- असग़र वजाहत संसार से लड़कियां ग़ायब हो गई हैं. पूरी दुनिया में अब कोई लड़की नहीं है. यह विचित्र स्थिति पैदा कैसे हुई? सुनिए : रात का दो बजा है...
-असग़र वजाहत
संसार से लड़कियां ग़ायब हो गई हैं. पूरी दुनिया में अब कोई लड़की नहीं है. यह विचित्र स्थिति पैदा कैसे हुई? सुनिए : रात का दो बजा है. शीतल बाज़ार, पहाड़ी धीरज की गली नंबर बारह के मकान नंबर सात में रहने वाली सरला सफदरजंग अस्पताल के जनरल वार्ड में लेटी है. यहां से वहां तक औरतें ही औरतें हैं. छत पर नंगे बल्ब जल रहे हैं. मरीज़ औरतों के पास तीमारदार औरतें बेड के पास दरी बिछाए पड़ी हैं. झोलों में ख़ाली बर्तन हैं. पानी की आधी ख़ाली बोतले हैं और कभी-कभी कराहने तथा सिसकने की आवाज़ें हैं.
सरला कल दोपहर से छत के पंखे को देखे जा रही है. उसे दोपहर को होश आया था और नर्स ने बताया था कि उसे लड़की हुई है. नर्स को नहीं मालूम था कि सरला के यहां यह तीसरी लड़की है. नर्स बताकर चली गई थी. सरला से मिलने कोई नहीं आया था. न सास, न ससुर, न पति, न देवर, न ननद. सरला चाहती भी न थी कि वे आएं. दस साल यानी शरीर पर निकले दस बड़े-बड़े फोड़े. पहली लड़की का जन्म, फिर दूसरी और अब3तीसरी.
रात में नर्स लड़की को लाई कि मां का दूध पी ले.
सरला ने लड़की को गोद में ले लिया उसे लगा बच्ची तपता हुआ लावा है.
बच्ची को उसने दूध पिलाया और इन चंद मिनटों में उसे अपना जीवन जीते देख लिया.
सरला बच्ची को लेकर उठी, बाथरूम गई. बच्ची को 'पाट' में डाला और जंजीर चला दी. वह यह देखने के लिए नहीं रुकी कि बच्ची फ्लश के पानी से बहकर गटर में गई या नहीं. हां उसने एक हिचकी जैसी आवाज़ ज़रूर सुनी थी. उसने सोचा, यह तो मामूली आवाज़ है. अगर वह बच जाती तो उसके रोने से धरती फट पड़ती.
सरला बिस्तर पर आकर लेट रही.
थोड़ी देर बाद नर्स बच्ची को लेने आई तो सरला ने बता दिया कि बच्ची के साथ उसने क्या किया है.
हड़कंप मच गया.
अदालत में सरला का बयान सटीक था. उसने यह माना था कि मैंने बच्ची को 'पाट' में डाल कर फ्लश चला दिया था, उसने यह भी माना था कि यह उसने अपनी बच्ची के सुंदर भविष्य के लिए किया था और मां-बाप का काम अपने बच्चों के भविष्य को सुधारना है.
अदालत जो एक औरत थी सरला को छोड़ दिया क्योंकि यह साबित हो गया कि उसने जो किया है वह होशो-हवास में नहीं किया है. सरला घर आ गई.
रात में वह लेटी थी कि उसकी बच्ची 'गटर' से निकलकर उसके पास आई. बच्ची ने साफ़-सुथरे कपड़े पहन रखे थे. रिबिन बांध रखे थे. वह सुखी लग रही थी. सरला उसे देखकर खुश हो गई. बच्ची ने अपनी मां के शरीर पर ही नहीं. उसकी संवेदनाओं पर गहरे-गहरे ज़ख्म देखे. अपमान, हिंसा, उपेक्षा और बर्बरता के निशान देखे.
बच्ची ने मां से कहा, चलो तुम भी मेरे साथ 'गटर' में चलो. वहां बड़ा आराम है.
लेकिन अफ़सोस कि बच्ची तो 'गटर' में चली गई. मां नहीं जा सकी. सरला अपनी बच्ची को जाते देखती रही. जाते-जाते बच्ची ने कहा, 'चिंता मत करो मां...तुम आ जाओगी... एक दिन आ जाओगी.'
भगवान का करना कुछ ऐसा हुआ कि सरला के पति जगदीश्वर को बिरादरी में ही एक अच्छा रिश्ता मिला. दहेज भी अच्छा मिलना था. चिंता थी तो बस यह कि सरला है.
जगदीश्वर की बात और किसी ने नहीं घर के 'स्टोव' ने सुन ली.
तेल न होने के बावजूद 'स्टोव' फटा और इस तरह फटा कि सरला सौ प्रतिशत जल गई.
सरला की राख घर में रखी है. सरला का पिता आता है और राख को नमस्कार करता है. सरला के दो भाई आते हैं और राख के पैर छूते हैं, जो होना था, जो बदा था वह हो गया. सरला के पिता को दुख है, भाइयों को दुख है. वे पुलिस में बयान देते हैं कि यह वास्तव में दुर्घटना थी3उन्हें पक्का विश्वास है कि सरला की हत्या नहीं की गई. वह मानसिक रूप से असंतुलित थी और लापरवाही के कारण 'स्टोव' फट गया.
क़ानून की आंखें गवाह हैं. क़ानून कुछ देखता नहीं वह अंधा है. अंधा अपने घर बैठ गया.
''अब इसे जलाया क्या जाए? पूरी राख तो हो गई है.''
''हां.''
''कहां ले जाओगे... इसे कौन लेगा.''
''हां.''
''तो एक काम न करें.''
''हां.''
''इसे 'गटर' में बहा दें...जहां इसने अपनी बेटी को बहाया था. वह जगह इसे बहुत पसंद है.''
''हां.''
मुक़दमा कौन लड़ेगा? गवाहियां कौन देगा? पैसा कौन ख़र्च करेगा. बड़े लड़के की दुकान है. सुबह आठ बजे जाता है, रात आठ बजे आता है. छोटा लड़का प्रॉपर्टी डीलर है. सुबह सात बजे निकलता है, रात ग्यारह बजे आता है. मुझे मोतियाबिंद है, हाई ब्लर्ड प्रेशर रहता है. पेंशिन के पैसे पूरे नहीं पड़ते. एक लड़की ब्याहने को बैठी है. बिरादरी में बदनामी हो गई कि मुकदमेबाज़ है तो लड़का भी न मिलेगा.
रात में जब सब सो गए तो सरला का पिता बहुत रोया. बहुत रोया, बहुत ज्यादा रोया. फिर चुप हो गया. गायत्राी मंत्रा का जाप किया. मन को शांति मिली. शांति स्थाई साबित हुई, उसी रात 'ड्रेन' में ... यानी गंदे नाले वाले बड़े पाइप में सरला को बच्ची मिल गई. बच्ची तेज़ी से बड़ी हो गई थी. वह मां को देखकर प्रसन्न हो गई. मां बेटी से मिलकर जीवन में पहली बार खुश हो गई.
'ड्रेन' के अंदर लड़कियां ही लड़कियां हैं. पूरी दुनिया है पर वहां सिर्फ़ लड़कियां हैं. तितलियों की तरह उड़ती, महकती, चिड़ियों की तरह गाती और डाल-डाल पर बैठती. झरने की तरह रास्ता बनाती और किसी वाद्य की तरह संगीत को जन्म देती. सिर्फ़ लड़कियां3हर जगह बाज़ारों में, घरों में, सिनेमाहालों में, होटलों में, कारख़ानों में, दुकानों में3जहां हैं सिर्फ़ लड़कियां हैं ... ड्रेन के अंदर लड़कियों की दुनिया आबाद है.
'ड्रेन' में लड़कियों की संख्या बढ़ती रही. समय बीतता चला गया. लड़कियां संसार से ग़ायब हो-होकर ड्रेन में आती गईं और आख़िरकार दुनिया में लड़कियां ख़त्म हो गईं : यानी सब लड़कियां 'ड्रेन' में पहुंच गईं. अब जो पुरुष संसार में बचे उन्हें बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा.
संयोग की बात यह कि किसी आदमी ने एक दिन गटर खोला तो उसे अद्वितीय सुंदरियां दिखाई दीं. वह बेहद प्रसन्न हो गया. पर डर गया और उसने 'गटर' बंद कर दिया. पर जैसा कि कहते हैं पुरुष के पेट में बात नहीं पचती, उसने यह बात सभी पुरुषों को बताई कि 'गटर' में तो अद्वितीय सुंदरियां रहती हैं. ऐसी लड़कियां हैं कि स्वर्ग में वैसी अप्सराएं भी न होंगी. लोग यह बात एक दूसरे को बताते रहे. पर जैसा कि होता है यानी हिम्मत वाले कम होते हैं, वैसा ही यहां भी हुआ यानी हिम्मत कोई न कर सका. हालांकि सुंदर लड़कियों का ख्वाहिशमंद कौन पुरुष न होगा. बहरहाल एक दिन एक सबसे हिम्मती पुरुष ने यह फ़ैसला किया कि वह 'गटर' में उतरेगा. दूसरे सब पुरुषों ने अपना पुरुषत्व उसे दे दिया क्योंकि वे गटर में उतरने का साहस नहीं कर सकते थे. बहरहाल यह आदमी 'गटर' में उतरा. उसकी तो आंखें खुली की खुली रह गईं. जुबान गूंगी हो गई. वहां जो उसने सुंदरता देखी उसकी तो उसने कल्पना तक न की थी.
आदमी ने सरला की लड़की से निवेदन किया कि वह ''अहदे वफ़ा बांध के उसकी हो जाए.''
लड़कियों ने आदमी को घेर लिया और पूछा कि तुम यहां आए क्यों हो?
आदमी ने कहा, ''लड़की की खोज
में.''
लड़कियों ने कहा, ''तुम लोगों की यही सज़ा है कि तुम यहां आ तो गए हो, पर जा नहीं सकते.''
''मैं विवाह करूंगा.'' पुरुष बोला.
लड़कियां हँसने लगीं.
''मैं दिल की रानी बनाकर रखूंगा.''
लड़कियां हँसने लगीं.
''मैं प्रेमी हूं.''
लड़कियां हँसने लगीं.
वह घबरा गया और बोला, ''ठीक है तो मुझे जाने दो.''
लड़कियों ने कहा, ''तुम्हें सभी पुरुषों ने अपना पुरुषत्व देकर भेजा है.''
''हां.''
''तो वह यहां रखते जाओ. फिर चले जाना.'' लड़कियों ने कहा.
''क्...क्...क्या.'' वह घबरा गया.
''हां, पुरुषत्व यहां रखते जाओ.''
वह आदमी तो तैयार नहीं था. पर जब वह 'ड्रेन' से वापस गया तो उसके पास पुरुषत्व नहीं था.
हे, आजकल संसार में रहने वाले आदमियों, तुम्हारे पास और कुछ हो या न हो, पुरुषत्व नहीं है जबकि 'ड्रेन' में रहने वाली लड़कियां, लड़कियां हैं, पर वे संसार में नहीं हैं.
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रचनाकार - बहुमुखी प्रतिभा के धनी वरिष्ठ कथाकार असग़र वजाहत की कई पुस्तकें प्रकाशित हैं, जिनमें शामिल हैं- 'दिल्ली पहुंचना है', 'स्विमिंग पूल', 'सब कहां कुछ', 'आधी बानी' (कहानी-संग्रह), 'फिरंगी लौट आएं', 'इन्ना की आवाज़', 'वीरगति', 'समिधा', 'जिस लाहौर नई देखा...', 'अकी' (पूर्णकालिक नाटक), 'सबसे सस्ता गोश्त' (नुक्कड़ नाटकों का संग्रह), 'रात में जागने वाले', 'पहर दोपहर', 'सात आसमान' और 'कैसी आगी लगाई' (उपन्यास). कई वृत्ताचित्रों, धारावाहिकों और कुछ फीचर फ़िल्मों के लिए पटकथा लेखन भी आपने किया है. बुदापैस्त हंगरी में आपकी दो एकल चित्र प्रदर्शनियाँ भी हो चुकी हैं.
सप्रंति, हिंदी विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया (नई दिल्ली) में अध्यापन.
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चित्र - रेखा श्रीवास्तव का रेखांकन (पेंसिल, 24x30 इंच)
अति सुंदर,
जवाब देंहटाएंसमाज की सच्चाई आपने बहुत सुंदर तरीके से सामने रखी है।
सच, यही तो विडंबना है हमारी और हमारे समाज की कि - जन्म लेने वाली औरत को मृत्यु के द्वार पर पहुँचाने वाली भी औरत ही होती है.
कडवा सच!!
वाह भई, सुंदर रचना है।
जवाब देंहटाएंऔरत ही औरत की सबसे बडी शत्रू है।