आलेख -मुकेश पोपली (प्रसिद्ध कथाकार श्री हरदर्शन सहगल के हास्य संस्मरण - झूलता हुआ ग्यारह दिसम्बर पर आयोजित गोष्ठी की रिपोर्ट) ...
आलेख
-मुकेश पोपली
(प्रसिद्ध कथाकार श्री हरदर्शन सहगल के हास्य संस्मरण - झूलता हुआ ग्यारह दिसम्बर पर आयोजित गोष्ठी की रिपोर्ट)
'सहगल के पास जो अनुभव है, उनके दिल में अपनों के लिए जो दर्द है, उनके जो सपने हैं, उनके हृदय में जो छटपटाहट है वो सब इस हास्य संस्मरण में सिमट आई है', यह विचार डा. मदन केवलिया ने हरदर्शन सहगल के हास्य संस्मरण 'झूलता हुआ ग्यारह दिसम्बर' पर आयोजित पाठक मंच की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किए. गत 26 अगस्त को बीकानेर के नागरी भंडार में राजस्थान साहित्य अकादमी और हिन्दी विश्वभारती के संयुक्त तत्वावधान में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस अवसर पर डा.केवलिया ने बताया कि सहगल की कहानियों एवं उनके उपन्यासों में जितना आत्म अनुभव आम पाठक महसूस करता है उससे भी कहीं अधिक यह हास्य संस्मरण आपके दिलों के तारों को छूने में सक्षम है. पारिवारिक, सामाजिक और मित्रों के साथ मस्ती के जितने पल सहगल ने बिताये हैं, उन सबका निचोड़ इस संस्मरण में सामने आया है. यह संस्मरण रचनाकारों के समाज का वो प्रतिबिम्ब है जिसके माध्यम से आप अपने जीवन को नये और ताजा वातावरण में अनुभव कर सकते हैं.
कार्यक्रम में अपने पत्र वाचन में मुख्य अतिथि डा. सुलक्षणा दत्ता ने कहा कि हरदर्शन सहगल ने वह कार्य किया है जो हर रचनाकार नहीं कर सकता. वेदनाओं को मंथन करके, सामाजिक बुराईयों में पूरा-पूरा झांककर, यहां तक कि दोस्तों की दोस्ती व सहकर्मियों के कर्म तक में से कुछ ना कुछ निकाल कर उन्होंने पाठकों के हाथ में 'झूलता हुआ ग्यारह दिसम्बर' रूपी अमृतकलश पकड़ाया है. यह संस्मरण एक मौलिक प्रयास है जो कि हो सकता है कुछ को हंसी व्यंग्य से भरपूर, किसी को कहीं-कहीं मार्मिक व कहीं-कहीं बस यूं ही लिखने मात्र को कलम लेकर समय बिताया हुआ लगे, परंतु मेरी दृष्टि में वो अपने आप पर हंस कर उस हंसी के पीछे अपने बचपन व जवानी के दिनों के व्यंग्य व आंसू भरे क्षणों को छुपाकर, आवरण पहनाकर लोगों के सामने लाए हैं. इस अवसर पर डा.दत्ता ने बताया कि सहगल के पास अनुभवों का अनमोल खजाना है और यह सुखद है कि उन्होंने इसे मात्र संजोने की ही कोशिश नहीं की बल्कि अपने पाठकों के साथ बांटने का बीड़ा उठाया. संस्मरण में संकलित 'झूलता हुआ ग्यारह दिसम्बर', 'भोले पड़ोसी', 'सिंकी मास्साब', 'घुंघराले बाल', 'लटकते हुए सिर', 'सारेगामा उर्फ से.रा.या.' आदि रचनाओं के बारे में विस्तार से अपनी बात रखते हुए डा.सुलक्षणा दत्ता ने कहा कि हर संस्मरण में लेखक अपना मजाक उड़ाता हुआ दिखाई देता है और यह तभी संभव है जब लेखक कहीं न कहीं आहत या अपमानित हुआ हो और ऐसे वाकयों में से हास्य निकालना सागर मंथन से अमृत निकालने जैसा है.
पाठक मंच को आगे बढ़ाते हुए विशिष्ट अतिथि श्रीमती प्रीति कोचर ने इस संस्मरण पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि 'जाके पैर ना फटी बुवाई, सो क्या जाने पीर पराई', सहगल के संस्मरण ऐसे हृदय से निकले हैं जिन्होंने इन सब को झेला है, यथार्थ से पाठकों का परिचय कराने के प्रयास में सहगल का यह संस्मरण अविस्मरणीय बन गया है. अपनी सीधी सरल भाषा और भावनाप्रद शब्दों के आभूषणों से सुसज्जित सहगल का यह संस्मरण अनुभवों की एक खुली किताब के रूप में पाठकों के सामने आया है. नकारात्मक परिस्थितियों में भी विषमताओं को हल्का ही नहीं किया गया बल्कि उन्हें मधुरता के स्तर तक पहुंचाने की एक सफल कोशिश सहगल ने अपनी रचनाओं के माध्यम से की है. पुस्तक में उपलब्ध अनुभूतियों को इस प्रकार कहा जा सकता है कि - 'कोई पल नहीं है सदा के लिए, जी लो हर पल को तुम, यादें बन कर छा जाते हैं, यह ही वो पल हैं, जो साथ निभाते हैं, कभी गुदगुदाते हैं तो कभी हिम्मत बंधाते हैं'.
कार्यक्रम में अशफाक कादरी ने सहगल के इस संस्मरण पर अपनी समीक्षा प्रस्तुत की और बताया कि सहगल की अन्य रचनाओं की तरह यह पुस्तक भी अपने आप में मील का पत्थर है. युवा रचनाकार नदीम अहमद 'नदीम' ने अपने खट्टे-मीठे अनुभवों को सुनाते हुए कहा कि वो और होंगे जो सहगल की कहानियों एवं रचनाओं में कमियां ढूंढते हैं, उनकी प्रत्येक रचना आम पाठक के लिए है और आम पाठक से जुड़े रहना किसी भी लेखक के लिए गौरव की बात है.
श्रीमती कविता मुकेश ने पुस्तक से जुड़े कुछ प्रसंगों को याद किया और कहा कि इन रचनाओं से पाठक अपने आप को जुड़ा हुआ महसूस करता है और यही इस संस्मरण की प्रासंगिकता है. इस अवसर पर युवा रचनाकार रवि पुरोहित ने सहगल के समस्त साहित्य के बारे में बताते हुए उनसे अपील की कि निकट भविष्य में वह किसी रेखाचित्र संकलन को अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत करें.
कार्यक्रम के प्रारंभ में मुकेश पोपली ने पाठकीय चर्चा के लिए प्रस्तुत हास्य संस्मरण 'झूलता हुआ ग्यारह दिसम्बर' में से एक संस्मरण 'लटकते हुए सिर' का वाचन किया और गोष्ठी में भाग लेते हुए उन्होंने इस संस्मरण की दो रचनाओं 'हिन्दी की अंग्रेजी में घुसपैठ' और 'शोक में शौक' पर अपने विस्तृत विचार भी रखे.
श्री हरदर्शन सहगल ने इस अवसर पर कहा कि प्रत्येक रचना का निर्माण सोच-समझ कर नहीं किया जाता. रचना को रचते समय लेखक उसके साथ न्याय कर सके, यह आवश्यक नहीं होता. मैं अपनी रचनाएं समाज और समाज से जुड़े प्रत्येक तबके के लिए लिखता हूं. केवल वाहवाही लूटना मेरी रचनाओं का कभी भी उद्देश्य नहीं रहा. इस संस्मरण की रचनाओं को मैंने स्वयं जिया है और पूरे आनंद के साथ जिया है. मैंने अपने हृदय में बसी यादों को इसमें पिरोने की कोशिश की है और यह सब संस्मरण यथार्थ से परिपूर्ण हैं. एक पाठक ही यह बता सकता है कि रचना में उसे क्या अच्छा लगा और क्या नहीं. किसी भी रचना की आलोचना होनी चाहिए न कि उसे विवादों के कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की जानी चाहिए.
पाठक मंच कार्यक्रम का डा.राम नरेश सोनी ने सफल संचालन करते हुए कहा कि इस तरह के पाठक मंच आयोजित होते रहने से पाठकों और रचनाकारों के बीच संवाद बना रहता है. कार्यक्रम में नगर के प्रमुख रचनाकार उपस्थित हुए. धन्यवाद ज्ञापन संस्था के अध्यक्ष डा.गिरिजा शंकर शर्मा ने रखा.
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रचनाकार संपर्क:
-मुकेश पोपली
सी-254, विकासपुरी
नई दिल्ली-110018
मोबाइल : 9810938379
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