कहानी : चिड़िया की उड़ान

SHARE:

- महेश दर्पण रिनी जब नियत समय पर ऑफ़िस न पहुंची तो पांच मिनट बाद से ही जी हुजूरियों ने मैडम तक किसी न किसी बहाने यह ख़बर पहुंचाने में कोई कसर ...


- महेश दर्पण

रिनी जब नियत समय पर ऑफ़िस न पहुंची तो पांच मिनट बाद से ही जी हुजूरियों ने मैडम तक किसी न किसी बहाने यह ख़बर पहुंचाने में कोई कसर न छोड़ी. मटकू अपने अंदाज़ में मैडम के पास जा पहुंचा था, ''मैडम, आज बाज़ार लेट हो जाएगा.''

''क्यों?''

''सेम प्रॉब्लम...अभी तक पहुंची नहीं.''

''जैसे ही आए, मुझे बताओ...इस लड़की को आज ठीक करना ही पड़ेगा. और देखो, आज बाज़ार तुम कर दो...पेपर का काम नहीं रुकना चाहिए.''

जीनियस कनखियों से खीझते हुए लौटते मटकू को देख तो रहा ही था. उसने जैसे खुद से कहा, 'और करो चमचागीरी!''

मटकू अपनी सीट पर आकर बड़बड़ा रहा था, ''उंहऽऽ पेपर का काम रुकना नहीं चाहिए...''

रश आवर निकल जाने के बाद चीफ कमरे में मैडम से बतिया रहे थे, ''इस लड़की को समझा दीजिएगा, ऑफ़िस का डिसिप्लिन तोड़ना मुझे पसंद नहीं. आज कोई फ़ोन किया इसने?''

''जी नहीं.''

''मोबाइल पर फ़ोन लगाइए ज़रा, देखिए तो आज न आने का कौन-सा बहाना मारती है.''

चीफ़ के कमरे से बाहर आते ही जीनियस ने चुटकी ली, ''सर, रात को पार्टी में ज्यादा हो गई होगी न!''

मैडम ने जीनियस की तरफ नज़रें घुमाईं और मुस्करा दीं. अचानक जाने उन्हें क्या सूझी, जैसे जीनियस की फब्ती का जवाब देना हो, '', तुम ये तीन पीस आधे घंटे में बनाकर मुझे दो. बाद में अपना रेल का रैकेट करते रहना.''

टीम अपने में डूबी, कहीं गहरे में, काम की लय पकड़ चुकी थी. झुके हुए सर और की-बोर्ड पर जंप करती उंगलियां बता रही थीं कि जल्द से जल्द बहुत कुछ कर डालना चाहते हैं समय संदेश के ये कारिंदे. ठीक इसी वक्त रिनी से काफ़ी पहले, उसके आने की ख़बर आ पहुंची थी.

न्यूज़ डेस्क के पास खड़े दिल्ली एनसाइक्लोपीडिया ने शरारती आंखें नचाते हुए कहा, ''लो भई, हो ही गई.''

''क्या हो गई सर...?'' जवाब में समवेत स्वर.

''सगाई. मिठाई का डिब्बा लेकर आ रही है.''

''हूंऽऽऽ'' मैडम ने सिर कुर्सी की पीठ से शीर्ष पर टिका दिया.

''बहुत ख़ूब...हमें तो पहले ही से पता था मैडम.'' जीनियस ख़ामोश कैसे रह सकता था.. ख़ामोश ज्वालामुखी ने एक जोरदार सांस ली और क़रीब-क़रीब सांप की तरह फुंफकार-सी लगाते हुए दोनों हाथ इस तरह ऊपर उठा लिए जैसे कहना चाहते हों, ये तो होना ही था..मटकू खुश था, ''मैडम, मिठाई खाओ खुशी मनाओ. अब सब ठीक हो जाएगा.'' डिप्टी साहब, जो हमेशा की तरह अपनी रौ में डूबे, मेज़ पर फैलाए दो-तीन सौ विजिटिंग कार्ड्स में से तुरंत काम में आ सकने वाला कोई ख़ास खोज रहे थे, जैसे सोते-सोते चौंक पड़े हों, ''क्या हुआ भई, कुछ हमें भी तो बताओ!''

बस, यही वह क्षण था जब रिनी हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए सामने आ खड़ी हुई.. उसने एहतियात से डिब्बा अपनी मेज़ पर रखा और फिर पूरे कमरे को ग़ौर से अपनी तरफ़ देखते हुए एक नज़र में देख लिया. वह जैसे पूरे शरीर से प्रफुल्लित थी. उसने अपनी दोनों हथेलियों के गद्दे आंखों पर रख लिए थे और खुद को इस बात के लिए तैयार कर रही थी कि खुशखबरी प्रसारित किस तरह से करे!

कमरा शायद उससे भी कहीं ज्यादा बेताब था. मटकू ने शुरुआत की, ''रिनी, मिठाई हमारे लिए है न!'

''हां सर!'' भर्राए हुए स्वर में उसके मुंह से निकला.

मैडम कुछ न करते हुए भी बहुत कुछ करने के अभिनय में लगी चौकन्ने कानों से यह संवाद सुनने के बाद खुद को तैयार कर ही रही थीं कि डिप्टी साहब नाकों मुस्कराते हुए बोले, ''तो रिनी, आख़िर हो ही गया काम है!''

''हां सर!'' रिनी ने सिर झुकाते हुए ख़ास अंदाज़ में कहा.

ख़ामोश ज्वालामुखी ने मौन तोड़ा, ''अरे भई बांटो भी अब, ये लाई काय के लिए हो?''

''चीफ़ अभी सीट पर नहीं है सर.''

जीनियस सिर झुकाए जैसे अपने की-बोर्ड को संबोधित कर रहा था, 'हां भाई, टेक्नीकल प्वाइंट है. चीफ़ का अप्सेंस में मिठाई कैसे बंटेगा.''

दरवाज़े पर खड़ा दिल्ली एनसाइक्लोपीडिया अपने साथ क्राइम की अंगुली पकड़े चीफ़ की खोज में निकल गया, ''रिनी, हम आते हैं अभी चीफ़ को लेकर...ये लोग चाहे जो कहते रहें, तुम न जुबान खोलना और न डिब्बा, ओ के?''

रिनी ने पूरा सिर हिलाकर कहा, ''यस सर!''

कमरा मैडम और रिनी के जुड़े सिरों के बीच से आती फुसफुसाहटों को सुनने की कोशिश कर ही रहा था कि चीफ़ सामने आ खड़े हुए, ''क्या रिनी, दफ्तर के काम की तरह तुमने लड़का खोजने में भी इतना टाइम लगा दिया? लाओ, निकालो, कहां है मिठाई?''

''नहीं सर, वो बात नईं है.'' रिनी खुला डिब्बा लिए चीफ़ के सामने खड़ी थी.

''फिर क्या बात है?''

''सर, पहले आप मिठाई खाइए!''

''हूंऽऽ अब बोलो!'' चीफ ने बरफी का पीस उठाते हुए पूछा.

''सर, मुझे ए चैनल में जॉब मिल गया!'

''लेटर दे दिया?''

''यस सर...'' रिनी की खुशी में सातों आसमान शामिल थे.

''लैटर तो ले लिया, अब ज़रा खुद भी लिटरेट हो जाओ! मीडिया के लिहाज से अभी तुम्हें बहुत कुछ सीखना बाक़ी है. प्राण खींच के रख देंगे 'ए चैनल' वाले. और ये मत समझना कि...'' चीफ जाने क्या कुछ कहे जा रहे थे और पूरे कमरे की दिलचस्पी उसे सुनने से भी कहीं ज्यादा इस बात में थी कि सुनते हुए दिखाई ज़रूर दे. इसी वक्त चीफ़ का मोबाइल बजने लगा और वह बतियाते हुए कमरे से बाहर निकल गए.

मिठाई का डिब्बा आगे बढ़ाती रिनी को शायद पहली बार अब इस बात की कोई फ़िक्र न रह गई थी कि वह इस काम में औरों की तरह ही वरिष्ठता क्रम का ख़याल रखे.

उसकी एक आंख में खुशी नज़र आ रही थी तो दूसरी में समय संदेश के लोगों से बिछुड़ने का दुख.

जैसे ही रिनी मिठाई का डिब्बा लेकर कमरे से बाहर निकली, मटकू ने अपनी चेयर का रुख मैडम की तरफ़ कर लिया, ''अब समझ आया मैडम, ये हर दूसरे दिन डॉक्टर के पास क्यों भागती रहती थी.''

हालांकि कमरे के चौकन्ने कान सब सुन रहे थे, लेकिन मैडम की कोशिश यही थी कि कोई सुन न ले. उन्होंने क़रीब-क़रीब फुसफुसाने वाले अंदाज़ में कहा, ''अरे, मैं तो कुछ और ही समझी थी.''

पीठ किए बैठा जीनियस, जो प्राय: एटिकेट्स का पूरा ख़याल रखता था, खुद को रोक न सका, ''वही तो हम भी सोचे थे मैम...''

मटकू को उसका बीच में टपक पड़ना अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन उसने लगभग आक्रामक शैली में पूछा, ''क्या समझा था तू? बता ज़रा, क्या समझा था! अबे, तुझे पता भी है कि मैम कह क्या रही हैं!''

पूरी प्रतिष्ठा दांव पर लगी देख जीनियस को मन की बात कहनी ही पड़ गई, ''अरे, हम तो समझे थे न डॉक्टर-वाक्टर कुछ नहीं है. ई त जाती है अपना ब्वॉयफ्रेंड का पास.''

पानी सिर से ऊंचा उठता देख ख़ामोश ज्वालामुखी ने मुंह खोला, 'तुम लोग तो पहले ही शादी करके बैठ गए...और उसके बारे में सोचते हो कि इत्तो बड़े सहर में किसी को अपना भी न बनाए!''

डिप्टी, जो अब काम का कार्ड मिल जाने से काफ़ी संतुष्ट नज़र आ रहे थे, अपने शहर की लड़की के बारे में यह सब सुनने को शायद क़तई तैयार नहीं थे.

डिप्टी काफ़ी कुछ बोलते, लेकिन जीनियस और ख़ामोश ज्वालामुखी ने आंखों ही आंखों में एक-दूसरे को इशारा किया और समवेत राय ज़ाहिर की, ''लो जी, अब प्रवचन शुरू...''

तमाम, दूसरी जिम्मेदारियों के साथ ही डिप्टी को 'आस्था' कॉलम भी एडिट करना होता था. इस काम का उन पर ऐसा असर पड़ता जा रहा था कि वह जब चाहते ध्यान योग करने लगते. खुद में ऐसे डूब जाते कि उन्हें फिर दीन-दुखिया की कुछ ख़बर ही न रहती. उन्होंने डिपार्ट में रिनी को प्रवेश दिलाने में न सिर्फ़ काफ़ी मेहनत की थी, बल्कि मानने के लिए तैयार ही न थे कि रिनी ने औरों की तरह उनसे भी यह राज़ छिपाए रखा. वह इस प्रसंग पर अपनी सुविचारित टिप्पणी प्रस्तुत कर रहे थे: ''देखो भाई, साफ़ बात तो ये है कि जिसे ज्यादा पैसा और बेहतर जॉब मिलेगा, वह ज़रूर जाएगा. तुम लोगों को अगर पहले से बता देती तो सबके सब उसकी मदद करने के बजाय सारा जोश ठंडा करने में लग जाते. मैं तो कहता हूं...'' उनकी बात अभी पूरी भी न हो पाई थी कि रिनी खुला डिब्बा हाथ में लिए कमरे में आ पहुंची. ऐसे में डिप्टी के अधूरे वाक्य का सिरा कुछ इस तरह पूरा हुआ, ''लाओ रिनी, किसी को हुई हो या न हुई हो, हमें तो भई ख़ूब खुशी हुई तुम्हारे नए जॉब की. लाओ, ज़रा एक पीस और दो. काजू की बर्फी का एक पीस तो दांतों के बीच ही अटका रह जाता है.''

रंगीन और टेप संगीत से मिलते हुए रिनी जब बिजी विदाउट वर्क के पास पहुंची तो उनकी ठेपी अपने ही अंदाज़ में खुली, ''हमें तो ख़ैर पहले ही पता था कि ये लड़की यहां ज्यादा दिन टिकने वाली नईं है. दिखने और होने में बड़ा फ़र्क़ होता है पंडज्जी. आज के मीडिया में जुगाड़ फिट करने वाला चइए, आज यहां तो कल वहां. और फिर हमारे ज़माने की तरह अब जॉब छोड़कर कहीं जाना उत्ता ख़राब भी नहीं माना जाता. जो जित्ता कूदता-फिरता है, उत्ता तरक्की.'' वह एक तरह से यह भी कहना चाह रहे थे कि हमारी तरह एक ही जगह पड़े-पड़े सड़ने में कौन बड़ी समझदारी है. हम तो ख़ैर घर-परिवार से बंधे हैं, इस लड़की का अभी क्या है...शुरुआत में जित्ता भी रिस्क ले सको, ज़रूर लेना चाहिए.

शहर, कंपनी, फ़िल्म और मेडिकल से मिलते हुए रिनी अपनी ही सीट पर किसी बेगाने-सी आ बैठी थी. कभी वह अपने कंप्यूटर तो कभी आलमारी की तरफ़ देख रही थी..कमरा ख़ामोश था. उसे शायद अब सचमुच लगने लगा था कि लड़की तो गई.

एक व्यक्ति के रहने और न रहने के बीच का फ़र्क़ अब कमरे की चिंता का विषय खुद-ब-खुद बन गया था. सबसे निखट्टू मानी जाने वाली मिनी 'क्या-क्या नहीं कर पाती थी' के बजाय अब यह सोचा जा रहा था कि 'वह क्या कुछ संभाल लेती थी.' वह भी हँसते-खीझते, सीट दर सीट बदलते हुए.

सुबह जब वह आती, उसे रिपोर्टर्स के साथ बैठना होता चूंकि डेस्क की तमाम सीटें ऑकुपाइड होतीं. काम उसे डेस्क का करना होता, लेकिन एडजस्ट रिपोर्टर्स के साथ करना पड़ता. नई-नई आई इस लड़की को कभी फ़िल्म के कंप्यूटर पर काम करना पड़ता तो कभी रंगीन के. आउट डोर शूटिंग से फ्री होकर जिस दिन ये दोनों उसी के वक्त पर आ बिराजते वह अपना बैग, जैकिट और टिफिन उठाए नए ठिए की खोज में भटकती रहती. आख़िर में उसे पंचायत में रखा कंप्यूटर मिला था जहां बैठकर काम करना सबसे कड़ा इम्तेहान माना जाता था. इसके एक तरफ़ दो विभागीय सहयोगी बैठते थे और दूसरी तरफ़ दो पियन. और फिर समय मिलने पर उनके मुंह लगे लोग भी आ बैठते. काम हुआ तो ठीक, वरना दफ्तर की मुसलसल आलोचना इस जगह का स्थाई एजेंडा हुआ करता.

एकाध दिन तो चलो ठीक, लेकिन रोज़मर्रा की यही चाल रहे तो कोई कैसे काम कर सकता था वहां! जिस रोज़ रिनी ने कहा कि वह वहां बैठकर काम नहीं कर सकती, नया एरेंजमेंट तो ज़रूर कर दिया गया, लेकिन साथ ही यह भी बता दिया गया कि अख़बार के ऑफ़िस में किसी की कोई नियत जगह नहीं होती. हर तरह के लोगों के बीच उठना-बैठना पड़ता है, शोर-शराबे के बीच भी काम करना होता है.

नई व्यवस्था के तहत रिनी को सुबह तीन घंटे एक सीट पर काम करना होता, क्योंकि फेंग शुई अक्सर लेट आता था. तीन घंटे बाद वह उस सीट पर आ जाती जिसे शेयर बाज़ार खाली करता. वह वहां आ ज़रूर बैठती, लेकिन चार घंटे बाद जब उसी सीट पर स्पोर्ट्स आ खड़ा होता तो उसे फिर अपने लिए नई जगह तलाश करनी पड़ती. इस समय तक कंप्यूटर तो कई खाली हो जाते, लेकिन जगह बदल-बदलकर काम करने से उसकी लय टूट जाती. वह अपने काम में कंसनट्रेट न कर पाती और नतीजतन उसे कभी किसी की तो कभी किसी की झाड़ खानी पड़ जाती. दफ्तर में इस मामले में सभी एकमत थे कि न्यू एंट्री को जितना ज्यादा काम से लाद सको, लाद दो. ग़लत करे तो झाड़ने से भी मत चूको.

अक्सर ऐसा होता था कि वह बाज़ार कर रही होती और डिप्टी साहब उसे दो-तीन न्यूज एडिट करने के लिए और ट्रांसफर कर देते. उनकी नज़र में भले ही वह काम मामूली होता, लेकिन रिनी के लिए तो वह एक दबाव ही बन जाता. वह भी ऐसी हालत में जबकि घर से चलते वक्त न वह ठीक से नाश्ता कर पाती और न ही पूरा दूध पी पाती. कलाई में बंधी घड़ी की जल्दबाजी से चिढ़ती वह किसी तरह बस पकड़ लेती तो ट्रैफिक जाम उसे ऑफ़िस समय से न पहुंचने देता.

ऑफ़िस के क़ायदे के मुताबिक महीने में दो-तीन रोज़ तो पंद्रह मिनट लेट आया जा सकता था, लेकिन ट्रैफिक को तो आप यह क़ायदा नहीं समझा सकते न! तेज़ चलती-चलती ब्लू लाइन अचानक किसी स्टैंड पर ऐसी खड़ी होती कि फिर हिलने का नाम ही न लेती. ऐसे में अक्सर ऑफ़िस पहुंचने में उसे सवा दस-दस बीस हो ही जाता. वह पहले ही घबराई होती, उस पर उसके पहुंचते ही आक्रमण शैली में कई-कई तरफ़ से आदेशों की बौछार शुरू हो जाती.

_रिनी, यू आर ऑलरेडी लेट. जल्दी से एजेंसी न्यूज एडिट करो.

_सुनो, रिनी को बोलो दो लोकल भेजी हैं...

_अभी तक किया नहीं, ये फोनोफ्रेंड बाद में हां.

_बाज़ार कर दिया है खेल ने. एक नज़र देख लो. यस सर, यस मैडम करती सूखे गले में भी रिनी यह भूल ही जाती कि ऑफ़िस पहुंचकर दो घूंट पानी भी पी ले.

चलो, अब इस सबसे छुट्टी मिली. सोच रही है रिनी. तभी मैम उसे टोकती हैं, ''तुम्हें लेटर तो मिल गया है न!''

''यस मैम...पूरे 20 हजार की स्टार्टिंग

है.''

''गुड! काम करना ज़रा जी लगा के. प्रिंट और विजुअल का फ़र्क़ तो तुम समझती ही होगी...''

''यस मैम...''

संवाद के बीच में उछलकर आई रकम ने कमरे का ध्यान अपनी तरफ़ खींच लिया था. 20 हज़ार मीन्स थ्री टाइम्स. कमरा हैरान था. कमरा परेशान था. कमरा सकते में था. कमरा सुखी था, यह कह पाना मुश्किल है. एक कुर्सी दोनों हथेलियों के बीच ठुड्डी लगाए सोच रही थी कि मरगिल्ली-सी इस लड़की को देखो तो ज़रा! दूसरी बाहर से खुशी ज़ाहिर करते हुए भी भीतर से आहत थी. तीसरी चौथी और पांचवीं आपस में गिटपिट करते हुए क़रीब-क़रीब इस नतीजे पर जा पहुंची थीं कि अरे इंटरव्यू-विंटरव्यू क्या होना है...इसका काम तो किसी जानकार के थ्रू ही हुआ होगा. आजकल इसके बगैर कहीं कुछ नहीं होता.

जीनियस ने चुटकी ली, ''ए रिनी, अब तो तुम सीधे स्क्रीन पर नज़र आओगी!''

''कह नहीं सकती सर!'' वहां कई तरह के काम होते हैं.''

''मुझे पूरा यक़ीन है कि एक दिन ये लड़की घर-घर टीवी पर देखी जाएगी.'' मटकू ने राय ज़ाहिर की.

ख़ामोश ज्वालामुखी ने काफ़ी देर बाद समवेत संवाद में खुद को शामिल किया, ''क्यों, अब भी कोई सक है क्या? ये लड़की वह सब कर सकती है जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते.''

माहौल गरमाता देख रिनी उठी और यह कहती हुई चल दी कि अभी कुछ फॉर्मेलिटीज इस दफ्तर की भी पूरी करनी हैं.

रिनी उठकर क्या गई, लगा सचमुच चली ही गई. दिल्ली एनसाइक्लोपीडिया ने नाक पर मुस्कराहट खींचते हुए कमरे में प्रवेश किया, ''हां भाई, मुझको तो बस इत्ता बता दो कि दिल्ली ड्रामा अब कौन एडिट करेगा? लड़की तो गई.''

''सर, आपका लिखा एडिट होता ही कब है! वह तो हेडिंग लगाकर रवाना कर दिया करती थी, बस.'' जीनियस ने स्मार्टनेस दिखाई.

''तो फिर ठीक है कल से दिल्ली ड्रामा तुम करोगे एडिट. ओ.के.!'' मैडम ने जीनियस को तुरंत प्रसाद थमा दिया. जीनियस के मुंह से मरा-सा स्वर निकला, ''जी मैम!''

''अपन तो भैया अब आराम से बैठेंगे. अब अपुन से कोई कुछ कहने वाला नहीं.'' मटकू ने बेफ़िक्र अंदाज़ में कहा ही था कि मैडम ने कुर्सी घुमाते हुए उसी की तरफ़ रुख कर लिया, ''लड़की के चले जाने का मतलब ये नहीं है कि तुम छुट्टे घूमते फिरोगे. आज लंच के बाद तुम फ्रंट की सेलिब्रिटी बनाओगे...और हां उसका नया फ़ोटो भी सर्च करना है तुम्हें, समझे.''

''मैं तो ऑलरेडी बहुत बिजी हूं मैम!'' जान बचाने की एक फिजूल कोशिश.

''कोई बात नहीं. सबका हाल तुम्हारे जैसा है. जवान आदमी हो, थके हुए बूढ़ों की तरह बात मत किया करो.'' कहते हुए मैडम ने विभाग के जिस शख्स को ख़ासतौर पर सुनाना था, उसे भी लगे हाथ निबटा दिया.

कमरे को अचानक अब रिनी का चले जाना खलने लगा. हर सीट के साथ रिनी की कोई न कोई जिम्मेदारी अलग से चस्पा कर दी गई थी.

''हां सर, अब ज़रा देखिए तो क्या काम रह गया ऐसा जो बारह के बाद रिनी करती थी?'' मैडम ने अचानक कंप्यूटर पर क्रिकेट खेलते डिप्टी साहब को चौंका दिया.

वह ध्यानावस्था में थे, ''अरे मैडम, आपने जो भी किया है, ठीक ही किया होगा. आपके होते हुए समय संदेश को चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं.''

''चिंता की बात नहीं कर रही हूं मैं, ज़रा ये बताइए कि वीकली भविष्य कौन करेगा और लोकल कैप ज़रा आप खुद देख लीजिएगा. ओके?''

''ऐसा करते हैं मैम, लैटर्स को ही भविष्य भी सौंप देते हैं. यूं भी वह आजकल हर अंगुली में अंगूठी पहने घूमता है. लोकल कैप तो वैसे भी मुझे ही देखने पड़ते थे...रिनी का हाल तो ये था कि मामला करोल बाग का होगा और वह उसे बना देगी आरके पुरम का. उसके किए काम को ग़ौर से देखो तो समझो खुद गए काम से...'' डिप्टी खुद को ज़िम्मेदार बताते हुए रिनी की समीक्षा कर डालना चाहते थे, लेकिन मैम ने जैसे इस वक्त यह ठीक न समझा. वह डिप्टी की ओर मुखातिब हुईं और शुरू हो गईं, ''आपका काम ही जूनियर्स के काम को देखना है. वैसे अब ज़रा ग़ौर से करना लोकल कैप. पहले तो उस पर ग़लती का कंटीला ताज़ रखकर बेफ़िक्र हो जाते थे, अब ये संभव नहीं होगा.''

''हर वक्त तो उसका मोबाइल रिंग मारता रहता था...काम क्या करती...?'' डिप्टी ने जैसे खुद से कहा और काम के अभिनय में लग गए.

जीनियस ने उनके स्वगत को भी कैच कर लिया था, ''सर एक ही नंबर से आता था बार-बार, बॉयफ्रेंड होगा. तभी तो मोबाइल लेकर बाहर चली जाती थी, हर बार.''

''तुम ज़रा खामोश ही रहो तो बेहतर होगा...खुद को भूल गए, कैसे शादी से पहले फ़ोन पर फ़ोन आया करते थे!'' मटकू ने मज़ा लेने की कोशिश की.

''आप अपना काम कीजिए तो, मैं इस समय सर से बात कर रहा हूं.'' जीनियस ने तुर्श लहजे में उसे झिड़क दिया, ''तुझसे तो उसकी बुराई सुनी कहां जाएगी. अभी पता लगेगा बेटा, जब 'दिल्ली मॉडल्स' भी तेरे ही सिर पड़ेगा...बड़ा बोलता था न कि मैडम आप फ़ैशन शो में रिनी को क्यों भेज देती हैं.''

''तू यार हर चीज़ को पर्सनल मत बनाया कर...''

''चल-चल, अब तुझे पर्सनल नज़र आ रहा होगा, हैं!''

बात बढ़ती देख मैडम को बीच में आना पड़ा, '', तुम दोनों अब ज़रा दिमाग़ से ये बात निकाल दो कि किसी के चले जाने से पेपर का काम रुक जाता है. और हां, मैंने दो-दो स्टोरी तुम दोनों को ट्रांसफर की हैं. चुपचाप एडिट करो और काम में मन लगाओ...जो चला गया, उसे जाने

दो.''

जीनियस मूंछों में मुस्कराया और मटकू ने बालों को एक लहरदार झटका देकर सेट करने की कोशिश की. यह इन दोनों का खुद को जब्त कर लेने का नायाब तरीक़ा था. उन्हें ऐसा करता देख डिप्टी साहब के साथ-साथ मैडम की भी हँसी छूटते-छूटते रह गई.

सब अपने-अपने काम में मस्त थे कि अचानक ध्यान योग से उठे डिप्टी ने एक वाक्य हवा में उछाला, ''आगे बढ़ने के लिए रिस्क तो लेना ही पड़ता है.''

ख़ामोश ज्वालामुखी ने फ़ौरन लपक लिया, ''तुम यार तब से इसी सोच में डूबे हुए थे? अरे, ये यंग जेनरेसन है. रिस्क लेना खूब जानती है. हमारी-तुम्हारी तरह नहीं कि एक ही जगह पड़े रहो. हमें तो पग-पग पर इनसिक्योरिटी के बादल मंडराते नज़र आ जाते हैं.''

''भई देखो, हमारी बात और है, उसके सामने तो सारा आसमान फैला पड़ा है.'' किसी ने कहा ज़रूर पर उसकी बात हवा में कहीं बिला गई.

एक पैर के ऊपर घुटना मोड़े दूसरा पैर रखे मटकू सुकून से छत की तरफ़ देख रहा था. अब उसे कोई नहीं, कोई नहीं टोकेगा...उसने दोनों हाथों की अंगुलियों को एक-दूसरे में फंसाया और उनका स्टैंड-सा बनाकर गुद्दी उसी पर टिका ली. वह पूरे इत्मीनान में था.

जीनियस से उसकी बेफ़िक्री देखी न गई, ''देखिए न मैम, ऑफ़िस को इसने रेस्टरूम बनाकर रख दिया है. और अब तो रिनी भी नहीं है जो इसे ठीक से बैठने को कहे. सबसे ज्यादा इत्मीनान इसे ही महसूस हो रहा है.

अब चाहे जैसा वॉल पेपर लगा ले! कौन टोकेगा.''

मटकू जैसे सोते से जागा हो, ''हां यार, बताओ ये भी कोई बात हुई! ऐसे नहीं, ऐसे बैठो!...ये फ़ोटो बहुत अश्लील लगता है...अबे यार, जो फ़ोटो हम अपने अख़बार में छाप सके हैं, उसका वॉल पेपर क्यों नहीं बना सकते! इक्कीसवीं सदी में ये सोलहवीं की आत्मा कहां से आ गई भटकने के लिए! वो भी ऐन मेरी बगल में...मैंने तो इसीलिए हारकर राधाकृष्ण का वॉल पेपर बना लिया था. बस धूपबत्ती की कसर रह गई थी.''

कमरे को रह-रहकर रिनी और उसका होना याद आ रहा था. एक नज़र में बेहद मासूम और भोली नज़र आने वाली यह लड़की स्टैंड लेने में और जवाब देने में कितनी तेज़ हो सकती है यह उस रोज़ सबके सामने कैसे ज़ाहिर हो गया था! फ़ोन तब शायद मैडम ने ही उठाया था. किसी पीआर एजेंसी से था. रिनी के लिए.

''रिनी, तुम्हारा फ़ोन.''

''येस!''

''...''

''लिसिन, माइंड युअर लैंग्वेज़! आप हमें डायरेक्ट नहीं कर सकते कि हमें क्या और कैसे छापना है समझे.''

''......''

''नो, इट इज़ अवर वर्क. लैट अस डू. नो, नथिंग डूइंग. एंड डोंट कॉल मी अगेन. वी आर नॉट पी आर.''

मैडम ने रिनी का यह कॉन्फिडेंस देखा तो भीतर ही भीतर खूब खुश हुईं, लेकिन बाहर से उन्होंने उसे समझाया, ''कूल बेबी. व्हाट हैपन्ड?''

''कुछ नहीं मैम, ये लोग चाहते हैं, जो ये कहें, वहीं हम करते रहें. व्हाय?''

''ओ के, ओ के! अभी तुम पानी पियो और आराम से बैठो. ब्लड प्रैशर नईं बढ़ाने का.''

जहां कोई न जाना चाहता, वहां कवरेज के लिए रिनी को भेज दिया जाता. कभी वह खुद जाना चाहती तो कह दिया जाता कि पहले डेस्क का काम मन लगाकर करना सीखो, फिर घूमना. फर्स्ट प्रूव योअरसेल्फ.

भाषा यही होती, कहने वाले अलग. समय और मौक़े अलग-अलग.

रिनी कभी मन मसोसकर बैठी रह जाती तो कभी उसे लगता कि जो कुछ वह कर सकती है वह उससे करवाया क्यों नहीं जाता! अक्सर उसे ऐसी ख़बरें थमा दी जातीं जो अख़बार में न भी छपतीं तो कोई ख़ास असर न पड़ता. वह परेशान थी कि कुछ लोग मौक़ा पाते ही बयान देने और फ़ोटो खिंचवाने पर उतारू क्यों हो जाते हैं. उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं रहती कि मसला है क्या. बस, जुलूस निकाल लेंगे, विरोध या समर्थन में विज्ञप्ति जारी कर देंगे और कुछ न हुआ तो रक्तदान शिविर, जागरण या फिर नि:शुल्क धार्मिक यात्राओं के आयोजन करवा डालेंगे. क़रीब-क़रीब हर अख़बार में यही लोग अपने लिए जगह निकलवा लेते हैं. इसके कुछ ख़ास तरीके जाने कैसे ईजाद कर लेते हैं ये लोग...रिनी जब हैरान होती, तो उठ कर इधर से उधर घूमने लगती. कभी वह खुद से ही बोलने लगती या फिर दो-एक मिनट के लिए आंखें बंद कर ध्यान में चली जाती.

कमरा उसे देखता और बेआवाज़ हँस देता. कमरा उसकी आंखें खुलने पर नाटक करता_''क्या हुआ रिनी, आर यू ऑल राइट?''

''हां सर, मैं तो ठीक हूं...'' रिनी मुस्करा देती.

रिनी अक्सर सोचती कि क्या इसी सबके लिए उसने मासकौम से डिप्लोमा किया था. क्या इसीलिए वह अपने घरवालों से इतनी दूर इस बेगाने शहर में चली आई थी. क्यों? क्यों? क्यों आई थी वह?

उस रोज़ तो उसकी हैरानी की कोई सीमा ही नहीं रही जब उसने पूरे मन से एक रिपोर्ट मलिन बस्तियों पर तैयार की और उसे मैगजीन को सौंप दिया. देखते ही मैगजीन ने साफ़ कह दिया कि ये सब हमारे लिए बिल्कुल बेकार है. यह तो किसी एनजीओ बुलेटिन में छपवा लो. थोड़ा रिसर्च और कर लो तो प्राइज भी मिल सकता है.

रिनी कभी हताश हो जाती, कभी दुखी. कभी वह खुद को समझाती, कभी किसी परिचित को फ़ोन कर मन हल्का कर लेती. अक्सर ऐसा होता और रिनी की मासूम मुस्कराहट कुछ घंटों के लिए ग़ायब हो जाती. वह खाना मंगा लेती, पर उसे खाने का होश ही न रहता. चाय आती और ठंडी हो जाती. चार बज जाते और स्पोर्ट्स आकर जब उसके सिर पर हाथ फिराता तो उसे होश आता कि अरे, चार बज भी गए?

ऐसा नहीं था कि वह हरदम ऐसी ही रहती हो. कभी-कभी वह ख़ूब चहकती. औरों की तरह बातचीत में ख़ूब शामिल होती, ''सर मेरे साथ भी ऐसा एक केस हो चुका है.''

कोई कुछ खा रहा होता और वह

एक झटके से उठकर उसके पास पहुंच

जाती, ''सर, क्या खा रहे हैं आप? मैं भी खाऊंगी.''

मटकू तो अक्सर नाश्ता साथ ही लेकर आता था. चाय आते ही वह टिफिन खोलता और कभी आलू तो कभी गोभी के परांठे निकालकर खाने लगता. रिनी उसे खाते देखती तो झट से हाथ बढ़ा देती, ''मुझे भी दीजिए न सर!''

उसका अनौपचारिक अंदाज़, चाहे अपनत्व प्रदर्शन का हो या नाराजगी ज़ाहिर करने का, अनूठा ही था. उस रोज़ ही कैसे वह श्रीमान शरीफ के पास जा खड़ी हुई थी, ''सर, आपने मेरा नया पर्स देखा?''

''देखें तो, कितने का लिया है?''

''सर वन फिफ्टी का, सीपी से.''

''प्योर लेदर लगता है.''

''अरे नहीं सर, पता नहीं प्योर रेक्सीन भी है कि नहीं. दिल्ली में कुछ प्योर थोड़े ही मिलता है. वह भी इतनी कम क़ीमत पर!''

जीनियस को याद पड़ रहा था कि कैसे एक दिन रिनी एकदम गुमसुम होकर आ बैठी थी अपनी सीट पर. उसने जब डिप्टी सर को इशारा किया तो उन्होंने उसके पास जाकर ही पूछ लिया, ''क्या बात है, किसी ने कुछ कहा क्या तुमसे?''

''नहीं सर...'' कहते-कहते फफक ही तो पड़ी थी रिनी. ''सर, मैं मॉडल सीन नहीं करूंगी अब.''

''क्यों?''

(क्रमशः अगले अंक में जारी...)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी : चिड़िया की उड़ान
कहानी : चिड़िया की उड़ान
http://photos1.blogger.com/blogger/4284/450/320/rekha%20007.0.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2006/06/blog-post_115080566233016660.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2006/06/blog-post_115080566233016660.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content