यात्रा वृत्तांत आंखन देखी (अमरीका मेरी निगाहों से) ( अनुक्रम यहाँ देखें ) - डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल 9 एक शहीद दि वस अमरीका में...
यात्रा वृत्तांत
आंखन देखी (अमरीका मेरी निगाहों से)
(अनुक्रम यहाँ देखें)
- डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल
9 एक शहीद दिवस अमरीका में भी
जब से अमरीका की स्थापना हुई है, लगभग 20 लाख स्त्री-पुरुष इसके विभिन्न आदर्शों व हितों की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं. यह कृतज्ञ राष्ट्र साल में कम से कम एक दिन उनको स्मरण कर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता है. यह एक दिन है मई माह का अंतिम सोमवार. इस दिन ज़्यादातर दफ्तर बन्द रहते हैं और नागरिकों से अनुरोध किया जाता है कि वे अपराह्न तीन बजे कुछ क्षणों का मौन रख कर उन ज्ञात-अज्ञात शहीदों की स्मृति को नमन करें.
इस अवसर को औपचारिक और सरकारी तो नहीं बनाया गया है लेकिन मनाने का तरीका करीब-करीब भारत जैसा ही है. ठीक तीन बजे एक घण्टी बजे, एक मिनिट का मौन रखा जाए और यदि सम्भव हो, TAPS नामक बिगुल गीत या चार्ल्स स्ट्राउस कृत 'ऑन दिस डे' गीत गाया या सुना जाए. यदि कोई इस वक़्त गाड़ी चला रहा हो तो वह अपनी गाड़ी की हेडलाइट्स जला कर भी शहीदों की स्मृति को नमन कर सकता है.
चार्ल्स स्ट्राउस का 'ऑन दिस डे' गीत बहुत मार्मिक है. इसके भाव कुछ इस तरह हैं :
इस दिन कुछ क्षणों के लिये सुनें मौन को.
और याद करें उन्हें जो चले थे हमारे साथ, लेकिन अब नहीं हैं.
लेकिन उनके लिये आंसू न बहाएं,
बल्कि सुनें उनकी हंसी-
क्योंकि ज़िन्दा है उनकी भावनाएं !
स्मृति की रहस्यपूर्ण धारा से हो जाने दें दिलों को गर्वित.
हमें बनाएं विनम्र,
बनाएं जानकार
और मननशील
उसके प्रति जो घटित हो चुका है.
आज, अभी और सदा-सर्वदा-बनाएं इस देश को एक !
देश के लिये प्राणों का उत्सर्ग कर देने वालों को भुला देने के मामले में अमरीका का रिकार्ड भारत से बेहतर नहीं है. मुझ जैसे पिछली पीढ़ी के लोगों को यह जानकर शायद कुछ राहत मिले कि हाल ही में किये गए एक गैलप पोल से ज्ञात हुआ है कि अमरीका के बमुश्किल 28 प्रतिशत लोगों को ही इस मेमोरियल डे की महत्ता की जानकारी है.
एक और बात.
यह शहीद स्मृति दिवस यहां एक और भी रंगत ले गया है. कम से कम मुझे तो यह देखकर अच्छा नहीं लगा कि इस मेमोरियल डे से करीब एक सप्ताह पहले से यहां के अखबारों में 'मेमोरियल डे स्पेशल सेल' के विज्ञापनों की भरमार हो गई थी. मेमोरियल डे को छुट्टी होती है, इसलिये लोगों को अपनी दुकानों की तरफ खींचने के लिये ये विज्ञापन दिये जा रहे थे.
कम से कम भारत में अभी शहीदों के नाम पर कुछ बेचा तो नहीं जाता है.
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10 स्वाधीनता का उल्लास
4 जुलाई अमरीका का स्वाधीनता दिवस है. यहां भी भारत की तरह दो ही 'राष्ट्रीय' पर्व हैं. स्वाधीनता दिवस तथा शहीद दिवस, जिसे मेमोरियल डे के नाम से भी जाना जाता है और जिसकी चर्चा मैं एक अन्य लेख में कर चुका हूं.
इस बार (2004) स्वाधीनता दिवस रविवार को था. इसलिये स्वाधीनता दिवस का अवकाश अगले दिन यानि सोमवार को किया गया. शनिवार को यहां वैसे भी ज्यादातर कामकाज बन्द रहता है, इसलिये शुक्रवार की शाम से ही वीक-एण्ड का उत्सवी माहौल शुरू हो गया. दुकानों, गैस स्टेशंस वगैरह तक पर सेल्समेन-वुमन 'हैव अ नाइस लोंग वीक-एण्ड' की शुभकामनाएं दे रहे थे.
अमरीका में झण्डे को लेकर उस तरह का पवित्रता का भाव नहीं है जैसा भारत में है. कोई भी, कहीं भी, किसी भी तरह, झण्डे या उसके पैटर्न या उसके अंश का उपयोग कर सकता है. यही आज़ादी थी कि महीने के पहले दिन से ही पूरा माहौल राष्ट्रीय ध्वज-मय नज़र आने लगा था. सडकों पर, दुकानों में, पार्कों में, गाड़ियों में, हर कहीं अमरीकी झंडे दिखाई देने लगे थे.
क्योंकि यह व्यावसायिक समाज है, दुकानदारों ने इण्डिपेंडेंस डे सेल के बडे-बडे विज्ञापन देने शुरू कर दिये थे. अमरीकियों को इस बात में महारत हासिल है कि वे हर प्रसंग को अपना माल बेचने के अवसर में तब्दील कर सकते हैं.
चार जुलाई को यहां वैसा कुछ भी नहीं होता जैसा इसके एक माह ग्यारह दिन बाद भारत में होता है. न राष्ट्र को सम्बोधन, न ध्वजारोहण, न परेड ! यहां आज़ादी का यह दिन भरपूर उत्सव, उल्लास और मौज़-मज़े का दिन है. लोग घर से बाहर निकलते हैं, पिकनिक मनाते हैं. अमरीकी वैसे भी घर से बाहर निकलने और मौज़-मज़ा करने के ज्यादा ही शौकीन होते हैं. ज़रा-सा मौका मिलना चाहिये उन्हें बाहर निकलने का. पूरा तामझाम लेकर निकल पड़ेंगे. जुलाई में तो मौसम भी अच्छा होता है. याद आता है कि हरिशंकर परसाई ने लिखा था कि भारत में स्वाधीनता दिवस भीगता है और गणतंत्र दिवस ठिठुरता है. अमेरिका में धूप और उजास भरा खुला-खुला दिन अच्छा माना जाता है. इस लिहाज़ से इस बार यहां मौसम कुछ ज़्यादा ही उम्दा था. यह भी एक अतिरिक्त कारण था कि सडकों पर गाडियों की रेलम-पेल थी और सारे पार्क,बीच(Beach) और आमोद-प्रमोद के अन्य सभी स्थान उल्लास,उमंग और ज़िन्दगी से लबरेज़ अमरीकियों से खचाखच भरे थे.
स्वाधीनता दिवस का यहां सबसे बडा आकर्षण होता है आतिशबाज़ी का सार्वजनिक प्रदर्शन. वैसे, अमरीका में आतिशबाज़ी पर पूर्ण प्रतिबंध है. दो कारणों से. एक- इससे जान-माल का खतरा पैदा होता है, और दो-इससे होने वाला शोर आपकी व्यक्तिगत स्वाधीनता को आहत करता है. अमरीकी लोग अपनी स्वाधीनता को लेकर बहुत सम्वेदनशील हैं; और यहां का शासन सुरक्षा को लेकर. इसलिये भारत की तरह की आतिशबाज़ी की आज़ादी की तो यहां कल्पना भी नहीं की जा सकती. और इसीलिये, साल में एक बार होने वाली आतिशबाज़ी का महत्वपूर्ण बन जाना स्वाभाविक ही है. आतिशबाज़ी का आयोजन सार्वजनिक तौर पर किया जाता है और उसे देखने के लिये जो भीड़ जुटती है वह बस देखने ही काबिल होती है !
क्योंकि इन दिनों यहां रात देर से होती है, इस बार यहां आतिशबाज़ी का कार्यक्रम रात 10.30 बजे शुरू होना था. पर जिस मेरीमूर पार्क में हम आतिशबाज़ी देखने जाने को थे वहां पार्किंग आठ बजे से ही बन्द हो जानी थी. यह बात अखबारों में भी छप चुकी थी. हम लोग जब चार बजे पार्क पहुंचे तो भी पार्किंग की जगह बमुश्किल ही मिल सकी. और पार्क का नज़ारा ? मुझे तो बाबा तुलसीदास याद आ गये- अवस देखिये देखन जोगू ! बहुत बड़ा पार्क (इतना बडा कि इसी में अमरीका के छ: सबसे बडे वेलोड्रम्स में से एक स्थित है) और उसमें रंग-बिरंगे, या कम, या बहुत ही कम कपड़ों वाले अमरीकी अपनी पूरी गृहस्थी के साथ. चादरें बिछी हैं, टेबल-कुर्सियां लगे हैं, ग्रिल पर बार-बे-क्यू हो रहा है, छोटा बच्चा झूले में झूल रहा है, दो पालतू कुत्ते अपनी अपनी लीश (डोरी) में बंधे इधर-उधर दौड़ लगा रहे हैं, युवा लोग बास्केट बाल जैसा कुछ या फ्रिसबी खेल रहे हैं, और कहना गैर-ज़रूरी है कि यह सारा सामान घर से लाया गया है. मैंने कहा ना, अमरीकियों को पूरी गृहस्थी साथ लेकर चलने का तो जैसे जुनून ही है. सुविधा भी है. बड़ी-बड़ी गाड़ियां और सब कुछ के बाद भी ज्यादा भीड़-भाड़ नहीं क्योंकि जनसंख्या कम है. तो जैसे लोगों ने घर ही बसा रखे थे. सामान हमारे पास भी कम नहीं था. ज्यादा सामान के साथ-साथ अमरीकियों का एक और जुनून चर्चा योग्य है. खाने-पीने का. यह जुनून इतना है कि आपको हर वक़्त, हर जगह, हर इंसान कुछ न कुछ भकोसता ही दिखेगा. भारत में भले ही चलते-फिरते खाना अशिष्टता की श्रेणी में शुमार हो, यहां तो यह जीवन-पद्धति का अंग है. इसलिये एक हाथ में बर्गर या हॉट डॉग (गर्म-कुत्ता !) तथा दूसरे में कोक या कॉफी लेकर चलने वालों को ढूंढने की ज़रूरत नहीं, बकौल शायर, एक ढूंढो हज़ार मिल जाते हैं. तो, पार्क में भी खाना-पीना पूरे शबाब पर था. पीने को लेकर यहां कोई अपराध बोध नहीं है. पर उसे लेकर कोई बड़ी ललक या असहजता भी यहां देखने को नहीं मिलती. हां, अठारह वर्ष से कम वाले नहीं पी सकते, कम से कम सार्वजनिक तौर पर. यहां पार्क में मदिरा के स्टॉल्स भी थे. पर वहां पहुंचने से पेश्तर एक सरकारी अफसर के सामने से गुज़रना होता था. वह आपकी वयस्कता को पहचान कर (और यदि कोई सन्देह हो तो प्रमाण मांगकर) आपके हाथ में एक परमिट-पट्टी बांध देता था. उसे दिखाने पर ही मदिरा क्रय की जा सकती थी. मदिरा का उपभोग करते समय भी इस पट्टी का हाथ पर होना ज़रूरी था. इस छोटे-से सरकारी प्रतिबंध के सिवा सब तरह की आज़ादी थी. यहीं लगे हाथ यह भी बता दूं कि अमरीका में 18 वर्ष से कम के लोग सिगरेट भी नहीं खरीद सकते.
तो, खाना-पीना मौज -मजा चल रहा था. सामने एक लाइव बैण्ड पॉप म्यूज़िक की धूम मचा रहा था. लोग अपने-अपने में खोये भरपूर आनन्द ले रहे थे. यहां का समाज अपने में पूरी तरह मगन रहता है (पता नहीं इसके लिये वह गगन वनस्पति खाता है या नहीं), न वह आपकी ज़िन्दगी में दखल देता है, न अपनी ज़िन्दगी में कोई दखल सहन करता है. यही कारण है कि पार्क में 'चाहे जैसे' कपड़े पहने स्त्री-पुरुष भी भरपूर थे पर उनकी तरफ ध्यान देने की फुरसत या इच्छा किसी को नहीं थी.
इस सबमें स्वाधीनता दिवस था तो केवल इतना कि किसी का टी शर्ट झंडे का था, किसी की चादर, किसी का तौलिया, किसी की टोपी.
रात ठीक साढे दस बजे आकाश रंग-बिरंगी आतिशबाज़ी से नहा उठा. हर चमक पर तालियां या हर्ष-ध्वनि की गुंजार. आतिशबाज़ी ठीक-ठाक थी. सच कहूं, भारत की आतिशबाज़ी को स्मरण कर मैं थोड़ा निराश ही हुआ. जो कलात्मकता और कल्पनाशीलता हमारी आतिशबाज़ी में होती है, वह यहां नहीं थी. पर सब लोग (जिनमें हम भी शरीक थे) इस आतिशबाज़ी का भरपूर मज़ा ले रहे थे. स्याह रात, यानि घना अंधेरा और रंग-बिरंगे फूलों या तारों या तीरों से भर-भर जाता आकाश और हर प्रस्तुति पर ज़मीन से उठता प्रशंसा और उल्लास का आह्लादक शोर. अमरीकी लोग प्रशंसा करने में क़तई कंजूस नहीं हैं. वे बहुत खुलकर दाद दे रहे थे, और इससे उनका अपना उल्लास भी दोगुना-चौगुना हो रहा था.
तो, ऐसा था अमरीकी आज़ादी का उत्सव.
बल्कि, असल आज़ादी का उत्सव तो था ही यही. आपकी आज़ादी की सीमा कहां तक है और दूसरे की आज़ादी की सीमा कहां से शुरू होती है, यह जान लेना और इसका खयाल रखना - इससे बड़ी आज़ादी और क्या हो सकती है? इस समाज ने यह पाठ बहुत अच्छी तरह न केवल पढ़ लिया है, इसे आत्मसात भी कर लिया है.
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(शेष अगले अंक में जारी...)
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