डॉ. भावना कुँअर की कहानी : गहना

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कहानी गहना -डॉ. भावना कुँअर आज़ भी जब मुझे रूपा की बीती जिंदगी याद आती है तो मेरा रोम-रोम सिहर उठता है कलेज़ा पीड़ा के कारण टूटने लगता ह...

कहानी

गहना

-डॉ. भावना कुँअर

आज़ भी जब मुझे रूपा की बीती जिंदगी याद आती है तो मेरा रोम-रोम सिहर उठता है कलेज़ा पीड़ा के कारण टूटने लगता है, नफ़रत होने लगती है इस संसार से…

रूपा जो मेरी सबसे करीबी सहेली थी। हम दोनों एक ही कॉलेज ही पढ़ते थे। रूपा मध्यम वर्गीय परिवार में पली बढ़ी थी, अभी उसकी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई थी कि एक बड़े घराने से उसके लिये रिश्ता आया और आनफ-फानफ में रूपा की शादी रोहित के साथ हो गयी , जो एक बहुत बड़े बिज़नेस मैन परिवार से था।

उसकी शादी को आज़ तीसरा ही दिन था, घर में बड़ी पूज़ा रखी गयी थी। रूपा की सास ने रूपा को पूज़ा का जोड़ा निकाल कर दिया और जल्दी से नहा धोकर तैयार होने को कहा, स्नान के समय रूपा ने सारे गहने उतारकर बाथरूम में रख दिये और स्नान करने के बाद वह उनको लेना भूल गयी, जब वह बाहर आयी तो देखा सभी लोग जोर-शोर से पूज़ा की तैयारी में जुटे थे। रूपा को ज़रा भी याद नहीं था कि उसने गहने बाथरूम में ही छोड़ दिये हैं। जब उसकी सास ने उसको बिना गहनों के देखा तो बोली-" रूपा तुमने गहने क्यों नहीं पहने?" अब रूपा के तो होशो-हवास ही उड़ गये क्योंकि उसको याद आ गया था कि वो गहने बाथरूम में ही छोड़ आयी है और घर में ना जाने कितने नौकर-चाकर हैं कहीं किसी ने चुरा लिये तो उसका क्या होगा कहीं उसी पर इल्ज़ाम न लग जाये क्योंकि मध्यम वर्गीय परिवार की होने के कारण कहीं ये अमीर लोग उसको ही चोर न समझ बैठे। तभी उसकी सास ने उसको सोच में डूबा देखकर सवाल किया-"रूपा बेटे तुमने गहने क्यों नहीं पहने? क्या तुम्हें वो गहने पंसंद नहीं हैं? अगर नहीं तो कोई बात नहीं मैं तुम्हें दूसरे दे देती हूँ उनको पहन लेना…"

तभी रूपा जैसे नींद से जागी हो वो बोली-"नहीं मम्मी जी ऐसी कोई बात नहीं है मैं बाथरूम में रखकर भूल गयी हूं अभी लाती हूँ…” बस रूपा की सास का इतना सुनना था कि वो करीब-करीब बिफर ही पडी -'अरे ये क्या किया तुमने ? तुम इतनी लापरवाह हो तुम्हें पता भी है ना घर में कितने नौकर-चाकर हैं अब गहने तो नहीं मिलने वाले।"

कहते-कहते वो बाथरूम की ओर दौड़ी और वहाँ गहने ना पाकर उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया घर के सारे लोग एकत्रित हो गये, रूपा का रो-रोकर बुरा हाल था, वो बेहाल सी होकर अपने कमरे की तरफ दौड़ी और वहाँ जाकर फूट-फूटकर कर रोने लगी उसके आँसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे , तभी उसकी निगाह ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी तो मारे खुशी के वो उछल पड़ी गहने सामने ही टेबल पर पड़े थे, उसने अपनी सास को आवाज़ लगाई सभी लोग वहाँ आ गये और वहाँ रखे गहने देखकर सभी चौंक पड़े सबकी जान में जान आ गयी नौकरों से अभी किसी ने ना ही कुछ पूछा था ना ही बताया था…

शान्ति नाम की उनकी नौकरानी रूपा के कमरे की ओर ही आ रही थी वह बोली-" बीबीजी हम बाथरूम साफ कर रहे थे तो हमने देखा आपके गहने वहाँ पड़े हैं तो हमने उनको आपके कमरे में लाकर रख दियें हैं आप देख लीजिये… रूपा डबडबाई अँखों से बस उसको थैंक्स ही कह पायी आज़ विद्या ने उसे लज्ज़ित होने से बचा लिया था। वह दिल ही दिल में उसे दुआएँ दे रही थी।

धीरे-धीरे समय बीतता गया रोहित के साथ, जो बहुत ही अज़ीब किस्म के व्यक्तित्व का व्यक्ति था, पैसे का गुरूर, शराब पीना, मौज़ मस्ती ही उसका शौंक था न ही उसे रूपा की परवाह थी, न ही घर की, बस उसकी दुनिया तो उसके दोस्त और उसके शौंक, अब ऐसे में रूपा एक बोझिल ज़िंदगी बिताने लगी दिनभर काम करने के बाद राहुल का इन्तज़ार करना और राहुल का शराब पीकर देर रात में आना और खाना खाकर सो जाना यही अज़ीब सी ज़िंदगी जीने लगी थी रूपा। वहाँ न तो उसको कोई समझने वाला ही था और न ही सुनने वाला था , पर हाँ, सुनाने वाले सब थे।

हाँ इसी बीच शान्ति जरूर उसकी सहेली की तरह हो गयी थी अपना दुख-सुख वह उसको ही बताया करती थी शान्ति बस इतना ही कह पाती -"बीबी जी ये बड़े लोग हैं इनकी बातें क्या बतायें हम…”

एक दिन सभी लोग किसी शादी में गये हुये थे, रूपा तबियत खराब होने के कारण घर पर ही थी, सभी नौकर-चाकर भी अपने-अपने घर जा चुके थे, रूपा की आँखों में नींद का नामोनिशान न था, रात के बारह बज़ चुके थे, टी०वी देखते -देखते आँखों में भी दर्द होने लगा था, उसने एक नींद की गोली खाई और आँख बन्द करके बिस्तर पर लेट गयी, ना जाने कब नींद ने उसे अपनी आगोश में ले लिया, तभी उसने किसी का स्पर्श महसूस किया, उसने करवट ली, सोचा राहुल आ गया होगा, मगर ये क्या? ये राहुल नहीं राहुल के पिता थे, मारे डर और गुस्से से उसके चेहरा तमतमा रहा था, उसने अपने आपको छुड़ाने की हर तरह से कोशिश की, पर नाकामयाब रही, उसने मज़बूर होकर अपने ससुर के सामने हाथ जोड़े, भगवान का वास्ता दिया, पर उस शैतान के सर पर तो वासना का भूत सवार था, रूपा रोती रही, चिल्लाती रही, पर उसकी चीखें तब तक दीवारों से टकराकर वापस आती रहीं जब तक की वें सिसकियों में ना बदल गयीं। कुछ समय बाद सभी लोग वापस आ गये किसी ने भी उसकी सिसकियों की ओर ध्यान नहीं दिया, सब अपने-अपने कमरों में चले गये, राहुल भी मुँह फेरकर सो गया , जब राहुल सुबह उठा तो उसने राहुल को सारा वृतान्त सुनाया, राहुल ने कोई खास प्रतिक्रिया नहीं की, हाँ अपनी माँ को जरूर बता दिया और माँ ने सभी घरवालों को बताया। सभी रूपा को समझाने लगे – “देखो रूपा तुम ये बात किसी को मत बताना देखो घर की ही तो बात है वो कोई गैर तो नहीं है तुम्हारे ससुर जी ही हैं ना क्या फर्क पड़ता है, ऐसा तो हाई सोसाईटीज़ में चलता ही है रूपा यह सब सुनकार स्तब्ध रह गयी और सोचने लगी कि यह वही परिवार है जिसने उसके विवाह के तीन दिन बाद ही सोने के आभूषणों के लिये उसको कितनी जली कटी सुनायी और आज़ जब उसकी अस्मत के गहने को तार-तार किया गया तो इन ऊँची बिल्डिगों वालों ने उफ ! तक नहीं की।

ये लोग क्या समझें कि इज्जत का गहना अनमोल होता है ये तो तो चाँदी, सोने, हीरे जवाहरात की ही कीमत जानते हैं, रूपा ने शान्ति को बुलाया और रो-रोकर उसको सारी बात बताई, शान्ति भी बुरी तरह बिलखने लगी बोली-"बीबी जी आप दिल छोटा मत करो भगवान इनके किये की सज़ा इनको जरूर देगा, बीबी जी छोटे मुँह और बड़ी बात पर राहुल बाबा भी तो रोज़ -रोज़ नयी-नयी जगह जाते हैं, तभी तो रात को देर से घर आते हैं, ये बात तो सभी जानते हैं सिवाय आपके।

अब रूपा के पास कोई चारा नहीं था सिवाय खुदकुशी के क्योंकि इन रईसज़ादों के साथ लड़ने की ना तो उसमें ही ताकत थी, ना ही उसके घरवालों में ।

रूपा बस शान्ति का चेहरा देखती रही और उसकी आँखें शून्य में कहीं अटक गयी और वो हमेशा- हमेशा के लिये मुक्त हो गयी उस उच्चवर्गीय परिवार से।

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(लेखिका परिचय व संपर्क सूत्र के लिए देखें लेखिका का ब्लॉग दिल के दरमियां)

COMMENTS

BLOGGER: 7
  1. हमारे समाज का एक बजबजाता कड़वा सच बताती है यह कहानी। नया साल मंगलमय हो भावना जी को और आपको भी।

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  2. बेनामी2:04 am

    भावना जी की कहानी गहना पढकर बडी िनराशा हुइ। खुदकुशी किसी समसया का हल नहीं है। कहानी का अंत इससे भी बेहतर हाे सकता था। इससे समाज में निराशा का संदेशा जाता है जिसे मैं उचित नहीं मानता।
    ऒम परकाश तिवारी

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  3. अनिल जी आपको भी नव वर्ष की ढेर सारी मंगलकामनायें। सच कहा आपने कुछ सच जो बहुत
    कडवे होतें हैं जिनसे जिन्दगी का अर्थ ही बदल जाता है...धन्यवाद

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  4. ओम प्रकाश जी आपको नववर्ष की बहुत सारी शुभकामनायें...
    ओम जी आपने लिखा कि कहानी का इससे भी अच्छा अन्त हो सकता था बिल्कुल सही कहा आपने जैसे कि वह गुनहगार से बदला लेने के लिये उसे बर्बाद कर सकती थी,उसे जान से मार सकती थी उसे जमाने के सामने लाकर कानून से सजा दिला सकती थी पर वो सब तो वह तब करती जब उस सदमें को बर्दाश्त कर पाती...
    उसके सम्मान को उसी के पिता समान ससुर ने बेदर्दी से रौंद डाला जिसे वह बर्दाश्त नहीं कर पायी और इतनी बुरी तरह आहत हुई कि उसे आत्महत्या करने की जरूरत नहीं पड‌़ी उस सदमें ने उसकी जान ले ली कुछ सदमें इतने ही दर्दनाक होते हैं...

    कि जान पर बन आती है और अस्मत तो सबसे बड़ा गहना है एक औरत के लिये मेरा उद्देश्य इस कहानी के माध्यम से समाज के इस कटु सत्य को उज़ागर करना था इस कारण ही मैंने इसको दुखान्त रखा .

    आपकी कहानी पढ़ी बहुत अच्छी लगी आजकल तो लड़कियाँ लड़कों से भी आगे हैं आज़ मानसिकता बदल रही है हॉ अस्मत को खतरा आज़ भी बना है आये दिन समाचार सुनने और देखने में आते हैं इसी का शिकार थी मेरी नायिका भी...

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  5. भावना जी नया साल आपकॊ भी मुबारक हॊ।
    यह सही है कि कुछ सदमे बरदाशत नहीं हॊ पाते। लेकिन मेरा मानना है कि एक रचनाकार कॊ आशावान हॊना चाहिए। शायद मैं गलत हॊॐ लेकिन मेरा मानना है कि रचनाकार जॊडता है तॊडता नहीं। हॊ सकता है कि आपकी नायिका के साथ यह दुखद घटना घटी हॊ लेकिन आप खुद सॊचें नायिका की मौत से कया संदेशा जाता है।
    Om Prakash Tiwari
    09915027209

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  6. माननीय तिवारी जी
    उम्र और अनुभव में तो मैं आपसे छोटी ही हूँ इसलिये आपके दिशानिर्देश के लिये आपकी
    आभारी हूँ एवं आगे के लेखन में उनको लाने का प्रयास करूँगी।
    साथ-साथ ही मैं आपका ध्यान इस कहानी के कुछ प्रमुख पहलुओं पर भी दिलाना चाहूँगी...
    १.कहानी की नायिका जो अपनी शिक्षा भी पूर्ण नहीं कर पायी थी और उसका विवाह कर दिया
    गया था जो हमारे समाज़ की एक निम्न सोच को इंगित करता है।
    मैंने ये संदेश देना चाहा था कि लड़कियों को भी उच्च शिक्षा मिलनी चाहिये जो मिल भी रही है
    किन्तु अभी भी समाज के कुछ हिस्सों में लड़कियों की शिक्षा से अधिक उनके शीघ्र विवाह को महत्व दिया जाता है जिससे उनको दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है।
    २ मैंने उन कुछ उच्च वर्गीय परिवारों पर भी प्रकाश डालने का प्रयास किया है जिनमें जीवन मूल्यों के बदले में पैसों को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
    ३ यहाँ अपने वतन से दूर रहने के कारण आप जैसे साहित्यकारों का अमूल्य साहित्य पढने का पूरा अवसर तो मिल नहीं पाता है इसलिये हमारे लेखन में अनुभवहीनता रह जाती है किन्तु फिर भी अपनी सभ्यता और संस्कृति से अपने लेखन के माध्यम से जुड़े रहने का प्रयास करते हैं ।
    आशा है भविष्य में भी आपका दिशा निर्देशन यूँ ही मिलता रहेगा..

    जवाब देंहटाएं
  7. भावना जी
    आशा है सेहतमंद हॊंगी।
    दिशा निर्देश की बात बडी हॊ जाती है। मैं खुद कॊ इस लायक नहीं पाता। आप की कहानी पढी तॊ मुझे जॊ महसूस हुआ वह लिख दिया। यह केवल मेरा विचार है। हर रचनाकार का अपना अनुभव हॊता है। उसी आधार पर वह लेखन करता है।

    जवाब देंहटाएं
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आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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रचनाकार: डॉ. भावना कुँअर की कहानी : गहना
डॉ. भावना कुँअर की कहानी : गहना
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