यात्रा वृत्तांत आंखन देखी (अमरीका मेरी निगाहों से) ( अनुक्रम यहाँ देखें ) - डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल 8 अमरीका में अखबार बचपन ...
यात्रा वृत्तांत
आंखन देखी (अमरीका मेरी निगाहों से)
(अनुक्रम यहाँ देखें)
- डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल
8 अमरीका में अखबार
बचपन में कभी पढ़ा या सुना था कि अमरीका में अखबार बहुत 'स्वस्थ' होते हैं. कोई 100-150 पृष्ठ के. तभी से यह जिज्ञासा थी कि आखिर रोज़ इतने पन्नों में क्या परोसा जाता होगा! इधर इलेक्ट्रोनिक मीडिया और फिर इण्टरनेट के आगमन तथा प्रचलन के बाद मुद्रित शब्द पर जो खतरे मंडराने लगे हैं, उनके परिप्रेक्ष्य में भी अमरीकी अखबार को देखने परखने की आकांक्षा मन में थी. यानि, मेरे लिये अमरीका की 'दर्शनीय' चीज़ों में अखबार भी था.
अमरीका में जगह-जगह अलग-अलग अखबारों के लिये वेण्डिंग मशीनें लगी होती हैं जिनमें अखबार के मूल्य के बराबर सिक्के डालकर आप अखबार प्राप्त कर सकते हैं. वांछित मूल्य का सिक्का डालिये, अलमारीनुमा चीज़ का दरवाज़ा खुल जायेगा. आप अपने आप एक अखबार उठा लीजिये. बेईमान हों तो ज़्यादा भी उठा सकते हैं, पर यहां कोई ऐसा करता नहीं. बडे-बडे स्टोर्स में, कॉफी की दुकानों, गैस स्टेशंस(यानि पैट्रोल पम्प) वगैरह में भी अखबार बिकते हैं. यहां न बिकने वाले यानि मुफ्त में लिये जा सकने वाले अखबारों की संख्या भी काफी है. किसी भी बडे स्टोर के बाहर कम से कम 15-20 इस तरह के अखबार भी रखे मिलेंगे, जिन्हे बगैर मोल चुकाये उठाया जा सकता है. पर मैंने किसी को भी इन्हें उठाते नहीं देखा. घरों के मेल बॉक्सेज़ में भी इस तरह के अखबार डाल दिये जाते हैं. इन अखबारों की आय का स्रोत इनमें प्रकाशित विज्ञापन होते हैं. पर इनकी चर्चा थोडा बाद में.
मैंने यहां लम्बे समय तक नियमित रूप से एक अखबार ‘सिएटल टाइम्स’ पढा. वैसे समय-समय पर अन्य अखबार भी देखता रहा. मेरा यह लेख मुख्यतः इसी ‘सिएटल टाइम्स’ पर आधारित है. मुझे अन्य अखबार भी कमोबेश इसी तरह के लगे.इस अखबार की एक प्रति का मूल्य 25 सेण्ट है. रविवारीय संस्करण डेढ डॉलर का है, यानि दैनिक से छह गुना. भारतीय मुद्रा में ये राशियां क्रमशः 12 तथा 75 रुपये बैठती है. मासिक दरें थोडी कम हैं और उस पर भी अक्सर कोई न कोई आकर्षक 'डील' चलती रहती है. बिना किसी स्कीम के अखबार का मासिक मूल्य 15.5 डॉलर यानि 625 रुपये होता है.
अखबार एक पॉलीथीन की थैली में आता है और करीब-करीब रोज़ ही उसके साथ 10-12 पन्नों के अलग विज्ञापन भी रखे होते हैं. रविवार को यह अतिरिक्त सामग्री 100 पन्नों तक हो जाती है. स्पष्ट कर दूं, यह सामग्री अखबार के अलावा होती है. लगभग उसी तरह जिस तरह भारत में अखबार में रख कर हैण्डबिल वितरित किये जाते हैं. फर्क़ यह है कि यहां यह सामग्री बहुत अधिक आकर्षक होती है. न केवल मुद्रण और प्रस्तुतीकरण में, इस अर्थ में भी कि इनमें बहुत सारे कूपन भी होते हैं जिन्हें खरीददारी करते वक़्त इस्तेमाल कर अच्छी बचत की जा सकती है. यही कारण है कि गृहिणियां इनका इंतज़ार करती हैं. दैनिक अखबार लगभग 70 पेज का तथा रविवारीय लगभग 160 पेज का होता है. ये पृष्ठ अलग-अलग खण्डों में विभक्त होते हैं तथा ये खण्ड अलग-अलग ही मुडे होते हैं, यानि 70 पेज का अखबार 8-10 अखबारों के समूह की मानिन्द होता है.
अखबार के मुख्य खण्ड राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, स्थानीय, व्यापार, खेल्-कूद, सप्ताहांत, वर्गीकृत विज्ञापन वगैरह होते हैं. कुछ खण्ड दैनिक न होकर साप्ताहिक होते हैं यानि वे सप्ताह में किसी एक दिन प्रकट होते हैं. ऐसे खण्ड हैं मोटरिंग, टैक्नोलॉजी,फूड एण्ड वाइन, यात्रा, सिनेमा-थिएटर, गार्डनिंग वगैरह. पूरे सप्ताह में कम से कम 4 पेज पुस्तक समीक्षाएं होती हैं. पर कहानी-कविता कभी नहीं होते.
अखबार की सामग्री में खासा वैविध्य होता है. राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर गम्भीर समाचार होते हैं. समाचार और विचार में घालमेल प्रायः नहीं होता. सभी समाचारों में घटना पक्ष पर ज़्यादा बल होता है, कथन पक्ष पर न्यूनतम. हमारे देश की तरह नहीं कि वक्तव्य ही समाचार हो. बडे लोगों के वक्तव्य समाचार में तभी आते हैं जब उनकी कोई खास अहमियत हो. बडे लोग बहुत ज़्यादा स्पेस भी नहीं लेते हैं. अमरीकी राष्ट्रपति की नगर यात्रा का समाचार पूरे पृष्ठ पर नहीं फैला और न पूर्व राष्ट्रपति की मौत के समाचार ने सब कुछ को पीछे धकेला. अंतरराष्ट्रीय समचारों में भारत को बहुत ही कम जगह मिलती है. भारत में आम चुनाव के समय तीन-चार दिन लगातार भारत के समाचार छपे, या फिर कुम्भकोणम त्रासदी के समय. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि यहां भारत की उपेक्षा होती है. असल बात यह कि जब भी इनके लिहाज़ से भारत में कुछ भी महत्वपूर्ण होता है, उसे ये निस्संकोच प्रमुखता देते हैं. अगस्त 04 के पहले सप्ताह में लगातार चार दिन तक मुखपृष्ट पर प्रमुखतम स्थान पर सिएटल टाइम्स के टैक्नोलोजी रिपोर्टर ब्रायर डडली की एक आमुख कथा धारावाहिक छपी- ‘Shifting Fortunes:Pain and gain in the global economy’ यानि बदलती तक़दीरें उर्फ वैश्विक अर्थव्यवस्था के सुख-दुख. हर कथा-किश्त पूरे अखबार के कम से कम तीन पृष्टों में फैली थी और साथ में थे अनेक रंगीन चित्र. अपने पांच माह के अमरीका प्रवास में इस अखबार में किसी एक प्रकरण को इतनी तवज़्ज़ोह मैने नहीं देखी. कथा में था यह कि वैश्विक अर्थव्यवस्था कैसे भारत की आकृति संवार रही है. हैदराबाद और बंगलौर केंद्रित यह कथा भारत में कम्प्यूटर क्रांति का लगभग गुणगान ही थी. गौरतलब है कि इन दो शहरों ने पिछले कुछ वर्षों में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में खासी उपलब्धियां अर्जित की हैं. कथा में भारत के उन नीति निर्धारकों की उन्मुक्त सराहना की गई जिन्होंने शिक्षा और विकास का आधारभूत ढांचा खडा किया. पूरी कथा पढकर हमें भी अपने भारतीय होने पर गर्व हुआ. लेकिन कथा एक तरफा नहीं थी. इसका एक अमरीकी पक्ष भी था. अमरीका में आउटसोर्सिंग को लेकर एक गम्भीर बहस चल रही है. अमरीकी कम्पनियां अपना बहुत सारा काम तीसरी दुनिया के देशों में करवाने लगी है. यही आउटसोर्सिंग है. अमरीकी जनता के एक वर्ग का खयाल है कि इस कारण अमरीका में रोज़गार की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड रहा है, और इसीलिये यहां इसका विरोध भी है. पर जो इसके समर्थन में हैं वे कहते हैं कि ऐसा नहीं है, साथ ही यह भी कि तीसरी दुनिया में श्रम सस्ता होने की वजह से न केवल उत्पादन लागत घटती है, तीसरी दुनिया के लोगों का जीवन-स्तर ऊंचा उठाने का पुण्य भी मिलता है. इस अति-विस्तृत, गवेषणापूर्ण, सकारात्मक आमुख कथा को पढते हुए मुझे लगा कि अखबार,आदमी,कुत्ता और काटना...(वह प्रसिद्ध कथन कि कुत्ता आदमी को काटे तो खबर नहीं होती, खबर तो तब होती है जब इसका उलट हो.)यानि असामान्य, विकृत और नकारात्मक को ही सामने नहीं लाता है, और न सारे समाचार राजनेता बनाते हैं, अखबार के लिये तो इन सितारों से आगे जहां और भी हैं..
सम्पादकीयों में अक्सर अमरीका के अन्दरूनी मामलों पर ही टिप्पणी होती है. बहुत विश्लेषणात्मक तथा संतुलित. अन्य वैदेशिक मामलों पर भी पूरे संयम समझ-बूझ तथा तैयारी के साथ लिखा जाता है. बीच के पन्नों में विशेषज्ञों के उम्दा लेख हर रोज़ पढने को मिल जाते हैं. इन पृष्ठों पर रोज़ ही पाठकों के ऐसे पत्र भी छापे जाते हैं जिनमें समकालीन मुद्दों पर गम्भीर प्रतिक्रियाएं होती हैं. अमरीकी पक्ष की तीखी आलोचना करने वाले पत्रों की संख्या भी कम नहीं होती. यहां अखबार में पाठकों की सहभागिता काफी होती है और इस सहभागिता को अक्लमन्दी के साथ अलग-अलग जगहों पर रखा जाता है; मसलन स्थानीय मुद्दों को अलग जगह, खेल विषयक को अलग, यातायात विषयक को अलग, कला-साहित्य विषयक को अलग, टैक्नोलॉजी विषयक को अलग और नितांत निजी को अलग.
ऐसे बहुत सारे कालम इस अखबार में छपते हैं जिनमें पाठक अपनी समस्याओं/उलझनों की चर्चा कर सम्बद्ध विशेशज्ञ से मशविरा मांगते हैं. ऐसे दो कालम तो बहुत ही लोकप्रिय हैं. एक है 'डीयर एबी'. एबीगेल वान ग्यूरेन लिखित यह सिंडिकेटेड कालम रोज़ छपता है. यह महिला कुछ-कुछ हमारे यहां की एगोनी आण्टी की तरह है. पाठकगण इनसे अपनी निजी उलझनों की चर्चा करते हैं. इन चर्चाओं को पढ़ कर मुझे अमरीकी समाज को ज्यादा अच्छी तरह समझने का अवसर मिला. समस्याएं प्रेमी/पति की बेवफाई, सास के अवांछित हस्तक्षेप, बहिन की उपेक्षा, सहकर्मी के ओछेपन जैसी चीज़ों को लेकर अधिक होती हैं. एबीगेल की सलाहों पर भी पाठकों की प्रतिक्रियाएं छापी जाती हैं. इस कालम को पढकर यह भी पता चलता है कि अमरीकी समाज कितना खुला समाज है, यह भी कि इन लोगों की व्यक्तिगत की परिभाषा क्या है, और यह भी कि ये लोग शिष्टाचार की सूक्षमताओं की कितनी परवाह करते हैं. इसीसे मिलता-जुलता एक स्तम्भ मिस मैनर्स नाम से जूडिथ मार्टिन लिखती हैं. शुरू-शुरू में तो यह स्तम्भ मुझे काफी हास्यास्पद लगा लेकिन धीरे-धीरे इसने मेरे सामने अमरीकी समाज का एक उजला पक्ष उजागर किया. भारत में जिन चीज़ों को हम क़तई तवज्जोह नहीं देते हैं, उनकी बहुत परवाह ये लोग करते हैं, यह जानकर मुझे इनसे थोडी ईर्ष्या ही हुई.शिष्टाचार विषयक जिज्ञासाएं बहुत दिलचस्प हैं. एक की चर्चा तो मैंने इस पुस्तक में अन्यत्र की भी है. अभिवादन, उपहार, निमंत्रण, बधाई, सम्वेदना जैसे विषयों पर बहुत बारीक सवाल उत्कृष्ट समाज व्यवहार के द्योतक हैं. वैसे भी, यह समाज व्यवहार यहां हर जगह दिखाई देता है.
कला साहित्य संस्कृति के परिशिष्ट (अगर उसे यह नाम दिया जा सके) में नई फिल्मों, किताबों, संगीत समारोहों, कला प्रदर्शनियों, आदि की विस्तृत समीक्षा या चर्चा होती है. यहां की एतद्विषयक सारी गतिविधियों की सूचनाएं भी नियमित रूप से छपती हैं. एक अलग सी बुकलेट में सप्ताह भर के टी वी कार्यक्रमों की सूची और एक अन्य बुकलेट में तमाम सिनेमाघरों, कलावीथियों, होटलों-रेस्टोरेण्टों आदि के बारे में (हर सप्ताह) विवरण छपता है.
खेलकूद के प्रति अमरीकियों का लगाव जगजाहिर है, अतः स्वाभाविक ही है कि स्पोर्ट्स वाले खण्ड में खेल कूद गतिविधियों की सचित्र, विशद चर्चा होती है. ओलम्पिक के दौरान प्रतिदिन लगभग छह पृष्ठ भर विशेष सामग्री अलग से दी जाती रही. वाणिज्य-व्यापार वाले 6 पृष्ठीय अंश में कोई तीन पेज तो शेयर बाज़ार को ही समर्पित रहते हैं, शेष तीन पेज में बडे वाणिज्यिक समाचार होते हैं.इसी खण्ड के अंतर्गत सप्ताह में एक दिन टैक्नोलॉजी विषयक परिशिष्ट आता है जिसमें नए तकनीकी उत्पादों की चर्चा के साथ-साथ विशेषज्ञगण द्वारा पाठकों की तकनोलॉजी विषयक शंकाओं एवम उलझनों का समाधान किया जाता है. बागबानी, मोटरिंग,ज़मीन जायदाद आदि के परिशिष्ट भी इसी तरह के होते हैं. फूड एण्ड वाइन वाले परिशिष्ट में वाइंस पर गम्भीर और चकित कर देने वाली विशेषज्ञतापूर्ण चर्चा होती है. सप्ताह में एक दिन पूरा एक पन्ना स्वास्थ्य चर्चा का होता है. इस पन्ने पर पीपुल्स फार्मेसी शीर्षक कालम में लोगों की दवा विषयक जिज्ञासाओं के उत्तर दिये जाते हैं. यहां दवा की दुकान को फार्मेसी तथा दवा को ड्रग कहा जाता है. हर रोज़ मौसम की सचित्र, विशद चर्चा होती है, अमरीका और पूरी दुनिया के प्रमुख शहरों का तापमान आदि छपता है, और मौसम की भविष्यवाणी छ्पती है, जो आश्चर्यजनक रूप से सही सिद्ध होती है. भविष्यफल, कॉमिक्स, वर्ग पहेली वगैरह रोज़ छपते हैं.
कुल मिलाकर पूरा अखबार बहुत संतुलित, विशेषज्ञतापूर्ण,वैविध्यभरा होता है. सारा अखबार तो शायद ही कोई पढता हो. इसी बात को ध्यान में रखकर उसे अलग-अलग खण्डों में पेश किया जाता है. मैं तो ज़मीन-जायदाद (Real Estate), बिज़नेस,और स्पोर्ट्स के खण्ड आते ही अलग रख दिया करता था. बिज़नेस का खण्ड उसी दिन देखता था जिस दिन उसमें तकनोलॉजी की चर्चा होती थी. अन्य पाठक भी अपनी-अपनी रुचि के अनुरूप ऐसा ही करते होंगे. पर, आप जिस खण्ड को भी देखें, यह अवश्य पाएंगे कि उसे पूरी समझ और तैयारी के साथ तैयार किया गया है. पूरी सामग्री को एक साथ परखें तो उसका वैविध्य चकित व आह्लादित करता है. लगता है, अगर रुचि व फुरसत हो तो इस एक अखबार को ही नियमित रूप से पढकर आप अपने ज्ञान्, सोच व समझ को खासा समृद्ध, उन्नत व परिष्कृत कर सकते हैं.
अखबार के ले-आउट(Lay-out) को लेकर भी समय-समय पर प्रयोग किये जाते हैं. मेरे देखते-देखते भी इसका ले-आउट बदल कर इसे ज़्यादा यूज़र फ्रैण्डली बनाया गया.
इसी अखबार को इण्टरनेट पर भी पूरा पढा जा सकता है. इस मामले में यह हमारे अखबारों से काफी आगे है. हमारे अधिकांश अखबार अभी भी नेट पर अंशतः ही उपलब्ध होते हैं.
अब थोडी चर्चा मुफ्तिया अखबारों की. यहां नमूने के तौर पर मैं 'सिएटल वीकली' को लेता हूं. कुल 124 पेज का यह अखबार करीब-करीब विज्ञापनों से ही भरा है.इस प्रकाशन में कोई 100 पेज शुद्ध विज्ञापन के हैं. साप्ताहिक में वैसे भी आप ताज़ा समाचारों की उम्मीद तो नहीं करते. यहां कुछ छोटे-मोटे लेख हैं और हैं आयोजनों की सूचनाएं. नई फिल्मों, नए संगीत और नई जारी डीवीडीज़(DVDs) की समीक्षाएं हैं. भविष्यफल भी है.
घर, गाडी, फर्नीचर, बागवानी आदि के आम विज्ञापन तो इसमें भरपूर हैं ही, मुझे बेहद चौंकाने वाले विज्ञापन वे लगे जो Women seeking men,Men seeking women,Men seeking men, Swap meet, Adult employment जैसे शीर्षकों के अंतर्गत छपे थे. इन विज्ञापनों में न तो संकेतात्मक शब्दावली थी न कोई दुराव-छिपाव. सीधे-सीधे, एकदम बिन्दास तरह से अपनी ज़रूरत या अपनी सेवा को प्रचारित किया गया था. और भी आगे, कुछ देवियों ने तो अपने चित्र के साथ ही विज्ञापन दे रखे थे. चाहें तो इसे इस समाज की विकृति कह लें. मैं तो इसे प्रशंसनीय खुलापन ही कहूंगा. जो है, है! उसे कोई आवरण देने की क्या ज़रूरत है? क्या हम 'मसाज पार्लर' का असली अर्थ नहीं समझते? फिर, जैसे ये कहते हैं, उसमें क्या बुराई है? पर ऐसे विज्ञापन ज़िम्मेदार अखबारों में नहीं छपते.
अमरीकी अखबार की इस चर्चा को अपनी एक सराहना के साथ समाप्त करना चाहता हूँ. सिएटल टाइम्स में हर रविवार को एक कालम छपता है- Rant and Rave जिसके माध्यम से आम पाठक अपनी सराहना या निन्दा को अभिव्यक्ति देता है. अगर किसी व्यस्त सडक पर किसी ने गलत तरीके से ओवरटेक किया तो उसकी आलोचना और अगर किसी सूनी सड़क पर आपको परेशान देखकर किसी ने आपकी मदद की तो उसके लिये कृतज्ञता. जिनके लिये यह सब लिखा जाता है, उनके नाम नहीं होते, पर लिखा इस उम्मीद से जाता है कि वे इसे पढेंगे. मुझे लगा, अपने समाज को सजाने-संवारने और उसकी खर-पतवार को साफ करने का यह एक उम्दा तरीका है.
अगर भारत के अखबार भी ऐसा करें तो?
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(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)
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शुक्रिया! अच्छा लगा अमरीका के अखबारों को जानकर!!
जवाब देंहटाएंअखबार आधुनिकेक जीवन के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ऐसी हालत में उन्हें विविध प्रकार से उपयोगी बनाने से किसी समाज का लाभ साधा जा सकता है। इस सन्दर्भ में यह लेख बहुत ही सार्थक है। विशेषरूप से, प्रस्तुति बहुत ही प्रभावकारी और आकर्षक लगी।
जवाब देंहटाएं"सिएटल टाइम्स में हर रविवार को एक कालम छपता है- Rant and Rave जिसके माध्यम से आम पाठक अपनी सराहना या निन्दा को अभिव्यक्ति देता है. अगर किसी व्यस्त सडक पर किसी ने गलत तरीके से ओवरटेक किया तो उसकी आलोचना और अगर किसी सूनी सड़क पर आपको परेशान देखकर किसी ने आपकी मदद की तो उसके लिये कृतज्ञता. जिनके लिये यह सब लिखा जाता है, उनके नाम नहीं होते, पर लिखा इस उम्मीद से जाता है कि वे इसे पढेंगे. मुझे लगा, अपने समाज को सजाने-संवारने और उसकी खर-पतवार को साफ करने का यह एक उम्दा तरीका है. अगर भारत के अखबार भी ऐसा करें तो?"
जवाब देंहटाएंइन्दौर से निकलने वाले नईदुनिया में रविवारीय संस्करण में 'फाँस' और 'आस्था' नाम से ऐसे दो स्तंभ प्रकाशित होते हैं
maine aake kaafi lekh padhe. aap par america ka asar kuch zyada hi ho gaya hai. kya america me bhikhari nhi hote? kya america me garibi nhi hai? kya america me chori nhi hoti? garibi, berozgari har jagah hai. aise to koi videshi new delhi aur agra ka tajmahal dekhe aur keh de ki bharat bahut achcha hai lekin wo sach to nhi hoga. theek usi tarah aapne bhi kewal america ke achchai ko dekha aur usi baare me apne vichaar diye. aap america ke andh-bhakt lagte hai. un logo ki tarah jinhe america ki har cheez achchi lagti hai. agar america itna hi achcha hai to kyo waha se log india aate hai yog seekhne ke liye. agar unka jeewan itna hi achcha hai to kya zarurat hai unhe yaha aane ki?
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