मनमोहन हर्ष विश्व कप क्रिकेट में करोड़ों चहेतों की उम्मीदों व देश की प्रतिष्ठा को एवरेस्ट की ऊँचाई से गर्त में धकेलने के बाद ब...
- मनमोहन हर्ष
विश्व कप क्रिकेट में करोड़ों चहेतों की उम्मीदों व देश की प्रतिष्ठा को एवरेस्ट की ऊँचाई से गर्त में धकेलने के बाद बांग्लादेश के विरुद्ध टेस्ट व एक रोजा सिरीज में भारत की जीत एक बार पुन: सर्वत्र सुर्खियों में छाई है । माहौल में ऐतिहासिक जीत, दिव्य रिकॉर्डस व ढाका पर चढाई जैसे विशेषण यह आभास पैदा करते हुए कि गोया यह जीत विश्व कप विजय से भी बड़ी जीत है, असलियत पर पर्दा गिराने की साजिश रच रही है। वैसे भारतीय क्रिकेट में झेंप मिटाने का यह शगल पुराना है । वास्तविकता को पार्श्व में धकेलना, छोटी - मोटी जीत को बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत करना व इसके सहारे फजीहत के दाग को छिपाकर क्रिकेट प्रेमियों को कृत्रिम गर्व में भटकाए रखने की परम्परा सी पनप गई है । इस परम्परा का निर्वहन करना बोर्ड, मीडिया व क्रिकेट के व्यावसायिक पक्ष में अपना हित देखने वाले हर पक्ष की मजबूरी बन गया है। कहना न होगा कि मजबूरी के द्वारा रचे गये इस खेल ने देश के क्रिकेट प्रेमियों की संवेदनाओं को भी मृतप्राय: कर दिया है । अब आम क्रिकेट प्रेमी ऐसे माहौल का शिकार हो गया है, जहां क्रिकेट को अपने आर्थिक हितों के लिए भुनाने वाले इन लोगों के इशारों पर उसकी भावनाएं उबाल लेती हैं, शांत होती है या इस कृत्रिम माहौल में पुन: शरीक होकर गुणगान का राग अलापने लगती है ।
क्रिकेट के व्यवसायवाद ने भारत में रोमांच, जुनून व खेल के प्रति चाह को कृत्रिमता के आचरण में कैद करके रख दिया है। अब तो हालात यहां तक आ पहुँचे है कि मीडिया जब रुलाता है तो क्रिकेट प्रेमियों के आंसू निकलते है तथा अगले ही पल जब मीडिया क्रिकेटरों पर पुन: सिर आंखों पर बैठाने लगता है तो लोग जख्मों को भूल कर जश्न में शरीक हो जाते हैं । जन भावनाओं व क्रिकेट के रोमांच के ठेकेदार बनते जा रहे पक्षों ने ही भारत में क्रिकेट का बेड़ा गर्क किया है । फजीहत व पराजय के हर मोड़ पर ये घड़ियाली आंसू बहाने के साथ - साथ उस पर पर्दा गिराने का अवसर ताकने लगते हैं ताकि क्रिकेट से जुड़े उनके हितों की मौत न हो । बिल्लियों के भाग का छींका इस बार बड़ी जल्दी टूट गया है । उपमहाद्वीपीय परिस्थितियों में घर के शेरों ने बांग्लादेश को छकाकर उनकी मुराद सी पूरी कर दी है । वैसे देखा जाए तो बांग्लादेश को ऐसे दस दौरे में अनवरत इसी तरह हराने के बाद भी विश्व कप की उस एक हार व उससे भारतीय क्रिकेट की प्रतिष्ठा को हुई क्षति के दंश को नहीं भुलाया जा सकेगा। इस हकीकत को आत्मसात कर भारतीय क्रिकेट का भविष्य सुधारने का जज्बा अब शेष कहां दिखाई देता है ।
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संदर्भ: ब्रायन चार्ल्स लारा का बेमिसाल कैरियर
कैरेबियन क्रिकेट के दर्द का महाकाव्य
- मनमोहन हर्ष
विश्व कप क्रिकेट की चकाचौंध, सफलता का आरोहण करने वाले सितारों व टीमों की चर्चा के बीच आलमी क्रिकेट के एक ऐसे बेमिसाल खिलाड़ी की विदाई गुमनामी के अँधेरों में खोकर रह गई, जिसने अपने बेमिसाल कैरियर के दौरान खेल के मैदान पर समर्पण के साथ-साथ मुल्क व क्रिकेट के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का अद्वितीय मुजाहिरा किया है। जी हाँ, कैरेबियाई क्रिकेट के महानायक ब्रायन चार्ल्स लारा का रुतबा कुछ ऐसा ही रहा है, जिसके समक्ष विश्व कप विजेता व व्यक्तिगत स्तर पर लोकप्रियता की हदें छूने वाले नामी क्रिकेटरों की आभा भी कई मायनों में फीकी नजर आती है। घरेलू मैदानों पर वेस्टइंडीज को विश्व विजेता का ताज दिलवाने में नाकामी का दंश झेलकर विश्व क्रिकेट से रुखसत हुए दिव्य प्रतिभा के धनी लारा ने अपने 17 वर्षों से ज्यादा लम्बे कैरियर में अनेकानेक अवसरों पर बल्ले का ऐसा जलवा बिखेरा, जिसने क्रिकेट के मैदानों पर रोमांच व श्रेष्ठता के अध्याय रचे। आलमी क्रिकेट में लारा की समकालीन सितारों से तुलना करने पर हम देखते है कि जिस प्रकार की विषम विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए लारा ने अपने बल्ले से महासमर लड़ा, वैसी नाउम्मीदी से भरी घड़िया उनके कई समकालीन खिलाड़ियों को सौभाग्य नसीब नहीं हुई। ऐसे में लारा के खाते में विश्व कप विजेता बनने की उपलब्धि भले ही दर्ज नहीं हो पाई हो बावजूद इसके उनका कैरियर महानता व समर्पण की अनोखी व अमिट छाप क्रिकेट के असंख्य चाहने वालों के दिलोदिमाग पर छोड़ गया है, जिसका ओज क्रिकेट की आने वाली पीढ़ियों को रोशन करता रहेगा।
ब्रायन लारा के कैरियर पर निगाह डाले तो हमें अनहोनी को होनी में तबदील कर देने के सदृश कई महामानवीय प्रदर्शन देखने को मिलते है, जो कैरेबियन व विश्व क्रिकेट के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित है। सेंट जोंस एंटीगा के मुकाम पर 2004 में टेस्ट क्रिकेट में निर्विवाद विश्व श्रेष्ठता की परिचायक 400 रनों की नाबाद पारी खेलकर लारा ने ऐसा कारनामा कर दिखाया था, जिसे छू पाना किसी भी क्रिकेटर के लिए नाकों चने चबाने के बराबर होगा। ब्रायन लारा की यह पारी कैरेबियन क्रिकेट के डूबते सूरज के बीच, उसके लिए (कैरेबियन क्रिकेट) सदैव अपना सर्वस्व दांव पर लगाकर कुछ नया कर गुजरने को प्रतिबद्ध एक सितारे द्वारा गहराते धुंधलकों के बीच उम्मीदों को चिराग रोशन कर देने वाला करतब था। वक्त के उस मोड़ पर लारा व बीते जमाने के क्रिकेट बादशाह वेस्टइंडीज नियति के थपेड़ों को झेलते-झेलते सातवें आसमान से रसातल में धंसने का दंश झेल रहे थे। कहना न होगा कि लारा के कैरियर में नियति ने कमोबेश प्रत्येक मोड़ पर ऐसी ही अग्नि परीक्षाओं के अवरोध खड़े किए, मगर अपनी हाई बैकलिफ्ट व बल्ले से निर्मम प्रहारों की बाजीगरी से चुनौतियों को फतह करने में आनंद की अनुभूति करने वाले लारा ने व्यक्तिगत स्तर पर बारम्बार चौंकाने वाला प्रदर्शन कर कैरेबियन क्रिकेट की प्रतिष्ठा का परचम अकेले दम पर लहराया।
लारा के बल्ले से चार सौ रनों की वह कालजयी पारी उस समय निकली जब लाजवाब बल्लेबाजों व तूफान को भी अपनी रफ्तार से धता बता देने वाले तेज गेंदबाज़ों से विश्व क्रिकेट में चहुंओर अपनी कीर्ति पताका लहराने वाला वेस्टइंडीज उन टीमों के हाथों लाचार व बेबस सा पिटता चला जा रहा था, जिनको सहज ही धूल चटाना कभी कैरेबियन दिग्गजों के लिए बाएं हाथ का खेल हुआ करता था। विध्वंसक तेवरों के बल पर प्रतिद्वंद्वियों को मैदान पर चारों खाने चित्त करने की कैरेबियन परम्परा को जैसे कोई सांप सूंघ गया था। बद से बदतर होते हालात के बीच सदैव चुनौतियों का बीड़ा उठाकर एक संकटमोचक की तरह रणक्षेत्र में प्रतिपक्षियों से लोहा लेकर कैरेबियन क्रिकेट की प्रतिष्ठा के क्षरण को थामने के लिए संघर्षरत रहे लारा ने अपनी उस विस्फोटक पारी से वेस्टइंडीज क्रिकेट में प्राणवायु का संचार करने का अद्वितीय प्रयास किया।
कैलिप्सो की धुन पर लाल सुरा की मस्ती के साथ दिल की गहराईयों तक क्रिकेट को चाहने वाले कैरेबियाई क्रिकेट प्रेमी विश्व क्रिकेट में दीवानगी की मिसाल माने जाते है। लेकिन असफलता के अनवरत दौर ने इन दीवानों का भी खेल से मोहभंग कर दिया। कभी रोहन कन्हाई, गैरी सोबर्स, क्लाईड वॉलकॉट, क्लाईव लॉयड, विवियन रिचर्डस, गॉर्डन ग्रीनिज, मैल्कम मार्शल व माईकल होल्डिंग सरीखे एक से एक महान खिलाड़ियों के पदचिह्नों का अनुसरण करने की तमन्ना के साथ वहां के समुद्र तटों पर जुट जाया करने वाली युवाओं की भीड़ धीरे-धीरे छंटने लगी। और तो और युवा क्रिकेट को छोड़ कर बेसबॉल, बास्केटबाल व अन्य खेलों को तरजीह देने लगे। क्रिकेट को जुनून की तरह लेने व जीत के लिए जिद्दी इरादें रखने वाले लारा के लिए इससे अधिक सालने वाली बात और क्या हो सकती थी? ये सब परिस्थितियां उस समय उत्पन्न हुई जब वेस्टइंडीज की कमान व बागडोर ब्रायन लारा के हाथों में रही और न केवल कैरेबियन क्रिकेट बल्कि समूचे विश्व में उसके प्रशंसक लारा की ओर बड़ी उम्मीद के साथ देखते थे कि ये वामहस्त बल्लेबाज अपनी टीम का भाग्य पलटकर रख देगा! दिग्गजों की निवृति व तेज गेंदबाजों की कुंद होती धार के बीच लारा जैसे सितारे के कंधों पर कैरेबियन क्रिकेट का भाग्य आ टिका। कप्तान के रूप में टेस्ट व एक रोजा मैचों में लारा ने कई बार अपनी टीम को बुरे वक्त से गुजरते हुए देखा। इस विश्व कप सहित गत दो विश्व कप मुकाबलों में वे अपने नेतृत्व में कोई करिश्मा नहीं दिखला पाए। व्यक्तिगत स्तर पर श्रेष्ठता को बारम्बार साबित करने के बावजूद नवोदित पीढ़ी के गेल, गंगा, हिंडस, रिकार्डो पावेल, चंद्रपाल, सरवन, टीनो बेस्ट एडर्वड्स, सिलवेस्टर जोजेफ, डेवोन स्मिथ, सैमुअल्स व ब्रावो जैसे साथियों के प्रदर्शन में सततता व एकजुटता के अभाव में टीम के प्रदर्शन का पूरा दारोमदार लारा पर ही रहा। विरासत को सम्भालने व टीम के प्रदर्शन को पटरी पर लाने के चक्रव्यूह में लारा नैसर्गिक प्रतिभा के धनी होते हुए भी कई बार अपने बल्ले की धार खो बैठे। उन पर टीम को गर्त में धकेलने व अग्रिम मोर्चे से नेतृत्व न कर पाने के आरोप भी मढ़े जाते रहे। कैरेबियन क्रिकेट की मुफलिसी पर अपनी प्रतिभा का खजाना न्यौछावर करते रहने के बावजूद लारा के खाते में अपयश ही ज्यादा दर्ज किया जाता रहा। कई बार उनसे नेतृत्व छीनकर उन्हें बलि का बकरा बनाया गया, लेकिन हर बार कैरेबियन क्रिकेट की नैया को पार जगाने के लिए लारा से बेहतर खेवनहार की तलाश अधूरी ही रही और कप्तान के रूप में लारा की वापसी होती रही।
लारा की अपने कैरियर के दौरान ये खुसूसियत रही की उन्होंने कई अवसरों पर अकेले दम पर ऐसा विस्मयकारी खेल दिखाया जिसने न केवल उनको क्रिकेट इतिहास में अमर कर दिया बल्कि साथी खिलाड़ियों की बेरूखी व असफलता के बावजूद उन्होंने टीम की जीत की इबारत लिख डाली। चार सौ रनों की उस ऐतिहासिक पारी के अलावा लारा ने जब 1994 में सर्वप्रथम 1994 में सोबर्स के 365 रनों के 35 वर्ष पुराने कीर्तिमान को 375 रन बनाकर ध्वस्त किया तथा प्रथम श्रेणी क्रिकेट में भी 501 रनों की नाबाद पारी खेलकर विश्व रिकॉर्ड बनाए तब भी उनके जेहन में अपने प्रदर्शन से कैरेबियाई क्रिकेट को प्रतिष्ठा के उस मुकाम पर पुन: ले जाने की तमन्ना हिलोरे मार रही थी। लारा के कैरियर के कुछ और यादगार लम्हों का प्रत्यास्मरण करे तो 1998-99 में बहैसियत कप्तान उन्होंने धरेलू मैदानों पर दो लगातार टेस्ट मैचों में 213, 8, 153 नाबाद व 100 रनों की बेमिसाल पारियां खेलते हुए वाल्श व एम्ब्रोस जैसे पुछल्ले बल्लेबाजों में जीवट भर ऑस्ट्रेलिया से टेस्ट सिरीज बराबर करवाई थी। वर्ष 2001-2002 में भारतीय उपमहाद्वीप के दौरे पर उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ भी बल्ले का खूब जौहर दिखाया। न केवल एक टेस्ट में 221 व 130 रनों की पारियां उनके बल्ले से निकली बल्कि पूरी श्रृंखला में उन्होंने 688 रन बनाए जो वेस्टइंडीज के बल्लेबाजों द्वारा पूरी श्रृंखला में बनाए गए रनों का 42 प्रतिशत थे। लारा ने नवम्बर 2005 में एडीलेड टेस्ट में एलन बोर्डर के 11 हजार 174 रनों के कीर्तिमान को पीछे छोड़कर टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में सर्वाधिक रनों का रिकॉर्ड अपने नाम किया। इतना सब कुछ अर्जित करने के बावजूद इस विश्व कप से उनकी खामोश विदाई व वेस्टइंडीज की उनके नेतृत्व में एक और असफलता को लारा के साथ नियति के अन्याय की संज्ञा दी जा सकती है। उन जैसे प्रतिभावान सितारे की झोली किस्मत और साथी खिलाड़ियों के साथ से और समृद्ध हो सकती थी।
ब्रायन लारा के कैरियर व उनकी चंद अद्वितीय पारियों को साहित्यिकता के रंग में रंगने की गुस्ताखी माफ हो तो मुझे उनका कैरियर कैरेबियन क्रिकेट के दर्द का एक महाकाव्य व लारा उसके महानायक नजर आते है । गोया लारा बच्चन (डॉ. हरिवंशराय) हो गए हों और अपने बल्ले से मधुशाला की कुछ अमर पंक्तियों को कुछ इस अंदाज में क्रिकेट जगत के समक्ष कह गए हों - लाल सुरा की धार लपट सी, कह न इसे देना ज्वाला, फेनिल मदिरा है, इसको मत कहना उर का छाला, दर्द नशा है इस मदिरा का (मेरा कैरियर व इस दौरान खेली गई विस्मय कारी पारियां कैरेबियन क्रिकेट के दर्द को भीतर तक महसूस करने की देन है । लारा के जेहन में यह दर्द इन पारियों के दौरान नशे की तरह मौजूद था), विगत स्मृतियां साकी हैं (विरासत को न संभाल पाने की पीड़ा व अतीत की अजेय यात्रा ने प्रेरित किया), पीड़ा में आनंद जिसे हो आए मेरी मधुशाला (जो विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी हार न मानकर उसी में आनंद की बयार पैदाकर, उत्कर्ष की ओर बढ़ने की राह खोज सकता है, वह आए और मेरे द्वारा प्राप्त किए गए चिर आनंद को आत्मसात करे) ।
ब्रायन चार्ल्स लारा
जन्म - तिथि : 2 मई 1969, जन्म स्थान - कैन्टारो, सांताक्रूज (ट्रिनिडाड)
पहला टेस्ट :- विरूद्घ पाकिस्तान, लाहौर, 6 से 11 दिसम्बर 1990
अंतिम टेस्ट :- विरूद्घ पाकिस्तान, कराची, 27 नवम्बर से 1 दिसम्बर 2006
पहला वनडे :- विरूद्घ पाकिस्तान, कराची, 9 नवम्बर 2006
अंतिम वनडे :- विरूद्घ इंग्लैंड ब्रिजटाउन, 21 अप्रैल 2007
कैरियर पर एक नजर :-
मैच पारी रन औसत उच्च स्कोर शतक अर्द्घशतक
टेस्ट 131 232 11953 52.88 400 नाबाद 34 48
वन डे 299 289 10405 40.48 169 19 63
प्र श्रेणी 260 439 21933 51.38 501 नाबाद 64 87
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रचनाकार संपर्क :
- मनमोहन हर्ष
(खेल समीक्षक)
जिला सूचना एवं जनसम्पर्क अधिकारी,
हनुमानगढ़।
कमरा नम्बर-208
मिनी सचिवालय, हनुमानगढ़ जंक्शन-335512
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