कहानी : बम-विस्फ़ोट

SHARE:

-संजीव पालीवाल सुबह के 11 बज रहे थे. तब तक सब ठीक चल रहा था. पता नहीं क्यों उसे खुजली होने लगी कि कुछ करना चाहिए. इतना ठंडा बुलेटिन नहीं...


-संजीव पालीवाल

सुबह के 11 बज रहे थे. तब तक सब ठीक चल रहा था. पता नहीं क्यों उसे खुजली होने लगी कि कुछ करना चाहिए. इतना ठंडा बुलेटिन नहीं चल सकता. कुछ करना होगा. छोटी-सी ख़बर थी कि भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिवों की बैठक दिसंबर में होगी. न जाने क्या सोचकर उसने असाइनमेट से पाकिस्तान के एक पत्रकार का फ़ोनो मंगा लिया. फ़ोनो चलते कुछ ही देर हुई थी कि पूरा न्यूज़ रूम दहल उठा_''किसने फ़ोनो लिया है? कौन है, जिसने ये फ़ैसला किया है.'' आवाज़ सुनते ही उसका चेहरा कंपकंपाने लगा, हलक़ सूख गया. आंखें कुछ बोलने से पहले ही फट पड़ीं. जान गया कि आज इज्ज़त जाएगी.


आवाज़ चीफ़ की थी. चीफ़ बोलते कम चीख़ते ज्यादा थे. जब तक वह कुछ समझ पाता चीफ़ शीशे का दरवाज़ा खोलकर रनडाउन तक आ चुके थे_''अंधे हो, दिखाई नहीं देता? कैसे गया ये फ़ोनो? फोटो क्यों नहीं है? कितनी बार कहा कि दिमाग की बत्तीी जलाकर काम करो.'' वह मिमियाया_ ''सर ये पाकिस्तान का पत्रकार है...हमारे पास इसकी फोटो नहीं है.'' अचानक उन्हें जैसे करंट लग गया, जैसे सांड को लाल कपड़ा दिखा दिया गया हो. वह और भड़क उठे. उन्हें लगा 'कल का लौंडा' उन्हें समझा रहा है_''जानता हूं दो टके का पत्रकार है, साले चमचे हैं, ऐसे चूतियों का फ़ोनो हमारे यहां चलेगा! मेरे साथ था...आगरा में वाजपेयी-मुशर्रफ़ बातचीत के दौरान. साले सारा दिन दारू और लड़की के चक्क़र में लगे रहते थे.'' पर इतने से उनका कलेजा ठंडा होने वाला नहीं था और इधर उसका कलेजा फट रहा था. यह दानव कैसे मानेगा उसे समझ में नहीं आ रहा था. आंखों के आगे अंधेरा छोने लगा. ''फोटो क्यों नहीं लगी?'' चीफ़ गरजे. ''सर, फोटो नहीं है'' बड़ी मुश्किल से मिमियाते हुए वह कह पाया. ''तो क्यों लिया फ़ोनो, दफ़ा हो जाओ ऐसे लोगों की ज़रूरत नहीं है मुझे. एक काम ठीक से नहीं कर सकते!'' वह चुप रहा...


''बताओऽऽ...बोलते क्यों नहीं...?'' चीफ़ फिर चीख़े. जब कुछ समझ नहीं आया तो अचानक उसके मुंह से निकला ''जल्दी में ले लिया फ़ोनो''. बस चीफ़ के चेहरे पर चमक आ गई, मानो किसी पहलवान को अपना मनचाहा दांव खेलने का मौक़ा मिल गया हो. ''जल्दी में...जल्दी में कभी अपना नाम तो नहीं भूलते''...वह चीख़े...''कभी जल्दी में एक जूता पहनकर तो नहीं निकले''...चीख़ और बुलंद होती गई...''क्या जल्दी में कभी बग़ैर पतलून पहने दफ्तर आए...दीज बगर्स कांट डू एनीथिंग, यू आर गुड फॉर नथिंग''. चीफ़ वैसे तो मध्य प्रदेश के रहने वाले थे लेकिन पढ़ाई-लिखाई दिल्ली में ही हुई थी. अंग्रेज़ी ख़ासी बेहतर थी. ''क्यों नहीं लगी फ़ोनो में पिक्चर, क्यों नहीं कुछ देर बाद लिया फ़ोनो, पहले पिक्चर का इंतज़ाम करते. कौन-सी आफ़त आ जाती अगर ख़बर दो मिनट देर से चल जाती'' वह असहाय-सा मेमने की तरह सिर झुकाकर खड़ा हो गया. ''यू हैव नो बिज़नेस टु वर्क हियर, फाइंड ए ज़ॉब फॉर योरसेल्फ'' उन्होंने आदेश सुना दिया, ''रिमूव हिम फ्राम दि रनडाउन'' पूरा न्यूज़ रूम उसकी बेचारगी पर खामोश खड़ा था. ''सर प्लीज'' वह फिर मिमियाया. चीफ़ की चीख़ पूरे न्यूज़ रूम में गूंजी ''नो, आई डोंट वांट टु हियर एनिथिंग, पीरियड...''. उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया. वह छाती पर अपनी गर्दन लटकाए कुर्सी पर गिर पड़ा.


एक हफ्ते में यह दूसरी बार था कि उसे सरे आम ज़लील होना पड़ा था. 35 बरस की उम्र, 10 साल अख़बार का तजुर्बा कुछ उसके काम नहीं आ रहा था. अख़बार के दफ्तर में 10 साल गुजारने के बाद जब उसने पहली बार टीवी के न्यूज़ रूम में क़दम रखा, तो उसका सीना चौड़ा हो गया था. एकदम फ़िल्मों में देखा हुआ न्यूज़ रूम. किसी फाइवस्टार होटल-सा. वह मंद-मंद मुस्कुराने लगा था. कहां पान की पीक से सनी हुई दीवारों वाला उसके अख़बार का दफ्तर, जिसकी दीवारों पर बरसों से कलई नहीं हुई. जगह-जगह जाले लटके हुए थे, जहां न्यूज़प्रिंट को काटकर उसे कॉपी लिखनी पड़ती थी. एक-एक नोटबुक के लिए मशक्क़त करनी पड़ती थी. बड़े बाबू को हिसाब देना पड़ता था कि इतनी नोटबुक का क्या करूंगा. पांच लोग चाय पीने वाले हाें तो तीन ही मंगाई जाती थीं, जिसे 'तीन का पांच' कहते थे. और यहां तो सब कुछ मुफ्त. चाय-कॉफी मुफ्त. मशीन से तो गरमागरम टमाटर का जूस भी मिलता था. कोई पूछने वाला नहीं कि इतना क्यों पी रहे हो. उसने सोचा, पूरी सर्दी टमाटर का जूस ही पिऊंगा. अचानक उसके हाथ में कॉफी मग आ गया, सामने स्लीम-सा फ्लैट कंप्यूटर मॉनीटर और रनडाउन पर बैठा हुआ वह.


रनडाउन पर बैठने वाले की अहमियत होती है. वही अहमियत जो एक जहाज के पायलट की. रनडाउन मैनेज़ करने वाला ही चैनल चलाता है, यह वह जान चुका था. आस-पास 20-22 साल के बच्चे अंग्रेज़ी में गिटपिट करते. लेकिन उसका सम्मान करते थे, क्योंकि उसे हिंदी आती थी. उनके लिए वह विपिन सर था. कल तक वह इस बात पर दुखी था कि मां-बाप ने उसे अंग्रेज़ी स्कूल में क्यों नहीं पढ़ाया. यहां आकर उसे लगा था कि अच्छा हुआ हिंदी ही पढ़ी, वरना टीवी में नौकरी कैसे मिलती. अब यहां तरक्क़ी हिंदी के दम पर ही मिलेगी, ऐसा ख्वाब वह देखने लगा था.


अख़बार सें टीवी में आने पर उसके दिल में एक डर तो था कि कैसे होंगे लोग. कैसा होगा काम. लेकिन उसने जल्दी-जल्दी सब सीख लिया था. कंप्युटर और तकनीक से कैसे खेला जाए, जल्द ही उसने पकड़ लिया था. जब वह आया था तो दों ही चीज़ें उसके साथियों ने समझाई थी. एक टीवी में तेजी चाहिए, ख़बर कैसी भी हो, एयर पर डालो. उसे फैला दो, खेल जाओ. जैसे ही सूचना आए एंकर से कहो, बोले और किसी को फ़ोन पर लेकर सारी जानकारी दर्शक को दे दो. कारपेट बांबिंग कर दो. फ़ोनोप्लेट कैसे बनती है, वह जान गया था. रिपोर्टर कैसे छोटी-छोटी खिड़कियों में खड़े होकर पर्दे पर ज्ञान (लाइव) देने लगते हैं उसे पता था. फ़ोन पर जानकारी देने वाले का फोटो नहीं है तो कोई भी न्यूट्रल-सी तस्वीर लगाकर काम चलाया जा सकता है.


साथियों ने उसे चीफ़ की चीख़ से भी आगाह किया था. यह चीख़ ज्यादा रनडाउन पर ही सुनाई पड़ती थी. उस सीट पर कोई भी ज्यादा दिन काम नहीं कर पाता था. सिर्फ़ संदीप ही एक ऐसा था जिससे चीफ़ थोड़ा मुहब्बत से काम लेते थे. वही उसे समझाता रहता था. तुम क्यों नहीं चीफ़ से सलाह लेते हो? दिन में दो बार फ़ोन करके पूछ लिया करो कि बॉस इस ख़बर का जरा एंगल बदल लें तो बढ़िया हो जाएगा. चीफ़ भले ही तुम्हारा आइडिया पसंद करें न करें लेकिन उन्हें लगेगा कि तुम सोच रहे हो. संदीप यही करता था, ''चीफ़ ये जो स्टोरी है न, उसको खेल जाते हैं, इस पर झामपटाखा कर देंगे.''


संदीप काम में बुरा नहीं था लेकिन वह कोई तूफान क्रिएट कर दे ऐसा भी नहीं था. वह मैनेजर अच्छा था. सारा काम सलीके से कर देता था. दफ्तर में किसी से उसका झगड़ा नहीं था, लेकिन सबसे उसकी दोस्ती हो, ऐसा भी नहीं था. ज़िंदगी को बैलेंस करना उसे आता था. पर संदीप की बात उसकी समझ में नहीं आई. यह सब वह कभी नहीं कर पाया. इसीलिए जब भी कभी फ़ोन बजता तो वह उछल पड़ता था. लगता चीफ़ का ही होगा. मानो वह रामसे ब्रदर्स की किसी फ़िल्म का हीेरो हो और एक खाली कमरे में सन्नाटे को चीरती हुई फ़ोन की घंटी अचानक घनघना उठे. ठीक वैसा ही अहसास उसको होता था. डरते-डरते वह फ़ोन उठाता, जब तक फ़ोन करने वाला 'हलो' नहीं बोल देता, वह खामोश ही रहता. जब यह तय हो जाता कि आवाज़ चीफ़ की नहीं है, तभी उसे सांस आती थी.


संदीप ने उसे एक सलाह और दी थी कि ''लड़कियों की कॉपी जरा कम चेक किया करो.'' जब देखो तुम्हारे इर्द-गिर्द बैठी रहती हैं. कुछ करना है तो थोड़ा बचकर करो. सरेआम लड़कियों के साथ बैठते हो. अभी छोटे शहर से आए हो थोड़ा अभ्यस्त हो लो, फिर ये सब करना.'' संदीप की बात वह समझ नहीं पाया.


एक हफ्ते में यह दूसरी बार था जब देश के नामचीन चैनल का चीफ़ अरविंद उज्ज्वल उस पर चीख़ा था. शुरू में तो वह खुश था कि चीफ़ ख़ुद आकर उससे बात करता है. पहली मुलाक़ात में चीफ़ उज्ज्वल ने उससे बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया था. चीफ़ के शब्द 'वेलकम ऑन बोर्ड' आज भी उसके कानों में गूंजते रहते हैं. पहली बार किसी ने उसके स्वागत में कुछ कहा था. काली भव्य इमारत की 11वीं मंज़िल पर चैनल का दफ्तर था, जहां से सारी दिल्ली दिखाई देती थी. अपने छोटे से शहर के साथियों को याद कर उसे अपने ऊपर गर्व होता था. सब कैसे उसे फ़ोन करते. यार क्या कुछ हो सकता है? जब कभी वह वहां जाता तो लोग अचरज़ से उसकी बातें सुनते. वह अपने आपको किसी सीईओ से कम नहीं समझता था. मानो सब कुछ वही करता है बाक़ी तो सब निठल्ले हैं.


चीफ़ उज्ज्वल की पब्लिक इमेज़ बड़ी ही सख्त थी. वह गुटबाजी के सख्त ख़िलाफ़ था. आम पत्रकारों की तरह वह लड़कियों पर लार भी नहीं टपकाता था. पर लड़कियों के लिए सॉफ्ट तो वह था ही. वह यह भी समझ चुका था कि अरविंद उज्ज्वल कान का कच्चा है. जो उसके पास पहुंच जाता है उसकी बात मान लेता है. एकदम थानेदार की तरह. जिसने पहले एफआईआर करा दी उसकी बात मान ली गई. और, अगर शिकायत लड़की की है तो आपकी खैर नहीं.


दो दिन पहले ही सलोनी की ख़बर उसने नहीं ली. सलोनी ने ख़बर दी 11 बजकर 55 मिनट पर, उसने असाइनमेंट हेड को बोल दिया कि 12 बजे नया बुलेटिन शुरू होगा तो लेंगे. बस यह उसका गुनाह हो गया. अपने कमरे में बैठे-बैठे उज्ज्वल ने उसके वो कपड़े फाड़े की तबियत झक़ हो गई. असाइनमेंट हेड सुरेश प्रभु भी सुरीला आइटम है. ''मूतो कम हिलाओ ज्यादा'' का सिध्दांत उसने अपना लिया था. इसी के चलते 3 साल में असिस्टेंट प्रोडयूसर से वह असाइमेंट हेड की कुर्सी तक पहुंच गया था. यह कुर्सी देशभर के तमाम रिपोर्टरों के कामकाज का हिसाब-किताब रखती हैं. पर यही काम वह करता भी हो. ऐसा नहीं था. वह बस न्यूज़ रूम में बैठकर हर बात चीफ़ को बताता रहता था. चुगली तो उसी ने की होगी. और सलोनी को भी उसी ने भड़काया होगा. वरना सलोनी तो रोज़ उसी से अपनी कॉपी लिखवाती थी. चीफ़ का पारा बिल्डिंग को हिलाने के लिए काफ़ी था. ''क्यों नहीं ली ख़बर?'' ''सर बुलेटिन ख़त्म होने में 5 मिनट बाक़ी थे. फिर आख़िर में 3 मिनट का कमर्शियल भी है सर. अगर ख़बर लेता तो कमर्शियल गिराना पड़ता.'' ''तुम गधे हो क्या'', चीफ़ गरजे. ''सलोनी दो दिन से इस ख़बर पर लगी थी. हमारी एक्सक्लूसिव ख़बर है फिर भी तुमने जरा-सा नहीं सोचा.'' उसने सोचा कि अगर ख़बर एक्सक्लूसिव है तो फिर 5 मिनट से क्या फ़र्क़ पड़ जाएगा? वह समझ गया कि चीफ़ के सामने सलोनी बैठी है इसीलिए चीफ़ की आवाज़ अब उनके केबिन से निकल पूरे ऑफ़िस में गूंज रही थी. उसकी टांगें कांपने लगीं. ''यू शुड बी ड्रॉप्ड एवरीथिंग, व्हाय आर यू देयर, एप्लाई योर ब्रेन मैन, आई डोंट वांट पीपुल लाईक यू. इडियट गेट लॉस्ट'' ''ख़बर के लिए पूरा व्हील तोड़ दो. गिरा दो सब कुछ. टीवी में वही प्रोड्यूसर कामयाब होता है जो चीते की फुर्ती से काम करता है. सुस्त लोगों की यहां कोई जगह नहीं है.'' अब चीफ़ का पूरा ध्यान सलोनी को इंप्रेस करने पर आ चुका था. वह कह तो उसे रहे थे लेकिन इंप्रेस सलोनी को कर रहे थे. ''व्हैन आई वाज़ ए प्रोडयूसर एंड वाजपेयी अनाउंसड दैट इंडिया हैज इन ए न्यूक्लियर टेस्ट, आई ड्रॉप्ड एवरीथिंग, कंपनी लास्ट टवंटी मिलियन रूपीज. आई रिप्यूसड टु टेक दि कमर्शियल, मैनेजमेंट वाज़ वेरी एंगरी विद मी. वट आई सेड इफ़ यू हैव गिविन मी ए रिस्पांसिबिलिटी दैन लैट मी हैंडिल एवरीथिंग, बट फॉर दैट यू नीड गट्स. दिस जेनेरेशन कांट डू एनीथिंग''. यह उनका तरीका था किसी को अपने पास बैठाने का, पुराने किस्से सुनाकर घंटों गप मारने का. ''लिसेन व्हैन आई वाज़ इन इंदौर''...फिर कितने घंटे निकल गए आप नहीं जान पाएंगे. तब उनकी आवाज़ एकदम महीन हो जाती थी. मानो किसी सुरंग में से गुज़रकर आपके पास आ रही हो.


भारी मन से वह घर चला आया. चीफ़ का रुख उसे लेकर दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा था. उसे लगा कि कोई उसका गला दबा रहा है. वो बोला, ''लाइव ले लिया, ले लिया, टेक कैमरा थ्री...एंबियेंस अप...मैंने तो लिया था...मैंने तो लिया था...'' 6 फीट का असाइनमेंट हेड सुरेश प्रभु गरजा...''10 मिनट पहले दिया था तब क्यों नहीं लिया...अब क्यों लिया...?'' चीफ़ को देख वह फिर गरजा ''बॉस! देखिए मेरी मेहनत पर पानी फेर दिया, सब कूड़ा कर दिया है.'' ''नहीं...चीफ़, ऌसने कुछ नहीं किया, ये झूठ बोल रहा है, मैंने देरी नहीं की...नहीं की...'' अब चीफ़ आगे बढ़ने लगे. अब उनकी शक्ल बदल चुकी थी, उसे अब हिटलर नज़र आ रहा था. हिटलर के हाथ उसकी गर्दन तक आने लगे. चीफ़ की शक्ल फिर बदल रही थी, अब उसके ऊपर यमदूत था जिसके एक हाथ में लंबी-सी तलवार और दूसरे हाथ में नरमुंड था. उस नरमुंड की शक्ल उसे अपनी लगी. वह छटपटाने लगा, चिल्लाया, ''लाइव काटा था...'' सुरेश प्रभु की आवाज़ फिर आई. उसने देखा सुरेश के हाथ की हरक़त तेज होती जा रही थी...''नहीं 10 मिनट देरी की, नहीं काटा''...चीफ़ का हाथ उसकी गर्दन पर सख्त हो रहा था. वह चिल्लाता जा रहा था. ''काटो, काटो, काटो...'' उसकी सांस रुकने लगी, उसने कसकर चीफ़ की गर्दन पकड़ ली. अचानक एक थप्पड़ की आवाज़ से उसकी आंख खुल गई. ''क्या मार डालोगे''. पत्नी उस पर चिल्ला रही थी. ''क्यों मेरी गर्दन दबा रहे हो?'' एक बार फिर उसका सिर छाती पर गिर पड़ा. बग़ैर कुछ बोले वह गुमसुम बिस्तर पर पड़ा रहा.


दीवाली क़रीब आ चुकी थी. सोचा था कि इस बार कि दीवाली मां-बाप के साथ घर पर मनाऊंगा. धनतेरस की रात को उसे निकलना था. शाम का वक्त था कि अचानक न्यूज़ रूम में असाइनमेंट हेड सुरेश की आवाज़ गरजी ''अबे साले चलाते क्यों नहीं हो, दिल्ली में बम फटा है. 30 सेकेंड हो गए ख़बर को मेल किए हुए.'' अचानक जैसे उसे करंट लगा कि यह क्या हुआ? कहां से आया मेल? किसने मेल किया, ''बताया क्यों नहीं?'' वह लपका टिकर की ओर ''अरे ब्रेकिंग न्यूज़ चलाओ'', अनामिका को बोला कि ''बोलो अभी-अभी ख़बर मिली है कि दिल्ली के सरोजिनी नगर में बम ब्लास्ट हुआ है.'' चौधरी कंट्रोल रूम में था. ''चौधरी साहब सब रोक दो सिर्फ़ इसी ख़बर पर रहना है, खेल जाओ, काफ़ी दिनों के बाद मौका आया है!'' तभी फ़ोन घनघना उठा. उसने फ़ोन उठाया, इससे पहले कि वह कुछ बोल पाता पिघलता हुआ सीसा उसके कान में जा घुसा, ''ख़बर में देरी क्यों हुई?'' चीफ़ की आवाज़ एकदम सर्द थी...उसके मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे. वह कुछ शब्द बोल पाता कि चीफ़ की आवाज़ ने उसे खामोश कर दिया. ''सर...वह...आप... लेकिन...मेरी बात तो सुनिए!'' कई मिनट गुज़र गए...वह सुनता रहा...''सर पहले ख़बर ले लूं फिर आपको बताता हूं...10 सेकेंड भी नहीं लगे. सर, 15 लोगों की मौत हो चुकी है सर...'' अचानक उसके कान में आवाज़ आई ''यू मदर फकर, तुम चूतिये हो क्या.'' उसकी सहनशक्ति जवाब दे गई! उसने फ़ोन पटक दिया. हिंदी में जितनी गालियां सीखी थीं उसके मुंह से धारा प्रवाह फूटने लगीं, बग़ैर यह सोचे कि दफ्तर में लड़कियां भी होती हैं. आज वह कुछ नहीं सोच रहा था. ''तेरी मां की...बहन की...साले अब आऽऽ..नहीं करनी तेरी नौकरी''. सामने गलियारे से चिल्लाता हुआ आने वाला चीफ़ उसे गरजते देख रुक गया. अचानक माजरा समझ बाथरूम में घुस गया. अब चीख़ने की बारी उसकी थी. ''साले एक नौकरी के लिए इतना चीख़ता है. जा छोड़ दी तेरी नौकरी, लानत है तेरे 28 हज़ार रुपए महीने पर. अब देखता हूं तुझे और तेरे चमचों को''. झटके से सुरेश प्रभु का सिर अचानक उसके कंप्यूटर में घुस गया. ''साले 10 सेकेंड पहले ख़बर दी थी. बोल...चीख़ोगे...अब मैं चीख़ रहा हूं...बोलो!...अब हिला, कितना हिलाएगा'' पूरा न्यूज़ रूम सन्नाटे में था.


अचानक उसे लगा कि चमचमाती दीवारों पर जाले उगने लगे हैं. कंप्यूटर पर गोंद बिखरा पड़ा है, ठीक वैसे ही जैसे अख़बार की पेस्टिंग डेस्क का हाल होता है. न्यूज़ रूम में जगह-जगह पान की पीक नज़र आने लगी. बड़े बाबू पूछ रहे हैं कि इतनी नोटबुक और कलम का क्या करते हो. पिछले हफ्ते ही तो इश्यू कराए थे. अक्ल पर पड़ा चकाचौंध का परदा हटने लगा था. वह फिर चीख़ा ''मैं चला, अब हिलाते रहो तुम लोग...साले चूतिया कहते हैं, फकर कहते हैं. अब तुम चूतिया, तुम्हारी मां चूतिया, तुम्हारा बाप चूतिया'', अनाप-शनाप बकते उसने अपनी कुर्सी पर पड़ी जैकेट उठाई और चल पड़ा...सन्नाटे में डूब चुका था न्यूज़ रूम, मानो बम सरोजिनी नगर में नहीं न्यूज़ रूम में फटा हो...

**-**

रचनाकार - संजीव पालीवाल ने स्नातक करने के बाद 'आज' से पत्रकारिता की शुरुआत की. 'दैनिक जागरण' और 'अमर उजाला' होते हुए टीवी की दुनिया में आ गए. 'बीआईटीवी' में कुछ साल काम करने के बाद दूरदर्शन के चर्चित कार्यक्रम 'सुबह सवेरे' से लोगों की नज़र में आए. फिर 'आज तक' से जुड़े और चार साल तक ख़बरों की चक्की में पिसते रहे. फ़िलहाल 'आईबीएन 7' में एक्जीक्यूटिव एडिटर हैं.

चित्र - ललित साहू की कलाकृति

Tag ,,,

Add to your del.icio.usdel.icio.us Digg this storyDigg this

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी : बम-विस्फ़ोट
कहानी : बम-विस्फ़ोट
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWG6wUcfdbf7vI5p_8t7-vLrTmlFZclMAbsSKJHOUE0rLxk5tW_sx2qY2UZxvg-HD2amssbYB_EW_Dw-m0wOVaBiheo6UTnvT8t_hD-AAUpSv5F8OubLlzO4WgwekwXuTiDI3o/s400/lalit-sahu.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWG6wUcfdbf7vI5p_8t7-vLrTmlFZclMAbsSKJHOUE0rLxk5tW_sx2qY2UZxvg-HD2amssbYB_EW_Dw-m0wOVaBiheo6UTnvT8t_hD-AAUpSv5F8OubLlzO4WgwekwXuTiDI3o/s72-c/lalit-sahu.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2007/02/blog-post.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2007/02/blog-post.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content