व्यंग्य : सूट कथा - पूरन सरमा सूट सर्दी का पहनावा है. हर आदमी की इच्छा होती है कि वह सूट पहने. कुछ लोगों को शादी के मौके पर ...
व्यंग्य : सूट कथा
- पूरन सरमा
सूट सर्दी का पहनावा है. हर आदमी की इच्छा होती है कि वह सूट पहने. कुछ लोगों को शादी के मौके पर सूट नसीब हो जाता है और वे पूरे जीवन उसे सीने से लगाए फिरते हैं. कुछ लोग सूट बनवा भी लेते हैं, लेकिन पहन नहीं पाते. वे सूट को लेकर पेशोपेश में रहते हैं. इस तरह सूट पूरी सर्दी परेशान करता है. मेरी परेशानी फिलहाल यह है कि मेरे पास सूट नहीं है. हिसाब से तो मेरे पास सूट नहीं होना चाहिए, क्योंकि इसके पहनने का कोई कारण मेरे पास नहीं है, लेकिन बावजूद इसके मेरे पास इसकी एक महत्वाकांक्षी योजना है कि मेरे पास काश! एक सूट हो तो मेरे बराबर वाली सीट पर सूट पहन कर बैठे आदमी को मैं किसी क्षेत्र में परास्त कर देता. यह बराबर वाली सीट मेरे दफ़्तर में ही नहीं, बस में, रेल में, सिनेमा में, सांस्कृतिक संध्या में या फिर किसी आशीर्वाद समारोह में, कहीं भी हो सकती है.
लोगों का मानना है कि सूट पहनने के लिए अच्छी आय या पद का होना अपेक्षित नहीं है. क्योंकि अच्छे पद वाले सूट नहीं पहन पाते और उधर उनके अधीनस्थ लिपिकीयकर्मी रोज सूट बदलते हैं. इस तरह सूट यहाँ फिर धर्मसंकट बन जाता है मेरे लिए. मैंने सूट ज्यादातर उन लोगों के पास देखे हैं जिनकी या तो शादी हो गई है अथवा वे जो भ्रष्टाचार करते हैं. अब वे लोग जिनके पास इन दोनों कारणों को छोड़ कर भी सूट है, उन्हें नाराज इसलिए नहीं होना चाहिए, क्योंकि वे अभी तक अपने गरेबान में नहीं झांक सके हैं. वैभवशाली लोगों के लिए तो खैर सूट पहनावा हो सकता है. लेकिन वे लोग अवश्य इस बारे में सोचें जो बिना वैभव के सूट को शरीर पर टांगकर घूम रहे हैं.
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि चाहे उनके कृतित्व कैसे भी हों, लेकिन सूट व्यक्तित्व को निखारता है. व्यक्तित्व का निखार शादी के अवसर तक तो मुनासिब है लेकिन शादी के बाद या तो आदमी व्यक्तित्व निखारने की पोजीशन में नहीं रहता अथवा शादी के बाद भी व्यक्तित्व निखार रहा है तो अवश्य दाल में काला है. आजकल दाल में काला का प्रतिशत और औसत आंकड़ा बढ़ रहा है यह चिंताजनक है. शायद बढ़ते तलाकों में सूट भी कोई भूमिका निर्वाह कर रहा हो, यह प्रश्न सूट पहनने वाले खुद तोलें, हो सकता है उनका सच्चाई से मुकाबला हो जाए. इसलिए व्यक्तित्व निखारने की होड़ अथवा आफत उठाने से पहले तीन बार सोच लें, क्योंकि निखरा हुआ व्यक्तित्व सदा घातक सिद्ध हुआ है. मेरा सूट नहीं पहनने का एक मुख्य कारण यह भी रहा है. मैंने कई बार देखा है कि जब भी मेरा व्यक्तित्व निखरा और मित्र और सहकर्मी ‘न्यू पिंच' कहकर मोटी दावत की मांग उठाते हैं. कुछ मित्र यह भी कह डालते हैं - ‘अरे भाई शर्मा क्या चक्कर है, नंबर दो की कमाई में अंगुलियाँ तर हैं.' कुछ मित्र यह भी कहते हैं - ‘अरे भाई यह सजना संवरना कैसे, क्या भाभी जी पीहर गयी हैं या फिर कोई सुदर्शना पड़ोसिन को रिझाने में लगे हो.' मेरे कहने का आशय यह है कि सूट कई संकटों की जड़ है. बताइये मैं कैसे धारण करूं. जो लोग ये बातें करते हैं वे सोचते हैं जैसे कोई चक्कर बिना सूट के चल ही नहीं सकता. अब उन्हें यह कौन बताए कि हम बिना सूट के भी सभी प्रकार के चक्कर चला देते हैं.
मेरे एक अधिकारी मित्र हैं. हल्की सी गुलाबी सर्दी शुरू होते ही सूट पहन लेते हैं, केवल इसलिए कि उनके व्यक्तित्व को देखकर उनके अधीनस्थकर्मी कम से कम सर्दी सर्दी तो डरे रहेंगे. सूट से डराने की परम्परा हमारे यहाँ आदिकाल से चली आ रही है. सामान्य सा आदमी या गरीब आदमी सूट पहनने वाले को जो अदब पेश करता है, वह मात्र उनका डर ही है. कम पढ़ा लिखा या निरक्षर व्यक्ति भी एक बार सूट पहनकर चेहरे पर तेल लगाले (नहाले तो और भी बढ़िया) तो भाईजान क्या पूछते हो. अंधों का राजा वही बन जाता है. सफर में और पूरे जीवन में कभी इस बात को आजमा कर देख लें. लेकिन इसके लिए बनवाना पड़ेगा एक अदद सूट, जो आपके वश की बात है नहीं. इस डराने की दृष्टि से सूट बनवाना चाहता हूँ क्योंकि इस डराने से अनेक काम अपने आप निकल जाते हैं. किसी दफ़्तर में किसी काम से जाओ. बाबू सूट वाले से पहले बात करता है, सामान्य आदमी को तो पीछे धकिया देता है. इस पोशाक में वह व्यक्ति गंभीर तथा पढ़ा लिखा बौद्धिक दिखाई देता है, चाहे वह है नहीं. कई बार मुझे लगता है कि मैं बात-बात पर हंसने वाला आदमी यदि सूट पहन लूंगा तो यह सूट की तौहीन होगी, क्योंकि मैं ज्यादा लंबे समय तक गंभीरता को चेहरे पर मेंटेन नहीं कर पाऊंगा. इसलिए सोचता हूं कि सूट नहीं भी है तो चलेगा. लेकिन फिर कोई आदमी खामख्वाह नहीं डरे यह खेदजनक लगता है. मेरी भी अपनी इच्छा है कि कोई मुझसे डरे तो भाई इस सफेद स्वेटर के पहनने से तो कोई डरने वाला है नहीं, सूट में जो गंभीरता है वह भला स्वेटर में कहाँ, इसलिए सूट की यादें लिए तड़पता रहता हूँ.
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वैसे सूट की भारतीय पोशाक नहीं है. यह पश्चिम की नकल है. लेकिन नकल में हमारा कोई मुकाबला नहीं है और बिना अक्ल के नकल का कारवां बढ़ाते चलते हैं. सूट में भी यही हो रहा है. ऐसे-ऐसे विदूषक देखे हैं, जो सूट में जँचे या न जँचे, वे इसे धारण कर चार्ली चैपलिन की मूंछों में इतराते हैं. मैंने सुना है सूट खोलकर सोना चाहिए - लेकिन भारतवर्ष में लोग सूट पहनकर सो जाते हैं. इसका कारण यह भी हो सकता है कि उन्होंने जैसे तैसे करके सूट तो बनवा लिया और जब रज़ाई की बारी आई तो वे खाली हो चुके थे. इस तरह सूट उनको रात में रज़ाई का विकल्प बनकर रह गया. कुछ लोग सूट के साथ बूट के महत्व को न समझ कर हवाई चप्पलों में ही घूम रहे हैं उनसे पूछा कि भाई ढंग सा देसी जूता ही ले आओ तो वे तड़ से बोले - ‘कृपया आप सूट को देखें.' भारत में जो लोग सूट पहन रहे हैं, वे इसके धुलाई महात्म्य को भी नहीं समझ पाए हैं. चिकनाई से सूट एक अलग ही रंग की आभा से दमकने लगा है लेकिन वे बेफिक्री से मैल को ढो रहे हैं. क्योंकि उनके पास सूट है. अनेक लोगों को सूट के पेंट को डोरे से बांधे देखा है वे बेल्ट नहीं ला सके हैं. सूट को लेकर अनेक विसंगतियाँ हैं लेकिन उनके अपने अपने निजी कारण हैं और इस भारतीय आबोहवा में सूट परिहास का कारण बन गया है.
वैसे सूट की महत्ता को देखकर इसके कुछ मापदंड तय होने चाहिए. जैसे कि जिसकी मासिक कमाई अमुक राशि से कम नहीं हो, वह सूट नहीं पहन सकता. सूट कहाँ पहना जाए. शादी विवाह में सूट कौन पहने? दफ़्तरों में किस रेंक का आदमी सूट पहने या नहीं. सूट पहनने वालों पर हैलमेट न लगाने वालों की तरह पूछताछ हो तथा यदि वे मापदंडों से इधर उधर पाए जाएँ तो बाकायदा चालान हो. इससे सोसायटी में अफरातफरी नहीं होगी तथा सोसाइटी में लोगों का क्रेज और स्तर बना रहेगा. वरना अब तो सब्जी के ठेले वाला, चाय पान की धड़ी लगाने वाला या गजक बेचने वाला भी सूट पहन रहा है. वह सूट पहनना ही चाहे तो अपने घर में पहने, बाहर दूसरों का स्टेटस क्यों खराब करता है. पहले वह अपना स्टेटस बनाए फिर सूट पहने तब किसी को कोई तकलीफ़ नहीं होगी. अब यह दीगर बात है कि प्रायः बहुत से बड़े लोग, बड़े अफ़सर जिनके पास तथाकथित बड़ा स्टेटस होता है, बस स्टेटस में बड़े होते हैं - मानवता या दूसरे अर्थों में नहीं.
महिलाएँ सूट नहीं पहनती हैं लेकिन वे जो भी पहनती हैं उन पर भी मापदंड प्रभावी हो ताकि सूट वाले अपने स्तर की महिला को पहचान सकें. वैसे ही महिलाओं के वस्त्र कीमती होते हैं लेकिन इसमें भी सीमा रेखा तय हो जाए तो भेदभाव घटेगा तथा समाज में सद्भाव बनेगा. हाँ, जो महिलाएँ सलवार सूट पहनती हैं उन्हें भी पाबंद किया जाना चाहिए - क्योंकि सूट पुरूषों का पहनावा है इसलिए सूटधारी सज्जनों के हित में उन्हें अपनी पोशाक भी उन्हें ही समर्पित कर देनी चाहिए, तब देखना भारतीय संस्कृति के किस तरह से चार चाँद लग जाएंगे. महिलाओं को इसके लिए आगे आना चाहिए तथा पुरुषों के हित में सूट का त्याग करना चाहिए. वैसे महिलाओं को सूट के मामले में स्वतंत्र रखना भी ठीक है ताकि वे जो लोग सूट पहन रहे हैं उनके बारे में सही राय दे सकें.
सूटधारी सज्जनों सर्दी बहुत बढ़ रही है और आपने यदि सूट अभी तक बक्सों में से नहीं निकाला हो तो इस अंग्रेजी पहनावे को अविलम्ब निकालें और धारण कर लें, हो सकता है यह आपके व्यक्तित्व को निखारने में अथवा लोगों को व्यर्थ डराने में कोई न कोई महती भूमिका निभावे. सूट जैसा भी है सूट है. चाहे वह बीस बरस तीस बरस पहले का होने से छोटा हो गया है लेकिन है तो सूट. सूट कई मानसिक व्याधियों का हरता है तथा बराबरी का दर्जा दिलाता है. इसलिए इस मनभावन बेला में पहन लें अपना सूट. सूट में आप अभिनेताओं जैसे लगते हैं. विश्वास नहीं हो तो सूट पहनकर दस बीस मिनट फुल साइज के आइने के सामने खड़े होकर अपने आपको निहारें तथा हमशक्ल हीरो से तुलना करें. थोड़ी देर में आप पाएँगे कि आप वह हो गए हैं. हीरो बनने की ऋतु आ गई है. सूट नहीं हो तो बनवा लें. चाहे आईसीआईसीआई बैंक से ऋण ही क्यों न लेना पड़े. सूट ऐसा बनवाओ कि बराबर वाले की आँख खुली की खुली रह जावे. सूट की इतनी ही कथा नहीं है, वह तो भगवान की कथा की तरह अनंत है. अतः बाकी कथा फिर कभी.
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(साभार: मधुमती, दिसम्बर 1996)
चित्र - रेखा की डिजिटल कलाकृति
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