- प्रेम जनमेजय कुछ आदमी प्रायः आदमी न होकर मोमजामे हो जाते हैं. इनको नेता कहते हैं. कुछ इससे भी आगे बढ़ जाते हैं. इन पर धूप, हवा, पानी, आग, ...
- प्रेम जनमेजय
कुछ आदमी प्रायः आदमी न होकर मोमजामे हो जाते हैं. इनको नेता कहते हैं. कुछ इससे भी आगे बढ़ जाते हैं. इन पर धूप, हवा, पानी, आग, सत्य, न्याय, नैतिकता, ईमानदारी, करुणा, दया – किसी का भी असर नहीं पड़ता है. ये अपने लिए जीते हैं और दूसरों को विवश करते हैं कि वे भी इनके लिए जिएँ. ऐसे लोगों से खुदा भी डरता है. ये कपड़े उतारने में बहुत सहूलियत महसूस करते हैं. कपड़े ये अपने ही उतारते हैं और शर्म दूसरों को आ जाती है. ऐसे सम्माननीय सज्जनों को ‘बेशर्म’ कहते हैं.
बेशर्मों से इतिहास भरा हुआ है और यह इतिहास प्रसिद्ध है कि ऐसे लोगों को कभी शर्म नहीं आती. शहाबुद्दीन गौरी को पृथ्वीराज चौहान ने सत्रह बार शर्मिंदा करने का प्रयास किया परन्तु वह एक बार भी नहीं हुआ. बेशर्म होकर निरंतर अपने कपड़े उतारता रहा. पृथ्वीराज चौहान अपनी इस राजपूती शान पर माथा ऊँचा किए भटकते रहे कि उन्होंने गौरी को कई बार लज्जित किया है. अठाहरवीं बार शहाबुद्दीन गौरी विजयी हुआ परन्तु उसने पृथ्वीराज को शर्मिंदा होने का एक बार भी अवसर नहीं दिया. पृथ्वीराज को शर्मिंदा होने का एक बार भी अवसर नहीं दिया. पृथ्वीराज राजपूती शान में अपना सिर गंवा बैठे और गौरी ने बेशर्मी से सोने की चिड़िया के पंख नोचे और अपनी राह पर चल दिया.
शर्मदार लोग बेशर्मों से निरंतर पराजित होते रहे हैं. जो जितना बड़ा बेशर्म बना, उसने उतनी ही बड़ी विजय हासिल की.
बेचारा दुर्योधन शर्म में मारा गया. गांधारी के सामने बेशर्म नहीं हो सका. बेशर्म हो जाता तो भीम से पराजित न होता, इतिहास बदल जाता. और दूसरी ओर पांडव महाभारत के युद्ध में निरंतर अपने कपड़े उतारते रहे. भीष्म पितामह के पास जाकर उनसे उनकी मृत्यु का रहस्य पूछ आए. द्रोणाचार्य को असत्य बोलकर शर्मिंदा किया और स्वयं बेशर्मी से उनकी हत्या कर दी. कर्ण की बेशर्मी से हत्या की और स्वयं विजयी भाव से मुसकराए. पांडवजन युद्ध में कई बार बेशर्म हुए पर दुर्योधन एक बार भी नहीं हो सका. धर्म-युद्ध को धर्म-युद्ध की तरह लड़ता रहा.
एक दिन बस-स्टाप पर एक युवक लड़की से छेड़ छाड़ कर रहा था. उसकी उम्र में यह छेड़छाड़ मुझे भी अच्छी लगती थी परन्तु जब से अध्यापक बना हूँ, नैतिकता ने मुझे बाँध दिया है. खुद कर नहीं सकता इसलिए दूसरों को करते देख गुस्सा आता है. इसलिए मैंने उस लड़के को टोका, “तुम्हें शर्म नहीं आती, इस लड़की को तंग करते हुए?”
युवक ने मुझे घूरकर देखा और फिर बड़े लापरवाह ढंग से कहा, “नहीं.”
मेरे लिए उत्तर अप्रत्याशित था. मैं असमंजस में पड़ गया. सोच रहा था कि वह या तो मुझसे माफी मांगेगा या अपनी सफाई देगा. उसने न कुछ मांगा और न कुछ दिया. अपनी इज्जत बचाने के लिए मैंने प्रश्न कर दिया, “क्यों?”
“इस देश में साले बुजुर्गों को शर्म नहीं आ रही है. मैं तो अभी बच्चा हूँ. ये पूरे देश के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं, उन्हें तो कोई कुछ कहता नहीं, हमें शर्मिंदा करने पर तुले हुए हैं. जो लोग पूरे देश के कपड़े उतार कर विदेशी बैंकों में रखते जा रहे हैं, उन्हें कोई नहीं टोकता. बरसों से देश की दलाली खा रहे हैं. थू... !”
मैंने अपना मुंह साफ किया और गर्दन झुका ली. उसने गर्व से लड़की को छेड़ा और गर्दन उठा ली!
हमारे मोहल्ले में दो सम्माननीय व्यक्ति हैं. एक की लड़की भाग गई है और दूसरा शराब पीकर अपनी पत्नी को पीटता है. दोनों से उलझने का कोई साहस नहीं करता. रोज मोहल्ले की नींद खराब होती है, अमन चैन में खलल पड़ता है. एक दिन मैं साहस कर बैठा. मैंने उनसे कहा, “आपको शर्म नहीं आती?”
“किस बात की?” उन्होंने एक घूँट पिया और मुसकराए.
“आप रोज रात को शराब पीकर मोहल्ले में अंट-शंट बकते हैं. अपनी पत्नी को पीटते हैं, मोहल्ले की शांति भंग करते हैं.” मेरे स्वर में आक्रोश था.
“अरे पीते हैं तो अपने पैसे की पीते हैं, किसी के बाप के पैसे की नहीं पीते. मोहल्ला मेरे रुपए को देखकर जलता क्यों है?” उनका स्वर ऊँचा हो रहा था, लग रहा था जैसे वह मुझसे लड़ रहे हों, “कल से तो मैं मोहल्ले के बीच में बोतल रखकर पीऊंगा, देखता हूँ, किसमें हिम्मत है मुझे कुछ कह जाए. बीवी मेरी है, सारा मोहल्ला सुन ले, बीवी मेरी है, मेरी. उसे मैं मारता हूँ तो मोहल्ले को क्यों दर्द होता है – अबे, क्या तुम उसके यार हो? तुम लोगों की तरह छिपकर नहीं पीटता. सबके सामने पीटता हूँ.”
सारा मोहल्ला खिड़कियों से झांक रहा था. मैं उसे शर्मिंदा करना चाहता था परन्तु उसने सारे मोहल्ले के सामने मेरे कपड़े उतार दिए और मैं हाथों में शरीर छुपाने की चेष्टा करने लगा. व्यक्ति अगर अपनी शर्म उतार दे तो लज्जाशील व्यक्ति को स्वयं से शर्म आने लगती है.
मैंने थाने में रिपोर्ट की तो पता चला, एक बोतल के बदले थानेदार की शर्म पहले ही उतर चुकी थी. मोहल्ले की इस अशांति को उसने घरेलू मामला बताया और बातचीत से हल करने को कहा. बातचीत करने का प्रयत्न मैं एक बार कर चुका था, दूसरी बार के लिए मुझमें साहस नहीं था. पता चला कि थानेदार की लड़की घर से भागी हुई है. और थानेदार साहब स्वयं लड़कियों के क्रय-विक्रय का पार्ट-टाइम बिज़नेस करते हैं. खूब धन-दौलत है, समाज में प्रतिष्ठा से रहते हैं. शर्म तो गरीबों के पास रहती है... जो जितनी अधिक बेशर्मी से खून पी रहा है, उतना ज्यादा धनी और प्रतिष्ठित है.
बेशर्म होकर व्यक्ति राजनीतिज्ञ हो जाता है. गुंडागर्दी करता है, जेल जाता है, जमानत पर छूटता है और फिर मुसकराकर फोटो खिंचवाता है, पब्लिसिटी पाता है. जो जितना बड़ा बेशर्म है, जितने कपड़े उतार रहा है, उतनी ही उन्नति कर रहा है. रिश्वत खाता है, लड़के-लड़कियों के शानदार विवाह करता है, मकान बनवाता है, प्रतिष्ठित होता है. और जो अपनी ईमानदारी में बेशर्म नहीं हो पाता, लड़की के विवाह में दहेज की समस्या को लेकर शर्मिंदा होता है. पड़ोसी के पास फ्रिज, टीवी और कार देखकर शर्मिंदा होता है. उसकी गर्दन सदा के लिए झुकी रहती है. वह सीना नहीं तान पाता है.
वस्तुतः लोगों का चुल्लू ही इतना बड़ा हो जाता है कि उसमें डूबने के लिए पानी इकट्ठा हो ही नहीं पाता है. इसलिए वे उस पानी में तैरते तो नजर आते हैं, परन्तु डूबते नहीं हैं. ऐसे व्यक्तियों के मुँह पर थूक भी दो तो वह उसे साफ कर लेते हैं और फिर मुसकरा देते हैं. आपको वोट देनी ही पड़ती है, क्योंकि आप बेशर्म नहीं हो सकते हैं.
यदि प्रकाशक को आवश्यकता है तो वह आपसे पांडुलिपि मांग-मांगकर आपको शर्मिंदा करता रहेगा. निरन्तर एहसास दिलाता रहेगा कि आप भी कैसे अहमक लेखक हैं कि प्रकाशक आपसे पांडुलिपि मांग रहा है और आप दे नहीं रहे हैं. जब आप दे देंगे तो वह बेशर्म हो जाएगा. आप लगाइए चक्कर घर के, दूकान के. दीजिए गालियाँ, वह मुक्त भाव से स्वीकार करेगा. आप गालियाँ देते-देते थक जाएंगे, वह लेता-लेता नहीं थकेगा. वह बेशर्म मुसकान से आपका स्वागत करेगा और अंततः वह अहसास दिलाकर ही छोड़ेगा कि आप राह के मांगने वाले भिखारी हैं और वह है दानवीर कर्ण. कभी आपकी ओर कोई टुकड़ा फेंका और कभी नहीं. आप कितना ही बेशर्म हो लें, परन्तु उसका मुकाबला नहीं कर पाएंगे. उसकी बेशर्म मुसकान आपको निरन्तर पराजित करती रहेगी.
बेशर्म मुसकान आपका कई स्थलों पर स्वागत करती मिलेगी. पुलिस-थाना हो, सरकारी दफ़तर हो, प्रकाशक की दूकान हो, सरकारी अस्पताल हो या किसी नेता का घर, आपको यह मुसकान मिलेगी ही. मेरा यह सुझाव है कि इन सभी स्थलों की दीवारों पर एक नीति-वाक्य टंगा होना चाहिए - “बेशर्म होना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. ‘बेशर्ममेव जयते’!”
***-***
रचनाकार – प्रेम जनमेजय हिन्दी साहित्य के जाने माने व्यंग्यकार हैं.
Script uplabhdh karva dijiye sir besharmmev jayte ki
जवाब देंहटाएं