नाटक वनराज से मुलाकात -सावित्री मसीह (दृश्य एक) नेपथ्य में - देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बिगड़ गया इन...
नाटक
वनराज से मुलाकात
-सावित्री मसीह
(दृश्य एक)
नेपथ्य में - देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बिगड़ गया इन्सान ।
पार्वती - भगवन, ये कैसा स्वर है ?
शंकर भगवान - देवी, ये स्वर, विश्व लोक का है, मानव दुखी है ।
पार्वती - मानव ने तो चन्द्र लोक पर विजय प्राप्त कर ली है तथा अन्य ग्रहों पर भी चढ़ाइयाँ कर रहा है । विजय के नगाड़े बजा रहा हैं । फिर मानव दुखी क्यों ? यह कैसी विडम्बना है ?
शंकर भगवान - यह सब उसकी बुद्धि के बल से हुआ है । बुद्धिजीवी, मानव ने विज्ञान और तकनीकी की सहायता से मृ़त्यु दर पर भी विजय पा ली है ।
पार्वती - प्रभु, कहीं ऐसा न हो कि वह एक दिन अपनी चार अरब सेना लेकर देव लोक पर आक्रमण करे ।
शंकर - मानव को मैंने पूरे विश्व का आधि-पत्य सौंप दिया है । वह सभी जीवों में श्रेष्ठ है । प्रकृ़ति की सभी वस्तुएँ किसी न किसी रुप में उसके लिये हैं ।
पार्वती - भगवन, फिर यह शोर क्यों ? आप अपने भक्तों की सुधि क्यों नहीं लेते ।
शंकर - देवी पार्वती, यदि आपकी यहीं इच्छा है कि हम भक्तों की सुधि लें तो हम विश्व लोक अवश्य जायेंगे ।
पार्वती - भगवन, क्या मैं भी आपके साथ चलूं ?
शंकर - हां, पर हमें मनुष्य के रुप में जाना होगा । हम आपको पूरा तमाशा दिखायेंगे कि मनुष्य अपनी ही करनी से कैसे जाल में फंस गया है ।
पार्वती - भगवन, नारद मुनि को भी साथ ले चलें तो अच्छा होगा । उन्होंने विश्व का भ्रमण किया है तथा संसार की स्थिति से परिचित हैं ।
शंकर - कोई है ? एक गण - ( हाथ जोड़े हुए आता है ) आज्ञा महाराज ।
शंकर - नारद जी से कहो कल विश्व यात्रा की तैयारी करें। गण - जो आज्ञा ।
( दृ़श्य दो )
( शंकर, पार्वती, एवं नारद जी भ्रमण करते हुए मधुवन पहुंच जाते हैं )
पार्वती - भगवन, हमने ऋषि मुनियों को मधुवन की महिमा गाते सुना है तथा उनकी तपस्या भी यही सफल हुई है ।
शंकर - भारत के प्राचीन दर्शन शास्त्र ने भी इसी मधुवन में जन्म लिया है, पर आज मधुवन की दशा बड़ी खराब दिखाई दे रही है ।
पार्वती - ऐसा क्यों हुआ प्रभु ? ( नेपथ्य से आवाज - बचाओ हे भगवान दया करो )पार्वती जी - ये कैसा शोर है ? ये तो भक्तों की आवाज है, जो दुखी हैं । प्रभु इन भक्तों पर दया करो ।
शंकर - नारद जी दुखी मानव को बुलाओ और पुछो कि इसे किस बात का दु:ख है । ( नारद जी दु:खी मानव के प्रतीक एक लकड़हारे को साथ लेकर आते हैं )
नारद - मानव, आपको क्या दु:ख है ? आप भयभीत क्यों हैं ।
मानव - मुनि जी, वनराज ने हमें कई दिनों से दु:खी कर रखा है ।
नारद जी - कैसे ?
मानव - वनराज मधुवन छोड़कर गाँव की ओर आ जाते हैं । और मनुष्य और पालतू जानवरों को खा जाते हैं ।
शंकर - मानव, वनराज मधुवन क्यों छोड़ते हैं ?
पार्वती - मानव क्या तुम्हें केवल यही कष्ट है या और भी कोई व्याधि है ।
मानव - देवी, जंगलों में लकड़ी का अभाव है । मैं लकड़हारा हुँ । मुझे लकड़ी नहीं मिलती और गरीबी के कारण मैं बहुत तकलीफ में हूँ । इसके अलावा मुझे वनराज से भी भय लगता है क्योंकि वे आजकल बहुत नुक्सान करते हैं ।
शंकर - नारद जी, वनराज को बुलाइये और पूछिये उसने मानव को दु:खी क्यों किया है ।
नारद - जो आज्ञा । ( नारद जी वनराज को आवाज लगाते हैं और गरजते हुए मंच पर आते हैं । ( इस बीच शंकर-पार्वती अंतध्र्यान हो जाते हैं ) ।
वनराज - मुझे किसने आवाज दी ?
नारद - हम इस वन में भ्रमण करने के लिए आये थे । हमने सोचा कि इस वन के राजा के भी दर्शन कर लें । हम नारद हैं और हम स्वर्गलोक से आये हैं ।
वनराज - बड़ी कृ़पा की प्रभु आपने । कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?
नारद - आप तो इतने बड़े राजा हैं पर सुना है कि आप शहर पर भी आक्रमण करने लगे हैं और मानव आपसे दु:खी है ।
वनराज - अब आप ही न्याय करें । मैं सभी वन्य प्राणियों को बुलाता हूं । ( लोमड़ी को आवाज देकर बुलाता है ) लोमड़ी रानी , ओ लोमड़ी रानी ।
लोमड़ी - जी महाराज आई ।
वनराज - आज हमारे वन में नारद मुनि आये हैं । उनके स्वागत में वन्य प्राणियों की सभा बुलाओ ।
लोमड़ी - जो आज्ञा ( लोमड़ी जंगल में जाती है और नेपथ्य से लोमड़ी के चिल्लाने की आवाज आती है ) ।
लोमड़ी - सभी वन्य प्राणियों को सूचित किया जाता है कि आज शाम को छ: बजे वनराज के दरबार में सभा होगी । अत: सभी बन्धुओ से निवेदन है कि वे ठीक समय पर उपस्थित हों ।
( दृ़श्य तीन )
( सारे वन्य प्राणी वनराज के दरबार में उपस्थित थे ) ।
वनराज - मेरी प्रजाजनों ।
हिरण - महाराज की क्या आज्ञा है ?
वनराज - आज हमारे वन में नारद मुनि आये हैं सब प्राणी उन्हें प्रणाम करें । ( सभी प्राणी प्रणाम करते हैं ) वनराज आगे कहते हैं - नारद मुनि मानव की शिकायत लेकर आये हैं । तुम सब उस शिकायत को सुनो और उसका निराकरण बताओ ।
नारद जी - प्राणियों क्या तुम्हें मानव से कोई कष्ट है ?
हिरण - आप बताइ थे महाराज । हमारे घर, वन जिसमें हम सभी भाई-बहन, हिल-मिलकर रहते थे वे नष्ट कर दिये गये हैं । हम कहाँ रहे, क्या पियें, क्या खायें, कहाँ विश्राम करें ।
बन्दर - (कूद-कूद कर आता है ) मेरी भी कुछ सुनो ।
नारद - हाँ सुनाओ बन्दर मामा ।
बन्दर - जब पेड़ ही न रहे तो हमारा क्या होगा ? हम भोजन कहाँ करेगें ? जब हम शहर की ओर जाते हैं और छतों कूदते हैं, बच्चों के हाथ की मिठाई खा जाते हैं तो मानव हमें मारता है, भगाता है । मेरी शिकायत के अलावा भालू चाचा की शिकायत भी सुनिये ।
भालू - तूम खाने की बात करते हो । मैं प्यासा हूँ । नहाने को भी पानी नहीं मिलता । पानी इतना दूषित हो गया है कि उसमें से दुर्गंध आती है ।
नारद - ऐसा क्यों ?
भालू - चलकर देखें नदी के पानी में चमड़े के कारखाने की गन्दगी को बहाया जाता है । जिससे पूरी नदी दूषित हो गई है ।
सारस - मछलियां भी सब मर गई हैं । इस नदी में अब एक भी मछली नहीं है । मेरे खाने के लिए कुछ नहीं बचा । मैं और मेरा परिवार दूसरे स्थान को जा रहे हैं ।
वनराज - मुनि जी, सुन ली आपने हमारी व्यथा की कहानी । अब आप शंकर जी और और मां पार्वती को-हमारी गाथा सुना दें ।
नारद - ठीक है-मैं भगवान से तुम्हारी गाथा सुना दूँगा । ( नारायण-नारायण कहते हुए नारद जी चले जाते हैं ) ।
( दृ़श्य चार )
( मंच पर नारद जी, शंकर जी एवं पार्वती जी के सामने खड़े हैं ) ।
पार्वती - भगवन, नारद जी ने संसार का जो वृ़त्तान्त बताया उसे सुनकर मन को बड़ा दु:ख हुआ । आप इन्हें विनाश से बचा सकते हैं ।
शंकर - आखिर इसके लिए दोषी कौन है ?
नारद - मानव को बुलाकर वन प्राणियों की विपदा सुना दो । ( मानव का प्रवेश ) ( मानव का प्रवेश )
नारद - मानव, भगवान को बताओ कि तुमने जंगलों की अन्धा-धुन्ध कटाई क्यों की ? इतने जंगल क्यों काटे ?
मानव - भगवन, पूर्वजों के आशीर्वाद से हमारे वंश की बहुत प्रगति हुई और संसार में मनुष्यों की संख्या बहुत बढ़ गयी । उनके लिए मकान, भोजन, वस्त्र तो देना ही था । वन न काटता तो क्या करता ?
नारद - मानव, क्या तुझे मालूम नहीं था कि वनों से प्रकृ़ति का संतुलन कायम रहता है । अगर वनों की अंधाधुंध कटाई होती है तो सभी के लिए खाने , पानी और हवा की कमी पड़ जायेगी ।
मानव - महाराज, अपने अज्ञान के कारण मैं जंगलों को व्यर्थ समझता था मुझे नहीं मालूम था कि मनुष्यों का संपूर्ण अस्तित्व पर्यावरण पर निर्भर करता है । इस पर्यावरण पर मैंने बिना सोचे प्रहार किया है । ( लकड़हारे का प्रवेश )
नारद - देखो लकड़हारा भी आ गया । क्यों लकड़हारे, वन में लकड़ी की कमी क्यों हुई ?
लकड़हारा - भगवन, वन बेरहमी से काट दिये गये । हमारा परिवार बढ़ा और दिनों-दिन लकड़ी की आवश्यकता बढ़ी । आखिर इस मधुवन की ऐसी दुर्दशा हो गयी इसके लिए हम भी दोषी हैं ।( लकड़हारा और मानव सिर झुकाकर कठपुतली मंच से चले जाते है )और धीरे-धीरे करके सभी पात्रों का मंच से चले जाना । नेपथ्य से आवाज आती रहती है -
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान । कितना बदल गया इंसान अभी भी चेत जा अरे इंसान, बहुत नहीं बिगड़ा है संसार । रहो प्रेम से सब जीव मिलकर करो संपदा का उपभोग विचार कर इस संसार को फिर से स्वर्ग बनाओ आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ बचाओ
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(टीडीआईएल के हिन्दी कार्पोरा से साभार)
बहुत ही सुंदर नाटक... काश यह सच हो जाये...
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