- महेश दर्पण मास्को स्थित तोलस्तोय संग्रहालय दरअसल एक लॉज हुआ करता था। यहां तब एक कोचवान और सहन की देखभाल करने वा...
- महेश दर्पण
मास्को स्थित तोलस्तोय संग्रहालय दरअसल एक लॉज हुआ करता था। यहां तब एक कोचवान और सहन की देखभाल करने वाले रहा करते थे। तोलस्तोय संग्रहालय देख कर लेखक के उन दिनों की कल्पना बखूबी की जा सकती है। मैं और अनिल अचानक ही यहां आ पहुंचे थे।
इसका डाइनिंग रूम देखने लायक है। कहते हैं, यहां सिर्फ मेहमानों को ही वाइन पेश की जाती थी। तात्याना ने बेटी मारिया का जो चित्र बनाया था, वह यहीं रखा हुआ है। उस वक्त की एक जर्मन घड़ी भी सजी हुई है। ठीक सामने एक बड़ी खिड़की है। इसके साथ ही लगे दूसरे कमरे में रहने वाले, परिवार के लोग, बदलते रहते थे। उसी वक्त का खास सामान यहां रखा गया है। लेखक के बेटे सर्गेई की पत्नी का चित्र, तोल्सतोय की पत्नी का पलंग, पियानो और तमाम दूसरी चीजें यहां देखी जा सकती हैं।
म्यूजियम के बहाने अंतरंग जीवन-कथा भी खुलती है लेखक की। समय से पति-पत्नी का शयन कक्ष तीसरा कमरा हो गया। आखिरी बेटे के जन्म के बाद पलंग अलग कर लिए गए थे। यहीं मेज पर सोफिया पति की रचनाओं के प्रूफ और घर का हिसाब देखा करती थीं। वह कहानियां भी लिखती थीं। संगीत में तो उनकी दिलचस्पी थी ही, वह फोटोग्राफी भी किया करती थीं। ज्यादातर कामकाज उन्हीं के निर्देशन में हुआ करता था। यही वजह है कि यहां मेहमानों की लिस्ट, हिसाब-किताब और बिल आदि भी सहेज कर रखे गए हैं।
तोल्सतोय के पलंग पर रखा हुआ कंबल कभी खुद पत्नी ने बुना था। किसी खास अवसर के लिए तैयार कराया गया आमंत्रण पत्र भी रखा हुआ है। अपने सबसे छोटे बेटे के साथ सोफिया आंद्रेवना का चित्र भी देखा जा सकता है जो कलाकार गे ने बनाया था।
चौथा कमरा बच्चों का है। पहले तीन बच्चे यहीं रहते थे। दो बेटे और एक बेटी। बाद में अलेक्सांद्रा बड़ी होकर इस कमरे से चली गई। इस कमरे में बच्चों का सारा सामान सुरक्षित रखा हुआ है।
वान्या को लेखक खूब प्यार करते थे। उन्हें यकीन था कि छोटा बेटा ही उनका प्रभु सेवा का काम पूरा करेगा। यह कमरा उसकी स्मृतियों को संजोए है। यहां आप सर्गेई की लिखी एक कहानी का संपादित रूप देख सकते हैं। यहां रखे दस्तावेज बताते हैं कि वान्या सात साल का होकर मर गया। दो पलंग हैं जिनमें से एक पर आया और एक पर बच्चा सोया करता था। दरवाजे पर ही झूले के कांटे लगे हुए हैं। एक पक्षी का पिंजरा रखा हुआ है। कई हस्तशिल्प और खिलौने उस समय की कला से परिचित कराते हैं।
एक कमरा बच्चों की पढ़ाई का है। इसे देख कर पता लगता है कि सामान्य पढ़ाई के अलावा यहां विदेशी भाषाएं भी सीखी जाती थीं। अलेक्सांद्रा के अलावा यहां गवर्नेस हमेशा रहा करती थी। वह आमतौर पर जर्मन या फ्रेंच में बोला करती थी। जर्मन सोफिया भी पढ़ा देती थी। कुर्सी की गद्दियों पर कढ़ाई तोलस्तोय की पत्नी ने की है। यहां उस वक्त इस्तेमाल होने वाला लकड़ी का संदूक और कुछ बर्तन भी रखे हुए हैं।
इस कमरे को पार कर के आप नौकरानियों के कमरे तक जा पहुंचेंगे। इनका काम हुआ करता था कपड़े धोना, प्रेस करना और जरूरी मरम्मत। खाली समय में ये मेज के पास आकर चाय पिया करती थीं। इनमें से एक नौकरानी मारिया ने रसोइए से शादी कर ली थी। इस कमरे की विशेषता यह है कि यहां से आप बाहर भी जा सकते हैं और ऊपर भी। यहीं से खाना लाया जाता था।
सातवें कमरे में दो बेटे आंद्रेई और मिखाइल रहा करते थे। इनके लोहे के पलंग अब भी यहीं रखे हैं। ये वॉयलिन और हारमोनियम बजाया करते थे। उनकी मेज भी यहीं रखी हुई है। आठवां कमरा बेटी तात्याना का है। कमरे की खूबसूरती उसके बताए गए मिजाज के अनुरूप ही है। उसने चित्रकारी और कढ़ाई बाकायदा सीखी थी। उसके बारे में कहा जाता है कि वह काफी मिलनसार, दयालु और खुशमिजाज थी। उसे छोटे बच्चों की बड़ी चिंता रहती थी। यही नहीं, जब कभी मां-बाप में तनातनी हो जाती, समझौता भी यही कराती थी। वह गे, रोपिन और कसातकिन जैसे चित्रकारों की मित्र थी। इस कमरे में रखे तात्याना के कई पोट्रेट इन्हीं चित्रकारों के बनाए हैं। इस कमरे की एक मेज पर काला मेजपोश बिछा है। इस पर मेहमानों के हस्ताक्षर मौजूद हैं। उन पर कढ़ाईदार काम भी है।
इसके बाद खाना सर्व करने वाला कमरा आता है। यहां उस जमाने का मिट्टी के तेल का एक लैंप रखा हुआ है। यहां दून्या रोज आमलेट बनाया करती थी। घर के लोग उससे कॉफी और खिचड़ी भी बनवा लिया करते थे। शेल्फों में बर्तन सजे हैं। यहीं पास में एक अलमारी में तोल्सतोय का कोट रखा है। इसका साइज बताता है कि वह कितने लंबे-तगड़े थे।
नीचे की मंजिल में तोल्सतोय खुद रहते थे और ऊपर मेहमानों को टिकाते थे। आप जरूर जानना चाहेंगे कि मेहमानों में अक्सर आने वालों में कौन लोग होते थे। इनमें थे : चेखव, लेस्कोव, बुनिन, अस्त्रोवस्की और गोर्की।
ऊपर जाने के लिए, पहले नकली भालू के हाथ में विजिटिंग कार्ड रखते थे लोग। ये वे दिन थे जब बिजली नहीं हुआ करती थी। इसीलिए गैलरी में चित्रों के मॉडल रखे हैं। यही थी चित्र बनाने की जगह। यहां घोड़ों के दो चित्र आज भी आप देख सकते हैं। ये हैं : ‘ताकत का अंदाजा बुढ़ापे में’ और ‘ताकत का अंदाजा जवानी में’। ये दोनें चित्र स्वेर्चकोव के हैं। ये उन्होंने तोल्सतोय को भेंट किए थे।
हॉल में संगमरमर इंप्रेशन का वॉल पेपर लगा है। यहां गोष्ठी और पारिवारिक समारोह हुआ करते थे। इन समारोहों में स्क्रियाबिन, रहमानिनब, रिम्स्कीकोर्साक, तानेमेव और शाल्यापिन जैसे संगीतकार आया करते थे। यहां आप तोलस्तोय की वह मूर्ति भी देख सकते हैं जो गे ने खुद बना कर उन्हें भेंट की थी। एक रीछ की खाल भी यहां रखी हुई है। कहते हैं, इस रीछ ने लेखक पर हमला कर दिया था।
तोलस्तोय मेहमानों का जमकर स्वागत करते थे। खासकर ईस्टर के मौके पर। ईस्टर पर्व मनाते हुए कई चित्र यहां उनके साथ विशेष लोगों के देखे जा सकते हैं। एक बड़ी शतरंज भी यहां रखी है। आप चाहें तो यहां रिकार्ड की गई तोलस्तोय की आवाज भी सुन सकते हैं। इसमें वे गांव के स्कूली बच्चों को संबोधित कर रहे हैं। जो कुछ मैं सुन पाया, उसका अभिप्राय लीना ने मुझे यह बताया : ‘शुक्रिया बच्चो कि आप मेरे पास आते हैं। मैं खुश हूं। मुझे मालूम है कि आप में ऐसे बच्चे भी हैं जो पढ़ाई नहीं करते। वे शैतानी करते हैं। बड़े होने पर आप लोग मुझे याद करेंगे।’
वैसे रिकार्ड तो उस म्यूजिक का भी रखा है जो तोलस्तोय की पोती बजाया करती थी। गैस्ट रूम में कलाकार सिरोव का बनाया सोफिया का खूबसूरत चित्र रखा है। दूसरा चित्र तात्याना का रेपिन का बनाया सजा है। गे का बनाया मारिया का चित्र भी यहां मौजूद है। देखने वाला सोच सकता है कि ये मूल चित्र हैं, लेकिन आप इस भ्रम में न रहें, दरअसल ये सभी उनकी अनुकृतियां हैं। हां, यहां आप तोलस्तोय की पत्नी के हाथ का बुना कालीन भी देख सकते हैं। दीवार के आकार का एक शीशा, कुर्सी, मेज और उस वक्त का बहुतेरा बेशकीमती सामान यहां नजर आता है। लेकिन आप इसे देख कर जब खुश हो रहे हों तो यह भी याद रखिएगा कि तोलस्तोय खुद इसे बोर मेहमानों का कमरा कहा करते थे।
यहां वह कभी कभी ही मिलने आया करते थे। यहां अक्सर घर की मालकिन की सहेलियां आकर बैठा करती थीं। यहीं वह छोटी-सी मेज भी है जिस पर बैठ कर सोफिया पति की रचनाओं के प्रूफ देखा करती थी। आखिरी कमरे में यहीं वह पलंग भी रखा हुआ है जिस पर लेखक सोए थे। यहां आपको परिवार के तमाम सदस्यों की तस्वीरें नजर आएंगी। वे उपहार भी बाकायदा सजे हैं जो बच्चों ने लेखक को शादी की सालगिर के मौके पर भेंट किए थे।
इस म्यूजियम में यह गौर करने लायक बात है कि मारिया के कमरे की छत सबसे नीची है। वही पिता की रचनाओं का पुनर्लेखन, उनके पत्रों के उत्तर देने का काम करती और बच्चों को पढ़ाया करती थी। पिता उससे खूब खुश रहते थे। वह अनुवाद भी किया करती थी। इनमें प्राय: लेखक की रचनाएं और फ्रांसीसी से अनुवाद होता था। यहां मेज पर बिछे मेजपोश पर परिवार के लोगों के हस्ताक्षर नजर आते हैं। वह कंबल भी रखा हुआ है जिसे सोफिया ने बनाया था। घर की मैनेजर अवरोतिया थी। जो कई सालों तक सेवा में रही। कुल दस नौकर थे।
एक कमरे में तोल्सतोय परिवार की महिलाओं के वस्त्र रखे हुए हैं।
वह कमरा, जहां मुख्य नौकर इल्या सिदोरको खाना लगाता था, उसी तरह से सहेज कर रखने की कोशिश की गई है। उसे लेखक द्वारा बाकायदा मेहमानों की सूचना दी जाती थी। लैंप में तेल वही डाला करता था। वही बच्चों और सोफिया को शहर ले जाता था। सच पूछें, तो यह लेखक का सबसे विश्वस्त नौकर था। शायद इसीलिए अपनी कई किताबें, प्रिय सामान और तस्वीरें लेखक ने उसे भेंट की थीं। यहां मौजूद दस्तावेज बताते हैं कि बीमारी के दिनों में तोलस्तोय की सबसे ज्यादा सेवा इसी ने की थी। हालांकि सच यह भी था कि लेखक को किसी की मदद लेना कतई पसंद नहीं था। इसके पीछे उनकी वह धारणा सबसे ज्यादा काम करती थी कि किसी को नौकर मानना नैतिक रूप से खराब करता है। इस कमरे में एक फ्रेंच कलाकार का बनाया इसी नौकर का चित्र सजा हुआ है।
लिखने-पढ़ने के कमरे में दीवारें रंगी हुई हैं। जमीन पर चटाई बिछी है। फर्नीचर कम, लेकिन भारी है। तोलस्तोय नौ से दस बजे के बीच यहीं बैठ कर लिखा करते थे और फिर अंतराल होता था। इसके बाद तीन से चार बजे के बीच लेखन होता था। इसके बाद वह पत्र लिखते थे। यहीं उन्होंने पुनरुत्थान, फादर सर्गेई, इवान इलिच..., जीवित शव और मुझे क्या करना चाहिए जैसी किताबें लिखीं। धर्म से मोह टूटने के बाद धर्म सभा को उत्तर भी उन्होंने यहीं से लिखा। लेखक को कुर्सी की ऊंची टांगें पसंद नहीं थीं। कुर्सी के पैर उन्होंने खुद काट कर छोटे किए थे। ये वे दिन थे जब लेखक की नजर कमजोर हो गई थी। कुर्सी को कम ऊंचा रखने का कारण यही था कि तोलस्तोय उन दिनों ज्यादा झुकना नहीं चाहते थे। काम करते-करते थक जाते तो खड़े होकर स्टैंड पर लिखने लगते थे। काम के बाद जिन चौड़ी कुर्सियों पर लेखक आराम करते थे, वे भी यहीं रखी हैं। यहीं वह घर आए लेखकों से मुलाकात किया करते थे।
इस कमरे के बाहर लेखक के जूते रखे हुए हैं। उनके कपड़े, साइकिल और खेत में काम करने का जरूरी सामान भी रखा है।
सात बजे उठ कर तोलस्तोय बाहर के कमरे में नहाया करते थे। कमरों की सफाई वह खुद किया करते थे। सर्दियों में लकड़ी काटना और फिर उन्हें उठा कर लाना उनके लिए रोजमर्रा के कामों में शुमार था। अपने कमरे में भट्टी भी वह खुद ही जलाते थे। दूर से पानी लाने के लिए वह बर्फगाड़ी का इस्तेमाल किया करते थे। इन तमाम कामों से संबद्ध उनकी कई चीजें आज भी वहां रखी हैं।
घूमने के बाद अक्सर तोलस्तोय जूते बनाया करते थे। जूते बनाना उन्होंने मास्को में रहकर ही सीखा था। इस काम में आने वाली चीजें यहीं सहेज कर रखी गई हैं। तात्याना के पति के लिए लेखक ने यहीं जूता बनाया। यहीं फेथ नाम के कवि के लिए भी उन्होंने जूता बनाया। उनका बनाया एक जूता यहां रखा हुआ है। आप चाहें, तो यहीं वह साइकिल भी देख सकते हैं जो तोलस्तोय चलाया करते थे। उन्हें मुगदर चलाने का शौक तो था ही, कहते हैं लेखक ने बुढ़ापे की उम्र में भी साइकिल चलाई। ये तमाम चीजें साहित्यप्रेमियों के लिए प्रदर्शित हैं।
कहते हैं, यह सब लेखक की पत्नी ने सरकार को बेच दिया था। बाद में सरकार ने यहां म्यूजियम बना दिया। दुनिया भर से आए लोग इसे देखने का मोह नहीं छोड़ पाते। इसके रख-रखाव में अब अच्छा-खासा खर्च होता है। शायद यही वजह है कि इस म्यूजियम में प्रवेश के लिए हमें बहुत से रूबल खर्च कर टिकट लेना पड़ा। फोटो खींचने के लिए कुछ रूबल अलग से। हां, आप पिछले दरवाजे के पास या बाहर वाले कमरे का फोटो खींचना चाहें तो बगैर कुछ दिए खींच सकते हैं।
म्यूजियम से, हमारे बाहर पहुंचते ही आइसक्रीम वाले लड़के ने कहा : गुड मॉर्निंग। अनिल ने उससे ‘ज्द्रास्तुइचे’ कहा तो वह शर्मा गया। उसके साथ की सुंदरी भी हंस पड़ी।
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रचनाकार – महेश दर्पण की अन्य रचनाएँ यहाँ पढ़ें –
http://rachanakar.blogspot.com/2006/06/blog-post_115080611943719228.html
बहुत अच्छा लगा यह लेख!
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