आलेख -मनोज सिंह विगत सप्ताह एक चर्चित हस्ती का साक्षात्कार छपा था। व्यक्ति का नाम यहां महत्वपूर्ण नहीं। किसी के व्यक्तित्व की आलोचना...
आलेख
-मनोज सिंह
विगत सप्ताह एक चर्चित हस्ती का साक्षात्कार छपा था। व्यक्ति का नाम यहां महत्वपूर्ण नहीं। किसी के व्यक्तित्व की आलोचना करना लेखक का उद्देश्य नहीं। साथ ही, न तो उनके गुण-दोष की विवेचना करना और न ही पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर दुर्भावना फैलाना इस लेख का मकसद है। हां, मगर किसी क्षेत्र के शीर्ष पर बैठे पुरुष के कथन पर चर्चा करने में कोई हर्ज नहीं दिखाई देता। शीर्ष पुरुष सदा अग्रिम पंक्ति में होते हैं, आगे चलते हैं, अप्रत्यक्ष तौर पर समाज को नेतृत्व प्रदान करते हैं। और चूंकि नायक के पीछे अवाम चलता है इसलिए उस पर चिंतन किया जाना आवश्यक है। अब जो सफलता की ऊंची पायदान पर बैठा है उसकी क्षमता पर प्रश्नचिह्न तो लगाया नहीं जा सकता, अन्यथा हमारी खुद की व्यवस्था पर सवालिया निशान लग जाएगा, और जब वे सफल हैं तो उनके नेतृत्व पर भी सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता, मगर उनके दिशा व मार्गदर्शन की जांच-परख तो की ही जा सकती है। वैसे भी व्यक्तिगत जीवन के विश्लेषण का कोई अर्थ नहीं, मगर सार्वजनिक जीवन और विचारों पर सार्थक बहस जरूर होनी चाहिए। और वो भी सिर्फ इसलिए कि बड़ों की बातें अकसर छोटे सही मानकर उसकी कॉपी करते हैं। वे समाज के लिए आदर्श होते हैं। और इसी संदर्भ को ध्यान में रखकर कहे गये इस कथन पर गौर किया जाना आवश्यक है, वक्तव्य था कि 'धारा के साथ बहना चरित्र की कमजोरी है, एक मर्द की तरह धारा के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।`
उपरोक्त कथन बेहद ऊर्जा प्रदान करने वाला है। महत्वाकांक्षी, जुझारू और संघर्षरत युवावर्ग की सफलता के लिए यह एक मूल मंत्र की तरह काम कर सकता है। यह नवयुवकों में जोश भर सकता है। सुनने में अच्छा लगता है, कर्णप्रिय है। इसे आकर्षक 'नारा` भी कह सकते हैं। यह कुछ नया करने के लिए, आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। बोलने में प्रभावशाली लगता है। यह भी सत्य है कि यही कुछ शब्द अधिकांश चर्चित लोगों की लोकप्रियता के मूल आधार रहे हैं। वैसे भी पहचान बनाने के लिए भीड़ से हटकर रहना पड़ता है। लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ अलग होना चाहिए। तैरने वाले जानते हैं धारा के साथ बहना आसान होता है। हवा के विपरीत दिशा में चलने के लिए अधिक जोर लगाना आवश्यक है तो आंधी में खड़ा होना भी मुश्किल हो जाता है। और यही कारण है जो व्यवस्था के खिलाफ लड़ना आसान नहीं। हार जाने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता तो बर्बाद हो जाने पर मिट्टी में मिल जाने का खतरा मंडराता रहता है। लोगों की आलोचनाएं सुननी पड़ती हैं। जीत कर आगे बढ़ने पर तो सिकंदर और रुकने पर भीड़ के पैरों तले रौंद दिया जाता है।
इस सत्य के बावजूद अगर सफल होना है तो इन जोखिम भरे रास्तों पर चलने का खतरा तो मोल लेना ही होगा और साथ ही अगर चर्चित भी होना है तो यही काम थोड़ा हटकर करना होगा। मगर सवाल उठता है कि धारा में अगर कोई आरोप नहीं, दोष नहीं, तो उसके विरोध में चलना क्यूं? क्या सिर्फ अपनी पहचान बनाने के लिए या फिर आज के युग में इस तरह के लोगों की ही चर्चा होती है इसलिए? लेकिन फिर सभी हटकर कार्य करने लगें, सभी धारा के विरुद्ध चलने लगें तो कैसे काम चलेगा? सभी मर्द बन जाये और कमजोर कोई न हो तो यकीनन शुरू होगी मर्दानगी की लड़ाई, एक ऐसी महाभारत जिसमें सब कुछ नष्ट हो सकता है। अव्यवस्था फैल सकती है जो फिर समाज की शांति व्यवस्था के लिए हानिकारक हो सकती है, सभ्यता का विनाश हो सकता है।
सामान्यत: हरेक व्यक्ति को अपनी बातें सही लगती हैं। अमूमन अपने विचारों को प्रमाणित करने के लिए तर्क भी दिए जाते हैं। बुद्धिमान तो स्वयं को गलत मानता ही नहीं। ऐसे में सफल व्यक्ति का क्या कहना। वे तो अपने आप को सदा सही ठहराते भी हैं और सामने वाले से यही बात मनवाते भी हैं। लेकिन मानो अगर सभी अपने हिसाब से रहने लगें तो समाज की व्यवस्था कैसे चलेगी। सभी रास्ते में अपने मन से चलने लगें तो सड़क पर दुर्घटना की संभावना बढ़ जाएगी। परिवार में सब अपनी मनमर्जी का करने लगें तो घर, घर नहीं, होटल कहलाएगा, और फिर होटल के भी अपने कायदे-कानून हैं। यहां तक कि बाजार के भी अपने सिद्धांत हैं नहीं तो वहां भी लूट-खसोट मच जाएगी। लयबद्ध सुर-ताल से संगीत उत्पन्न होता है, अपनी ढपली अपना राग शोर उत्पन्न करता है। संक्षिप्त में अस्तव्यस्तता अस्तित्व के लिए चुनौती बन कर उभरती है। परिवार, समाज, राष्ट्र तब तक सुरक्षित हैं जब तक सब व्यवस्थित ढंग से आपस में गुंथे हुए एक दिशा में एक उद्देश्य के साथ रहते हुए आगे बढ़ रहे हैं। प्रकृति स्वयं सुनियोजित ढंग से विचरण करती है। सब कुछ संतुलित, सामंजस्यपूर्ण व सुचारु रूप से संचालित। तो क्या फिर विपरीत दिशा में चलना अप्राकृतिक नहीं है?
उपरोक्त धनी, ऊर्जावान व होशियार बुजुर्ग का यह भी कहना था कि आज भी उनकी कई महिला मित्र हैं जो उनकी बेटी से भी कम उम्र की हैं। इस पर सर्वप्रथम प्रतिक्रिया यही आयेगी कि समाज में ताकतवर को कुछ भी करने व कहने की सदा से छूट रही है। दूसरे यह उनके अंदर बैठे पुरुष की नैसर्गिक मगर अतृप्त प्यास को दर्शाता है। इसमें कोई विशेष बात नहीं, और न ही किसी भी तरह का आश्चर्य किया जाना चाहिए। यह जानवर से लेकर प्रत्येक पुरुष का प्राकृतिक गुण है कि जब तक सांस है तब तक शारीरिक चाहत बनी रहती है। कुछ इसे दबा लेते हैं और कोई विभिन्न कारणों से मजबूर, कई को मौका नहीं मिलता तो कुछ मौके की तलाश में लगे रहते है। अर्थात विपरीत लिंग का आकर्षण जीवनपर्यंत बना रहता है। मगर यहां पुन: सवाल उठता है कि सभी अपनी इस नैसर्गिक जरूरत को पूरा करने लगें तो बड़ी विकट समस्या खड़ी हो जाएगी। और अगर किसी और को पसंद आ रही महिला हमसे संबंधित निकले तो हम पर क्या गुजरेगी और ऐसे में हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए? कैसी प्रतिक्रिया होनी चाहिए? क्या हम इसे भी उतना ही सहर्ष स्वीकार कर पायेंगे? क्या यह एक बार फिर नारी के विकासक्रम को बाधित नहीं करेगी? उपरोक्त सार्वजनिक टिप्पणी कितनी सामाजिक है प्रश्नचिह्न लगना चाहिए। जहां तक रही बात उन महिलाओं की तो उन पर टिप्पणी करना नारी विरोधी कहलाएगा। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अकसर पैसे और किसी चाहत पूर्ति के लिए प्रेम का दिखावा किया जाता है।
सवाल उठता है कि मर्द की परिभाषा क्या है? क्या सिर्फ औरतों को पसंद करना ही इसकी निशानी है? क्या धारा के विरोध में खड़ा होना ही इसकी पहचान है? और इस तरह से सभी मर्द बनने लगें तो महिला वर्ग क्या होगा? सबके इंसान बनने से तो हम सब बच सकते हैं मगर सब के मर्द बनने से शायद ही कोई बचे। हां, इस बात पर सहमति हो सकती है कि धारा की उपयोगिता, सार्थकता, उद्देश्य व शुद्धता को देखा जाना चाहिए। इसका मूल्यांकन किया जा सकता है। गलत, हानिकारक, असामाजिक, अनैतिक, अमानवीय धारा के विपरीत चलना समाज, संस्कृति, सभ्यता व समय के हित में होता है और यह यकीनन मर्दानगी है। मगर इसको सुनिश्चित कौन करेगा कि यह धारा मनुष्य के लिए लाभकारी नहीं? स्वयं तोड़ने वाला? या भूत-भविष्य में विभाजित कालखंड? कोई और हो न हो मगर प्रतियोगी प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल का सदस्य नहीं हो सकता। सच तो यह है कि धारा के साथ बहना अगर कमजोर व्यक्तित्व की निशानी है तो समाज को ऐसे कमजोर की भी आवश्यकता होती है।
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संपर्क:
मनोज सिंह
४२५/३, सेक्टर ३०-ए, चंडीगढ़
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यह जरूरी नही कि जो आज धारा के साथ बह रहा है वह कल विरोध में नही खड़ा हो सकता ।रही बात सही और गलत की तो इस का फैसला हमेशा भविष्य ही करता है।आप का लेख बहुत पसंद आया।
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