**-** - लतीफ़ घोंघी यह जानकर दुःख हुआ कि एक पटवारी साहब सौ रुपया घूस लेते हुए पकड़ लिए गए. आश्चर्य इस लिए हुआ कि देश में ऐसे पटवारी ...
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- लतीफ़ घोंघी
यह जानकर दुःख हुआ कि एक पटवारी साहब सौ रुपया घूस लेते हुए पकड़ लिए गए. आश्चर्य इस लिए हुआ कि देश में ऐसे पटवारी हैं जो घूस लेकर पकड़ में आ जाते हैं. यार पटवारी, सच कहें, तुमने तो पूरे पटवारी समाज की नाक काट कर रख दी. हमारे इधर से पटवारी पाँच सौ रुपया ले लेते हैं और पकड़ाई में भी नहीं आते. एक तुम हो कि सौ रुपट्टी में ही पकड़े गए. हम पूछते हैं, कहाँ ट्रेनिंग ली थी यार तुमने? किसने बना दिया तुमको पटवारी? यार तुम पकड़ में क्या आ गए, तुमने पूरे राष्ट्र को घूसखोर सिद्ध कर दिया. हमारा देश ईमानदार कर्मचारियों का देश है. तुम जैसे लोग ही देश पर घूसखोरी और भ्रष्टाचार का कलंक लगा रहे हैं. थू है तुम्हारी पटवारी गिरी पर. डूब मरो चुल्लू भर पानी में. धिक्कार है तुम्हें कि इस देश में रहकर भी तुमको घूस लेने का तरीका नहीं आया. तुम तो विदेश चले जाओ यार, तुम इस देश में रहने के काबिल नहीं हो. अरे भइया, तुमको घूस लेना नहीं आता तो रेवेन्यू इन्सपेक्टर से पूछ लेते, किसी तहसीलदार से पूछ लेते. हम कहते हैं तुम कब सीखोगे? राजस्व विभाग में इतने वरिष्ठ अधिकारी लोग हैं, उनके अनुभवों का लाभ कब उठाओगे? किसने कहा था तुमको कि सौ रुपये का नोट लो? एक बोरा चावल ले लेते. फिर कैसे पकड़ में आते? नोट पर तो नम्बर होता है, चावल पर थोड़े होता है नम्बर. पुलिस वाले पूछते तो कह देते ससुराल वालों ने भेजा है. यार पटवारी भी तुम कच्चे हो.
सुनो हो पटवारी, तुम घूस लेते हुए पकड़ में क्या आ गए, हम इधर तकलीफ में पड़ गए. अपने हल्का पटवारी से नकल लेने जाते हैं तो पटवारी कहता है, मेरे पास खसरा फार्म नहीं है.
हम बाजार से फार्म ला देते हैं तो वह कहता है, ट्रेसिंग पेपर नहीं है. वो भी ला देते हैं तो कहता है, बी-वन का फार्म नहीं है. वो भी ला देते हैं तो कहता है – हमको फुरसत नहीं है.
हम कहते हैं – पटवारी साहब, लगे तो दस-बीस रुपया ले लो लेकिन हमको खसरा बी-वन की नकल दे दो. वह कहता है देखो, आज से हम ईमानदार हो गए हैं. हमारा एक भाई पकड़ में आ गया है. उसके बाल-बच्चे भूखे मर रहे हैं. उसे पकड़कर शासन ने पूरे पटवारी समाज का अपमान किया है. इसलिए आज से हम कोई घूस नहीं लेंगे और जब हमको फुरसत होगी तभी आप लोगों का काम करेंगे.
हमने कहा – तो यही बता दीजिए कि आपको कब फुरसत मिलेगी.
पटवारी साहब ने हमको ऊपर से नीचे तक देखा और बोले- ये नहीं बता सकते. पटवारी को कब फुरसत मिलेगी यह कैसे बताएँ तुमको.
हमने कहा- फिर भी... साल... दो साल.. पाँच साल... कभी तो मिलेगी फुरसत.
वह बोले- फुरसत का क्या है. कहो तो अभी मिल सकती है फुरसत और नहीं तो दस साल तक भी नहीं मिल सकती. हम सरकारी काम पहले देखेंगे कि तुम्हारी नकल बनाते रहेंगे. कल के दिन तहसीलदार सिर पर चढ़ेगा तो तुम आओगे हमको बचाने?
- फिर क्या करें? देखो पटवारी साहब, हमको तो बैंक से कर्ज लेना है. आप जब हमारे खाते की नकल देंगे तभी हमको बैंक से कर्जा मिलेगा.
- तो हम क्या करें, बोलो?
- आप तो कुछ मत करो, बस हमसे बीस रूपया ले लो और फुरसत निकाल लो तो हमारा कल्याण हो जाएगा. बैंक से कर्जा मिलेगा तो हम उसी रकम में से गुड्डी की शादी निपटा देंगे.
पटवारी हँसता है. उसके चेहरे पर मुस्कान है. कहता है- देखोजी, हम तो तुमको बता देते हैं कि हम नियम से काम करेंगे... तुमसे एक पैसा नहीं लेंगे. और तुम तो जानते हो कि हम नियम से काम करेंगे तो कम से कम इस जन्म में तो तुमको नकल मिल ही नहीं सकती. तुमने हमारे पटवारी भाई को सौ रुपया देकर पकड़वा दिया है तो इसका बदला तो हम नियम से काम करके ही लेंगे. इसलिए अब तुम जाओ. जब नकल बन जाएगी तो हम तुमको बुलवा लेंगे – ईश्वर की कृपा से तुम जिन्दा रहे तो आ जाना नहीं अपने बाल-बच्चों को समझा के जाना कि वे आकर नकल ले जाएँ.
तो भइया, हम तो नकल का आवेदन दे आए और घर आकर मन्नत माँगी की हमको नकल मिल जाएगी तो हम पाँच फकीरों को खाना खिला देंगे. लेकिन आपको भी आश्चर्य होगा कि आज पाँच साल हो गए. इस बीच हमारे दो बच्चे भी पैदा हो गए लेकिन पटवारी साहब ने खसरा पाँच साला और बी-वन की नकल हमको बनाकर ही नहीं दी. जब जाते हैं उनको फुरसत ही नहीं मिलती. पहले फुरसत का रेट बीस रुपया था लेकिन जव से सरकार ने इस पटवारी को सौ रुपया लेते पकड़ा है तब से यह रेट बदल गया है. किसको बताएँ कि हमको यह असुविधा हो रही है. गम तो उस अफसर से भी पूछते हैं कि तुमने तो उस पटवारी को पकड़ लिया लेकिन अब ये तो बताओ कि हम क्या करें? पहले तो बीस रुपया देते थे तो पटवारी को फुरसत मिल जाती थी लेकिन अब तो सौ रूपया भी देते हैं तो वह कहता है, हमको फुरसत नहीं – हम नाजायज कब्जे वालों का काम कर रहे हैं.
सरकार से हमारा निवेदन है पटवारियों को मत पकड़ो. ये इस देश के कर्णधार हैं, व्यवस्था के भू-स्वामी हैं. इनको पकड़ोगे तो हम भू-स्वामी होकर भी अनाथ हो जाएंगे.
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रचनाकार – लतीफ़ घोंघी को हिन्दी व्यंग्य क्षेत्र के पाँच पांडवों हरिशंकर परसाईं, श्रीलाल शुक्ल, शरद जोशी और रवीन्द्र नाथ त्यागी समेत, गिना जाता है.
इनकी व्यंग्य रचनाएँ ऐसी हैं कि पाठक पढ़ता जाता है तो उसे चोट भी लगते रहती है, और वह मुसकराता भी रहता है.
साभार, नीर क्षीर, किताबघर, दरियागंज, नई दिल्ली. आईएसबीएन नं. 81-7016-057-x
- लतीफ़ घोंघी
यह जानकर दुःख हुआ कि एक पटवारी साहब सौ रुपया घूस लेते हुए पकड़ लिए गए. आश्चर्य इस लिए हुआ कि देश में ऐसे पटवारी हैं जो घूस लेकर पकड़ में आ जाते हैं. यार पटवारी, सच कहें, तुमने तो पूरे पटवारी समाज की नाक काट कर रख दी. हमारे इधर से पटवारी पाँच सौ रुपया ले लेते हैं और पकड़ाई में भी नहीं आते. एक तुम हो कि सौ रुपट्टी में ही पकड़े गए. हम पूछते हैं, कहाँ ट्रेनिंग ली थी यार तुमने? किसने बना दिया तुमको पटवारी? यार तुम पकड़ में क्या आ गए, तुमने पूरे राष्ट्र को घूसखोर सिद्ध कर दिया. हमारा देश ईमानदार कर्मचारियों का देश है. तुम जैसे लोग ही देश पर घूसखोरी और भ्रष्टाचार का कलंक लगा रहे हैं. थू है तुम्हारी पटवारी गिरी पर. डूब मरो चुल्लू भर पानी में. धिक्कार है तुम्हें कि इस देश में रहकर भी तुमको घूस लेने का तरीका नहीं आया. तुम तो विदेश चले जाओ यार, तुम इस देश में रहने के काबिल नहीं हो. अरे भइया, तुमको घूस लेना नहीं आता तो रेवेन्यू इन्सपेक्टर से पूछ लेते, किसी तहसीलदार से पूछ लेते. हम कहते हैं तुम कब सीखोगे? राजस्व विभाग में इतने वरिष्ठ अधिकारी लोग हैं, उनके अनुभवों का लाभ कब उठाओगे? किसने कहा था तुमको कि सौ रुपये का नोट लो? एक बोरा चावल ले लेते. फिर कैसे पकड़ में आते? नोट पर तो नम्बर होता है, चावल पर थोड़े होता है नम्बर. पुलिस वाले पूछते तो कह देते ससुराल वालों ने भेजा है. यार पटवारी भी तुम कच्चे हो.
सुनो हो पटवारी, तुम घूस लेते हुए पकड़ में क्या आ गए, हम इधर तकलीफ में पड़ गए. अपने हल्का पटवारी से नकल लेने जाते हैं तो पटवारी कहता है, मेरे पास खसरा फार्म नहीं है.
हम बाजार से फार्म ला देते हैं तो वह कहता है, ट्रेसिंग पेपर नहीं है. वो भी ला देते हैं तो कहता है, बी-वन का फार्म नहीं है. वो भी ला देते हैं तो कहता है – हमको फुरसत नहीं है.
हम कहते हैं – पटवारी साहब, लगे तो दस-बीस रुपया ले लो लेकिन हमको खसरा बी-वन की नकल दे दो. वह कहता है देखो, आज से हम ईमानदार हो गए हैं. हमारा एक भाई पकड़ में आ गया है. उसके बाल-बच्चे भूखे मर रहे हैं. उसे पकड़कर शासन ने पूरे पटवारी समाज का अपमान किया है. इसलिए आज से हम कोई घूस नहीं लेंगे और जब हमको फुरसत होगी तभी आप लोगों का काम करेंगे.
हमने कहा – तो यही बता दीजिए कि आपको कब फुरसत मिलेगी.
पटवारी साहब ने हमको ऊपर से नीचे तक देखा और बोले- ये नहीं बता सकते. पटवारी को कब फुरसत मिलेगी यह कैसे बताएँ तुमको.
हमने कहा- फिर भी... साल... दो साल.. पाँच साल... कभी तो मिलेगी फुरसत.
वह बोले- फुरसत का क्या है. कहो तो अभी मिल सकती है फुरसत और नहीं तो दस साल तक भी नहीं मिल सकती. हम सरकारी काम पहले देखेंगे कि तुम्हारी नकल बनाते रहेंगे. कल के दिन तहसीलदार सिर पर चढ़ेगा तो तुम आओगे हमको बचाने?
- फिर क्या करें? देखो पटवारी साहब, हमको तो बैंक से कर्ज लेना है. आप जब हमारे खाते की नकल देंगे तभी हमको बैंक से कर्जा मिलेगा.
- तो हम क्या करें, बोलो?
- आप तो कुछ मत करो, बस हमसे बीस रूपया ले लो और फुरसत निकाल लो तो हमारा कल्याण हो जाएगा. बैंक से कर्जा मिलेगा तो हम उसी रकम में से गुड्डी की शादी निपटा देंगे.
पटवारी हँसता है. उसके चेहरे पर मुस्कान है. कहता है- देखोजी, हम तो तुमको बता देते हैं कि हम नियम से काम करेंगे... तुमसे एक पैसा नहीं लेंगे. और तुम तो जानते हो कि हम नियम से काम करेंगे तो कम से कम इस जन्म में तो तुमको नकल मिल ही नहीं सकती. तुमने हमारे पटवारी भाई को सौ रुपया देकर पकड़वा दिया है तो इसका बदला तो हम नियम से काम करके ही लेंगे. इसलिए अब तुम जाओ. जब नकल बन जाएगी तो हम तुमको बुलवा लेंगे – ईश्वर की कृपा से तुम जिन्दा रहे तो आ जाना नहीं अपने बाल-बच्चों को समझा के जाना कि वे आकर नकल ले जाएँ.
तो भइया, हम तो नकल का आवेदन दे आए और घर आकर मन्नत माँगी की हमको नकल मिल जाएगी तो हम पाँच फकीरों को खाना खिला देंगे. लेकिन आपको भी आश्चर्य होगा कि आज पाँच साल हो गए. इस बीच हमारे दो बच्चे भी पैदा हो गए लेकिन पटवारी साहब ने खसरा पाँच साला और बी-वन की नकल हमको बनाकर ही नहीं दी. जब जाते हैं उनको फुरसत ही नहीं मिलती. पहले फुरसत का रेट बीस रुपया था लेकिन जव से सरकार ने इस पटवारी को सौ रुपया लेते पकड़ा है तब से यह रेट बदल गया है. किसको बताएँ कि हमको यह असुविधा हो रही है. गम तो उस अफसर से भी पूछते हैं कि तुमने तो उस पटवारी को पकड़ लिया लेकिन अब ये तो बताओ कि हम क्या करें? पहले तो बीस रुपया देते थे तो पटवारी को फुरसत मिल जाती थी लेकिन अब तो सौ रूपया भी देते हैं तो वह कहता है, हमको फुरसत नहीं – हम नाजायज कब्जे वालों का काम कर रहे हैं.
सरकार से हमारा निवेदन है पटवारियों को मत पकड़ो. ये इस देश के कर्णधार हैं, व्यवस्था के भू-स्वामी हैं. इनको पकड़ोगे तो हम भू-स्वामी होकर भी अनाथ हो जाएंगे.
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रचनाकार – लतीफ़ घोंघी को हिन्दी व्यंग्य क्षेत्र के पाँच पांडवों हरिशंकर परसाईं, श्रीलाल शुक्ल, शरद जोशी और रवीन्द्र नाथ त्यागी समेत, गिना जाता है.
इनकी व्यंग्य रचनाएँ ऐसी हैं कि पाठक पढ़ता जाता है तो उसे चोट भी लगते रहती है, और वह मुसकराता भी रहता है.
साभार, नीर क्षीर, किताबघर, दरियागंज, नई दिल्ली. आईएसबीएन नं. 81-7016-057-x
व्यंग्य बहुत उत्तम है। दुर्भाग्यवश यह काफी सत्य के पास है।
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