कविताएँ -डॉ० मधु सन्धु 1 - मेरी उम्र सिर्फ उतनी है मेरी उम्र सिर्फ उतनी है जितनी तुम्हारे साथ बिताई थी तब जब तुम आजाद थे शहजादा...
कविताएँ
-डॉ० मधु सन्धु
1 - मेरी उम्र सिर्फ उतनी है
मेरी उम्र सिर्फ उतनी है
जितनी
तुम्हारे साथ बिताई थी
तब
जब तुम आजाद थे
शहजादा सलीम थे
मजनूँ फरहाद थे
रांझा महिवाल थे
पुरुषीय अहं से
परिवार-समाज से
बड़े-बड़े झूठों से
बिल्कुल अनजान थे।
मेरी उम्र सिर्फ उतनी है
जितनी
मैंने
तुम्हारे हरम में आने से पहले
मनाई थी
कालेज केन्टीन में
कॉफी के धुएं में
लेट नाइट चैटिंग में।
बहसें-तकरार थे
समस्या-समाधान थे
तेरे और मेरे के
झंझट न झाड़ थे।
मेरी उम्र सिर्फ उतनी है
जितनी में
मान-सम्मान था
निर्णय की क्षमता थी
नेह-विश्वास था
सांचों में ढलने की
शर्तें प्रतिमान न था
जा जा कर लौटते थे
मैंने नहीं खींचा था
आते -बतियाते थे
सचमुच में चाहते थे।
मेरी उम्र सिर्फ उतनी है
जितनी अनामिका की अंगूठी से
सिंदूरबाजी से,
मंगल सूत्र धारणा से पहले
घूंट-घूंट पी थी।
व्यक्ति से वस्तु बनने
तुम्हारी अचल सम्पत्ति में ढलने
गुस्से, रतजगों, आंसुओं में घुलने
विरोधाभासों में जीने
व्यक्तिवाचक से शून्यवाचक हो जाने से पहले
स्वप्न लोक में जी थी।
तब
एक सहलाता अकेलापन था
मीठी वेदना थी
प्रेम का भ्रम था
पाने की चाह थी
पहचाना अपरिचय था
वज्र विश्वास था
सुखद प्रतीक्षा थी
भविष्य का सूर्य था
क्यों तोड़ दिए सारे सपने नींद सहित तुमने।
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2 -आकांक्षा
इतिहास की कब्रों में दबे हुए
पृष्ठ कहते हैं कि
जन्म होते ही मेरा
गला दबा देते थे।
पलंग के पाए तले रखकर
पितृसत्ताक के सत्ताधारी
उस लोक पहुंचा देते थे।
एक ज़र्रा हशीश
तिल भर अफीम
या
एक कण विष देकर
मेरा इहलोक संवार देते थे
क्योंकि वे जानते थे
कि
इहलोक दुखों से भरा है
और
मेरा कोमल मन
कोमल गात
उन दुखों से जूझ नहीं पाएगा।
वे जानते थे
कि मैं
पुराण कथाओं की तरह
अपने सत्यवान के लिए
चार सौ साल की
उम्र नहीं मांग पाऊंगी
इसीलिए मुझे
धधकती चिता में
आत्मदाह करना होगा।
उन्हें पता था
कि घरती की बेटियां
सीता माता की तरह
अग्नि परीक्षा नहीं दे सकती।
मेरे संरक्षक और शुभचिंतक
इस तरह मुझे
स्वर्गारोहण का
सुरक्षा कवच देते थे।
ऐसे सुरक्षा कवच
आज भी
मिल रहे हैं मुझे।
वैज्ञानिक उपलब्धियों ने
भूण हत्याओं का आविष्कार करके
मुझे पितृसत्ताक दुखों के
उस पार जा फेंका है।
आकांक्षाए
युगों से पूरे विश्व में
पूरी होती रही हैं मेरी
पर
पिता, भाई, पुत्र के माध्यम से।
लेकिन
आज मैंने उनके माध्यम से
उच्चाकांक्षाओं की पूर्ति के
स्वप्न देखने बंद कर दिए हैं।
चिर दमित आकांक्षएं पनपती हैं-
मेरी सोलह वर्षीय आकांक्षा है
कि
मैं फेमिना से
मिस इंडिया चुनी जाऊं।
मिस वर्ल्ड और मिस यूनीवर्स बनकर
विज्ञापन की दुनिया में
परचम उड़ाऊं।
केवल चैनल्ज की दिव्य दृष्टि से
हर अनजाने कोने में पहचानी जाऊं।
मेरे अंदर बैठी
वैज्ञानिक स्त्री की आकांक्षा है
कि सुनीता विलियम्स बन
सातवें आसमान की
बुलंदियों को छू आऊं।
या फिर
राजकुमारी डायना बन
गरीबों अनाथों को कपड़े बॉंटू।
हिलेरी क्लिंटन बन
देश-विदेश की सैर करूं।
इंदिरा गांधी बन
राजनीति का संचालन करूं।
बिजनेस मैगनेट बन
विश्व बाजार की ऊठक- बैठक कराऊं।
सतरंगे स्वप्न पूरे करके भी
मेरे पैर
धरती पर
जमे रहें
जमे रहें।
......................
3 -महारावण
तामसी शक्तियों का बल
मुझे आतंकित करता है।
रावण कभी नहीं मरते
पाप कभी नहीं ढलते
बुराई अनन्त है।
मुझे पता है
रावणों के भाग्य में महाकार है
गगनचुम्बी ऊंचाई है
दस तरह की बातें करने के लिए
दस मुख
खुराफातें सोचने के लिए
दस सिर
संहार के लिए
बीस राक्षसी हाथ हैं।
कितना बड़ा झूठ है
कि
रावण मरते हैं ?
उन्हें मारने के लिए
राम की नहीं
महारावण की
आवश्यकता है।
मुझे विश्वास है
ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर
कि तुम राम नहीं हो
रावण के सगेवाल हो
तुमने
रावण से महाकार
दुख भेजकर
अपने लिए
प्रेम- भक्ति
उपासना- श्रद्धा
बटोरी है।
तुमने सिर्फ
लेना ही सीखा है
तुम कैसे पाप, दुख, दर्द का
उन्मूलन कर सकते हो ?
फिर दुनिया
तुम्हें भूल न जाएगी ?
धरती के रामों की सुरक्षा के लिए
महारावण भी रच दो प्रभु।
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रचनाकार परिचय:
नाम : मधु सन्धु
शिक्षा : एम. ए., पी एच. डी.
सम्प्रति : गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर
प्रकाशित साहित्य: कहानी संग्रह:
1. नियति और अन्य कहानियां, दिल्ली, शब्द संसार,2001
कहानी संकलन:
2. कहानी श्रृंखला, दिल्ली, निर्मल, 2003
3. गद्य त्रयी, अमृतसर, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, 2007.
आलोचनात्मक साहित्य:
4. कहानीकार निर्मलवर्मा, दिल्ली, दिनमान, 1982
5. साठोत्तर महिला कहानीकार, दिल्ली, सन्मार्ग, 1984
6. कहानी कोश, दिल्ली, भारतीय ग्रन्थम, 1992
7. महिला उपन्यासकार, दिल्ली, निर्मल, 2000
8. हिन्दी लेखक कोश,(सहलेखिका) अमृतसर, गुरु नानक देव विवि., 2003
9. कहानी का समाजशास्त्र, दिल्ली, निर्मल, 2005
सम्पादन:
10. प्राधिकृत (शोध पत्रिका) अमृतसर, गुरु नानक देव विवि., 2001-04
समकालीन भारतीय साहित्य, हंस, गगनांचल, परिशोध, प्राधिकृत, वितस्ता, कथाक्रम, संचेतना, हरिगंधा, साहित्यकुंज, अभिव्यक्ति, अनुभूति, रचनाकार, परिषद पत्रिका, हिन्दी अनुशीलन, पंजाब सौरभ, साक्षात्कार, युद्धरत आम आदमी, औरत, पंजाबी संस्कृति, शोधभारती, अनुवाद भारती, वागर्थ, मसि कागद, चन्द्रभागा संवाद आदि पत्रिकाओं में सैंकड़ों शोध पत्र, आलेख, कहानियां, लघु कथाएं एवं कविताएं प्रकाशित.
पचास से अधिक शोध प्रबन्धों एवं शोध अनुबन्धों का निर्देशन.
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aap sahi kaha hai ravano ko maarne ke liye maha ravan bahut zaruri hai...
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