**-** - पुष्पा रघु हद दर्जे की आलसी और निकम्मी लड़की है नूपुर. स्कूल से घर आती है तो बस्ता पटक, जूते-मोजे इधर-उधर फेंक, सीधी खाने की...
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- पुष्पा रघु
हद दर्जे की आलसी और निकम्मी लड़की है नूपुर. स्कूल से घर आती है तो बस्ता पटक, जूते-मोजे इधर-उधर फेंक, सीधी खाने की मेज पर. मम्मी कहती हैं, “नुप्पू बेटे यूनिफ़ॉर्म उतारो! हाथ मुँह धो लो, देखो तो कितने गंदे हो रहे हैं.”
“ऊँ-हूँ हमें जोर की भूख लगी है, खाना दो ना!” खाना खाया सो गई. सोकर उठते ही पार्क में खेलने चली जाती है और मम्मी लाख बुलाए पर अँधेरा होने से पहले वह नहीं लौटती. सुबह भी मुश्किल से जागेगी, जागते ही हड़पोंग मचाएगी- “यूनिफ़ॉर्म प्रेस करी हुई नहीं है, जूतों पर पॉलिश नहीं है, जुराब भी गंदे हैं.” मम्मी ही नहीं पापा भी भाग-दौड़ करते-करते परेशान हो जाते हैं तब कहीं जाकर नूपुर बस पकड़ पाती है. स्कूल-डायरी में जब देखो तब शिकायत. उसे स्कूल का काम करवाना कौन-सा सरल है. नौ साल की हो गई नूपुर पर ज्यों-ज्यों बड़ी हो रही है अधिक ही बिगड़ती जा रही है. छुट्टियों में तो उसने खूब ही तंग किया था मम्मी को. मम्मी सदा भगवान से प्रार्थना करती कि नूपुर को सदबुद्धि मिले और वह एक अच्छी लड़की बने. वह नूपुर को भी बहुत समझाती पर वह एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देती.
रविवार का दिन था. नूपुर सदा की तरह उठते ही पार्क में पहुँच गई. तितलियों के पीछे भाग रही थी. उसने देखा कि एक गुलाब के पौधे पर फूल से भी बड़ी सोने के रंग की एक बहुत सुंदर तितली बैठी है. उसके मन में आया क्या ही अच्छा हो यह तितली मेरी पकड़ में आ जाए. कल स्कूल में मेरा कितना रौब पड़ेगा, सब पर. तभी उसने सुना - “नूपुर रानी मैं तुम्हारे पास आ तो जाता पर अभी तो मुझे बहुत काम करने हैं.” उसने हैरानी से चारों ओर देखा. तितली उसके कंधे पर आ बैठी और हँसकर बोली- “तितलियों की रानी हूँ. तुम नाहक मेरी बहनों को सताती रहती हो.”
“मुझे तितिलियाँ बहुत अच्छी लगती हैं.” नूपुर ने कहा.
“अच्छा! में तुम्हें जादू की कलम दूंगी जिससे तुम इससे भी सुंदर तितली बना सकोगी.” तितली बोली.
“सच!” नूपुर चहककर बोली- “दो ना तितली रानी!”
“दूंगी, पर एक शर्त है, ये गिट्टे ले जाओ और कम-से-कम सात घरों की लड़कियों के साथ खेलकर आओ.”
“अरे! वाह! यह भी कोई काम है! मैं अभी आई.” नूपुर ने ताली बजाते हुए कहा और उछलती-कूदती जा पहुँची प्रज्ञा के घर. “प्रज्ञा! प्रज्ञा! आ जा गिट्टे खेलेंगे.”
“ऊँह! यह भी कोई खेलने का समय है? मैं तो अपना कमरा साफ कर रही हूँ.” नूपुर ने राखी को आवाज़ लगाई, परन्तु वह नाश्ता बनाने में अपनी मम्मी का हाथ बंटा रही थी. उसने मना कर दिया. क्षिति गमलों में पानी दे रही थी. उर्वी अपने छोटे भाई को खिला रही थी. श्रुति नहा रही थी. स्वाति बैठी पढ़ रही थी. किसी ने भी उन सुंदर गिट्टों का स्वागत नहीं किया. अन्त में नूपुर नेहा के घर पहुँची. देखा वह भी हाथ में झाड़न लिए फर्नीचर झाड़-पोंछ कर रही है. वह बोली- “अरे क्या बेकार के काम में लगी हो, देख मेरे पास कितने सुंदर गिट्टे हैं. आ खेलते हैं.”
नेहा उसका हाथ झटक कर बोली- “चल निकम्मी, न खुद कुछ करती है न औरों को करने देती है. हमारे यहाँ मेहमान आने वाले हैं. कितना काम पड़ा है.”
नूपुर की आँखों में आँसू आ गए. मम्मी की बातें सच्ची और अच्छी लग रही थीं. अब वह अपनी सहेलियों की तरह अच्छी बच्ची बनेगी. उसने निश्चय कर लिया. वह तितली रानी को ढूंढ रही थी ताकि उससे कह सके - “मुझे जादू की कलम नहीं चाहिए न ही ये गिट्टे. मैं भी घर जाकर काम करूंगी, पढ़ूंगी.” पर तितली रानी तो मिल ही नहीं रही. अरे! ये तो मम्मी हैं. गीले बालों से मोती टपक रहे हैं. सतरंगा आँचल लहरा रहा है. नूपुर के सिर पर हाथ फेरती कह रही हैं- “उठ जा बेटी, जल्दी तैयार हो जा आज नानी के घर चलेंगे.”
नूपुर बिस्तर से उछलते कूदते उठी और शीघ्रता से तैयार होने लगी. उसके मन में तितली रानी के सुंदर गिट्टे नाच रहे थे.
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कई प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित रचनाकार पुष्पा रघु के बहुत से कहानी संग्रह / बाल-कथा संग्रह तथा बालगीत संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं.
पुष्पा रघु की कुछ अन्य रचनाएँ रचनाकार पर पढ़ें – श्रद्धांजलि – (http://rachanakar.blogspot.com/2005/08/blog-post_13.html ) बन्द गली का द्वार (http://rachanakar.blogspot.com/2005/09/blog-post_08.html) तथा बूढ़ा बचपन (http://rachanakar.blogspot.com/2005/08/blog-post_08.html )
- पुष्पा रघु
हद दर्जे की आलसी और निकम्मी लड़की है नूपुर. स्कूल से घर आती है तो बस्ता पटक, जूते-मोजे इधर-उधर फेंक, सीधी खाने की मेज पर. मम्मी कहती हैं, “नुप्पू बेटे यूनिफ़ॉर्म उतारो! हाथ मुँह धो लो, देखो तो कितने गंदे हो रहे हैं.”
“ऊँ-हूँ हमें जोर की भूख लगी है, खाना दो ना!” खाना खाया सो गई. सोकर उठते ही पार्क में खेलने चली जाती है और मम्मी लाख बुलाए पर अँधेरा होने से पहले वह नहीं लौटती. सुबह भी मुश्किल से जागेगी, जागते ही हड़पोंग मचाएगी- “यूनिफ़ॉर्म प्रेस करी हुई नहीं है, जूतों पर पॉलिश नहीं है, जुराब भी गंदे हैं.” मम्मी ही नहीं पापा भी भाग-दौड़ करते-करते परेशान हो जाते हैं तब कहीं जाकर नूपुर बस पकड़ पाती है. स्कूल-डायरी में जब देखो तब शिकायत. उसे स्कूल का काम करवाना कौन-सा सरल है. नौ साल की हो गई नूपुर पर ज्यों-ज्यों बड़ी हो रही है अधिक ही बिगड़ती जा रही है. छुट्टियों में तो उसने खूब ही तंग किया था मम्मी को. मम्मी सदा भगवान से प्रार्थना करती कि नूपुर को सदबुद्धि मिले और वह एक अच्छी लड़की बने. वह नूपुर को भी बहुत समझाती पर वह एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देती.
रविवार का दिन था. नूपुर सदा की तरह उठते ही पार्क में पहुँच गई. तितलियों के पीछे भाग रही थी. उसने देखा कि एक गुलाब के पौधे पर फूल से भी बड़ी सोने के रंग की एक बहुत सुंदर तितली बैठी है. उसके मन में आया क्या ही अच्छा हो यह तितली मेरी पकड़ में आ जाए. कल स्कूल में मेरा कितना रौब पड़ेगा, सब पर. तभी उसने सुना - “नूपुर रानी मैं तुम्हारे पास आ तो जाता पर अभी तो मुझे बहुत काम करने हैं.” उसने हैरानी से चारों ओर देखा. तितली उसके कंधे पर आ बैठी और हँसकर बोली- “तितलियों की रानी हूँ. तुम नाहक मेरी बहनों को सताती रहती हो.”
“मुझे तितिलियाँ बहुत अच्छी लगती हैं.” नूपुर ने कहा.
“अच्छा! में तुम्हें जादू की कलम दूंगी जिससे तुम इससे भी सुंदर तितली बना सकोगी.” तितली बोली.
“सच!” नूपुर चहककर बोली- “दो ना तितली रानी!”
“दूंगी, पर एक शर्त है, ये गिट्टे ले जाओ और कम-से-कम सात घरों की लड़कियों के साथ खेलकर आओ.”
“अरे! वाह! यह भी कोई काम है! मैं अभी आई.” नूपुर ने ताली बजाते हुए कहा और उछलती-कूदती जा पहुँची प्रज्ञा के घर. “प्रज्ञा! प्रज्ञा! आ जा गिट्टे खेलेंगे.”
“ऊँह! यह भी कोई खेलने का समय है? मैं तो अपना कमरा साफ कर रही हूँ.” नूपुर ने राखी को आवाज़ लगाई, परन्तु वह नाश्ता बनाने में अपनी मम्मी का हाथ बंटा रही थी. उसने मना कर दिया. क्षिति गमलों में पानी दे रही थी. उर्वी अपने छोटे भाई को खिला रही थी. श्रुति नहा रही थी. स्वाति बैठी पढ़ रही थी. किसी ने भी उन सुंदर गिट्टों का स्वागत नहीं किया. अन्त में नूपुर नेहा के घर पहुँची. देखा वह भी हाथ में झाड़न लिए फर्नीचर झाड़-पोंछ कर रही है. वह बोली- “अरे क्या बेकार के काम में लगी हो, देख मेरे पास कितने सुंदर गिट्टे हैं. आ खेलते हैं.”
नेहा उसका हाथ झटक कर बोली- “चल निकम्मी, न खुद कुछ करती है न औरों को करने देती है. हमारे यहाँ मेहमान आने वाले हैं. कितना काम पड़ा है.”
नूपुर की आँखों में आँसू आ गए. मम्मी की बातें सच्ची और अच्छी लग रही थीं. अब वह अपनी सहेलियों की तरह अच्छी बच्ची बनेगी. उसने निश्चय कर लिया. वह तितली रानी को ढूंढ रही थी ताकि उससे कह सके - “मुझे जादू की कलम नहीं चाहिए न ही ये गिट्टे. मैं भी घर जाकर काम करूंगी, पढ़ूंगी.” पर तितली रानी तो मिल ही नहीं रही. अरे! ये तो मम्मी हैं. गीले बालों से मोती टपक रहे हैं. सतरंगा आँचल लहरा रहा है. नूपुर के सिर पर हाथ फेरती कह रही हैं- “उठ जा बेटी, जल्दी तैयार हो जा आज नानी के घर चलेंगे.”
नूपुर बिस्तर से उछलते कूदते उठी और शीघ्रता से तैयार होने लगी. उसके मन में तितली रानी के सुंदर गिट्टे नाच रहे थे.
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कई प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित रचनाकार पुष्पा रघु के बहुत से कहानी संग्रह / बाल-कथा संग्रह तथा बालगीत संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं.
पुष्पा रघु की कुछ अन्य रचनाएँ रचनाकार पर पढ़ें – श्रद्धांजलि – (http://rachanakar.blogspot.com/2005/08/blog-post_13.html ) बन्द गली का द्वार (http://rachanakar.blogspot.com/2005/09/blog-post_08.html) तथा बूढ़ा बचपन (http://rachanakar.blogspot.com/2005/08/blog-post_08.html )
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