यात्रा वृत्तांत आंखन देखी (अमरीका मेरी निगाहों से) ( अनुक्रम यहाँ देखें ) - डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल 4 . खूबसूरती का कारोबार ...
यात्रा वृत्तांत
आंखन देखी (अमरीका मेरी निगाहों से)
(अनुक्रम यहाँ देखें)
- डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल
4 . खूबसूरती का कारोबार
अमरीका की आज की किशोर पीढ़ी एक दशक पहले की किशोर पीढ़ी से कई मामलों में बहुत अलग है. आज की यह पीढ़ी इस बात को लेकर बहुत सजग है कि जो कपड़े उसने पहने हैं उनके लेबल बहुत महंगे हों. यहीं यह कह देना ज़रूरी है कि इन महंगे कपड़ों का खर्च इनके मां-बाप नहीं, ये खुद वहन करते हैं. यानि महंगे कपड़े खरीदने के लिये अगर सप्ताह में पंद्रह बीस घण्टे किसी बेकरी में काम करना पड़े तो भी कोई हर्ज़ नहीं.
किशोर वय की लड़कियां आज जिस बात को लेकर सबसे ज़्यादा चिंतित हैं, कपड़ों से भी ज़्यादा, वह है उनके वक्ष का आकार. पंद्रह-सोलह वर्ष की वय से ही ये लड़कियां विशाल वक्ष का सपना पालने लगती हैं. इस सपने को साकार करने के लिये ये शल्य-चिकित्सकों के सतत सम्पर्क में रहती हैं, पैसा बचाती-जमा करती हैं और चाहती हैं कि कॉलेज जाएं तो विशाल वक्ष के साथ ही जाएं.
आंकड़े बताते हैं कि 2000 से 2001 के एक वर्ष में ही अठारह वर्ष से कम उम्र की लड़कियों में यह वक्ष शल्यक्रिया का आंकड़ा 65,231 से बढकर 79,501 हो गया, यानि 21.8% का उछाल! अमरीकन सोसाइटी ऑफ प्लास्टिक सर्जंस(ASPS) के एक बयान के अनुसार वर्ष 2000 में 18 वर्ष तक के युवाओं में हुई शल्यक्रियाओं में यह वक्ष-विशालन की शल्यक्रिया तीसरी सबसे लोकप्रिय शल्यक्रिया थी. इस एक वर्ष में 3682 युवतियों ने अपने वक्ष बड़े करवाये. इसी एक वर्ष के अन्य सौन्दर्य विषयक आंकड़े भी देख लीजिये :
29,700 किशोरों ने नाक का आकार ठीक करवाया,
23,000 किशोरों ने कानों का आकार ठीक करवाया,
95,097 किशोरों ने अपनी त्वचा को छिलवाया (Peeled),
74,154 किशोरों ने चेहरे की त्वचा को ठीक करवाया, और
45,264 किशोरों ने लेज़र पद्धति से बाल हटवाये.
जहां तक वक्ष शल्यक्रिया का प्रश्न है, यहीं यह उल्लेख कर देना भी ज़रूरी है कि यद्यपि अमरीका का फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) 18 वर्ष से अधिक की स्त्रियों को ही यह शल्यक्रिया करवाने की अनुमति देता है, इससे कम वय की किशोरियों को भी (अलबत्ता गैर-कानूनी तरीके से) यह काम करवाने में कोई बडी दिक्कत दरपेश नहीं आती.
किशोरों में अपनी काया को संवारने (यदि इसे संवारना कहना अनुचित न हो) के प्रति यह उन्माद बढता ही जा रहा है. 1994 में जहां वक्ष का आकार बढवाने वाली किशोरियों की संख्या महज़ 392 और चर्बी सोखवाकर(Liposuction) दुबला होने वाली की संख्या 511 थी, 2001 में ये संख्याएं बढकर क्रमशः 2596 तथा 2755 हो गईं.यानि 562 % की वृद्धि. यह जानकारी देने वाले अमरीकन सोसाइटी ऑफ प्लास्टिक सर्जंस (ASPS) के अनुसार सभी वय के लोगों में वक्ष बड़े करवाने तथा लिपोसक्शन द्वारा दुबला होने की दर में 1992 से 2000 के बीच क्रमशः 386 तथा 476% की वृद्धि हुई है.
शल्यक्रिया से अपने वक्ष का आकार बडा करवाने, आंखों का आकार ठीक करवाने, ठुड्डी की आकृति बदलवाने, नाक सीधी करवाने या कानों को थोडा पीछे करवाने जैसी बातों को लेकर इन किशोरियों के मन में लज्जा या संकोच का कोई भाव नहीं है. हां उनकी चिंता यह अवश्य है कि उनके वरिष्ठजन उनके इस बदलाव का नोटिस न लें. वरिष्ठजन से आशय कॉलेज के सीनियर्स से है. और इसलिये ये लोग ऐसा समय चुनने पर विशेष ध्यान देती हैं. आदर्श समय माना जाता है स्कूली पढ़ाई पूरी होने और कॉलेज शुरू होने के बीच का अंतराल.
मैनहट्टन के एक मुखाकृति प्लास्टिक सर्जन फिलिप मिलर का कहना है कि उनके पास आने वालों में 30% वे लड़कियां होती हैं जो अपनी नाक छोटी या मुंह बड़ा करवाना चाहती हैं. ये लोग फैशन पत्रिकाओं में छपी मॉडल्स या सिने तारिकाओं की तस्वीरें दिखाकर उन जैसा बना देने का अनुरोध करती हैं.
वस्तुतः युवा पीढी का यह मानसिक रुझान उस बाज़ार की देन है जो आकर्षक, रंग-बिरंगी, प्रभावी तस्वीरों से अपना माल बेचने के क्रम में युवाओं के सामने एक आदर्श छवि खडी कर देता है. बाज़ार द्वारा सृजित यह दबाव इतना गहरा और घना होता है कि इन युवाओं को उन रोल मॉडल्स से भिन्न कुछ भी बिलकुल बेकार लगने लगता है.
अमरीका में ब्रेस्ट इम्प्लाण्ट सस्ता नहीं है. लगभग 7000 डॉलर. यानि भारतीय मुद्रा में साढे तीन लाख रूपये. और, फिर याद दिला दूं कि यह धनराशि प्रायः इन युवाओं की अपनी मेहनत की कमाई होती है. पर जैसा मैंने कहा, बाज़ार जो आदर्श रच देता है, उसके निकट पहुंचने के लिये कोई भी कीमत ज़्यादा नहीं लगती. विज्ञापनों का मोहक संसार आपके चारों तरफ सर्वांगपूर्ण मॉडल्स का एक ऐसा संसार खडा कर देता है कि आपको
अपनी देह की कोई छोटी-सी विकृति (?) भी अखरने लगती है और आप उसे दुरुस्त कराने के लिये बड़ी से बड़ी कीमत चुकाने को बेताब हो उठते हैं.
और मामला जब बड़ी कीमत का हो तो कई तरह के खेलों का चालू हो जाना आश्चर्यजनक नहीं. किशोरियां मॉडल्स को देखकर आकृष्ट होती हैं. उनके इस आकर्षण को हवा देने का काम वे जन-सम्पर्क एजेंसियां करती हैं जिनकी सेवाएं महंगे दामों पर प्लस्टिक सर्जन लोग खरीदते हैं. ये एजेंसियां फैशन तथा सौन्दर्य पत्रिकाओं में इस तरह की सौन्दर्यात्मक(Cosmetic)प्लास्टिक सर्जरी की कथाएं छपवाती हैं. न केवल फैशन पत्रिकाओं में बल्कि समाचार पत्रों में भी विशाल वक्ष विषयक लेख छपवाकर इनके पक्ष में माहौल बनाया जाता है. अब इण्टरनेट के लोकप्रिय हो जाने के बाद तो इन प्लास्टिक सर्जन्स ने अपनी वेबसाइटस के माध्यम से भी किशोरियों-युवतियों को लुभाना शुरू कर दिया है. कुछ सर्जन यह काम अधिक सूक्ष्म तरीके से भी करते हैं. वे सौन्दर्याकांक्षा को आत्मविश्वास से जोड़ देते हैं. आपके कम आत्मविश्वास की वजह आपकी नाक, कान या छाती के आकार को बताकर आपको अपने क्लिनिक की तरफ खींचते हैं.
सुन्दर दीखने की यह चाहत 'बड़ा' या विशाल होने में ही नहीं, इसकी विपरीत दिशा में भी अभिव्यक्त होती है. नई पीढ़ी की किशोरियों में दुबला होने की चाहत भी कम प्रबल नहीं है. देह पर एक मिलीमीटर भी चर्बी (गलत जगह पर) न हो, और आप किसी मॉडल-सी तन्वंगी दिखें इसके लिये भूखा मरना सबसे आसान (और सस्ता भी) उपाय है. यह लोकप्रिय भी कम नहीं है. पर इसके बावज़ूद दुबला बनाने का धंधा भी यहां बड़े मज़े में धड़ल्ले से चल, बल्कि दौड़ रहा है. विज्ञापनों, दवाइयों, कसरतों और कई तरह की सलाहों के ज़रिये आपको तन्वंगी बना देने का खूबसूरत ख्वाब दिखाने वाले भी यहां भरपूर कमाई कर रहे हैं.
सुन्दर दीखने का यह पूरा कारोबार एक खुदगर्ज़ उग्र व्यावसायिक समाज की देन है. यह समाज आपके सामने पहले रोल मॉडल सर्जित करता है, फिर उन जैसा बनने के तरीके सुझाता है, फिर उन तरीकों की सफलता की प्रामाणिक(?) कथाएं गढ़ और प्रचारित कर आपको अपने जाल में फंसाता है. सारा कारोबार चलता है बतर्ज़ ‘तुम्ही ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना’. और यह सारा कारोबार इतनी कुशलता से संचालित किया जाता है कि आपको तो केवल मंच पर नाचतीं-थिरकतीं कठपुतलियां ही दिखती हैं, उन्हें नचाने वाले धागे और उंगलियां तो दृष्टि से ओझल ही रहते हैं. यह अर्ध सत्य आपके जीवन को उस दिशा में मोड़ने में कामयाब होता है जिस दिशा में उसके जाने से 'उन्हें' फायदा हो.
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(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)
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निसंदेह यह कारोबार इधर कई सालों में फूला फला है। इसका प्रमाण हमारा अपना समाज भी है। हम अपने समाज में भी इस कारोबार को फूलते फलते देख सकते हैं। बहरहाल इस जानकारीपरक पोस्ट हेतु धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढकर,
जवाब देंहटाएंसौन्दर्य व्यापार आज देश का सबसे बड़ा व्यापार है। बस हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा का चोखा। :)