चलते तो अच्छा था ईरान और आज़रबाईजान के यात्रा संस्मरण - असग़र वजाहत अनुक्रम यहाँ देखें अध्याय 6 भारतीय होने का अर्थ मीर...
चलते तो अच्छा था
ईरान और आज़रबाईजान के यात्रा संस्मरण
- असग़र वजाहत
अध्याय 6
भारतीय होने का अर्थ
मीरदामाद सड़क से कुछ हटकर हम एक ऊंची इमारत के सामने पहुंचे। शादाब मुझे पहले ही बता चुके थे कि यहां पार्टी है जिसमें नाटक, फ़िल्मों और स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़े लोग आयेंगे। शादाब युवा आर्कीटेक्ट हैं और फ़िलहाल बेकार हैं लेकिन कहीं-कहीं थोड़ा बहुत काम मिलता रहता है। पक्की नौकरी नहीं है। शायद करना भी नहीं चाहते।
लिफ़्ट लेकर ग्यारहवीं मंज़िल पर पहुंचे। फ़्लैट के अंदर जाते ही यह लगा कि जो लोग रहते हैं सम्पन्न हैं। न केवल यह काफ़ी बड़ा ड्राइंगरूम था बल्कि सभी आधुनिक सुविधाओं से पूरी तरह लैस था। कीमती फ़र्नीचर, सजावट का महंगा सामान, महंगे कालीन वग़ैरा वग़ैरा। यह मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि ईरान में मध्यम और उच्च मध्यवर्ग का जीवन स्तर भारतीय स्तर से बहुत ऊंचा है। कारण क्या है यह मैं नहीं बता सकता। यह रीज़ा का घर है जो किसी समाचारपत्र में काम करते हैं। धीरे-धीरे सबसे मेरा परिचय होता चला गया। कुछ ही लोग अंग्रेजी में बातचीत कर सकते थे, यह जानकर आश्चर्य हुआ। पूछने पर कि कारण क्या है रीज़ा ने बताया कि इस्लामी क्रांति के बाद यहां अंग्रेजी की शिक्षा बंद कर दी गयी थी। अंग्रेजी को साम्राज्यवाद और अमेरिका का प्रतीक माना जाता था। लगभग दस साल बाद यह पता चला कि अंग्रेजी के बिना काम नहीं चल सकता। इस कारण फिर से अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू की गयी, पर एक पूरी पीढ़ी अंग्रेजी से दूर होती चली गयी। लेकिन अब फिर अंग्रेजी सीखने का चलन बढ़ रहा है।
_ लेकिन ये सोचिए कि अगर आप ईरान चार सौ साल पहले आये होते तो क्या हम अंग्रेजी में बात करते?
_ बिलकुल नहीं. . .हम फ़ारसी में बात करते जो उस ज़माने की विश्वभाषा थी, मैंने कहा।
मध्यकाल तक ईरान की सांस्कृतिक प्रभाव बहुत व्यापक था। इसमें इराक, ईरान ही बल्कि मध्य एशिया के सारे देश और भारतीय उपमहाद्वीप शामिल थे, रिज़ा कहने लगा।
_ भारत के साथ एक दिलचस्प रिश्ता था। पंचतंत्र का अनुवाद संभवत: सबसे पहले बारहवीं शताब्दी में संस्कृत से फ़ारसी में हुआ था। यह फ़ारसी अनुवाद योरोप पहुंचा और पंचतंत्र पूरे संसार के सामने आया। फ़ारसी में महाभारत का अनुवाद ही नहीं हुआ था बल्कि उत्तर भारत के कई प्रमुख भारतीय ग्रंथों के फ़ारसी में अनुवाद किए गये थे।
रिज़ा ने कहा- अफ़सोस की बात है कि हमें इन अनुवादों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है।
ईरान के बुद्धिजीवियों से बात करते हुए हल्का-सा यह आभास होता है कि वे अपने को बहुत नहीं तो कुछ 'विशिष्ट' मानते हैं। एक तरह से 'नाक ऊंची' है, वाला भाव दिखाई पड़ जाता है। रूमी, हाफ़िज़, शीराज़ी, उमर-ए-ख्याम ने व्यर्थ कविता नहीं लिखी है।
बात यहां आ पहुंच की अब ईरान तक पहुंचने का माध्यम अंग्रेजी है। भारत में ईरान के सभी समाचार अंग्रेजी के माध्यम से पहुंचते हैं और निश्चित रूप से अंतर्राष्ट्रीय समाचार एजेन्सियां ईरान के समाचारों के प्रति अपना विशेष दृष्टिकोण रखती हैं। यही नहीं भारत और ईरान के बीच आज कोई जीवंत सांस्कृतिक आदान-प्रदान नहीं है। कितने लोग हैं भारत में जो आज के ईरान की कला, साहित्य या समाज को जानते हैं। कम से कम तेहरान में भारतीय दूतावास की यही स्थिति है। यही हाल ईरान में भारत को लेकर है। सरकारें तो 'राजकाज' में व्यस्त रहती हैं। दूतावासों के पास इतना काम होता है, इतना काम होता है, इतना काम होता है कि रात-दिन काम ही करते रहते हैं। उन्हें साहित्य और संस्कृति की तरफ़ देखने का भी समय नहीं मिल पाता। यही वजह है कि ईरान का युवा बुद्धिजीवी भारत के बारे में लगभग कुछ नहीं जानता। अगर कुछ जानते हैं तो यह कि भारत एक गरीब देश है।
इस पार्टी में मेरा परिचय मरियम नामी एक महिला से हुआ जो महिलाओं पर केन्द्रित एक स्वयंसेवी संस्था चला रही हैं। मरियल पहले पेरिस में रहती थीं और आजकल तेहरान में हैं। मरियम से मालूम हुआ कि ईरान में पारिवारिक संबंध तनावपूर्ण हैं और महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। उन्होंने यह भी चर्चा की कि शाह के विरुद्ध जो आंदोलन हुआ था उसमें ईरानी महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी और सत्ता हस्तांतरण के बाद महिलाओं की अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई। हिजाब के बारे में उनकी राय थी कि यह शासक वर्ग एक सुविधाजनक प्रतीक मिल गया जिसके आधार पर यह सिद्ध करते हैं कि ईरान में इस्लामी गणतंत्र है। मुझे लगा कि मरियम ईरान की पढ़ी लिखी बुद्धिजीवी महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर रही है। जहां तक हिजाब का सवाल है, उसे प्राय: महिलाएं नियम और क़ानून के कारण ही स्वीकारती हैं पर यह स्थिति छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में नहीं है चूंकि विकास की दर पूरे देश में समान नहीं है इसलिए विचारों में बहुत अंतर दिखाई देता है।
इसी पार्टी में कुछ थियेटर अभिनेताओं से बात हुई, उन्हें यह जानने में बड़ी रुचि थी कि भारत में थियेटर कैसा होता है। विशेष रूप से लोक शैलियां कैसी हैं? उनमें क्या-क्या भिन्नताएं हैं। ईरान की धार्मिक और लोक शैली ताज़िया के बोर में बात होती रही।
खाने की मेज पर ईरान मेहमाननवाज़ी का परिचय हुआ। दिल्ली से ही मुझसे कुछ लोगों ने, जो इरान को जानते हैं, कहा था कि ईरानी बड़े मेहमाननवाज़ी होते हैं। यहां सड़कों पर घूमते हुए भी उसका पता चल जाता है। अन्य फ़लों के साथ जैसे बडे और सुर्ख अनार यहां देखे वैसे कहीं नज़र आते। एक दिन सड़क के किनारे बनी एक दुकान से अनार का शर्बत पिया। शर्तिया इतना अच्छा अनार का शर्बत जीवन में पहली बार पिया था। पैसे देने के बाद यह लगा कि एक गिलास और पीना चाहिए। मैंने दुकानदार से एक गिलास और देने के बारे में कहा तो वह समझा कि मैं एक गिलास के पैसे देकर दो गिलास पीना चाहता हूं। मैंने समझाना चाहा पर नहीं समझ पा रहा था। इतने में एक पढ़ा लिखा युवा ईरानी आया। वह अंग्रेजी जानता था। उसने मेरी मदद की यह जानने के बाद कि मैं भारतीय हूं। उसने मेरे पैसे भी दे दिए और कहा- 'यू आर अवर गेस्ट'। (आप हमारे मेहमान हैं ) यह एक दो बार टैक्सियों में हुआ। सहयात्रियों को पता चला कि मैं भारतीय हूं तो उन्होंने टैक्सी वाले को मेरा किराया भी दे दिया। एक बार तेहरान से फुम जा रहा था तो लोगों ने बस का किराया ही दे दिया।
ईरान आज़रबाईजान के बार्डर पर पड़ने वाले कस्बे आस्त्रा में ईरान का नक्शा खरीदा तो दुकानदार ने यह जानने के बाद पैसे लौटा दिए कि मैं भारतीय हूं। चाय-वाय पिला देना तो मामूली बात थी। यह है ईरान में भारतीय होने का अर्थ।
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...तो ईरानी भी आतिथ्य सत्कार में हमसे कम नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंkitne log hindustan mein doosron ke liye bus ya taxi mein kiraya de dete hain. Kaun dukan vala paise nahin leta. Iske theek ulat hum apne ateethiyon ko ulte seedhe daam bata kar lootte hain.
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