संजय सेन सागर की कविताएँ

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कविताएँ -संजय सेन सागर व ह टूटा पुल। वह संकरा सा पुल अब भी टूटा है अब भी लोग वहां से गिरते हैं। अब भी लोग वहां मरते हैं। अब भी...

कविताएँ

-संजय सेन सागर

ह टूटा पुल।

वह संकरा सा पुल अब भी टूटा है

अब भी लोग वहां से गिरते हैं।

अब भी लोग वहां मरते हैं।

अब भी बांटे जाते हैं

वीरता पुरस्कार - मरनें वालों

को बचाने में।

पर वह संकरा सा पुल अब भी टूटा है।

अस्त हो सकता है सूरज,

डूब सकता है चांद हमेशा के लिए

पर टूटा है और टूटा ही रहेगा

वह संकरा सा पुल।

बदल चुके कई सत्ताघारी,

शहीद हो चुके कई लोग

पर नहीं बदली तो हालत

उस संकरे पुल की ।

वह संकरा सा पुल अब भी टूटा है।

बड़े बड़े वादों से नाता है

उस पुल का।

अब तो कांप सी जाती है वादों

के भार से पुल की दीवारें।

टूट चुके वे सभी वादे जो जोड़ते थे

पुल को, आ गयी है उनमें दरारें

बिल्कुल पुल की तरह।

बदलेगी अभी अनेकों सरकारें,

बनेगी अभी एक और इबारत, नये वादों की

पर, वह संकरा सा पुल अब भी टूटा है

और सदा टूटा ही रहेगा

वह टूटा, संकरा पुल।

...................

वह मुझे मां कहता है।

वह अब भी मुझे मां कहता है।

सताता हैं रुलाता है

कभी कभी हाथ उठाता है पर

है वह मुझे मां कहता है।

मेरी बहू भी मुझे मां कहती हैं

उस सीढ़ी को देखो,मेरे पैर के

इस जख्म को देखो,

मेरी बहू मुझे

उस सीढ़ी से अक्सर गिराती है।

पर हाँ,वह मुझे मां कहती है।

मेरा छोटू भी बढिया हैं,जो मुझको

दादी मां कहता है,

सिखाया था ,कभी मां कहना उसको

अब वह मुझे डायन कहता हैं

पर हाँ

कभी कभी गलती सें

वह अब भी मुझे मां कहता है।

मेरी गुड़िया रानी भी हैं ,जो मुझको

दादी मां कहती है

हो गई हैं अब कुछ समझदार

इसलिए बुढ़िया कहती हैं,

लेकिन हाँ

वह अब भी मुझे मां कहती है।

यही हैं मेरा छोटा सा संसार

जो रोज गिराता हैं

मेरे आंसू ,

रोज रुलाता हैं खून के आंसू

पर मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि वे सभी

मुझे मां कहते है।

--------.

मैं और मेरा अलाव

सुनसान घर के सुनसान कमरे में

रहते है सिर्फ दो तन्हा लोग

इक में और इक मेरा अलाव।

जलते है दोनों

मैं जलता हूं तन्हाई में

तो वो जलता है सर्द हवाओं में!

करते है बातें कभी वफा की तो

कभी बेवफाई की।

कहता हैं तन्हा अलाव बड़ी मतलबी

है ये दुनिया, छोड़ जाती है

सर्द मौसम के बाद।

मैं कहता हूं

ना सर्दी,ना गर्मी,ना बरसात

यहाँ तो लोग छोड़ जाते

हर इक अपने मतलब

के बाद।

कहता हैं अलाव बेहद सताती है

दुनिया,ठंडी होती है

जब दिल की आग तो फिर

जलाती हैं दुनिया।

मैं कहता हूं

नहीं नहीं दो दिलों में जली

इश्क,मुहब्बत और प्यार की आग को

बुझाती है दुनिया।

कहता हैं तन्हा अलाव

वो उनकी यादें,वो उनका साथ

मुझे अक्सर याद आता है और अक्सर

तन्हाई में चुपके से रुलाता है।

मैं कहता हूं

हाँ हाँ आते तो हैं उनके ख्याल

पर ना वे मुझे सताते है ना रुलाते है

वे तो अजनबी की तरह दिल के दरवाजे

से ही लौट जाते है।

सुनसान घर के सुनसान कमरे में

करते है बातें।

कभी वफा की तो कभी बेवफाई की

दो तन्हा लोग

इक मैं और इक मेरा अलाव।

....................-

न जानूं कौन हूँ मै,

मै न जानूं कौन हूं मैं

लोग कहते हैं सबसे जुदा हूं मैं

मैंने तो प्यार सबसे किया

पर न जाने कितनों ने धोखा दिया।

चलते-चलते कितने ही अच्छे मिले,

जिनको बहुत प्यार दिया,

पर कुछ लोग समझ ना सके,

फिर भी मैंने सबसे प्यार किया।

दोस्तों की खुशी से ही खुशी है,

तेरे गम से हम दुखी है,

तुम हंसो तो खुश हो जाऊंगा।

तेरी आंखों में आंसू हो तो मनाऊँगा।

मेरे सपने बहुत बड़े हैं

पर अकेले हैं हम, अकेले हैं,

फिर भी चलता रहूंगा

मंजिल को पाकर रहूँगा।

ये दुनिया बदल जाए कितनी भी,

पर मैं न बदलूंगा,

जो बदल गये वो दोस्त थे मेरे

पर कोई न पास है मेरे।

प्यार होता तो क्या बात होती

कोई न कोई तो होगी कहीं न कहीं

शायद तुम से अच्छी या

कोई नहीं इस दुनिया में तुम्हारे जैसी।

आसमान को देखा है मैंने, मुझे जाना वहां है

जमीन पर चलना नहीं, मुझे जाना वहां है,

पता है गिरकर टूट जाऊँगा, फिर उठने का विश्वास है

मैं अलग बनकर दिखाऊँगा।

पता नहीं ये रास्ते ले जाएं कहां,

न जाने खत्म हो जाएं, किस पल कहां,

फिर भी तुम सब के दिलों में जिंदा रहूंगा,

यादों में सब की, याद आता रहूंगा।

................-

मैं मजदूर हूं

मैं मजदूर हूं

तड़प रहा हैं दिल, ठहर रही हैं सांसें।

नहीं रोक सकता पर कदमों को

मैं बड़ा मजबूर हूं क्योंकि

आज इस जन्म में

मैं इक मजदूर हूं।

लाख बनायें आशियां, लाख बनायें मंदिर

फिर भी इस पावन घरा पर

सोने को मजबूर हूं ।

क्योंकि मैं इक लाचार और गरीब सा

मजदूर हूं।

खूब उगाई फसलें हमने, खूब बहाई नहरें

फिर भी दर्द भूख का सहने

को मजबूर हूं।

क्योंकि आज इस जन्म में

मैं इक मजदूर हूं।

नहीं मुस्कुरा सकता हूं मैं, ना बहा

सकता हूं आंसू।

मैं हर पल इसी तरह

घुट घुटकर जीने को मजबूर हूं

क्योंकि आज की इस

अमीर दुनिया में, सिर्फ

मैं इक मजदूर हूं।

......................

कभी अलविदा न कहना

कभी याद आये तो, इक बार कहना

कभी सागर बनके इन आंखों से बहना

पर कभी किसी भी हाल में तुम

अलविदा न कहना।

तुम साथ रहो या जुदा रहो हर वक्त

मुझे याद करना, खुशी मिले या गम

मिले तुम्हें। पर कभी मुझसे

अलविदा न कहना

गुजरे पल जो साथ हमारे, याद उन्हें तुम

करना, लाख करे दुनिया रुसवाई, दिल में

ही हमको रखना। कभी भी हो यार पर

कभी अलविदा न कहना।

बिजली चमके या तूफां आये, हौसला तुम

रखना गर टूट जाओ जो तुम खुद से ही

तो सिर्फ आंख बंद बस करना, पर कभी

यार तुम अलविदा न कहना।

पूछे गर मेरे आंसू तो, उनको कुछ मत कहना

सवाल करें जब आंसू ही तेरे, ता मुझे

बेवफा कहना। कितना ही दूर रहँ मैं पर

कभी अलविदा न कहना।

टूट जाये जो सांस तुम्हारी, आस मुझ पर

रखना, सूख जाये जो लव तुम्हारे तो

बस सागर कहना। मर कर भी यार

तुम कभी अलविदा न कहना।

-----------------.

एक लड़की मुझे सताती है

अंधेरी सी रात में एक खिड़की

डगमगाती है

सच बताऊँ यारों, एक लड़की

मुझे सताती है।

भोली भाली सूरत उसकी

मखमली सी पलकें है

हल्की इस रोशनी में, मुझे

देख शर्माती है

सच बताऊँ यारों, इक लड़की

मुझे सताती है

बिखरी-बिखरी जुल्फें उसकी

शायद घटा बुलाती है, उसके

आंखों के काजल से बारिश

भी हो जाती है

दूर खड़ी वो खिड़की पर

मुझे देख मुस्कुराती है।

सच बताऊँ यारों, इक लड़की

मुझे सताती है

उसकी पायल की छम-छम से

एक मदहोशी सी छा जाती है

ज्यों की आंख बंद करुं मैं

तो, सामने वो जाती है

सच बताऊँ यारों, इक

लड़की मुझे सताती है

अंधेरी सी रात में एक खिड़की

डगमगाती है

ज्यों ही आंख खोलता हँ

मैं तो ख्वाब वो बन जाती है

रोज रात को इसी तरह

इक लड़की मुझे सताती है।

-----------------.

एक भोली सी गाय।

रोज सुबह खड़ी-खड़ी रंभाती है।

ऊँचे दरवाजों पर, नहीं चीर

पाती उसकी आवाज

बजते अश्लील संगीतों को।

थक हार कर लड़खड़ाते

कदमों से खोजती है

पेड़ों को, हरियाली को

बहती नदियों को।

पर नहीं मिलता उसको

ऐसा कोई निशां

पूछती है पता

कभी रोकर, तो कभी

रंभाकर

ढूंढती है उन रास्तों को

जो जाते हो उसके गांव

की ओर।

कोसती है

उस दिन को जब

बेचा गया था दलालों के

हाथ उसको।

याद करती है

गाँव में गुजरे, वे सुखद

पल।

पर नहीं मिले वे सुख

यहां, न ही मिले वे सुख

यहां, न ही मिलने

की आस है

रोज सुबह खड़ी-खड़ी रंभाती है

ऊँचे दरवाजों पर,

एक प्यारी, भोली-सी गाय।

-------------------.

बापू तेरे प्यार में.

बापू तेरे प्यार में बहता था संसार

सत्य अहिंसा और धर्म का लगा था अंबार

लेकिन वो दिन लद गये

आज उनमें नेता बस गये।

बापू मेरे दुखी मत होना, ये तो रीत पुरानी हैं

किया भला जिसने उसने ही बुराई पाई है।

मेरी सदा यह याद रखना

अब ना होगा गाँधी ,

न नेहरू के दिन आयेंगे

अब तो वे दिन आये है

जब लालू ही पूजे जायेंगे।

दोष नहीं देता मैं बापू तुमको,

ये तो आपकी भलमनसाहत थी

तब भी भारत आपका था ,

आज भी आपकी अमानत हैं।

बापू तेरे कदमों में बिछता था, संसार

बुरा बोलना, बुरा देखना ,बुरा सुनना

था सब बेकार ।

अब उसूल बदल चुके हैं,

सब पश्चिम में ढल चुके हैं

बापू मेरे दुखी मत होना , ये तो रीत पुरानी हैं

पानी हुआ पुराना हैं सारी दुनिया शराब की दीवानी है।

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परिचय

संजय सेन सागर

जन्म 10 जुलाई 1988 म.प्र सागर

उपलब्धि

संजय सेन सागर की कहानी इक अजनबी को ब्राइटनेस पब्लिकेशन ऑफ दिल्ली की तरफ से राइस ऑफ राइटर अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

यंग राइटर्स फाउंण्डेशन ऑफ इंडिया गुप्र के सदस्य

संपर्क:

ड़ाँ निशीकांत तिवारी के पीछे, आदर्श नगर ,मकरोनियाँ चौराहा, सागर

मध्यप्रदेश पिन 470004

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. sanjay ji aapki saari poem padi behad acchi poem likhte hai aap
    aapki poem se is blog main char chaand lag gaye hai!!!!!

    जवाब देंहटाएं
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आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र 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रचनाकार: संजय सेन सागर की कविताएँ
संजय सेन सागर की कविताएँ
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