(शम्भू नाथ का संपूर्ण कविता संग्रह पीडीएफ़ फ़ाइल में यहाँ से डाउनलोड (1.5 मे.बा.) कर पढ़ें ) कविताएँ -शम्भू नाथ सासू महारानी माई जब से ब...
कविताएँ
-शम्भू नाथ
सासू महारानी
माई जब से बुदाय गयी, नाकन चना चबवाय दिही/
गाय भैस बिकवाय दिही खेतेव मा दांत गडाय दिही//
जब देखा लरिकन का डाट्य जैसे कटही कुकुर अस काट्य/
हमरेव डंडा लगवाय दिही , नाकन चना चबवाय दिही//
एक बगल कै बुदा घर आय गयी , तब दुलहिन का घमकाय गयी/
तु करत अहा सास कय तुम्हारी, इहय उमर तोहृरिव आये//
फिर गांव-गांव कहत फिरबिव की हमरिव पतोहू डंडा चटकाइस/
फिर कहे दुलहिन ननकाउना, बुदा हमरे पगलाय यी//
दुइनव मा फूट कराय दिही , नाकन चना चबवाय दिही/
एहि खतिर कही दुलहिन , आगे कय आपन बनाय लिया//
बुदा का संग मा मिलाय लिया , उनहू कय पैर दबाय दिया/
खुली आंख जब बाउहर कय , सासू कय पैर द्बाय दिही//
बुदा का संग मा मिलाय लिही , नाकन चना चबवाय दिही/
माई जब से बुदाय गयी, नाकन चना चबवाय गयी//
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देश तबाह नेता से
नेता बन के घूम रहे है करते भाखण बाजी
कहते देश के नेता हम है रोकेगें बर्बादी
कोई घपला जम के करता कुर्ता और पजामे में
कोई चारा खा जाता है बैठा है मैखाने में
कोई दंगा करवाता है खून खराबे की होली
कोई छुप कर चलवाता है अबलाओं के ऊपर गोली
सौ मे से पचास फंसे है घपले के कारनामे को
खुद का तो पेट न भरता क्या देंगे जमाने को
बचा खुचा जो जनता के है फिर निकाले मेंटा से
देश तबाह है नेता से
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रोड तबाह खुदाई से
पग दस पग चल कर देखो कैसी मिट्टी बिछाई है
यही रोड की खुदाई है
दो दो घंटा खडे़. सड़क पर लगा हुआ है जाम
दो तो बीत गये है क्या करेंगे आफिस का काम
सारे अफसर कहते रहते अरबों रुपया खत्म हुआ है
पड़ी सड़क है ऊबड़खाबड़. पैसा सारा हजम हुआ है
कहते ज्यादा सुविधा होगी जब आयेगी मैट्रो रेल
इतना पैसा खा गये है आगे पैसे का है खेल
अफसर आपस मे कहते है अबकी खूब कमाई है
यही सड़क की खुदाई है//
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स्टाफ तबाह बिदाई से
अस्सी रूपया देकर उनकी जम के करे खिंचाई
हा करो तो ठीक है बच्चा न पे करे बिदाई
हाँ जी हाँ जी करते रहते आगे पीछे चापलूसी
साहब देखो न आते हो करते काना फूंसी
मालिक लोग मजा है लेते ,छोटों की करे पिटाई
घपला बाजी जम के करते खूब करे कमाई
इनकम टैक्स से बचने को तिकड़म खूब रचाते है
जब देखो तब स्टाफों पर जम रोब जमाते है
पहले से अब काम है ज्यादा न करते परमानेंट
अगर कही पर गलती हो गयी खोल के मारे बेल्ट
किसी मालिक से कोई न बोले क्या सामत उसकी आयी है
हाँ करो तो ठीक है बच्चू नाही तुरंत बिदाई है//
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पैग
दोहा- पैग लगा के झूमिये यह कलयुग की देन/
लफड़ा-झगड़ा करत रहो जात रहे सुख चैन//
जय जय कलयुग की दारू तुमका पियय सकल परिवारू
पी करके कुछ पंगा करते गॉव गली और सड.क पर मरते
कुछ बीबी का करय पीटायी कुछ बच्चो को दियय मिठायी
छोटे बडो का काटौ चिंता गली गली मे होती हिंसा
पीने पर तुर्रम खा बनते दादी अम्मा को न चिन्हते
गली गली में होत बुरायी इनका खाती काली माई
बीबी डण्डा ले गरियाती जाय चौकी में रपट लिखाती
कोई फिर भी फरक न पड.ता क्यो न बच्चा भूखा मरता
घर की सब बर्बादी किन्हा इनकी अक्ल दैव हर लिन्हा
होत सबेरे टुल्ली रहते दारू दे दो हरदम कहते
ये दारू कर दी बर्बादी मरय जल्दी मिलतय अजादी
बीबी बच्चे हरदम कहते आता होगा ताड़ में रहते/
दारू इनकी कौन छुड़ाये बुरा कर्म है कौन बताये
जूता चप्पल रोज है खाते फिर भी पीछे न पछताते
हे कलयुग की दारू माता करव इनका कल्याण/
कोई घटना घटित कर दो जल्दी निकले प्राण//
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छोटी बहिन (अवधी गारी)
गलियन मे चक्कू चलाय रही है
तुम्हरी छोटी बहिनिया
छत पे सीटी बजाय रही है
तुम्हरी छोटी बहिनिया
सीटी बजाती लड़के पटाती
लाली लगाती लिपस्टिक लगाती
कलियों से रस टपकाय रही है
तुम्हरी छोटी बहिनिया
नखरे हजार करके कालेज जाती
मम्मी पापा से भी न शर्माती
लड़कों पे चक्कर चलाय रही हैं
तुम्हरी छोटी बहिनिया
सुबह को जाती रात मे आती
पिक्चर को जाती डिनर को जाती
छिन्न मे फोन घुमाय रही है
तुम्हरी छोटी बहिनिया
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चन्दू की चाची
चन्दू तेरी चाची जो बडी. चटकोर है
चमचों को चम्मचों से चटनी चटाती हैं
चारपाई चर-चर चरचराती चार जून
चौकड़ी. और चौकड़ा. पे चक्कर चलाती है
चाचा को चौबीस घण्टे चाकुओं से चोंकती वह
चपकियों की चाट से चमड़ी. चटकाती है
चाल चले चूड़ी. बाजे मन को लुभाते नैन
चालीस चौरासी के चुगुंडुओ पे चलाती हैं
चौदह से चौबीस तक चाल बाज बनी रही
चौंतीस से अब तक चना जो चबाती हैं
रंग ढंग रूप उसका जैसे चमगेदुड़ी से
चूड़ियों की चन -चन से सोये को जगाती हैं
रानी महारानी जैसे नखरे दिखाती रहती
रात को मधुशाला यारों को पिलाती है
चन्दू तेरी चाची जो बड़ी. चटकोर है
चमचों को चम्मचों से चटनी चटाती हैं
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बिल्ली मौसी
भूखी प्यासी बिल्ली मौसी
क्या इसको दूध पिलाऊं मॉ
कई दिनों से नहीं नहायी
क्या इसको नहलाऊं मॉ
चली गयी थी मिलने अपने
सास श्वसुर और बेटों से
भरा पुरा परिवार देख कर
लेट गयी थी रेतों पे
इसकी हालत देख के तेरी
मुनिया है अकुलायी मॉ
भूखी............
पाला पड़ा था उन कुत्तों से
गली-गली मे भागी थी
बच गयी ये भाग से अपने
जो कि बड़ी, अभागी थी
खून टपकते बदन पे इसके
क्या हल्दी तेल लगाऊं मॉ
भूखी प्यासी बिल्ली मौसी
क्या इसको दूध पिलाऊं मॉ
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बेटवा करमैता बाट्य
गोलू -मोलू करमैता निकले
रूपाया कय अम्बार लगावे
बाप का माल खियावय
माई पे डंडा चटकावे
दिन मा सोवय चद्दर ताने
मन म बाजे बाजा
हाथ म पकरे छ फैरा का
रोजय डावय डांका
बाप पे जान लुटावय
माई का बैण्ड बजावय
मॉ ममता म माई भरी है
रोवत रक्त गिरावत ब
बुढ्वा लरिकन का बुरा बतावय
फोकट कय माल लुटावत ब
सब पे धाक जमावय
माई पे डंडा चटकावे
सोच सोच के झांझर तन भ
चलत की बाजय पसली
पति पुत्र कय नियत है बिगडी
जब रूप देख लिया असली
इनका के ज्ञान सिखावय
माई पे डंडा चटकावे
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बिगड़े. बेटे
ये है बडे. बाप के बिगड़े. बेटे
साथ मे गाड़ी हाथ मे पैसा इनकी ऐसी ऐस
कान मोबाइल लगा के घूमे छिन छिन बदले भेस
दारू पी कर मस्ती मे झूमे करते होटल बाजी
कोई इनके बीच मे बोले हो उसकी बरबादी
बाप बड़ा सेना में अफसर इनकी अच्छी धौंस
इनके साथ जो भी रहता जम के करता मौज
सड़क पे चलते गाड़ी ले कर सौ की है स्पीड
पुलिस दरोगा कोई न बोले न ले कोई फीस
जब मरजी हो रात को आये इनसे कोई न पूछे
अनाप सनाप है काम ये करते कभी न मन मे सोचे
जब मरजी कालेज को जाते इनकी ये पढ़ाई
इनकी कुर्सी जो छेड़े उसकी करे पिटाई
लड़े. चुनाव कालेज मे जा कर पैसा बहाये
बेईमानी से जीत गये तो मा बाप खुशी हो जाये
जिसकी इज्जत उसकी चाहे छिन भर में मेटे
ये बडे, बाप के बिगड़े, बेटे.
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संपर्क:
शम्भू नाथ
राय यूनिवर्सिटी 486/87-उद्योग विहार, गुड़गांव (हरियाणा)
असिस्टैंट लाइब्रेरियन
ईमेल
shambhu_74@yahoo.com
परिचय:
जन्म ७/८/१९/७४
गांव कलापुर
पोस्ट रानीगंज कैथौला
जिला प्रतापगढ़ (उत्तर-प्रदेश)
शिक्षा बी.ए. डा० राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय फैजाबाद - उत्तर-प्रदेश, पुस्तकालय विज्ञान में स्नातक अन्नामलाई विश्वविद्दालय से .
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