पाकिस्तान डायरी - जाहिदा हिना ए क ज़माना था कि उप-महाद्वीप में माल के बदले माल का रिवाज था। मोची जूता बनाता था , तो वह कुम्हार को जूत...
पाकिस्तान डायरी
- जाहिदा हिना
एक ज़माना था कि उप-महाद्वीप में माल के बदले माल का रिवाज था। मोची जूता बनाता था, तो वह कुम्हार को जूता देकर उससे अपनी ज़रूरत के बरतन ले लेता था। फिर जब कौड़ियों और बाद में सिक्कों का चलन हुआ, तो यह सिलसिला ख़त्म हो गया, लेकिन हमारे यहां देहातों में अब भी ऐसे घराने मौजूद हैं, जो भैंसों, बकरियों और शिकारी कुत्तों को हासिल करने के लिए अपनी बेटियां दे देते हैं। दो हफ्त़े पहले कराची की एक अदालत ने दो लड़कियों की ऐसी शादी रद्द कर दी, जिसमें उन्हें तीन बैलों की अदायगी के एवज़ ज़मींदार को दे दिया गया था। 6 और 8 बरस की इन लड़कियों के बाप ने ज़मींदार से तीन बैल ख़रीदे थे। जिनकी पूरी रक़म वह अदा नहीं कर सका था। चुनांचे जरगे ने फ़ैसला सुनाया कि वह एक लाख सत्तर हज़ार रुपए ज़मींदार को दे और अगर रक़म मौजूद न हो, तो अपनी बेटियों का निकाह ज़मींदार से कर दे। शायद ऐसे ही मामलात के लिए कहा गया है कि लालच की कोई हद व इंतहा नहीं होती।
लालच की इस इंतहा ने अदरक के व्यापारियों को जिस तरह अंधा किया, कुछ ज़िक्र उसका भी सुन लीजिए। हिंदुस्तान से आने वाली अदरक को साफ़-सुथरी और भारी बनाने के लिए इस्लामाबाद में फूड प्रोसेसिंग यूनिट वालों ने उसे तेज़ाब में डाल कर प्रोसेस किया और सारे मुल्क में वह ‘साफ़-सुथरी’ अदरक फैला दी। इस ‘नेक काम’ का फ़ायदा यह कि सौ रुपए की अदरक पर चार सौ रुपए मुनाफ़ा मिला। तेज़ाब में भीगी हुई सेकड़ों मन अदरक पूरे मुल्क में फैल चुकी है। इस काम के करने वालोें की तलाश में पुलिस ने छापे मारे, लेकिन ऐसे ‘छापे’ हमारे यहां तो ज़्यादातर नाकाम ही रहे हैं, इसलिए कि पुलिस की जेबें गरम हो जाती हैं। और हम लोग जो खानों में अदरक इस्तेमाल करते हैं, सर पकड़े बैठे हैं और यह सोच कर दहल रहे हैं कि इस तेज़ाब की कितनी मात्रा हमारे जिस्म का हिस्सा बन चुकी है।
हमारे समाज के बदन में भी कारोकारी, सवारा और वनी जैसे ज़हर घुले हुए हैं, जो बेज़ुबान लड़कियों और औरतों की ज़िंदगी ख़ाक कर देते हैं। कारोकारी के बारे में कई मर्तबा लिख चुकी हूं। ‘वनी’ और ‘सवारा’ का चलन सरहद और पंजाब के इलाक़ों में है। सवारा शादी का फ़ैसला उमूमन पशतून जरगा करता है। इसमें अक्सर नाबालिग़ लड़कियां उस ख़ानदान के मर्दों को दे दी जाती हैं, जिसका कोई शख्स़, लड़की के बाप, भाई या चचा के हाथों क़त्ल हुआ हो। जरगा इसे बिरादरी में अमन क़ायम करने का तरीक़ा बताता है लेकिन यह समझने के लिए ज़ेहन पर ज़ोर देने की ज़रूरत नहीं कि मक़तूल के घराने में क़ातिल घराने की लड़कियों के साथ कैसा सुलूक किया जाता होगा। इस मामले में लड़की को एतराज़ का कोई हक़ नहीं होता और वह सर झुका कर रोती हुई उस घर चली जाती है, जहां उम्र भर उसे एक जहन्नुम में जलना होता है। अभी चंद महीनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब पुलिस को एक ऐसी पंचायत के ख़िलाफ़ कार्रवाई का हुक्म दिया था, जिसने ज़िला ‘पाक पतन’ में तीन बरस की एक बच्ची की शादी 14 बरस के लड़के से और एक औरत की शादी उसके साथ बलात्कार करने वाले के छोटे भाई से करा दी थी। आहिस्ता-आहिस्ता इन मामलात में सुप्रीम कोर्ट का दख़ल बढ़ रहा है। लेकिन एक ऐसे समाज के जन्म लेने में अभी बहुत वक्त़ है, जब हमारी बेबस लड़कियां जर्गों और पंचायतों के रहमो-करम पर न रहें।
वैसे इन दिनों कराची वाले डाकुओं के रहमो-करम पर हैं, जहां रोज़ाना 60--70 मोबाइल फोन छीन लिए जाते हैं और 30--40 गाड़ियों का पिस्तौल की नोक पर उठ जाना एक आम-सी बात है। 15 जून का स्कोर कुछ यूं रहा कि 26 गाड़ियां और 59 मोबाइल ‘कैच’ हुए। वे लोग जो मोबाइल या गाड़ी की चाबी देने में ज़रा सी भी देर करें, उन्हें गोली मार दी जाती है। इसीलिए यह कहा जाता है कि किसी वक्त़ डाकुओं से सामना हो जाए, तो एक मिनट की देर लगाए बग़ैर मोबाइल और गाड़ी उनके हवाले कर देनी चाहिए। हिफ़ाज़त के ख्य़ाल से करोड़-दो करोड़ की गाड़ियों वालों ने उनमें ट्रेकर सिस्टम लगवाना शुरू कर दिया, लेकिन डाकुओं ने उसका भी तोड़ निकाल लिया है और पिछले हफ्त़ों में दर्जनों ऐसी गाड़ियां छिन गईं, जिनमें ट्रेकर सिस्टम लगा हुआ था।
सिस्टम तो वाटर सप्लाई का बेमिसाल शाहजहां बादशाह के इंजीनियरों ने बनाया था, जिससे लाहौर के शालीमार बाग़ को पानी पहुंचाया जाता था। शाहजहां ने यह बाग़ 1642 में लगाया था। अब यह वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल है। पाकिस्तान के हिस्से में मुग़लों की जो यादगारें आईं, उनमें शालीमार बाग़, जहांगीर का मक़बरा और लाहौर का शाही क़िला पहले नंबर पर हैं। पिछले दो महीनों से शालीमार बंद कर दिया गया है। ऐसा 93 बरस बाद हुआ है कि लोग इसकी मुलायम घास पर टहलने, इसके फ़व्वारों की गुनगुनाहट सुनने और इसके फूलों की सुगंध लेने से मेहरूम हुए हैं। इंडियन ऑर्कियालॉजिकल सर्वे ने इसे 1913 में एक यादगार क़रार दिया था। तब से 2006 तक उसके दरवाज़े लोगों के लिए खुले रहे। रोज़ाना यहां साढ़े तीन-चार हज़ार टूरिस्ट आते हैं। बाग़ बंद होने से पंजाब के ऑर्कियालॉजी डिपार्र्टमेंट को माहाना छह लाख रुपए का नुक़सान हो रहा है। लेकिन इसे बंद करने की वजह यह है कि इसकी घास ख़राब हो चुकी है, घास बिछे रास्तों को नुक़सान पहुंचा है और इसकी बाक़ायदा देखभाल के लिए ज़रूरी है कि इसको देखने और इसमें चहलक़दमी के लिए आने वालों का सिलसिला कुछ दिनों के लिए रोक दिया जाए।
शाहजहां के शालीमार बाग़ पर मुझे शरद पगारे का नॉवेल ‘गुलारा बेगम’ याद आया। यह नॉवेल पगारे साहब ने हिंदी में लिखा। पिछले दिनों इसका उर्दू तर्जुमा हिंदुस्तान से छपा और मुझ तक भी पहुंचा। यह एक तारीख़ी नॉवेल है, जो शाहजहां के दौर से ताल्लुक़ रखता है। पगारे साहब ने इसे जिस सजल और सुंदर ज़ुबान में लिखा और जनाब सिराज अहमद अंसारी ने जिस मुहब्बत से इसे उर्दू में ढाला है, उसे पढ़ते हुए बेसाख्त़ा दाद निकल जाती है। पगारे साहब को मुबारकबाद कि उन्होंने इतनी चाहत और अपनाइयत से यह नॉवेल लिखा। उप-महाद्वीप की गंगा-जमुनी तहज़ीब से हिंदू और मुसलमान लिखारियों का यह जुड़ाव दोनों गिरोहों के दरमियान एक पुल का काम देता है।
(साभार, दैनिक भास्कर)
हाल ही में मैने जाहिदा हिना का एक उपन्यास पढ़ा था ना जुनूँ रहा ना परी रही । अच्छी लेखिका हैं। पाकिस्तान के मशहूर शायर जॉन एलिया से इनका निकाह हुआ था जो बाद में टूट गया।
जवाब देंहटाएंरवि जी,
जवाब देंहटाएंआप तो बहुत ही बढ़िया और चुनिन्दा चीज़ें निकालते हैं। धन्यवाद।