पिछले अंक से जारी… हिंदी कंप्यूटरी सूचना प्रौद्योगिकी के लोकतांत्रिक सरोकार वेद प्रकाश अध्याय 7 ...
हिंदी कंप्यूटरी
सूचना प्रौद्योगिकी के
लोकतांत्रिक सरोकार
वेद प्रकाश
अध्याय 7
हिंदी में टाइप कैसे करें?
आज के तेज़ी से बदलते युग में प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी रूप में कंप्यूटर से अवश्य जुड़ना है और प्रत्येक को ‘कुंजीपटल साक्षर’ बनना आवश्यक है। यह भी सत्य है कि अंग्रेज़ी और भारतीय भाषाओं को साथ-साथ रहना है। यदि कंप्यूटर के कुंजीपटलों पर हिंदी और भारतीय भाषाओं की लिपियों को अंग्रेज़ी के समान सहजता से टाइप नहीं किया जा सकेगा तो इन लिपियों के लुप्त होने का खतरा है।
हिंदी फोंट की समस्या के सुलझ जाने के बाद इसीलिए हिंदी कुंजीपटल लेआऊट का मसला महत्त्वपूर्ण है। जहाँ अंग्रेज़ी में एक ही कुंजीपटल लेआऊट है जिसे क्वार्टी कुंजीपटल या यूनिवर्सल कुंजीपटल कहते हैं, वहीं हिंदी में कमोबेश दर्जन भर की-बोर्ड तो होंगे ही। जब मैनुअल टाइपराइटर वाला टाइपराइटर कुंजीपटल था ही, जो रेमिंग्टन कुंजीपटल के नाम से भी लोकप्रिय है तो इतने सारे कुंजीपटल क्यों हैं?
प्रचलित टाइपराइटर कुंजीपटल में निम्नलिखित सीमाएँ थीं—
1. देवनागरी और अन्य भारतीय लिपियों के अक्षरों, मात्राओं, संयुक्ताक्षरों के बहुत सारे स्वरूपों के चलते उन्हें मैनुअल की-बोर्ड पर प्रदर्शित कर पाना संभव नहीं था। जिसके कारण कई बार टंकित करते समय कई शब्दों को अशुद्ध टंकित करने के अलावा कोई चारा न था।
2. इनकी संख्या अधिक होने के कारण टाइप करते समय इन्हें याद रख पाना कठिन होता था। जिससे हिंदी में टाइप करना जटिल और धीमा होता था।
3. टाइपराइटर कुंजीपटल की एक कठिनाई यह थी कि इसमें टाइप करते समय अक्षरों को उनके बोलने के क्रम में टाइप करने के बजाए उनके लिखित रूप के दिखने वाले क्रम में टाइप किया जाता था। उदाहरण के लिए यदि हम ‘परिवर्तन’ टाइप करना चाहें तो हमें इस क्रम में अक्षरों को टाइप करना होगा—प ि र व त ्र न, जबकि बोलने में ध्वनियों का क्रम होगा—प र ि व र् त न। यानी कि लिखने और बोलने के क्रम में संगति नहीं थी।
4. सभी भारतीय लिपियों के तो अलग-अलग कुंजी पटल थे ही, एक ही लिपि के भी एक से अधिक कुंजी पटल थे। जिनमें वैज्ञानिकता, एकरूपता, सटीकता आदि का अभाव था।
इसलिए जब कंप्यूटर पर हिंदी में काम करने के लिए सॉफ्टवेयर का निर्माण करने की बात उठी तो एक नए कुंजीपटल की ज़रूरत महसूस की गई। क्योंकि लेकिन कंप्यूटर में अंतर्निहित कृत्रिम बुद्धि के कारण यह संभव था कि हम शब्दों को उनकी मूल ध्वनियों के क्रम में टाइप करें और स्क्रीन पर उनके सही मुद्रित रूप को प्रदर्शित करने का कार्य कंप्यूटर की कृत्रिम बुद्धि पर छोड़ दें। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि टाइपिस्ट को केवल मूल ध्वनियों को ही याद रखना होगा। इसका सीधा मतलब है कि हिंदी टाइपिंग जल्दी सीखी जा सकेगी और उसमें तेज गति से टाइप की जा सकेगी। अक्षरों के टाइप करने का क्रम भाषाई संगतता होने से इसका एक अतिरिक्त लाभ यह भी होगा कि इससे आँकडों की छँटाई, अकारादिक्रम में सूची बनाना आदि संभव हो जाएँगे।
इसके लिए उस समय प्रचलित विभिन्न कुंजीपटलों का अध्ययन किया गया। अंग्रेज़ी के लोकप्रिय कुंजीपटल- कवैर्टी कुंजीपटल के अलावा द्वोराक कुंजीपटल भी चर्चा में था। अंग्रेज़ी भाषा की संरचना और टाइप की आदतों का अध्ययन कर 1930 में अगस्त द्वोराक और विलियम डेली ने एक नया की-बोर्ड विकसित किया था जिसे उन्होंने नाम दिया- सिम्पलीफाइड की-बोर्ड. यही द्वोराक कीबोर्ड के नाम से लोकप्रिय हुआ। इस कुंजीपटल में अंग्रेज़ी के वे अक्षर जो 70 प्रतिशत टाइप किए जाते हैं, गृह पंक्ति में दिए गए हैं- A O E U I D H T N S. दूसरे, अक्षर इस तरह संयोजित किए गए हैं, सभी स्वर बाँयी तरफ और सभी व्यंजन दाँयी तरफ आएँ. क्योंकि हम सामान्यतः स्वर-व्यंजन-स्वर-व्यंजन के क्रम में टाइप करते हैं। यदि इन्हें टाइप करते हुए हमारा हाथ दाँया- बाँया- दाँया- बाँया क्रम में चलता है. इस तरह हाथ चलने से उँगलियाँ आपस में टकराती नहीं हैं जिससे टाइपिंग की गति बढ़ जाती है। इस कुंजीपटल में शायद ही कोई शब्द हो जिसे हम केवल एक हाथ से टाइप कर सकें. जबकि ऐसे सैंकड़ों शब्द हैं जो क्वैर्टी की बोर्ड में एक हाथ से टाइप के जा सकते हैं। इससे द्रुत गति से टाइप करना संभव है। तीसरे, इसमें टाइप करते समय उंगलियाँ इस प्रकार चलती हैं मानों टेबल पर तबला बजा रही हों. इससे हाथ जल्दी नहीं थकते. द्वोराक कीबोर्ड क्वैर्टी कीबोर्ड से काफी बेहतर है फिर भी यह अंग्रेज़ी टाइपिस्टों में लोकप्रिय नहीं हो पाया।
एक बात और, अंग्रेज़ी भाषा की लिपि - रोमन लिपि में - अक्षरों का क्रम उनके उच्चारण पैटर्न में नहीं रखा गया है. जबकि भारतीय भाषाओं की वर्णमाला में उनका क्रम उनके उच्चारण पैटर्न पर ही रखा गया है। क्योंकि इन भाषाओं की मूल प्रकृति ही ध्वन्यात्मक है. इसलिए जब भारतीय भाषाओं के लिए कुंजीपटल का विकास किया गया तो एक ओर, द्वोराक के सिद्धांत को आधार बनाया गया तो दूसरी ओर, ब्राह्मी लिपि को. ब्राह्मी लिपि को आधार बनाने के कारण यह कुंजीपटल इस्की कोड की तरह ब्राह्मी मूल की सभी भारतीय लिपियों को समर्थन करता है। इसीलिए इसे इंडियन स्क्रिप्ट की-बोर्ड लेआऊट (भारतीय लिपि कुंजीपटल) कहा गया, जिसका संक्षिप्त रूप ही ‘इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल’ है।
यह कुंजीपटल सभी भारतीय लिपियों को एक समान, एक ही विधि से टाइप करने की अद्भुत सुविधा उपलब्ध कराता है। इसका अर्थ है कि एक लिपि में टंकण कार्य जानने वाला व्यक्ति तुरंत ही दूसरी लिपि में आसानी से टाइप कर सकता है। इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल मात्र आधारभूत वर्णमाला को टाइप करने से ही किसी लिपि में व्द्यमान सभी हज़ारों-लाखों अक्षर संयोजनों को सृजित करने की अनुमति देता है। वर्णमाला के ये अक्षर अंग्रेज़ी कुंजीपटल पर सरलता से समायोजत किए गए हैं। जो हमारे द्विभाषी माहौल के लिए एक और सहूलियत की बात है।
इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल ने इस तथ्य का उपयोग करते हुए कि किसी भी भारतीय लिपि में 70 से कम ही आधारभूत अक्षर होते हैं, इस चमत्कार को संभव कर दिखाया है। विभिन्न भारतीय लिपियों – देवनागरी, बंगला, गुरुमुखी, उड़िया, कन्नड़, तेलुगू, तमिल, असमिया, मलयालम और गुजराती लिपि - के अक्षरों के ऊपरी रूपों में भारी भिन्नता के बावजूद उनमें आंतरिक संगति है, क्योंकि इनका प्रादुर्भाव एक ही प्राचीन लिपि – ब्राह्मी – से हुआ है। ब्राह्मी लिपि में विद्यमान व्यंजनों और स्वरों को वैज्ञानिक तथा ध्वन्यात्मक आधार पर श्रेणीबद्ध किया गया था।
आधारभूत अक्षरों का क्रम लिखे गए अक्षरों के स्वरूप का निर्धारण करने के लिए पर्याप्त है। इस क्रम से भी कंप्यूटर शब्दों की वर्तनी को उसी शुद्धता के साथ दर्शा सकता है जैसे कि कोई इन्सान। यह इसलिए संभव है कि कंप्यूटर भाषा की लिपि में भिन्नताओं को दर्शाने के लिए सैंकड़ों रूपों को अपने स्मृतिकोश में रख सकता है। और काग़ज़ या स्क्रीन पर अत्यंत सुरूचिपूर्ण ढंग से इन स्वरूपों को व्यवस्थित करने के लिए जटिल तर्कों का प्रयोग कर सकता है।
जब कोई व्यक्ति निर्धारित वर्तनी के अनुसार किसी शब्द को टाइप करता है तो उसे शब्द बनाने के लिए अक्षरों को व्यवस्थित करने के लिए सोचना नहीं पड़ता। और न ही उसे लगातार स्क्रीन की ओर देखना पड़ता है। अब यह संभव है कि व्यक्ति के मन में कुछ विचार चल रहे हों और वह कुंजीपटल पर निर्बाध गति से अपनी उँगलियों को उसी प्रकार चलाता रहे जैसे कि वह अंग्रेज़ी कुंजीपटल पर चलाता है। इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल ने यह सिद्ध कर दिया है कि किसी भी भारतीय भाषा में टाइप करना उतना ही सरल और सहज है जितना कि अंग्रेज़ी में। इसका कारण है कि यह कुंजीपटल भारतीय लिपियों के वर्णाक्षरों की वैज्ञानिक और ध्वन्यात्मक प्रकृति का प्रयोग करता है। अंग्रेज़ी कुंजीपटल की तुलना में इसे सीखना भी अधिक सहज है।
आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि प्राचीन ब्राह्मी लिपि न केवल 10 भारतीय लिपियों का आधार रही है अपितु सिंहली, तिब्बती, भूटानी, बर्मी और थाई लिपियों का आधार भी रही है। जिस्ट प्रौद्योगिकी ने साबित कर दिया है कि इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल के सिद्धांतों पर आधारित ध्वन्यात्मक कुंजीपटलों से किस प्रकार इन लिपियों नें पूर्ण दक्षता से टाइप किया जा सकता है।
इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं---
1. इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल में ब्राह्मी लिपि को आधार बना कर, भारतीय लिपियों के लिए आवश्यक सभी अक्षरों को उनकी ध्वन्यात्मकता और वर्णमाला के क्रम के आधार पर संयोजित किया गया है.
2. इसकी प्रकृति के ध्वन्यात्मक होने और कंप्यूटर में कृत्रिम बुद्धि (ARTIFICIAL INTELLIGENCE) होने के कारण सभी अक्षरों, संयुक्ताक्षरों और उनके संयोजनों को शुद्ध रूप में टाइप किया जा सकता है. और वह भी केवल मूल अक्षरों का स्थान याद कर लेने पर ही. इसमें दिए हलंत और नुक्ते की सहायता से पूरी शुद्धता हासिल हो जाती है.
3. इस कुंजीपटल में सभी स्वरों को बाँयी तरफ और सभी व्यंजनों को दाँयी तरफ दिया गया है. चूँकि अंग्रेज़ी की तरह हिंदी में भी टाइप करते समय सामान्यतया व्यंजन-स्वर-व्यंजन-स्वर ही टाइप किया जाता है. और इस कुंजीपटल में इस कारण सामान्यतः दाँया-बाँया-दाँया हाथ इस्तेमाल होता है. जिससे टाइप करने की गति बहुत बढ़ जाती है
4. इस कुंजीपटल में अक्षरों का क्रम नियत करते समय वर्णमाला और उनके ध्वन्यात्मक क्रम का ध्यान रखा गया है. जैसे छोटी इ, उसकी मात्रा, बड़ी ई और उसकी मात्रा, इन चारों अक्षरों का टाइप करने के लिए एक ही उंगली को नियत किया गया है, हरेक स्वर और उसकी मात्रा को एक ही कुंजी पर शिफ्ट और बिना शिफ्ट के दिया गया है. तथा उनके हृस्व और दीर्घ रूपों के लिए एक ही उँगली को नियत किया गया है। चूँकि ‘अ’ की मात्रा नहीं होती, इसलिए इस कुंजी पर हलन्त दे दिया है, जो संयुक्त अक्षर टाइप करने के लिए प्रयोग किया जाता है. सभी वर्ग व्यंजनों के लिए उनके वर्ग के प्रथम अक्षर को टाइप करने वाली उंगली ही नियत की गई है. यानी कि इस कुंजीपटल में जिस उँगली से ‘क’ टाइप किया जाएगा, उसी से ‘ख’, ‘ग’ और ‘घ’ भी टाइप किया जाएगा। शेष व्यंजनों, अनुस्वार, चंद्रबिंदु और नुक्ते आदि को भी बड़े तर्कसंगत ढंग रखा गया है. जिससे इन्हें याद याद रखना बहुत आसान हो गया है.
5. इस कुंजीपटल में अधिकतर प्रयोग आने वाले अक्षर और मात्राएँ गृह पंक्ति में दी गई हैं- ओ ए अ इ उ प र क त च ट। टाइपिंग का अधिकांश कार्य गृह पंक्ति से किए जाने के कारण टाइपिंग की गति बढ़ जाती है.
6. सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि सभी भारतीय लिपियों के लिए यह कुंजीपटल समान है। इससे यदि कोई किसी एक लिपि में टाइप करना सीख लेता है तो नाम मात्र के प्रयास से किसी दूसरी लिपि में भी टाइप कर सकता है। यहाँ तक कि चाहे वह व्यक्ति दूसरी लिपि को न भी जानता तो भी उसे सुन कर ही सही सही टाइप कर सकता है। जबकि मैनुअल टाइपराइटर में तो हर भाषा के लिए अलग कुंजीपटल सीखना पड़ेगा।
7. प्राथमिक स्कूल में बच्चों को व्यंजन लिखना पहले सिखाया जाता है, उन पर मात्रा लगाना बाद में। इस कुंजीपटल में भी इसी प्रणाली को अपनाया गया है। अक्षरों को उनके उच्चारण के क्रम में टाइप किया जाता है। जिससे इस कुंजीपटल में टाइप करने वाला तुलनात्मक रूप से कम ग़लतियाँ करता है।
8. इस कुंजीपटल में डेटा की टाइपिंग और स्टोरेज अंतर्संबंधित होती है। जिससे डेटा संसाधन में इस कुंजीपटल के इस्तेमाल से टाइप करने पर पूरी सटीकता हासिल होती है।
9. इस कुंजीपटल में टाइप करते समय उंगलियाँ सहजता से चलती हैं, इससे मैनुअल टाइपराइटर पर टाइप करने वालों को होने वाला तनाव महसूस नहीं होता।
10. यदि इस्की कोड के साथ इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल का इस्तेमाल भी किया जाए तो विभिन्न लिपियों में परस्पर लिप्यंतरण भी संभव हो सकेगा।
11. इस कुंजीपटल की ध्वन्यात्मक प्रकृति के कारण वर्तनीजाँचक (स्पैलचेकर) बनाने में कम कठिनाइयाँ आती हैं।
12. इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल इस्की कोड के आधार पर बनाया गया है, जिसके कारण इसमें निहित बुद्धिमता (इनबिल्ट इंटेलीजेंस) है जो अवैध संयोजनों को खुद-ब-खुद नामंजूर कर देती है, जैसे एक व्यंजन के साथ दो स्वरों का संयोजन।
13. यह एक कुदरती ध्वनि-आधारित कुंजीपटल है जो सूचना को सीधे आईएसएससीआईआई-8 (8 बिटीय सूचना अंतर्विनिमय के लिए भारतीय मानक लिपि संहिता) नामक आंतरिक कोड में कन्वर्ट करता है।
इस कुंजीपटल का प्रयोग जिस्ट (जीआईएसटी) कार्ड और टर्मिनलों के साथ शुरू हुआ था। 1983 में इलेक्ट्रॉनिकी विभाग के अनुदान पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में जिस्ट प्रौद्योगिकी शुरू हुई थी। 1986 में इस प्रौद्योगिकी का व्यवसायीकरण किया गया और तभी भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिकी विभाग ने ‘इलेक्ट्रॉनिक इन्फोर्मेशन एंड प्लानिंग जर्नल’ के वोल्यूम 14, सं. 1 में अक्तूबर, 1986 में भारतीय लिपि आधारित कंप्यूटरों के लिए कीबोर्ड लेआउट मानकीकरण के लिए बनी समिति की रिपोर्ट प्रकाशित की। इलेक्ट्रॉनिकी विभाग की समिति ने 1988 में इसे संशोधित किया गया, जब ट्रांस्फोर्म कुंजी के स्थान पर नुक्ते का प्रयोग और ‘छोटी ए’ और ‘छोटे ओ’ की मात्राओं को उनके अक्षरों के साथ समायोजित किया गया.
1991 में भारतीय मानक ब्यूरो ने अपने आईएस 13194-1991 दस्तावेज में इसे भारतीय मानक-सूचना अंतरविनिमय के लिए भारतीय लिपि संहिता- यूडीसी- 681-3 में इसे प्रकाशित किया. तभी से यह कीबोर्ड सभी इलेक्ट्रॉनिकी उपकरणों के लिए भारतीय भाषाओं का राष्ट्रीय मानक है तथा सारे इलेक्ट्रॉनिक एवं कम्यूनिकेशन मीडिया में इसका प्रयोग करना अनिवार्य है. यह सीखने में बेहद आसान है. हिंदी शिक्षण योजना और संसद भवन सचिवालय के जैसे कई अनुभवों यह जाहिर हो चुका है कि यदि मैनुअल कीबोर्ड जानने वाले इस कीबोर्ड को अपनाना चाहे तो बहुत जल्दी इसे सीख सकते हैं.
इसके बावजूद, इंस्क्रिप्ट कीबोर्ड को अपनाने में एक तरफ यदि हिंदी टाइपिस्टों और आशुलिपिकों की ओर से कड़ा प्रतिरोध है तो दूसरी तरफ सॉफ्टवेयर निर्माता भी 25-25 कीबोर्ड लेआउट प्रदान कर समस्या को गंभीर रूप प्रदान कर रहे हैं.
इस कीबोर्ड का प्रचार करने की बहुत आवश्यकता है. क्योंकि इसमें तेज गति से टाइप होता है, ध्वन्याधारित टाइप होता है और विभिन्न भारतीय लिपियों के लिए एक ही कीबोर्ड सीखने से काम चल जाता है। संक्षेप में कहें तो, इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल यह आश्वासन देता है कि सूचना क्रांति के इस युग में अंग्रेज़ी के साथ-साथ भारतीय भाषाएँ और उनकी लिपियाँ भी उसी शान और गरिमा के साथ बनी रहेंगी।
इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल की संरचना
नीचे इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल का लेआऊट दिया गया है—
इंस्क्रिप्ट की-बोर्ड (Inscript Overlay) हिंदी सहित सारी भारतीय लिपियों के लिए एक समान है। सभी भारतीय लिपियों के लिए आवश्यक अक्षर उसमें दिए गए हैं। ऊपर दिया गया इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल देवनागरी लिपि के लिए है। देवनागरी का इस्तेमाल हिंदी, मराठी, संस्कृत और नेपाली भाषा के लिए किया जाता है। जो अक्षर देवनागरी लिपि में इस्तेमाल नहीं किए जाते उन्हें इस कुंजीपटल लेआऊट में खाली छोड़ दिया गया है।
जब हिंदी सक्रिय नहीं होती तो सामान्य अंग्रेज़ी कुंजीपटल सक्रिय रहता है। जब हिंदी को सक्रिय किया जाता है तो इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल सक्रिय हो जाता है। इस कुंजीपटल में उपलब्ध अक्षर प्रत्येक कुंजी के दायें हिस्से में दिखाए गए हैं। इसमें अंग्रेज़ी कुंजीपटल के अक्षर अपने सहज स्थान पर मौजूद हैं।
इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल दोनों प्रकार की—यानी स्पर्श टाइपिंग और देखकर—टाइपिंग करने के लिए तैयार किया गया है। स्पर्श टाइपिंग सामान्यतः पहली तीन कतारों के अक्षरों से की जाती है। इनमें से दूसरी कतार गृह-कतार (होम-रो) कहलाती है जिसमें दोनों हाथों की उँगलियाँ टिकी रहती हैं। इससे इस कतार के अक्षरों को टाइप करना बहुत सहज हो जाता है। साथ ही पहली और तीसरी कतार के अक्षरों को टाइप करना भी मुश्किल नहीं रहता। लेकिन चौथी कतार के अक्षर देखकर ही टाइप किए जाते हैं।
अब हम देवनागरी लिपि के अक्षर देखेंगे और बाद में देवनागरी ‘की-बोर्ड’ की संरचना की सविस्तार जानकारी हासिल करेंगे।
पहले हम स्वर देखेंगे—
ह्रस्व स्वर : अ इ उ ए ओ
दीर्घ स्वर : आ ई ऊ ऐ औ ऋ ऑ
इन स्वरों की मात्रायें आगे दी गई हैं।
् ि ु े ो
ा ी ू ै ौ ृ ॉ
ँ (चंद्रबिंदू)
ं (अनुस्वार)
ः (विसर्ग)
व्यंजन पाँच भागों में बाँटे गए हैं। हर भाग प्राथमिक, माध्यमिक व अनुनासिक वर्ग में बाँटा गया है।
प्राथमिक माध्यमिक पंचमाक्षर
वर्ग 1: क ख ग घ ङ
वर्ग 2: च छ ज झ ञ
वर्ग 3: ट ठ ड ढ ण
वर्ग 4: त थ द ध न
वर्ग 5: प फ ब भ म
ऊपर दिए वर्ग में न आनेवाले व्यंजन नीचे दिए गए हैं।
य र ल व श ष स ह
् (हलन्त)
़ (नुक्ता)
। (पूर्ण विराम)
अब हम देखेंगे कि ये अक्षर की-बोर्ड पर किस प्रकार से बाँटे गये हैं। इस कुंजीपटल को बायें और दायें दो भागों में विभाजित किया गया है—
ऊपर दिखाये गए तरीके से बायाँ भाग बायें हाथ से और दायाँ भाग दायें हाथ से उपयोग में लाया जाता है।
गृह कतार (होम-रो) में उंगलियाँ रहती हैं। बाएँ हाथ की उँगलियाँ—कनिष्का (सबसे छोटी उँगली) ओ (A) पर, अनामिका ए (S) पर, मध्यमा (बीच की उँगली) अ (D) पर और तर्जनी (अंगूठे के साथ वाली उँगली) इ (F) पर रहती हैं। तथा दाएँ हाथ की ऊँगलियाँ—तर्जनी र (J) पर, मध्यमा क (K) पर, अनामिका त (L) पर और कनिष्का च (;) पर रहती हैं।
कुंजीपटल के बायें हिस्से पर स्वर, अनुनासिक चिह्न व अनुनासिक व्यंजन आते हैं। स्पर्श टंकण पद्धति में ये सब अक्षर बायें हाथ से टाइप किए जाते हैं।
लिखने में ह्रस्व स्वर अधिक उपयोग में लाए जाते हैं इसलिए इन्हें गृह कतार में रखा गया है। इसी तरह दीर्घ स्वर ऊपर की तीसरी कतार में रखे गए हैं।
प्रत्येक दीर्घ स्वर का इस्तेमाल करते समय उसके ह्रस्व स्वर को ही ध्यान में रखना पड़ता है। क्योंकि दीर्घ स्वरों को उनके ह्रस्व स्वरों के ऊपर की कतार में रखा गया है।
अब हम देखेंगे कि स्वरों की स्थान-निर्धारण उनके उपयोग में लाए जाने के परिणाम में किस तरह किया गया है। ह्रस्व स्वर का लिखाई में अधिक उपयोग इस क्रम में किया जाता है।
ओ ए अ उ इ
आपको मालूम है तर्जनी उँगली सबसे शक्तिशाली होती है, उससे कम बीच की उँगली और सबसे कम शक्तिशाली छोटी उँगली होती है। इसीलिए इसमें सबसे शक्तिशाली उंगली को सबसे ज्यादा उपयोग में आने वाले स्वरों के लिए नियत किया गया है। इसलिए ‘इ’ अक्षर को तर्जनी पर रखा है और ‘उ’ अक्षर को उसकी दायीं तरफ रखा है। इन दोनों अक्षरों का प्रयोग स्पर्श टाइपिंग में तर्जनी द्वारा किया जाता है। ‘अ’ अक्षर उसकी दायीं तरफ रखा गया है और ‘ए’ और ‘ओ’ अक्षर क्रमशः अनामिका और छोटी उँगलियों के स्थानों पर रखे गए हैं।
ओ ए अ उ इ
जैसा कि हम पहले बताया गया है कि दीर्घ स्वर उसी के ह्रस्व स्वर की कुंजी के ठीक ऊपर रखे गए हैं। अब हम देखेंगे कि हर स्वर की मात्रा उसी स्वराक्षर की कुंजी पर बिना शिफ्ट के स्थान पर रखी गई हैं क्योंकि ये मात्राएँ अपने स्वराक्षरों से अधिक प्रयोग में लाई जाती हैं। चूँकि हर व्यंजन में ‘अ’ का उच्चारण अंतर्निहित या शामिल रहता है इसलिए ‘अ’ की अलग से कोई मात्रा नहीं होती। परंतु कभी-कभी जब व्यंजन को ‘अ’ ध्वनि के बिना प्रयोग किया जाता है तो उसे दिखाने के लिए व्यंजन के नीचे हलंत ‘्’ का चिह्न लगा देते हैं। दो व्यंजनों को जोड़कर संयुक्त अक्षर बनाने के लिए भी हलंत का प्रयोग किया जाता है। इस हलंत को ‘अ’ की कुंजी पर बिना शिफ्ट के दिया गया है।
हिंदी में ‘ऋ,’, ‘ऑ’ और उसकी मात्राओं ‘ृ’, ‘ॉ’ का बहुत कम इस्तेमाल किया जाता है। ये स्वर और इनकी मात्राएँ चौथी कतार में आगे दिखाए गए स्थान पर स्वतंत्र रूप से रखे गए हैं।
अनुनासिक ध्वनियाँ—
देवनागरी में दो अनुनासिक चिह्न हैं—
अनुस्वार ं
चंद्रबिंदु ँ
अनुस्वार ं को अंग्रेज़ी X पर अनशिफ्ट पर दिया गया है और चंद्रबिंदु ँ उसी कुंजी पर शिफ्ट के साथ दिया गया है।
स्वरों के बाद अब हम देखेंगे कि प्रमुख व्यंजन कुंजीपटल पर किस प्रकार नियत किए गए हैं। कुंजीपटल का दाँया हिस्सा व्यंजनों का हिस्सा है। सारे व्यंजन इसी हिस्से में रखे गए हैं। और इस कारण सभी प्रमुख व्यंजन स्पर्श टाइपिंग करते समय दायें हाथ से टाइप किए जाते हैं। जैसाकि पहले बताया जा चुका है हर वर्ग में दो प्राथमिक व्यंजन, दो माध्यमिक व्यंजन और एक पंचमाक्षर होता है। प्रत्येक वर्ग के प्राथमिक और माध्यमिक अक्षरों के जोड़े नीचे दिखाए तरीके से खड़ी पंक्ति में कुंजियों पर रखे गए हैं।
व्यंजनों के स्थान याद रखने की यह एक प्रभावशाली योजना है। इसमें सभी वर्गों के प्रथम अक्षरों को गृह पंक्ति में बिना शिफ्ट के दिया गया है। इस संयोजन का एक महत्त्व यह भी है कि शिफ्ट के स्थान पर जो अक्षर है, वह बिना शिफ्ट के स्थान पर दिए अक्षर का ही महाप्राण रूप है।
जैसे ख = क + ह
यह इसलिए संभव हुआ है, कि प्रत्येक प्राथमिक अथवा माध्यमिक जोड़ी का दूसरा अक्षर पहले व्यंजन में ‘ह’ की ध्वनि जुड़ने से बना है।
व्यंजनों की योजना भी उनके उपयोग के परिमाण के अनुसार की गई है। प्रत्येक वर्ग के प्रथम अक्षर को उनके उपयोग के परिमाण के अनुसार गृह कतार में इस प्रकार दिया गया है।
ट च त क प
यदि हम गृह कतार के व्यंजनों को याद कर लें तो हमें उस वर्ग के सभी व्यंजनों का स्थान याद हो जाता है।
देवनागरी में पाँच अनुनासिक व्यंजन हैं।
ङ ञ ण न म
केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा प्रकाशित मानक हिंदी वर्तनी के अनुसार यदि इनके अर्द्धाक्षर रूप, अपने ही वर्ग के किसी व्यंजन के पहले आएँ तो इनके स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग करना चाहिए। इसलिए इनमें से प्रमुखता से इस्तेमाल आने वाले म और न को अनुस्वार के साथ बिना शिफ्ट के और ण को शिफ्ट के साथ बायीं ओर पहली पंक्ति में दिया गया है।
चूँकि ङ और ञ का इस्तेमाल बहुत कम किया जाता है इसलिए इन्हें तीसरी कतार में क्रमशः ह और ़ की कुंजी पर शिफ्ट के साथ दिया गया है।
अंतस्थ व्यंजन- स्पर्श व्यंजनों के बाद अंतस्थ व्यंजन आते हैं।
(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)
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