फैशन के रंग मिनी-माइक्रो की बहार चारों ओर है छाई नये जींस को फाड़कर फैशन ने ली है अंगड़ाई। महंगाई के इस दौर में बचत की करती हुई बड़ाई कम कपड़ों ...
फैशन के रंग
मिनी-माइक्रो की बहार
चारों ओर है छाई
नये जींस को फाड़कर
फैशन ने ली है अंगड़ाई।
महंगाई के इस दौर में
बचत की करती हुई बड़ाई
कम कपड़ों वाले
फैशन की बेल है
देखो लहराई।
एक मीटर की जगह
आधे से काम चलाओ
पूरा ढंकने के बजाय
थोड़ा सा तन दिखलाओ।
बिगड़े काम को बनाने का
इससे आसान नहीं है
कोई उपाय,
जिसने ये समझ अपनाई,
वो ही करेगा
नये जमाने में
फैशन की अगुआई।
प्रसिद्धि और कमाई का
अनोखा है ये मेल
गजब है भाई ''अमित''
फैशन का ये
अलबेला खेल।
ऊँच-नीच का अब
रहा न कोई भेद,
फैशन ने कर दिया
अब सबको एक।
गरीबी के कारण
जो ढंक न पाते थे
अपना पूरा तन,
बन गये हैं वो
अब फैशन की
उड़ती पतंग।
फैशन का छाया
ऐसा रंग
अमीर भी पहन रहे हैं
अब कपड़े तंग।
मेकअप ने ऐसा
बुना है जाल,
पहचानना मुश्किल है
किस रंग की है खाल।
गोरे-काले का भेद
मिटाने की
इससे बेहतर भला
कौन सी है चाल।
फैशन का पड़ा है
ऐसा प्रभाव,
युवतियों के तन पर
हो गया है
कपड़ों का अभाव।
फैशन के रंग में रंगी
ये युवतियाँ फैला रही हैं
युवकों में ध्यान का संदेश,
बिना योग-अभ्यास
के ही परमानन्द पाने का
दे रही हैं उपदेश।
फैशन की इस
मदमस्त आंधी में,
मेल मिलाप का
अनूठा चला है दौर-
ऊपर और नीचे के
वस्त्रों ने आपस में
मिलने की है ठानी।
ऊपर का वस्त्र चल
पड़ा है नीचे की ओर
करते हुये अपनी मनमानी।
अपनी इज्जत पर, हमला होते देख
नीचे का वस्त्र भी,
धीरे-धीरे उठ
रहा है ऊपर की ओर
बोल रहा है वो भी
फैशन की ही बानी।
इन दोनों के संगम का
होने वाला दृश्य विहंगम
शायद होगा इस
अंधे फैशन का
आखिरी मंचन।
फैशन की इस दौड़ में
लगता है हम आगे
नहीं, बहुत पीछे
जा रहे हैं,
आधुनिक युग में
आदम युग को पा रहे हैं।
भूख
'भूख' सुनते ही
होता है अहसास
किसी चाहत का
किसी कमी का
जिन्दगी के दरवाजे पर
बार-बार दस्तक देती
किसी आहट का।
किसी को भूख है
शोहरत की
किसी को है रोजगार की
किसी को वासना की
तो कोई पैसों का
भूखा है।
किसी को ताकत की
भूख है
किसी को सेहत की
तो कोई हुस्न
का दीवाना है
विलासिता का कोई
उड़ता हुआ परवाना है।
भाइयों देखो
क्या आया जमाना है।
मित्र 'अमित' तुम भी
नहीं हो कम
लगी रहती है तुम्हें भी तो
लेखन की भूख हरदम।
नजरें उठा के
देखो
नहीं हो तुम अकेले
भूखों की इस नगरी में
तुमसे भी बढ़कर
हैं अलबेले।
सड़क पर खड़े
उस बेबस-लाचार
बूढ़े को देखो
फैले हुए हाथ,
चेहरे की दीनता
और आंखों से
छलकती भूख
को तो देखो!
उसकी ये भूख
हमारी भूख से
है बिल्कुल अलग-
खुद की हड्डियों
को गलाकर,
क्षुधा की अग्नि को
जला कर ,
कर रहा है वो
'भूख' शब्द के
अर्थ को,
वास्तव में सार्थक।
मैंने हवा से कहा
सुबह हो रही है
मैंने हवा से कहा।
हवा बह रही है,
मैंने जहाँ से कहा॥
सुबह की बेला आयी,
फिर भी तू सो रहा है।
रे मनुष्य! उठ जा,
ये हवा ने मुझसे कहा॥
मैंने हवा से कहा,
दुनिया सो रही है।
फिर तू क्यों
बह रही है।
जवाब है हवा का,
नादान है तू,
नहीं हूँ मैं मनुष्य।
नि:स्वार्थ भाव से
बहते जाना
रुकना न ये काम
है हमारा॥
समुद्र के सीने को
चीर कर,
चट्टानों से टकराकर भी
बहते जाना,
बस बहते जाना
ही काम है मेरा।
समझ सको अगर तुम
ये संदेश मेरा
तो जहाँ में हो
जाये सबेरा।
तब हवा ये कहेगी
सुबह हो चुकी है,
हवा बह रही है
मनुष्य चल रहा है।
मनुष्य और हवा का
ये संगम होगा
कितना प्यारा,
खिल उठेगा जब
इससे संसार हमारा॥
हवा ने दिया संदेश
मानव को मिला ये उपदेश
कर्म-पथ पर बढ़ते जाना
सुबह हो या शाम।
बाधाओं से न तुम
घबराना,
हवा की तरह
बस तुम चलते जाना।
पूरे होंगे सपने तुम्हारे
जग में फैलेगा नाम तेरा,
रुकना न तुम,
बस बहते जाना,
हवा से तुम
बातें करते जाना।
रुक-रुक कर लेना तुम आराम
ये भी आएगा तुम्हारे काम,
हवा तो सिर्फ हवा है,
सिर्फ उड़ते मत जाना।
पैर हों तुम्हारे जमीन पर,
सोच हो तुम्हारी
आकाश पर,
मान लो ये संदेश हमारा,
फिर होगा संगम
हमारा और तुम्हारा।
मुझसे ये हवा ने कहा,
मैं चुपचाप सुनता रहा।
कहने का तो है बहुत
कुछ पर,
अब तू जा,
सुबह हो रही है,
मैंने हवा से कहा।
संगीत सार
आओ-आओ
संगीत प्रतियोगिता में
भाग लो
हर चैनल पर
चल रहा है
अभियान ये बड़े जोर,
संगीतकार, गायक बनाने का
चलाया जा रहा है
गुरुकुल में
शॉर्ट-टर्म का कोर्स।
आओ-आओ
जल्दी आओ
स्थान सीमित है,
एस.एम.एस. द्वारा
प्रवेश लेते जाओ।
अगर आप बोल
सकते हैं तो
हम भी आपको
गायक बना सकते हैं,
का मच रहा है
चारों ओर ये शोर।
पैसे के लिए हम
संगीत को भी तोड़ मरोड़
सकते हैं
जी हाँ आप के लिए
तो हम कुछ भी
कर सकते हैं।
तो जनाब देर
किस बात की है
आइए और शुरू
हो जाइए
संगीत के इस
खेल में आप भी
शामिल हो जाइए।
और शामिल होकर
दिवंगत गायकों की
आत्मा को आप भी
थोड़ा दर्द देते जाइए।
दर्शक भी इसके
निराले हैं,
सुर और ताल की
गजब की समझ
वाले हैं।
नजरों से लेते हैं
संगीत का आनन्द
कानों को बन्द कर
करते हैं ये महसूस
सुरों का स्पन्दन।
और चैनल वाले
कहते हैं जय हो
जनता जनार्दन।
तुम ही हो दाता
तुम ही हो ज्ञाता,
तुम्हें है सब-कुछ आता
सही कहो या गलत
इसमें हमारा है
क्या जाता।
यूँ ही तुम
करते रहो
संगीत का दाह
और हम कहते
रहें वाह-वाह।
अंधकार
गगनचुम्बी इमारतें,
चारों तरफ जगमग
प्रकाश है।
पर मन के भीतर
तुम देखो मानव
कितना अंधकार है।
दिन की रोशनी हो
चाहे हो सूर्य का
प्रकाश,
मन के दीप
जबतक न जले।
ये सब है अंधकार।
प्रज्वलित कर
दीप अन्तर्मन का
कलुषित विचार,
को त्यागो,
मन ज्योति से
रोशन कर
संसार से अंधकार
तुम मिटा दो।
रचनाकार अमित कुमार सिंह टाटा कंसल्टेंसी में सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हैं और कविताएँ लिखना इनका प्रिय शगल है.
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