छत्तीसगढ़ और पंडित शुकलाल पांडेय

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प्रो. अश्विनी केशरवानी भव्य ललाट, त्रिपुंड चंदन, सघन काली मूँछें और गांधी टोपी लगाये साँवले, ठिगने व्यक्तित्व के धनी पंडित शुकलाल पांडेय...

shuklal pandey

प्रो. अश्विनी केशरवानी

Ashwini kesharwani (WinCE) भव्य ललाट, त्रिपुंड चंदन, सघन काली मूँछें और गांधी टोपी लगाये साँवले, ठिगने व्यक्तित्व के धनी पंडित शुकलाल पांडेय छत्तीसगढ़ के द्विवेदी युगीन साहित्यकारों में से एक थे.. और पंडित प्रहलाद दुबे, पंडित अनंतराम पांडेय, पंडित मेदिनीप्रसाद पांडेय, पंडित मालिकराम भोगहा, पंडित हीराराम त्रिपाठी, गोविंदसाव, पंडित पुरूषोत्तम प्रसाद पांडेय, वेदनाथ शर्मा, बटुकसिंह चौहान, पंडित लोचनप्रसाद पांडेय, काव्योपाध्याय हीरालाल, पंडित सुंदरलाल शर्मा, राजा चक्रधरसिंह, डॉ. बल्देवप्रसाद मिश्र और पंडित मुकुटधर पांडेय की श्रृंखला में एक पूर्ण साहित्यिक व्यक्ति थे। वे केवल एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि एक संस्था थे। उन्होंने संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू और छत्तीसगढ़ी भाषा में बहुत सी रचनाएं लिखीं हैं। उनकी कुछ रचनाएं जैसे छत्तीसगढ़ गौरव, मैथिली मंगल, छत्तीसगढ़ी भूल भुलैया ही प्रकाशित हो सकी हैं और उनकी अधिकांश रचनाएं अप्रकाशित हैं। उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ियापन की स्पष्ट छाप देखी जा सकती है। छत्तीसगढ़ गौरव में ''हमर देस'' की एक बानगी देखिये :-

ये हमर देस छत्तिसगढ़ आगू रहिस जगत सिरमौर।

दक्खिन कौसल नांव रहिस है मुलुक मुलुक मां सोर।

रामचंद सीता अउ लछिमन, पिता हुकुम से बिहरिन बन बन।

हमर देस मां आ तीनों झन, रतनपुर के रामटेकरी मां करे रहिन है ठौर॥

घुमिन इहां औ ऐती ओती, फैलिय पद रज चारो कोती।

यही हमर बढ़िया है बपौती, आ देवता इहां औ रज ला आंजे नैन निटोर॥

राम के महतारी कौसिल्या, इहें के राजा के है बिटिया।

हमर भाग कैसन है बढ़िया, इहें हमर भगवान राम के कभू रहिस ममिओर॥

इहें रहिन मोरध्वज दानी, सुत सिर चीरिन राजा-रानी।

कृष्ण प्रसन्न होइन बरदानी, बरसा फूल करे लागिन सब देवता जय जय सोर॥

रहिन कामधेनु सब गैया, भर देवै हो लाला ! भैया !!

मस्त रहे खा लोग लुगैया, दुध दही घी के नदी बोहावै गली गली अउ खोर॥

सबो रहिन है अति सतवादी, दुध दही भात खा पहिरै खादी।

धरम सत इमान के रहिन है आदी, चाहे लाख साख हो जावै बनिन नी लबरा चोर॥

पगड़ी मुकुट बारी के कुंडल, चोंगी बंसरी पनही पेजल।

चिखला बुंदकी अंगराग मल, कृष्ण-कृषक सब करत रहिन है गली गली मां अंजोर॥

''छत्तीसगढ़ी भूल भुलैया'' जो ''कॉमेडी ऑफ इरर'' का अंग्रेजी अनुवाद है, की भूमिका में पांडेय जी छत्तीसगढ़ी दानलीला के रचियता पंडित सुन्दरलाल शर्मा के प्रति आभार व्यक्त करते हुए छत्तीसगढ़ी में लिखने का आह्वान करते हैं। उस समय पढ़ाई के प्रति इतनी अरूचि थी कि लोग पेपर और पुस्तक भी नहीं पढ़ते थे। पांडेय जी तब की बात को इस प्रकार व्यक्त करते हैं- ''हाय ! कतेक दुख के बात अय ! कोन्हो लैका हर कछू किताब पढ़े के चिभिक करे लागथे तो ओखर ददा-दाई मन ओला गारी देथे अउ मारपीट के ओ बिचारा के अतेक अच्छा अअउ हित करैया सुभाव ला नष्ट कर देथे। येकरे बर कहेबर परथे कि इहां के दसा निचट हीन हावै। इहां के रहवैया मन के किताब अउ अखबार पढ़के ज्ञान अउ उपदेस सीखे बर कोन्नो कहे तो ओमन कइथे-

हमन नइ होवन पंडित-संडित तहीं पढ़ेकर आग लुवाट।

ले किताब अउ गजट सजट ला जीभ लमा के तईहर चाट॥

जनम के हम तो नांगर जोत्ता नई जानन सोरा सतरा।

भुखा भैंसा ता ! ता ! ता !! यही हमर पोथी पतरा !!!

''भूल भुलैया'' सन् 1918 में लिखा गया था तब हिन्दी में पढ़ना लिखना हेय समझा जाता था। पंडित शुकलाल पांडेय अपनी पीड़ा को कुछ इस प्रकार व्यक्त करते हैं-''जबले छत्तिसगढ़ के रहवैया मन ला हिन्दी बर प्रेम नई होवे, अउ जबले ओमन हिन्दी के पुस्तक से फायदा उठाय लाइ नई हो जावे, तबले उकरे बोली छत्तीसगढ़ीच हर उनकर सहायक है। येकरे खातिर छत्तीसगढ़ी बोली मां लिखे किताब हर निरादर करे के चीज नो हे। अउ येकरे बर छत्तीसगढ़ी बोली मां छत्तीसगढिया भाई मन के पास बडे बड़े महात्मा मन के अच्छा अच्छा बात के संदेसा ला पहुंचाए हर अच्छा दिखतय। हिन्दी बोली के आछत छत्तीसगढ़ी भाई मन बर छत्तीसगढ़ी बोली मां ये किताब ला लिखे के येही मतलब है कि एक तो छत्तीसगढ़ ला उहां के लैका, जवान, सियान, डौका डौकी सबो कोनो समझही अउ दूसर, उहां के पढ़े लिखे आदमीमन ये किताब ला पढ़के हिन्दी के किताब बांच के अच्छा अच्छा सिक्षा लेहे के चिभिक वाला हो जाही। बस, अइसन होही तो मोर मिहनत हर सुफल हो जाही...'' वे आगे लिखते हैं- ''मैं हर राजिम (चंदसूर) के पंडित सुन्दरलाल जी त्रिपाठी ला जतके धन्यवाद देवौं, ओतके थोरे हे। उनकर छत्तीसगढ़ी दानलीला ला जबले इहां के पढ़ैया लिखैया आदमी मन पढ़े लागिन हे, तब ले ओमन किताब पढ़े मा का सवाद मिलथे अउ ओमा का सार होथे, ये बात ला धीरे धीरे जाने लगे हावै। येही ला देख के मैं हर विलायत देस के जग जाहीर कवि शेक्सपियर के लिखे ''कॉमेडी ऑफ इरर'' के अनुवाद ल ''भूल भुलैया'' के कथा छत्तीसगढ़ी बोली के पद्य मां लिख डारे हावौं।''

पंडित शुकलाल पांडेय के शिक्षकीय जीवन में उनकी माता का जितना आदर रहा है उतना ही धमधा के हेड मास्टर पंडित भीषमलाल मिश्र का भी था। भूल भुलैया को उन्हीं को समर्पित करते हुए वे लिखते हैं :-

तुहंला है भूल भुलैया नीचट प्यारा।

लेवा महराज येला अब स्वीकारा॥

भगवान भगत के पूजा फूल के साही।

भीलनी भील के कंदमूल के साही॥

निरधनी सुदामा के जो चाउर साही।

सबरी के पक्का पक्का बोइर खाई॥

कुछ उना गुना झन, हाथ ल अपन पसारा।

लेवा महराज, येला अब स्वीकारा॥

ऐसे प्रतिभाशाली कवि प्रवर पंडित शुकलाल पांडेय का जन्म महानदी के तट पर स्थित कला, साहित्य और संस्कार की त्रिवेणी शिवरीनारायण में संवत् 1942 (सन् 1885) में आषाढ़ मास में हुआ था। उनके पिता का नाम गोविंदहरि और माता का नाम मानमति था। मैथिली मंगल खंडकाव्य में वे लिखते हैं :-

प्रभुवर पदांकित विवुध वंदित भरत भूमि ललाम को,

निज जन्मदाता सौरिनारायण सुनामक ग्राम को।

श्री मानमति मां को, पिता गोविंदहरि गुणधाम को,

अर्पण नमन रूपी सुमन हो गुरू प्रवर शिवराम को॥

उनका लालन पालन और प्राथमिक शिक्षा शिवरीनारायण के धार्मिक और साहित्यिक वातावरण में धर्मशीला माता के सानिघ्य में हुआ। उनके शिक्षक पं. शिवराम दुबे ने एक बार कहा था-''बच्चा, तू एक दिन महान कवि बनेगा...।'' उनके आशीर्वाद से कालांतर में वह एक उच्च कोटि का साहित्यकार बना।

सन् 1903 में नार्मल स्कूल रायपुर में प्रशिक्षण प्राप्त कर वे शिक्षक बने। यहां उन्हें खड़ी बोली के सुकवि पं. कामताप्रसाद गुरू का सानिघ्य मिला। उनकी प्रेरणा से वे खड़ी बोली में पद्य रचना करने लगे। धीरे धीरे उनकी रचना स्वदेश बांधव, नागरी प्रचारिणी, हितकारिणी, सरस्वती, मर्यादा, मनोरंजन, शारदा, प्रभा आदि प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी। सन् 1913 में सरस्वती के मई के अंक में ''प्राचीन भारत वर्ष'' शीर्षक से उनकी एक कविता प्रकाशित हुई। तब पूरे देश में राष्ट्रीय जनजागरण कोर् कत्तव्य माना जाता था। देखिये उनकी एक कविता :-

हे बने विलासी भारतवासी छाई जड़ता नींद इन्हें,

हर कर इनका तम हे पुरूषोत्तम शीघ्र जगाओ ईश उन्हें।

पंडित जी मूलत: कवि थे। उनकी गद्य रचना में पद्य का बोध होता है। इन्होंने अन्यान्य पुस्तकें लिखी हैं। लेकिन केवल 15 पुस्तकें ही प्रकाश में आ सकी हैं, जिनमें 12 पद्य में और शेष गद्य में है। उनकी रचनाओं में मैथिली मंगल, छत्तीसगढ़ गौरव, पद्य पंचायत, बाल पद्य पीयुष, बाल शिक्षा पहेली, अभिज्ञान मुकुर वर्णाक्षरी, नैषद काव्य और उर्दू मुशायरा प्रमुख है। छत्तीसगढ़ी में उन्होंने भूल भुलैया, गींया और छत्तीसगढ़ी ग्राम गीत लिखा है। गद्य में उन्होंने राष्ट्र भक्ति से युक्त नाटक मातृमिलन, हास्य व्यंग्य परिहास पाचक, ऐतिहासिक लेखों का संग्रह, चतुर चितरंजन आदि प्रमुख है। उनकी अधिकांश रचनाएं अप्रकाशित हैं और उनके पौत्र श्री रमेश पांडेय और श्री किशोर पांडेय के पास सुरक्षित है।

''छत्तीसगढ़ गौरव'' पंडित शुकलाल पांडेय की प्रकाशित अनमोल कृति है। मध्यप्रदेश साहित्य परिषद भोपाल द्वारा सन् 1972 में इसे प्रकाशित किया गया है। इसकी भूमिका में पंडित मुकुटधर जी पांडेय लिखते हैं:-'' इसमें छत्तीसगढ़ के इतिहास की शृंखलाबद्ध झांकी देखने को मिलती है। प्राचीन काल में यह भूभाग कितना प्राचुर्य पूर्ण था, यहां के निवासी कैसे मनस्वी और चरित्रवान थे, इसका प्रमाण है। छत्तीसगढ़ की विशेषताओं का इसे दर्पण कहा जा सेता है। इसकी गणना एक उच्च कोटि के आंचलिक साहित्य में की जा सकती है। ''हमर देस'' में छत्तीसगढ़ के जन जीवन की जीवन्त झांकी उन्होंने प्रस्तुत की है। देखिये उनकी यह कविता :-

रहिस कोनो रोटी के खरिया, कोनो तेल के, कोनो वस्त्र के, कोनो साग के और,

सबे जिनिस उपजात रहिन है, ककरों मा नई तकत रहिन है।

निचट मजा मा रहत रहिन है, बेटा पतो, डौकी लैका रहत रहिन इक ठौर।

अतिथि अभ्यागत कोन्नो आवें, घर माटी के सुपेती पावे।

हलवा पूरी भोग लगावें, दूध दही घी अउ गूर मा ओला देंव चिभोर।

तिरिया जल्दी उठेनी सोवे, चम्मर घम्मर मही विलोवे,

चरखा काते रोटी पावे, खाये किसान खेत दिशि जावे चोंगी माखुर जोर।

धर रोटी मुर्रा अउ पानी, खेत मा जाय किसान के रानी।

खेत ल नींदे कहत कहानी, जात रहिन फेर घर मा पहिरे लुगरा लहर पटोर।

चिबक हथौरी नरियर फोरे, मछरी ला तीतुर कर डारैं।

बिन आगी आगी उपजारैं, अंगुरि गवा मा चिबक सुपारी देवें गवें मा फोर।

रहिस गुपल्ला वीर इहें ला, लोहा के भारी खंभा ला।

डारिस टोर उखाड़ गड़े ला, दिल्ली के दरबार मा होगे सनासट सब ओर।

आंखी, कांन पोंछ के ननकू, पढ़ इतिहास सुना संगवारी तब तैं पावे सोर।

जब मध्यप्रदेश का गठन हुआ तब सी.पी. के हिन्दी भाषी जिलों में छत्तीसगढ़ के जिले भी सम्मिलित थे। छत्तीसगढ़ गौरव के इस पद्य में छत्तीसगढ़ का इतिहास झलकता है :-

सी.पी. हिन्दी जिले प्रकृति के महाराम से,

थे अति पहिले ख्यात् महाकान्तार नाम से।

रामायण कालीन दण्डकारण्य नाम था।

वन पर्वत से ढका बड़ा नयनाभिराम था।

पुनि चेदि नाम विख्यात्, फिर नाम गोड़वाना हुआ।

कहलाता मध्यप्रदेश अब खेल चुका अगणित जुआ॥

तब छत्तीसगढ़ की सीमा का विस्तार कुछ इस प्रकार था :-

उत्तर दिशि में है बघेल भू करता चुम्बन,

यम दिशि गोदावरी कर पद प्रक्षालन।

पूर्व दिशा की ओर उड़ीसा गुणागार है,

तथा उदार बिहार प्रान्त करता बिहार है।

भंडारा बालाघाट औ चांदा मंडला चतुर गण,

पश्चिम निशि दिन कर रहे आलिंगन हो मुदित मन॥

ऐसे सुरक्षित छत्तीसगढ़ राज्य में अनेक राजवंश के राजा-महाराजाओं को एकछत्र राज्य वर्षो तक था। कवि अपनी कृति इनका बड़ा ही सजीव चित्रण किया है। देखिये उसकी एक बानगी :-

यहां सगर वंशीय प्रशंसी, कश्यप वंशी,

हैहहवंशी बली, पांडुवंशी अरिध्वंशी,

राजर्षितुल्यवंशीय, मौर्यवंशी सुख वर्ध्दन,

शुंगकुल प्रसू वीर, कण्ववंशी रिपु मर्दन,

रणधीर वकाटक गण कुलज, आंध्र कुलोद्भव विक्रमी।

अति सूर गुप्तवंशी हुए बहुत नृपति पराक्रमी॥

था डाहल नाम पश्चिम चेदि का।

यहीं रहीं उत्थान शौर्य की राष्ट्र वेदिका।

उसकी अति ही रन्ध्र राजधानी त्रिपुरी थी।

वैभव में, सुषमा में, मानों अमर पुरी थी।

रघुवंश नृपतियों से हुआ गौरवमय साकेत क्यों।

त्रिपुरी नरपतियों से हुई त्रिपुरी भी प्रख्यात् त्यों॥

कहलाती थी पूर्व चेदि ही ''दक्षिण कोसल''

गढ़ थे दृढ़ छत्तीस नृपों की यहीं महाबल।

इसीलिए तो नाम पड़ा ''छत्तीसगढ़'' इसका।

जैसा इसका भाग्य जगा, जगा त्यों किसका।

श्रीपुर, भांदक औ रत्नपुर थे, इसकी राजधानियां।

चेरी थी श्री औ शारदा दोनों ही महारानियां॥

नदियां तो पुण्यतोया, पुण्यदायिनी और मोक्षदायी होती ही हैं, जीवन दायिनी भी हैं। कदाचित् इसीलिए नदियों के तट पर बसे नगर ''प्रयाग'' और ''काशी'' जैसे संबोधनों से पूजे जाते हैं। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर स्थित अनेक नगर स्थित हैं जिन्हें ऐसे संबोधनों से सुशोभित किये जाते हैं। देखिये कवि की एक बानगी :-

हरदी है हरिद्वार, कानपुर श्रीपुर ही है।

राजिम क्षेत्र प्रयाग, शौरिपुर ही काशी है।

शशिपुर नगर चुनार, पद्मपुर ही पटना है।

कलकत्ता सा कटक निकट तब बसा घना है।

गाती मुस्काती नाचती और झूमती जा रही,

हे महानदी ! तू सुरनदी की है समता पा रही॥

छत्तीसगढ़ में इतना मनमोहक दृश्य हैं तो यहां कवि कैसे नहीं होंगे ? भारतेन्दु युगीन और उससे भी प्राचीन कवि यहां रहे हैं जो प्रचार और प्रचार के अभाव में गुमनाम होकर मर खप गये...आज उसका नाम लेने वाला कोई नहीं है। ऐसी कवियों के नाम कवि ने गिनायें हैं :-

नारायण, गोपाल मिश्र, माखन, दलगंजन।

बख्तावर, प्रहलाद दुबे, रेवा, जगमोहन।

हीरा, गोविंद, उमराव, विज्ञपति, भोरा रघुवर।

विष्णुपुरी, दृगपाल, साव गोविंद ब्रज गिरधर।

विश्वनाथ, बिसाहू, उमर, नृप लक्ष्मण छत्तीस कोट कवि।

हो चुके दिवंगत ये सभी प्रेम मीर मालिक सुकवि॥

तेजनाथ भगवान, मुहम्मद खान मनस्वी।

बाबू हीरालाल, केशवानंद यशस्वी।

श्री शिवराज, शिवशंकर, ईश्वर प्रसाद वर।

मधु मंगल, माधवराव औ रामाराव चिंचोलकर।

इत्यादिक लेखक हो चुके छत्तीसगढ़ की भूमि पर॥

''धान का कटोरा'' कहलाता है हमारा छत्तीसगढ़। यहां की भूमि जितनी उर्वर है, उतना ही यहां के लोग मेहनती भी हैं। इसीलिये यहां के मेला-मड़ई और तीज त्योहार सब कृषि पर आधारित हैं। अन्न की देवी मां अन्नपूर्णा भी यहीं हैं। कवि का एक पद्य पेश है :-

डुहारती थी धान वहन कर वह टुकनों में।

पीड़ा होती थी न तनिक सी भी घुटनों में ।

पति बोते थे धान, सोचते बरसे पानी।

लखती थी वह बनी अन्नपूर्णा छवि खानी।

खेतों में अच्छी फसल हुई है। मेहनती स्त्रियां टुकनों में भरकर धान खलिहानों से लाकर ढाबा में भर देती हैं। उनका मन बड़ा प्रसन्न है, तो संध्या में सब मिलकर नाच-गाना क्यों न हो, जीवन का रस भी तो इसी में होता है :-

संध्या आगम देख शीघ्र कृषि कारक दम्पत्ति।

जाते थे गृह और यथाक्रम अनुपद सम्पत्ति।

कृषक किशोर तथा किशोरियां युवक युवतीगण।

अंग अंग में सजे वन्य कुसुमावलि भूषण।

जाते स्वग्राम दिशि विहंसते गाते गीत प्रमोद से।

होते द्रुत श्रमजीवी सुखी गायन-हास विनोद से॥

पंडित जी ऐसे मेहनती कृषकों को देव तुल्य मानने में कोई संकोच नहीं करते और कहते हैं :-

हे वंदनीय कृषिकार गण ! तुम भगवान समान हो।

इस जगती तल पर बस तुमही खुद अपने उपमान हो॥

इस पवित्र भूमि पर अनेक राजवंशों के राजा शासन किये लेकिन त्रिपुरी के हैहहवंशी नरेश के ज्येष्ठ पुत्र रत्नदेव ने देवी महामाया के आशीर्वाद से रत्नपुर राज्य की नींव डाली।

हैहहवंशी कौणपादि थे परम प्रतापी।

किये अठारह अश्वमेघ मख धरती कांपी।

उनके सुत सुप्तसुम्न नाम बलवान हुये थे।

रेवा तट अश्वमेघ यज्ञ छ: बार किये थे।

श्री कौणपादि निज समय में महाबली नरपति हुये।

सबसे पहिले ये ही सखे ! छत्तीसगढ़ अधिपति हुए॥

बरसों तक रत्नपुर नरेशों ने इस भूमि पर निष्कंटक राज्य किया। अनेक जगहों में मंदिर, सरोवर, आम्रवन, बाग-बगीचा और सुंदर महल बनवाये...अनेक नगर बसाये और उनकी व्यवस्था के लिये अनेक माफी गांव दान में दिये। अपने वंशजों को यहां के अनेक गढ़ों के मंडलाधीश बनाये। आगे चलकर इनके वंशज शिवनाथ नदी के उत्तर और दक्षिण में 18-18 गढ़ के अधिपति हुये और समूचा क्षेत्र ''36 गढ़'' कहलाया। सुविधा की दृष्टि से रायपुर रत्नपुर से ज्यादा उपयुक्त समझा गया और अंग्रेजों ने मुख्यालय रायपुर स्थानांतरित कर दिया। तब से रत्नपुर का वैभव क्रमश: लुप्त होता गया।

रत्नपुर से गई रायपुर उठ राजधानी।

सूबा उनके लगे वहीं रहने अति ज्ञानी।

छत्तीसगढ़ के पूर्व वही सूबा थे शासक।

शांति विकासक तथा दुख औ भीति विनाशक।

आज जब छत्तीसगढ़ राज्य पृथक अस्तित्व में आ गया है तब सबसे पहिले कृषि प्रधान उद्योगों को विकसित किया जाना चाहिये अन्यथा धान तो नहीं उगेगा बल्कि हमारे हाथ में केवल कटोरा होगा...?

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रचना, आलेख एवं प्रस्तुति,

प्रो. अश्विनी केशरवानी

राघव, डागा कालोनी, चांपा (छ. ग.)

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. जानकारी पूर्ण, आभार!!

    जवाब देंहटाएं
  2. आभार, प्रो. केशरवानी जी के आलेख तो लाजवाब ही होते हैं ।
    पुन: धन्‍यवाद ।

    www.aarambha.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. आपके अच्छे लेखन कौशल और दिलचस्प विषयों के लिए धन्यवाद। मेरा यह लेख भी पढ़ें बद्री दत्त पांडे जीवन परिचय

    जवाब देंहटाएं
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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: छत्तीसगढ़ और पंडित शुकलाल पांडेय
छत्तीसगढ़ और पंडित शुकलाल पांडेय
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