चंद कविताएं -सीमा सचदेव 1.कविता के लिए वध कहते हैं....? कविता कवि की मजबूरी है उसके लिए वध जरूरी है जब भी होगा कोई वध ...
चंद कविताएं
-सीमा सचदेव
1.कविता के लिए वध
कहते हैं....?
कविता कवि की मजबूरी है
उसके लिए वध जरूरी है
जब भी होगा कोई वध
तभी मुँह से फूटेंगे शब्द
दिमाग मे था बालपन से ही
कविता पढ़ने का कीड़ा
न जाने क्यूँ उठाया
कविता लिखने का बीड़ा?
किए बहुत ही प्रयास
पर न जागी ऐसी प्यास
कि हम लिख दे कोई कविता
बहा दे हम भी भावों की सरिता
कहने लगे कुछ दोस्त
कविता के लिए तो होता है वध
कितने ही मच्छर मारे
ताकि हम भी कुछ विचारे
देखे वधिक भी जाने-माने
पर नहीं आए जज्बात सामने
नहीं उठा मन मे कोई बवाल
छोड़ा कविता लिखने का ख्याल
पर अचानक देख लिया एक नेता
बेशर्मी से गरीब के हाथों धन लेता
तो फूट पड़े जज्बात
निकली मुँह से ऐसी बात
जो बन गई कविता
बह गई भावों की सरिता
सुना था जरूरी है
कविता के लिए वध
फिर आज क्यों
निकले ऐसे शब्द ?
फिर दोस्तों ने ही समझाया
कविता फूटने का राज बताया
नेता जी वधिक हैं साक्षात
वध किए हैं उसने अपने जज्बात
जिनको तुम देख नहीं पाए
और वो शब्द बनकर कविता में आए
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2.प्यास
चौराहे पर खड़ा विचारे
बन्द मार्ग सारे के सारे
मुड़ जाता है उसी दिशा में
जिधर से भी कोई उसे पुकारे
न कोई समझ न सोच रही है
बन गई दिनचर्या ही यही है
जिम्मेदारी सिर पर भारी
चलता है जैसे कोई लारी
दूध के कर्ज़ की सुने दुहाई
कभी जीवन संगिनी भरमाई
माँगे रखते है कभी बच्चे
बॉस के भी है नौकर सच्चे
हाँ मे हाँ मिलाता रहता
बस खुद को समझाता रहता
करता है उनसे समझौते
जो राहों के पत्थर होते
किसे देखे किसे करे अनदेखा?
कौन से कर्मों का देना लेखा?
बचपन से ही यही सिखाया
जिस माँ-बाप ने तुमको जाया
उनका कर्ज़ न दे पाओगे
भले जीवन मे मिट जाओगे
पत्नी सँग लिए जब फेरे
कस्मे-वादों ने डाले डेरे
दफ्तर में बैठा है बॉस
दिखाता रहता अपनी धौंस
चाहकर भी न करे विरोध
अन्दर ही पी जाता क्रोध
समझे कोई न उसकी बात
न दिन देखे न वो रात
अपनी इच्छाओं के त्याग
नहीं है कोई जीवन अनुराग
पिसता है चक्की मे ऐसे
दो पाटों में गेहूँ जैसे
सबकी इच्छा ही के कारण
कितने रूप कर लेता धारण
फिर भी खुश न माँ न बीवी
क्या करे यह बुद्धिजीवी ?
माँ तो अपना रौब दिखाए
और बीवी अधिकार जताए
एक अकेला किधर को जाए?
किसको छोड़े किसको पाए ?
साँप के मुँह ज्यों छिपकली आई
यह कैसी दुविधा है भाई
छोड़े तो अन्धा हो जाए
खाए तो दुनिया से जाए
हर पल ही है पानी भरता
और अन्दर ही अन्दर डरता
पुरुष है नहीं वो रो सकता है
अपना दुख न धो सकता है
आँसु आँखो मे जो दिखेगा
तो समाज भी पीछे पड़ेगा
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पुरुष है पर नहीं है पुरुषत्व
नहीं अच्छा आँसुओं से अपनत्व
बहा नहीं सकता अश्रु अपने
न देखे कोई कोमल सपने
दूसरों की प्यास बुझाता रहता
खुद को ही भरमाता रहता
स्वयं तो रहता हरदम प्यासा
जीवन मे बस मिली निराशा
पाला बस झूठा विश्वास
नहीं बुझी कभी उसकी प्यास
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3.कलाकार
ईश्वर से
बिछुड़ी आत्मा का
सुखद सँयोग, सम्भोग
प्रकृति के संग
भरता नई उमंग
हुआ
कोमल भावनाओं का जन्म
जो
मिल गई
हृदयासागर मे बन कर तरंग
बहे भाव
सरिता की भांति
एकाकार ,निश्चल, निष्कपट
निरन्तर प्रवाहित सुविचार
चक्षुओं पर प्रहार
सोच पर अत्याचार
और बन गया कलाकार
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4.माँ
नि:शब्द है
वो सुकून
जो मिलता है
माँ की गोदी में
सर रख कर सोने में
वो अश्रु
जो बहते है
माँ के सीने से
चिपक कर रोने में
वो भाव
जो बह जाते है अपने ही आप
वो शान्ति
जब होता है ममता से मिलाप
वो सुख
जो हर लेता है
सारी पीड़ा और उलझन
वो आनन्द
जिसमे स्वच्छ
हो जाता है मन
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माँ
रास्तों की दूरियाँ
फिर भी तुम हरदम पास
जब भी
मैं कभी हुई उदास
न जाने कैसे?
समझे तुमने मेरे जज्बात
करवाया
हर पल अपना अहसास
और
याद हर वो बात दिलाई
जब
मुझे दी थी घर से विदाई
तेरा
हर शब्द गूँजता है
कानों में संगीत बनकर
जब हुई
जरा सी भी दुविधा
दिया साथ तुमने मीत बनकर
दुनिया
तो बहुत देखी
पर तुम जैसा कोई न देखा
तुम
माँ हो मेरी
कितनी अच्छी मेरी भाग्य-रेखा
पर
तरस गई हूँ
तेरी
उँगलिओं के स्पर्श को
जो चलती थी मेरे बालों में
तेरा
वो चुम्बन
जो अकसर करती थी
तुम मेरे गालों पे
वो
स्वादिष्ट पकवान
जिसका स्वाद
नहीं पहचाना मैंने इतने सालों में
वो मीठी सी झिड़की
वो प्यारी सी लोरी
वो रूठना - मनाना
और कभी - कभी
तेरा सजा सुनाना
वो चेहरे पे झूठा गुस्सा
वो दूध का गिलास
जो लेकर आती तुम मेरे पास
मैने पिया कभी आँखें बन्द कर
कभी गिराया तेरी आँखें चुराकर
आज कोई नहीं पूछता ऐसे
???????????????????
तुम मुझे कभी प्यार से
कभी डाँट कर खिलाती थी जैसे
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5.पीर पराई
गम की लू से
सूखे पत्ते के समान
पतझड़ मे डाली से टूटकर
गिरते किसी फूल की कली सी
जिसकी खुशबू नदारद
सहमी सिमटी
पहाड़ सी जिन्दगी
कुरलाती है
अपने आप मे
एक व्यथा बताती है
क्या........?
यही है जीवन
कि ........
स्वयं को कर दो अर्पण
केवल
किसी की कुछ पल की
तसल्ली के लिए
जीवन भर जिल्लत का
बोझ उठा कर जिए
नहीं जाने कोई
उस पीड़ा और जिल्लत
की गहराई
जिसने बना दिया सबसे पराई
न घर मिला न चाहत
न ही मन में मिली कभी राहत
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संपर्क:
सीमा सचदेव एम.ए.(हिन्दी),एम. एड., पीजीडीसीटीटीएस, ज्ञानी
7ए,3रा क्रास
रामजन्या लेआउट
मारथाहल्ली
बैंगलोर -560037
भारत
e-mail:- ssachd@yahoo.co.in , sachdeva.shubham@yahoo.com
sima ji sari kavitaon me shidhe sachche bhav hain jo kavita ko bahut sunder banate hain aaap ki sooch ki prashansha krti hoon
जवाब देंहटाएंsaader
rachana