कविता मानस की पीड़ा -सीमा सचदेव ( पिछले अंक से जारी...) मानस की पीड़ा भाग 18. दुविधा में श्री राम (भाग 2) चारों तरफ दीपम...
कविता
मानस की पीड़ा
-सीमा सचदेव
(पिछले अंक से जारी...)
मानस की पीड़ा
भाग18. दुविधा में श्री राम (भाग 2)
चारों तरफ दीपमाला
श्री राम अवध आने वाला
सिया राम का जय जयकार हुआ
रौशन अवध का हर द्वार हुआ
चौदह वर्ष नहीं दिया जला
बिन तेल बाती हर दिल जला
पर बीत गई थी काली रात
अब अवध में भी होगी प्रभात
मार्ग में टिकी थी सबकी नज़र
सिया राम आएँगे इसी डगर
दूर से आया था विमान
देखे उसमें सिया लखन राम
पुष्पों की वर्षा होने लगी
प्रकृति भी धैर्य खोने लगी
चलता हुआ समय भी थम सा गया
रमा -राम में हर कोई रम ही गया
देखी तीनों की शोभा अपार
माताओं के हृदय में भरा दुलार
कितने ही सुहाने थे वे पल
बह रहा नयनों से निर्मल जल
दुख के अश्रु तो खत्म हुए
खुशी के आँसू सब लिए हुए
सबके ही नेत्र थे हुए सजल
वर्षों बाद आया था पल
श्री राम तो सबसे गले मिले
नहीं कोई मन में है शिकवे गिले
आज कैकेई भी बाहर आई
होगी चौदह वर्ष की भरपाई
श्री राम को गले लगाया था
आज ही उसने सुख पाया था
आते ही उसने यूँ बोला
अब राम का राज्याभिषेक होगा
खुश हुई सुन के सारी परजा
कैकेई का उतरेगा अब करजा
राज्याभिषेक हो गया सम्पन्न
अब खुश ह कैकेई का मन
पर होती है इक पल की गलती
उसकी कितनी है सज़ा मिलती
फिर से उस दोराहे आ खड़े
जहां कांप ही जाएँ बडे - बडे
घुमा के वक़्त फिर लाया वहां
पहले ही खड़े हुए थे जहां
अब उससे भी भयानक मञ्जर
चला फिर से सीने पर खङ्जर
जब कह रहा पत्नी से धोबी
सीता नहीं अब पावन रही
वह रावण के महलों में रही
क्या कहे आज जो नहीं कही
बेशक उसका अपहरण हुआ
पर सच्च रावण ने उसे छुआ
सुन कर यह राम तो काँप गया
भावना धोबी की भाप गया
ऐसा ही सोचती है प्रजा
कि अवध का है ऐसा राजा
जिसकी पत्नी का हरण हुआ
किसी बेगाने ने उसे छुआ
अग्नि परीक्षा भी दी थी
सिया ने पावनता सिद्ध की थी
कितना मुश्किल नारी के लिए
वह इस पीड़ा के साथ जिए
नहीं लाँछन कोई सहा जाता
सीता तो जग जननी माता
उसको नहीं बख्श रहे है लोग
कितना भयानक सामाजिक रोग
मैं जानता हूँ सिया की पावनता
पर कैसे समझे यह जनता
परीक्षा कितनी देगी सीता
जीवन जिसका दुख में बीता
पति हूँ , उसका नहीं सह सकता
नहीं दुख उसे और मैं दे सकता
ऊपर से सीता है गर्भवती
क्या करे अब यह मजबूर पति
और अब मैं हूँ इक राजा
चाहती है क्या मुझसे प्रजा
पति हूँ मैं साथ रखूँ पत्नी
यह मेरी इच्छा है अपनी
या राजा बन कर त्याग करूँ
और पत्नी वियोग में पीड़ा जरूँ
दुविधा में फँसा है राम का मन
मन में रहती हर क्षण उलझन
फिर से दुविधा ने घेरा है
मन में उलझन का डेरा है
क्या करूँ? अब सिया कहाँ जाएगी
क्या मेरे बिन वह रह पाएगी?
माना रह जाएगी अकेली सिया
सोचता हूँ उस बच्चे का क्या
जिसने नहीं अभी आँखें खोली
नहीं जानता दुनिया की बोली
उसको किस बात की मिले सज़ा
कितना मजबूर है यह राजा
बच्चे को छोड़ दे एक पिता
कैसे सँभालेगी उसे सीता?
कितना अभागा है आज राजा
ऐसे बच्चे को दे सज़ा
जिसने अभी जन्म भी लिया नहीं
दुनिया में आ के जिया नहीं
और सीता को भी कहाँ भेजूं
उससे मैं यह कैसे कह दूँ
अब छोड़ के तुम चली जाओ मुझे
नहीं संग में रख सकता मैं तुझे
जिस पत्नी ने दिया है हर पल साथ
चौदह वर्ष वन में काली रात
सब कष्ट सहे पर नहीं बोली
वन के दुखों से नहीं डोली
ऊपर से अपहरण का दुख
नहीं देखा उसने कोई सुख
अब यह दुख उससे भी भारी
नहीं लाँछन सह सकती नारी
पर मैं सबको समझाऊँ कैसे
पावन है सिया यह बताऊँ कैसे
जनता नहीं मानेगी मेरी बात
राम सोचते ही रहते सारी रात
रातों को नींद नहीं आती
दिल से यह बात नहीं जाती
क्या करे और क्या न करे राम
नहीं राम के मन में है विश्राम
किसी को भी पीड़ा बताते नहीं
और दिल का दर्द सुनाते नहीं
दुविधा ने राम को भरमाया
कुछ भी तो समझ में नहीं आया
देखो अब कुदरत की लीला
और राम को भी इक मौका मिला
मिलने आए कुछ वनवासी
और सीता करने लगी हँसी
मुझे याद आते है वो वन
फिर से वन जाने को है मन
मुझे फिर से वन दिखला लाओ
फिर से इक बार घुमा लाओ
वह हँसी भी कितनी पड़ी भारी
फिर से वन में गई वह नारी
लक्ष्मण को राम ने समझाया
जनता का भाव भी बतलाया
सिया को फिर जाना होगा वन
उसे छोड़ के आएगा भाई लखन
जिन महलों में डोली में आई
उन्हीं महलों ने दे दी विदाई
हर नारी का होता अरमाँ
पत्नी बनकर देखती सपना
अर्थी भी उस घर से जाए
जिस घर में वह ब्याह कर आए
पर जानकी तो हो गई अनाथ
छूट गया था सबका साथ
मजबूर सभी कोई न बोला
आँसुओं को नहीं जाता तोला
चुपचाप सभी बस रोते रहे
सिया को जाते हुए देखते रहे
सिया तो फिर से वन चली गई
पर राम को सिया कभी भूली नहीं
नहीं राम की पीड़ा का कोई अन्त
राजा को भी है दुख अनन्त
दुविधा तो बेशक हुई खत्म
पर हृदय में बैठ गया था गम
वह गम फिर कभी भी मिटा नहीं
दुख का बादल कभी छटा नहीं
नहीं सुख की कभी हुई बरसात
नहीं जीवन में हुई प्रभात
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(क्रमशः अगले अंकों में जारी....)
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संपर्क:
सीमा सचदेव
एम.ए.हिन्दी,एम.एड.,पी.जी.डी.सी.टी.टी.एस.,ज्ञानी
7ए , 3रा क्रास
रामजन्य लेआउट
मरथाहल्ली बैंगलोर -560037(भारत)
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