. हिंदी मीडिया की दिशा बदल सकता है यूनिकोड - बालेन्दु शर्मा दाधीच हाल ही में राजधानी में 'मीडिया में यूनिकोड की प्रासंगिकता...
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हिंदी मीडिया की दिशा बदल सकता है यूनिकोड
- बालेन्दु शर्मा दाधीच
हाल ही में राजधानी में 'मीडिया में यूनिकोड की प्रासंगिकता' पर अमेरिकन इन्स्टीटयूट ऑफ इंडियन स्टडीज की ओर से आयोजित एक गोष्ठी में मैंने किसी बड़े मीडिया संस्थान को पूरी तरह यूनीकोड समर्थित करने में आड़े आने वाली वित्तीय उलझनों का जिक्र किया था। इस पहलू ने यूनिकोड के प्रति उत्साहित लोगों को थोड़ा उद्वेलित किया। लेकिन यूनिकोड अपनाने की अनिवार्य आवश्यकता के साथ-साथ व्यावसायिक और वित्तीय पहलुओं पर व्यावहारिक दृष्टि डालना जरूरी है।
किसी अखबार के यूनिकोडीकरण की तीन श्रेणियां हो सकती हैं- उसकी वेबसाइट या पोर्टल को यूनिकोड युक्त किया जाना, वेबसाइट के साथ-साथ अखबार के निर्माण तंत्र (जिसमें कम्पोजिंग, डिजाइनिंग, समाचार वितरण व संकलन व्यवस्था, ग्राफिक्स आदि आते हैं) को यूनिकोडित किया जाना और वेबसाइट व अखबार के साथ-साथ उस समाचार संस्थान की सम्पूर्ण व्यवस्था (विज्ञापन संकलन, वितरण व्यवस्था, प्रबंधन, अकाउंटिंग, ईआरपी, डेटाबेस, ईमेल प्रणालियां आदि) का भी यूनिकोडित किया जाना। इन तीनों श्रेणियों में यूनिकोडित होने वाले कम्प्यूटरों और सॉफ्टवेयरों की संख्या अलग-अलग है और इस प्रक्रिया में होने वाला खर्च भी इसी तथ्य पर आधारित है। एक बड़ी समस्या यह है कि हिंदी अखबारों में पारंपरिक रूप से इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर यूनिकोड का समर्थन नहीं करते। इनमें से जो सॉफ्टवेयर अंतरराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा तैयार किए गए हैं, उनके ताजा संस्करण खरीदकर यूनिकोड में काम शुरू किया जा सकता है लेकिन जिन सॉफ्टवेयरों का भारत में विकास हुआ है (मसलन समाचार संकलन और प्रबंधन सॉफ्टवेयर, ईआरपी प्रणालियां आदि) उनका नए सिरे से विकास किए जाने की जरूरत है। जहां खरीदे जाने वाले सॉफ्टवेयरों को लेकर तो कोई उलझन नहीं है लेकिन जिन सॉफ्टवेयरों का नए सिरे से विकास होना है, उन पर होने वाला खर्च काफी अधिक हो सकता है क्योंकि विकास की यह प्रक्रिया कई महीनों तक चल सकती है।
यदि कोई बड़ा भाषायी अखबार पुराने फॉरमेट में चल रही अपनी डाइनेमिक वेबसाइट या पोर्टल को यूनीकोडित करना चाहता है तो इस प्रक्रिया में दो से पांच लाख रुपए तक की लागत आ सकती है। हो सकता है कि कुछ अखबार फिलहाल सिर्फ इतना ही कर इंटरनेट पर अपनी उपस्थिति को मजबूत करने भर के इच्छुक हों। ऐसी स्थिति में उनका खर्च काफी सीमित हो सकता है। लेकिन यदि उस मीडिया संस्थान का प्रबंधन अपने पूरे अखबार की निर्माण प्रणाली को यूनीकोडित करना चाहे तो इस प्रक्रिया में जरूरी हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर पर आने वाला खर्च वहां प्रयुक्त कम्प्यूटरों की संख्या, कम्प्यूटरों की क्षमताओं (यूनीकोड सक्षम हैं या नहीं), कर्मचारियों की संख्या, सॉफ्टवेयरों की लाइसेंसिंग प्रणाली, ऑटोमैशन और सेवाओं के स्तर आदि पर निर्भर करेगा। अखबार के आकार और आवश्यकताओं के अनुसार यह राशि पांच लाख रुपए से पंद्रह लाख रुपए तक हो सकती है। बहुत से हिंदी अखबारों में अब भी 486 या पेंटियम सीरीज के शुरूआती कंप्यूटर इस्तेमाल हो रहे हैं। उनमें हार्डवेयर का अपग्रेडेशन जरूरी होगा। लेकिन जिनमें पहले से ही कम से कम विंडोज एक्सपी या 2000 ऑपरेटिंग सिस्टम वाले कंप्यूटर मौजूद हैं, उनमें हार्डवेयर पर होने वाला खर्च बहुत कम होगा।
यदि अखबार का प्रबंधन यूनीकोडीकरण को सिर्फ विषय-वस्तु (कॉन्टेंट) से संबंधित विभागों तक सीमित न रखना चाहे और उसे अपने संस्थान की सम्पूर्ण व्यवस्था (ईआरपी, विज्ञापन, वितरण, डेटाबेस, संदेश-प्रणालियां आदि) में लागू करना चाहे तो उसे पांच से दस लाख रुपए तक की अतिरिक्त राशि खर्च करनी पड़ सकती है। यहां यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि बहुत कम भाषायी अखबार गैर-संपादकीय विभागों में इस तरह के आधुनिक सॉफ्टवेयरों का इस्तेमाल करते हैं। आम तौर पर वे टैली या बिजी जैसे अकाउंटिंग पैकेज से काम चला लेते हैं। यदि संबंधित अखबार इस श्रेणी में आता है तो उसमें इस विभाग के यूनीकोडीकरण पर होने वाला खर्च भी इन सॉफ्टवेयरों तक ही सीमित होगा। इस तरह अलग-अलग मीडिया संस्थान के लिए यूनीकोडीकरण पर खर्च होने वाली धनराशि अलग-अलग हो सकती है।
प्रश्न उठता है कि क्या मीडिया संस्थानों को यह अतिरिक्त खर्च करना चाहिए? जी हां, पूरी तरह 'विश्वानुकूल' (वर्ल्ड रेडी) बनने के लिए दो से तीस लाख रुपए के बीच होने वाला यह खर्च अनुचित नहीं है। भले ही, शुरूआत में उन्हें यह खर्च अनावश्यक महसूस हो लेकिन आगे चलकर इससे होने वाले लाभ इस वित्तीय कष्ट को निष्प्रभावी बना सकते हैं। गूगल जैसे सर्च इंजनों में दृश्यता (विजिबिलिटी) बढ़ने से अखबार के दायरे में होने वाले विस्तार और उससे मिलने वाले प्रचार को यदि वित्तीय लाभ में बदलकर देखा जाए तो भी यह खर्च बहुत छोटा लगेगा। वैसे भी एक बार सर्वत्र यूनीकोडीकरण का तकनीकी वातावरण होने पर यूनीकोड समर्थक उत्पादों की कीमतें घट जाएंगी।
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यूनिकोड का सबसे बड़ा लाभ मानकीकरण है जो भारतीय भाषाओं के संस्थानों द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी के आधुनिकतम अनुप्रयोगों का मार्ग प्रशस्त कर देगा। मानकीकरण की स्थिति में सभी संस्थानों में टेक्स्ट एक ही फारमेट में इस्तेमाल होगा। यानी भाषायी प्रकाशन संस्थान फ़ॉन्ट और कुछ हद तक कीबोर्ड लेआउट की सीमा से मुक्त हो जाएंगे। जो पाठ एजेंसी की खबरों में इस्तेमाल होता है, उसे फ़ॉन्ट बदले बिना जस का तस अखबार में इस्तेमाल किया जा सकेगा और इंटरनेट पोर्टल या ई-न्यूजपेपर पर भी भेजा जा सकेगा।
समान तकनीकी वातावरण से भारतीय भाषाओं में काम करने वाले सॉफ्टवेयर डवलपर्स का समय और श्रम अलग-अलग फ़ॉन्ट आधारित उत्पाद तैयार करने की बजाए एक ही मानक वाले अधिक प्रभावी और कल्पनाशीलता से भरे उत्पाद तैयार करने में लगेगा। तब एक ही डेटा या विषय वस्तु का विभिन्न रूपों में विभिन्न माध्यमों में असीमित और सहज उपयोग संभव होगा। उदाहरण के लिए, एक यूनीकोड आधारित अखबार का प्रबंधन यदि चाहे तो सूचना प्रौद्योगिकी की मदद से बिना किसी अतिरिक्त प्रयास या खर्च के उसकी विषय वस्तु को इंटरनेट पोर्टल में भी बदल सकता है, ई समाचार पत्र की शक्ल दे सकता है (अब ई समाचार पत्रों की सदस्यता अखबारों के सर्कुलेशन में गिनी जाने लगी है इसलिए यह एक बड़े लाभ का विषय है), अन्य भारतीय भाषाओं में स्वचालित ढंग से अनूदित कर नए संस्करण निकाल सकता है, अन्य मीडिया में (जैसे ध्वनि आधारित मीडिया) बदल सकता है, सिंडीकेटिंग कर सकता है और पुस्तकाकार रूप प्रदान कर सकता है। फिलहाल हमारे अखबार स्वचालन (ऑटोमेशन), कृत्रिम मेधा (आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस) और विभिन्न माध्यमों के सम्मिलन (कनवर्जेंस) जैसे सूचना प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों से वंचित है। समग्र यूनिकोडीकरण के बाद इस तरह के आधुनिकतम अनुप्रयोगों का इस्तेमाल अपेक्षाकृत अधिक आसान और सुलभ हो सकता है।
यूनिकोड सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक ऐसी तकनीकी परिघटना है जो एकाध दशक में घटित होती है और सम्पूर्ण परिदृश्य की दिशा बदलने की क्षमता रखती है। भारतीय भाषायी मीडिया को इसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए क्योंकि आईटी क्षेत्र में आगे आने वाले आधुनिकतम अनुप्रयोगों की बुनियाद इसी पर रखी जाएगी।
(बालेंदु शर्मा दाधीच, प्रभासाक्षी.कॉम से सम्बद्ध हैं)
यह आलेख सहारा समय में पूर्व प्रकाशित हो चुका है. इन आलेखों की इतनी महत्ता थी कि पूरा का पूरा तीन पृष्ठ इन्हें दिया गया. इसे रचनाकार पर प्रकाशित करने का मकसद लोगों को यह बताना है कि यूनिकोड के लाभ होने के बावजूद, पहले से अन्य फ़ॉन्ट में चल रहे हिन्दी के इंटरनेट साइटों के लिए तमाम दिक्कते हैं.
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट शून्य पर की गई इस टिप्पणी के संदर्भ में भी है-
http://hi.shunya.in/article/permalink?article=1231
यूनीकोड की खूबियों से तो परिचित था लेकिन एक अखबार को यूनीकोडित करने में क्य-क्या करना पड़ेगा यह जाना इस लेख के माध्यम से. धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंयह लेख पहले पढ़ चुका था, काफी महत्वपुर्ण लेख है. उनके लिए भी जो मिडीया का युनिकोडीत न होने से नाराज है, तथा उनके लिए भी जो मिडीया में है तथा इस तकनीक का लाभ नहीं उठा रहे हैं.
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