चलते तो अच्छा था ईरान और आज़रबाईजान के यात्रा संस्मरण - असग़र वजाहत अध्याय 4 सड़क पर तेहरान अनुक्रम यहाँ देखें एक विद्वान; नाम ...
चलते तो अच्छा था
ईरान और आज़रबाईजान के यात्रा संस्मरण
- असग़र वजाहत
अध्याय 4
सड़क पर तेहरान
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एक विद्वान; नाम मत पूछिएगा क्योंकि यह किसी विद्वान ने नहीं बल्कि अज्ञानी ने कहा है कि किसी देश को समझना हो तो उसकी सड़कों पर जाओ। किताबों में गये तो देश को न समझ पाओगे। वैसे भी किताबों की तुलना में मैं सड़क को बेहतर समझता हूं इसलिए अगले ही दिन से मैं तेहरान की सड़कों पर आ गया और वह भी पैदल- यानी रुक-रुककर और मुड़-मुड़कर देखने की सुविधा के साथ।
राहुल जिस इलाके में रहते हैं वह तेहरान का सबसे अच्छा इलाक़ा माना जाता है। आप जानते ही सबसे अच्छे इलाके में सबसे धनवान लोग रहते हैं। इस इलाके को मैंने देखा तो चकरा ही गया। पहले मैं समझ रहा था कि इस इलाके में केवल विदेशी रहते होंगे। लेकिन यहां तो विदेशियों से ज्यादा ईरानी हैं। इलाके की इमारतें और कारें- ये दो चीजें यह बता रही थी कि धनवान और बहुत धनवान लोग यहां रहते हैं। उसके बाद बाज़ार देखे जो हर तरह की आधुनिक सुख सुविधा से जुड़ी चीज़ों से भरे पड़े हैं। यह शहर का उत्तरी इलाका है और कहा जाता है कि शह ईरान के दौर में यहां केवल शाही परिवार या उनसे जुड़े लोगों के फ़ॉर्म हाउस थे। कम हैसियत के आदमी का यहां कोई दख़ल न था। आज भी यही लगा। ये बात दूसरी है कि फ़ॉर्म-हाउसों की जगह गगनचुम्बी इमारतें बन गयी हैं पर उनमें रहने वाले साधारण लोग तो बिल्कुल ही नहीं हैं। बाज़ारें बड़े-बड़े शापिंग माल, योरोप ही नहीं अमेरिका से टक्कर लेते लगे और लोगों का आचार-व्यवहार उनके कपड़े-लत्तों, उनकी कारें, उनके परिवार- ये सब चीख-चीखकर कह रहा था कि हम सम्पन्न हैं, हम धनवान हैं, हम शक्तिशाली हैं, हम बाज़ार को, अर्थ व्यवस्था को समाज को और देश को चलाते हैं।
मैंने यह खोजने की कोशिश की कि इस्लामी गणतंत्र होने के कारण यहां के लोगों और हमारे देश या अन्य किसी देश के लोगों में क्या अंतर है? तेहरान का बड़ी तेजी से विस्तार हो रहा है। इमारतें बनाने का काम बहुत व्यापक और बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। सड़कों पर 'प्रोपर्टी' के बोर्ड नज़र आते हैं। प्रोपर्टी के लिए यहां 'मस्कन' शब्द का इस्तेमाल होता है। 'मस्कन' मेरी समझ से मकान या ठिकाने के अर्थों में हमारे यहां इस्तेमाल होता है लेकिन यहां इसका अर्थ बदल गया है। सफ़ल प्रोपर्टी डीलर दिखे। आमतौर से खाये पिए, मोटे-ताजे, सूटबूट से लैस, क्लीन शेव, हाथों में कीमती घड़ियां या सोने का कड़ा जैसा कुछ आंखों में वही शातिराना चमक और समझदारी जो हमारे यहां सफ़ल प्रोपर्टी डीलरों में होती है। वही हावभाव वही अंदाज़ और वही तरीक़ा नज़र आया उनमें। व्यापारी बिल्कुल वैसे ही व्यापारी लगे जैसे कहीं और हो सकते हैं। टैक्सी चालक वैसे ही जैसे अपने हैं- यानी सवारी अगर अजनबी अनजान और विदेशी हो तो उसकी खाल उतारने के चक्कर में। ईरान के टैक्सी चालकों से मेरे बड़े रोचक संबंध बने। उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला जो कुछ अंग्रेजी जानते थे। एक टैक्सी ड्राइवर टूटी-फूटी हिंदी जानते थे। उससे बातचीत हुई एक के साथ लड़ाई हो गयी, फिर मेल हो गया। कुछ थोड़ा विषयांतर होगा कि मैं टैक्सी चालकों के साथ अपने अनुभवों के माध्यम से ईरान के समाज और लोगों को समझने की कोशिशों से आपको अवगत कराऊं। किसी ने बताया था कि शुक्रवार को तेहरान विश्वविद्यालय में नमाज़ होती है, वहां मैं जाऊं। जहां मैं ठहरा था वहां से विश्वविद्यालय दूर है। 'सवारी' की तलाश में कुछ छात्रों से सहायता मांगी। उन्होंने एक टैक्सी पर बैठ जाने को कहा। टैक्सी वाला उसी दिशा में जा रहा था। छात्रों ने यह भी सख्ती से कहा कि मैं उसे सिर्फ तीन हज़ार रियाल दूं। यह बात उन्होंने टैक्सी वाले को भी बता दी। टैक्सी वाले आमतौर पर पूछते हैं कि कहां से आये हो? भारत से आये हो तो क्या मुसलमान हो? मुसलमान हो तो क्या शिआ हो? इन सज्जन से भी यही बातें हुईं। उन्हें मेरे बारे में पता चल गया कि मैं शिआ मुसलमान हूं। मंजिल पर पहुंच कर मैंने उन्हें दस हज़ार रियाल का नोट दिया और उनसे कहा कि सात हज़ार वापस करें तो उन्होंने बड़ा बुरा-सा मुंह बनाया और समझाने लगे कि मुझे इस तरह के तीन नोट यानी तीस हज़ार रियाल देने हैं। मैंने इंकार किया। बात बढ़ गयी। उन्हें गुस्सा आ गया। मैं भी परेशान हो गया। तंग आकर टैक्सी वाले ने कहा मैं बिना कुछ दिए ही उतर जाऊं, मैं उतर गया। विश्वविद्यालय गया, इसके बारे में बाद में लिखूंगा कि वहां क्या अनुभव हुए। लेकिन जब लौटने लगा तो वही टैक्सी चालक मिल गये जो मुझे लाये थे। मुझे टैक्सी चालक से लड़ाई और कुछ न दिए बिना टैक्सी से उतर आने पर खेद भी था। उन्हें देखा तो सोचा चलो कडुवाहट को कुछ कम लिया जाये। मेरे बैग में काली मिर्च के कुछ पैकेट थे। बताया गया था कि ईरान में यह मंहगी मिलती है और बहुत पसंद की जाती है। मैंने टैक्सी वाले को दो पैकेट मिर्च और फ़ारसी में छपी अपनी कहानियों की पुस्तिका भेंट की। कहानियों की पुस्तिका में मेरा परिचय भी था। वे दोनों चीजों को पाकर प्रसन्न हुए। मैंने उनसे वापस जाने के लिए 'सवारी' पूछी। यह पूछा कि कितना दूं? उन्होंने बहुत मुनासिब दामों यानी सिर्फ पांच हज़ार रियाल पर मुझे एक टैक्सी में बिठा दिया जबकि वे मुझसे इसी यात्रा का तीस हज़ार मांग रहे थे।
एक टैक्सी चालक जो अंग्रेजी जानते थे प्रारंभिक बातचीत के बाद पूछे बैठे क्या मुझे तेहरान की सड़कों पर चलते फिरते लोगों के चेहरों पर 'इस्लाम' दिखाई देता है? सवाल टेढ़ा था। जवाब पर पता नहीं क्या प्रतिक्रिया होती। धर्म का मामला वैसे भी बड़ा टेढ़ा होता है, ख़ैर मैंने कहा, भाई चेहरों पर तो इस्लाम नज़र नहीं आता, हां हो सकता है इनके दिलों में हो।
एक टैक्सी चालक से बातचीत के दौरान पता चला कि वे चालीस साल के हो गये हैं पर शादी नहीं हुई है। पूछने पर उन्होंने कारण यह बताया कि उनके पास ज्यादा पैसे नहीं हैं। कम पैसे वालों की शादी नहीं हो पाती या बड़ी दिक्कत आती है। लड़कियां अच्छे पैसे वालों को तलाशती हैं। मैंने पूछा_ तुम्हारी शादी नहीं हुई है, तुम चालीस साल के हो गये हो तो क्या करते हो? वे मतलब समझ गये। हंसे और चुप हो गये। कुछ बोले नहीं लेकिन सवाल मेरे दिमाग में अटक गया था। मैंने सोचा कभी किसी जानकार से पूछूंगा और बाद में इसका मौक़ा भी मिला।
तेहरान की सड़कों पर अगर इस्लाम दिखाई देता है तो लड़कियों/औरतों के हिजाब में या दीवारों पर लगे ऊंचे-ऊंचे धार्मिक पोस्टरों में। सबसे पहले लड़कियों के हिजाब पर बात कर ली जाये। यह क़ानून है कि हर लड़की/औरत का सिर पब्लिक प्लेस पर ढका होना चाहिए। निश्चित रूप से ऐसा न करने पर दण्ड का विधान होगा। तेहरान की लड़कियों ने सज़ा से बचने के लिए पारम्परिक हिजाब की जगह स्कार्फ बांधना शुरू कर दिया और वह भी आधे सिर पर पीछे की तरफ़ यानी हिसाब से सीना और पीठ ढंकने का सिलसिला खत्म हो गया है। काली चादर की जगह काला कोट जो घुटने के नीचे तक आता है, पहन लेती हैं। लगभग 80 प्रतिशत लड़कियां लंबे काले कोट के साथ जीन्स पहनती हैं और ये जीन्स बड़े-बड़े विख्यात अंतर्राष्ट्रीय डिज़ाइनर कम्पनियों की होती हैं। जीन्स को नीचे से मोड़ा भी जाता है। यानी पलटकर ऊपर चढ़ाया जाता है। कभी-कभी जीन्स इतनी ऊपर चढ़ जाती हैं कि टखनों के ऊपर कोई छ: इंच तक नंगी टांगें दिखती हैं। कोट अकसर इतने 'टाइट' होते हैं कि शरीर के भूगोल पर पूरा प्रकाश पड़ जाता है। यह कोट कभी-कभी लंबी स्कर्ट या कुर्ते की शकल का भी हो जाता है। इसका रंग भी बदल जाता है और कुछ ऊंचा भी हो जाता है। चेहरे पर जितना शानदार 'मेकअप' आपको तेहरान में देखने को मिलेगा उतना संभवत: दिल्ली या मुंबई में भी न मिलेगा। लड़कियां बहुत प्यार से, ध्यान से, कोशिश से और ढेर सारा पैसा खर्च करके अपने चेहरों को सजाती और सँवारती हैं। शायद लगता होगा शरीर का यही तो एक हिस्सा खुला है इस पर ही ध्यान दे सकते हैं। इसी तरह पैरों का मेकअप भी देखने लायक होता है। पैरों का नेल पालिश से ही नहीं बल्कि चप्पलों और सैण्डिलों के नये-नये डिजाइनों से आकर्षण बढ़ाया जाता है। कभी-कभी तो आधे सिर पर रुमाल बांधे, चुस्त और करारे कपड़े पहने जीन्स ऊपर चढ़ाये लड़कियां 'हिजाब' करने के धार्मिक कानून को ठेंगा दिखाती लगती है। लेकिन सिर ढंकने और हिजाब करने की विवशता इतना ज्यादा है कि कभी-कभी मन खिन्न हो जाता है। कुछ ईरानी मित्रों के साथ एक नाटक का रिहर्सल देखने गया। वहां देखा कि रिहर्सल करने वाली लड़कियां 'हिजाब' किए हुए हैं बताया गया यह आवश्यक है। मैंने पूछा क्या मंच पर भी हर तरह की भूमिका में लड़की का सिर ढंका होना चाहिए?
बताया गया कि हां मतलब अगर ईरानी लड़की किसी अमेरिकी लड़की की भूमिका कर रही है, या किसी आदिवासी लड़की की भूमिका निभा रही है, तब भी उसे अपना सिर ढंकना पड़ेगा। यह मंच पर ही नहीं। रिहर्सल में भी आवश्यक है। पार्क में पिकनिक करती लड़कियों, औरतों, दूर दराज़ जंगल में सैर तफ़रीह करते परिवारों की लड़कियों, सबको सब जगह सिर ढंकना आवश्यक है। मेरे विचार से घर पहुंचकर ही उन्हें यह छूट होती हो तो होती हो, नहीं तो इससे निजात नहीं है। इससे बिल्कुल उलट लड़के या मर्द चाहे जैसे कपड़े पहने, उनके लिए कोई 'ड्रेस कोड' नहीं है।
सड़क पर तेहरान की चर्चा दो बातों के बिना अधूरी रह जायेगी। पहली यह कि ऊंची-ऊंची भव्य इमारतों पर बड़े-बड़े भीमकाय चित्र और दूसरे सड़क के किनारे तेहरान के बाजार।
किसी भी नये आदमी को तेहरान की सड़कों के किनारे बनी विशाल इमारतों के ऊपर लगे बहुत बड़े चित्र अपनी ओर खींचते हैं। इसमें दो तरह के चित्र हैं। एक तो वे जो धार्मिक नेताओं विशेष रूप से अयातउल्ला खुमैनी के विचारों और उनके क्रियाकलापों को दर्शाते हैं। दूसरे वे हैं जो ईरान-इराक युद्ध; 1980-88 ई. से संबंधित हैं। ईरान में इस्लामी गणतंत्र के स्थापित होते ही इराक ने शायद अमरीकी इशारे पर ईरान के ऊपर चढ़ाई कर दी थी। यह निश्चय ही ईरान के लिए कठिन घड़ी थी। पूरा संसार सद्दाम हुसैन के साथ था। यहां तक कि सोवियत यूनियन की भी यह समझ थी कि 'सांपनाथ' और 'नागनाथ' के बीच चुनना है तो क्यों न सद्दाम रूपी सांप को ही चुन लिया जाये। इस युद्ध में पश्चिमी देश सद्दाम को समर्थन दे रहे थे लेकिन उसके साथ ही बड़े महंगे दामों पर ईरान को हथियार बेच रहे थे। ईरान के इस्लामी गणतंत्र ने सब कुछ इस युद्ध में लगा दिया था। 'इस्लामी गणतंत्र' को बचाने के लिए खुले रूप में धर्म' का सहारा लिया गया और लोगों के अंदर बलिदान की भावना को शिखर पर पहुंचाया गया। अंतत: यह युद्ध 1988 में साठ लाख ईरानियों और चालीस लाख इराकियों की जान लेकर शांत हुआ था। इस युद्ध के दौरान और उसके बाद ईरान के अपनी ढाई लाख सेना में बढ़ोतरी करते हुए उसे बारह लाख पहुंचा दिया था। दोनों देशों मुख्य रूप से ईरान की अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी थी। इस युद्ध के बहुत गहरे प्रभाव ईरानी जनता पर पड़े थे और शासक वर्ग ने पश्चिम से होने वाले खतरे के संदर्भ में इस युद्ध से बहुत कुछ सीखा था। आज आप ईरान के किसी भी शहर में जायें वहां आपको आबादी शुरू होते ही सड़क के किनारे उन शहीदों की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी मिल जायेंगी जो इराक़ के साथ युद्ध में मारे गये थे। ये तस्वीरें गांव देहात तक में लगी हुई हैं। तस्वीरों के साथ शहीदों के नाम, जिहाद की महिमा का बखान और उपलब्धियाँ आदि नारों की शक्ल में लिखी हैं। तेहरान में 'बेहेश्ते-ज़हरा' एक विशाल कब्रिस्तान है जिसमें प्रमुखता से ईरान-इराक युद्ध के शहीद दफ़न किए गये हैं, ईरान की अन्य कब्रिस्तानों में भी शहीदों की कब्र के ऊपर एक खंभे पर शीशे के डिब्बे में शहीद का चित्र, उसकी उपलब्धियां आदि रखी जाती हैं।
तेहरान की सड़कों पर ऊंची इमारतों की दीवारों पर ऐसे चित्र देखे जा सकते हैं जिनमें युद्ध का मैदान दर्शाया गया है। टैंक, लड़ाकू जहाज, गोलियां बरसाते सैनिक आदि की पृष्ठभूमि में एक ईरानी सिपाही का सिर अपनी गोद में रखे हुए 'इमामे ज़माना' का चित्र है और फ़ारसी में लिखा है कि शहीदों का स्थान कितना ऊंचा है तथा स्वर्ग ले जाने वाली शहादत कितनी महत्वपूर्ण है। इस तरह के विशाल चित्र ईरान की सड़कों पर भरे पड़े हैं। ईरान-इराक का युद्ध समाप्त हो चुका है और इराक़ की पूरी तस्वीर बदल गयी है। अब इस तरह के चित्रों को इतनी प्रमुखता देने का क्या आवश्यकता है? शायद ईरान के मुस्लिम शासक बलिदान की इस भावना को बनाकर रखना चाहते हैं ताकि वह अमेरिका, योरोप या इज़राइल द्वारा किए ईरान पर हमला किए जाने की स्थिति में कारगर साबित हो सके।
बाजार शब्द ईरानी है जो आज अंतर्राष्ट्रीय शब्द बन चुका है। ईरान दो तरह के बाज़ारों के लिए प्रसिद्ध है। पहले वे बाज़ार हैं जो सड़कों के किनारे दुकानों में लगते हैं। तेहरान पहाड़ों के दामन में बसा हुआ है और ढलान उत्तर से दक्षिण की तरफ़ है। पहाड़ों से जो पानी के झरने फूटते हैं उनसे बहता पानी शहर के अंदर से होता नीचे तक पहुंचता है। यह पानी आमतौर साफ़ और ठण्डा होता है। इसके बहने के लिए फुटपाथ और सड़क के बीच चौड़ी और पक्की नालियां बना दी गयी हैं जिनसे पानी लगातार बहता रहता है। दुकानों के सामने फुटपाथ है, उसके बाद साफ़ और ठण्डे पानी की चौड़ी नालियां हैं। इसके पास चिनार के पेड़ और फिर सड़क है। कहीं-कहीं सड़क के बीच में भी चिनार के पेड़ और छोटे-छोटे पार्क है। पानी और हरियाली इरान के बाज़ारों को एक श्रेष्ठता प्रदान करते हैं। पुराने शहरों जैसे इस्फ़हान आदि में पेड़ों, पानी, पार्कों के साथ-साथ पुरानी दुकानों में 'टायल्स' से की गयी कलाकारी और इमारतों की बनावट, दरों और दीवारों पर किया गया 'टायल्स' के बेल बूटे और दूसरे आकार बाज़ारों को अलौकिक बना देते हैं। कुछ साल पहले तक और कुछ शहरों में अब भी दुकानों के सामने बहने वाले साफ़ पानी के ऊपर तख्त रख दिए जाते हैं, उन पर कालीन बिछा दिए जाते हैं यहां बैठकर कबाब खाये जा सकते हैं और चाय पी जा सकती है। इस्लामी क्रांति आने से पहले वाइन या विस्की का भी चलन था लेकिन अब यहां पूरी तरह शराबबंदी है। हुक्का पिया जा सकता है जो तेहरान में इतना प्रचलित नहीं जितना अन्य शहरों में है।
दूसरी तरह की बाजारें इमारतों के अंदर है, हमारे देश में चूंकि सर्दी इतनी नहीं पड़ती इस वजह से ऐसी बाजारें शायद नहीं बनती। आमने-सामने बनी दुकानों के ऊपर छत होती है जो ठण्डी हवा और बर्फ़ से बचाती हैं। दुकानें एक लाइन में होती है इस तरह छत पूरे बाजार पर होती है तेहरान में इस तरह की एक बाज़ार विश्व की सबसे बड़ी बाज़ार मानी जाती है। इस बाज़ार में आप चले जायें तो लगता है कि एक लंबी सड़क और उसके दोनों तरफ़ दुकानें हैं। सड़क पर भी छत है। छत की बनावट ईंटों के रोचक और खूबसूरत जुड़ाव की वजह से बहुत दर्शनीय हो जाती है। बाज़ार चौराहों पर चार तरफ़ बंट जाती है। छत वाली सड़कों पर कारें और दूसरे वाहन भी लाये ले जाये जाते हैं। पर प्राय: लोग पैदल ही नज़र आते हैं। इस तरह की बाजारें ईरान के सभी पुराने शहरों में हैं लेकिन तेहरान के बाज़ार तो इतने बड़े हैं कि उसे पूरा घूम पाना काफ़ी मुश्किल काम है।
ईरान के सड़कों, बाज़ारों में कोई भीख मांगता हुआ नहीं दिखाई दिया। कोई फ़टेहाल और भूखा भी नहीं दिखाई पड़ा। कोई कुत्ता भी नहीं नज़र आया। कोई शराबखाना नहीं है। हां वहां दवा की दुकानों को 'दारुख़ाना' कहते हैं। 'दारूख़ाने' के बोर्ड पढ़कर मैं चौंक जाया करता था। गोश्त की दुकानों पर लगे बोर्ड देखकर चौंका। बोर्ड पर लिखते हैं 'सुपर गोश्त' सुपर फ़ारसी लिपि में लिखा होता है जिस पर एक जानवर के नाम का धोखा हुआ करता था जिसका मांस इस्लामी में सख्ती से हराम क़रार दिया गया है।
ईरान की सड़कों और बाज़ारों में दुकानों के नामों के विज्ञापन और दूसरे व्यवसायिक विज्ञापनों के बोर्ड इतने कलात्मक होते हैं कि कहना ही क्या। ऐसी डिज़ाइन, ले-आउट, ग्राफिक वर्क, रंगों का समायोजन, संक्षिप्तता अगर और कहीं देखने को मिलती है तो पश्चिमी योरोप या अमेरिका में। ईरान में किताबों के 'कवर' , नाटक के पोस्टर , फिल्म के इश्तिहार भी बहुत कलात्मक होते हैं। इसकी पहली वजह तो शायद यह है कि फ़ारसी में 'कैलीग्राफ़ी' अर्थात 'खत्ताती' की कला बहुत विकसित है और दूसरे यह कि फ़ारसी लिपि के लेखन में तरह-तरह के प्रयोग किए जा सकते हैं। तीसरी वजह यह है कि लिखावट की कला हज़ारों साल से चली आ रही उत्कृष्ट कला परंपरा है।
मैं यह लिख चुका हूं कि तेहरान में एक ही रंग का प्रभुत्व है। यह है मिट्टी और सीमेण्ट का मिला-जुला रंग है। इसी रंग के यहां पहाड़ है और इसी रंग की ज़मीन है। इसी रंग की इमारतें हैं और इसी रंग की सड़कें हैं। यह बात नहीं कि हरियाली नहीं है, वह है पर इतनी नहीं है कि शहर का रंग बदल सके। ईरान की पुरानी इमारतों में 'टायल्स' से की गयी कलाकारी यह सोचकर और भी चमत्कृत करती है कि सैकड़ों साल पहले भी कलाकार ईरान की प्राकृतिक एकरंगता को समझते थे और उसके साथ तारतम्य बिठाने वाले रंगों के ही 'टायल्स' की कला में प्रयोग करते थे। मुख्य रंग के साथ तारतम्य बैठाते हल्का-नीला, पीले रंग का एक गहरा शेड, हल्का हरा जैसे रंगों का प्रयोग 'टायल्स' में किया गया है। ये रंग मुख्य रंग के साथ आंखों को चुभते नहीं बल्कि भले लगते हैं।
क्रमशः अगले किश्तों में जारी...
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सड़क और फ़ुटपाथ के बीच साफ़ पानी की नालियाँ, भारत में रहने वाले के लिए कल्पना से परे हैं यह। काश हम भी पानी की इतनी कद्र करना सीख जाएँ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही ख़ूबसूरत जानकारी है - आपका धन्यवाद रवीजी
जवाब देंहटाएंयही साफ़ पानी वाली मेरे भी दिमग़ में अटक गई.. मुम्बई में साफ़ पानी के कई झरने एक किलोमीटर के फ़ासले में ही भयानक नाले में बदल जाते हैं.. पिछले दिनों ऐसी ही एक मीठी नदी काफ़ी चर्चा में रही.. हमारे देश का क्या होगा.. जहाँ साफ़ पानी के झरनों के साथ ये सलूक होता है..
जवाब देंहटाएंआप की प्रस्तुति पढ कर लगा की मैं आप से साथ ही ईरान की सैर कर रहा हूं
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिखा है आप ने
बहुत बढ़िया पढ़ना रहा!!
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