शिरीष कुमार मौर्य की कविताएँ - 2

SHARE:

हल उसमें बैलों की ताक़त है और लोहे का पैनापन एक जवान पेड़ की मज़बूती किसी बढ़ई की कलाकार कुशलता धौंकनी की तेज़ ऑंच में तपा लु...



हल

उसमें बैलों की ताक़त है

और लोहे का पैनापन

एक जवान पेड़ की मज़बूती

किसी बढ़ई की

कलाकार कुशलता

धौंकनी की तेज़ ऑंच में तपा

लुहार का धीरज

इन सबसे बढ़कर

परती को फोड़कर उर्वर बना देने की

उत्कट मानवीय इच्छा है उसमें

दिन भर की जोत के बाद

पहाड़ में

मेरे घर की दीवार से सटकर

खड़ा वह

मुझे किसी दुबके हुए जानवर की तरह

लगता है

बस एक लम्बी छलांग

और वह ग़ायब हो जायेगा

मेरे अतीत में कहीं। -2004-

प्रथम अंकुर मिश्र कविता पुरस्कार से सम्मानित

भूसा

दरअसल

कोई भी अछूता नहीं रहता इससे

मुहावरे से लेकर

पशुओं के सपनों तक

यह कहाँ नहीं है

इसे भी उगाया धरती ने

अनाज के साथ एक ही पेट से

इसे भी मिला

इसके हिस्से का खाद-पानी

कभी यह हरा था

इसी ने बचाया दानों को

वक्त पड़ने पर

मौसम के थपेड़ों और कीड़ों से

फसल के साथ कटकर

यह भी खलिहान में आया

अलगाया गया दानों से बड़ी मेहनत

और कुशलता के साथ

अब लादकर ले जाया जा रहा है

इसे

पूरी सड़क घेरकर चलती डगमग

ट्रैक्टर ट्रॉलियों पर

पता नहीं क्या होगा इसका

किसी मिल में काग़ज़ बन जायेगा

या फिर

यह थान पर खड़े किसी भूखे पशु की

ज़िन्दगी में शामिल होगा

बहरहाल

इतना तो साफ है

कि इसे भी सहेज रहे हैं लोग

दानों के साथ

इस दुनिया में

वे सार भी बटोर रहे हैं

और थोथा भी

शायद बचे रहने के लिए

दोनों की ज़रूरत है उन्हें। -2004-

प्रथम अंकुर मिश्र कविता पुरस्कार से सम्मानित

पुरानी हवाएँ

चन्द्र्रकान्त देवताले जी को याद करते हुए

मेरे साथ

बहुत पुराने दिनों की हवाएँ हैं

मेरे समय में ये बरसों पीछे से आती हैं

और आज भी

उतनी ही हरारत जगाती हैं

मेरे भीतर की धूल को

उतना ही उड़ाती हैं

बिखर जाती हैं

बहुत करीने से रखी हुई चीजें भी

क्या सचमुच

हवाएँ इतनी उम्र पाती हैं ?

विज्ञान के बहुश्रुत नियम से उलट

ये ज़िन्दगी की हवाएँ हैं

हमेशा

कम दबाव से अधिक की ओर

जाती हैं। -2004-

सहारा समय में प्रकाशित

ये दुनिया रंग-बिरंगी

कुमार विकल को याद करते

सभी कुछ रंगीन था

जब तुम गए

और इन रंगों का हिसाब रखते

पृथ्वी के चारों ओर

बहुत तेज़ी से घूम रहे थे

इंसानी इदारे

तुम्हारी मौत उतनी रंगीन नहीं थी

और उस दिन अख़बारों में बहुत कम जगह बची थी

वे भी अब रंगीन हो चले थे

पैदा हो चुका था इलेक्ट्रॉनिक मीडिया

हालांँॅकि ख़बरों के लिए उसने

गली-गली घूमना शुरू नहीं किया था

सबसे तेज़ होने में अभी कुछ देर थी

पीने की चीज़ों में

तुमने शायद शरबतों के नाम सुने हों

वे सब भी रंगीन थे

अब तो खैर दिखते ही नहीं

ठंडी बोतलों के घटाटोप में

मेरे सपने तो होने ही थे

रंगीन

चौबीस-पचीस की उम्र में

मैंने पढ़ीं तुम्हारी कविताएँ

और यह भी

कि कवि से ज्यादा

तुम्हारा

शराबी होना मशहूर था

मैंने देखा

मेरी उम्र वाले लड़कों की तरह

तुम भी दुनिया की ख़ाली जगहों में

अपने रंग भर रहे थे

और हमारे रंग दुनिया के रंगों में

इज़ाफ़ा कर रहे थे

अपने सबसे चमकीले दिनों की

धूप में

मैंने तुम्हें ढूँढा

जिसके लिए मेरे पास था

तुम्हारी कविताओं का

एक आधा-अधूरा इलाक़ा

और धूप तो हम दोनों ही पर

बराबर पड़ती थी

वो इलाके-इलाक़े में भेद नहीं

करती थी

मेरे भी बन चले थे बहुत सारे साथी

उन दिनों तुम्हारी तरह मैं भी

मुक्ति की वह अकेली राह अपना चुका था

ये अलग बात है

कि इस राह पर तुम मुझसे बहुत आगे खड़े थे

बहुत कठिन हो चली थी दुनिया

तुम्हारे लिए

और मैं तो अभी ऑंखें ही खोल रहा था

मैंने तुम्हें

वक्त और दुनिया के साथ

खुद से भी

लड़ते देखा था

कविताओं में ही सही

लेकिन बहुत कुछ

अटपटा करते देखा था

ओ मेरे पुरखे बुरा मत मानना

पर मुझे लगता है

कि बहुत रंग-बिरंगी थी ये दुनिया

हमारे भी वास्ते

इसे हमने खुद ही चुना था

और ये हक़ीक़त तुम भी जानते थे

जी रहे थे

इन्हीं रंगों के बीच

इन्हीं की बातें करते थे

और इन्हीं से भाग जाना चाहते थे

ओ मेरे पुरखे!

आख़िर क्या हो गया था ऐसा

कि अपनी आख़िरी नींद से पहले

तुम दुनिया को

सिर्फ अपनी उदासियों के बारे में

बताना चाहते थे

और भी बहुत कुछ होता है

ज़िन्दगी में

उदासियों के अलावा

उदासियों से बेहतर

बताने को

लेकिन अब तुम कुछ भी नहीं

बता पाओगे

इस सबके बारे में अब तो बतायेंगीं

सिर्फ तुम्हारी कविताएँ

जिन्हें अपनी घोर असमर्थता में भी

इतना सामर्थ्य दे गए हो तुम

कि जब भी

रंगों के बारे में सोचें हम

और उन्हें कहीं भरना चाहें

तो हर जगह झिलमिलाते दिखें

तुम्हारे भी रंग

और हमें तुम्हारी याद आए। -2004-

इरावती में प्रकाशित

गैंगमेट वीरबहादुर थापा

बहुत शानदार है यह नाम

और थोड़ा अजीब भी

एक ही साथ

जिसमें वीर भी है

और बहादुर भी

यहाँ से आगे तक

22.4 किलोमीटर सड़क

जिन मज़दूरों ने बनायी

उनका उत्साही गैंग लीडर रहा होगा ये

या कोई उम्रदराज़ मुखिया

लो0नि0वि0 की भाषा

बस इतनी ही

समझ आती है मुझे

दूर नेपाल के किन्हीं गाँवों से

आए मज़दूर

उन गाँवों से

जहाँ आज भी मीलों दूर हैं

सड़कें

यों वे बनायी जाती रहेंगी

हमेशा

लिखे जाते रहेगे कहीं-कहीं पर

उन्हें बनाने के बाद

ग़ायब हो जाने वाले कुछ नाम

1984 में कच्ची सड़क पर

डामर बिछाने आए

वे बाँकुरे

अब न जाने कहाँ गए

पर आज तलक धुंधलाया नहीं

उनके अगुआ का ये नाम

बिना यह जाने

कि किसके लिए और क्यों बनायी जाती हैं

सड़कें

वे बनाते रहेंगे उन्हें

बिना उन पर चले

बिना कुछ कहे

उन सरल हृदय अनपढ़-असभ्यों को नहीं

हमारी सभ्यता को होगी

सड़क की ज़रूरत

बर्बरता की तरफ़ जाने के लिए

और बर्बरों को भी

सभ्यताओं तक आने के लिए। -2004-

हंस में प्रकाशित

गिध्द

किसी के भी प्रति

उनमें कोई दुर्भावना नहीं थी

वे हत्यारे भी नहीं थे

हालाँकि बहुत मज़बूत और नुकीली थी

उनकी चोंच

पंजे बहुत गठीले ताक़तवर

और मीटर भर तक फैले

उनके डैने

वे बहुत ऊँची और शान्त उड़ानें भरते थे

धरती पर मँडराती रहती थी

उनकी अपमार्जक छाया

दुनिया भर के दरिन्दों-परिन्दों में

उनकी छवि

सबसे घिनौनी थी

किसी को भी डरा सकते थे

उनके झुर्रीदार चेहरे

वे रक्त सूँघ सकते थे

नोच सकते थे कितनी ही मोटी खाल

माँस ही नहीं

हड्डियाँ तक तोड़कर वे निगल जाते थे

लेकिन

वे कभी बस्तियों में नहीं घुसते थे

नहीं चुराते थे छत पर और ऑंगन में पड़ी

खाने की चीजें

वे पालतू जानवरों और बच्चों पर

कभी नहीं झपटते थे

फिर भी हमारे बड़े

हमें उनके नाम से डराते थे

बचपन की रातों में

अपने विशाल डैने फैलाये

वे हमारे सपनों में आते थे

बहुत कम समझा गया उन्हें

इस दुनिया में

ठुकराया गया सबसे ज्यादा

ज़िन्दगी का रोना रोते लोगों के बीच

वे चुपचाप अपना काम करते रहे

धीरे-धीरे सिमटती रही उनकी छाया

बिना किसी को मारे

बिना किसी दुर्भावना के

मृत्यु को भी

उत्सव में बदल देने वाली

उनकी वह सहज उपस्थिति

धीरे-धीरे दुर्लभ होती गयी

हालाँकि उनके बिना भी

बढ़ता ही जायेगा ज़िन्दग़ी का ये कारवाँ

लेकिन उसके साथ ही

असहनीय हाती जायेगी

मृत्यु की सड़ाँध

हमारी दुनिया से

यह किसी परिन्दे का नहीं

एक साफ़-सुथरे भविष्य का

विदा हो जाना है। -2004-

हंस में प्रकाशित

मोमबत्ती की रोशनी में कविता-पाठ

वीरेन दा के साथ

बहुत काली थी रात

हवाएँ बहुत तेज़

बहुत कम चीजें थीं हमारे पास

रौशनी बहुत थोड़ी-सी

थोड़ी-सी कविताएँ

और होश

उनसे भी थोड़ा

हम किसी चक्रवात में फँसकर

लौटे थे

देख आए थे

अपना टूटता-बिखरता जहान

हमारी आवाज़ में

कँपकँपी थी

हमारे हाथों में

और हमारे पूरे वजूद में

हम दे सकते थे

एक-दूसरे को थोड़ा-सा दिलासा

थपथपा सकते थे

एक-दूसरे की काँपती-थरथराती देह

पकड़ सकते थे

एक-दूसरे का हाथ

हम बहुत कायर थे

वीरेन दा

उस एक पल

और बहुत बहादुर भी

मैं थोड़ा जवान था

तुम थोड़े बूढ़े

हमारी काली रात में

गड्ड-मड़ड हो गयी थी

आलोक धन्वा की

सफेद रात

वो पागल कवि

लाजवाब

गड्ड-मड्ड हो गया था

थोड़ा तुममें

थोड़ा मुझमें

अक्सर ही आती है यह रात

हमारे जीवन में

पर हम साथ नहीं होते

या फिर होते हैं

किसी दूसरे के साथ

सचमुच

क्षुद्रताओं से नहीं बनता जीवन

और न ही वह बनता है

महानताओं से

पर कभी-कभी

क्षुद्रताओं से बनती है महानता

और महानताओं से

कोई क्षुद्रता! -2003-

विपाशा के कवितांक में प्रकाशित

रानीखेत से हिमालय

बेटे से कुछ बात

वे जो दिखते हैं शिखर

नंदघंटा-पंचाचूली-नंदादेवी-त्रिशूल

वगैरह

उन पर धूल राख और पानी नहीं

सिर्फ बर्फ गिरती है

अपनी गरिमा में

निश्छल सोये-से

वे बहुत बड़े और शांत

दिखते हैं

हमेशा ही

बर्फ नहीं गिरती थी उन पर

एक समय था

जब वे थे ही नहीं

जबकि बहुत कठिन है उनके न होने की

कल्पना

अक्षांशों और देशांतरों से भरी

इस दुनिया में

कभी वहां समुद्र था

नमक और मछलियों और एक छँछे उत्साह से भरा

वहांँ समुद्र था

और बहुत दूर थी धरती

पक्षी जाते थे कुछ साहसी

इस ओर से उस ओर

अपना प्रजनन चक्र चलाने

समुद्र

उन्हें रोक नहीं पाता था

फिर एक दौर आया

जब दोनों तरफ की धरती ने

आपस में मिलने का

फैसला किया

समुद्र इस फैसले के ख़िलाफ़ था

वह उबलने लगा

उसके भीतर कुछ ज्वालामुखी फूटे

उसने पूरा प्रतिरोध किया

धरती पर दूर-दूर तक जा पहुंचा

लावा

लेकिन

यह धरती का फैसला था

इस पृथ्वी पर

दो-तिहाई होकर भी रोक नहीं सकता था

जिसे समुद्र

आख़िर वह भी तो एक छुपी हुई

धरती पर था

धरती में भी छुपी हुई कई परतें थीं

प्रेम करते हुए हृदय की तरह

वे हिलने लगीं

दूसरी तरफ़ की धरती की परतों से

भीतर-भीतर मिलने लगीं

उनके हृदय मिलकर बहुत ऊंचे उठे

इस तरह हमारे ये विशाल और अनूठे

पहाड़ बने

यह सिर्फ भूगोल या भूगर्भ-विज्ञान है

या कुछ और?

जब धरती अलग होने का फैसला करती है

तो खाईयां बनती हैं

और जब मिलने का तब बनते हैं पहाड़

बिना किसी से मिले

यों ही

इतना ऊंचा नहीं उठ सकता

कोई

जब ये बने

इन पर भी राख गिरी ज्वालामुखियों की

छाये रहे धूल के बादल

सैकड़ों बरस

फिर गिरा पानी

एक लगातार अनथक

बरसात

एक प्रागैतिहासिक धीरज के साथ

ये ठंडे हुए

आज जो चमकते दीखते हैं

उन्होंने भी भोगे हैं प्रतिशोध

भीतर-भीतर खौले हैं

बर्फ-सा जमा हुआ उन पर

युगों का अवसाद है

पक्षी अब भी जाते हैं यहां से वहाँ

फर्क सिर्फ इतना है

पहले अछोर समुद्र था बीच में

अब

रोककर सहारा देते

पहाड़ हैं! -2005-

वागर्थ में प्रकाशित
**-**
शिरीष कुमार मौर्य के कविताओं की पहली किश्त व लेखक परिचय यहाँ पढ़ें:
शिरीष कुमार मौर्य की कविताएँ -1

**-**

चित्र - अनु की डिजिटल कलाकृति

Tag ,,,

Add to your del.icio.usdel.icio.us Digg this storyDigg this

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: शिरीष कुमार मौर्य की कविताएँ - 2
शिरीष कुमार मौर्य की कविताएँ - 2
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3i9ockV4Qk_zVk8LaIkCmdOwJboBcti0AguYluIfG_bV0iMal326I4fP1lundOti13-yeX0R59Xlkozq_UzJGkEzlXj0IjvtlHA9yNymLnKRa2j29LMP_XsYclTse_nixNBLp/s400/abstract+art.JPG
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3i9ockV4Qk_zVk8LaIkCmdOwJboBcti0AguYluIfG_bV0iMal326I4fP1lundOti13-yeX0R59Xlkozq_UzJGkEzlXj0IjvtlHA9yNymLnKRa2j29LMP_XsYclTse_nixNBLp/s72-c/abstract+art.JPG
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2007/03/shirish-maurya-ki-kavitayen.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2007/03/shirish-maurya-ki-kavitayen.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content