के.पी. सक्सेना के दो व्यंग्य

SHARE:

व्यंग्य   के. पी. सक्सेना मिर्जा का स्वेटर यह पूछे जाने पर कि मिर्जा सिर्फ एक ही पल्ले में ऊन के गोले समेत, इस निर्माणाधीन स्वेटर को...

व्यंग्य

 

के. पी. सक्सेना

मिर्जा का स्वेटर

यह पूछे जाने पर कि मिर्जा सिर्फ एक ही पल्ले में ऊन के गोले समेत, इस निर्माणाधीन स्वेटर को उतारे बगैर क्यों निकल पडे, मिर्जा बमक उठे, "तुम क्या जानो कि रुहानी इश्क क्या होता है ? जो चीज इतनी मेहनत और मोहब्बत से उन्होंने हम पर चढ़ाई है, उसे उतार फेंकें ? हमें जरा बाजार से मसूर की दाल लाने की जल्दी थी। इस पल्ले को उतारने में एक उम्र लग जाती। सो सोचा कि लाओ, पल्ले-गोले समेत ही बाजार हो आएं। जमाना देख ले कि शाहजहां और मुमताज बीवी का इश्क अभी जिन्दा है। बेहतर होगा कि गोला तुम सम्भाल लो और हमारे पीछे-पीछे बाजार तक चले आओ।" अभी हम गोला उठाकर झाड़-पोंछ ही रहे थे कि हमारी भावज (बेगम मिर्जा) बुर्के की छांव तले तैश में फुंकारती हुई दाखिल हुई और किचिन में दाखिल होकर हमारी बीबी को भी घसीट लाई। सारी पृष्ठभूमि उन्हें समझाई और मिर्जा को वो-वो धुली-पुंछी सुनाई कि अगले का पाटिया गुल और ढिबरी टाइट हो गई।

बेगम भाभी के टोटल गुस्से का सारांश यह था कि अक्ल के नाम पर पैदल मिर्जा, जल्दबाजी में बच्चे के स्वेटर का पल्ला डाट आए थे, और अपने स्वेटर के पल्ले में सलाइयों समेत बच्चे को लपेट कर रख आए थे।दोनों ही 'अण्डर कन्स्ट्रकशन' स्वेटरों का डिजाइन एक था और पुरानी उधड़ी हुई धुली ऊन से बन रहे थे। मिर्जा सिर झुकाए बगलें झांक रहे थे, और मैं सोच रहा था कि जब बच्चे के स्वेटर का पल्ला मिर्जा पर फिट आ गया तब मिर्जा के स्वेटर का पल्ला बच्चे पर सही क्यों नही उतरा ? क्या आज के दौर में बाप-बेटों में पल्ले-भर मुहब्बत भी बाकी नहीं रह गई! ऊंट और ऊंट में कोई फर्क नहीं होता...मगर बच्चों और बच्चों में फर्क होता है। बच्चे अमीर और गरीब होते हैं... भूखे और सजे-धजे होते हैं...मगर ऊंट हमेशा नंगा होता हैं! ऊंट अमीर और गरीब कभी नहीं होता!...आजादी के इन महत्त्वपूर्ण ३६ वर्षों का असर बच्चों पर भले ही पड़ा हो...ऊंटों पर नहीं पड़ा।

ऊंट के बारे में एक पंजाबी कहावत हैं कि 'जट चालीस दा...बोता पैंतालीस दा'...बोता ऊंट के बच्चे को कहते हैं! अत: ऊंट के बच्चे की कीमत हमेशा ऊंट से ज्यादा होती है| इन्सानों मे सिर्फ राजनीतिक बच्चों की कीमत ही ज्यादा होतीहै| आम आदमी का अभावग्रस्त बच्चा दो कौड़ी का।...न खाने को, न पहनने को...बिना वजह पृथ्वी पर आने का पाप भोगता है आदमी का बच्चा। ...अब आप कृपया ऊंटों और बच्चों की एक घटना सुनो... दिल्ली और जयपुर के बीच राष्ट्रीय मार्ग पर टूरिस्टों के मनोरंजन के लिए राजस्थान टूरिस्ट डेवलपमेंट कारपोरेशन ने 'मिड वे' नाम का एक उम्दा रेस्त्रां बनाया हुआ है। यों भी भूख के देश में आलीशान रेस्त्रां बनाना एक अच्छी बात है। यहां बच्चों के लिए ऊंट की सवारी की व्यवस्था है। यह भी एक अच्छी बात है। बचपन रहते तक ही बच्चा ऊंट की सवारी कर सकता है। बड़ा होने पर राजनीति और व्यवस्था के ऊंट आदमी की पीठ पर सवार हो जाते हैं और देश धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगता है।

खैर...पिछले दिनों दिल्ली के मार्डन स्कूल के बच्चों का एक दल बस सें जयपुर जा रहा था। बच्चे इस रेस्त्रां में उतर गये और ऊंट की सवारी करने लगे। थोड़ी ही देर में जाने किसने कैसी हवा फूक दी कि यच्चों को ऊंट से उतार दिया गया...पैसे वापस कर दिए गए और ऊंट की सवारी बन्द हो गई। अब चक्कर क्या था कि एक सहकारी उच्च अधिकारी अपनी बच्ची के साथ आए हुए थे जो ऊंट की सवारी की जिद कर रही थी। अत: साधारण बच्चों को ऊंट से उतारकर ऊंट किसी खास 'बच्ची' के लिए रिजर्व कर दिया गया। इस घटना पर न बच्चों ने बुरा माना, न ऊंट ने। दोनों ही जानते थे शायद कि 'बाल दिवस'का स्वांग रचाने वाले इस देश में, बच्चे और बच्चे में जमीन और आसमान का फर्क होता है।

..कुछ बच्चे जन्म से ही मुंह में चांदी का चम्मच और सत्ता का शहद लेकर पैदा होते है। शेष सारे बच्चे सिर्फ भूख और अभावों की गर्द लेकर जन्म लेते हैं। ये 'घटिया' बच्चे न बाल दिवसों की रौनक बन सकते हैं, न ही ऊंट की सवारी के योग्य होते हैं। दिल्ली के मार्डन स्कूल के बच्चे फिर भी अच्छे खाते-पीते घरानों के है।उन्हें भी ऊंट की सवारी के आनन्द से वंचित कर दिया अफसर शाही ने| अब जरा उस बच्चे के बारे में सोचिए जो अधनंगा है...भूखा है...सिर्फ बच्चा कहलाने का अपराधी है। वह सिर्फ दूर से यह देख सकता है कि ऊंट कैसा होता है और 'बड़े' बच्चे इस पर कैसे सवारी करते हैं।

घुटी हुई लालसओं का यही जहर आगे चलकर अभावग्रस्त बच्चों को अपराधी बनाता है तो हम कहते हैं कि बाल-अपराध बढ़ रहे हैं।..यही नन्हे-नन्हे कुचले हुए अरमान एक दिन जहर और समाज-विरोध का घिनौना ज्वालामुखी बन जाते है। आप किसी बच्चे से उस की रोटी छीन सकते हैं...मिट्टी का खिलौना छीन सकते हैं...मगर उसके मन की नन्ही-नन्ही कामनाएं नहीं छीन सकते। कल जो लोग इस बच्चे को वोट की लाइन में खड़ा करेंगे, वे आज इसे दो क्षण ऊंट की सवारी या मिट्टी की एक छोटी-सी चिड़िया देने से क्यों कतराते हैं? ...कितनी बाल संस्थाएं...कितने ही शिशु केन्द्र एवं बाल सुधार गृह अपने बड़े-बड़े बोर्ड खोखले ढोलों जैसे लटकाए बैठे हैं, पर देश का आम बच्चा आज भी उतना ही रीता है जितना अपने बचपन में मैं था। बच्चे के हिस्से में, इन ३६ वर्षों में सिर्फ तिरंगे झण्डे की तस्वीर आई है जिसके रंग देखकर वह खुश हो लेता है। कहां हैं वे लोग जो कहते हैं कि इस देश से 'बाल-श्रम' (चाइल्ड लेबर) खत्म हो रहा है ? ठंड में ठिठुरते हजारों मासूम आज भी ईटें ढो रहे है...गाड़ी खींच रहे है...दूसरों के बर्तन मांज रहे हैं। दूसरों की फेंकी हुई जूठन ही इन बच्चों के हिस्से का प्रजातंत्र है...आजादी है।

...महाकवि मिल्टन ने एक बार कहा था कि मैं कई-कई जन्म सिर्फ बच्चा बने रहने को तैयार हूँ...शर्त यह है कि मुझे एक बच्चे की तरह भरपूर जीने का अधिकार मिले। मिल्टन नहीं रहे इस संसार में...सिर्फ कामना रह गई जो आज अधिकांश बच्चों के चेहरे पर एक सपना बनकर मंडराती रहती है।...बच्चे ऊंट को देखते हैं, ऊंट बच्चों को देखता है... दोनों के बीच में एक सम्पूर्ण समाजवाद की दूरी है। खुली कारों पर से सड़क के बच्चों पर माला फेंकना और बात है...बन्द कोठरियों में उनके पेट की भूख और तन की बीमारी आंकना और बात है। ...मदर टेरेसा जैसी हमदर्द हस्तियां सदियों में कहीं एक पैदा होती हैं।-३६ वर्ष से गाल-बजाए जा रहे हैं बाल कल्याण के नाम पर।मजदूर का बेटा मजदूर और भिखारी का बेटा भिखारी ही पैदा हो रहा है। भूख के ढेर पर भूख ही जन्म ले रही है।... अधिकारों की होड़-सी लगी है। जिसके पास नन्हे बच्चों को ऊंट पर से उतार सकने का अधिकार है, वह उसी का भरपूर उपयोग कर रहा है। एक अपने बच्चे की खुशी के लिए कितने ही बच्चों की आंखों से खुशी की चमक छीनी जा रही है। यह उपलब्धि हैं नेहरू के सपनों की|

...मैं देश के मामले में टांग अड़ाना नहीं चाहता। जिनका देश है वह देश को जिधर चाहें मोड़ ले जाएं। मगर बच्चों के मामले में बोलने का मुझे हक है। मैं बच्चों का लेखक हूं...खुद बच्चा रह चुका हूं...बच्चों के अधबुने सपनों की एक पूरी दुनिया देखी है मैंने।...इन अरमानों से खेलता है कोई तो मन कसक उठता है। आप भले ही बाल संग्रहालय, बाल उद्यान, ऊंट और हाथी-घोड़े हटा लो! मगर जब तक ये हैं, इन पर सब बच्चों का समान हक है ! अफसर शाही के पांव पसारने को और भी जमीनें हैं ! चंद बच्चों के चेहरों की हंसी छीनकर अफसरशाही सुर्खरू नहीं होती...स्याह और बदनाम हो जाती है।...बच्चों के भोले मन तो यों भी भी सब कुछ बहुत जल्द भूल जाते हैं! बच्चे जो ठहरे!

---------.

 

आंसुओं का बैंक बैलेंस

अभी तक भी यही समझता था कि आंसुओं की कोई कीमत नहीं होती...बस, यूं ही फोकट में बह जाते हैं।

...मगर नहीं, केलीफोर्निया की एक लेडी किलीरिन मार्गरेट ने मरते-मरते मेरा भ्रम दूर कर दिया। हुआ यूं कि, दुनिया से खर्च होते वक्त मार्गरेट के पास अस्सी हजार डालर की रकम थी। आगे नाथ, न पीछे पगहा। सो वसीयत कर गई कि रकम उनके अन्तिम संस्कार में शामिल होने वालों में बांट दी जाए।... किस तरह? जो चुपचाप शामिल हों उन्हें पांच-पांच डालर...जो चीख-चीख कर रोए और सीना पीटें, उन्हें पचास-पचास डालर।...मार्गरेट गुजर गयी।...जनाजे में ५०० लोग शरीक हुए। सबके सब दहाड़े मार-मार कर सीना पीटते हुए रो रहे थे। अन्तत: अपने आंसुओं की नकद कीमत वसूल कर अपने घर लौट गये।

मैं इस घटना से रत्ती-भर प्रभावित नहीं हुआ।...काहे से कि मैं उस देश में रह रहा हूं जहां नकली आंसू थोक के भाव लीटरों बह रहे हैं।..और नकदी कैश करा रहे हैं।...इन नकली आंसुओं के पीछे ३६ वर्षों की प्रगति का पूरा इतिहास है। देश की चिन्ता और समस्याओं पर निरन्तर बहते आंसू ...जैसे रूम कूलर में अन्दर ही पानी का प्रवाह होता रहता है।...और इन आंसुओं की भरपूर कीमत है सत्ता...कुर्सी ...गद्दी...अधिकार। मैंने मगरमच्छ आज तक नहीं देखा...देखना भी नहीं चाहता। उसके आंसुओं के बारे में सुना है, मगर यह नहीं सुना कि मगरमच्छ ने कभी अपने आंसुओं की कीमत मांगी हो। इन्सानी मगरमच्छ ज्यादा कल्चर्ड होता है। कीमत वसूल लेता है...नकली आंसू बाद में बहाता है...देशहित में।..इमेज बनी रहती है।

... आंसू बहाने के बहानों की कमी नहीं इस देश में। भूख, सूखा, गरीबी, बाढ़, दुर्घटनाएं, धार्मिक दंगे। जहां मौत की खबर आयी, घर वाले बाद में रोते हैं, नेता पहले ही आंसू-भीगा स्टेटमेण्ट जारी कर देता है कि वह बहुत दुखी है। बन गई इमेज। खरी हो गई सुख सुबिधा की करेंसी ।...मौत एक बडी नुमाइश हो गई इस मुल्क में। आंसुओं से छपे इस नुमाइश के टिकट बेचकर कितनी ही रकम उगाह चुके हैं लोग। मार्गरेट के रोने पर पचास डालर मिले और सिलसिला खत्म हो गया।...यह भी कोई बात हुई ? हमारे यहां साढ़े तीन दशकों से एक-एक आंसू कैश हो रहा है। जब-जब किसी ट्रेजेडी पर मुल्क का कोई रहनुमा रोया है, मुझे हंसी आयी है। रोता हुआ नेता या मंत्री मुझे अच्छा नहीं लगता। रोना ही था तो मंत्री काहे को हुआ ? मतदाता की आंखों में आंसू नेचुरल लगते हैं।

...मगर नेता रोये बगैर मानता भी तो नहीं। अपनी इमेज की कीमत बसूलनी है। अन्दर नकली आंसुओं का भण्डार भरा रहता है। इधर कहीं कोई आफत आई उधर आंसूओं का बटन दबा दिया। सारा देश तरल हो उठा। मरने वाले भी अपने मरने का गम भूल गए। नेता रो रहा है ? मरना सार्थक हो गया।...जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जाते हैं, आंसुओं की टंकी फुल होती चली जाती है। देशप्रेम बढ़ता चला जाता है।.... मार्गरेट की आत्मा खुश हो रही होगी कि उसके अन्तिम संस्कार पर अगलों को पचास-पचास डालर मिल गए। काश, दिवंगत महिला ने भारतीय अन्तिम संस्कार देखे होते! किसी 'पावरफुल' के कुत्ते का भी अन्तिम संस्कार होता है तो श्रद्धालु पहुंच जाते हैं...आंसू बहाते हैं और कालान्तर में किसी न किसी रूप में अपने बहाये गए आंसुओं का पूरा फायदा टीप लेते हैं। एक भी आंसू फ्री नहीं बहने पाता।...हां, कुछ थर्ड क्लास आंसू ऐसे जरूर होते जिनकी कोई कीमत नहीं होती...मसलन, बेरोजगार नौजवान के आंसू...क्वारी बेटी के बाप के आंसू, लुटी हुई इज्जत के आंसू...धर्म के नाम पर चली हुई गोली के फलस्वरूप टूटी हुई चूड़ियों के आंसू ... किसी बच्चे के भूखे पेट के आंसू...अस्पताल और पुलिस की यातना झेलने वाले के आंसू...वगैरह। मैं इन्हें आंसू ही नहीं मानता। यह तो 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' का नित्य क्रम है। इनकी कोई कीमत नहीं लगती। लगनी भी नहीं चाहिए।

... हर आंसू मोती नही होता। जिनके आंसू 'मोती' होते हैं वे उनकी पाई-पाई वसूलना भी खूब जानते हैं। हमदर्दी कोई सड़क पर पड़ा सिक्का नही है कि किसी के हाथ भी लग जाए। जिनकी हमदर्दी का महत्त्व है वे उसे रिजर्व रखते हैं और सही मौके पर कैश करा लेते हैं...मार्गरेट के रोने वालों की तरह।... आंसूओं का फिक्स्ड डिपाजिट...अभिनय का कौशल और नन्ही सी लिप-सिम्पैथी, कुर्सी और इनको बरकरार रखती है और नकली आंसू धीरे-धीरे विदेशी बैंकों में डालर की शक्ल में बदल जाता है। हैसियत के अनुसार सबका विदेशी बैंकों में इन्हीं घड़ियाली आंसूओं का डिपाजिट है। राजनीति में वे शहीदी आंसू अब रहे ही नहीं जो सीने की तहों से निकलकर आंखों तक आते थे। उन्होंने आजादी दिलाई और आंखों ही आंखों में खुश्क हो गए।

------

(टीडीआईएल के हिन्दी कार्पोरा से साभार)

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. रविजी आपको बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने श्री के.पी.सक्सेना की रचनाएँ प्रकाशित की. मैने अपने स्कूल, कालेज मे श्री सक्सेना के हास्य नाटको का मंचन किया. उस समय इनकी रचनाये चम्पक और पराग मे काफी प्रकाशित होती थी. हंस हंस कर लोटपोट हो जाया करते थे. इनका यदि कोई प्रकाशन हुआ हो तो बतावे.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत दिनों बाद सक्सेना जी को पढ़ा ...मजा आ गया..

    जवाब देंहटाएं
  3. केपी जी का... वो क्या है मित्रो आदमी में निगोड़ी पापुलर होने की चाह बहुत बुरी होती है। खिजाब छुपा के उम्र के दिसम्बर में मार्च बनने की कोशिश करता है..... यह वाला लाइए दूरदर्शन में बहुत बहुत साल पहले आया था।

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: के.पी. सक्सेना के दो व्यंग्य
के.पी. सक्सेना के दो व्यंग्य
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2008/06/blog-post_13.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2008/06/blog-post_13.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content