-सदाशिव कौतुक यों तो दो महीनों से तैयारी चल रही थी. पिछले सप्ताह से घर को संवारने में अटरू सरपंच बहुत व्यस्त हो गया. दिन रात बस एक ही काम. न...
-सदाशिव कौतुक
यों तो दो महीनों से तैयारी चल रही थी. पिछले सप्ताह से घर को संवारने में अटरू सरपंच बहुत व्यस्त हो गया. दिन रात बस एक ही काम. न खाने की चिन्ता न पीने की. एक ही धुन सवार थी. किशन सेठ, उनके मुनीम, नौकर चाकर के साथ उसके गांव में पहली बार आ रहे थे. अटरू घर के सदस्यों का पेट काटकर भी किशन सेठ का स्वागत करने में कमी नहीं रखना चाहता था. सेठ लोगों का कर्ज ढोते-ढोते अटरू की चारों पीढ़ियाँ गुजर गई थी, फिर भी सेठ के प्रति उसकी श्रद्धा कम नहीं हुई थी. जैसे सेठों की गुलामी उसके खून में समा गई हो. घर के सदस्यों को भूखा रखकर सेठों की खातिरदारी करना उसकी नियति बन गई थी.
एक बार जब अटरू कर्ज की किश्त चुकाने गया तो किशन सेठ ने उसके गांव आने की मंशा जताई थी. अटरू जो सेठ से कर्ज लेकर बहुत अहसान मन्द हो चुका था. उसने हाथ जोड़कर कहा- ‘जरूर माई बाप जरूर. ये तो मेरे धन्य भाग है जो आपने मेरे ही घर आने की इच्छा जताई. मालिक! हूँ तो गरीब, घर के कुछ सदस्य शायद एतराज भी करेंगे, मगर मैं आपको वचन देता हूँ कि मैं अच्छे से अच्छा स्वागत करने की कोशिश करूंगा. गरीब से और गरीब क्या? मरद का दिवाला श्मशान में. अभी तो गांव की पंचायत मेरे हाथ में है. सब देख लूंगा.’
किशन सेठ ने कहा- ‘अटरू हमारा स्वागत अच्छा होना चाहिए. हो सकता है मेरी पत्नी और बेटी भी साथ में आए. मजा आ जाना चाहिए. कुछ मदद की जरूरत हो तो बोलो’
नहीं सेठजी इतना गया बीता तो नहीं हूँ, मेरा भी खानदान ऊँचा है. आप जो कहेंगे मैं हाजिर कर दूंगा. अटरू ने गर्व से सीना फुलाकर कहा.
किशन सेठ बड़े परहेजी रहे हैं. हर किसी को शक से ही देखते रहे हैं. उसने अटरू से कहा- ‘भई देखो हमारे खान पान की चिन्ता मत करना. हम सब साथ में ही लेकर चलते हैं. तुम्हारे यहाँ का स्वाद हमें पटे न पटे इस लिए रसोइया भी साथ में ही ले आएंगे. हमें तो बस रहने की बढ़िया व्यवस्था चाहिए. हम हमारी कार से आएंगे और उसी से लौट जाएंगे’
अटरू ने सेठ का हौसला बढ़ाते हुए कहा- ‘सेठजी आपकी आसपास के सारे गांवों में अच्छी धाक है. आपने अपने इलम में साम-दाम-दण्ड भेद सभी को तो अपना रखा है. मालिक ने धन दौलत भी दी, कर्ज भी खुले हाथ से देते हो. झगड़े फसाद के दौरान भी अपनों की पीठ थपथपाते हो. वक्त आने पर मदद भी करते हो. आपकी दादागिरी कौन नहीं जानता. पंचायत में 20-22 पंच हैं. कइयों के पेट दुखेंगे, दुखने दो. सबका इलाज मेरे पास मौजूद है. दो दीन ज्यादा मेरे काम में अड़ंगा डालते हैं. बाकी तो सबको सेट कर रखा है वे यही कहेंगे कि एक दिन तो सेठ जी को कोसते थे और आज जिगर का टुकड़ा हो गए. फिर भी मैं सब निपट लूंगा. भौंकने वालों को टुकड़ा डालना भी जानता हूँ.’
साहूकार कम चतुर नहीं था. वह पूरे लश्कर के साथ जाना चाहता था. वह कर्ज तो उस गांव को देता ही था. साथ ही गांव के खेतों से होने वाली पैदावार पर भी नजर रखता था. खाद से लेकर बीज, पशु, नीम से लेकर जड़ी बूटी तक उसकी पैनी नजर भी. पड़ोसी गांव जो एक ही जागीर का टुकड़ा था. मगर वहां का सरपंच हमेशा झगड़े फसाद करता रहता था. लूटपाट, खून खच्चर उसका मुख्य काम था. मन में आए तब झगड़ा करता रहता था. हालांकि वह जानता था कि अटरू सरपंच के गांव से आमने सामने की लड़ाई में वह साफ हो जाएगा. फिर भी लड़ाई को उसने अपनी नियति बना ली थी. किशन सेठ बातें तो अटरू के पक्ष में करता था मगर वह दोनों गांव की लड़ाई बन्द नहीं करना चाहता था. किशन सेठ बड़ा षडयंत्री था. वह उन्हें आपस में लड़वाकर दोनों गांवों की शक्ति बरबाद करना चाहता था. अंग्रेजों की साजिश पूर्ण नीति, लड़वाओं और राज करो की नीति वह अच्छी तरह से जानता था ताकि दोनों किशन सेठ के आगे हाथ फैलाते रहे. दोनों की उन्नति बाधित होती रहे और वह खूब फलता-फूलता रहे. उसकी नजर गांव से पैदा होने वाली चीजों पर थी ही. जिसे वह अपने इशारे पर चलाना चाहता था. वह यह भी जानता था कि अटरू के गांव की मिट्टी बड़ी ठंडी है उसमें आग नहीं है. कभी कर्ज के नहीं चुकाने के बदले कुछ जब्त करना पड़े तो कहाँ-कहाँ हाथ मारा जा सकता है. ऐसी कमजोरियाँ भांपने के लिए उसने अपने चमचे पूर्व से छोड़ रखे थे. वह हर काम में मजबूत था. हण्टर से लेकर हथियारों तक का खजाना रखता था. मगर अटरू सरपंच किसन सेठ को बुलाने की वाहवाही लूटना चाहता था. वर्षों बाद उसे बड़ी जोड़ तोड़ से कुर्सी मिली थी. उसने गांव के कई लोगों के विरोध को नहीं माना. गांव के कुओं का पानी सूख रहा था. पीने के पानी की किल्लत थी. लोगों को मजदूरी नहीं मिल रही थी. अनाज गरीबों को नहीं मिल रहा था. रहने के मकान गरीबों के पास नहीं थे. दवाई का इन्तजाम नहीं था. बच्चे के लिए पढ़ाई के पैसे नहीं थे. गरीबी खिल्ली उड़ा रही थी. गांव की व्यवस्था अस्त-व्यस्त थी. हालांकि अपने ही गांव में कई हीरा जवाहरात और सोने की खदानें थीं. मगर कमीशन बाजी के कारण कई बड़े-बड़े किसानों की खोह में समा जाती थी. जो भी गांव का सरपंच चुना जाता था वह अपनी कई पीढ़ियों को तार जाता था. ऐसा होते होते गांव खोखला हो गया. सरपंचों की बेवफाई को देख बेचारे गांव वाले अपने घरों में चुप होकर बैठ गए और कुछ चालबाज लोग बन्दर बाट में शामिल हो गए. कर्च चुकाने के लिए फिर कर्ज और ब्याज में गांव गले-गले उतर गया था.
अटरू ने जो थोड़ा बजट था वह गांव की मुख्य सड़क पर खर्च कर दिया. सारे ओटले लिपवाए, मकान पुतवाए, गांव के उस मोहल्ले को सजा-धजा कर दुल्हन बना दिया.
जगह-जगह बड़े-बड़े हजार वाट के बल्ब लगा दिए. किसन सेठ जहाँ ठहरने वाले थे, उस मकान को ऐसा सजाया कि इन्द्र का दरबार भी फीका पड़ गया. अर्दली में सैकड़ों लोग लगे हुए थे. अटरू ने वह रास्ता चुना जो साफ सुथरा था. गांव के गन्दे और अभावग्रस्त क्षेत्र की ओर का मार्ग नहीं चुना था. घर-घर में चर्चा थी कि किशन सेठ आ रहे हैं. सेठ लोग कैसे होते हैं देखेंगे. गांव की देहाती महिलाओं में होड़ लगी थी. अच्छे से अच्छे कपड़े पहनने की और मेहमान का स्वागत करने की. परम्परागत स्वागत की तैयारियाँ हो गई थी.
किशन सेठ – जिन्दाबाद, किशन सेठ जिन्दाबाद.
किशन सेठ और हम भाई-भाई.
हमारी दोस्ती अमर रहे, अमर रहे.
गगन भेदी नारे गूंजने लगे. शानदार अगवानी की गई. अटरू सरपंच और पंच, गांव के कई प्रभावशाली लोग गले मिल रहे थे. गुलाब के फूलों से गलियाँ महक उठी थीं. लोगों के हाथों में तख्तियों पर किशन सेठ के फोटो चिपके हुए थे. किशन सेठ बेहद प्रसन्न थे. उनका काफिला पहले से आकर जम गया था और सेठ के सारे इन्तजाम पर उनका कब्जा था. ताकतवर आदमी का ताकत के साथ स्वागत भी हुआ था. पूरा मार्ग फूलों से पट गया था. अटरू सरपंच और पंच भाव विह्वल हो रहे थे. अटरू समझ रहा था, सेठ बहुत खुश हो जाएंगे और इस खुशी में कोई बड़ा तोहफा दे जाएंगे. पड़ोसी गांव जल भुनकर राख हो गया था. उससे यह देखा सुना नहीं गया और उसने कुछ पेशेवर हत्यारों को भेजकर गांव के किनारे बसे कुछ लोगों की रात में हत्या कर दी. कई बच्चों को यतीम बना दिया. बहन बेटियों की मांग उजाड़ दी. मगर किशन सेठ के स्वागत में कोई फर्क नहीं पड़ा. होली का मौसम था. यहाँ रंग गुलाल उड़ाया जा रहा था और वहाँ खून से होली खेली जा रही थी. इधर जश्न में मशगूल थे और उधर मातम छाया हुआ था. गांव के कुछ सम्पन्न किसान और मोहल्ले के छोटे दुकानदार तो एक से बढ़कर एक तोहफा लेकर खड़े थे. स्वागत के नशे में गांव के कुछ खास लोग आज रात मदहोश पड़े थे.
किशन सेठ काफिले सहित गांव के बस स्टैण्ड से जुलूस के रूप में गुजरने लगे. डेढ़ दो सौ उनके खास लोग पहले ही व्यवस्था देखने आ चुके थे. किसन सेठ जैसे-तैसे आगे बढ़ रहे थे. नीम की ठंडी छांव उन्हें बड़ा सुख दे रही थी. बबूल के कांटों में भी गुलाब खिलते नजर आ रहे थे. कुछ आगे बढ़े तो हल्दी की गांठ व सुपारी से उनका स्वागत किया जा रहा था. किशन सेठ को हल्दी की गंध घेर रही थी. गोल सुपारी जैसे चमकता हुआ हीरा लग रही थी. जैसे वह सोने की खदान से घिर गया हो और खुशबू शरीर में प्रवेश करने के बाद उसके शहर तक जा रही थी. वह और उनके साथी महत्वपूर्ण जगहों के फोटो खींच रहे थे. गौर से देख रहे थे कि कहाँ-कहाँ अपना जाल फैलाया जा सकता है. रात को उनके सहयोगी बता रहे थे कि इस गांव के महत्वपूर्ण उत्पादनों पर हाथ फेर कर उन्हें चमकदार बनाकर इसी गांव के हाटों में ऊँचे दाम पर बेचा जा सकता है. इस गांव से सम्भावनाएँ बहुत हैं और ये सब चीजें अपने कब्जे में रहे इसलिए इस गांव के लोगों को कर्ज से दबाए रखना जरूरी है.
आज धुलेंडी का दिन है, जगदीश पटेल अपने मोहल्ले में किशन सेठ उनकी बेटी और उसकी सहेलियों को होली खेलने के लिए ले गए. जगदीश पटेल ने मोहल्ले की लड़कियों को किशन सेठ के सामने खूब नचवाया और मुग्ध होकर किशन सेठ व जगदीश पटेल भी खूब थिरके. उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा गांव के किनारे बसे हुए लोगों की हत्या का. रोने वाले रोते रहे. और ये अपनी मस्ती का फाग उड़ाते रहे. इन्हें उन गरीबों की मौत से क्या लेना देना. पंचायत के सभी पंच मेजबानी में मशगूल थे.
कुछ अनुभवी बुजुर्ग और बाहरी चालों को समझने वाले आपस में बतिया रहे थे. एक बुजुर्ग बोले – “अरे भाई, जब से समझ आई है तब से यही अनुभव रहा है कि गांव में जितने हमदर्दी बताने आए उन सबने गांव को लूटा ही लूटा है. चौकीदार बनकर आए और मालिक बन बैठे. दोस्ती का हाथ बढ़ाने आए और पीठ में छुरा भोंक गए. भाई बनाने आए और जहर पिला गए. अब यह आया है देखो क्या करता है पता नहीं.”
दूसरे ने हुक्के की गुड़गुड़ बन्द करके कहा – “क्या होगा? मैं बताता हूँ, यह तो बनिया है कर्ज देगा और ब्याज वसूलेगा. गांव की महत्वपूर्ण जगहें उसके फायदे की हैं. वहां अपने तम्बू के खूटे गाड़ जाएगा. सीधी बात है, वह साहूकार है हम कर्जदार. कैसे लोग हैं जो सके जूते उठा रहे हैं. अलग-अलग फन के माहिर वह इसलिए लाया है कि सब नजर गड़ाकर देखेंगे कि कहाँ-कहाँ फायदा लिया जा सकता है. खुद हथियार बनाता है, हमें कहेगा हथियार मत बनाओ. अपनी भी पीठ थपथपा जाएगा और उस पड़ोसी दुश्मन को भी. पता नहीं चलेगा अन्दर की क्या बात हुई. बस देखते जाओ.”
स्वागत के इन्तजाम में थककर चूर हुए सुरक्षाकर्मी पता नहीं चैन से सोये या नहीं. पता नहीं उन्हें खाना मिला या नहीं. पता नहीं वे अपने बीवी बच्चों से मिलने गए या नहीं. अपनी वर्दी और जूते निकाले भी या नहीं. पलकें कुछ क्षण के लिए मूंदी भी या नहीं. गांव के सिपाहियों का ध्यान थानेदार के आदेश पर था. थानेदार का ध्यान अटरू सरपंच की ओर था कि कब आदेश पर भागना पड़े.
किशन सेठ और उसके साथी ऊंचे मकान की छत पर से गांव का नजारा देख रहे थे. साथियों से पूछ रहे थे कि सब ठीक चल रहा है ना? ठीक से समझ लेना. फिर इतना अच्छा अवसर नहीं मिलता है.
ठीक नौ बजे थे. आज किसन सेठ, गांव के पंच सरपंच और खास लोग अपने विचार रखने वाले थे. पंचायत हॉल सजा हुआ था. हॉल खचाखच भरा हुआ था. सेठ के आते ही अटरू सरपंच ने हाथ मिलाया. अटरू का सीना चौड़ा होता जा रहा था. कुछ पंचों ने गले लगाया और कुर्सी पर बैठाया. एक से बढ़कर एक तोहफे दिए. सारी औपचारिकताएँ पूरी की गई और अन्त में किशन सेठ को अपनी बात कहने के लिए आमंत्रित किया.
किशन सेठ ने सभी से अभिनन्दन स्वीकारते हुए अपना पक्ष रखा – “भाइयों, पहले तो मैं आपको धन्यवाद देना चाहूंगा कि आपने मुझे आपके गांव की खास सोना उगलने वाली खदान दिखाई. हमने आपके गांव की बहुत तारीफ सुनी थी वैसा ही निकला. आपका गांव तो स्वर्ग है स्वर्ग. मैं तो भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि आपके गांव में मेरे लोग आकर बसें. मैं भी कभी-कभी आता रहूँ और इस स्वर्ग का आनंद उठाता रहूं. मेरे स्वागत में इतना खर्च करके मुझे एहसानों से लाद दिया. मैं आपकी मजबूरी में मदद करने को हमेशा तैयार हूँ. आप मुझे जब भी मदद के लिए पुकारें मैं उसी वक्त आपके सामने प्रकट हो जाऊँगा. कई गांव देखे मगर आपके गांव जैसा खजाना कहीं देखने को नहीं मिला. मगर आपके यहाँ पैदा होने वाली चीजों को शुद्ध करने का साधन नहीं है. मैं आपके हर उत्पादन को उत्तम स्वरूप देकर आपको ही वापस भेज दूंगा. ऐसा वादा करने जा रहा हूँ.”
दो पंच आपस में खुसुर-पुसुर कर रहे थे. रामू पंच बोला- ‘देख कैसा मीठा जहर दे रहा है. यह तो ठग है ठग. हमारे गरीब गांव वासियों को नंगा करने आया है. यह चाहता है कि हम हमारी हर जरूरत के लिए इसके आगे हाथ पसारें. यह सारा काफिला इसलिए लेकर आया है कि एक ही बार में सब कमजोरियों को पकड़ ले. यह तो शब्दों की चाल बाजी से हमें धौंस भी दे रहा है. बाहर गांव वालों ने कभी हमें बक्शा भी है? उसने कई गांवों पर धौंस जमा रखी है, वैसे ही अपने पर धाक जमाना चाहता है.’
किशन सेठ बोले जा रहे थे – “देखो भाई, पड़ोसी से झगड़ा ठीक नहीं है. झगड़ा हल नहीं है. मिल बैठकर मामला सुलझा लेना चाहिए. अहिंसा सबसे उत्तम मार्ग है. हथियार का उपयोग उचित नहीं है. खून-खच्चर से गांव का भला नहीं होना है.”
फिर रामू पंच दामू से बोला- “सुना, क्या बोल रहा है?” हथियार का उपयोग उचित नहीं है. हाथ में तलवार-भाले बन्दूक है और अहिंसा की दुहाई दे रहा है और अपनी पंचायत के सदस्य और गांव के भले लोग गिरगिट की तरह सिर हिला रहे हैं. सबकी मति मारी गई है. भाई बुजुर्ग कह गए कि बनिया मित्र न वैश्या सती, कागा हंस न बगुला यति. गलत नहीं है. यह तो सूद खोर बनिया है. देखना ये अटरू को ऐसा धोबी पटला मारेगा कि वह चारों कोने चित्त हो जाएगा. जो अपनी जोरू का विश्वासी नहीं रहा वह किसका विश्वासी हो सकता है. अमीर ने कभी गरीब का भला सोचा है? अटरू को अपनी ओर घूरता देख कर रामू और दामू चुप हो गए थे.
फिर किशन सेठ ने कहा- “मैं छोटी मोटी बातें भूलकर आपसे दोस्ती का हाथ बढ़ाता हूँ और पड़ोसी गांव ने जो हत्याएँ करवाई हैं उसकी मैं निन्दा करता हूँ.” सभी उपस्थित जोर जोर से ताली बजाने लगे. गांव के कई पुरुष-महिलाएँ जो नहीं जानते थे कि इस जश्न में क्या राज छुपा हुआ है वे खड़े होकर नाचने लगे जैसे काले बादलों को उमड़ता देख बेचारे मोर नाचने लग जाते हैं. फिर अपने पैरों की तरफ देखते हैं तो पैरों की दयनीय हालत देखकर आँखों में आँसू आने लगते हैं.
सब लोग अपने-अपने विदा हो रहे थे. रात अपने काले पंख पसार रही थी. किशन सेठ जहाँ ठहरे थे, वहाँ अटरू सरपंच ने खाने-पीने का इंतजाम कर रखा था. सारे पंच-सरपंच और किशन सेठ का काफिला जमा हो गया था. शराब की बोतलें खुल रही थीं. जाम के प्याले टकराए जा रहे थे. मद्धिम रोशनी में कई लड़कियाँ नृत्य कर रही थीं. धीरे-धीरे सभी को नशा चढ़ रहा था. मुर्गे की टांगों को चबाने की कड़-कड़ आवाजें अशुभ संकेत दे रही थीं, जैसे इस गांव पर कड़कती हुई गाज गिरने वाली हो. रात गहरा गई थी. खाली बोतलों का ढेर लगा हुआ था. पैर जमीन पर टिक नहीं रहे थे. एक-दूसरे को ठीक से पहचान नहीं पा रहे थे. सफेद हाथी चिंघाड़ रहा था. वह अपनी सूंड से फव्वारे छिड़क रहा था और अटरू उसके सामने घुटने टेक कर स्तुति कर रहा था. कुछ तो जहाँ जगह मिली वहीं सो गए. अटरू अपने कुछ साथियों को लेकर अपने घर आ गया था.
रामू और दामू ने बीमारी का बहाना लेकर नहीं पी थी. मगर इस जश्न का मजा ले रहे थे. दामू ने कहा – “देख रामू, हमारे गांव की नदी कितनी पवित्र है? कहते हैं दो बूंद गंगा का जल मिल जाए तो स्वर्ग के दरवाजे पर नम्बर लग जाता है. दुःख पाते हुए शरीर को मुक्ति मिल जाती है. ये साले हमारे गांव का पानी पीने से मना कर गए और दारू से गला तर कर रहे हैं. यह हमारे गांव की बेइज्जती नहीं तो क्या है? छोड़ यार, अपन तो चलो. अब नाटक देखते नहीं बनता.”
दोनों धीरे से खिसक लिए थे.
सुबह दिन चढ़ गया था. अटरू की खुमारी नहीं जा रही थी. बाहर उसका घोड़ा दो दिनों से भूखा बंधा था. बगीचे के पौधों को पानी नहीं दिया गया था इसलिए सूख रहे थे. रात में गांव में चोरों का आतंक बढ़ गया था. कुछ बेरोजगार लड़कों ने आत्महत्या कर ली थी. कुछ सम्पन्न लोग गरीबों की पकी फसलें कटवाकर अपने घरों में भर रहे थे. नौकरों को तीन महीनों से वेतन नहीं बंटा था. गंदगी के मारे सड़ांध फैल रही थी. जान बचाने के लिए दवाई नहीं मिल रही थी. नशे में धुत अटरू और पंचों को कोई चिन्ता नहीं थी. कर्ज में तो गांव था ही, बचा खुचा किशन सेठ पर खर्च करके पंचायत वाले झूठी शान बघार रहे थे. गांव की औरतें आपस में बातें कर रही थीं – “मियाँ चले बांके, घर में पड़े फांके.” मगर इस नक्कारखाने में उनकी कौन सुनने वाला था.
**-**
रचनाकार – सदाशिव कौतुक की अन्य रचनाएँ रचनाकार पर यहाँ पढ़ें-
http://rachanakar.blogspot.com/2006/04/blog-post_18.html
क्या आज भी गाँवों में ऐसा ही हाल है?
जवाब देंहटाएंबल्कि कहीं कहीं तो इससे भी बदतर!
जवाब देंहटाएंI think here India and Pakistan are symbolised as villages and seth is as America.... this has nothing to do with villages... this is a symbolic story.
जवाब देंहटाएं