व्यंग्य अनुशासन का राशन - हसन जमाल (हाल ही में हसन जमाल चर्चा में तब आए जब उनके इंटरनेट पर प्रतिक्रिया स्वरूप पत्र ...
व्यंग्य
अनुशासन का राशन
- हसन जमाल
(हाल ही में हसन जमाल चर्चा में तब आए जब उनके इंटरनेट पर प्रतिक्रिया स्वरूप पत्र के प्रति-प्रतिक्रिया स्वरूप कोई तीन पत्र नया-ज्ञानोदय में छपे और जिनकी चर्चा कुछ चिट्ठों में तो हुई ही, इसकी गूंज तहलका (पत्रिका) तक में भी सुनी गई. प्रस्तुत है हसन जमाल का लिखा व्यंग्य जो निरंतर के अगस्त 05 अंक में प्रकाशित हुआ था. निरंतर के कलेवर को देखते हुए इसे अच्छा खासा संपादित कर दिया गया था. यहाँ पर प्रस्तुत है उनका व्यंग्य अपने पूरे, असंपादित रूप में )
अनुशासन और राशन में एक चीज़ समान है, वह है, सीमितता. अनुशासन मनुष्य मात्र को सीमित बनाता है, उसकी मुश्कें कस देता है. अनुशासन के नाम पर मनुष्य को पालतू पशु बनाया जा सकता है, जैसा कि सब तरह की शासकीय व्यवस्थाएँ करती हैं. और, राशन के कॉशन को तो आप सब जानते ही हैं यानी एक लिमिट, उससे आगे कुछ नहीं. पहले धान, चीनी, कपड़े आदि राशन से मिला करते थे, अब रोज़गार राशन से मिलते हैं. उस राशन को आरक्षण कहते हैं जिसका सारा देश भुक्तभोगी है. बाबाजी चले गए और अपनी आरक्षण रूपी धुनी यहीं छोड़ गए. उस धुनी को निकम्मे लोग ताप रहे हैं और जो गुणी हैं उन्हें चांप रहे हैं.
बात चल रही थी अनुशासन की और अनुशासन जो है, उसने सबको पीड़ित कर रखा है और उससे छुटकारा पाने के लिए हर ख़ासो-आम छटपटा रहा है. यह अनुशासन अगर किसी पार्टी का लोकप्रिय व प्रचलित सिद्धांत हो तो फिर बात अनुशासन के दायरे में नहीं रहती, सत्ता के गलियारों में घूमती रहती है. अब जैसे हमारे यहाँ एक भाइपा पार्टी है, उसे अपने देश से ज्यादा अपने अनुशासन का गर्व-गुमान है. भाइपा पार्टी में सब भाइपे से रहते हों, यह जरूरी नहीं है. जरूरी यह है कि अनुशासन भंग करने का कितना राशन किसको मिलता है, उसका ख़याल रखना है. राशन से ज्यादा कोई खर्च करेगा तो उसे रिमोट द्वारा कंट्रोल किया जाएगा.
यह रिमोट जो है वह बड़ा ही भोट है. चलते, गिरते, पड़ते देश 21 वीं सदी में आ गया. पर रिमोट अभी तक 19 वीं सदी में सांस ले रहा है. कभी-कभी तो वह मध्य युग में सांस लेने लगता है. इस चित्र-विचित्र रिमोट को वास्तव में मध्य युग से ही ऊर्जा मिलती है. सो, इस मध्ययुगीन रिमोट से भाइपा पार्टी अनुशासित है (कह सकते हैं कि पीड़ित भी है). रिमोट ने जो कह दिया ब्रह्माजी ने कह दिया. मतदाता जाएं भाड़ में. मतदाताओं की कृपा से भाइपा ने पाँच बरस के लगभग देश का शासन चलाया और अपना राशन पाया. गलती यह हुई कि खुद को चिरकालीन शासक समझ बैठी. रिमोट को यह कैसे बरदाश्त होता. गुजरे जमानों में किसी जादूगर की जान अगर तोते के गले में अटकी होती थी तो भाइपा की जान रिमोट के पुश-बटन में होती है. रिमोट हरकत में आया नहीं कि प्रधानमंत्री से लेकर हंगामा मंत्री तब सब छटपटाने लगते हैं. काली टोपी, ख़ाकी नेकर - यू आर माई केयरटेकर - रहम कर, रहम कर, हम तेरे गुलाम, तुझे लाखों प्रणाम. देश जाए भाड़ में, हम रहेंगे तेरी आड़ में...
सो, भाइपा पार्टी का जब ऐसा हाल है तो समझ लीजिए, देश का क्या हाल होगा? यह सितमज़रीफ़ी नहीं तो क्या है कि ऐसे महान देश की किस्मत रिमोट के हाथ में है. कौन कहता है कि देश का भाग्य जनता के हाथ में है? दरअसल रिमोट की चोट के आगे वोट की चोट बेकार है. अगर वोट की चोट में दम होता तो क्यों भाइपा पार्टी के सिपहसालार नागपुर दरबार में घुटने टेकने जाते. किसी वोट के लाल ने एक भी सिपहसालार से पूछा कि क्यों जी, वोट तो हम से लेते हो, घुटने नागपुर-दरबार में टेकते हो? यह क्या जार्जशाही जमाना है? लाओ, हमारा वोट हमें लौटा दो. लेकिन हाय अफ़सोस, वाय अफ़सोस. वोटों के लालों में इतना ही माद्दा होता तो काहे को रिमोट के पौ बारह होते. अजब गोरख धंधा है. भाइपा पार्टी अनुशासन में रहे तो रहे, यह साली जनता क्यों अनुशासन में रहती है? उसका तो अनुशासन से जनम-जनम का वैर है. अगर जनता अनुशासन का ही विकास करती, तो यह महान देश कहाँ से कहाँ पहुँच जाता. पर क्या है कि जनता ने अनुशासन का ठेका काली टोपी को दे दिया तो अब बैठे रहो तसव्वुरे जानां किये हुए. मेहदी हसन की गायी ग़ज़ल आपको याद है कि नहीं - अब ख़ाक उड़ाने को बैठे हैं तमाशाई...
तो भाई, हम सब तमाशाई हैं. जाजम बिछाने और उठाने वाले और खाक़ उड़ाने वाले. हमारे हाथ में फक़त संविधान है. संविधान कितना ही शक्तिमान क्यों न हो, अनुशासन से महान नहीं हो सकता और अनुशासन जहाँ महान होता है वहाँ देश नहीं, रिमोट महान होता है (कुछ लोग रिमोट को हाई कमान भी कहते हैं हाई कमान का कमांड ही जिल्ले इलाही का इंसाफ़ होता है) और जहाँ रिमोट महान होता है, वहाँ हिंदुस्तान जन्नत निशान होता है. जन्नत तो किसने देखी होगी, बर्बादे-गुलिस्तान जरूर देख रहे हैं हम. जहाँ हर शाख़ पे उल्लू बैठा है और गाये जा रहा है - जहाँ डाल-डाल पे चिड़ियाँ करती है बसेरा वह भारत देश है मेरा... गीतकार महोदय, जरा संबोधन कर लो. चिड़ियों को तो रहने दो (वे बेचारी कहाँ जाएंगीं?) बस, मेरा की जगह तेरा कर दो. तेरा यानी रिमोट का, क्योंकि रिमोट ही भारत का असली दावेदार है. शेषसब तो ख़तावार हैं और जिनका ख़तना हो रखा है वे हक़ीक़ी सज़ावार हैं.
रिमोट उवाच:
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धीरज रखिए, सज़ा का दिन भी आएगा. अभी परिस्थितियाँ कुछ अनुकूल नहीं हैं, लेकिन हम हमेशा विपरीत परिस्थितियों में ही आगे बढ़ते हैं. न अंग्रेज हमारा कुछ बिगाड़ सका, न नेहरू-गांधी हमारा कुछ उखाड़ सके. हम फ़िनिक्स हैं और हर बार राख से नया जन्म लेते हैं और चारों तरफ़ राख राख कर देते हैं. हम अनुशासनी हैं तो श्मशानी भी हैं. हमारे अनुशासन के चलते जब भाइपा फिर सत्ता में आएगी तब ये जाएंगे पाकिस्तान या फिर कब्रिस्तान. एक मुद्दे की बात तो छूटी ही जा रही है, शासन और अनुशासन के दरमियान जब तब हमारा शीर्षासन, वज्रासन, पद्मासन आदि चलते रहते हैं. ये हमारे अस्त्र-शस्त्र हैं. जब जहाँ जिसकी जरूरत हो, वहाँ उसका इस्तेमाल कर लेते हैं. इन आसनों के बदौलत ही भाइपा पार्टी पर हमारा कंट्रोल है. हम यूं ही रिमोट नहीं ना हैं.
और, सुनिये, नागों को तो आपने फैंटेसी कहानियों व फ़िल्मों में मनुष्य रूप धारण करते पढ़ा व देखा होगा, मगर हम नागपुर में साक्षात दिखाते हैं. नागपुर के नागों का नागालैंड के नागा भी मुकाबला नहीं कर सकते. हमारे काटे का इलाज संविधान में भी नहीं, मनु-स्मृति में हो तो हो.
जय हो प्रभु.
अंधों के हाथ में आईने दे दिए
कैसों को हिंदुत्व के मायने दे दिए
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रविजी, आभार पढ़ाने के लिए ।
जवाब देंहटाएंहसन जमाल की व्यंग्य रचना प्रस्तुत करने के लिए साधुवाद.
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