संदर्भः एटमी करार , ‘ लाल ’ और रार 1,2,3 बनाम 2,7,3 -- अनुज खरे अज्ञात सूत्रों से एटमी करार को लेकर सरकार-सहयोगी में हुई तकरा...
संदर्भः एटमी करार, ‘लाल’ और रार
1,2,3 बनाम 2,7,3
-- अनुज खरे
अज्ञात सूत्रों से एटमी करार को लेकर सरकार-सहयोगी में हुई तकरार-रार और अंततः संबंधों में पड़ी दरार से पूर्व हुई बातचीत का टेप प्राप्त हुआ है। प्रिंट पाठकों की सुविधा के लिए इस बातचीत का ट्रांसस्क्रिप्ट दिया जा रहा है। बातचीत अति गोपनीय मसले पर है। अतः राष्ट्रीय महत्व के कारण लगभग कोडवर्ड में है। जिज्ञासु पाठकों को पूरे मन-वचन-कर्म से ध्यान लगाकर एटमी डील के संदर्भ में पूरी बातचीत को समझना होगा, जिसके अंत में वे जानेंगे कि अन्य सरकारी मामलों की तरह गोपनीय कुछ भी नहीं था। सब कुछ खुला- खुला सा है। अब इस खुले-खुले को राष्ट्रीय महत्व के दृष्टिगत उन्हें ही गोपनीय रखने का दायित्व भी निभाना होगा। पूर्व में ही इस बात का वचन दे दें तो अच्छा रहेगा, अन्यथा क्या? अन्यथा कुछ नहीं (डरा क्यों रहे हैं?) आप बिना वचन दिए ही पढ लें।
दृश्य कहीं किसी राजनीतिक गलियारे का है। दो विशिष्ट लोग; विशिष्ट नहीं समझे, वही बडे लोग। कोडवर्ड का ध्यान रखें, अच्छा समझ गए ; टहलते हुए बात कर रहे हैं। संवादों में जहां कहीं ‘वो’ भाषा मिले उसे विलोपित मान लें। ...तो शुरू से शुरू करते हैं...
-1,2,3...!
- 2,7,3...!
-नकल करता है?
-नहीं तो!
-फिर क्यों बोला 2,7,3?
-यूं ही तेरी तुकबंदी में, नया फंडा निकाला
-पता है 1,2,3 क्या है?
-नहीं तो
-पता चले तो तेरे होश उड़ जाएं।
-इतनी भयंकर बात!
-भयंकर ही नहीं, विस्फोटक भी
-अच्छा!, ऐसा क्या! क्या है?
-समझ तो खैर कोई नहीं पाया, बोल तो हम सभी रहे हैं।
-क्या बोल रहे हैं?
-123... !,
-तो! मैं भी बोलूं क्या? 273... !, 273... !
-उल्टी बात बोलता है। खेल समझा है क्या?
-तो तू भी तो बता कहां रहा है, बोल ही तो रहा है ऐसी उल्टी भाषा 123!
-तू बात को क्यों पकड़ लेता है, फिर अपनी बात थोपने लगता है?
-क्या थोपा?
-वही 273
-तू भी तो बोल रहा
-क्या?
-123... !
-तूने फिर बात दोहराई?
-क्या? दोहराया
-123... !
-तूने भी तो बोला था फिर से
-अबे, मैं तो बोल सकता हूं
-क्यों बोल सकता है?
-हक है।
-क्यों हक है?
-तू तेवर दिखा रहा है। इतनी मजाल
-मजाल क्या? मैं पूछ ही रहा था। 123 पर क्यों अड़े हो?
-तू तो मेरा सहयोगी है, भाई है, फिर ऐसी भाषा में बात?
-सहयोगी हूं तो तुझे सिर पर बैठकर ‘वो’ थोड़ी करने दूंगा!
-फिर भी... ! कुछ तो लिहाज कर
-काहै का लिहाज, तूने हमारा किया!
-वो तो मेरी मजबूरी है!
-हमारी भी यही है?
-तू तो खैर ‘ज्ञानी’ है, मान जा ना
-तू भी तो ‘विद्वान’ है, तू ही समझ जा। बोलना छोड़ दे।
-इतनी सी बात! हमारे बोलने भर से परेशानी।
-हां, और क्या?
-तो तू अपने कान क्यों नहीं बंद कर लेता, दूसरों की सुन ही मत। फिर बाकी आसान है।
-तो तू जबान बंद कर ले।
-फिर आदेश कैसे दूंगा?
-हम दे लेंगे।
-राज कैसे चलाऊंगा?
-हम चला लेंगे।
-यह समान विचारवादियों से संवाद कैसे करूंगा।
-हम करते रहेंगे।
-तू तो मेरा सहयोगी है, भाई है। त्याग मैं करूं।
-भाई हूं तो सिर पे‘वो’ थोड़ी करने दूंगा।
-ऊंचे विचार रख, देश पर व्यापक दृष्टि डाल।
-डाली, कुछ दक्षिण-पूर्व के कुछ भाग नजर आ रहे हैं।
- दूर, दृष्टि का चश्मा लगाकर एक बार फिर व्यापक दृष्टि डाल।
-डाली, पूर्वोत्तर का एक छोटा सा हिस्सा और नजर आया।
-तुझे दृष्टिभ्रम हो गया है।
-तुझे सत्ताभ्रम हो गया है।
-यानी?
-123 नहीं अब 273 ही बोलना होगा।
-ये क्या है?
-ताकत, बहुमत, हम रे, हम!
-तू तो मेरा सहयोगी है, भाई है, ऐसी शुष्कता।
-भाई हूं तो सिर पर ‘वो’ थोड़ी करने दूंगा।
-देख भाई देश-दुनिया में समझदारी से काम लेना पड़ता है। सबकी सुनना पड़ती है। व्यवहार बनाकर रखना पड़ता है? गांव में रहना है तो ‘चौधरी ’ की बात थोड़ी ना टालेंगे। दिक्कत हो जाएगी। तू इस एंगल से समझ।
- तू हमारे ‘एंगल’ से समझ, तेरी बात मानी तो हमें हमारे मोहल्ले में दिक्कत हो जाएगी।
-मोहल्ला छोड़, दुनिया की सोच।
-तू दुनिया छोड़, मोहल्ले की सोच। हमारी सोच, अपनी सोच !
- हमें लड़ना शोभा नहीं देता।
- वही तो मैं कह रहा हूं।
- हमें मतभेद सुलझाने होंगे।
- वही तो मैं कह रहा हूं।
- तो तू अपनी जिद छोड़ दे।
- तू 123 की रट छोड़ दे। हमारी मान जा।
- मुश्किल हो जाएगी। बडे भाई को दुनियादारी से अलग-थलग करवाएगा। तू तो छोटा भाई है हट छोड़ अपनी।
- तू बड़ा भाई है तो ‘करार’ की जिद छोड़।
- तू मेरे साथ एक बार 123 बोल दे। फिर पीछे तेरी सारी बातें मानूंगा। पगले, समझता नहीं।
- पहले एक बात मान।
- तू बोल तो सही।
-123 की रट छोड़।
- बडे भाई से चातुरी... !
- छोटे भाई पर दबाव?
- आ, मिल बैठकर बातें करते हैं।
- करनी ही चाहिए।
-मतभेद सुलझाने होंगे।
- सुलझाने ही चाहिए।
- भाइयों की लड़ाई का पड़ोसी पार्टी फायदा ना उठा ले।
- बचना ही होगा।
- आ, बैठते हैं भाई।
- बैठूंगा नहीं तू कुछ विदेशी किस्म की ‘बातें’ पिला देगा।
- अरे, नहीं रे। दूरगामी हितों का देशी नाश्ता करेंगे।
- फुसला रहा है?
- नहीं रे।
- बहला रहा है।
- नहीं रे।
- खड़े-खड़े ही बातें करेंगे।
- समस्त देशवासियों की निगाहें हम पर टिकी है।
- हां, समस्त राज्यवासियों की निगाहें।
- देशवासियों की?
- वोटरों की!
- हां रे, देशवासी वोटरों की।
- राज्यवासी वोटरों की।
- इतनी हीन सोच।
- हीन नहीं, महीन सोच, ‘माइन्यूट विजन।’
- ‘विजन’ में अगली सरकार नजर आ रही है तुझे।
- राज्य सरकार दिख रही है।
- केंद्र?
- कुछ धुंधला-धुंधला सा, साफ नहीं दिख रहा।
- साफ कर ब्रेन- विजन-वोटर, अब दिखे?
- हां, कई राज्य सरकारें।
- केंद्र...?
- वही धुंधला-धुंधला सा।
- साफ कर, सरकार-सत्ता-सुविधाएं, अब?
- चुनाव सा कुछ दिख रहा है।
- चुनाव क्यों? सरकार-सत्ता-सुविधाएं क्यों नहीं?
- अब तो अगले चुनाव ही साफ दिख रहा है। हां, हां अब ये चीजों भी दिख रही हैं।
- तो क्या? अगले चुनाव के बाद हम पास आ जाएंगे। फिर भाई बन जाएंगे?
- हां, बिल्कुल।
- मेरे भाई !
- हां भाई- आ गले मिल जा, एक बात तो बता जा।
- क्या?
- तब मिलना ही है तो हम अभी क्यों लड़ रहे हैं! ! !
(नोटः इसके बाद भी संवाद तो चलता रहा। शायद टेप की रील खत्म हो गई थी। इस कारण खेद है। बाकी के लिए प्रतीक्षा कीजिए अगले टेप की, नमस्कार।)
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