- सीताराम गुप्ता चीन और जापान में भाषा, संस्कृति, कला तथा जीवन के कई अन्य क्षेत्रों में इतनी अधिक समानता पायी जाती है जिसके कारण इन दोन...
- सीताराम गुप्ता
चीन और जापान में भाषा, संस्कृति, कला तथा जीवन के कई अन्य क्षेत्रों में इतनी अधिक समानता पायी जाती है जिसके कारण इन दोनों देशों का नाम प्राय: साथ-साथ लिया जाता है। इन दोनों देशों की एक विशेषता ये भी है कि इन दोनों देशों में उपहार के तौर पर तरबूज भेंट करने की भी प्रथा है और वो भी चौकोर तरबूज। चौकोर तरबूजों की यहाँ ख़ूब माँग रहती है अत: चीन और जापान के किसान चौकोर तरबूज उगाने पर विशेष ध्यान देते हैं। अब प्रश्न उठता है कि क्या खेतों में चौकोर तरबूज उगाए जा सकते हैं? वास्तव में प्राकृतिक रूप से तरबूज चौकोर नहीं होते। तरबूज तो सामान्यत: गोल, अण्डाकार या इन दोनों आकारों से मिलते-जुलते आकार के ही हो सकते हैं लेकिन यहाँ के किसान तरबूजों को चौकोर बनाने के लिए एक पात्र विशेष का सहारा लेते हैं। यह पात्र चौकोर या घनाकार होता है जिसे छोटे फल पर लगा देते हैं। फल जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है वह अपने ऊपर लगे पात्र या खोल का आकार ग्रहण करता जाता है। फल के परिपक्व होने पर पात्र को खोल कर अलग कर दिया जाता है। और इस प्रकार मनचाहे आकार का फल तैयार कर लेते हैं।
ईंटें बनाने के लिए भी साँचों का प्रयोग किया जाता है। साँचों में गीली मिट्टी भरकर उसे निकाल लेते हैं और सूखने पर भट्ठों में पका लेते हैं। इस प्रकार निर्मित ईंट तैयार होने के बाद टूट तो सकती है पर उसके आकार को परिवर्तित नहीं किया जा सकता। जैसा साँचा बिल्कुल वैसी ही ईंट। मिट्टी, पीओपी, लुगदी, मोम अथवा विभिन्न धातुओं और अन्य माध्यमों से मूर्तियाँ या खिलौने बनाने के लिए भी इन सामग्रियों को साँचों में डालकर मनचाहे आकार की प्रतिमा प्राप्त की जा सकती है। दीपावली पर बनी मोमबत्तियाँ हों अथवा चीनी से बने खिलौने साँचों के अभाव में इनको बनाना असंभव ही है। विभिन्न प्रकार की वैंफडी, चॉकलेट, आइसक्रीम तथा केक-पेस्ट्री आदि के आकर्षक नमूने बनाने के लिए भी साँचों का खूब प्रयोग किया जाता है। साँचे का अर्थ है मनचाहा आकार।
यही बात हमारे व्यक्तित्व तथा परिवेश के निर्माण के संबंध में भी उतनी ही सही है। बाह्य व्यक्तित्व हो अथवा आंतरिक व्यक्तित्व, व्यक्तित्व को सही आकार देने के लिए व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए भी हमें एक साँचे की जरूरत होती है और वह साँचा है व्यक्ति का 'मन'। मन हमारे विचारों का उद्गम स्थल है और मन में उठने वाले विचार ही हमारे व्यक्तित्व और परिवेश का निर्माण करते हैं। हमारा भौतिक शरीर, हमारा स्वास्थ्य, हमारी भौतिक सुख-समृद्धि के साधन, हमारे संबंध तथा हमारे आध्यात्मिक विकास की दिशा सब हमारे विचारों अथवा भावों से ही निर्धारित होता है। जैसे भाव वैसी दशा। हमारा वर्तमान हमारे पिछले भावों अथवा विचार प्रक्रिया का परिणाम ही तो है और आज की विचार प्रक्रिया हमारे आने वाले कल को तथा आगामी हर पल को अवश्य ही प्रभावित करेगी, हमारे भविष्य का निर्माण करेगी।
जब एक किसान तरबूज जैसी स्वल्पचेतन या अचेतन वस्तु को मनचाहा आकार दे सकता है. एक कुम्हार निर्जीव मिट्टी को अपेक्षित आकृति प्रदान कर सकता है अथवा एक शिल्पी ठोस धातु को पिघलाकर पुन: पुन: मनमाफिक आकार की प्रतिमा निर्मित कर सकता है तो फिर मनुष्य अपने विचारों या भावों को मनचाहा आकार क्यों नहीं दे सकता? विचारों को आकर्षक और उपयोगी बनाकर अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास क्यों नहीं कर सकता? अवश्य कर सकता है। एक मनुष्य ही तो है जो अपने विचारों से क्रांति ला सकता है, इस समस्त भूमण्डल को परिवर्तित कर सकता है। हर क्रांति, हर परिवर्तन विचारों के द्वारा ही संभव है। हर सुधर, हर पुनरुत्थान के पीछे कोई विचार ही तो कार्य करता है।
कहा गया है कि ''मन एवं मनुष्याणां कारणं बन्ध्मोक्षयो'' अर्थात् मन ही मनुष्यों के बंधन और मोक्ष का कारण है। इसके लिए मन के उचित प्रशिक्षण की आवश्यकता है। मनुष्य अपने मन की शक्ति द्वारा अपने विचारों का आकर्षक और उपयोगी बना सकता है उन्हें मनचाहा आकार दे सकता है। नकारात्मक भावों को त्यागकर सकारात्मक भावों को प्रश्रय दे सकता है। विचारों का उद्गम और नियंत्रण स्थल हमारा मन है और यहीं विचार आकार ग्रहण करते हैं। मन की एक विशेष अवस्था में ही विचार शीघ्र और अपेक्षित आकार ग्रहण कर पाता है और मन की वह अवस्था अभ्यास द्वारा प्राप्त की जा सकती है। ध्यान यही तो है। मन की वह अवस्था है ध्यान जब मन सर्वाधिक ग्रहणशील होता है। इस अवस्था में जो भी विचार मन को छूता है अथवा मन में जो प्रतिमा बनती है फौरन वह विचार या प्रतिमा भौतिक जगत में वास्तविकता में परिवर्तित हो जाती है।
पारस पत्थर लोहे को स्वर्ण में परिवर्तित कर देता है लेकिन मन रूपी पारस पत्थर मात्र विचार को भौतिक जगत की वास्तविकता में परिवर्तित करने में सक्षम है। इस प्रकार मन में उठने वाले विचारों का सीध असर हमारे शरीर मस्तिष्क और बाह्य जगत पर पड़ता है। यदि विचार बुरे हैं, नकारात्मक और निराशावादी हैं तो उनका वैसा ही प्रभाव हम पर होगा इसलिए मन को सदैव सकारात्मक व उपयोगी विचारों से ओतप्रोत रखना अनिवार्य है। लेकिन क्या ये इतना सरल है? मन को नियंत्रित कर विचार प्रक्रिया को सकारात्मक दिशा देना यद्यपि बहुत सरल नहीं है लेकिन असंभव कदापि नहीं। अभ्यास से सब कुछ संभव हो सकेगा। मन में सकारात्मक विचारों को ला सकें, चाहे प्रयास करके जबरदस्ती ही ला सकें यही जरूरी है। इस सकारात्मक विचार प्रक्रिया के प्रवाह से जीवन के हर क्षेत्र में अवश्य ही लाभान्वित होंगे।
यह भी कहा गया है कि ''संकल्पविकल्पात्मकं मन:'' अर्थात् मन संकल्प और विकल्प स्वरूप है अत: विकल्प अथवा अनावश्यक संकल्पों या संकल्प के विरोधी भावों का पूर्ण त्याग कर दीजिए। इसी में आवश्यक या अपेक्षित संकल्प की पूर्णता निहित है और इसके लिए अपेक्षित है मन रूपी साँचा। मन ही वह यंत्र है जो भावों का परिष्कार भी करता है और परिष्कृत भावों को वास्तविकता में बदल कर हमारा जीवन सुखमय बना देता है। संभवत: इसी की पुष्टि कर रहा है ये शेर :
अपने मन में डूब कर पा जा सुरागे-जिंदगी,
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन।
-अल्लामा 'इकबाल'
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