उसके मन में भी यही कुछ करने की ललक जागती है।
वह जानता है कि मशीन उसके मन की बात मानती है और किसी भी वर्ग की बात मानती है। कि उसके गियर बदलने या बटन दबाने के लिए किसी खास मानसिकता की ज़रूरत नहीं पड़ती। अपनी असंवेदशील उम्र में वह किसी नवाब, अभिजात्य या विद्वान की तरह भयावह नहीं है। उसकी उंगली किसी नेपोलियन सेना की तरह इतनी ताकतवर नहीं है कि किसी शहर को नेस्तनाबूद कर डाले। क्या टेडी बॉय अपराधी शासक वर्ग की राख में से जन्म लेता फिनिक्स नहीं है! उसका व्यवहार शायद अचेतन की इस भावना से प्रेरित है कि आदमी सिर्फ अर्ध पालतू जानवर होता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी दूसरों पर धोखेबाजी, क्रूरता और हिंसा के जरिये ही राज करता रहा है। लेकिन जैसा कि बर्नार्ड शॉ ने कहा है,"मैं आदमी को वैसे ही भटकाता हूं जिस तरह से तकलीफें हमेशा भटकाती हैं।"
और आखिर मुझे एक रंगारंग व्यक्तिचित्र, केसै'ज सर्कस में काम मिल ही गया। मुझे डिक टर्पिन, हाइवे मैन और ड़ॉ वैल्फोर्ड बोडी पर प्रहसन करना था। मुझे सफलता का पूरा इलहाम था क्योंकि ये सिर्फ निचले दर्जे की कॉमेडी के अलावा भी बहुत कुछ था। ये एक प्रोफेसरनुमा, विद्वान, व्यक्ति का चरित्र-चित्रण था और मैंने खुशी-खुशी मन ही मन तय किया कि मैं उन्हें जस का तस पेश करूंगा। मैं कम्पनी में सबकी आंखों का तारा था। हफ्ते में तीन पाउंड कमाता था। इसमें बच्चों का एक ट्रुप शामिल था जो एक सड़क दृश्य में बड़ों की नकल उतारता था। मुझे लगा, ये बहुत ही वाहियात किस्म का शो था लेकिन इसने मुझे एक कॉमेडियन के रूप में खुद को विकसित करने को मौका दिया। जब कैसी'ज सर्कस ने लंदन में प्रदर्शन किये तो हम छ: लोग मिसेज फील्डस् के साथ केनिंगटन रोड पर रहे। वे पैंसठ बरस की एक बूढ़ी विधवा महिला थीं जिनकी तीन बेटियां थीं। फ्रेडेरिका, थेल्मा, और फोबे। फ्रेडेरिका की एक रूसी केबिनेट मेकर के साथ शादी हो रखी थी जो वैसे तो शरीफ आदमी था लेकिन निहायत ही बदसूरत था। उसका चौड़ा-सा तातार चेहरा था, लाल बाल थे, लाल ही मूंछें और आंख में उसकी भेंगापन था। हम छ: के छ: जन रसोई में खाना खाया करते। हम परिवार को बहुत अच्छी तरह से जानने लग गये थे। सिडनी जब भी लंदन में काम कर रहा होता, वहीं ठहरता।
जब मैंने अंतत: कैसी'ज़ सर्कस छोड़ा तो मैं केनिंगटन रोड लौटा और फील्ड्स परिवार के पास ही रहता रहा। बूढ़ी महिला भली, धैर्यवान और मेहनतकश थीं और उनकी कमाई का ज़रिया कमरों से आने वाला किराया ही था। फ्रेडेरिका, यानी शादीशुदा लड़की का खर्चा पानी उसका पति देता था। थेल्मा और फोबे घर के काम-काज में हाथ बंटातीं। फोबे की उम्र पंद्रह बरस की थी और वह खूबसूरत थी। उसकी कद काठी लम्बोतरी और चिड़ियानुमा टेढ़ी थी और वह शारीरिक तथा भावनात्मक रूप से मुझ पर बुरी तरह से आसक्त थी। मैं दूसरी वाली के प्रति अपनी भावनाओं को रोकता क्योंकि मैं अभी सत्रह बरस का भी नहीं हुआ था और लड़कियों के मामले में मेरी नीयत डांवाडोल ही रहती थी। लेकिन वह तो साधवी प्रकृति की थी और हमारे बीच कुछ भी हुआ नहीं। अलबत्ता, वह मेरी दीवानी होती चली गयी और बाद में चल कर हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गये।
फील्ड्स परिवार बहुत ही अधिक संवेदनशील था और कई बार आपस में वे लोग एक-दूसरे से प्यार भरी झड़पों में उलझ जाते। इस तू तू मैं मैं का कारण अक्सर यही होता कि घर का काम करने की बारी किसकी है। थेल्मा, जो लगभग बीस बरस की थी, घर की मालकिन होने का दंभ भरती थी। वह आलसी थी और वह हमेशा यही दावा करती कि काम करने की बारी फ्रेडेरिका या फोबे की है। यह मामूली-सी बात तू तू मैं मैं से बढ़ कर हाथापाई तक जा पहुंचती। तब गड़े मुरदे उखाड़े जाते और पूरे परिवार की बखिया ही उधेड़ी जाती। और उस पर तुर्रा ये कि ये सबकी आंखों के सामने ही होता। मिसेज फील्डस् तब रहस्योद्घाटन करतीं कि चूंकि थेल्मा घर से भाग चुकी है और लिवरपूल में एक युवा वकील के साथ रह चुकी है अत: वह अपने आपको यही मान कर चलती है कि वही घर की सर्वेसर्वा होनी चाहिये और ये बात उसकी हैसियत से नीचे की है कि वह घर का कामकाज करे। मिसेज फील्डस् तब अपना आखिरी हथियार छोड़ती हुई कहतीं,"ठीक है, अगर तुम अपने आपको इस तरह की औरत मानती हो तो यहां से दफ़ा हो जाओ और जा के रहो अपने उसी लीवरपूल वाले वकील के पास, बस देख लेना अगर वो तुम्हें अपने घर में घुसने दे तो।" और दृश्य को अंतिम परिणति पर पहुंचाने के लिए मिसेज फील्डस् चाय की केतली उठा कर जमीन पर दे मारतीं। इस दौरान थेल्मा मेज पर महारानी की तरह बैठी रहती और ज़रा भी विचलित न होती। तब वह आराम से उठती, एक कप उठाती और, और उसे हौले से यह कहते हुए ठीक वैसे ही ज़मीन पर टपका देती,"मुझे भी ताव आ सकता है।" इसके बाद वह एक और कप उठा कर जमीन पर गिराती, एक और कप, फिर एक और कप .. । वह तब तक कप गिरा-गिरा कर तोड़ती रहती जब तक सारा फर्श क्रॉकरी की किरचों से भर न जाता,"मैं भी सीन क्रिएट कर सकती हूं।" इस पूरे नज़ारे के दौरान मां और उसकी बहनें असहाय-सी बैठी देखती रहतीं,"जरा देखो तो, देखो तो ज़रा, क्या कर डाला है इसने?" मां घिघियाती।
"ये देख, ये देख, यहां कुछ और भी है जो तू तोड़ सकती है," और वे थेल्मा के हाथ में चीनी दानी थमा देतीं। और थेल्मा आराम से चीनी दानी पकड़ लेती और उसे भी जमीन पर गिरा देती।
ऐसे मौकों पर फोबे की बीच-बचाव कराने वाली की भूमिका होती। वह निष्पक्ष थी, ईमानदार थी और पूरा परिवार उसकी इज़्ज़त करता था। और अक्सर यही होता कि झगड़ा टंटा निपटाने के लिए वह खुद ही काम करने के लिए तैयार हो जाती। थेल्मा उसे ऐसा न करने देती।
मुझे लगभग तीन महीने होने को आये थे कि मेरे पास कोई काम नहीं था और सिडनी ही मेरा खर्चा-पानी जुटा रहा था। वही मेरे रहने-खाने के लिए मिसेज फील्डस् को हर हफ्ते के चौदह शिलिंग दे रहा था। वह अब फ्रेड कार्नो की कम्पनी के साथ मुख्य हास्य कलाकार की भूमिका निभा रहा था और अक्सर फ्रेड के साथ अपने हुनरमंद छोटे भाई की बात छेड़ देता। लेकिन कार्नो उसकी बातों पर कान ही नहीं धरते थे। उनका मानना था कि मैं बहुत छोटा हूं।
उस समय लंदन में यहूदी कामेडियनों की धूम थी। इसलिए मैंने सोचा कि मैं भी मूंछें लगा कर अपनी कम उम्र छुपा लूंगा। सिडनी ने मुझे दो पांउड दिये जिनसे मैं गाने-बजाने का साजो-सामान खरीद लाया और लतीफों की एक अमरीकी किताब मैडिसन बजट में से ढेर-सारे मज़ाकिया संवाद मार लिये। मैं हफ्तों तक प्रैक्टिस करता रहा। फील्डस् परिवार के सामने प्रदर्शन करता रहा। वे ध्यान से मेरा काम देखते और मेरा उत्साह भी बढ़ाते लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं।
मैंने फोरेस्टर म्युजिक हॉल में बिना एक भी धेला दिये एक ट्रायल हफ्ते का जुगाड़ कर लिया था। ये एक छोटा-सा थियेटर था जो यहूदी चौक पर बीचों-बीच माइल एंड रोड से पीछे की तरफ बना हुआ था। मैं वहां पहले भी कैसी'ज सर्कस के साथ अभिनय कर चुका था और मैनेजमेंट ने यह सोचा कि मैं इस लायक तो होऊंगा ही सही कि मुझे एक मौका दिया जाये। मेरी भावी उम्मीदें और मेरे सपने इसी ट्रायल पर टिके हुए थे। फोरेस्टर के यहां प्रदर्शन करने के बाद मैं इंगलैंड के सभी प्रमुख सर्किटों में प्रदर्शन करता। कौन जानता है, हो सकता है मैं एक बरस के भीतर ही रंगारंग कार्यक्रमों के शो का सबसे बड़ा और अखबारों की हैड लाइनों पर छा जाने वाला कलाकार बन जाऊं। मैंने पूरे फील्डस् परिवार के साथ वादा किया था कि मैं उन्हें हफ्ते के आखिरी दिनों के टिकट दिलवा दूंगा। तब तक मैं अपनी भूमिका के साथ भी अच्छी तरह से न्याय कर पाऊंगा।
"मेरा ख्याल है कि आप अपनी सफलता के बाद हम लोगों के साथ नहीं रहना चाहेंगे?" फोबे ने पूछा था।
"बेशक, मैं यहीं रहता रहूंगा।"
सोमवार की सुबह बारह बजे बैंड रिहर्सल और संवाद अदायगी आदि की रिहर्सल थी जिसे मैंने व्यावसायिक तरीके से निपटाया। लेकिन मैंने अब तक अपने मेक अप की तरफ पर्याप्त ध्यान नहीं दिया था। रात के शो से पहले मैं घंटों तक ड्रेसिंग रूम में बैठा माथा-पच्ची करता रहा, नये-नये प्रयोग करता रहा, लेकिन मैं भले ही कितने भी लंबे रेशमी बाल क्यों न लगाऊं, मैं अपनी जवानी छुपा नहीं पा रहा था। हालांकि इस बारे में मैं भोला था लेकिन मेरी कॉमेडी बहुत अधिक यहूदी विरोधी थी और मेरे लतीफे पिटे-पिटाये थे और वाहियात थे। बल्कि मेरे यहूदी उच्चारण की तरह घटिया भी थे। और उस पर तुर्रा यह कि मैं बिल्कुल भी मज़ाकिया नहीं लग रहा था।
पहले दो एक लतीफ़ों पर ही जनता ने सिक्के और संतरे के छिलके फेंकने और जमीन पर धमाधम पैर पटकने शुरू कर दिये। पहले तो मैं समझ ही नहीं पाया कि आखिर ये हो क्या रहा है! तभी इस सब का आतंक मेरे सिर पर चढ़ गया। मैंने फटाफट रेल की गति से बोलना शुरू कर दिया। हुल्लड़बाजी और संतरों तथा सिक्कों की बरसात बढ़ती जा रही थी। जब मैं स्टेज से नीचे उतरा, तो मैं मैनेजमेंट का फैसला सुनने के लिए भी नहीं रुका, मैं सीधे ही ड्रेसिंग रूम में गया, अपना मेक-अप उतारा, थियेटर से बाहर निकला और फिर कभी वहां वापिस नहीं गया। यहां तक कि मैं वहां अपनी संगीत की किताबें उठाने भी नहीं गया।
रात को बहुत देर हो चुकी थी जब मैं वापिस केनिंगटन रोड पहुंचा। फील्डस् परिवार सोने जा चुका था और मैं इसके लिए उनका अहसानमंद ही था कि वे सो चुके थे। सुबह नाश्ते के वक्त मिसेज फील्डस् इस बारे में जानने को चिंतित थीं कि शो कैसा रहा। मैंने उदासीनता दिखायी और कहा,"वैसे तो ठीक रहा लेकिन उसमें कुछ हेर-फेर करने की ज़रूरत पड़ेगी।" उन्होंने बताया कि फोबे नाटक देखने गयी थी लेकिन उसने वापिस आ कर कुछ बताया नहीं क्योंकि वह बहुत थकी हुई थी और सीधे ही सोने चली गयी थी। जब मैंने बाद में फोबे को देखा तो उसने इसका कोई ज़िक्र नहीं किया। मैंने भी कोई ज़िक्र नहीं किया और न ही मिसेज फील्डस् ने या किसी और ने कभी भी इसका कोई ज़िक्र ही किया और न ही इस बात पर हैरानी ही व्यक्त की कि मैं उसे सप्ताह तक जारी क्यों नहीं रख रहा हूं।
भगवान का शुक्र है कि उन दिनों सिडनी दूसरे प्रदेशों की तरफ गया हुआ था और मैं उसे बताने की इस ज़हमत से बच गया कि आखिर हुआ क्या था। लेकिन ज़रूर उसने अंदाजा लगा लिया होगा या हो सकता है फील्डस् परिवार ने उसे बता दिया हो क्योंकि उसने मुझसे कभी भी इस बारे में कोई पूछताछ नहीं की। मैंने उस रात के दु:स्वप्न को अपनी स्मृति से धो-पोंछ देने की पूरी कोशिश की लेकिन उसने मेरे आत्म-विश्वास पर एक न मिटने वाला धब्बा छोड़ दिया था। उस भुतैले अनुभव ने मुझे यह पाठ पढ़ाया कि मैं खुद को सच्ची रौशनी में देखूं।
मैंने महसूस कर लिया था कि मैं रंगारंग हास्य कलाकार नहीं हूं। मेरे भीतर वह आत्मीय, नज़दीक आने की कला नहीं थी जो आपको दर्शकों के निकट ले जाती है। और मैंने अपने आपको यही तसल्ली दे ली कि मैं चरित्र प्रधान हास्य कलाकार हूं। अलबत्ता, व्यावसायिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने से पहले मुझे दो एक और निराशाओं का सामना करना पड़ा।
सत्रह बरस की उम्र में मैंने द' मेरी मेजर नाम के एक नाटक में किशोर युवक के रूप में मुख्य पात्र का अभिनय किया। ये एक सस्ता, हतोत्साहित करने वाला नाटक था जो सिर्फ एक हफ्ते चला। मुख्य नायिका, जो मेरी बीवी बनी थी, पचास बरस की औरत थी। हर रात जब वह मंच पर आती तो उसके मुंह से जिन की बू आ रही होती, और मुझे उसके पति की भूमिका में, उत्साह से लबरेज हो कर उसे अपनी बाहों में लेना पड़ता, उसे चूमना पड़ता। इस अनुभव ने मेरा इस बात से मन ही खट्टा कर दिया कि मैं कभी मुख्य कलाकार बनूं।
इसके बाद मैंने लेखन पर हाथ आजमाये। मैंने एक कॉमेडी स्कैच लिखा जिसका नाम था ट्वैल्व जस्ट मैन। ये एक हल्के फुल्के प्रहसन वाला मामला था कि किस तरह जूरी वचन भंग के एक मामले में बहस करती है। जूरी के सदस्यों में से एक गूंगा- बहरा था, एक शराबी था और एक अन्य नीम-हकीम था। मैंने ये आइडिया चारकोट को बेच दिया। ये रंगारंग मंच का एक हिप्नोटिस्ट था जो किसी हँसोड़ आदमी को हिप्नोटाइज़ करता और उसे आंखों पर पट्टी बांध कर शहर की गलियों में गाड़ी चलाने के लिए प्रेरित करता जबकि वह खुद पीछे बैठ कर उस पर चुम्बकीय प्रभाव छोड़ता रहता। उसने मुझे पांडुलिपि के लिए तीन पाउंड दिये लेकिन ये शर्त भी जोड़ दी कि मैं ही उसका निर्देशन भी करूंगा। हमने अभिनेताओं आदि का चयन किया और केनिंगटन रोड पर हॉर्नस् पब्लिक हाउस क्लब रूम में रिहर्सल शुरू कर दी। एक खार खाये एक्टर ने कह दिया कि ये स्कैच न केवल अनपढ़ों वाला है बल्कि मूर्खतापूर्ण भी है।
तीसरे दिन जब रिहर्सल चल रही थी, मुझे चारकोट से एक नोट मिला कि उसने इस स्कैच का निर्माण न करने का फैसला कर लिया है।
अब मैं चूंकि जांबाज टाइप का नहीं था, मैंने नोट अपनी जेब के हवाले किया और रिहर्सल जारी रखी। मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि उन्हें रिहर्सल करने से रोक सकूं। इसके बजाये, मैं लंच के समय सबको अपने कमरे पर लिवा लाया और उनसे कहा कि मेरा भाई उनसे बात करना चाहता है। मैं सिडनी को बेडरूम में ले गया और उसे नोट दिखाया। नोट पढ़ने के बाद सिडनी ने कहा,"ठीक है। तुमने उन्हें इस बारे में बता दिया है ना!"
"नहीं," मैं फुसफुसाया।
"तो जा कर बता दो।"
"मैं नहीं बता सकता। बिलकुल भी नहीं। वे लोग तीन दिन तक फालतू फंड में रिहर्सल करते रहे हैं।"
"लेकिन इसमें तुम्हारा क्या दोष?" सिडनी ने कहा।
"जाओ और उन्हें बता दो," वह चिल्लाया।
मैं हिम्मत हार बैठा और रोने लगा,"क्या कहूं मैं उनसे?"
"मूरख मत बनो," वह उठा और साथ वाले कमरे में आया और उन सबको चारकोट का नोट दिखाया और समझाया कि क्या हो गया है। तब वह सबको नुक्कड़ के पब तक ले गया और सबको सैंडविच और एक-एक ड्रिंक दिलवाये।
अभिनेता एकदम मौजी आदमी होते हैं। कब क्या कर बैठें, कहा नहीं जा सकता। वह आदमी जो इतना ज्यादा भुनभुना रहा था, एकदम दार्शनिक हो गया और जब उसे सिडनी ने बताया कि मैं किस बुरी हालत में था तो वह हँसा और मेरी पीठ पर धौल जमाते हुए बोला,"इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है पुत्तर, ये सब तो उस हरामी चारकोट का किया धरा है।"
फोरेस्टर्स में अपनी असफलता के बाद मैंने जिस काम में भी हाथ डाला, उसी में मैं धराशायी हुआ और मुझे एक बार फिर असफलता का मुंह देखना पड़ा। अलबत्ता, आशावादी बने रहना जवानी का सबसे बड़ा गुण होता है, क्योंकि इसी जवानी में आदमी स्वभावत: यह मान कर चलता है कि प्रतिकूल परिस्थितियां भी अल्पकालिक ही होती हैं और बदकिस्मती का लगातार दौर भी सही होने के सीधे और संकरे रास्ते की तरह संदिग्ध होता है। दोनों ही निश्चित ही समय के साथ-साथ बदलते हैं।
मेरी किस्मत ने पलटा खाया। एक दिन सिडनी ने बताया कि मिस्टर कार्नो मुझसे मिलना चाहते हैं। ऐसा लगा कि वे अपने किसी कामेडियन से नाखुश थे जो फुटबाल नाटक में मिस्टर हैरी वेल्डन के साथ भूमिका कर रहा था। ये स्कैच कार्नो साहब का अत्यंत सफल नाटक था। वेल्डन अत्यंत लोकप्रिय हास्य कलाकार थे जो तीसरे दशक में अपनी मृत्यु तक उसी तरह से लोकप्रिय बने रहे।
मिस्टर कार्नो थोड़े मोटे, तांबई रंग के आदमी थे। उनकी आंखों में चमक थी और जिनमें हमेशा नापने जोखने के भाव होते। उन्होंने कभी अपना कैरियर आड़े डंडों पर काम करने वाले एक्रोबैट के रूप में शुरू किया था और इसके बाद उन्होंने अपने साथ तीन धमाकेदार कामेडियनों की चौकड़ी बनायी। ये चौकड़ी मूकाभिनय स्केचों का केन्द्र थी। वे खुद बहुत ही उत्कृष्ट हास्य अभिनेता थे और उन्होंने कई कॉमेडी भूमिकाओं की शुरुआत की थी। वे उस वक्त तक भी हास्य भूमिकाएं करते रहे जब उनकी दूसरी पांच-पांच कम्पनियां एक साथ चल रही थीं।
उनके मूल सदस्यों में से एक उनकी सेवा निवृत्ति का मज़ेदार किस्सा यूं बताया करता था: एक रात मानचेस्टर में प्रदर्शन के बाद, मंडली ने शिकायत की कि कार्नो की टाइमिंग गड़बड़ायी थी और उन्होंने सारे लतीफों के मज़े पर पानी फेर दिया। कार्नो, जिन्होंने तब तक अपने पांच प्रदर्शनों से 50,000 पाउंड जुटा लिये थे, कहा,"ठीक है मेरे दोस्तो, अगर आप लोगों को ऐसा लगता है तो यही सही। मैं छोड़ देता हूं।" और तब अपनी विग उतारते हुए उन्होंने उसे ड्रेसिंग टेबल पर पटका और हँसते हुए बोले,"इसे आप लोग मेरा इस्तीफा समझ लो।"
मिस्टर कार्नो का घर कोल्ड हारबर लेन, कैम्बरवैल में था और इससे सटा हुआ एक गोदाम था जिसमें वे अपनी बीस प्रस्तुतियों के लिए सीन सिनरी रखा करते थे। उनका अपना ऑफिस भी वहीं पर था। जब मैं वहां पहुंचा तो वे बहुत प्यार से मिले, "सिडनी मुझे बताता रहा है कि तुम कितने अच्छे हो," उन्होंने कहा,"क्या तुम्हें लगता है कि तुम द' फुटबाल मैच में हैरी वेल्डन के सामने अभिनय कर पाओगे?"
हेरी वेल्डन को खास तौर पर बहुत ऊंची पगार पर रखा गया था। उनकी पगार चौंतीस पाउंड प्रति सप्ताह थी।
"मुझे सिर्फ मौका चाहिये," मैंने आत्मविश्वास पूर्ण तरीके से कहा।
वे मुस्कुराये,"सत्रह बरस की उम्र बहुत कम होती है और तुम तो और भी छोटे लगते हो!"
मैं यूं ही कंधे उचकाये,"ये सब मेक अप से किया जा सकता है।"
कार्नो हंसे। इस कंधे उचकाने ने ही मुझे काम दिलवाया था, बाद में सिडनी ने मुझे बताया था।
"ठीक है, ठीक है, हम देख लेंगे कि तुम क्या कर सकते हो।"
ये काम मुझे तीन सप्ताह तक ट्रायल के रूप में करना था जिसके एवज में मुझे प्रति सप्ताह तीन पाउंड और दस शिलिंग मिलते और अगर मैं संतोषजनक पाया जाता तो मुझे एक बरस के लिए करार पर रख लिया जाता।
लंदन कोलेसियम में प्रदर्शन शुरू होने से पहले मेरे पास अपनी भूमिका का अध्ययन करने के लिए एक सप्ताह का समय था। कार्नो साहब ने मुझे बताया कि मैं जा कर शेफर्ड बुश एम्पायर में द' फुटबाल मैच देखूं और उस आदमी का अध्ययन करूं जिसकी भूमिका मुझे करनी है। मुझे ये मानने में कोई शक नहीं कि वह सुस्त और आत्म सजग था और ये कहने में भी कोई झूठी शेखी नहीं है कि मैं जानता था कि मैं उससे आगे निकल जाऊंगा। भूमिका में थोड़े और कैरिकेचर, और ज्यादा स्वांग की ज़रूरत थी। मैं अपना मन बना चुका था कि मैं उसे ठीक वैसे ही पेश करूंगा।
मुझे मात्र दो ही रिहर्सलें दी गयीं, क्योंकि इससे ज्यादा के लिए मिस्टर वेल्डन उपलब्ध नहीं थे। दरअसल वे इस बात के लिए भी खफा थे कि उन्हें अपना गोल्फ का खेल छोड़ कर सिर्फ इसी के लिए आना पड़ा।
रिहर्सलों के दौरान मैं प्रभाव न जमा सका। चूंकि मैं धीमे पढ़ता था अत: मुझे ऐसा लगा कि वेल्डन साहब मेरी क्षमता के बारे में कुछ संदेह करते थे। सिडनी भी चूंकि यही भूमिका अदा कर चुका था, अगर वह लंदन में होता तो ज़रूर मेरी मदद करता, लेकिन वह तो दूसरे हास्य नाटक में अन्य प्रदेशों में काम कर रहा था।
हालांकि द' फुटबाल मैच स्वांग वाला मामला था, फिर भी जब तक मिस्टर वेल्डन साहब सामने न आ जाते, कहीं से भी हंसी की आवाज़ नहीं फूटती थी। सब कुछ उनकी एंट्री के साथ ही जुड़ा हुआ था। और इसमें कोई शक नहीं कि वे बहुत ही शानदार किस्म के हास्य कलाकार थे और उनके आने से हँसी का जो सिलसिला शुरू होता था, वह आखिर तक थमता नहीं था।
कोलिसियम में अपने नाटक की शुरुआत की रात मेरी नसें रस्सी की तरह तनी हुई थीं। उस रात का मतलब फिर से मेरे खोये हुए आत्म विश्वास को वापिस पाना और फोरेस्टर में उस रात जो कुछ हुआ था, उसके दु:स्वप्न से खुद को मुक्त करना था। उस विशालकाय स्टेज पर मैं आगे-पीछे हो रहा था। मेरे डर के ऊपर चिंता कुंडली मारे बैठी थी और मैं अपने लिए प्रार्थना कर रहा था।
तभी संगीत बजा। पर्दा उठा। स्टेज पर एक्सरसाइज़ करते कलाकारों का एक कोरस चल रहा था। आखिरकार वे चले गये और स्टेज खाली हो गया। ये मेरे लिए संकेत था। भावनात्मक हा हा कार के बीच मैं चला। या तो मैं मौके के अनुरूप खरा उतरूंगा या फिर मुंह के बल गिरूंगा। स्टेज पर पैर रखते ही मैं राहत महसूस करने लगा। सब कुछ मेरे सामने साफ था। दर्शकों की तरफ पीठ करके मैंने मंच पर प्रवेश किया था। ये मेरा खुद का आइडिया था। पीछे की तरफ से मैं टिप टॉप लग रहा था। फ्रॉक कोट पहने हुए, टॉप हैट, हाथ में छड़ी और मोजे। हू ब हू एडवर्डकालीन विलेन। तब मैं मुड़ा। और अपनी लाल नाक दिखलायी। हंसी का फव्वारा। इससे मैं दर्शकों का कृपापात्र बन गया। मैंने उत्तेजनापूर्ण तरीके से कंधे उचकाये, अपनी उंगलियां चटकायीं और स्टेज पर इधर उधर चला। एक मुगदर पर ठोकर खायी। इसके बाद मेरी छड़ी सीधे जा कर पंचिंग बैग के साथ अटक गयी और वह उछल कर वापिस मेरे मुंह पर आ लगा। मैं अकड़ कर चला और घूमा, अपने ही सिर की तरफ बार बार छड़ी से वार करता। दर्शक हँसी के मारे दोहरे हो गये।
अब मैं पूरी तरह से सहज था और नयी नयी बातें मेरे दिमाग में घूम रही थीं। मैं स्टेज को पांच मिनट तक भी बांधे रख सकता था और एक शब्द भी बोले बिना उन्हें लगातार हँसा सकता था। अपनी विलेनमुमा चाल के बीच मेरी पैंट नीचे सरकने लगी। मेरा एक बटन टूट गया था। मैं बटन की तलाश करने लगा। मैंने यूं ही कुछ उठाने का नाटक सा किया और हिकारत से परे फेंक दिया,"ये करमजले खरगोश!!!" एक और ठहाका।
हैरी वेल्डन का चेहरा पूरे चांद की तरह विंग्स में नज़र आने लगा था। उनके मंच पर आने से पहले कभी भी ठहाके नहीं लगे थे।
ज्यों ही उन्होंने स्टेज पर अपनी एंट्री ली मैंने लपक कर ड्रामाई अंदाज में उनकी बांह थाम ली और फुसफुसाया,"जल्दी कीजिये, मेरी पैंट खिसकी जा रही है। एक पिन का सवाल है।" ये सब उसी वक्त के सोच हुए का कमाल था और इसके लिए कोई रिहर्सल नहीं की गयी थी। मैंने हैरी साहब के लिए दर्शकों को पहले ही तैयार कर दिया था। उस शाम उन्हें जो सफलता मिली, वह आशातीत थी और हम दोनों ने मिल कर दर्शकों से कई अतिरिक्त ठहाके लगवाये। जब पर्दा नीचे आया तो मुझे पता था, मैं किला फतह कर चुका हूं। मंडली के कई सदस्यों ने हाथ मिलाये और मुझे बधाई दी। ड्रेसिंग रूम की तरफ जाते समय वैल्डन साहब ने अपने पीछे मुड़ कर देखा और शुष्क स्वर में बोले,"अच्छा रहा। बहुत बढ़िया रहा।"
उस रात मैं अपने घर तक पैदल चल कर गया ताकि अपने आपको खाली कर सकूं। मैं रुका और वेस्टमिन्स्टर ब्रिज पर झुका, और उसके नीचे से बहते गहरे, रेशमी पानी को देखता रहा। मैं खुशी के मारे रोना चाहता था। लेकिन मैं रो नहीं पाया। मैं ज़ोर लगाता रहा, मुद्राएं बनाता रहा, लेकिन मेरी आँखों में कोई आंसू नहीं आये। मैं खाली हो चुका था। वेस्टमिन्स्टर ब्रिज से मैं चल कर एलिफैंट एंड कैसल टÎब स्टेशन तक गया और एक कप कॉफी के लिए एक स्टाल पर रुक गया। मैं किसी से बात करना चाहता था, लेकिन सिडनी तो बाहर के प्रदेशों में था। काश, वह यहां होता तो मैं उसे आज की रात के बारे में बता पाता! आज की रात मेरे लिये क्या मायने रखती थी! खास तौर पर फोरेस्ट्रर की रात के बाद।
मैं सो नहीं पाया। एलिफैंट एंड कैसल से मैं केनिंगटन गेट तक गया और वहां एक और कप चाय पी। रास्ते में मैं अपने आप से बतियाता रहा और अकेले हँसता रहा। बिस्तर पर जाने के समय सुबह के पांच बजे थे और मैं बुरी तरह से पस्त हो चुका था।
पहली रात मिस्टर कार्नो वहां पर मौजूद नहीं थे। लेकिन वे तीसरी रात को आये। उस मौके पर मेरी एंट्री के वक्त जम कर तालियां मिलीं। वे बाद में वहां आये। उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी और उन्होंने मुझसे कहा कि मैं सवेरे उनके ऑफिस में आ कर करार कर लूं।
मैंने पहली रात के बारे में सिडनी को नहीं लिखा था, लेकिन अब मैंने उसे एक संक्षिप्त तार भेजा,"मैंने एक बरस के लिए चार पाउंड प्रति सप्ताह पर करार कर लिया है, प्यार, चार्ली।"
द' फुटबाल मैच लंदन में चौदह सप्ताह तक रहा और उसके बाद दौरे पर चला गया।
वेल्डन साहब की कॉमेडी विकलांग टाइप की थी। वे धीमी गति के समाचारों की तरह लंकाशायर वाले लहजे में गड़बड़ भाषा बोलते थे। ये अदा उत्तरी इंगलैंड में बहुत बढ़िया तरीके से चल जाती थी लेकिन दक्षिण में उन्हें बहुत अधिक भाव नहीं दिया गया। ब्रिस्टॉल, कार्डिफ, प्लायमाउथ, साउथम्पटन, जैसे शहर वेल्डन के लिए मंदे गये। इन सप्ताहों में वे चिड़चिड़े होते चले गये और उनका प्रदर्शन नाम मात्र का रहा तो वे अपना गुस्सा मुझ पर उतारते रहे। शो में उन्हें मुझे थप्पड़ मारना और धकियाना था और ये सब काफी बार करना था। इसे झपकी लेना कहा जाता था। इसका मतलब यह होता था कि वे मेरे चेहरे पर मारेंगे लेकिन इसे वास्तविक प्रभाव देने के लिए विंग्स में कोई ज़ोर से हाथों से ताली बजायेगा। कई बार वे मुझे सचमुच मार बैठते, और वह भी बिना ज़रूरत के और ज़ोर से। मुझे लगता है कि वे ईर्ष्या से भर कर ही ऐसा करते थे।
बेलफेस्ट में तो स्थिति और खराब हो गयी। समीक्षकों ने उनकी ऐसी-तैसी कर दी थी लेकिन मेरी भूमिका की तारीफ की थी। इसे भला वेल्डन साहब कैसे सहन कर सकते थे। सो, एक रात उन्होंने स्टेज पर ही अपना गुस्सा निकाला और मुझे ऐसा ज़ोर का थप्पड़ मारा कि मेरी सारी कॉमेडी निकाल कर धर दी। मेरी नाक से खून आने लगा। बाद में मैंने उन्हें बताया कि अगर उन्होंने फिर कभी ऐसा किया तो मंच पर ही मुगदर से उनकी धुनायी कर दूंगा। और उस पर यह भी जोड़ दिया कि अगर उन्हें ईर्ष्या हो रही है तो उसे कम से कम मुझ पर तो न निकालें।
"ईर्ष्या और वो भी तुमसे?" वे ड्रेसिंग रूम की तरफ जाते हुए बोले,"क्यों रे, मेरी गुदा में ही इतना टैलेंट है जितना तुम्हारे पूरे शरीर में भी नहीं होगा।"
"यही वो जगह है जहां आपका टेलेंट रहता है।" मैं गुर्राया और लपक कर ड्रेसिंग रूम का दरवाजा बंद कर दिया।
सिडनी जब शहर में वापिस आया तो हमने तय किया कि ब्रिक्स्टन रोड पर एक फ्लैट ले लें और उसे चालीस पाउंड तक की राशि खर्च करके उसे सजाएं। हम नेविंगटन बट्स में पुराने फर्नीचर की एक दुकान में गये और मालिक को बताया कि हम कितनी राशि खर्च करने का माद्दा रखते हैं और कि हमारे पास सजाये जाने के लिए चार कमरे हैं। मालिक ने हमारी समस्या में व्यक्तिगत रूप से दिलचस्पी ली और हमारे काम की चीज़ें चुनने में घंटों हमारे साथ खपाये। हमारे पहले वाले कमरे में कालीन बिछाया और बाकी तीन कमरों में लिनोलियम। इसके अलावा हम अस्तर चढ़ा हुआ सामान भी लाये। इसमें एक दीवान और दो आराम कुर्सियां थीं। बैठने के कमरे के एक कोने में हमने एक नक्काशीदार मूरिश परदा रखा जिसके पीछे से पीला बल्ब जलता था और उसके सामने वाले कोने में मुलम्मा चढ़ी ईज़ल पर सोने का पानी चढ़े फ्रेम में हमने एक पेस्टल सजाया। यह तस्वीर एक निर्वस्त्र औरत की थी जो एक पेडस्टल पर खड़ी थी और अपने कंधे के पीछे से दाढ़ी वाले चित्रकार की तरफ देख रही थी जो उसके नितम्ब के पास एक मक्खी को चित्रित करने की कोशिश कर रहा था। यह कलाकृति और परदा, मेरे हिसाब से कमरे को भरा पूरा बना रहे थे। असली प्रदर्शन योग्य चीज़ तो एक मूरिश सिगरेट शॉप और एक फ्रेंच रंडीखाने का जोड़ा थे लेकिन हमें ये अच्छे लगते थे। यहां तक कि हम एक सीधा खड़ा पियानो भी लेते आये। और हालांकि हमने अपने बजट से पन्द्रह पाउंड ज्यादा खर्च कर डाले थे, फिर भी हमें इसकी पूरी कीमत मिल गयी थी। 15 ग्लेनशॉ मैन्सन, ब्रिक्स्टन रोड पर हमारा ये घर हमारे सपनों का स्वर्ग था। प्रदेशों में प्रदर्शन करने के बाद हम यहां लौटने का कितनी बेसब्री से इंतजार किया करते थे। अब हम इतने अमीर हो चले थे कि अपने नाना की भी मदद कर सकते थे और उन्हें दस शिलिंग प्रति सप्ताह दिया करते थे। और हमारी हैसियत इतनी अच्छी हो गयी थी कि हफ्ते में दो दिन घर का काम करने वाली नौकरानी आती थी और फ्लैट में झाड़ू पोंछा कर जाती थी। लेकिन इस सफाई की ज़रूरत शायद ही कभी पड़ती हो क्योंकि हम किसी चीज़ को उसकी जगह से हिलाते भी नहीं थे। हम उसमें इस तरह से रहा करते थे मानो ये कोई पवित्र मंदिर हो। सिडनी और मैं अपनी विशालकाय आराम कुर्सियों में पसरे रहते और परम संतुष्टि का अहसास लेते। हम एक ऊंचा सा पीतल का मूढ़ा लेते आये थे जिस पर लाल रंग का चमड़ा मढ़ा हुआ था। मैं आराम कुर्सी से उठ कर मूढ़े पर चला जाता और दोनों पर मिलने वाले आराम की तुलना करता रहता।
सोलह बरस की उम्र में रोमांस के बारे में मेरे ख्यालों को प्रेरणा दी थी एक थियेटर के पोस्टर ने जिसमें खड़ी चट्टान पर खड़ी एक लड़की के बाल हवा में उड़े जा रहे थे। मैं कल्पना करता कि मैं उसके साथ गोल्फ खेल रहा हूं, एक ऐसा खेल जिसें मैं नापसंद करता हूं, और ओस भरी जमीन पर नीचे की ओर चलते हुए, दिल की धकड़न बढ़ाने वाली भावनाओं में डूबे हुए, स्वास्थ्य और प्रकृति के ख्यालों में डूबे हुए उसके साथ साथ चल रहा हूं।
यही मेरे लिए रोमांस था। लेकिन कम उम्र का प्यार तो कुछ और ही होता है। ये आम तौर पर एक जैसे ढर्रे पर चलता है। एक नज़र मिलने पर, शुरुआत में कुछ शब्दों का आदान प्रदान (आम तौर पर गदहपचीसी के शब्द), कुछ ही मिनटों के भीतर पूरी जिंदगी का नज़रिया ही बदल जाता है। पूरी कायनात हमारे साथ सहानुभूति में खड़ी हो जाती है और अचानक हमारे सामने छुपी हुई खुशियों का खज़ाना खोल देती है। और मेरे साथ भी ठीक ऐसा ही हो गुज़रा था।
मैं उन्नीस बरस का होने को आया था और कार्नो कम्पनी का सफल कामेडियन था। लेकिन कुछ था जिसकी अनुपस्थिति खटक रही थी। वसंत आ कर जा चुका था और गर्मियां अपने पूरे खालीपन के साथ मुझ पर हावी थीं। मेरी दिनचर्या बासीपन लिये हुए थी और मेरा परिवेश शुष्क। मैं अपने भविष्य में कुछ भी नहीं देख पाता था, वहां सिर्फ अनमनापन, सब कुछ उदासीनता लिये हुए और चारों तरफ आदमी ही आदमी। सिर्फ पेट भरने की खातिर काम धंधे से जुड़े रहना ही काफी नहीं लग रहा था। ज़िंदगी नौकर सरीखी हो रही थी और उसमें किसी किस्म की बांध लेने वाली बात नहीं थी। मैं तन्हा होता चला गया, अपने आप से असंतुष्ट। मैं रविवारों को अकेला भटकता घूमता रहता, पार्कों में बज रहे बैंडों को सुन का दिल बहलाता। न तो मैं अपनी खुद की कम्पनी झेल पाता था और न ही किसी और की ही। और तभी एक खास बात हो गयी - मुझे प्यार हो गया।
हम स्ट्रीथम एम्पायर में प्रदर्शन कर रहे थे। उन दिनों हम रोज़ रात को दो या तीन म्यूज़िक हॉलों में प्रदर्शन किया करते थे। एक प्राइवेट बस में एक जगह से दूसरी जगह जाते। स्ट्रीथम में हम जरा जल्दी शुरू कर देते ताकि उसके बाद कैंटरबरी म्यूज़िक हॉल और उसके भी बाद, टिवोली में प्रदर्शन कर सकें। अभी सांझ भी नहीं ढली थी कि हमने अपना काम शुरू कर दिया। गर्मी बरदाश्त से बाहर हो रही थी और स्ट्रीथम हॉल आधे से ज्यादा खाली था। और संयोग से ये बात मुझे उदास और तन्हा होने से विमुख नहीं कर सकी।
बर्ट काउट्स यैंकी डूडले गर्ल्स नाम की गीत और नृत्य की एक मंडली का प्रदर्शन हमसे पहले होता था। मुझे उनके बारे में कोई खास खबर नहीं थी। लेकिन दूसरी शाम, जब मैं विंग्स में उदास और वीतरागी खड़ा हुआ था, उनमें से एक लड़की नृत्य के दौरान फिसल गयी और दूसरे लोग ही ही करके हँसने लगे। उस लड़की ने अचानक नज़रें उठायीं और मुझसे आंखे मिलायीं कि क्या मैं भी इस मज़ाक का मज़ा ले रहा हूं। मुझे अचानक दो बड़ी-बड़ी भूरी शरारत से चमकती आंखों ने जैसे बांध लिया। ये आंखें एक दुबले हिरनी जैसे, सांचे में ढले चेहरे पर टंगी हुई थीं और बांध लेने वाला उसका भरा पूरा चेहरा, खूबसूरत दांत, ये सब देखने का असर बिजली जैसा था। जब वह स्टेज से वापिस आयी तो उसने मुझसे कहा कि मैं उसका छोटा-सा दर्पण तो थामूं ताकि वह अपने बाल ठीक कर ले। इससे मुझे उसे देखने परखने का एक मौका मिल गया।
ये शुरुआत थी। बुधवार तक मैं इतना आगे बढ़ चुका था कि उससे पूछ बैठा कि क्या मैं उससे रविवार को मिल सकता हूं। वह हंसी,"मैं तो तुम्हें जानती तक नहीं कि बिना इस लाल नाक के तुम लगते कैसे हो।" उन दिनों मैं ममिंग बर्ड्स में शराबी के रोल वाली कॉमेडी कर रहा था और लम्बा कोट और सफेद टाई पहने रहता था।
"मेरी नाक इतनी ज्यादा तो लाल नहीं है और फिर मैं उतना गया गुजरा भी नहीं हूं जितना नज़र आता हूं।" मैंने कहा, "और इस बात को सिद्ध करने के लिए मैं कल रात अपनी एक तस्वीर लेता आऊंगा।"
मेरा ख्याल है मैंने उसके सामने एक गिड़गिड़ाते, उदास और नौसिखुए किशोर को पेश किया था जो काली स्टॉक टाइ पहने हुआ था।
"ओह, लेकिन तुम तो बहुत जवान हो," उसने कहा,"मुझे तो लगा कि तुम्हारी उम्र बहुत ज्यादा होगी।"
"तुम्हें कितनी लगती है मेरी उम्र?"
"कम से कम तीस"
मैं मुस्कुराया,"मैं उन्नीस पूरे करने जा रहा हूं।"
चूंकि हम लोग रोज़ ही पूर्वाभ्यास किया करते थे इसलिए सप्ताह के दिनों में उससे मिल पाना मुश्किल होता था। अलबत्ता, उसने वायदा किया कि वह रविवार की दोपहर ठीक चार बजे केनिंगटन गेट पर मिलेगी।
रविवार का दिन एकदम बढ़िया, गर्मी भरा था और सूर्य लगातार चमक रहा था। मैंने एक गहरा सूट पहना जो सीने के पास शानदार कटाव लिये हुए था और अपने साथ एक काली आबनूसी छड़ी डुलाता चला। मैंने काली स्टॉक टाइ भी पहनी हुई थी। चार बजने में दस मिनट बाकी थे और घबराहट के मारे मेरा बुरा हाल था, मैं इंतज़ार कर रहा था और यात्रियों को ट्रामकारों से उतरता देख रहा था।
जब मैं इंतज़ार कर रहा था तो मैंने महसूस किया कि मैंने हैट्टी को बिना मेक अप के तो देखा ही नहीं था। मुझे इस बात की बिल्कुल भी याद नहीं आ रही थी कि वह देखने में कैसी लगती है। मैं जितनी ज्यादा कोशिश करता, मुझे उसका चेहरा मोहरा याद ही न आता। मुझे हल्के से डर ने जकड़ लिया। शायद उसका सौन्दर्य नकली था। एक भ्रम!! साधारण सी दिखने वाली जो भी लड़की ट्रामकार में से उतरती, मुझे हताशा के गर्त में धकेलती जाती। क्या निराशा ही मेरे हाथ लगेगी? क्या मैं अपनी ही कल्पना के द्वारा छला गया हूं या थियेटरी मेक अप के नकलीपने ने मुझसे छल किया है?
चार बजने में तीन मिनट बाकी थे कि एक लड़की ट्रामकार से उतरी और उसने मेरी तरफ बढ़ना शुरू किया। मेरा दिल डूब गया। उसका चेहरा मोहरा निराश करता था। उसके साथ पूरी दोपहरी बिताने का ख्याल और उत्साह बनाये रखने का नाटक करना, मेरी तो हालत ही खराब हो गयी। इसके बावजूद मैंने अपना हैट ऊपर किया और अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाया। उसने हिकारत से मेरी तरफ घूरा और आगे बढ़ गयी। भगवान का शुक्र है, ये वो नहीं थी।
तब, चार बज कर ठीक एक मिनट पर ट्रामकार में से एक नवयुवती उतरी, आगे बढ़ी और मेरे सामने आ कर रुक गयी। इस समय वह बिना किसी मेक अप के थी और पहले की तुलना में ज्यादा सुंदर नज़र आ रही थी। उसने सादा सेलर हैट, पीतल के बटनों वाला नीला वर्दी कोट पहना हुआ था, और उसके हाथ ओवरकोट की जेबों में गहरे धंसे हुए थे।
"लो मैं आ गयी" कहा उसने।
उसकी मौजूदगी इतनी आल्हादित करने वाली थी कि मैं बात ही नहीं कर पा रहा था। मेरी सांस फूलने लगी। मैं कुछ कहने या करने की सोच ही नहीं पाया।
"चलो टैक्सी कर लेते हैं।" मैं सड़क पर आगे पीछे की तरफ देखते हुए और फिर उसकी तरफ मुड़ते हुए भारी आवाज़ में बोला।
"तुम कहां जाना चाहोगी?"
"कहीं भी"
"तो चलो, वेस्ट एंड में डिनर के लिए चलते हैं।"
"मैं डिनर ले चुकी हूं" उसने ठंडेपन से कहा।
"ये बात हम टैक्सी में तय कर लेंगे" मैंने कहा।
मेरी भावनाओं के उबाल के वजह से वह ज़रूर ही सकपका गयी होगी, क्योंकि टैक्सी में जाते हुए मैं लगातार यही कहता रहा था, "मुझे पता है कि मुझे एक दिन इसके लिए अफसोस करना पड़ेगा, तुम इतनी ज्यादा सुंदर हो।" मैं बेकार ही में उस पर प्रभाव जमाने और उसका दिल बहलाने की कोशिश करता रहा। मैंने बैंक से तीन पाउंड निकाले थे और सोचा था कि ट्रोकाडेरो रेस्तरां ले कर जाऊंगा। वहां के संगीत और शानो शौकत के माहौल में वह मुझे बेहद रोमांटिक रूप में देख पायेगी। मैं चाहता था कि मुझसे मिल कर उसके पैर तले की ज़मीन गायब हो जाये। लेकिन वह मेरी बक बक सुन कर सूनी आंखों से और कुछ हद तक हैरान परेशान सी देखती रही। खास कर एक बात जो मैं उससे कहना चाह रहा था कि वह मेरी प्रतिशोध की देवी है। ये शब्द मैंने नया नया सीखा था।
जो बातें मेरे लिए इतने ज्यादा मायने रखती थीं, उन्हें वह कितना कम समझ पा रही थी। इसका सेक्स से कुछ लेना देना नहीं था: जो बात मायने रखती थी, वह था उसका संग साथ। मेरी ज़िदंगी जिस मोड़ पर रुकी हुई थी, वहां पर लावण्य और सौन्दर्य से मिल पाना दुर्लभ ही था।
उस शाम ट्रोकाडेरो में मैंने उसे इस बात के लिए राजी करने की बहुत कोशिश की कि वह मेरे साथ डिनर ले ले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उसने कहा कि मेरा साथ देने के लिए वह सैंडविच ले लेगी। चूंकि हमने एक बहुत ही भव्य रेस्तरां में एक बहुत बड़ी मेज घेर रखी थी, मुझे ये ज़रूरी लगा कि कई तरह के व्यंजनों वाले खाने का ऑर्डर दिया जाये हालांकि मुझे इस सब की ज़रूरत नहीं थी। डिनर लेना बहुत गम्भीर मामला हो गया। मुझे ये भी नहीं पता था कि किस छुरी कांटे से क्या खाना होता है। मैं खाना खाते समय सहज आकर्षण के साथ शेखियां बघारता रहा, यहां तक कि फिंगर बाउल के इस्तेमाल में भी मैंने लापरवाही का अंदाज अपनाया। लेकिन मेरा ख्याल है, रेस्तरां से बाहर आते समय हम दोनों ही राहत महसूस कर रहे थे।
ट्रोकाडेरो के बाद हैट्टी ने तय किया कि वह घर जायेगी। मैंने टैक्सी का सुझाव दिया लेकिन उसने पैदल चलना ही पसंद किया। चूंकि वह चैम्बरलेन में रहती थी, मेरे लिए इससे अच्छी बात और क्या हो सकती थी। इसका मतलब यही होता कि मैं उसके साथ और ज्यादा वक्त गुज़ार सकता था।
अब चूंकि मेरी भावनाओं का ज्वार उतरने लगा था, वह मुझसे भी ज्यादा सहज लग रही थी। उस शाम हम टेम्स एम्बैंकमेंट§ पर चहलकदमी करते रहे। हैट्टी अपनी सहेलियों के बारे में बातें करती रही, हँसी खुशी की और इधर उधर की बेकार की बातें। लेकिन मुझे इस बात का ज़रा सा भी भान नहीं था कि वह क्या कह रही है। मुझे तो सिर्फ इतना पता था कि रात सौन्दर्य से भरी थी, कि मैं स्वर्ग में चल रहा था और मेरे भीतर आनंद भरी उत्तेजना के सोते फूट रहे थे।
उसे विदा कर देने के बाद मैं फिर से एम्बैंकमेंट पर लौटा। मैं अभिभूत था। मेरे भीतर एक मध्यम लौ का उजाला हो रहा था और तीव्र इच्छा शक्ति जोर मार रही थी। तीन पाउंड में से मेरी जेब में जितने भी पैसे बचे थे, मैंने टेम्स एम्बैंकमेंट पर सोने वाले भिखारियों में बांट दिये।
हमने अगली सुबह सात बजे फिर से मिलने का वायदा किया था क्योंकि शाफ्टेसबरी एवेन्यू में कहीं आठ बजे उसकी रिहर्सल शुरू होती थी। उसके घर से ले कर वेस्टमिन्स्टर ब्रिज रोड अंडरग्राउंड स्टेशन तक की दूरी लगभग डेढ़ मील की थी और हालांकि मैं देर तक काम करता था और शायद ही कभी रात दो बजे से पहले सोता था, मैं उससे मिलने के लिए सही वक्त पर हाजिर था।
कैम्बरवेल को किसी ने जादुई छड़ी से छू लिया था क्योंकि हैट्टी केली वहां पर रहती थी। सुबह के वक्त चैम्बरलेन की सड़कों पर हाथों में हाथ दिये अंडरग्राउंड स्टेशन तक जाना भ्रमित इच्छाओं के साथ घुले मिले वरदान की तरह होता था। गंदी, हताशा से भरने वाली चैम्बरलेन रोड, जिससे मैं हमेशा बचा करता था, अब प्रलोभन की तरह लगती जब मैं दूर से कोहरे में से निकल कर हैट्टी की आकृति को अपनी ओर आते देख रोमांचित होता। उस साथ साथ आने के दौरान मुझे बिल्कुल भी याद न रहता कि उसने क्या कहा है। मैं सम्मोहन के आलम में होता और ये मान कर चलता कि कोई रहस्यमयी ताकत हमें एक दूजे के निकट लायी है और भाग्य में पहले से ये लिखा था कि हम इस तरह से मिलेंगे।
उससे परिचय पाये मुझे तीन सुबहें हो गयी थीं; इन संक्षिप्त सुबहों के कारण बाकी दिन के अस्तित्व का पता ही नहीं चलता था। अगली सुबह ही पता चलता था। लेकिन चौथी सुबह उसका व्यवहार बदला हुआ था। वह मुझसे ठंडेपन से मिली। कोई उत्साह नहीं था उसमें। उसने मेरा हाथ भी नहीं थामा। मैंने इसके लिए उसे फटकारा और मज़ाक में उस पर आरोप लगाया कि वह मुझसे प्यार नहीं करती है।
"तुम कुछ ज्यादा ही उम्मीद करने लगे हो," कहा उसने "ज़रा ये भी तो देखो कि मैं सिर्फ पन्द्रह बरस की हूं और तुम मुझसे चार बरस बड़े हो।"
मैं उसके इस जुमले के भाव को समझ नहीं पाया। लेकिन मैं उस दूरी की भी अनदेखी नहीं कर पाया जो उसने अचानक ही हम दोनों के बीच रख दी थी। वह सीधे सामने की तरफ देख रही थी और गर्वोन्नत तरीके से चल रही थी। उसकी चाल स्कूली लड़की की तरह थी और उसके दोनों हाथ ओवरकोट की जेबों में गहरे धंसे हुए थे।
"दूसरे शब्दों में कहें तो तुम सचमुच मुझसे प्यार नहीं करती?"
"मुझे नहीं पता," वह बोली।
मैं हक्का बक्का रह गया। "अगर तुम नहीं जानती तो तुम प्यार नहीं करती।"
उत्तर देने के लिए वह चुपचाप चलती रही।
"देखो तो जरा, मैं भी देवदूत ही हूं। मैंने तुमसे कहा था न कि मुझसे तुमसे मिलने का हमेशा अफसोस होता रहेगा।" मैंने हल्केपन से कहना जारी रखा।
मैंने उसका दिमाग टटोलने की कोशिश की कि आखिर उसके दिमाग में चल क्या रहा था और मेरे सभी सवालों के जवाब में वह सिर्फ यही कहती रही, "मुझे नहीं पता।"
"मुझसे शादी करोगी?" मैंने उसे चुनौती दी।
"मैं बहुत छोटी हूं।"
"अच्छा एक बात बताओ, अगर तुम्हें शादी के लिए मज़बूर किया जाये वो वो मैं होऊंगा या कोई और?"
लेकिन उसने किसी भी बात पर हां नहीं की और यही कहती रही,"मुझे नहीं पता, मैं तुम्हें पसंद करती हूं . .लेकिन . ."
"लेकिन तुम मुझसे प्यार नहीं करती।" मैंने उसे भारी मन से टोकते हुए कहा।
वह चुप रही। ये बादलों भरी सुबह थी और गलियां गंदी और हताश पैदा करने वाली लग रही थीं।
"मुसीबत ये है कि मैंने इस मामले को बहुत दूर तक जाने दिया है।" मैंने भारी आवाज़ में कहा। हम अंडरग्राउंड स्टेशन के गेट तक पहुंच गये थे, "मेरा ख्याल यही है कि हम विदा हो जायें और फिर कभी दोबारा एक दूजे से न मिलें।" मैंने कहा और सोचता रहा कि उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी।
वह उदास दिखी।
मैंने उसका हाथ थामा और हौले से सहलाया,"गुड बाय, यही बेहतर रहेगा। पहले ही तुम मुझ पर बहुत असर डाल चुकी हो।"
"गुड बाय" उसने जवाब दिया,"मुझे माफ करना।"
उसका माफी मांगना मेरे दिल पर कटार की तरह लगा। और जैसे ही वह अंडरग्राउंड में गायब हुई, मुझे असहनीय खालीपन ने घेर लिया।
मैंने क्या कर डाला था? क्या मैंने बहुत जल्दीबाजी की? मुझे उसे चुनौती नहीं देनी चाहिये थी। मैं भी निरा गावदी हूं कि उससे दोबारा मिलने के सारे रास्ते ही बंद कर दिये, हां तब की बात और है जब मैं खुद को मूरख बनने दूं। मुझे क्या करना चाहिये था? सहन तो मुझे ही करना होगा। काश, उससे दोबारा मिलने से पहले मैं अपनी इस मानसिक यंत्रणा को नींद के जरिये कम कर सकूं। किसी भी कीमत पर मुझे तब तक अपने आपको उससे अलग रखना ही होगा जब तक वह न मिलना चाहे। शायद मैं कुछ ज्यादा ही गम्भीर था, ज्यादा पागल। अगली बार जब हम मिलेंगे तो मैं और अधिक विनम्र और नि:संग रहूंगा। लेकिन क्या वो फिर से मुझसे मिलना चाहेगी? ज़रूर, उसे मिलना ही चाहिये। वह इतनी आसानी से मुझसे किनारा नहीं कर सकती।
अगली सुबह मैं अपने आप पर काबू नहीं पा सका और चैम्बरलेन रोड पर जा पहुंचा। मैं उससे तो नहीं लेकिन उसकी मां से मिला,"तुमने हैट्टी को क्या कर दिया है?" कहा उन्होंने,"वह रोती हुई घर आयी थी और बता रही थी कि तुमने उससे कभी न मिलने की बात कही है।"
मैंने कंधे उचकाये और व्यंग्य से मुस्कुराया,"उसने मेरे साथ क्या किया है?" तब मैंने हिचकिचाते हुए पूछा कि क्या मैं उससे दोबारा मिल सकता हूं।
उन्होंने जोर से अपना सिर हिलाया, "नहीं, मुझे नहीं लगता कि तुम्हें मिलना चाहिये।"
मैंने उन्हें एक ड्रिंक के लिए आमंत्रित किया और हम बात करने के इरादे से पास ही के एक पब में चले गये और बाद में मैंने उनसे एक बार फिर उनुरोध किया कि वे मुझे हैट्टी से मिलने दें तो वे मान गयीं।
जब हम घर पहुंचे तो हैट्टी ने दरवाजा खोला। वह मुझे देख कर हैरान और परेशान नज़र आयी। उसने अभी अभी सनलाइट साबुन से अपना चेहरा धोया था इसलिए एकदम ताज़ा लग रहा था। वह घर के बाहर वाले दरवाजे पर ही खड़ी रही। उसकी बड़ी बड़ी आंखें ठंडी और निर्जीव लग रही थीं। मैं समझ गया, मामला निपट चुका है।
"तो फिर" मैंने मज़ाकिया बनने की कोशिश करते हुए कहा,"मैं एक बार फिर गुडबाय कहने आया हूं।"
उसने कुछ नहीं कहा लेकिन मैं देख पाया कि वह मुझसे जान छुड़ाने के लिए बेताब थी।
मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया और कहा,"तो!! एक बार फिर गुडबाय"
"गुडबाय" उसने ठंडेपन से जवाब दिया।
मैं मुड़ा और अपने पीछे मैंने हौले से दरवाजा बंद होने की आवाज़ सुनी।
हालांकि मैं उससे सिर्फ पांच ही बार मिला था और हमारी कोई भी मुलाकात शायद ही बीस मिनट से ज्यादा की रही हो, इस संक्षिप्त हादसे ने मुझे लम्बे अरसे तक प्रभावित किये रखा।
§ टेम्स एम्बैंकमेंट लंदन का प्रसिद्ध कला क्षेत्र है। शाम के वक्त लोग यहां चहलकदमी करते नज़र आते हैं। कई सड़क छाप कलाकार वहां पर तटबंध के पास अपनी गायन और संगीत कला का प्रदर्शन करके भीख मांगते हैं।
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(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)
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