- अजीत अंजुम आज बॉस का मूड फिर उखड़ा-उखड़ा दिख रहा था. चेहरे पर बारह बज रहे थे. कोई पहली बार देख ले तो यही लगेगा कि अभी-अभी निगमबोध घाट से कि...
- अजीत अंजुम
आज बॉस का मूड फिर उखड़ा-उखड़ा दिख रहा था. चेहरे पर बारह बज रहे थे. कोई पहली बार देख ले तो यही लगेगा कि अभी-अभी निगमबोध घाट से किसी को कंधा देकर आ रहा होगा. न्यूज़ रूम के लोग हर दूसरे-तीसरे शुक्रवार को बॉस का यह चेहरा देखने के अभ्यस्त हो चुके हैं. जिस शुक्रवार को चैनल की टीआरपी खराब आती है, उस दिन बॉस इसी तरह सड़ा हुआ मुंह लेकर न्यूज़ रूम में आता है...
लिफाफा देखकर कुछ लोग जैसे मज़मून भांप देते हैं, वैसे ही न्यूज़ रूम के लोग शुक्रवार को बॉस का चेहरा देखकर टीआरपी नाप लेते हैं. सबने बॉस के चेहरे की एक परिभाषा गढ़ ली है.
बॉस का खिला हुआ चेहरा...मतलब_ चैनल की टीआरपी बम-बम है.
बॉस का गंभीर चेहरा...मतलब_टीआरपी का मीटर डाउन है.
बॉस का सूजा हुआ चेहरा...मतलब_ चैनल की टीआरपी की मां...चु...गई है.
आज बॉस का चेहरा बेहद तपा हुआ था. जमाने भर का संताप और खुंदक इकट्ठा होकर जैसे चेहरे पर जमा हो गए थे. मतलब साफ़ था. आज टीवी टेन की टीआरपी चार-पांच प्वाइंट नीचे चली गई है. बॉस के पीछे-पीछे न्यूज़ रूम में दाख़िल होने वाले दोनों एक्जीक्यूटिव एडिटर विनोद पांडे और प्रीतेश भटनागर की भी यही हालत थी.
सबको समझ में आ गया कि ये लोग चैनल के सीईओ के साथ टीआरपी की रिव्यू मीटिंग से आ रहे हैं. आज कईयों के कपड़े फटने वाले हैं. आज कोई कितना भी अच्छा काम कर ले, किसी को शाबासी नहीं मिलने वाली. हां, जो भी बॉस के रडार में आएगा, उसकी बैंड ज़रूर बजेगी. आज की गलती पर न सही, कल परसों की किसी गलती पर. बॉस की नज़र से बचने के लिए न्यूज़ रूम में मौजूद प्रोडयूसर और रिपोर्टर व्यस्त दिखने की कोशिश करने लगे. तभी बॉस की तेज आवाज़ न्यूज़ रूम में गूंजी...
''तुम...तुमने आज फिर दोपहर एक बजे का बुलेटिन क्रिकेट या क्राइम की ख़बर से खोलने की बजाय पोलिटिकल ख़बर से खोल दिया. क्या तमाशा है...कह-कह के थक गया...व्हाई डोन्ट यू अंडरस्टेंड यार...कहां दिमाग रहता है तुम्हारा...'' बास रनडाउन प्रोडयूसर अजय ठाकुर के सामने खड़ा था. अजय की सिट्टी-पिट्टी गुम थी. कभी वह अपने कंप्यूटर को देख रहा था, कभी दुर्वासा की तरह तमतमाए बॉस को. उसके कंप्यूटर पर लाल-पीली-हरी पट्टियां लगातार ऊपर-नीचे हो रही थीं. यह
पट्टियां उन ख़बरों की थी, जो टीवी टेन न्यूज़ चैनल पर चल रही थीं या फिर चलने वाली थीं.
अजय ठाकुर कांपती उंगलियों से माउस को भी इधर-उधर कर रहा था, ताकि चैनल पर कुछ गलत न चला जाए...'क्या बोलूं या न बोलूं...' अजय कुछ जवाब सोच पाता, उससे पहले बॉस की तेज आवाज़ उसके भीतर तक धंस गई.
''...अजय...आई एम आस्किंग यू...गिव मी एन आनसर...व्हाई डोन्ट यू अंडरस्टैंड... अगर बात समझ नहीं आती है तो कल से रनडाउन पर बैठना छोड़ दो...''
अजय को पता था कि उसका हर जवाब अभी आग में घी का काम करेगा. बॉस जब आग उगल रहा हो तो कोई फायर ब्रिगेड भी उसे कंट्रोल नहीं कर सकता. जो उसे बुझाने की कोशिश करेगा वह खुद जल जाएगा...वह सवाल पूछता ही इसलिए है कि रिरियाते हुए सरेंडर करो...न कि जवाब दो...जवाब देना तो ज़बानदराज़ी है.
फिर भी अजय ठाकुर ने जवाब देने की हिम्मत की ''...सर...क्रिकेट या क्राइम में कुछ ख़ास नहीं था, जबकि उत्तार प्रदेश विधान सभा में आज काफ़ी हंगामा हुआ...बिजली की क़िल्लत के सवाल पर...''
अजय का जवाब उसके हलक़ से पूरी तरह बाहर भी नहीं निकल पाया था कि बॉस की ज़ोरदार आवाज़ गूंजी ''भाड़ में जाए यूपी. यूपी में पानी बिजली की क़िल्लत दूर करने का ठेका ले रखा है हमने? ये सामने देख रहे हो चैनल नाइन...क्या चल रहा है...?'' बॉस का इशारा सामने की दीवार पर लगे टीवी की तरफ़ था.
अजय ठाकुर की नज़र टीवी पैनल पर रखे कई टीवी सेटों में से उस टीवी सेट पर जा टिकी, जिस पर 'सती हुई नागिन' स्लग के साथ कोई स्टोरी चल रही थी. स्क्रीन पर थ्री विंडो नज़र आ रहा था. एक में रिपोर्टर कुछ बोले जा रहा था, दूसरे में चैनल नाइन का तेज-तर्रार एंकर अतुल भार्गव दिख रहा था और बीच के विंडो में आग में जलता एक सांप दिख रहा था.
अजय से रहा नहीं गया ''...सर बहुत बकवास स्टोरी है...ये स्टोरी हमारे रिपोर्टर ने भी भेजी थी, लेकिन हमने ड्राप कर दिया...ये कुछ सपेरों की बदमाशी थी...गांव के अंधविश्वासी लोगों पर अपना जादू चलाने के लिए कुछ सपेरों ने...''
अजय की बात अधूरी रह गई. बॉस फिर चीखा, ''...शटअप यार, जब मैं तुम्हें समझाने की कोशिश करता हूं तो तुम मुझे ख़बर समझाने लगते हो...हमें टीआरपी चाहिए, समझे...और टीआरपी बिजली-पानी से नहीं मिलने वाली है..."
अजय के पास अब कोई जवाब नहीं था. सिर झुकाए सिर्फ़ इतना कहा उसने, ''...सर मैं इस नागिन वाली ख़बर को हेडलाइन बनाकर अगले बुलेटिन में ले लेता हूं...''
''न सिर्फ़ हेडलाइन लो बल्कि अपने रिपोर्टर से चैट भी कर लो...और हां... कोशिश करो इस ख़बर को कम-से-कम एक घंटे तक ताने रहो...दर्शकों से लाइव सवाल-जवाब होने दो...पूरा तान दो... समझे...''
''सर...''
''...और आइंदा ऐसी ख़बरों पर नज़र रखा करो...'' बॉस बेहद भन्नाया हुआ था. अजय ठाकुर अगर कुछ देर और उससे ज़िरह करता तो शायद वह उसे उसी वक्त नौकरी छोड़कर जाने का फ़रमान सुना देता. लोग कहते हैं...अगर बॉस के सामने सरेंडर कर दो तो वह जान बख्श देगा...ज़िरह करोगे तो ले...लेगा...हर हफ्ते वह किसी-न-किसी की ले...लेता है...अजय कतई नहीं चाहता था कि उसकी ली जाए...वह भी सरेआम... ज़ंग में हारे हुए सिपाही की तरह अजय ने सिर झुकाया और बॉस के आदेश को अध्यादेश मानकर अपनी सीट पर बैठ गया...बॉस ने कुछ सेकेंड तक उसे घूरकर देखा और दूसरी ओर चला गया...अजय अपने कंप्यूटर पर रनडाउन बनाने में जुट गया. दो बजे का बुलेटिन शुरू होना था. ख़बरों को सिलसिलेवार
अजय अभी अगले बुलेटिन की तैयारी में उलझा ही था कि न्यूज़ रूम के चिल्ल पों के बीच फिर बॉस की आवाज़ आई...सिर उठाकर देखा तो न्यूज़ रूम में बाईं तरफ़ बने एसाइनमेंट डेस्क के पास वह अब नीलेश गुप्ता की क्लास ले रहा था.
नीलेश गुप्ता यानी अजय ठाकुर का इमीडिएट बॉस और आफ्टरनून बुलेटिन का इंचार्ज ख़ुद को महाज्ञानी मानने वाले नीलेश गुप्ता का संक्षिप्त परिचय यह है कि दुनिया का कोई ऐसा विषय नहीं, जिस पर नीलेश चोंच लड़ाने को तैयार न हो...न सिर्फ़ वह चोंच लड़ाने को तैयार रहता है बल्कि अगर किसी ने उसके चोंच से अपनी चोंच भिड़ाई तो वह चोंच मारने को तैयार हो जाता है...
वह हमेशा लोगों को अपने बौध्दिक ज्ञान के अखाड़े में लाकर मारता है...पॉलिटिकल रिपोर्टर से जेपी आंदोलन और संविद सरकारों के जमाने की बात करेगा...खुद को अच्छा कॉपी राइटर मानने वाले शख्स से तब तक साहित्य विमर्श करेगा जब तक वह मान न ले...'प्रभु आप महान हैं मैं तो आपके सामने कुछ भी नहीं'...किसी क्राइम रिपोर्टर को मारियो पूजो और माफ़िया का इतिहास न जानने पर लताड़ लगा देगा...फ़िल्म रिपोर्टर पर धौंस जमाने के लिए मूक फ़िल्मों के ज़माने से शुरू होकर भुवन सोम और पाथेर पंचाली पर लेक्चर दे डालेगा...
मतलब यह कि अपने को महाज्ञानी साबित करने के लिए नीलेश हमेशा मौक़े की ताक में रहता है...
लोग कहते हैं कि टीवी में आने से पहले नीलेश ने आठ-दस साल तक किसी डमडमडिगा टाइप के अख़बार में नौकरी की. काम-धाम ज्यादा था नहीं, कई किलो वजन की किताबें दीमक की तरह चाट गया. किताबी ज्ञान का यहां कोई इस्तेमाल होता नहीं है इसलिए बुध्दि विलास करता रहता है...बौध्दिक आतंकवाद फैलाता रहता है...उसके अंग-अंग से हमेशा बौध्दिकता टपकती रहती है...चूती रहती है...सब उसे बहुत बड़ा कठकरेजी मानते हैं और उससे चोंच लड़ाने से बचते हैं...हां अगर किसी की स्टोरी में कोई पेंच फंस जाए तो नीलेश ज़रूर काम आ जाता है.
वह काम कम चकल्लस ज्यादा करता है. उसका मानना है नीचे वालों का काम है_काम करना, ऊपर वालों का काम है_काम करने वालों पर नज़र रखना...और नीलेश वरिष्ठता के मामले में बहुतों से ऊपर आ चुका था. अब वह 'मूतो कम हिलाओ ज्यादा' की परंपरा का ध्वजवाहक हो गया था.
कैंटीन से कुछ खा-पीकर फुदकते हुए आ रहे नीलेश को कतई अंदाज़ा नहीं था कि बॉस ने न्यूज़ रूम में कोहराम मचा रखा है, वरना वह कुछ देर तक तो न्यूज़ रूम में आता ही नहीं. नीलेश हमेशा यही करता है. अगर उसे पता चल जाए कि बॉस का मूड खराब है और वह न्यूज़ रूम में लोगों के कपड़े फाड़ रहा है, तो वह किसी सुरक्षित जगह पर कुछ देर बिताकर ही इस डेंजर जोन में आता है...फिर सबसे पता करता है बॉस ने आज किस-किस की बैंड बजाई. उसके बाद मजे ले-लेकर लोगों को क़िस्से सुनाता है...गुरु, आज बॉस ने तो फलां के कपड़े फाड़ दिए...गुरु, आज बॉस ने तो फलां की बत्ताी बना दी...गुरु, आज बॉस ने तो फलां की पेंट उतार ली...लेकिन आज पहली बार सरेआम नीलेश की पेंट उतरने लगी.
बॉस दबोचने वाले अंदाज़ में कह रहा था, ''...यार, तुम लोग तो बिल्कुल अक्ल से पैदल हो...जिस ख़बर को ताना जा सकता है, उसी को दो-मिनट में निपटा देते हो...आज नागिन वाली स्टोरी को तुम लोगों ने प्ले अप ही नहीं किया...कल भी जालंधर के गांव में भूत लीला वाली स्टोरी को खेल नहीं पाए...''
''...सर, वो तो हमने चलाया था क़रीब बीस मिनट तक...''
''...'नेशन न्यूज़' चैनल ने कितनी देर तक चलाया था...?''
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''...फिर...? अरे यारे...उस ख़बर में टीआरपी थी...तुम यहां बिजली-पानी चलाते रहो और चैनल को नीचे से पहले नंबर पर पहुंचा दो.''
''...सर, लेकिन उसमें कुछ था भी नहीं...''
''फिर बक़वास...ये चुतियापे वाली फिलासफ़ी को कहीं कूड़ेदान में डाल आओ...यार, ऐसी ख़बरों को तानने के लिए क्या चाहिए...किसी मनोचिकित्सक को बुला लो...रिपोर्टर को चैट के लिए खड़ा करो...दर्शकों के दस-बीस फ़ोनो ले लो...जाहिर है ऊल-जलूल कुछ सवाल पूछे जाएंगे. बस...एंकर और मनोचिकित्सक से जवाब दिलवाते रहो...हो गया एक घंटा...''
''जी सर...'' नीलेश बुरी तरह मिमिया रहा था. कोई और होता तो नीलेश निपट भी लेता, मगर बॉस के सामने उसकी जुबान दगा दे रही थी. पहली बार न्यूज़ रूम में उसका सार्वजनिक अभिनंदन हो रहा था. ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया था. बॉस नीलेश की ले...रहा था...और न्यूज़ रूम में इधर-उधर काम कर रहे कई लोग बॉस के खौफ़ से आक्रांत होकर भी भीतर-भीतर मजे ले रहे थे.
अपने सीनियर एडिटर नीलेश के कपड़े फटते देखकर अजय ठाकुर की तकलीफ़ थोड़ी कम हो गई थी...हर बार बॉस के ओखल में अपने जूनियर का सिर डालकर बच निकलने वाले नीलेश गुप्ता की आज लग गई थी. छह महीने पहले जब अजय ठाकुर ने टीवी टेन ज्वाइन किया था, तब इसी नीलेश गुप्ता ने एक दिन उसे बताया था, ''यहां हर शुक्रवार को इस मीडिया हाउस के तीसरे माले पर टीआरपी मीटिंग होती है. इस मीटिंग में चैनल के सीईओ समेत सभी कर्ता-धर्ता शामिल होते हैं. जिस हफ्ते टीआरपी ठीक होती है, उस हफ्ते तो ये मीटिंग चाय-पकौड़े के साथ खुशनुमा माहौल में ख़त्म होती है. जिस हफ्ते टीआरपी तीन-चार प्वाइंट गिर जाती है, उस हफ्ते बॉस की बैंड सीईओ बजाता है और बॉस नीचे आकर बाकियों की बैंड बजाता है. तुम रनडाउन प्रोडयूसर हो, इसलिए तुम हमेशा बजने के लिए तैयार रहना.
''लेकिन नीलेश जी...शिफ्ट इंचार्ज तो आप हैं, जवाबदेही तो आपकी भी होगी...'' अजय ठाकुर ने पूछा था.
''...गुरु ऐसा है...मेरे पास और भी दस काम होते हैं...आने वाले कई प्रोग्राम की प्लानिंग करनी होती है...रनडाउन का जिम्मा तुम्हारा है...जब कोई कन्फ्यूज़न हो तो मुझसे पूछ लिया करना...'' नीलेश ने एक संपादक की तरह अजय को समझाया था. इतने दिनों में अजय ने जब भी अच्छा काम किया, सारा क्रेडिट कूद-कूद कर नीलेश ने लिया और जब गलतियां हुईं तो टोपी उसे पहना दी. बॉस ने आकर उसकी ले ली. हर बार नीलेश पल्ला झाड़कर खड़ा हो गया, ''...सॉरी बॉस, मैं तो वीकेंड की प्लानिंग कर रहा था...मैं ध्यान नहीं दे पाया, वरना ये गलती नहीं होती...''
अजय ठाकुर की सीट से कुछ दूर खड़ा बॉस अब भी नीलेश को टीआरपी बटोरने वाली ख़बरों की बारीकियां समझा रहा था, ''...तुमने देखा था_अलवर के एक सिरफ़िरे शख्स ने यमराज से मुलाक़ात की बात कहकर कैसे सबको उल्लू बना बनाया... 'इंडिया न्यूज़ चैनल' ने तीन घंटे तक इसे चलाकर टीआरपी बटोर ली न...'' बॉस का पारा कुछ नीचे लुढ़का था. वह समझाने वाले अंदाज़ में आ गया था.
''पिछले हफ्ते तो उन लोगों ने भूतहा कार वाली स्टोरी दिखाकर चार घंटे तक ड्रामा किया. उस स्टोरी में क्या था यार? लेकिन ड्रामा ने चैनल की तो नैया पार लगा दी न. उनका एक शुक्रवार तो निकल गया, हमारे लिए काला शुक्रवार हो गया...ब्लैक फ्राइडे...डू यू अंडरस्टैंड...ब्लैक फ्राइडे?'
''जी सर...लेकिन कई बार लगता है कि हम टीआरपी के चक्कर में...'' नीलेश के भीतर के पत्रकार ने न चाहते हुए भी प्रतिकार करने की कोशिश की, लेकिन उसके वाक्य ने आधे रास्ते में ही दम तोड़ दिया.
''फिर तुम वही बात कर रहे हो...अब जनता चुतियापे वाली स्टोरी ही देखती है तो चुतियापे करते रहो...राखी सावंत को मीका ने एक बार चूमा लेकिन उसने तीन दिन में तीन सौ बार चूमते हुए दिखाया...और जनता ने देखा...तो हम क्या करें...हमने राखी सावंत को कम दिखाया तो पिट गए ना?'' बॉस की भृकुटी फिर तनी थी.
बॉस और नीलेश के संवाद को दूर बैठा अजय ठाकुर चुपचाप सुन रहा था. दिनभर ख़बरों के गिरते स्तर पर भाषणबाजी करने वाले नीलेश की सिट्टी-पिट्टी गुम थी, क्योंकि यहां बात ख़बर की नहीं टीआरपी की हो रही थी.
टीआरपी बरसों पहले रेडियो सिलॉन पर चलने वाले संगीत कार्यक्रम बिनाका गीतमाला की तरह है, जो यह तय करता है कि कौन चैनल किस पायदान पर है. कौन इस हफ्ते ऊपर चढ़ा, कौन नीचे लुढ़का. एक फ़र्क़ है_बिनाका गीतमाला के पायदान पर ऊपर-नीचे होने से किसी म्यूजिक कंपनी में कोहराम नहीं मचता था. यहां हर शुक्रवार को कई चैनलों में टीआरपी के ऊपर-नीचे होते ही कोहराम मच जाता है. एक दिन बॉस जब अच्छे मूड में था, तो संपादकीय मीटिंग में उसने कहा भी था, ''...कितना अच्छा होता अगर ज़िंदगी में कभी शुक्रवार नहीं होता.''
अजय ठाकुर और फिर नीलेश गुप्ता को निपटाकर बॉस पलटा तो सामने इनवेस्टिगेटिव ब्यूरो के चीफ़ समरजीत सिंह पर उसकी नज़र पड़ गई. जब-जब चैनल की ग्रह दशा खराब होती है, समरजीत में बॉस को संकटमोचक नज़र आता है.
''यार कल शाम को चैनल नाइन एक खुलासा करने जा रहा है. सुना है कोई बहुत बड़ा स्कूप है.''
''...हां सर...कोई स्टिंग ऑपरेशन है...सुना है कुछ बड़े-बड़े लोग फंसे हैं...''
''...तो क्या लगता है टीआरपी मिल जाएगी इस प्रोग्राम को...?''
''...अब सर ये पता नहीं, लेकिन जिससे पता चला है कि बाक़ी चैनल भी उस समय के लिए जवाबी तैयारी कर रहे हैं.''
''...तुम्हारे पास क्या तैयारी है...?'' बॉस की पेशानी पर परेशानी की रेखाएं और गहरी हो गईं.
''...सर उसी के चक्कर में लगा हूं...रात तक एक एक्सक्लूसिव प्लान बनाकर आपको देता हूं...'' समरजीत का अंदाज़ बॉस को खुश करने वाला था. हमेशा वह यही करता है. पता नहीं, बॉस को वह क्या घुट्टी पिलाकर रखता है कि टीआरपी गिरने पर सबकी बैंड बज जाती है, लेकिन वह अक्सर बच जाता है. लोग कहते हैं वह बॉस का मुंहलगा है और जासूस भी. न्यूज़ रूम की हर ख़बर बॉस तक पहुंचाना उसका ख़ास काम है. एक ख़ास बात और है उसमें. राई को पहाड़ बनाना और सुई को तलवार बनाना जितना उसे आता है, किसी और को नहीं. दो मिनट की स्टोरी का रायता फैलाकर दो घंटे तक पेल देने में उसे महारत हासिल है...उसे पता है कि कब और कैसे किस स्टोरी को बेचा जा सकता है. तानने-खेलने और पेलने में समरजीत का कोई सानी है.
रिपोट्र्स मानते हैं_स्टोरी बेचना तो कोई समरजीत सिंह से सीखे...हफ्ते दो हफ्ते में जैसे ही 'टीवी टेन' के काले स्क्रीन पर लिखा हुआ आता है_टेलीविजन इतिहास में पहली बार...एक सनसनीखेज खुलासा...आज रात नौ बजे...सारे चैनलों के सूरमाओं को अंदाज़ा हो जाता है कि यह पटाखा समरजीत सिंह का ही होगा...उसका पटाखा भले ही आवाज़ कम करे, धुआं बहुत छोड़ता है, मतलब यह कि उसके फुस्स होने पर भी सनसनी फैल जाती है. नमालूम कितनी बार उसने ऐसे पटाखे चलाए हैं. कुछ धमाके के साथ फूटे, कुछ बेआवाज़ रहे. कहते हैं जब इस देश में किसी भी न्यूज़ चैनल के किसी रिपोर्टर को कोई सनसनीखेज़ स्टोरी नहीं मिलेगी, तब भी समरजीत कहीं-न-कहीं से कुछ ज़रूर खोज कर लाएगा...सनसनीखेज़ स्टोरी खोजने के मामले में वह वास्कोडिगामा है. बॉस ने अपने वास्कोडिगामा को चैनल नाइन के खुलासा का मुक़ाबला करने की रणनीति तैयार करने का जिम्मा दे दिया...
''...रात तक नहीं, इतना टाइम नहीं है. शाम पांच बजे मीटिंग है मेरे केबिन में. तब तक प्लान तैयार कर लो.'' बॉस तेज कदमों से अपने केबिन की तरफ़ चला गया. समरजीत को एक टास्क मिल गया. उसने तत्काल अपनी खोजी टीम के सदस्यों को इकट्ठा किया और आपात बैठक करने के लिए कांफ्रेंस रूम की तरफ़ चल पड़ा.
इधर पूरे न्यूज़ रूम में हलचल शुरू हो गई. नेशनल ब्यूरो प्रमुख धीरज महाजन तीन-चार संवाददाताओं को साथ लेकर कोने में जम गए. महाजन साहब को इस बात का मलाल था कि बॉस ने इस बार भी चैनल नाइन को काउंटर करने का प्लान उनसे नहीं, बल्कि समरजीत सिंह से मांगा था. उन्हें अपने फ़ालतू होने का अहसास हो रहा था. गम गलत करने के लिए महाजन साहब परनिंदा और गॉसिप में जुट गए। संध्या सदानंद भी उनकी चौकड़ी में शामिल हो गई थी. महाजन साहब जब भी गमगीन होते हैं, संध्या की मौजूदगी भर से उनका गम कुछ हल्का हो जाता है.
पालिटिकल एडिटर नीरज जैन माहौल भांप कर लिफ्ट की तरफ़ चल पड़े. टीआरपी गिरने की समीक्षा और उसे उठाने की रणनीति बनाने में जैन साहब को न पहले कभी मजा आता था न अब. मोटी तनख्वाह है. लंबी गाड़ी है. करने को कोई काम नहीं. फिर भी अगर किसी दिन टीआरपी में जाना पड़ता है, तो उनकी सुलग जाती है. झुन्न हो जाते हैं. जैन साहब का यह हाल तब से हुआ है, जब से चैनलों की दिशा बदली है...चैनल पर नेताओं की जगह भूतों ने ले ली है...ख़बरों की जगह ड्रामे ने ले ली है...पार्टियों के क़वरेज की जगह नाग-नागिन ने ले ली है...जैन साहब को लगता है रियलिटी शोज ने उन्हें हाशिए पर डाल दिया है. अब सिर्फ़ कहने को वह पालिटिकल एडिटर रह गए हैं, लेकिन एडिट करने को उनके पास कुछ रहा ही नहीं है. पहले रोज़ टीवी पर दिखते थे. देश के अलग-अलग शहरों से राजनीतिक रिपोर्टिंग करते थे. लाइव चैट और फ़ोनों करके छाए रहते थे...नेताओं की दो-चार बाइट लेकर हर रोज़ एक-दो स्टोरी पेल दिया करते थे. दनादन चैट या फ़ोनों करके अपनी स्टोरी को चमका देते थे.
और अब...हर रोज़ सुबह की मींटिंग में पालिटिकल स्टोरी का आयडिया देते ज़रूर हैं लेकिन बॉस उन्हें सिरे से खारिज़ कर देता है. जैन साहब को कई बार लगता है कि आयडिया को नहीं, उन्हें खारिज़ कर दिया गया है.
एक तो टीवी स्क्रीन से लुप्तप्राय होने का फ्रस्ट्रेशन, ऊपर से हर रोज़ आयडिया खारिज़ होने का फ्रस्ट्रेशन...जैन साहब का फ्रस्ट्रेशन लाइलाज होता जा रहा है. पहले रोज़ फिटफाट होकर दफ्तर पहुंचते थे. तीन-चार बार बाथरूम में जाकर बालों पर कंघी फेरकर टनाटन होकर न्यूज़ रूम के चक्कर लगाते रहते थे. पता नहीं अचानक कब-कहां चैट के लिए खड़ा होना पड़े.
अब देखिए...अक्सर इस हाल में ऑफ़िस पहुंचते हैं कि विक्स वेपोरब वाला मिल जाए तो पूछ बैठे_ये क्या हाल बना रखा है...कुछ लेते क्यों नहीं...
अब न तो वह पार्टी दफ्तरों में देखे जाते हैं, न ही नेताओं के घरों पर...कई बार तो चैनल में भर्ती हुए नए बच्चों को ज्ञान की खुराक़ देते नज़र आते हैं. पोलियो ड्राप...दो बूंद ज़िंदगी की...जैसी.
रिपोर्टर, एंकर या प्रोड्यूसर बनने का सपना लिए 'टीवी टेन' में भर्ती हुए नए बच्चे गौर से जैन साहब की बात सुनते हैं...जब वह चुनाव की रिपोर्टिंग किया करते थे तो कैसे दूसरे चैनलों को कोसों पीछे छोड़ देते थे...राजनीति में कोई पत्ता भी खड़कता था तो कैसे सबसे पहले उन तक उसकी आवाज़ पहुंचती थी और वह ब्रेकिंग न्यूज़ देकर छा जाते थे...कैसे संसद सत्र के दौरान मिलने पर दर्जनों सांसद उन्हें डिनर पर आने का न्यौता देते थे...कैसे टाइम नहीं होने की वजह से उन्हें क्षमा मांगनी पड़ती थी...प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री कैसे उन्हें अपने साथ लिए बग़ैर किसी विदेश दौरे पर नहीं जाते थे...वग़ैरह...वग़ैरह. यानी बीते दिनों की हर वह बात, जो जैन साहब को अपने गौरवशाली अतीत की तरह लगती है, नए बच्चों को सुनाते रहते हैं. और बच्चे...वह भी अब जैन साहब को देखकर भागने लगे हैं क्योंकि मौक़ा मिला नहीं कि वह चिपट जाते हैं और शुरू हो जाते हैं.
अपना फ्रस्ट्रेशन शेयर करने के लिए जैन साहब ने लाइट माइंडेड लोगों की एक तिकड़ी भी बना ली है. चैनल की दशा और दिशा पर चिंतन करना जैन साहब का सबसे अच्छा टाइम पास है. इस चिंतन में उनके साथ हमेशा हैं, उनके दो साथी, यानी तिकड़ी के सदस्य सीनियर एडिटर अभिनव त्यागी और एसोसिएट एक्जीक्यूटिव प्रोडयूसर कौशल किशोर. जैन साहब ने सोचा, कुछ देर बाद बॉस के कमरे में बदमज़गी होगी ही, क्यों न उससे पहले बाहर की फ्रेश हवा और शंकर की चाय का लुत्फ़ उठा लिया जाए.
इधर पूरे न्यूज़ रूम में ख़बर फैल गई कि सीनियर्स की मीटिंग बुलाई गई है. मीटिंग का एजेंडा है...कल रात चैनल नाइन पर चलने वाली ख़ास रिपोर्ट का जवाब कैसे दिया जाए.
शाम पांच बजे समय से पहले ही बॉस के केबिन में टीवी टेन के सारे दिग्गज़ जमा हो गए. बॉस के सामने वाली कुर्सी पर चैनल के दोनों एक्जीक्यूटिव एडिटर विनोद पांडे और प्रीतेश भटनागर ने आसन ग्रहण किया. उनके अगल-बगल नीलेश गुप्ता समेत इनपुट और आउटपुट के पांचों सीनियर एडिटर एक-एक कुर्सी थामकर बैठ गए. नेशनल ब्यूरो चीफ़ धीरज महाजन, पालिटिकल एडिटर नीरज जैन और इन्वेस्टिगेटिव ब्यूरो चीफ़ समरजीत सिंह भी पीछे की कुर्सियों पर जम गए. माहौल मेंं तनाव घुला हुआ है. टीआरपी लुढ़कने का तनाव! मीटिंग की शुरुआत बॉस ने की.
''कल चैनल नाइन पर चार घंटे तक सनसनीखेज़ खुलासा होने वाला है. हमें कुछ काउंटर करना होगा...अगर इस हफ्ते हम अपने आपको नहीं बचा पाए तो...?'' बॉस ने बात अधूरी छोड़ दी. सबको स्कैन करती हुई उसकी आंखें तेजी से घूमी और केबिन के एक कोने पर टिक गई. वहां रखे टीवी सेटों पर अलग-अलग चैनल चल रहे थे.
बॉस की नज़र चैनल नाइन पर थी. वही चैनल नाइन, जिसने पिछले तीने महीने में टीवी टेन को टीआरपी के जंग में कई बार पछाड़ दिया था. इस शुक्रवार की टीआरपी में भी चैनल नाइन ने बाजी मार ली थी. अगले हफ्ते भी यही हाल रहा तो...घ् शायद यही सोच रहा था बॉस. चैनल नाइन को वह यूं देख रहा था, जैसे दुश्मन सामने हो और उसे अखाड़े में चित्ता करने के लिए उसकी कमजोरियां तलाश रहा हो...
उसका चेहरा अचानक सख्त हो गया था...तनाव, खीझ और बेबसी...सब कुछ एक साथ चेहरे पर उमड़ पड़ा था...उसके निचले होंठों को दांतों ने आगे बढ़कर दबोच लिया था...टेबल के नीचे उसके पैर इतनी तेजी से हिल रहे थे कि कुर्सी में घुसी उसकी पतली काया उस कंपन को पचा नहीं पा रही थी...तभी चैनल नाइन के स्क्रीन पर एक लाल पट्टी आई...एक सनसनीखेज़ खुलासा...टेलीविजन इतिहास में पहली बार...शनिवार रात आठ बजे से लगातार... बीस सेकेंड का यह प्रोमो जैसे ही ख़त्म हुआ, बॉस के पैरों का हिलना बंद हो गया...दांतों ने होंठों को आजाद कर दिया...
''...इन सालों ने हद कर रखा है...हर हफ्ते कोई-न-कोई स्टिंग ऑपरेशन, खुलासा या चुतियापे की कोई स्टोरी कहीं से ले आते हैं और चार-पांच घंटे तक पेल देते हैं...हमारा काम लगा देते हैं...इस बार भी हमारी लग जाएगी...उधर सीईओ ने साफ़ कह दिया है कि हम तीसरे या चौथे नंबर पर होना एफ़ोर्ड नहीं कर सकते. आप लोग बताइए हम क्या करें...?'' अचानक बॉस ने सामने बैठे लोगों की तरफ़ सवाल उछाल दिया.
एसोसिएट एडिटर दिवाकर गुप्ता ने बॉस के सवाल को तुरंत लपका. तनाव से जूझ रहे बॉस को खुश करने के लिए दिवाकर ने दनाक से अपना जवाब चिपका दिया, ''सर, मुझे लगता है हमें घबराने की ज़रूरत नहीं है. यूपी के गैंगस्टर बबलू श्रीवास्तव की आत्मकथा के कुछ हिस्से आज अख़बारों में छपे हैं. बाक़ी हिस्सों में भी बहुत मसाला है. हम डॉन की दास्तान को स्पेशल रिपोर्ट बनाकर चला सकते हैं...''
गुप्ता जी ने तो सोचा था कि इससे पहले कि किसी और का आयडिया बॉस को क्लिक़ कर जाए क्यों न अपनी पेल दें, लेकिन बात जमी नहीं. बॉस ने एक पल में खारिज़ कर दिया. ''नहीं...स्टोरी अच्छी है. लेकिन ड्रामा नहीं है...किसी और दिन के लिए ठीक है, चैनल नाइन के काउंटर के लिए नहीं...'' गुप्ता जी का मुंह सूखे हुए छुहारे की तरह हो गया. सारा उत्साह एक सेकेंड में भीतर घुस गया.
अब बारी उनके ठीक बगल में बैठे एसाइनमेंट डेस्क के सीनियर एडिटर परवेज हयात की थी. परवेज को बार-बार नागपुर कॉरस्पोंडेंट शिखा पॉल की स्टोरी आयडिया का ख्याल आ रहा था.
आज सुबह-सुबह सबसे पहला फ़ोन शिखा का ही आया था. ''सर, विदर्भ में खुदकुशी करने वाले किसानों की तादाद आज एक हज़ार हो गई है. हम लोग इस पर एक घंटे का शो कर सकते हैं. मैं कई दिनों से कह रही हूं. कोई सुनता ही नहीं.'' शिखा ने बेरुख़ी से कहा था.
फिर उसने खीझते हुए सवाल पूछा था_''सर, क्या अब चैनलों के लिए किसानों के मरने का कोई मतलब नहीं रह गया है? क्योंकि इसमें कोई ड्रामा नहीं है? इस बार हमने तो इस स्टोरी में काफ़ी ड्रामा और रोना-धोना भी डाल दिया है. प्लीज सर..एक हज़ारवीं खुदकुशी पर तो एक स्पेशल शो बनाकर चला दीजिए...'' शिखा की दलील सुनने के बाद परवेज ने प्राइम टाइम में विदर्भ के हाल पर आधे घंटे का शो प्लान करने का फैसला भी कर लिया था. सोचा था बॉस को कन्विंस कर लेगा. इसी बीच यह टीआरपी आ गई और चैनल नाइन के खुलासे का ऐलान. अब किसान चाहे एक सौ मरें या एक हज़ार, यह ख़बर न तो टीआरपी दे सकती है, न ही किसी चैनल के खुलासे का मुक़ाबला कर सकती है. परवेज साहब ने स्पेशल शो के आयडिया को अपने भीतर ही दफ़न कर दिया. उन्हें पता था अगर अभी किसानों की खुदकुशी पर शो करने की बात भी की तो बॉस उनका मजाक़ उड़ा देगा. परवेज़ साहब अपने भीतर थे और बॉस की नज़र उन पर टिकी थी. कुछ सोच-विचार के बाद परवेज ने टीआरपी के मिजाज से मेल खाती हुई एक स्टोरी आगे बढ़ाई.
''गाजियाबाद में एक महीने के भीतर दस बच्चे गायब हुए हैं. कहते हैं कोई गिरोह है जो बच्चों को...''
परवेज़ साहब का वाक्य फुलस्टाप तक पहुंच पाता उससे पहले ही बॉस ने कौमा लगा दिया. ''मुझे पता है कुछ बच्चों के परिवार वाले स्टूडियो भी आने को तैयार हैं, लेकिन इसमें उतनी टीआरपी नहीं है...मुझे टीआरपी चाहिए यार...''
केबिन में कुछ सेकेंड के लिए फिर चुप्पी छा गई. शीशे के केबिन के बाहर गहमागहमी और भागदौड़ थी...भीतर सन्नाटा. अब बॉस के एक हाथ की उंगलियां टेबल पर पड़े लैपटॉप के माउस पर घूम रही थीं और दूसरे हाथ की उंगलियां उसकी पेशानी को सहला रही थीं.
सहलाते-सहलाते उसकी उंगलियों का दबाव उसकी पेशानी पर बढ़ गया था. पांचों उंगलियां कभी एकजुट होकर उसकी आंखों के ऊपर के हिस्से को दबा रही थीं तो कभी ललाट को. बॉस की उंगलियां चाहे-अनचाहे चेहरे पर उभर आए तनाव को कम करने का तरीका खोज रही थीं. लेकिन उसकी नज़र अब भी रह-रहकर चौदह इंच के मॉनिटर में कैद दुश्मन पर टिकती थी...यानी चैनल नाइन पर...
एक राष्ट्रीय अख़बार की नौकरी छोड़कर कुछ महीनों पहले ही टीवी टेन में इनपुट एडिटर बने साकेत वर्मा के भीतर उथल-पुथल मची थी. स्टोरी आयडिया तो कई आ रहे थे लेकिन डर लग रहा था, कहीं उल्टा न पड़ जाए. वैसे भी बॉस उन्हें कई बार कह चुका था...आप अख़बारी खोपड़ी लेकर चैनल में आ गए हैं. पहले अपनी खोपड़ी की सफाई करिए...विजुअल इम्पैक्ट को समझिए...फिर भी हर रोज़ कहीं-न-कहीं उनसे चूक हो जाती है. उन्हें लग रहा था कि आज अगर कोई आयडिया नहीं दिया तो बॉस समझ लेगा अख़बारी खोपड़ी में अभी तक टीवी नहीं घुस पाया है.
बहुत हिम्मत करके उसने आख़िरकार मुंह खोल ही दिया, ''...सर, मध्यप्रदेश में शिक्षकों की बहाली में धांधली पर हमारे दो रिपोट्र्स ने काफ़ी काम किया है...उस स्टोरी को अगर हम दो घंटे के शो के हिसाब से प्लान करें...मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेताओं को स्टूडियो में बुलाकर सवाल-जवाब करें तो शायद...'' साकेत को अपनी बात अधूरी छोड़नी पड़ी. बॉस का चेहरा देखकर समझ गया कि वह गलत डायरेक्शन में जा रहा है.
''...यार, आप सब लोग उन ख़बरों की बात कर रहे हैं जो साल-दो साल पहले टीवी पर चलती थीं.'' बॉस ने साकेत को तिरस्कार करने वाले अंदाज़ में देखा था. कुछ यूं कि...चूतिए...बात टीआरपी वाली ख़बरों की हो रही है और तुम क्या बक़वास आयडिया पेल रहे हो...मन लायक कोई स्टोरी आयडिया नहीं आते देख बॉस बौखला गया. बॉस का ब्लडप्रेशर बढ़ रहा था.
''...लेकिन बॉस हम लोग यूं ही टीआरपी के चक्कर में ऊलजलूल ख़बरें चला-चलाकर लोगों की नज़र में अपनी क्रेडिबलिटी ख़त्म करते जा रहे हैं...हमें लांग टर्म सोचना चाहिए...'' अब तक चुपचाप बैठे एक्जीक्यूटिव एडिटर प्रतीेश भटनागर से रहा नहीं गया. वह सैद्धांतिक सवाल खड़े करने के मूड में आ गए.
''यार प्रीतेश, क्रेडिबलिटी की चटनी बनाकर चाटेंगे क्या...? हम ज्यादा लांग टर्म सोचेंगे तो हम ही शाट टर्म हो जाएंगे...समझे? मार्केटिंग वालों ने कह दिया है कि टीआरपी यूं लढ़कती रही तो इस फाइनेंशियल इयर में तीस-चालीस करोड़ का नुकसान हो जाएगा...और अगर वाक़ई ऐसा हुआ तो क्रेडिबलिटी बत्ताी बनाने के काम भी नहीं आएगी...सीईओ कान पकड़कर न जाने कितनों को बाहर कर देगा...समझे?'' बॉस बुरी तरह बिदक गया. प्रीतेश की नसीहत सुनकर उसे बदहज़मी-सी हो गई.
प्रीतेश भटनागर सकपका गए. आमतौर पर बॉस उन्हें कभी नहीं झिड़कता था. वह इतना कहने की हिम्मत भी इसलिए कर पाए क्योंकि वर्षों तक वह बॉस के हम-प्याला, हम-निवाला रहे हैं. पांच साल पहले दोनों अख़बार की नौकरी छोड़कर एक साथ ख़बरिया चैनलों की दुनिया में आए...एक बॉस बना, दूसरा उसका नंबर टू...लेकिन रिश्ते में कभी गांठ नहीं पड़ी..इनकी दोस्ती तब से है, जब दोनों दिल्ली में फाक़ामस्ती किया करते थे...दिन भर चप्पल घिसते हुए अख़बारों में नौकरी खोजा करते थे...फिर दोनों को एक ही साथ बहादुर शाह जफर मार्ग पर एक अख़बार में पहली नौकरी मिली थी. दिन भर काम निपटाने के बाद दोनों तीन सौ बीस नंबर की बस पकड़कर लक्ष्मी नगर में अपने दड़बेनुमा कमरे पर आते थे.
थकान मिटाने के लिए कभी-कभी एरिस्ट्रोक्रेट या मेक्डावेल का अध्दा-पौवा खरीद लाते और अंकुरे हुए चने या मूंग के साथ गटक जाते थे. तब दोनों ने चैनल में नौकरी करने के सपने देखना तो दूर, सपने में कभी न्यूज़ चैनल भी नहीं देखा था. छुट्टी के दिन दोनों डीटीसी के सरकारी पास बनवाकर दिन भर मटरगश्ती किया करते थे...तब दोनों गरम मिजाज इतने थे कि नौकरी को हाथ पर लेकर घूमा करते थे...हमेशा हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने को तैयार...अख़बार के मालिकनुमा संपादक ने कुछ कहा नहीं कि टेबल पर रखी अपनी स्पाइरल नोट बुक उठाई और कुर्सी छोड़कर खड़े हो गए...कुछ इस अंदाज़ में कि लो अपनी नौकरी...बत्ताी बनाकर डाल लो...
और अब...सीईओ की लताड़ को आशीर्वचन की तरह सुनने को तैयार रहते हैं लेकिन नौकरी छोड़ने को नहीं...क्योंकि तब नौकरी हज़ारों की थी...अब लाखों की है...तब बस में चलते थे...अब टोयटा कैमरी और होंडा एकार्ड जैसी महंगी गाड़ियों पर चलते हैं...
तब छुट्टियां मनाने के लिए पटना और गोरखपुर जाते थे...अब यूके और यूएस...तब यार-दोस्त, दीन-दुनिया, समाज और सरोकार से जुड़े थे...अब टीआरपी से जुड़े हैं...टीआरपी है तो नौकरी है...नौकरी है तो ये ऐशो आराम हैं...टीआरपी नहीं तो कुछ नहीं...
बॉस ने तो काफ़ी पहले ही मान लिया था...टीआरपी देवो भव...लेकिन प्रीतेश कभी-कभी प्रतिकार करके असहमत होने की खानापूर्ति करते थे...फिर अक्सर सहमत हो जाते थे.
आज भी प्रीतेश असहमत होते दिख रहे थे. लेकिन बॉस आज उनकी असहमति का थोड़ा भी सम्मान करने को कतई तैयार नहीं था. वह सबकी बजाने के मूड में था. बॉस की झिड़की सुनकर प्रीतेश गंभीर मुद्रा धारण कर चुके थे. बॉस ने प्रीतेश की आंखों में आंखें डाल दीं ''...ऐसा है प्रीतेश, मुझे भी पता है कि जो हम कर रहे हैं उसका क्या मतलब है. लेकिन न करने का क्या मतलब है, ये 'इन टीवी' की हालत देखकर समझ लो...उनके पास हो सकता है क्रेडिबलिटी हो, लेकिन टीआरपी नहीं है. एक साल में वो चैनल दूसरे से पांचवें-छठे नंबर पर पहुंच गया है...हम तो अब इससे नीचे नहीं जा सकते...समझे...''
प्रीतेश समझ गए कि इस बार मामला काफ़ी संगीन है. उन्हें याद आया. सुबह की मीटिंग में पकौड़े खाते हुए सीईओ का चेहरा...बेहद क्रूर...उसने अपने ख़ास लहजे में कह दिया था_हमें हर हाल में रेटिंग चाहिए.
बॉस ने जब उसकी बात काटने की कोशिश की थी तो उसने घूरकर देखा था. ऐसे जैसे पकौड़े के साथ बॉस का भी नाश्ता कर लेगा. अब बॉस के एक हाथ की उंगलियां माउस को छोड़कर अपने अधगंजे सिर पर घूमने लगी थी...उसकी बेचारगी साफ़ झलक रही थी...बॉस को यह अहसास हो गया कि किसी के पास कोई धांसू आइडिया नहीं है.
समरजीत उसकी आख़िरी उम्मीद है...और समरजीत...वह चुपचाप सबको सुन रहा था और अपनी जेब से अख़बारों की कतरनें निकाल-निकालकर देख रहा था.
''...तुम बताओ...?'' बॉस अब समरजीत से मुखातिब था.
''सर चैनल नाइन की स्टोरी को काउंटर करने के लिए हमारे पास पांच-छह आइटम हैं. एक-एक करके बताता हूं. जो स्टोरी सही लगती है, उस पर हम दो-तीन घंटे तक खेल सकते हैं. ये मैं प्लान करके आपको दे सकता हूं...'' समरजीत सिंह ने पांच-सात अख़बारी कतरन निकाली और एक-एक करके बॉस को स्टोरी सुनाने लगा.
पहली स्टोरी...मऊ दंगे का एक आरोपी हमारे संपर्क में है. पुलिस उसकी तलाश कर रही है लेकिन हम चाहे तो वो हमारे स्टूडियो में सरेंडर कर सकता है...ये मोस्ट वांटेड हिस्ट्रीशीटर भी है इसलिए इसका स्टूडियो में सरेंडर करना सनसनीखेज घटना होगी...बहुत खेलने लायक ख़बर है सर...
दूसरी स्टोरी...बड़ोदरा के एक गांव में दो दिन पहले एक लड़के ने खेत में एक नाग को मार दिया था...तब से कहते हैं एक नागिन उस लड़के के घर के पास बार-बार देखी जा रही है...लोगों को लगता है कि वो उसी नाग की नागिन है, जो अब बदला लेने के लिए उस लड़के की तलाश कर रही है...
बॉस की बुझी हुई आंखें पहली बार चमकीं. समरजीत को उसने बीच में ही रोका, ''...लेकिन नागिन वाली ख़बर तो आज ही सारे चैनलों पर चली है...''
''...हां सर, लेकिन ये दूसरी नागिन है. वह सहारनपुर की नागिन थी, जो अपने नाग की मौत के बाद सती हो गई. यह बड़ोदरा की नागिन है. ये स्टोरी एक्सीक्लूसिव है...सिर्फ़ हमारे पास है. लेकिन आप पहले बाक़ी स्टोरी के बारे में सुन लीजिए.''
तीसरी स्टोरी...जयपुर में एक तांत्रिक है, जो अपनी कुंडली देखकर अपने मरने की भविष्यवाणी कर रहा है. इस स्टोरी में टीआरपी की काफी गुंजाइश है. उस तांत्रिक से बात हो गई है. उसको हमने इस बात के लिए सेट कर लिया है कि वो सिर्फ़ हमारे कैमरे पर अन्तिम सांस लेने की कोशिश करे...
चौथी स्टोरी...सर, एक तो ये है कि ग्वालियर के पास एक गांव में सात साल की एक लड़की है, जिसका दावा है कि तीन जन्म पहले वह झांसी की रानी थी...वो 1857 की लड़ाई के किस्से भी सुना रही है. हम इस लड़की को स्टूडियो में बुलाकर काफी तान सकते हैं...बहुत बिकने वाली स्टोरी है...
पांचवीं स्टोरी...हरियाणा के एक गांव के लोगों के मुताबिक़ एक स्कूल में रात को भूत पढ़ाई करने आते हैं...यहां भी गांव के लोगों का मज़मा जुटाकर हम काफी रायता फैला सकते हैं. बच्चों की भीड़ के साथ शिक्षकों को भी हम..
''एक मिनट...एक मिनट...भूत वाली स्टोरी हम कई बार चला चुके हैं...ग्वालियर वाली स्टोरी में क्या-क्या मिल जाएगा...? बॉस ने चौथी स्टोरी में दिलचस्पी दिखाई.
''बॉस, वो लड़की मिल जाएगी...उसके घरवाले मिल जाएंगे...वो लड़की कहीं से पुरानी-सी तलवार भी ले आई है...लोगों को देखते ही वो तलवार चलाने लगती है...वो भी 1857 के किस्से सुनाती है...कैसे वह घोड़े पर चलती थी...कैसे तात्या टोपे से उसकी मुलाकात हुई थी...बहुत दिलचस्प मामला है सर..''
''बॉस सुन रहा था. चेहरे पर द्वंद्व भी था और क्या करें न करें की चिंता भी. कुछ महीने पहले उसने पुनर्जन्म की स्टोरी लाने वाले एक रिपोर्टर को बुरी तरह हड़काया था. उस रिपोर्टर की वकालत करने वाले इनपुट एडिटर अभय वर्मा को भी ऐसी बकवास स्टोरी को इंटरटेन न करने की हिदायत दी थी.
अभय ने तब बहुत ज़ोर देकर कहा था, ''...बॉस, इसे लोग बहुत देखेंगे.''
बॉस बुरी तरह बिदका था, ''...लोग ब्लू फ़िल्म भी देखते हैं...तो क्या चला दें...न्यूज़ बिज़नेस में हैं तो न्यूज़ को समझा कीजिए...'' बॉस काट खाने वाले अंदाज़ में अभय पर चिल्ला पड़ा था..
और आज...बॉस समरजीत से पुनर्जन्म की पहेली समझने की कोशिश कर रहा था.
''...बॉस, ये स्टोरी टीआरपी प्वाइंट ऑफ़ व्यू से अच्छी रहेगी...इसे हम काफी देर तक तान सकते हैं.''
सीनियर आउटपुट एडिटर आनंद शर्मा अचानक बहुत उत्साहित होकर बीच में कूद पड़ा. ख़बरों का तानना आनंद का पसंदीदा शगल है. न्यूज़ रूम में जैसे ही तानने लायक कोई ख़बर आती है, आउटपुट डेस्क की तरफ़ से आनंद की आवाज़ ज़रूर आती है. ''अबे इस ख़बर को तानो...इससे पहले की फलां चैनल इसे ताने, तुम तान दो...'' अपने प्रोडयूसरों को वह तान दो...तान दो...इस तरह से कहता है, जैसे उसके बाप-दादे रामलीला मैदान में तंबू तानते रहे हों और यही पुश्तैनी क़ारोबार वह इस चैनल में कर रहा है. मैदान में तंबू तानने की बजाय ख़बरों को तान रहा है. खुद को टीआरपी मामलों का विशेषज्ञ मानने वाले आनंद का एक ही उसूल है...टीआरपी है तो चैनल है...चैनल है तो हम हैं...लिहाज़ा टीआरपी के लिए कुछ भी करने में बुराई नहीं...
पहले समरजीत का स्टोरी आयडिया और फिर आनंद के समर्थन ने बॉस की आंखों की चमक बढ़ा दी. गिरी हुई टीआरपी का टेंशन और चैनल नाइन के खुलासे का जो डर कुछ मिनट पहले तक उसके चेहरे पर साफ़ दिख रहा था, वह कुछ कम होता दिखा.
''...अब कल का हमारा एजेंडा यही होगा...आप लोग समरजीत के साथ बैठकर प्लानिंग कर लीजिए. चैनल नाइन शायद कल शाम सात बजे से अपना खुलासा दिखाने वाला है. हम लोग ठीक दो मिनट पहले ही 'मैं झांसी की रानी हूं' दिखाना शुरू कर देंगे...दर्शक अगर एक बार हमारे चैनल पर रुक गया तो समझिए हमने बाजी जीत ली.'' बॉस ने मीटिंग ख़त्म करने वाले अंदाज़ में कहा.
विनोद पांडे ने तुरंत सहमति में मुंडी हिलाई. जैसे बॉस ने कोई बहुत बड़ी बात कह दी हो और उन्हें सबसे पहले समझ में आ गया हो. समरजीत के चेहरे पर विजेता का भाव था. एक बार फिर उसकी स्टोरी बॉस को पसंद आ गई थी. एक बार फिर चैनल की नैया का खेवैया बनने का मौक़ा उसे मिलने वाला था. और बाक़ी लोग...सब चुप...
नेशनल ब्यूरो चीफ़ धीरज महाजन ने नज़र घुमाकर सबकी ओर देखा...इस उम्मीद में, कि कोई तो बोले कि बॉस हम यह क्या कर रहे हैं...लेकिन उड़ता तीर कोई लेने को तैयार नहीं था. असहमत होने का मतलब था टीआरपी बटोरने वाला कोई धांसू आयडिया देना, जो किसी के पास था नहीं. कोई मुंह खोलकर बॉस का कोपभाजन बनने के मूड में नहीं लग रहा था. धीरज को पता था कि वह अपना मुंह खोलेगा तो बॉस उसकी खोल देगा. उसने धीरज जैन की ओर देखा...उसकी आंखों में गुजारिश थी...जैन साहब आप तो कुछ बोलिए...लेकिन जैन साहब 'दुनिया जाए भाड़ में मुझे क्या पड़ी' वाली मुद्रा में बैठे रहे. आंखों ही आंखों में उन्होंने कहा...जो चलता है चलने दो. वैसे भी जब से इन्वेस्टीगेटिव ब्यूरो चीफ़ समरजीत सिंह इन्वेस्टीगेशन करने की बजाय चूतियापे वाली स्टोरी पेलने लगा है जैन साहब को उससे एलर्जी हो गई है.
प्रीतेश के चेहरे पर कुढ़न साफ़ दिख रही थी, लेकिन वह भी क्या कर सकते थे. जब-जब वह बॉस से असहमत होते तो प्रीतेश जी अंग्रेज़ी के उस कहावत को मान लेते थे_
रूल नंबर वन_द बॉस इज आलवेज़ राइट
रूल नंबर टू_इफ द बॉस इज रांग, सी रूल नंबर वन
बॉस ने सभा विसर्जित करने का संकेत दिया. सबने एक साथ कुर्सी छोड़ी और एक-एक करके केबिन से बाहर चले गए.
अगले दिन शाम के ठीक छह बजकर पचास मिनट पर न्यूज़ रूम में गहमागहमी का माहौल था. न्यूज़ रूम वार रूम में तब्दील हो गया था. आठ मिनट बाद 'टीवी टेन' पर 'मैं झांसी की रानी हूं' शुरू होना है. स्टूडियो में पुनर्जन्म मामलों के कुछ विशेषज्ञ बैठे हैं. ग्वालियर में झांसी की रानी के घर पर संवाददाता मौजूद है. ग्वालियर के चर्चित इतिहासकार को सेटेलाइट लिंक के जरिए कनेक्ट कर दिया गया है. बस इंतज़ार हो रहा है घड़ी की सूइयों के आगे खिसकने का. बॉस खुद भी न्यूज़ रूम में मौजूद है. सारे सीनियर्स भी उसके आसपास हैं. सामने दीवार पर एक लाइन से आठ टीवी सेट टंगे हैं. सब पर अलग-अलग न्यूज़ चैनल चल रहे हैं.
'चैनल इंडिया' पर कमिंग अप आ रहा है 'ख़ून पीने वाले लोगों का इलाक़ा...' थोड़ी देर में.
महानगर टीवी पर कमिंग अप है...'मुर्दों ने मचाया उत्पात...'
'सिटी न्यूज़' चैनल पर कमिंग अप है... 'सुरंग में कैद एक आत्मा की आत्मकथा.' टेलीविजन पर पहली बार...ठीक सात बजे.
'चैनल नाइन' पर बार-बार लाल पट्टी चल रही थी...'देश को हिला देने वाला एक खुलासा... ऑपरेशन नेता जी...बस थोड़ी देर में. बाक़ी चैनलों की ओर किसी का ध्यान नहीं था.
तभी बॉस ने चिल्लाकर रनडाउन प्रोड्यूसर अजय ठाकुर से कहा, ''...अजय...'मैं झांसी की रानी हूं' का कमिंगअप लगातार चलाते रहो. एक सेकेंड भी नहीं हटना चाहिए. कमर्शियल ब्रेक के बीच में भी नहीं.''
फिर पीछे खड़े एक्जीक्यूटिव एडिटर विनोद पांडे की तरफ़ देखकर बोला, ''...देख रहे हो न अगर आज हमने तैयारी नहीं की होती तो कितनी बुरी तरह से पिटने वाले थे...'' हमेशा की तरह विनोद पांडे ने अपना सिर हिलाया.
कुछ ही मिनटों बाद खेल शुरू हो गया. 'चैनल नाइन' पर एक स्टिंग ऑपरेशन दिखाया जा रहा था...'ऑपरेशन नेता जी'. केंद्र सरकार के कुछ नेता और सरकारी अफसर किसी प्रोजेक्ट को पास करने के नाम पर रिश्वत लेते हुए दिख रहे थे.
बॉस एक-एक कर सारे चैनलों को देख रहा था. उसके चेहरे पर बेचैनी कुछ कम हो गई थी.
कुछ देर तक बॉस कंट्रोल रूम यानी पीसीआर से ग्वालियर में मौजूद अपने रिपोर्टर को बताता रहा कि कैसे वह दर्शकों को पुनर्जन्म वाली यह स्टोरी बता-बताकर देर तक बांधे रखे. ''...देखो, जब तक चैनल नाइन पर खुलासे वाली स्टोरी चलेगी, तब तक हमारे चैनल पर ये ड्रामा चलना चाहिए. दर्शकों के लिए तीन-चार फ़ोन लाइनें खोल दो...वो जितने भी बेवकूफी वाले सवाल पूछ सकते हैं, पूछने दो...कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता...एंकर से उस लड़की से तमाम तरह के सवाल करवाओ...साथ में झांसी की रानी का इतिहास भी बताओ...''
बॉस बोलता जा रहा था. पैनल प्रोडयूसर सौरभ सिन्हा गौर से उसका चेहर देख रहा था. उसने बॉस को इतना एक्साइटेड पहली बार तब देखा था, जब इराक युध्द के समय पहले भारतीय पत्रकार के रूप में टीवी टेन का रिपोर्टर विवेक प्रकाश बगदाद पहुंचने में कामयाब हो गया था. बगदाद में अमरीकी टैंकों के पास खड़े विवेक प्रकाश से सेटेलाइट फ़ोन के जरिए वह बात कर रहा था...
कंट्रोल रूम में उछल-उछल कर बॉस इराक युध्द की ख़बर परोसने के तरीके समझा रहा था...और अब देखिए...क्या हो गया है इस आदमी को...बीस साल की पत्रकारिता के बाद यह आदमी अचानक कितना बदल गया है...
सौरभ सोच रहा था...रेस में जीतने के लिए जैसे खिलाड़ी ड्रग लेते हैं, उसी तरह चैनलों की इस प्रतियोगिता में अब ड्रग्स का इस्तेमाल होने लगा है...नाग-नागिन और पुनर्जन्म की ख़बरें ड्रग्स ही तो हैं...फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि अब तक इस खेल में डोप टेस्ट होना शुरू नहीं हुआ है...
अगला शुक्रवार
आज फिर शुक्रवार है. अजय ठाकुर सुबह से रनडाउन पर काम कर रहा है. उसकी नज़र उस ख़बर पर है जो वाकई ख़बर नहीं है. उसे इस बात का इंतज़ार है कि आज टीआरपी का ऊंट किस करवट बैठेगा. तभी शीशे के दरवाज़े से न्यूज़ रूम में बॉस की एंट्री होती है. चेहरा बिल्कुल खिला- खिला सा लग रहा था. जैसे अभी-अभी किसी नर्सिंग होम से बेटे के बाप बनने की ख़बर सुनकर सीधा दफ्तर आ गया हो. सबको 'हेलो हाय' करता हुआ बॉस अपने केबिन की तरफ़ चला गया. न तो वह रनडाउन पैनल की तरफ़ आया, न ही इनपुट और आउटपुट डेस्क की तरफ़. बॉस का मूड भांपने में एक्सपर्ट माने जाने वाले प्रोडयूसर और रिपोर्टर ये ख़बर फैलाने में जुट गए कि बॉस के मूड से लगता है टीआरपी ठीक हो गई है...अजय को समझ में नहीं आ रहा था कि चैनल नाइन के 'ऑपरेशन नेताजी' का मुक़ाबला यह फर्जी झांसी की रानी कैसे कर सकती है...? कुछ ही मिनट बाद सीनियर एडिटर आनंद ने आकर ख़बर दी, ''...हमारे चैनल ने बाजी मार ली है. 'ऑपरेशन नेताजी' को हमारी झांसी की रानी ने निपटा दिया. चैनल नाइन के सारे दिग्गज बेहोश पड़े हैं...अब वे लोग भी कुछ ऐसा ही तलाशने में जुटे हैं...बॉस ने सबको कांग्रेचुलेट करते हुए मेल भेजा है...'' अजय ने तुरंत अपना मेल बाक्स चेक किया.
इनबाक्स में बॉस का मेल आ चुका था...
...डियर आल,
फाइनली वी हेव डन इट. आवर चैनल हैज वन्स एगेन रीगेन्ड इट्स पोजीशन. आई वुड लाइक टू पर्सनली कांग्रेचुलेट आल आफ यू फॉर एचीविंग दिस फीट. आई एम स्योर दिस विल गो अ लांग वे इन एचीविंग मेनी सच माइल स्टोन्स इन फ्यूचर.
कीप इट अप...चियर्स...
पूरे न्यूज़ रूम में उत्साह का माहौल था. चैनल नाइन को पछाड़ने का उत्साह. बॉस खुश तो सब खुश. अपनी शिफ्ट डयूटी ख़त्म होने के बाद हर रोज़ की तरह अजय ठाकुर लाइब्रेरी की तरफ़ चल पड़ा. कुछ अख़बार चाटे बग़ैर उसे घर जाने की आदत नहीं थी.
लाइब्रेरी पहुंचा तो देखा एक कोने में नेशनल ब्यूरो के चार दिग्गज रिपोर्टर अख़बारों का बंडल लेकर कुछ खंगालने में जुटे हैं. अजय ठाकुर को समझ में नहीं आया_अक्सर फ़ील्ड में व्यस्त रहने वाले ये रिपोट्र्स आज लाइब्रेरी में बैठकर क्यों मगजमारी कर रहे हैं.
अजय ठाकुर से रहा नहीं गया. पालिटिकल कॉरसपांडेंट अशोक कौशिक से पूछा, ''...कोई ख़ास ख़बर खोज रहे हैं क्या आप लोग?''
''...यार ख़बर घंटा खोजेंगे...हम तो भूत-प्रेत, जिन्न, नाग-नागिन या फिर पुनर्जन्म की कोई स्टोरी खोज रहे हैं...अगर टीआरपी अब इसी से मिलती है तो हम क्या करें...'' अशोक कौशिक ने ऐसे जवाब दिया जैसे पहले से तपा बैठा हो.
...यही अशोक कौशिक कुछ दिन पहले न्यूज़ रूम में घूम-घूमकर लोगों से कह रहा था, ''...यार, टीआपी के चक्कर में सारे चैनलों ने ख़बरों की मां चो...के रख दी है... गंद हो गया है यार अब टीवी जर्नलिज्म...''
विदेश मंत्रालय और वामपंथी दल कवर करने वाला रविंद्र भदौरिया मातम मनाने की मुद्रा में बैठा था. लस्त-पस्त और निढ़ाल. उजड़े हुए चमन की तरह. दिन भर साउथ ब्लाक, नॉर्थ ब्लाक से लेकर अजय भवन तक भटकने वाला भदौरिया आज पहली बार दिन में लाइब्रेरी में नज़र आया था.
''...यार चैनलों पर तो चुतियापे हो रहे हैं, वो बंद भी होगा या नौकरी छोड़कर कोई और धंधा करूं...बहुत हो गया यार...आज तो बॉस ने साफ़ कह दिया, हमारे पास पालिटिकल ख़बरों के लिए बहुत जगह नहीं है...पार्टी की कोई कांफ्रेंस या स्टोरी कवर करके आता हूं तो चलती ही नहीं है...अब तो नेता लोग बाइट देने में भी टालमटोल करने लगे हैं...टीआरपी के चक्कर में हम लोग अब गांडूपने पर उतर आए हैं...मैं तो नहीं कर सकता ये सब...हालत ये हो गई है कि कल को लोग कहेंगे_इनसे मिलिए...ये हैं_नाग मामलों के विशेषज्ञ...इनसे मिलिए...ये हैं_प्रेत मामलों के विशेषज्ञ...ये हैं_पुनर्जन्म
मामलों के विशेषज्ञ...बहनचो... यही सब करने के लिए हम लोग पत्रकारिता में आए थे क्या...घ्'' भदौरिया का चेहरा तमतमाया हुआ था.
तभी अपनी स्पेशल रिपोर्ट्स के लिए चर्चित स्पेशल कारेसपांडेंट अशरफ जैदी ने सबका ध्यान खींचा.
उसका इशारा मेरठ से छपने वाले अख़बार की एक ख़बर की तरफ़ था, ''...यार, मुझे तो आज के लिए एक स्टोरी मिल गई...गाजियाबाद में एक छात्रा ने अध्यापक की पिटाई के तुरंत बाद खुद को नागिन का अवतार घोषित कर दिया है...वह नागिन का हाव-भाव बनाकर लोगों का ध्यान खींच रही है...कह रही है वह पिछले जन्म में नागिन थी...किसी सपेरे ने उसके नाग को मार दिया था...उसी सपेरे से बदला लेने के लिए नागिन ने इंसान की योनि में जन्म लिया है...नाग को मारने वाला सपेरा उसी गांव का था जहां नागिन का लड़की के रूप में पुनर्जन्म हुआ है...'' अशरफ अख़बार की ख़बर को पढ़कर सुनाता जा रहा था...सब सोच रहे थे_
क्या आज का दिन अशरफ के नाम होने वाला है?
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रचनाकार - अजीत अंजुम का सर्जनात्मक सफर 'चौथी दुनिया', 'अमर उजाला' तथा 'आज तक' के रास्ते चलकर फिलहाल 'बीएजी फिल्म्स' में जारी है. यह उनकी पहली कहानी.
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चित्र - डॉ. आलोक भावसार की कलाकृति
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